आंतरिक सुरक्षा
वामपंथी उग्रवाद का सामाजिक-आर्थिक परिप्रेक्ष्य
यह संपादकीय “Left Wing Extremism is a smokescreen. Maharashtra’s new law could criminalise dissent” पर आधारित है, जो 25/07/2025 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित हुआ था। इस लेख में वामपंथी उग्रवाद पर महाराष्ट्र के नए विधेयक के उन जोखिमों को उजागर किया गया है जो असहमति और हिंसा के बीच के अंतर को धुंधला कर रहे हैं, साथ ही इस बात पर बल देता है कि स्थायी समाधान केवल दंडात्मक उपायों पर निर्भर रहने के बजाय उग्रवाद की सामाजिक-आर्थिक जड़ों का उन्मूलन करने में निहित है।
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय जाँच अभिकरण, रेड कॉरिडोर, धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान, SAMADHAN सिद्धांत, एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय, GIS मैपिंग, ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट मेन्स के लिये:वामपंथी उग्रवाद से निपटने में भारत की प्रमुख उपलब्धियाँ, भारत में वामपंथी उग्रवाद के बने रहने के पीछे प्रमुख कारक। |
वामपंथी उग्रवाद (LWE) को लक्षित करने वाला महाराष्ट्र विधानमंडल का हालिया विधेयक, लोकतांत्रिक स्वतंत्रताओं को संरक्षित करते हुए वैचारिक हिंसा से निपटने में एक व्यापक राष्ट्रीय चुनौती को दर्शाता है। इस कानून की परिभाषाएँ और व्यापक दायरा वैध असहमति और आलोचना को आपराधिक बनाने का जोखिम उत्पन्न करता है, जिससे हिंसक उग्रवाद एवं स्वतंत्र अभिव्यक्ति के संवैधानिक अधिकारों के बीच की रेखाएँ धुंधली हो जाती हैं। अस्पष्ट सीमाओं वाले दंडात्मक कानून पर पूरी तरह निर्भर रहने के बजाय, भारत को उग्रवाद को बढ़ावा देने वाली सामाजिक-आर्थिक जड़ों को नष्ट करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये तथा असमानता, शासन की विफलताओं एवं विकास संबंधी घाटे को दूर करना चाहिये जो कट्टरपंथी विचारधाराओं के लिये उपजाऊ ज़मीन तैयार करते हैं।
वामपंथी उग्रवाद से निपटने में भारत की प्रमुख उपलब्धियाँ क्या हैं?
- उन्नत खुफिया और आतंकवाद-रोधी क्षमताएँ: वामपंथी उग्रवाद समूहों को ध्वस्त करने में भारत की खुफिया क्षमताओं का सशक्तीकरण महत्त्वपूर्ण रहा है।
- राष्ट्रीय जाँच अभिकरण (NIA) के गठन और राज्यों के बीच संयुक्त खुफिया जानकारी साझा करने में वृद्धि के साथ, सुरक्षा बल अकेले वर्ष 2024 में 290 माओवादियों को बेअसर करने में सफल रहे हैं।
- विशेष खुफिया शाखाओं और सुदृढ़ पुलिस थानों में उल्लेखनीय वृद्धि ने विद्रोही नेटवर्क को लक्षित करने तथा उन्हें ध्वस्त करने की क्षमता को बढ़ाया है।
- सामरिक सैन्य सफलताएँ और सामरिक अभियान: भारत के सुरक्षा बलों ने माओवादी गुटों के विरुद्ध परिचालन सफलता में वृद्धि दिखाई है।
- उदाहरण के लिये वर्ष 2025 में कर्रेगुट्टालु हिल ऑपरेशन (ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट), जिसके परिणामस्वरूप सुरक्षा बलों की ओर से शून्य हताहतों के साथ 31 माओवादियों को बेअसर किया गया, वामपंथी उग्रवाद-रोधी अभियानों की दक्षता और सटीकता का उदाहरण है।
- पिछले दशक में 8,000 से अधिक माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया है, जो दर्शाता है कि किस प्रकार सैन्य दबाव ने कई विद्रोहियों को हिंसा त्यागने और समाज में पुनः सम्मिलित होने के लिये विवश किया है।
- राज्यों के बीच द्विपक्षीय सहयोग: वामपंथी उग्रवाद प्रभावित राज्यों के बीच सहयोग ने माओवादी प्रभाव को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा के बीच समन्वित अभियानों के परिणामस्वरूप रेड कॉरिडोर में माओवादियों के प्रमुख गढ़ों को ध्वस्त किया गया।
- वामपंथी उग्रवाद हिंसा का भौगोलिक प्रसार भी बहुत हद तक सीमित हो गया है, क्योंकि वर्ष 2013 में 10 राज्यों में वामपंथी उग्रवाद प्रभावित ज़िलों की संख्या 126 से घटकर वर्ष 2024 में 9 राज्यों में केवल 38 ज़िले रह गई है, जो मज़बूत अंतर-राज्यीय सहयोग के सकारात्मक प्रभाव को दर्शाता है।
- ये राज्य खुफिया जानकारी, संसाधन साझा करते हैं और संयुक्त अभियान चलाते हैं, जिससे उग्रवाद के खिलाफ एक एकीकृत मोर्चा सुनिश्चित होता है।
- समुदाय-आधारित शांति स्थापना और नागरिक कार्यक्रम: नागरिक कार्रवाई कार्यक्रमों ने स्थानीय आबादी का 'मन और दिल जीतने' (WHAM) और माओवादियों के समर्थन को कम करने में सहायता की है।
- पिछले पाँच वर्षों से ₹196 करोड़ के बजट वाले सिविक एक्शन प्रोग्राम (CAP) ने सुरक्षा बलों और स्थानीय समुदायों के बीच तालमेल बनाने में सहायता की है।
- जनजातीय युवा आदान-प्रदान कार्यक्रम (TYEP) ने जनजातीय युवाओं को मुख्यधारा की संस्कृति से जुड़ने के अवसर प्रदान करके सामाजिक एकीकरण को भी बढ़ावा दिया है, जिससे जनजातीय क्षेत्रों में माओवादी भर्ती में कमी आई है।
- पूर्व माओवादियों के लिये समग्र पुनर्वास: लक्षित पुनर्वास कार्यक्रमों के माध्यम से पूर्व विद्रोहियों के पुनर्वास पर भारत का ज़ोर महत्त्वपूर्ण रहा है।
- छत्तीसगढ़ सरकार की आत्मसमर्पण नीति, जो वित्तीय सहायता और व्यावसायिक प्रशिक्षण के साथ-साथ अधिक मुआवज़ा, ज़मीन एवं रोज़गार के अवसर प्रदान करती है, ने पूर्व उग्रवादियों को समाज में सफलतापूर्वक पुनः एकीकृत किया है, जिससे उग्रवाद से महत्त्वपूर्ण मानव संसाधनों का ह्रास हुआ है।
- लक्षित कल्याण और विकास योजनाएँ: सरकार ने वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में सबसे कमज़ोर आबादी के उत्थान के लिये विशेष कल्याणकारी पहल शुरू की हैं।
- अक्तूबर 2024 में शुरू किये गए धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान का उद्देश्य 15,000 गाँवों के 1.5 करोड़ जनजातीय समुदायों को बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करना है।
- 17,000 किलोमीटर से अधिक सड़कों एवं 7,768 दूरसंचार टावरों के निर्माण जैसी उन्नत बुनियादी अवसंरचना परियोजनाएँ दर्शाती हैं कि सुरक्षा और विकास एक-दूसरे के पूरक हैं।
- इसके अतिरिक्त, इन क्षेत्रों में बुनियादी अवसंरचना की कमी को पूरा करने के लिये विशेष केंद्रीय सहायता योजना (SCA) के तहत 3,563 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि स्थानीय आबादी माओवादी-नियंत्रित प्रणालियों पर कम निर्भर हो।
- स्थानीय शासन और कानून प्रवर्तन का सशक्तीकरण: स्थानीय पुलिस बलों के सशक्तीकरण ने सरकार की सफलता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- वर्ष 2014 में 66 की तुलना में 612 सुदृढ़ पुलिस थानों ने स्थानीय कानून प्रवर्तन अभिकरणों को अत्यंत आवश्यक बुनियादी अवसंरचना प्रदान किया है।
- सुरक्षा संबंधी व्यय (SRE) योजना ने प्रभावित राज्यों को परिचालन निधि के रूप में ₹3,260 करोड़ प्रदान किये हैं, जिससे पुलिस बलों के आधुनिकीकरण में सहायता मिली है।
- इन प्रयासों से राज्य पुलिस को वामपंथी उग्रवाद विरोधी प्रयासों में अग्रणी भूमिका निभाने में सहायता मिली है, जिससे केंद्रीय बलों पर निर्भरता कम हुई है तथा स्थानीय सुरक्षा नियंत्रण में सुधार हुआ है।
भारत में वामपंथी उग्रवाद के बने रहने के पीछे प्रमुख कारक क्या हैं?
- सामाजिक-आर्थिक असमानता और जनजातीय समुदायों का हाशिये पर होना: वामपंथी उग्रवाद (LWE) की निरंतरता का मुख्य कारण गहरी सामाजिक-आर्थिक विषमताएँ हैं, विशेषकर जनजातीय समुदायों में।
- सरकारी पहलों के बावजूद, वामपंथी उग्रवाद से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं, जहाँ शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा एवं बुनियादी अवसंरचना जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
- उदाहरण के लिये, भारत सरकार के जनजातीय मामलों के मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, केवल 10.7% जनजातीय आबादी के पास नल-जल की सुलभता है, जो बुनियादी अवसंरचना में एक महत्त्वपूर्ण अंतर को उजागर करता है।
- राज्य-समाज का अलगाव और शासन की विफलताएँ: कई वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में, राज्य और स्थानीय आबादी के बीच एक महत्त्वपूर्ण अलगाव है, जो प्रायः कमज़ोर शासन एवं कमज़ोर कानून प्रवर्तन के कारण और भी बदतर हो जाता है।
- इन क्षेत्रों में पर्याप्त पुलिस व्यवस्था और प्रशासनिक उपस्थिति का अभाव माओवादियों को शासन की कमियों का लाभ उठाने का मौका देता है।
- उदाहरण के लिये, झारखंड और मध्य प्रदेश के दूरदराज़ के इलाकों में अभी भी बुनियादी पुलिस थानों का अभाव है।
- शासन संरचनाओं का यह अभाव एक शून्य उत्पन्न करता है जिसे माओवादी भरते हैं, जिससे उनका प्रभाव बना रहता है।
- माओवादी विचारधारा और मुख्यधारा की राजनीति का प्रतिरोध: कुछ क्षेत्रों में माओवाद का वैचारिक आकर्षण अभी भी प्रबल है, क्योंकि यह स्वयं को भारत की लोकतांत्रिक संस्थाओं के एक क्रांतिकारी विकल्प के रूप में स्थापित करता है।
- माओवादी समूह उत्पीड़ितों (जल, जंगल, ज़मीन), विशेषकर जनजातीय समुदायों के अधिकारों के लिये लड़ने का दावा करते हैं, फिर भी उनके तरीके, जिनमें गलत काम एवं जबरन वसूली शामिल हैं, विकास में बाधा डालते हैं।
- उदाहरण के लिये, ओडिशा के मलकानगिरी ज़िले में, माओवादियों द्वारा अवैध भांग की खेती में शामिल ग्रामीणों से जबरन वसूली करने की खबरें आई हैं।
- यह अवैध गतिविधि न केवल उग्रवाद को वित्तपोषित करती है, बल्कि स्थानीय समुदायों को आपराधिक गतिविधियों में भी उलझा देती है, जिससे वैध आर्थिक विकास में और बाधा आती है।
- संसाधन संपन्न क्षेत्र में वामपंथी उग्रवाद को बढ़ावा: आलोचकों का तर्क है कि वामपंथी उग्रवाद संसाधन संपन्न क्षेत्रों में पनपता है जहाँ राज्य एवं निजी निगमों दोनों द्वारा शोषण के कारण व्यापक असंतोष व्याप्त है।
- छत्तीसगढ़ और झारखंड में कोयला, खनिज एवं काष्ठ जैसे संसाधनों के दोहन ने प्रायः स्थानीय आबादी को बिना पर्याप्त मुआवज़े के विस्थापित कर दिया है।
- उदाहरण के लिये, हसदेव अरंड में, जनजातीय नेताओं ने कोयला खनन पर चिंता जताई है, जिसके कारण विस्थापन एवं आजीविका का नुकसान होता है।
- माओवादी इस शोषणकारी आख्यान का लाभ उठाते हैं और स्वयं को कॉर्पोरेट लालच के खिलाफ स्थानीय अधिकारों के रक्षक के रूप में पेश करते हैं।
- विकास योजनाओं का अपर्याप्त कार्यान्वयन: हालाँकि भारत ने वामपंथी उग्रवाद का मुकाबला करने के लिये कई विकास योजनाएँ लागू की हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर उनका क्रियान्वयन अपर्याप्त है।
- बुनियादी अवसंरचना, स्वास्थ्य, शिक्षा और वित्तीय समावेशन को लक्षित करने वाले कार्यक्रम प्रायः भ्रष्टाचार, अकुशलता एवं राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण दूरदराज़ के क्षेत्रों तक पहुँचने में विफल रहते हैं।
- उदाहरण के लिये, हालाँकि सड़क आवश्यकता योजना के तहत 17,589 किलोमीटर सड़कें बनाई गई हैं, फिर भी मध्य प्रदेश और ओडिशा में वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित कई इलाके अभी भी दुर्गम बने हुए हैं, जिससे माओवादी शक्तियाँ उन इलाकों में स्वतंत्र रूप से काम कर रही हैं।
- कल्याणकारी योजनाओं का विलंबित या अनुचित क्रियान्वयन इन क्षेत्रों के विकास को अवरुद्ध करता है, जिससे वामपंथी उग्रवाद जारी रहता है।
- माओवादी समूहों को बाह्य समर्थन और वित्तपोषण: माओवादी विद्रोहियों को संसाधनों और वैचारिक समर्थन, दोनों के संदर्भ में, आंतरिक एवं बाह्य, दोनों तरह से समर्थन मिलता रहता है, जिससे उनका आंदोलन चलता रहता है।
- यह बाह्य समर्थन सरकार के आतंकवाद-रोधी अभियानों के बावजूद विद्रोहियों को सक्रिय रहने में सक्षम बनाता है।
- उदाहरण के लिये, केरल के एक व्यक्ति को जम्मू-कश्मीर में माओवादियों द्वारा नियंत्रित एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) नेटवर्क स्थापित करने के कथित प्रयास के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
- इसके अलावा, हाल के दिनों में, चीन और म्याँमार पर भारत में माओवादी विद्रोहियों को वैचारिक एवं भौतिक समर्थन प्रदान करने का आरोप लगाया गया है।
- युवाओं की भर्ती और गुरिल्ला रणनीति का प्रयोग: माओवादी विद्रोही हताशा और असंतोष का एक माध्यम प्रदान करके, विशेष रूप से जनजातीय बहुल क्षेत्रों से युवाओं की भर्ती करने में सफल रहे हैं।
- उदाहरण के लिये, भाकपा (माओवादी) की सशस्त्र शाखा, पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (PLGA), परिष्कृत गुरिल्ला युद्ध रणनीति का प्रयोग जारी रखे हुए है, जिससे सुरक्षा बलों के लिये पूर्ण नियंत्रण हासिल करना मुश्किल हो जाता है।
- यद्यपि पिछले दशक में 8,000 से अधिक माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया है, फिर भी माओवादी युवा आदिवासियों की निरंतर भर्ती के माध्यम से अपनी स्थिति बनाए रखने में कामयाब हो रहे हैं, जिन्हें अपने समुदायों में सीमित अवसरों का सामना करना पड़ता है।
आतंकवाद की जड़ों को नष्ट करने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?
- स्थानीय शासन और विकेंद्रीकृत प्रशासन का सुदृढ़ीकरण: वामपंथी उग्रवाद (LWE) की जड़ों को नष्ट करने के लिये, भारत को स्थानीय शासन संरचनाओं को सशक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, विशेष रूप से दूरस्थ और जनजातीय समुदाय क्षेत्रों में।
- विकेंद्रीकृत प्रशासन शिकायतों का तेज़ी से समाधान कर सकता है और यह सुनिश्चित कर सकता है कि विकास योजनाएँ ज़मीनी स्तर तक पहुँचें।
- स्थानीय नेताओं को सशक्त बनाने और निर्णय लेने में उनकी भागीदारी बढ़ाने से यह सुनिश्चित होगा कि जनजातीय समुदाय और सीमांत समुदायों की चिंताओं का तुरंत समाधान किया जाए, जिससे चरमपंथी विचारधाराओं का आकर्षण कम होगा।
- एक अधिक स्थानीयकृत दृष्टिकोण शासन में जवाबदेही और पारदर्शिता को भी बढ़ाएगा।
- सामाजिक न्याय और भूमि सुधारों पर बढ़ा हुआ ध्यान: वामपंथी उग्रवाद को बढ़ावा देने वाली शिकायतों के समाधान के लिये एक व्यापक सामाजिक न्यायिक कार्यढाँचा महत्त्वपूर्ण है।
- भूमि सुधार, विशेष रूप से जनजातीय समुदायों को भूमि का पुनर्वितरण, सीमांत समूहों को स्वामित्व और सुरक्षा की भावना प्रदान करेगा।
- वन अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन को मज़बूत किया जाना चाहिये, जो जनजातीय समुदायों के वन भूमि पर अधिकार सुनिश्चित करता है, ऐतिहासिक अन्याय को दूर कर सकता है और आर्थिक स्थिरता प्रदान कर सकता है।
- ग्रामीण रोज़गार और आजीविका कार्यक्रमों को बढ़ावा: युवाओं को माओवादी विद्रोह की ओर धकेलने वाले आर्थिक कारकों का मुकाबला करने के लिये, भारत को ग्रामीण रोज़गार एवं आजीविका कार्यक्रमों का विस्तार करना चाहिये।
- सतत् आजीविका के सृजन पर ध्यान केंद्रित करने से (विशेष रूप से वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में) अवैध गतिविधियों पर निर्भरता कम होगी।
- व्यावसायिक प्रशिक्षण, उद्यमिता कार्यक्रमों और समुदाय-संचालित कृषि मॉडलों के माध्यम से जनजातीय युवाओं को व्यापक आर्थिक कार्यढाँचे में एकीकृत करके इसे प्राप्त किया जा सकता है।
- SMART और सामुदायिक नीति निर्माण को तीव्र करना और विश्वास का निर्माण: सामुदायिक नीति निर्माण पहल कानून प्रवर्तन और स्थानीय आबादी के बीच मज़बूत संबंध बना सकती है, जिससे चरमपंथी तत्त्वों का विकसित होना मुश्किल हो जाता है।
- सुरक्षा बलों को ऐसे नागरिक कार्रवाई कार्यक्रमों में शामिल होना चाहिये जो आतंकवाद विरोधी अभियानों से आगे बढ़कर सामुदायिक कल्याण, विश्वास-निर्माण और संघर्ष समाधान पर केंद्रित हों।
- SMART पुलिस विज़न—Strict and Sensitive, Modern and Mobile, Alert and Accountable, Reliable and Responsive, Tech-savvy and Trained (अर्थात् सख्त और संवेदनशील, आधुनिक और गतिशील, सतर्क और जवाबदेह, विश्वसनीय और उत्तरदायी, तकनीक-विशिष्ट और प्रशिक्षित) के अनुरूप, ऐसे प्रयास रणनीतिक एवं जन-केंद्रित होने चाहिये, जो संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में जवाबदेही और विश्वास को बढ़ावा दें।
- रणनीतिक माओवाद-विरोधी वैचारिक अभियान: भारत को माओवादी समूहों द्वारा फैलाए जा रहे आख्यानों को चुनौती देने के लिये एक समन्वित, सुनियोजित वैचारिक जवाबी हमले की आवश्यकता है।
- इसमें राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान शुरू करना शामिल हो सकता है जो हिंसा के विनाशकारी प्रभावों (विशेष रूप से जनजातीय आबादी पर) पर केंद्रित हों।
- माओवादी विचारधारा से जुड़े न होने वाले स्थानीय प्रभावशाली लोगों, कार्यकर्त्ताओं और बुद्धिजीवियों के साथ सहयोग करने से शांति, लोकतंत्र एवं विकास के लाभों को बढ़ावा देने में सहायता मिलेगी।
- ऐसे अभियानों का ध्यान समुदायों को उनके अधिकारों के बारे में ज्ञान और राज्य द्वारा उनकी चिंताओं को शांतिपूर्ण ढंग से दूर करने की इच्छाशक्ति के साथ सशक्त बनाने पर केंद्रित होना चाहिये।
- बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं को सुव्यवस्थित और विस्तारित करना: सरकार को वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं, विशेष रूप से सड़क संपर्क, दूरसंचार और बिजली आपूर्ति से संबंधित परियोजनाओं को तेज़ी से पूरा करना चाहिये।
- उन्नत बुनियादी अवसंरचना तक अभिगम से उस अलगाव को विफल करने में सहायता मिलती है जिस पर वामपंथी उग्रवादी समूह फलते-फूलते हैं।
- इससे दूरदराज के इलाकों को राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में एकीकृत करने तथा शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और बाज़ारों तक अभिगम प्रदान करने में भी सहायता मिलती है।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी के साथ-साथ, बुनियादी अवसंरचना के त्वरित विकास से यह सुनिश्चित हो सकता है कि ग्रामीण क्षेत्र पीछे न छूटें, ताकि चरमपंथियों द्वारा शोषण किये जाने वाले आर्थिक अंतर को कम किया जा सके।
- जनजातीय समुदायों पर केंद्रित शिक्षा प्रणालियों का पुनरुद्धार: भारत को ऐसी समावेशी शिक्षा प्रणालियों को प्राथमिकता देनी चाहिये जो जनजातीय छात्रों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करें तथा एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों और व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों जैसे स्थानीय शैक्षणिक संस्थानों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करें।
- मानक शिक्षा के साथ-साथ, समालोचनात्मक सोच सिखाने वाले और लोकतांत्रिक मूल्यों के बारे में ज्ञान प्रदान करने वाले कार्यक्रम माओवादी आख्यान का मुकाबला कर सकते हैं।
- यह दृष्टिकोण युवाओं को सशक्त बनाएगा, उन्हें माओवादी भर्ती की वैकल्पिक राह प्रदान करेगा और एक उज्जवल भविष्य प्रदान करेगा।
- विकास और सुरक्षा में प्रौद्योगिकी की भूमिका को बढ़ाना: उन्नत प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने से वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में विकास एवं सुरक्षा दोनों में महत्त्वपूर्ण रूप से सहायता मिल सकती है।
- इसमें निगरानी के लिये ड्रोन का उपयोग, विद्रोही गतिविधियों पर नज़र रखने के लिये GIS मैपिंग और संभावित अशांति वाले क्षेत्रों का पूर्वानुमान करने के लिये बिग डेटा एनालिटिक्स शामिल हैं।
- विकास के मोर्चे पर, डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग सरकारी योजनाओं को अधिक प्रभावी ढंग से लागू करने, वित्तीय समावेशन सुनिश्चित करने और दूरदराज़ के क्षेत्रों में सेवाओं तक अभिगम सुनिश्चित करने के लिये किया जा सकता है।
- सांस्कृतिक पुनरोद्धार कार्यक्रमों के माध्यम से पुनर्वास की पुनर्कल्पना: पुनर्वास कार्यक्रमों को रोज़गार और व्यावसायिक प्रशिक्षण से आगे बढ़कर सांस्कृतिक पुनरोद्धार एवं पहचान संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- इसमें जनजातीय समुदाय क्षेत्रों में पारंपरिक कला रूपों, भाषाओं और सांस्कृतिक प्रथाओं को बढ़ावा देना शामिल हो सकता है, जिससे स्थानीय समुदायों को विद्रोही विचारधाराओं से अपनी विरासत वापस पाने में सहायता मिलेगी।
- इसके अतिरिक्त, स्कूली पाठ्यक्रमों में सांस्कृतिक संरक्षण को शामिल करने से स्थानीय पहचान पर गर्व उत्पन्न हो सकता है, जिससे माओवादी प्रचार का आकर्षण कमज़ोर पड़ सकता है, जो प्रायः इन समुदायों को सांस्कृतिक विलोपन के शिकार के रूप में चित्रित करता है।
- ग्रामीण सहकारी मॉडलों को मज़बूत बनाना: आर्थिक कमज़ोरियों का मुकाबला करने के लिये, भारत ग्रामीण सहकारी मॉडलों को बढ़ावा और समर्थन दे सकता है जो स्थानीय समुदायों, विशेष रूप से जनजातीय समुदायों को सशक्त बनाते हैं।
- ये सहकारी समितियाँ, कृषि, हस्तशिल्प और वन उत्पादों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, एक स्थायी एवं सामूहिक आर्थिक आधार प्रदान कर सकती हैं जो माओवादी प्रभाव को हतोत्साहित करती हैं।
- सूक्ष्म ऋण, सहकारी प्रबंधन में प्रशिक्षण और बाज़ारों तक सीधी पहुँच प्रदान करके, सरकार आत्मनिर्भर आर्थिक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में सहायता कर सकती है जो उग्रवादियों द्वारा संचालित शोषण पर कम निर्भर हैं।
- उन्नत सीमा सुरक्षा और संसाधन नियंत्रण: माओवादी प्रायः राज्य की सीमाओं के पार सक्रिय होते हैं और बाह्य संसाधन स्रोतों से लाभ उठाते हैं।
- सीमा सुरक्षा का सुदृढ़ीकरण और हथियारों व वित्तीय संसाधनों की सीमा पार तस्करी पर कड़े नियंत्रण लागू करना माओवादी रसद को बहुत हद तक बाधित कर सकता है।
- कई राज्यों और खुफिया एजेंसियों को शामिल करते हुए एक समर्पित सीमा पार समन्वय इकाई हथियारों, गोला-बारूद एवं धन के प्रवाह को रोकने, माओवादी गुटों को फिर से संगठित होने तथा अपनी गतिविधियों को बढ़ाने से रोकने पर काम कर सकती है।
निष्कर्ष:
SAMADHAN सिद्धांत इस बात पर बल देता है कि वामपंथी उग्रवाद (LWE) के मूल कारणों को दूर करने में विकास महत्त्वपूर्ण है। आर्थिक सशक्तीकरण, बुनियादी अवसंरचना और शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करके, भारत उग्रवाद के आकर्षण को कम कर सकता है। समुदायों को मुख्यधारा के विकास में शामिल करने से शांति में उनकी हिस्सेदारी सुनिश्चित होती है, जिससे वामपंथी उग्रवाद का समर्थन आधार कमज़ोर होता है। यह सिद्ध करते हुए कि उग्रवाद के उन्मूलन में विकास और समावेशन महत्त्वपूर्ण हैं, प्रभावी सुरक्षा के साथ विकास स्थायी समाधान प्रदान कर सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: Q. भारत में वामपंथी उग्रवाद (LWE) के बने रहने में योगदान देने वाले कारकों का विश्लेषण कीजिये। SAMADHAN सिद्धांत के अनुसार, सुरक्षा और विकास रणनीतियाँ किस प्रकार इस समस्या का प्रभावी ढंग से समाधान कर सकती हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मेन्सप्रश्न 1. पिछड़े क्षेत्रों में बड़े उद्योगों का विकास करने के सरकार के लगातार अभियानों का परिणाम जनजातीय जनता और किसानों, जिनको अनेक विस्थापनों का सामना करना पड़ता है, का विलगन (अलग करना) है। मल्कानगिरि और नक्सलबाड़ी पर ध्यान केंद्रित करते हुए, वामपंथी उग्रवादी विचारधारा से प्रभावित नागरिकों को सामाजिक और आर्थिक संवृद्धि की मुख्यधारा में फिर से लाने की सुधारक रणनीतियों पर चर्चा कीजिये। (2015) प्रश्न 2. भारत के संविधान की धारा 244, अनुसूचित व आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित है। उसकी पाँचवीं सूची के कार्यान्वित न करने से वामपंथी पक्ष के चरम पंथ पर प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। (2013) प्रश्न 3. वामपंथी उग्रवाद में अधोमुखी प्रवृत्ति दिखाई दे रही है, परंतु अभी भी देश के अनेक भाग इससे प्रभावित हैं। वामपंथी उग्रवाद द्वारा प्रस्तुत चुनौतियों का विरोध करने के लिए भारत सरकार के दृष्टिकोण को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए। (2018) प्रश्न 4. भारत के पूर्वी भाग में वामपंथी उग्रवाद के निर्धारक क्या हैं? प्रभावित क्षेत्रों में खतरों के प्रतिकारार्थ भारत सरकार, नागरिक प्रशासन एवं सुरक्षा बलों को किस सामरिकी को अपनाना चाहिये? (2020) |