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एडिटोरियल

  • 21 May, 2025
  • 22 min read
भारतीय राजव्यवस्था

भारत का राजकोषीय संघवाद

यह एडिटोरियल 19/05/2025 को बिज़नेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित “A holistic assessment of states' performance across seven pillars” पर आधारित है। लेख में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि सतत् विकास को दिशा देने और विकसित भारत 2047 की दिशा में प्रतिस्पर्द्धी संघवाद को बढ़ावा देने के लिये 50 संकेतकों का उपयोग करके भारत के राज्यों को सात स्तंभों पर समग्र रूप रैंकिंग दी गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

वस्तु और सेवा कर (GST), केंद्र प्रायोजित योजनाएँ (CSS), राज्यों में पंचायतों को अंतरण (विकेंद्रीकरण) की स्थिति रिपोर्ट, 2024, राज्य वित्त आयोग (SFC), छठा वित्त आयोग, अंतर-राज्य परिषद, GST परिषद, FRBM अधिनियम, राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक, राजकोषीय संघवाद, वित्त आयोग, विनियोग अधिनियम, अंतर-राज्य परिषद

मेन्स के लिये:

सहकारी संघवाद और प्रतिस्पर्द्धी संघवाद के लिये राजकोषीय संघवाद का महत्त्व।

जैसे-जैसे भारत 2047 तक विकसित भारत बनने की दिशा में अग्रसर है, राजकोषीय संघवाद की गतिशीलता पहले से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण हो गई है। विविधतापूर्ण और प्रतिस्पर्द्धी संघीय ढाँचे में, राज्य समावेशी विकास, शासन और आर्थिक अनुकूलता को आगे बढ़ाने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। राज्यों के अलग-अलग विकास पथों पर चलने के साथ, उनकी राजकोषीय क्षमता, स्वायत्तता और व्यय की गुणवत्ता का आकलन करना महत्त्वपूर्ण है। राजकोषीय संघवाद के लिये एक मज़बूत ढाँचा न केवल समान संसाधन वितरण सुनिश्चित करता है, बल्कि राज्यों को राष्ट्रीय लक्ष्यों और स्थानीय आकांक्षाओं के अनुरूप नवाचार, निवेश एवं सार्वजनिक वस्तुओं को वितरित करने का अधिकार भी प्रदान करता है।

भारत में राजकोषीय संघवाद को नियंत्रित करने वाले संवैधानिक और नीतिगत प्रावधान क्या हैं?

  • कर आधार प्रभाग: संविधान की सातवीं अनुसूची संघ और राज्यों के बीच अलग-अलग कराधान शक्तियों का वर्णन करती है। 
    • अनुच्छेद 246 के अंतर्गत यह संरचित विभाजन सरकार के दोनों स्तरों को विधायी और राजकोषीय स्पष्टता प्रदान करता है।
  • GST और समवर्ती कराधान: 101वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा सम्मिलित अनुच्छेद 246A , वस्तु एवं सेवा कर (GST) पर समवर्ती कराधान को सक्षम बनाता है। 
    • यह विधेयक केंद्र को केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (CGST) और एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (IGST) लगाने की अनुमति देता है, जबकि राज्य राज्य वस्तु एवं सेवा कर (SGST) लगा सकते हैं।
  • राजस्व हस्तांतरण: अनुच्छेद 270 वित्त आयोग की सिफारिशों  के आधार पर संघीय कर राजस्व को राज्यों के साथ साझा करने का प्रावधान करता है।
    • आयकर, CGST और निगम कर जैसे करों को साझा किया जाता है, जिससे ऊर्ध्वाधर इक्विटी और वितरणात्मक न्याय सुनिश्चित होता है।
  • सहायता अनुदान: अनुच्छेद 275 केंद्र को विशिष्ट विकासात्मक आवश्यकताओं वाले राज्यों को सहायता अनुदान प्रदान करने की अनुमति देता है।
    • ये अनुदान वित्तीय असमानताओं को दूर तथा सार्वजनिक सेवाओं का न्यूनतम स्तर सुनिश्चित करते हैं।
  • वित्त आयोग: अनुच्छेद 280 में अंतर-सरकारी संसाधन साझेदारी का आकलन करने और सिफारिश करने के लिये एक आवधिक वित्त आयोग का प्रावधान है।
    • यह हस्तांतरण सूत्रों और अनुदान सहायता का सुझाव देकर ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज दोनों प्रकार के राजकोषीय असंतुलनों का समाधान करता है।
  • विवेकाधीन अनुदान: अनुच्छेद 282 संघ और राज्यों को विधायी प्राधिकार से परे भी किसी भी सार्वजनिक उद्देश्य के लिये अनुदान देने की अनुमति प्रदान करता है। 
    • संतुलन सुनिश्चित करते हुए, यह पारदर्शिता और राज्य की स्वायत्तता के संभावित क्षरण के संबंध में चिंताएँ उत्पन्न करता है।
  • ऋण लेने की शक्तियाँ: अनुच्छेद 293 राज्यों को घरेलू स्तर पर ऋण लेने की अनुमति प्रदान करता है, बशर्ते कि पहले से ही संघीय ऋण मौजूद हो। 
    • यह केंद्रीय नियंत्रण दीर्घकालिक निवेश के लिये स्वतंत्र राजकोषीय योजना और पूंजी एकत्रित करने पर प्रतिबंध लगाता है।
  • स्थानीय राजकोषीय हस्तांतरण: ये राज्यों को पंचायतों और नगर पालिकाओं को राजकोषीय अधिकार हस्तांतरित करने का अधिकार प्रदान करते हैं। 
    • राज्य वित्त आयोग जमीनी स्तर पर शासन को मजबूत करने के लिये संसाधन-साझाकरण ढाँचे की सिफारिश करते हैं।
  • विभाज्य कोष से बहिष्करण: उपकर (cesses) और अधिशुल्क (surcharges), यद्यपि ये संघ कर हैं, लेकिन अनुच्छेद 270 के अंतर्गत इन्हें विभाज्य कोष से बाहर रखा गया है।
    • इससे राज्यों की बढ़ती राजस्व धाराओं तक पहुँच सीमित हो जाती है तथा ऊर्ध्वाधर असंतुलन और राजकोषीय निर्भरता बढ़ जाती है।
  • CSS संबंधी शर्तें: राज्य और समवर्ती सूची डोमेन में संचालित केंद्र प्रायोजित योजनाएं (CSS) राज्यों द्वारा आंशिक रूप से वित्तपोषित होती हैं, जबकि डिज़ाइन नियंत्रण केंद्रीय रूप से नियंत्रित होता है। 
    • यह सशर्त वित्तपोषण राजकोषीय सहायकता के सिद्धांत को कमज़ोर करता है तथा स्थानीय विकास आवश्यकताओं में बाधा डालता है।
  • क्षैतिज मानदंड: वित्त आयोग आय अंतर, जनसंख्या, क्षेत्र, वन क्षेत्र और कर प्रयास का उपयोग करके क्षैतिज शेयरों का आवंटन करता है। 
    • यह बहुआयामी सूत्र कार्यकुशलता और समानता के बीच संतुलन स्थापित करता है, यद्यपि इसमें अंतर-राज्यीय असंतोष भी शामिल है।

Fiscal_Provisions

भारत में राजकोषीय संघवाद के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? 

  • ऊर्ध्वाधर असंतुलन: संघ का राष्ट्रीय राजकोषीय संसाधनों में 63% का नियंत्रण है, लेकिन कुल सार्वजनिक व्यय का केवल 38% ही वहन करता है।
    • केवल 37% संसाधनों के साथ राज्य, सार्वजनिक व्यय का 62% वहन करते हैं, जिससे गंभीर राजकोषीय असंतुलन उत्पन्न होता है।
  • कर स्वायत्तता की हानि: GST ने वैट और ऑक्ट्रोई जैसे महत्त्वपूर्ण राज्य करों को एकीकृत व्यवस्था के अंतर्गत समाहित कर दिया है। 
    • राज्य अब मुख्य रूप से SGST पर निर्भर और राजकोषीय नीति नवाचार तक सीमित हैं
  • राजस्व हिस्सेदारी में गिरावट: संघ के सकल कर राजस्व में राज्यों की वास्तविक हिस्सेदारी 35% (2015-16) से घटकर 30% (2023-24) हो गई है। 
    • 15वें वित्त आयोग की 41% अनुशंसा से यह विचलन राज्यों की राजकोषीय क्षमता को कमज़ोर करता है।
  • उपकर और अधिभार: उपकर और अधिभार वर्ष 2017-18 से 2022-23 तक 133% बढ़ गए, जो संघीय कर राजस्व का लगभग 25% है।
    • विभाज्य पूल के बाहर होने के कारण, ये राजस्व वित्त आयोग की सिफारिशों को दरकिनार कर और राज्यों के आवंटन को कम कर देते हैं।
  • ऋण संबंधी सीमा: राज्यों की उधार सीमा GSDP के 3% तक सीमित है, जिसमें बजट से इतर ऋण और सार्वजनिक खाता देयताएँ शामिल हैं। 
    • इससे आर्थिक मंदी के दौरान प्रति-चक्रीय राजकोषीय रणनीतियों और बड़े पैमाने पर पूंजी निवेश में गंभीर बाधा उत्पन्न होती है।
  • GST मुआवजा: वर्ष 2017 के बाद GST मुआवजा भुगतान में देरी के कारण राज्यों में नकदी संकट उत्पन्न हो गया है साथ ही राजकोषीय योजना बाधित हुई है। 
    • राज्यों ने 19% से 33% के बीच राजस्व में कमी की सूचना दी, जिससे सहकारी राजकोषीय तंत्र की कमज़ोरी उजागर हुई।
  • CSS पर निर्भरता: सख्त दिशा-निर्देशों के साथ CSS व्यय ₹5.21 लाख करोड़ (2015-16) से बढ़कर ₹14.68 लाख करोड़ (2023-24) हो गया है। 
    • राज्यों को अक्सर समनुदान (matching funds) प्रदान करने होते हैं और वे योजनाओं को स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार अनुकूलित नहीं कर सकते, जिससे उनकी राजकोषीय अनुकूलता कम हो जाती है।
  • अनुदान में गिरावट: सहायता अनुदान ₹1.95 लाख करोड़ (2015-16) से घटकर ₹1.65 लाख करोड़ (2023-24) हो गया। 
    • इस बदलाव से सशर्त हस्तांतरण पर निर्भरता बढ़ जाती है, जिससे विकासात्मक स्वायत्तता सीमित हो जाती है।
  • क्षैतिज असंतुलन: अधिक जनसंख्या वाले और गरीब राज्य आय दूरी (income distance) मानदंड के कारण अधिक हिस्सा प्राप्त करते हैं।
    • कर्नाटक और केरल जैसे राज्यों का मानना ​​है कि इससे कार्यकुशलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा तथा क्षेत्रीय असंतोष बढ़ेंगा।
  • असमान विकास: बहु-स्तंभीय राज्य रैंकिंग में बिहार और झारखंड जैसे राज्यों का बुनियादी ढाँचे और वित्तीय समावेशन में खराब प्रदर्शन है।
    • ऐसी असमानताएँ आर्थिक अभिसरण को कमज़ोर करती हैं तथा राजकोषीय तंत्र के माध्यम से संतुलित क्षेत्रीय विकास के विचार को चुनौती देती हैं।
  • ऑफ-बजट बारोइंग: बजट के बाहर की देनदारियों (जैसे केरल इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड) को कुल उधारी सीमा (Net Borrowing Ceiling) में शामिल करने से राजकोषीय गतिशीलता सीमित हो जाती है।
    • पारदर्शी मानदंडों की अनुपस्थिति अंतर-सरकारी राजकोषीय जवाबदेही और बजट की पारदर्शिता को जटिल बनाती है।
  • केंद्रीकृत व्यय: बंधित अंतरण (tied transfers) सार्वजनिक व्यय में प्रमुख भूमिका निभाते हैं तथा 22% से भी कम हिस्सा असंबद्ध निधि के रूप में राज्यों को हस्तांतरित की जाती हैं। 
    • यह केंद्रीकरण राज्यों की क्षेत्र-विशिष्ट विकास प्राथमिकताओं पर प्रतिक्रिया देने की क्षमता को सीमित करता है।
  • पंचायतों को सशक्त बनाने संबंधी : राज्यों में पंचायतों को सशक्त करने की स्थिति 2024 रिपोर्ट से पता चलता है कि ग्यारहवीं अनुसूची के अंतर्गत 29 विषयों का हस्तांतरण असंगत रूप से किया गया है।
    • अधिकांश राज्य पंचायतों की स्वायत्तता को प्रतिबंधित करते हैं, जिससे स्थानीय निर्णय लेने और योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न होती है।
  • पंचायती राज संस्थाओं में संस्थागत अंतराल: ज़िला योजना समितियाँ निष्क्रिय हैं तथा बार-बार सीटों के परिवर्तन से पंचायत के नेतृत्व की निरंतरता कमज़ोर होती है। 
    • ये संस्थागत खामियाँ ज़मीनी स्तर पर जवाबदेही और शासन दक्षता को कम करती हैं।
  • स्थानीय स्तर पर वित्तीय स्वायत्तता का अभाव: राज्य वित्त आयोग (SFC) की सिफारिशों का कार्यान्वयन न होना और GST केंद्रीकरण पंचायतों की वित्तीय स्वतंत्रता को सीमित करता है। 
    • इससे नीचे से ऊपर की ओर की योजना प्रभावित होती है तथा पंचायतें सार्थक विकास नियंत्रण से वंचित हो जाती हैं।

भारत में राजकोषीय संघवाद को कैसे सुदृढ़ किया जा सकता है?

  • विकेंद्रीकरण में वृद्धि: 16 वें वित्त आयोग को राजकोषीय संतुलन बहाल करने के लिये राज्यों की भागीदारी को 41% से अधिक बढ़ाना चाहिये। 
    • संवर्द्धित हस्तांतरण राज्यों को कल्याणकारी योजनाओं, बुनियादी ढाँचे और शासन सुधारों की स्वतंत्र रूप से योजना बनाने का अधिकार देता है।
  • उपकर को युक्तिसंगत बनाना: संघ को उपकर और अधिभार को युक्तिसंगत बनाना चाहिये या उन्हें विभाज्य पूल में शामिल करना चाहिये। 
    • इससे राज्यों में राजकोषीय हस्तांतरण में समानता, पारदर्शिता और पूर्वानुमेयता सुनिश्चित होगी।
  • GST में सुधार: GST परिषद को समय पर मुआवज़े की गारंटी देनी चाहिये और पेट्रोलियम तथा अल्कोहल को शामिल करने के लिये जीएसटी का विस्तार करने पर विचार करना चाहिये। 
    • इससे राजस्व में वृद्धि होगी तथा सी.एस.एस. और विवेकाधीन हस्तांतरण पर निर्भरता कम होगी।
  • समग्र सूचकांकों के साथ राज्यों को बेंचमार्क करना: राजकोषीय, सामाजिक और पर्यावरणीय स्तंभों में भारित समग्र सूचकांकों का उपयोग करने से निष्पक्ष राज्य निष्पादन बेंचमार्किंग संभव होती है
    • यह दृष्टिकोण संतुलित विकास को बढ़ावा देता है और राज्यों को बहुआयामी विकास रणनीतियों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करता है।
  • ऋण लेने की सीमा में शिथिलता: राज्यों को आर्थिक मंदी और प्राकृतिक आपदाओं के दौरान अस्थायी ऋण लेने की छूट मिलनी चाहिये। 
    • लचीली ऋण सीमा पूंजी निवेश और आपातकालीन प्रतिक्रिया के लिये राजकोषीय स्थान सुनिश्चित करती है।
  • स्थानीय निकायों को मज़बूत बनाना: राज्यों को PRI को स्पष्ट कार्य, धन और पदाधिकारियों को सौंपकर अनुच्छेद 243G, 243H और 243X को पूर्ण रूप से लागू करना चाहिये। 
    • राज्यों में पंचायतों को हस्तांतरण की स्थित, 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, इससे स्थानीय शासन और सेवा वितरण में वृद्धि होगी।
  • पंचायतों की क्षमता बढ़ाना: स्थानीय नेताओं को शासन और योजना बनाने में प्रशिक्षित करने के लिये  राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान जैसी योजनाओं का विस्तार करने की आवश्यकता है।
    • डिजिटल बुनियादी ढाँचे को बढ़ाने से पारदर्शिता और ग्रामसभा की भागीदारी में भी सुधार होगा।
  • CSS का पुनर्गठन: CSS को लचीले डिजाइन के साथ कुछ प्रभावशाली छत्र योजनाओं में समेकित किया जाने की आवश्यकता है। 
    • इससे दोहराव से बचा जा सकेगा, राज्य की प्राथमिकताओं का सम्मान होगा और विकासात्मक परिणामों में सुधार होगा।
  • संवाद को संस्थागत बनाना: अंतर-राज्यीय परिषद को पुनर्जीवित करना और राजकोषीय योजना में  नीति आयोग की परामर्शदात्री भूमिका को मज़बूत करना।
    • GST परिषद और वित्त आयोग के साथ समन्वय से एकीकृत नीतिगत प्रतिक्रियाओं को बढ़ावा मिलेगा।
  • मानव विकास सूचकांक मानदंड का उपयोग करना: 16वें वित्त आयोग को संसाधन साझाकरण के पैरामीटर के रूप में मानव विकास सूचकांक को शामिल करना चाहिये।
    • इससे सामाजिक परिणामों को प्राथमिकता मिलेगी और कर हस्तांतरण में केवल जनसंख्या पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता कम होगी।
  • ऋण लेने में पारदर्शिता सुनिश्चित करना: सभी ऑफ-बजट देनदारियों को उज़ागर करने की आवश्यकता है और पारदर्शी राजकोषीय उत्तरदायित्व ढाँचे के भीतर उनका प्रबंधन किया जाना चाहिये। 
    • इससे अदृश्य ऋण से बचा जा सकता है और वित्तीय जवाबदेही में भी वृद्धि होती है।
  • राजकोषीय नियमों को संरेखित करना: क्षेत्रीय आर्थिक विविधता के लिये लचीलेपन के साथ केंद्र तथा राज्यों के FRBM अधिनियमों को समन्वयित करना।
    • विकास लक्ष्यों के साथ संरेखित एकसमान राजकोषीय लक्ष्य सतत् सार्वजनिक वित्त सुनिश्चित करेंगे।
  • राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक अंतर्दृष्टि: राज्यों को पूंजीगत व्यय और ऋण प्रबंधन में सुधारों के मार्गदर्शन हेतु राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक का उपयोग करना चाहिये।
    • आकांक्षी राज्यों को राजकोषीय स्थिरता के लिये गुणवत्तापूर्ण व्यय और राजस्व एकत्रित करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को राज्य-विशिष्ट आकांक्षाओं के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिये एक लचीला और न्यायसंगत राजकोषीय संघवाद ढाँचा आवश्यक है। विकेंद्रीकरण को मज़बूत करना, स्थानीय निकायों को सशक्त बनाना और विकास लक्ष्यों के साथ राजकोषीय प्रोत्साहनों को जोड़ना न केवल सहकारी परिसंघवाद को सुदृढ़ करेगा बल्कि अमृत काल में समावेशी, सतत् और प्रतिस्पर्द्धी विकास की ओर भारत की यात्रा को भी गति प्रदान करेगा।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत के सहकारी और प्रतिस्पर्द्धी संघीय ढाँचे की बुनियाद के रूप में राजकोषीय संघवाद किस प्रकार संरचनात्मक, संस्थागत और राजनीतिक चुनौतियों का सामना करता है, समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा के पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

Q. निम्नलिखित में से कौन-सी एक भारतीय संघराज्य पद्धति की विशेषता नहीं है? (2017)

(a) भारत में स्वतंत्र न्यायपालिका है।
(b) केन्द्र और राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन किया गया है।
(c) संघबद्ध होने वाली इकाईयों को राज्य सभा में असमान प्रतिनिधित्व दिया गया है।
(d) यह संघबद्ध होने वाली इकाईयों के बीच एक सहमति का परिणाम है।

उत्तर: (d)


मेन्स:

Q. हाल के वर्षों में सहकारी परिसंघवाद की संकल्पना पर अधिक बल दिया जाता रहा है। विद्यमान संरचना में असुविधाओं और सहकारी परिसंघवाद किस सीमा तक इन सुविधाओं का हल निकल लेगा इस पर प्रकाश डालिये। (2015)


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