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एडिटोरियल

  • 18 Dec, 2020
  • 11 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

विश्व व्यापार संगठन के समक्ष चुनौतियाँ

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में वर्तमान समय में विश्व व्यापार संगठन की प्रासंगिकता व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ:

वर्ष 1995 में अपनी स्थापना के बाद से ही ‘विश्व व्यापार संगठन’ (World Trade Organisation- WTO) बहुपक्षीय नियमों पर आधारित वैश्विक व्यापार प्रणाली की आधारशिला रहा है। हालाँकि COVID-19 महामारी से पहले ही WTO अपने तीनों प्रमुख कार्यों- ‘व्यापार को उदार बनाने और नए नियमों को स्थापित करने के लिये वार्ता हेतु मंच प्रदान करना, व्यापार नीतियों की निगरानी  तथा इसके 164 सदस्यों के बीच के विवादों को हल करना’ आदि में कई प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।   

इसके अलावा व्यापार तनावों के राजनीतिकरण और COVID-19 महामारी के कारण उत्पन्न बड़ी आर्थिक चुनौतियों के बीच एक आधुनिक तथा उद्देश्यों को बेहतर तरीके से प्राप्त करने की क्षमता वाले WTO की भूमिका पहले से कहीं अधिक आवश्यक हो गई है।

WTO की चुनौतियाँ: 

  • चीन का राजकीय  पूंजीवाद: चीन की आर्थिक प्रणाली की प्रकृति,  उसकी अर्थव्यवस्था के आकार और हाल के वर्षों में इसकी वृद्धि ने वैश्विक व्यापार प्रणाली में तनाव पैदा किया है।
  • चीन के राज्य स्वामित्व वाले उद्यम मुक्त बाज़ार की वैश्विक व्यापार प्रणाली के लिये एक बड़ी चुनौती प्रस्तुत करते हैं। 
  • हालाँकि समस्या का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा यह है कि चीन द्वारा बौद्धिक संपदा, राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों और औद्योगिक सब्सिडी के संबंध प्रस्तुत चुनौतियों से निपटने के लिये WTO के वर्तमान नियम पर्याप्त नहीं हैं।
  • अमेरिका और चीन के हालिया व्यापार युद्ध का कारण भी यही मुद्दा रहा है।

संस्थागत मुद्दे: 

  • अमेरिका द्वारा WTO के अपीलीय निकाय में नियुक्तियों पर रोक लगा दिये जाने के कारण  अपीलों की सुनवाई  हेतु अधिनिर्णायकों के आवश्यक कोरम को पूरा नहीं किया जा सका है, जिसके चलते दिसंबर 2019 से ही WTO के अपीलीय निकाय के संचालन को प्रभावी रूप से निलंबित कर दिया गया है।
  • विश्व व्यापार संगठन के विवाद निपटान प्रणाली का संकट इसकी बातचीत की प्रक्रिया के बाधित होने से जुड़ा हुआ है।

पारदर्शिता का अभाव:  

  •  विश्व व्यापार संगठन की वार्ताओं में एक समस्या यह है कि WTO के मापदंडों के अनुरूप विकसित या विकासशील देश की परिभाषा पर कोई सहमति नहीं है।
  • वर्तमान में सदस्य देश 'विशेष और अलग सुविधाएँ/सेवाएँ' प्राप्त करने के लिये अपने आप को एक विकासशील देश के रूप में नामित कर सकते हैं, यह प्रणाली एक बड़े विवाद का विषय रही है।

ई-कॉमर्स और डिजिटल व्यापार:

  • पिछले 25 वर्षों के दौरान वैश्विक व्यापार परिदृश्य में व्यापक बदलाव देखने को मिला है, परंतु इस दौरान WTO के नियम इन बदलावों के साथ गति बनाए रखने में असफल रहे हैं।
  • वर्ष 1998 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में ई-कॉमर्स की बढ़ती भूमिका को देखते हुए विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों ने वैश्विक ई-कॉमर्स से संबंधित सभी मुद्दों की जाँच के लिये एक WTO ई-कॉमर्स अधिस्थगन (सीमा शुल्क के संदर्भ में) को लागू किया था।
  • हालाँकि  इस अधिस्थगन के राजस्व पर पड़ने वाले प्रभावों के कारण विकासशील देशों द्वारा हाल में इस अधिस्थगन पर प्रश्न उठाए गए हैं।
  • इसके अतिरिक्त COVID-19 महामारी ने व्यवसायों के ई-कॉमर्स की तरफ स्थानांतरण को और अधिक  गति प्रदान की है, अतः वर्तमान में ऑनलाइन व्यापार को विनियमित करने वाले नियमों की भूमिका कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण हो गई है। परंतु वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार के विपरीत कुछ ही अंतर्राष्ट्रीय नियम सीमापार ई-कॉमर्स को नियंत्रित करते हैं। 

कृषि और विकास: 

  • वर्ष 1995 में कृषि से जुड़ा WTO समझौता लागू हुआ जो इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी।
  • कृषि पर हुआ यह समझौता, सब्सिडी में सुधार और उच्च व्यापार बाधाओं को लक्षित करता है, जो कि कृषि व्यापार को विकृत करते हैं।
  • हालाँकि भारत और ऐसे ही अन्य विकासशील देशों की खाद्य सुरक्षा तथा विकास से जुड़ी आवश्यकताओं के कारण कृषि समझौते को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। 

आगे की राह: 

  • नए नियमों का निर्धारण: विश्व व्यापार संगठन के आधुनिकीकरण हेतु डिजिटल व्यापार और ई-कॉमर्स से निपटने के लिये नए तथा प्रभावी नियमों के विकास की आवश्यकता होगी।  
    • WTO के सदस्यों को चीन की व्यापार नीतियों और प्रथाओं के साथ अधिक प्रभावी ढंग से निपटना होगा, जिसमें राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों तथा औद्योगिक सब्सिडी के मुद्दे को बेहतर तरीके से संभालना भी शामिल है।
  • पर्यावरणीय स्थिरता:  जलवायु परिवर्तन के मुद्दे के संदर्भ में तीव्र प्रतिक्रिया की आवश्यकता को देखते हुए व्यापार और पर्यावरणीय स्थिरता को संरेखित करने के प्रयासों में वृद्धि द्वारा जलवायु परिवर्तन से निपटने तथा विश्व व्यापार संगठन को मज़बूत करने में सहायता प्राप्त हो सकती है।  
    • संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (SDG) और  जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के उद्देश्यों को प्राप्त करने के प्रयासों में व्यापार तथा WTO की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
    • इसके अलावा WTO जीवाश्म ईंधन सब्सिडी में सुधार करने में भूमिका निभा सकता है।
    • उदाहरण के लिये 2017 में ‘ब्यूनस आयर्स मंत्रिस्तरीय सम्मेलन’ में न्यूज़ीलैंड की अगुवाई में 12  WTO सदस्यों के एक गठबंधन ने WTO द्वारा अप्रभावी जीवाश्म ईंधन सब्सिडी, जो अनावश्यक खपत को प्रोत्साहित करती है, पर नियंत्रण की मांग की थी।

COVID-19 महामारी: 

  • COVID-19 महामारी से कोई भी देश अकेले नहीं निपट सकता है, ऐसे में इस महामारी ने तात्कालिक और स्थायी अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता को रेखांकित किया है। 
  • WTO इस चुनौती के दौरान आपूर्ति शृंखलाओं में पारदर्शिता और उनकी मज़बूती सुनिश्चित कर वैक्सीन के मानकीकरण में समन्वय और आयात या निर्यात से जुड़ी बाधाओं को हटाते हुए इस महामारी के दुष्प्रभावों को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • इसके अतिरिक्त WTO द्वारा COVID-19 वैक्सीन के कुछ ही देशों तक सीमिति रहने की बजाय इससे जुड़े बौद्धिक संपदा अधिकारों के स्वैच्छिक साझाकरण को प्रोत्साहित करने जैसे प्रयासों के माध्यम से विश्व के सभी देशों तक इसकी पहुँच सुनिश्चित की जा सकती है।

निष्कर्ष

वर्तमान चुनौतियों को देखते हुए तात्कालिक रूप से WTO द्वारा सदस्य देशों के बीच विश्वास को मज़बूत करने हेतु आवश्यक कदम उठाया जाना बहुत ही आवश्यक होगा। इसके साथ ही WTO को सभी देशों के हितों की रक्षा और कुछ देशों के  व्यापार संबंधी अनुचित व्यवहार को रोकने हेतु नए नियमों को लागू करने के लिये सभी देशों के साथ मिलकर कार्य करना होगा। भविष्य में WTO  सदस्यों को 21वीं सदी के मुद्दों पर बातचीत को आगे बढ़ाने के साथ ही कृषि और विकास जैसे अनसुलझे पुराने व्यापार मुद्दों पर नजर रखकर इनके बीच संतुलन स्थापित करना होगा।     

अभ्यास प्रश्न:  वर्तमान समय में प्रासंगिक बने रहने के लिये विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों को 21वीं सदी के मुद्दों पर बातचीत को आगे बढ़ाने के साथ ही पुराने व्यापार मुद्दों पर भी नज़र बनाए रखनी होगी। टिप्पणी कीजिये।


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