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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

दूसरा अंतर्राष्ट्रीय भारत 6G संगोष्ठी

प्रिलिम्स के लिये: इंडिया मोबाइल कांग्रेस, भारत 6G एलायंस, टेलीकॉम टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट फंड, इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन

मेन्स के लिये: भारत 6G विज़न और इसका डिजिटल इंडिया तथा विकसित भारत 2047 के साथ समन्वय, भारत में 6G तैनाती की चुनौतियाँ और तत्परता हेतु रोडमैप

स्रोत: पी.आई.बी 

चर्चा में क्यों?

इंडिया मोबाइल कांग्रेस (IMC) 2025 में भारत ने द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय भारत 6G संगोष्ठी के माध्यम से अगली पीढ़ी की दूरसंचार तकनीक में अपनी बढ़ती नेतृत्व भूमिका को प्रदर्शित किया। यह आयोजन विकसित भारत 2047 के लक्ष्य की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, जिसका उद्देश्य एक आत्मनिर्भर, नवोन्मेषी और वैश्विक रूप से जुड़ा हुआ 6G इकोसिस्टम विकसित करना है।

IMC 2025 में आयोजित द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय भारत 6G संगोष्ठी के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?

  • 6G पर नई दिल्ली घोषणा:  संगोष्ठी के दौरान भारत 6G, 6G-IA (यूरोपीय संगठन), ATIS’ नेक्स्ट G अलायंस (उत्तर अमेरिकी संगठन) और अन्य वैश्विक अनुसंधान गठबंधनों ने मिलकर एक संयुक्त घोषणा जारी की, जिसका उद्देश्य 6G को एक वैश्विक सार्वजनिक संपदा के रूप में विकसित करना है।
    • इस घोषणा में 6G नेटवर्क के पाँच मूल सिद्धांत निर्धारित किये गए हैं जो विश्वसनीय एवं सुरक्षित, लचीले एवं भरोसेमंद, मुक्त एवं अंतर-संचालनीय, समावेशी और किफायती, चिरस्थायी तथा वैश्विक रूप से जुड़े हुए हैं।  
    • साथ ही, इस घोषणा में कौशल विकास और वैश्विक सहयोग पर बल दिया गया है, ताकि भारत की 6G विज़न 2030 के अनुरूप एक भविष्य-तैयार तथा समावेशी 6G इकोसिस्टम का निर्माण किया जा सके।
  • इकोनॉमिक विज़न: संगोष्ठी में भारत के 6G रोडमैप को रेखांकित किया गया, जिसका लक्ष्य वर्ष 2035 तक 1.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के GDP प्रभाव और वैश्विक 6G पेटेंट्स में 10% हिस्सेदारी प्राप्त करना है। साथ ही, वर्ष 2033 तक सैटेलाइट संचार क्षेत्र में तीन गुना वृद्धि का भी लक्ष्य रखा गया है।
    • संगोष्ठी में भारत के स्वदेशी 4G स्टैक को तकनीकी आत्मनिर्भरता और निर्यात तत्परता की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि बताया गया।
  • सहयोग और समावेशन पर केंद्रित: संगोष्ठी ने वैश्विक सहयोग, स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास तथा उद्योग-अकादमिक समन्वय को मज़बूत करने पर बल दिया, ताकि एक समावेशी 6G ढाँचा तैयार किया जा सके।
    • इसने यह भी रेखांकित किया कि भारत अब एक तकनीक उपभोक्ता से आगे बढ़कर सह-निर्माता और वैश्विक प्रौद्योगिकी नेतृत्वकर्त्ता के रूप में उभर रहा है जिसका उदाहरण एक लाख स्वदेशी 4G टावरों की स्थापना जैसी उपलब्धियाँ हैं।

भारत 6G विज़न क्या है?

  • भारत 6G विज़न: वर्ष 2023 में लॉन्च किया गया, भारत 6G विज़न का उद्देश्य भारत को अगली पीढ़ी की वायरलेस संचार तकनीक में एक वैश्विक नेतृत्वकर्त्ता और सह-निर्माता के रूप में स्थापित करना है।
    • यह विकसित भारत 2047 के लक्ष्यों के अनुरूप है, जिसमें सुलभता, सततता और सार्वभौमिक पहुँच को वर्ष 2030 तक सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • विज़न की प्रमुख विशेषताएँ :
    • भारत 6G एलायंस (B6GA): यह एक उद्योग-प्रेरित, सरकार समर्थित संस्था है, जो दूरसंचार ऑपरेटरों, अकादमिक संस्थानों, स्टार्टअप्स और अनुसंधान एवं विकास संस्थानों को एक साथ लाती है।
      • इसका फोकस स्पेक्ट्रम, प्रौद्योगिकी, सततता, अनुप्रयोगों और उपयोग मामलों जैसे क्षेत्रों पर है।
      • भारत 6G एलायंस ने नेक्स्ट G एलायंस (USA), 6G-IA (यूरोप), 6G फोरम (दक्षिण कोरिया), 6G फ्लैगशिप (फिनलैंड), 6G ब्राज़ील और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये हैं ताकि संयुक्त अनुसंधान तथा वैश्विक मानकों पर सहयोग किया जा सके।
        • जुलाई 2025 तक, इस एलायंस में 80 से अधिक सदस्य संगठन शामिल हैं।
      • यह टेलीकम्युनिकेशन स्टैंडर्ड्स डेवलपमेंट सोसाइटी, इंडिया (TSDSI) एवं नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विस कंपनीज़ (NASSCOM) के साथ भी मिलकर कार्य कर रहा है, ताकि राष्ट्रीय विशेषज्ञता का लाभ उठाया जा सके और विश्वसनीय एवं लचीली आपूर्ति शृंखलाएँ सुनिश्चित की जा सकें।
    • भारत 6G मिशन: इसका उद्देश्य भारत को वर्ष 2030 तक 6G प्रौद्योगिकियों में एक वैश्विक सह-निर्माता और नेतृत्वकर्त्ता के रूप में स्थापित करना है।
      • स्वदेशी नवाचार, क्षमता निर्माण और कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करता है।
      • स्थिरता, सुरक्षा और समावेशिता पर ज़ोर देता है, विशेषकर दूरसंचार विकास में।
      • यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि 6G नवाचार भारत में उत्पन्न हो और राष्ट्रीय तथा वैश्विक समुदायों को लाभान्वित करे।

  • बुनियादी अवसंरचना: सरकार ने अनुसंधान एवं  नवाचार को बढ़ावा देने के लिये दो उन्नत परीक्षण स्थलों, 6G टेराहर्ट्ज़ (THz) परीक्षण स्थल और उन्नत ऑप्टिकल संचार परीक्षण स्थल को वित्त पोषित किया है, जो अगली पीढ़ी की दूरसंचार प्रौद्योगिकियों में हैं।
    • साथ ही, वित्त वर्ष 2023–24 में सरकार ने पूरे देश के शैक्षणिक संस्थानों मे पाँचवीं पीढ़ी की 100 (5G) प्रयोगशालाओं को स्वीकृति दी, ताकि एक 6G-तैयार अकादमिक और स्टार्टअप इकोसिस्टम तैयार किया जा सके। इसके अतिरिक्त, 6G नेटवर्क प्रणालियों पर 104 अनुसंधान प्रस्तावों को भी मंज़ूरी दी गई है।
  • भारत के 6G इकोसिस्टम हेतु पहल:
    • दूरसंचार प्रौद्योगिकी विकास कोष (TTDF): इसे वर्ष 2022 में 5G और 6G प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान एवं विकास (R&D) को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये शुरू किया गया था।
      • TTDF का उद्देश्य देश की घरेलू कंपनियों, स्टार्टअप्स और शैक्षणिक संस्थानों को ग्रामीण क्षेत्रों में सुलभ कनेक्टिविटी के लिये दूरसंचार उत्पाद विकसित करने में सहयोग देना है।
      • सितंबर 2025 तक, 1 से 5 वर्ष की अवधि वाले 115 परियोजनाओं को ₹310.6 करोड़ की मंज़ूरी दी जा चुकी है।
    • प्रौद्योगिकी नवाचार केंद्र (TIH) IIIT बंगलूरू: इसे अंतर्विषयी साइबर-भौतिक प्रणालियों पर राष्ट्रीय मिशन (NM-ICPS) के अंतर्गत स्थापित किया गया है, जिसका उद्देश्य 5G+ और 6G के लिये उन्नत संचार प्रणालियों में अग्रणी भूमिका निभाना है।

6G (छठी पीढ़ी)

  • यह 6G उच्च रेडियो आवृत्तियों का उपयोग करेगी, जिससे लगभग शून्य विलंब (Near-zero Delay) के साथ डेटा प्रसारित किया जा सकेगा और यह 5G की तुलना में 1,000 गुना तीव्र गति प्रदान करने में सक्षम होगी।
  • अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU), जो संयुक्त राष्ट्र की सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) से संबंधित विशेष एजेंसी है, ने 6G प्रौद्योगिकी को ‘अंतर्राष्ट्रीय मोबाइल दूरसंचार (IMT) 2030’ नाम दिया है।
  • 6G वास्तविक समय अनुप्रयोगों जैसे रिमोट सर्जरी, स्मार्ट रोबोटिक्स और इमर्सिव वर्चुअल अनुभवों को सक्षम बनाएगी, जबकि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का एकीकरण नेटवर्क को अधिक स्मार्ट, तीव्र तथा दक्ष बनाएगा।

भारत में 6G कार्यान्वयन से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • अवसंरचना की तैयारियाँ: भारत में वर्तमान 5G नेटवर्क का विस्तार अभी जारी है। 6G की दिशा में आगे बढ़ने के लिये सघन फाइबर नेटवर्क, उन्नत सेमीकंडक्टर और स्वदेशी हार्डवेयर की आवश्यकता होगी, जिन क्षेत्रों में घरेलू क्षमता अभी सीमित है।
  • सीमित अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी: हालाँकि ‘भारत 6G मिशन’ जैसी पहलें की गई हैं, फिर भी भारत का अनुसंधान उत्पादन, पेटेंट की संख्या और निजी निवेश सीमित हैं, विशेषकर जब तुलना चीन तथा अमेरिका जैसे वैश्विक अग्रणी देशों से की जाए।
  • स्पेक्ट्रम और मानकीकरण की चुनौतियाँ: 6G के लिये टेराहर्ट्ज़ (THz) बैंड के आवंटन और विनियमन की प्रक्रिया वैश्विक स्तर पर अभी विकासशील अवस्था में है, जिससे भारत की 6G रोडमैप योजना में अनिश्चितता बनी हुई है।
  • प्रतिभा और कौशल की कमी: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), फोटोनिक्स और नेटवर्क इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में प्रशिक्षित विशेषज्ञों की कमी है, जो स्वदेशी 6G नवाचार के लिये आवश्यक हैं।
  • वहनीयता और डिजिटल विभाजन: उच्च तैनाती लागतें यदि समावेशी नीतियों द्वारा समर्थित नहीं की जाती हैं तो शहरी और ग्रामीण कनेक्टिविटी के बीच असमानता को और बढ़ा सकता है।
  • सुरक्षा और गोपनीयता जोखिम: अत्यंत तीव्र डेटा ट्रांसफर और विशाल डिवाइस कनेक्टिविटी के कारण साइबर सुरक्षा तथा डेटा संरक्षण को सुनिश्चित करना और अधिक जटिल हो जाएगा।

भारत के 6G विज़न के सफल कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने हेतु कौन-से कदम आवश्यक हैं?

  • स्वदेशी विनिर्माण को बढ़ावा देना: टेलीकॉम, सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्रों में उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं के तहत 6G घटकों को शामिल किया जाए, ताकि आयात निर्भरता घटे और घरेलू उत्पादन क्षमता बढ़े।
  • कौशल विकास और मानव पूंजी निर्माण: शैक्षणिक संस्थानों में 5G प्रयोगशालाओं का विस्तार कर एक 6G-तैयार प्रतिभा समूह (टैलेंट पूल) तैयार किया जाना चाहिये। साथ ही, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), फोटॉनिक्स और नेटवर्क इंजीनियरिंग जैसे विषयों में बहु-विषयी पाठ्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • स्पेक्ट्रम नीति और विनियमन: THz आवृत्तियों के लिये एक दूरदर्शी राष्ट्रीय स्पेक्ट्रम रणनीति तैयार की जाए और अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) तथा अन्य वैश्विक मानक-निर्धारण संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी के माध्यम से वैश्विक सामंजस्य को प्रोत्साहित किया जाए।
  • समावेशी पहुँच और वहनीयता: डिजिटल इंडिया और भारतनेट पहलों के साथ 6G विस्तार को जोड़ा जाए, ताकि ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में समान पहुँच सुनिश्चित हो सके तथा नया डिजिटल विभाजन उत्पन्न न हो।

निष्कर्ष:

भारत की 6G दिशा इस बात का प्रतीक है कि देश अब केवल तकनीक अपनाने वाला नहीं, बल्कि एक वैश्विक नवोन्मेषक बन रहा है। भारत 6G एलायंस जैसी पहलों और मज़बूत वैश्विक साझेदारियों के माध्यम से भारत एक सुरक्षित, समावेशी एवं भविष्य-उन्मुख दूरसंचार तंत्र का निर्माण कर रहा है, जो आत्मनिर्भर तथा डिजिटल रूप से सशक्त विकसित भारत 2047 की दिशा में मार्ग प्रशस्त करेगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न.  भारत के 6G विज़न का उद्देश्य देश को अगली पीढ़ी की दूरसंचार तकनीक में एक वैश्विक सह-निर्माता के रूप में स्थापित करना है। विवेचना कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. भारत 6G विज़न 2030 क्या है?

वर्ष 2023 में प्रारंभ किया गया यह विज़न भारत को 6G प्रौद्योगिकी में एक वैश्विक नेतृत्वकर्त्ता और सह-निर्माता के रूप में स्थापित करने का लक्ष्य रखता है, जिसमें सुलभता, स्थिरता और सार्वभौमिक पहुँच पर वर्ष 2030 तक विशेष ध्यान दिया गया है।  

2. टेलीकॉम टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट फंड (TTDF) क्या है?

वर्ष 2022 में शुरू किया गया TTDF, 5G और 6G तकनीकों में अनुसंधान एवं विकास (R&D) तथा स्वदेशी नवाचार को वित्तीय सहायता प्रदान करता है, ताकि ग्रामीण कनेक्टिविटी और घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहन मिल सके।

3. भारत 6G एलायंस क्या है?

यह एक उद्योग-नेतृत्व वाली और सरकार द्वारा समर्थित संस्था है, जो टेलीकॉम ऑपरेटरों, अकादमिक संस्थानों, स्टार्टअप्स और अनुसंधान संस्थाओं को एकजुट कर स्वदेशी नवाचार को बढ़ावा देती है तथा वैश्विक 6G मानक विकसित करने का कार्य करती है।

4. IMT-2030 क्या है?

यह 6G प्रौद्योगिकी का आधिकारिक नाम है जिसे अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) द्वारा निर्धारित किया गया है, जो ICT मानकों के लिये संयुक्त राष्ट्र एजेंसी है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रीलिम्स 

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारत सरकार के ‘डिजिटल इंडिया’ योजना का/के उद्देश्य है/हैं?  (2018)

  1. भारत की अपनी इंटरनेट कंपनियों का गठन, जैसा कि चीन ने किया। 
  2. एक नीतिगत ढाँचे की स्थापना, जिससे बड़े आँकड़े एकत्रित करने वाली समुद्रपारीय बहु-राष्ट्रीय कंपनियों को प्रोत्साहित किया जा सके कि वे हमारी राष्ट्रीय भौगोलिक सीमाओं के अंदर अपने बड़े डेटा केंद्रों की स्थापना करें। 
  3. हमारे अनेक गाँवों को इंटरनेट से जोड़ना तथा हमारे बहुत से विद्यालयों, सार्वजनिक स्थलों एवं प्रमुख पर्यटक केंद्रों में वाई-फाई की सुविधा प्रदान करना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


शासन व्यवस्था

भारतीय उच्च शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीयकरण

प्रिलिम्स के लिये: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020, भारत में विदेशी उच्च शिक्षण संस्थानों के परिसरों की स्थापना और संचालन विनियम 2023, सकल नामांकन अनुपात (GER), मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, सार्वजनिक-निजी भागीदारी

मेन्स के लिये: भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र में परिवर्तन को प्रेरित करने वाले महत्त्वपूर्ण नीतिगत सुधार, भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों के प्रवेश से जुड़ी उभरती संभावनाएँ और चुनौतियाँ।

 स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

UGC’ के 2023 के विनियमों के तहत मुख्यतः ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया की 17 विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में अपने परिसर स्थापित करने की मंज़ूरी मिली है। यह कदम राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अनुरूप है और भारत में गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा की बढ़ती मांग के बीच उठाया गया है।

भारत उच्च शिक्षा में वैश्विक साझेदारी को कैसे आगे बढ़ा रहा है?

  • NEP 2020 विज़न: सुलभता, समता, गुणवत्ता, वहनीयता और जवाबदेही के सिद्धांतों से निर्देशित, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 का उद्देश्य भारत को एक वैश्विक शिक्षा केंद्र के रूप में स्थापित करना है।
    • यह भारत में शीर्ष 100 वैश्विक विश्वविद्यालयों को कार्य करने की अनुमति देता है, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, छात्र एवं शिक्षकों की गतिशीलता और शैक्षणिक क्रेडिट हस्तांतरण को बढ़ावा देता है ताकि संपूर्ण शिक्षा पारिस्थितिकी तंत्र को वैश्विक मानकों तक उठाया जा सके।
  • UGC के विनियम 2023: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के विज़न को कार्यान्वित करने के लिये, भारत में विदेशी उच्च शैक्षणिक संस्थानों के परिसरों की स्थापना और संचालन” संबंधी UGC विनियमन 2023 लागू किये गए।
    • योग्य FHEI को शीर्ष 500 QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में रैंक किया जाना चाहिये।
    • इन संस्थानों को अपने मूल परिसरों के समान शैक्षणिक मानक, पाठ्यक्रम और डिग्री समकक्षता बनाए रखना अनिवार्य है।
    • उन्हें संचालनात्मक स्वायत्तता प्रदान की गई है जिसमें भारतीय एवं विदेशी संकाय की भर्ती में लचीलापन शामिल है और वे भारतीय विश्वविद्यालयों पर लागू फीस की सीमा से बाध्य नहीं हैं।

कौन-से कारक विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में परिसर स्थापित करने हेतु प्रेरित कर रहे हैं?

  • गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा की बढ़ती मांग: भारत की आधी से अधिक जनसंख्या 30 वर्ष से कम आयु की है तथा सकल नामांकन अनुपात (GER) अभी भी 30% से कम है, जिससे भारत एक विशाल और अब तक अप्रयुक्त उच्च शिक्षा बाज़ार के रूप में उभर रहा है।
    • बढ़ती आय, विस्तारित मध्यम वर्ग, अंग्रेज़ी भाषा में दक्षता और वैश्विक स्तर पर सीखने की मांग जैसे कारक भारत को विदेशी विश्वविद्यालयों के लिये एक आकर्षक गंतव्य बना रहे हैं।
  • सहायक नीतिगत वातावरण: NEP 2020 शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देती है, जिसके तहत शीर्ष वैश्विक विश्वविद्यालयों को भारत में आमंत्रित किया जा रहा है। वहीं UGC के 2023 विनियम इन विश्वविद्यालयों के परिसर स्थापित करने के लिये  एक सहायक ढाँचा प्रदान करते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय छात्रों की घटती संख्या: हाल के आँकड़ों से पता चलता है कि भारतीय छात्रों की संख्या में तीव्र गिरावट आई है। इसका प्रमुख कारण कड़े आप्रवासन नियम हैं, जिनमें विदेशी छात्रों द्वारा आश्रितों को साथ लाने पर प्रतिबंध और ब्रिटेन, अमेरिका तथा कनाडा में आप्रवासन को सीमित करने के लिये उठाए गए अन्य कदम शामिल हैं।
  • राजस्व का विविधीकरण: घरेलू नामांकन में ठहराव और सार्वजनिक वित्तपोषण में कमी के कारण ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा के विश्वविद्यालय राजस्व विविधीकरण एवं वित्तीय स्थिरता के लिये भारत को एक रणनीतिक बाज़ार के रूप में देख रहे हैं।
  • रणनीतिक वैश्विक साझेदारियाँ: भारतीय परिसरों ने संस्थागत संबंधों को सुदृढ़ किया है, अनुसंधान सहयोग और छात्र विनिमय को बढ़ावा दिया है तथा भविष्य के स्नातकोत्तर छात्रों एवं वैश्विक पूर्व छात्रों के नेटवर्क के लिये एक कुशल मानव संसाधन शृंखला का निर्माण किया है।
    • उदाहरण के लिये, ब्रिटेन–इंडिया एजुकेशन एंड रिसर्च इनिशिएटिव (UKIERI) द्विपक्षीय छात्र और संकाय विनिमय को बढ़ावा देती है।

भारत की उच्च शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण के क्या प्रभाव हैं?

  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: विदेशी विश्वविद्यालय वैश्विक पाठ्यक्रम, शिक्षण मानक और गुणवत्ता आश्वासन प्रणाली लेकर आते हैं, जिससे भारत की शैक्षणिक पारिस्थितिकी का स्तर ऊँचा होता है। साथ ही यह नवाचार और अनुसंधान वित्तपोषण को आकर्षित करता है।
  • ब्रेन ड्रेन पर नियंत्रण: अब उच्च कौशल और प्रतिभाशाली छात्र भारत में ही रहकर पढ़ाई कर सकेंगे, जिससे विदेशों में पढ़ाई पर खर्च होने वाले अरबों डॉलर के वार्षिक बहिर्गमन में कमी आएगी।
  • प्रणालीगत सुधार: विदेशी विश्वविद्यालयों की उपस्थिति भारतीय संस्थानों को नवाचार, गुणवत्ता सुधार और प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये प्रेरित करेगी। इनके शासन मॉडल और उद्योग-अकादमिक साझेदारी भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली में संरचनात्मक सुधार के लिये एक ब्लूप्रिंट के रूप में कार्य कर सकते हैं।
  • राष्ट्रीय लक्ष्यों की अनुरूपता: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), डेटा साइंस और वित्त जैसे उच्च मांग वाले क्षेत्रों में संचालित पाठ्यक्रम मेक इन इंडिया तथा डिजिटल इंडिया जैसे राष्ट्रीय अभियानों के अनुरूप एक कुशल कार्यबल तैयार करेंगे, साथ ही एक विविध एवं विश्वनगरीय शैक्षणिक वातावरण को भी प्रोत्साहित करेंगे।
  • वहनीय अंतर्राष्ट्रीय डिग्रियाँ: भारत में विदेशी विश्वविद्यालय से डिग्री प्राप्त करना विदेश जाकर पढ़ाई करने की तुलना में कहीं अधिक वहनीय है। उदाहरण के लिये, साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के स्नातक (UG) पाठ्यक्रमों के लिये वर्ष 2026 की फीस लगभग ₹13.86 से ₹23.10 लाख है — जो ब्रिटेन के कैंपस लागत का लगभग आधा है।

भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों के परिसर स्थापित करने की प्रमुख चुनौतियाँ और उनके समाधान क्या हैं?

चुनौतियाँ

आगे की राह 

स्वायत्तता संबंधी चुनौतियाँ: फीस, पाठ्यक्रम और संकाय पर सीमित स्वायत्तता; UGC की जटिल स्वीकृति प्रक्रिया।

स्थिर नियामक ढाँचा: एकल-खिड़की प्रणाली से त्वरित स्वीकृति; स्वायत्तता, कराधान और निधि प्रत्यावर्तन पर पारदर्शी नीतियाँ।

वित्तीय व्यवहार्यता: वहनीयता और लागत के बीच संतुलन; न्यूनतम नामांकन लक्ष्य प्राप्त कर वित्तीय संतुलन बनाए रखना।

सतत् वित्तीय मॉडल: चरणबद्ध निवेश, सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) और पुनर्निवेश प्रावधानों के साथ अधिशेष प्रत्यावर्तन की अनुमति।

प्रतिस्पर्द्धात्मक चुनौतियाँ: IIT/IIM जैसी प्रतिष्ठित भारतीय संस्थाओं से कड़ी प्रतिस्पर्द्धा; डिग्री के मूल्य को लेकर छात्रों में संदेह।

रणनीतिक शैक्षणिक साझेदारी: संयुक्त डिग्रियाँ, क्रेडिट ट्रांसफर; भारत-केंद्रित विषयों पर सहयोगात्मक अनुसंधान।

गुणवत्ता आश्वासन संबंधी मुद्दे: शीर्ष संकाय को आकर्षित करना; पाठ्यक्रम या शिक्षण मानकों में कमी से बचना।

मज़बूत निगरानी एवं मूल्यांकन प्रणाली: अनुसंधान, रोज़गार योग्यता और सामाजिक प्रभाव जैसे मानकों पर सफलता का मूल्यांकन।

बुनियादी ढाँचे की बाधाएँ: भूमि अधिग्रहण, कराधान, श्रम कानून और भौतिक अवसंरचना की तैयारी।

सांस्कृतिक एकीकरण: भारतीय संदर्भ और मूल्यों के अनुरूप पाठ्यक्रम विकसित करना; स्थानीय कौशल और ज्ञान अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करना।

निष्कर्ष:

NEP 2020 और UGC 2023 द्वारा संचालित भारत का विदेशी विश्वविद्यालयों के लिये ढाँचा उच्च शिक्षा को रूपांतरित करने का उद्देश्य रखता है जिसमें गुणवत्ता में सुधार, ब्रेन ड्रेन पर नियंत्रण और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा देना प्रमुख लक्ष्य हैं। इस पहल की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि भारत विदेशी विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता और राष्ट्रीय हितों के बीच संतुलन कैसे बनाता है, शिक्षा की वहनीयता को कैसे सुनिश्चित करता है तथा दीर्घकालिक प्रभाव के लिये सतत् एवं पारस्परिक रूप से लाभकारी शैक्षणिक साझेदारियाँ कैसे स्थापित करता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. विश्लेषण कीजिये कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 और UGC विनियम 2023 भारत में उच्च शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण को किस प्रकार प्रोत्साहित करते हैं तथा इनके नीतिगत प्रभावों का मूल्यांकन कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों द्वारा परिसर स्थापित करने के लिये नीतिगत ढाँचा क्या है?

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 और UGC विनियम 2023 शीर्ष रैंक वाले विदेशी उच्च शैक्षणिक संस्थानों (FHEIs) को भारत में परिसर स्थापित करने की अनुमति देते हैं, जिससे शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीयकरण एवं गुणवत्ता समानता को बढ़ावा मिलता है।

2. UGC के नियमों के तहत विदेशी विश्वविद्यालयों को कौन-सा पात्रता मानदंड पूरा करना होता है?

विदेशी उच्च शैक्षणिक संस्थानों को वैश्विक स्तर पर शीर्ष 500 (कुल या विषय-वार) में रैंक किया जाना चाहिये या UGC के मूल्यांकन के अनुसार किसी विशेष क्षेत्र में असाधारण विशेषज्ञता प्रदर्शित करनी चाहिये।

3.विदेशी विश्वविद्यालयों का भारत में प्रवेश राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों के अनुरूप कैसे है?

यह पहल ‘मेक इन इंडिया’ और ‘डिजिटल इंडिया’ जैसे राष्ट्रीय अभियानों को सशक्त करती है, क्योंकि यह उच्च मांग वाले क्षेत्रों में कुशल कार्यबल तैयार करने, ब्रेन ड्रेन को कम करने तथा देश के भीतर अनुसंधान एवं नवाचार को प्रोत्साहित करने में सहायक है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स 

प्रश्न. भारतीय संविधान के निम्नलिखित में से कौन-से प्रावधान शिक्षा पर प्रभाव डालते हैं? (2012)

  1. राज्य नीति के निदेशक तत्त्व  
  2. ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकाय  
  3. पाँचवीं अनुसूची 
  4. छठी अनुसूची 
  5. सातवीं अनुसूची

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनें:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3, 4 और 5
(c) केवल 1, 2 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (d) 


मेन्स

प्रश्न. जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों पर विस्तृत प्रकाश डालिये। (2021)

प्रश्न. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020)  


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