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डेली न्यूज़

  • 27 Jul, 2022
  • 47 min read
शासन व्यवस्था

मीडिया ट्रायल

प्रिलिम्स के लिये:

कंगारू कोर्ट, सीजेआई, अनुच्छेद 21 और 19, मौलिक अधिकार।

मेन्स के लिये:

मीडिया ट्रायल और इसके निहितार्थ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने कहा कि मीडिया एजेंडा संचालित बहस और कंगारू कोर्ट चला रहा है, जो लोकतंत्र के लिये उचित नहीं है।

कंगारू कोर्ट

  • "कंगारू कोर्ट/समानांतर न्यायिक आपूर्ति प्रणाली" वाक्यांश का प्रयोग न्यायिक प्रणाली के खिलाफ किया जाता है जहाँ अभियुक्त के खिलाफ निर्णय आमतौर पर पूर्व निर्धारित होता है।
  • यह स्व-गठित या छद्म न्यायालय है, जिसे बिना किसी पूर्व चिंतन के निर्णय देने के उद्देश्य से स्थापित किया जाता है और आमतौर पर आरोपी व्यक्ति के संदर्भ में फैसला किया जाता है।
    • यह अभिव्यक्ति ऑस्ट्रेलिया में देखी गई लेकिन इसे पहली बार अमेरिका में वर्ष 1849 के कैलिफोर्निया गोल्ड रश के दौरान दर्ज किया गया था।
  • सोवियत संघ में स्टालिन युग के दौरान कंगारू कोर्ट आम धारणा थी, जो सोवियत ग्रेट पर्ज के "मॉस्को ट्रायल" के रूप में प्रसिद्ध।

मीडिया ट्रायल:

  • परिचय:
    • मीडिया ट्रायल एक ऐसा वाक्यांश है जो 20वीं सदी के अंत और 21वीं सदी की शुरुआत में किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा पर टेलीविजन और समाचार पत्रों के कवरेज के प्रभाव का वर्णन करने हेतु कानून की अदालत में किसी फैसले से पहले या बाद में अपराध या बेगुनाही की व्यापक धारणा बनाने के लिये लोकप्रिय है।
    • हाल के दिनों में ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जिनमें मीडिया ने आरोपी के खिलाफ मीडिया ट्रायल कर न्यायालय द्वारा फैसला सुनाए जाने से पहले ही अपना फैसला सुना दिया।
  • संवैधानिकता:
    • हालाँकि मीडिया ट्रायल शब्द को कहीं भी सीधे तौर पर परिभाषित नहीं किया गया है लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से यह शक्ति भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत मीडिया को प्राप्त है।
      • भारत के संविधान का अनुच्छेद 19 प्रत्येक व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है।

मीडिया  ट्रायल के निहितार्थ:

  • न्यायिक कामकाज को प्रभावित करता है:
    • न्यायाधीशों के खिलाफ संयुक्त अभियान, विशेष रूप से सोशल मीडिया संचालित और मीडिया ट्रायल न्यायिक कामकाज को प्रभावित करते हैं।
    • न्यायालयों में लंबित मुद्दों पर मीडिया में गैर-सूचित, पक्षपातपूर्ण और एजेंडा संचालित बहस न्याय वितरण को प्रभावित कर रहा है।
  • नकली और असली में भेद न कर पाना:
    • नए मीडिया उपकरणों में व्यापक विस्तार की क्षमता है लेकिन वे सही और गलत, अच्छे तथा बुरे एवं असली व नकली के बीच अंतर करने में असमर्थ हैं।
    • मीडिया ट्रायल मामलों को तय करने में एक मार्गदर्शक कारक नहीं हो सकता है।
  • गलत वर्णन:
    • मीडिया उन घटनाओं का वर्णन करने में सफल रहा है जिन्हें गुप्त रखा जाना चाहिये।
    • मीडिया परीक्षण कथित अभियुक्तों के गलत वर्णन का कारण बना है और इसने उनके कॅरियर को समाप्त करने का काम किया है, केवल इस तथ्य से कि वे आरोपी थे, भले ही उन्हें अभी तक न्यायालय द्वारा दोषी नहीं ठहराया गया हो।
  • लोकतंत्र के लिये अच्छा नहीं:
    • मीडिया ने अपनी ज़िम्मेदारी का उल्लंघन करते हुए लोकतंत्र को पीछे ले जाने का काम किया है तथा लोगों को प्रभावित किया है और व्यवस्था को क्षति पहुँचाई है।
    • अभी भी प्रिंट मीडिया में कुछ हद तक जवाबदेही है, जबकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की जवाबदेही शून्य है।
  • नफरत और हिंसा भड़काना:
    • पेड न्यूज़ और फेक न्यूज़ जनता की धारणा में हेरफेर कर सकते हैं तथा समाज में विभिन्न समुदायों के बीच नफरत, हिंसा एवं वैमनस्य पैदा कर सकते हैं।
    • वस्तुनिष्ठ पत्रकारिता का अभाव समाज में सत्य की झूठी प्रस्तुति की ओर ले जाता है जो लोगों की धारणा और राय को प्रभावित करता है।
  • एकांतता का अधिकार:
    • वे हमारी निजता पर आक्रमण करते हैं जो अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत एकांतता के अधिकार के उल्लंघन का कारण बनता है।

भारत में मीडिया विनियमन:

  • भारत में मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र का नियंत्रण और विनियमन केबल नेटवर्क अधिनियम, 1995 तथा प्रसार भारती अधिनियम, 1990 में निहित है। इन्हें सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय तथा प्रसार भारती द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
  • मीडिया विनियमन  के लिये भारत में चार निकाय हैं:
    • भारतीय प्रेस परिषद: इसका उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखना और भारत में समाचार पत्रों व समाचार एजेंसियों के मानकों को बनाए रखना और उनमें सुधार करना है।
    • समाचार प्रसारण मानक प्राधिकरण: यह न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA) द्वारा स्थापित एक स्वायत्त निकाय है।
    • प्रसारण सामग्री शिकायत परिषद: यह सभी गैर-सामाचार समान्य मनोरंजन चैनलों से संबंधित शिकायतों को देखने के लिये एक स्व-नियामक निकाय है।
    • न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA): यह निजी टेलीविजन समाचार और समसायिक घटनाओं के ब्रॉडकास्टर्स का प्रतिनिधित्व करता है।

आगे की राह

  • मीडिया को केवल पत्रकारिता के कार्यों में संलग्न होना चाहिये और अदालत की एक विशेष एजेंसी के रूप में कार्य नहीं करना चाहिये।
  • यद्यपि मीडिया एक प्रहरी के रूप में कार्य करता है और हमें एक ऐसा मंच प्रदान करता है जहाँ लोग समाज में होने वाली घटनाओं के बारे में जान सकते है।
  • मीडिया को यह समझना चाहिये कि उसकी भूमिका उन मुद्दों को उठाना है जिनका जनता सामना कर रही है। मीडिया उनकी आवाज़ बन सकता है जो अपनी बात नहीं रख सकते। मीडिया को फैसला नहीं सुनाना चाहिये क्योंकि भारत में इस उद्देश्य के लिये न्यायपालिका है।
  • मीडिया को अदालत के मामलों में दखल न देकर अपनी नैतिकता, सामाजिक ज़िम्मेदारी और विश्वसनीयता को बनाए रखना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

अघोषित विदेशी आय

प्रिलिम्स के लिये:

बैंक ऑफ इंटरनेशनल सेटलमेंट्स, सरकार की पहल

मेन्स के लिये:

अर्थव्यवस्था पर काले धन का प्रभाव, भारत की अघोषित आय की स्थिति, संबंधित सरकारी पहल।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के वित्त मंत्री ने जानकारी दी कि गैर-सूचित विदेशी बैंक खातों में 8,468 करोड़ रुपए से अधिक की अघोषित आय को कर के दायरे में लाया गया है तथा 1,294 करोड़ रुपए से अधिक का जुर्माना लगाया गया है।

अघोषित आय:

  • परिचय:
    • यह वह आय है जिसे निर्धारिती ने अपने आयकर रिटर्न में नहीं दिखाया है और उस पर आयकर का भुगतान नहीं किया है।
    • इसमें शामिल हो सकते हैं:
      • पैसा, बुलियन, आभूषण या अन्य मूल्यवान वस्तु या कोई भी आय जो किसी भी आधार पर प्राप्त होती है और उसकी प्रविष्टि बहीखाते या अन्य लेन-देन दस्तावेज़ो में नहीं की जाती है या जिसका आयकर के प्रयोजनों के लिये खुलासा नहीं किया गया हैै।
  • वित्त मंत्री की रिपोर्ट:
    • अघोषित विदेशी आय से निपटने हेतु काला धन (अघोषित विदेशी आय और संपत्ति) एवं कर अधिरोपण अधिनियम, 2015 के तहत 368 मामलों के आकलन के बाद 14,820 करोड़ रुपए की कर मांग की गई है।
      • अघोषित विदेशी संपत्तियों से जुड़े 4,164 करोड़ रुपए के 648 खुलासे (Disclosures) काला धन (अघोषित विदेशी आय और परिसंपत्तियां) और कर अधिरोपण अधिनियम, 2015 के अंतर्गत,30 सितंबर, 2015 तक की अवधि में किये गए।ऐसे मामलों में कर और जुर्माने के रूप में एकत्र की गई राशि लगभग 2,476 करोड़ रुपय थी।
    • अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक (BIS) के 'स्थानीय बैंकिंग आँकड़े' ने स्विस बैंकों में भारतीय नागरिकों द्वारा जमा राशि में वर्ष 2021 के दौरान 8.3% की गिरावट प्रदर्शित की।

काला धन (अघोषित विदेशी आय और संपत्ति) कर अधिरोपण अधिनियम, 2015:

  • यह विदेशी आय को छिपाने पर दंड का प्रावधान करता है और विदेशी आय के संबंध में कर से बचने के प्रयास को आपराध के दायरे में शामिल करता है।
  • यदि किसी व्यक्ति के पास अघोषित विदेशी संपत्ति होने का प्रत्यक्ष प्रमाण प्राप्त होता है तो संबंधित व्यक्ति को 30% की दर से कर का भुगतान और इसी के बराबर दंड राशि का भुगतान करना पड़ता था।
  • इसके इतर संपत्ति को घोषित न करने के मामले में 30% की दर से कर अधिरोपण के साथ-साथ छिपाए गए कर की राशि की तीन गुना राशि का भुगतान या अघोषित आय के 90% भाग या परिसंपत्ति के मूल्य का भुगतान का प्रावधान किया गया है।
  • अधिनियम में जान-बूझकर की गई कर चोरी के लिये 3-10 साल की जेल की सज़ा का प्रावधान है।

अघोषित आय से संबंधित पहल:

आगे की राह

  • बैंक लेन-देन को प्रोत्साहित करना:
  • चुनाव सुधार:
    • चुनावों में धनबल को रोकने के लिये उपयुक्त सुधारों की आवश्यकता है, क्योंकि चुनाव काले धन के उपयोग के सबसे बड़े स्रोतों में से एक है।
  • कार्मिक प्रशिक्षण:
    • कर्मचारियों को घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों तरह के प्रशिक्षण प्रदान कर संबंधित क्षेत्र में प्रभावी कार्रवाई करने में मदद मिल सकती है।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (पीवाईक्यू):

प्रश्न. चर्चा कीजिये कि उभरती प्रौद्योगिकियाँ और वैश्वीकरण मनी लॉन्ड्रिंग में कैसे योगदान करते हैं। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर धनशोधन की समस्या से निपटने के लिये किये जाने वाले उपायों को विस्तार से समझाइये। (2021, मुख्य परीक्षा)

प्रश्न: दुनिया के दो सबसे बड़े अवैध अफीम उत्पादक राज्यों से भारत की नज़दीकी ने उसकी आंतरिक सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ा दी है। मादक पदार्थों की तस्करी और अन्य अवैध गतिविधियों जैसे- बंदूक रखना, धनशोधन और मानव तस्करी के बीच संबंधों की व्याख्या कीजिये। इसे रोकने के लिये क्या उपाय किये जाने चाहिये? (2018, मुख्य परीक्षा)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

मसौदा चिकित्सा उपकरण विधेयक

प्रिलिम्स के लिये:

औषधि चिकित्सा उपकरण और प्रसाधन सामग्री विधेयक 2022, चिकित्सा उपकरण तकनीकी सलाहकार बोर्ड, ई-फार्मेसी।

मेन्स के लिये:

औषधि चिकित्सा उपकरण और प्रसाधन सामग्री विधेयक 2022, ई-फार्मेसी।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने प्रस्तावित औषधि चिकित्सा उपकरण और प्रसाधन सामग्री विधेयक, 2022 का मसौदा जारी किया, जो मौजूदा औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 तथा अन्य कई नियमों को प्रतिस्थापित कर देगा।

  • यह चिकित्सा उपकरणों के लिये एक अलग विनियमन बनाने पर केंद्रित है, जो नैदानिक परीक्षण या जाँच के दौरान आने वाली चोट और मृत्यु के लिये जुर्माने और कारावास का प्रावधान करता है और ई- फार्मेसियों के विनियमन का प्रयास करता है।

चिकित्सा उपकरण:

  • चिकित्सा उपकरण उद्योग इंजीनियरिंग और चिकित्सा का एक अनूठा मिश्रण है। इसमें उन मशीनों का निर्माण करना शामिल है जिनका उपयोग जीवन बचाने के लिये किया जाता है।
  • चिकित्सा उपकरणों में सर्जिकल उपकरण, डायग्नोस्टिक उपकरण जैसे- कार्डिएक इमेजिंग, सीटी स्कैन, एक्स-रे, मॉलिक्यूलर इमेजिग, एमआरआई और हाथ से प्रयोग किये जाने वाले उपकरणों सहित लाइफ सपोर्ट इक्विपमेंट जैसे- वेंटिलेटर आदि के साथ-साथ इम्प्लांट्स एवं डिस्पोज़ल तथा अल्ट्रासाउंड इमेजिंग शामिल हैं।

मसौदा विधेयक की मुख्य विशेषताएँ:

  • नैदानिक परीक्षण और जाँच हेतु प्रावधान:
    • उत्तराधिकारी को मुआवज़ा: यह लोगों या उनके कानूनी उत्तराधिकारियों को नैदानिक परीक्षणों और दवाओं तथा चिकित्सा उपकरणों की जाँच के दौरान चोट लगने या मौत होने पर मुआवज़े का प्रावधान करता है।
      • यह मसौदा जाँचकर्त्ताओं पर परीक्षण के कारण आने वाली किसी भी प्रकार के भी चोट के लिये चिकित्सकीय प्रबंधन की जिम्मेदारी भी आरोपित करता है।
    • दंड एवं जुर्माना: मुआवज़े का भुगतान नहीं करने पर कारावास का प्रावधा, और मुआवज़े की राशि को दोगुना करने का प्रावधान इसमें शामिल किया गया है।
    • नैदानिक परीक्षणों का निषेध: यह केंद्रीय लाइसेंसिंग प्राधिकरण की अनुमति के बिना दवाओं और चिकित्सा उपकरणों के नैदानिक परीक्षण या नैदानिक जाँच को प्रतिबंधित करता है।
      • यदि निर्धारित प्रावधानों का पालन नहीं किया जाता है तो यह जाँचकर्त्ताओं और परीक्षण या जाँच के प्रायोजकों को प्रतिबंधित करने का प्रावधान करता है।
  • मेडिकल डिवाइसेस टेक्निकल एडवाइज़री बोर्ड: ड्राफ्ट बिल में मौजूदा ड्रग टेक्निकल एडवाइज़री बोर्ड की तर्ज पर मेडिकल डिवाइसेस टेक्निकल एडवाइज़री बोर्ड बनाने का प्रावधान है, जिसमें इन उपकरणों की इंजीनियरिंग का तकनीकी ज्ञान रखने वाले और उद्योग के सदस्य होंगे।
    • स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों के अलावा बोर्ड में परमाणु ऊर्जा विभाग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, रक्षा अनुसंधान तथा विकास संगठन एवं बायोमेडिकल टेक्नोलॉजी, बायोमैटिरियल्स और पॉलिमर टेक्नोलॉजी के क्षेत्र के विशेषज्ञ होंगे।

संबंधित मुद्दे:

  • मसौदा मुख्य रूप से ई-फार्मेसी से जुड़े मुद्दों तथा वे मौजूदा नियमों का उल्लंघन कैसे करते हैं, से संबंधित है:
  • वर्ष 1940 के कानून में ऑनलाइन फ़ार्मेसी के नियमन का शायद ही कोई प्रावधान है।
    • वर्तमान में ये सभी ऑनलाइन फार्मेसियाँ कानून के दायरे से बाहर हैं, इनमें से ज़्यादातर के पास दुकानों या भंडारण इकाइयों के लाइसेंस हैं।
    • वे बिना प्रिस्क्रिप्शन के दवाएँ देती हैं।
    • उल्लंघन के मामले में नियामक प्राधिकरणों को पता नहीं है कि इन कंपनियों के खिलाफ कानून के किस प्रावधान के तहत मुकदमा दायर करना है।
    • कभी-कभी ये कंपनियाँ किसी दूसरे राज्य से लाइसेंस प्राप्त कर अन्य राज्य में काम करती थीं।

भारत के चिकित्सा उपकरण उद्योग की वर्तमान स्थिति:

  • परिचय:
    • भारत में चिकित्सा उपकरण उद्योग के मौजूदा बाज़ार का आकार 11 अरब अमेरिकी डॉलर है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के उभरते क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है।
    • भारत में चिकित्सा उपकरण उद्योग में बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ-साथ सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) शामिल हैं जो अभूतपूर्व पैमाने पर बढ़ रहे हैं।
    • चिकित्सा उपकरण क्षेत्र पिछले 3 वर्षों में 15% की CAGR के साथ लगातार बढ़ रहा है।
    • भारत में चिकित्सा उपकरण उद्योग वृद्धि के लिये तैयार है और वर्ष 2025 तक इस क्षेत्र के बाज़ार का आकार 50 बिलियन अमेरिकी डॅालर तक बढ़ने की उम्मीद है।
    • ब्राउनफील्ड और ग्रीनफील्ड सेटअप दोनों के लिये स्वचालित मार्ग के तहत 100% FDI की अनुमति है। मज़बूत FDI अंतर्वाह भारतीय बाज़ार में वैश्विक अभिकर्त्ताओं के भरोसे को दर्शाता है।
  • पहल:
    • चिकित्सा उपकरणों के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना:
      • चिकित्सा उपकरणों के निर्माण के लिये उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (PLI) घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और कैंसर देखभाल उपकरणों, रेडियोलॉजी तथा इमेजिंग उपकरणों, एनेस्थेटिक्स उपकरणों, प्रत्यारोपण आदि जैसे चिकित्सा उपकरणों के क्षेत्रों में बड़े निवेश को आकर्षित करने हेतु एक वित्तीय प्रोत्साहन का प्रस्ताव करती है।
    • चिकित्सा उपकरण पार्कों को बढ़ावा देना:
      • चिकित्सा उपकरण पार्कों को बढ़ावा देने का उद्देश्य बुनियादी ढाँचे के आधार को मज़बूत करना और घरेलू बाज़ार में चिकित्सा उपकरणों के लिये एक मज़बूत विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना है।
      • विश्व स्तरीय मानक परीक्षण और बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिये योजना के तहत अनुदान घरेलू उत्पादन हेतु गति का निर्माण करेगा और भारत में चिकित्सा उपकरणों की मूल्य शृंखला को मज़बूत करेगा।
        • इसके अतिरिक्त, इनके परिणामस्वरूप निर्माण की लागत में उल्लेखनीय रूप से कमी आने की उम्मीद है, जिससे देश में चिकित्सा उपकरणों की बेहतर पहुँच और क्षमता में वृद्धि होगी।
    • वर्ष 2014 में 'मेक इन इंडिया' अभियान के तहत चिकित्सा उपकरणों को एक ‘सनराइज़ सेक्टर के रूप में मान्यता दी गई है।

विधेयक की आवश्यकता

  • वर्तमान में देश में बेचे जाने वाले लगभग 80% चिकित्सा उपकरण, विशेष रूप से उच्च श्रेणी के उपकरणों का आयात किया जाता है।
  • अंतरिक्ष में भारतीय अभिकर्त्ताओं ने अब तक आमतौर पर कम लागत वाले उत्पादों, जैसे उपभोग्य एवं डिस्पोजेबल पर ध्यान केंद्रित किया है, जिससे विदेशी कंपनियों को उच्च मूल्य का हिस्सा मिल रहा है।
  • इसका लक्ष्य अगले 10 वर्षों में भारत की आयात निर्भरता को 80% से घटाकर लगभग 30% करना है और वर्ष 2047 तक चिकित्सा उपकरणों के लिये शीर्ष पाँच वैश्विक विनिर्माण केंद्रों में से एक बनना है।
  • इसका उद्देश्य चिकित्सा उपकरणों पर भारत के प्रति व्यक्ति खर्च को भी बढ़ाना है।
    • भारत में 47 अमेरिकी डॉलर की प्रति व्यक्ति खपत के वैश्विक औसत की तुलना में 3 अमेरिकी डॉलर पर चिकित्सा उपकरणों पर सबसे कम प्रति व्यक्ति खर्च है जो संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे विकसित देशों की प्रति व्यक्ति खपत 415 अमेरिकी डॉलर एवं जर्मनी की 313 अमेरिकी डॉलर की तुलना में काफी कम है।

आगे की राह

  • ई-फार्मेसियों को विनियमित करने के लिये मौजूदा नियमों, कानून में अधिक सरलता से बदलाव करने की आवश्यकता है।
  • बड़ी फार्मा कंपनियों के खिलाफ निवारक उपायों की ज़रूरत है क्योंकि नैदानिक परीक्षण के लिये नियम तो हैं लेकिन वे पर्याप्त नहीं है।
  • यदि कोई समस्या पाई जाती है तो दवाओं या उपकरणों को वापस करने का भी प्रावधान होना चाहिये।
  • पहुँच में वृद्धिं और आवश्यक दवाओं के तर्कसंगत उपयोग पर बल देना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

रामसर साइट्स

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में जलवायु परिवर्तन, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, आर्द्रभूमि और रामसर साइट, सतत् विकास, विश्व आर्द्रभूमि दिवस 2022, आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017

मेन्स के लिये:

आर्द्रभूमि- महत्त्व, खतरे, गिरावट का प्रभाव, वे उपाय जो आर्द्रभूमि की रक्षा के लिये किये जा सकते हैं

चर्चा में क्यों?

भारत की पाँच और आर्द्रभूमियों को रामसर साइट्स, या अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमियों में शामिल किया गया है, जिससे देश में अब ऐसे स्थलों की संख्या 54 हो गई।

 नई रामसर साइट्स:

  • करीकिली पक्षी अभयारण्य (तमिलनाडु):
    • यह अभयारण्य पाँच किलोमीटर चौड़ाई में फैला हुआ है और यह जलकाग, एग्रेट्स, ग्रे हेरॉन, ओपन-बिल स्टॉर्क, डार्टर, स्पूनबिल, व्हाइट एलबनिस, नाइट हेरॉन, ग्रेब्स, ग्रे पेलिकन आदि का घर है।
  • पल्लिकरनई मार्श रिज़र्व फॉरेस्ट (तमिलनाडु):
    • पल्लिकरनई मार्श दक्षिण भारत के कुछ और अंतिम शेष प्राकृतिक आर्द्रभूमि में से एक है। यह 250 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है जिसमें 65 आर्द्रभूमियाँ शामिल हैं।
  • पिचवरम मैंग्रोव (तमिलनाडु):
    • देश के अंतिम मैंग्रोव वनों में से एक।
    • इसमें जल के विशाल विस्तार के साथ मैंग्रोव वनों से आच्छादित एक द्वीप है।
  • साख्य सागर (मध्य प्रदेश):
  • पाला आर्द्रभूमि (मिज़ोरम):
    • यह जानवरों, पक्षियों और सरीसृपों की एक विस्तृत शृंखला का घर है।
    • इसकी भौगोलिक स्थिति इंडो-बर्मा जैवविविधता हॉटस्पॉट के अंतर्गत आती है इसलिये यह जानवरों और पौधों की प्रजातियों में समृद्ध है।
    • झील पलक वन्यजीव अभयारण्य का एक प्रमुख घटक है और यह अभयारण्य की प्रमुख जैवविविधता का समर्थन करती है।

रामसर मान्यता:

  • परिचय:
    • रामसर साइट रामसर कन्वेंशन के तहत अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की एक आर्द्रभूमि है, जिसे वर्ष 1971 में यूनेस्को द्वारा स्थापित एक अंतर-सरकारी पर्यावरण संधि 'वेटलैंड्स पर कन्वेंशन' के रूप में भी जाना जाता है और इसका नाम ईरान के रामसर शहर के नाम पर रखा गया है, जहाँ उस वर्ष सम्मेलन पर हस्ताक्षर किये गए थे।
    • रामसर मान्यता दुनिया भर में आर्द्रभूमि की पहचान है जो अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के हैं, खासकर अगर वे जलपक्षी (पक्षियों की लगभग 180 प्रजातियों) को आवास प्रदान करते हैं।
    • ऐसी आर्द्रभूमियों के संरक्षण और उनके संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग में अंतर्राष्ट्रीय हित और सहयोग शामिल है।
    • पश्चिम बंगाल में सुंदरबन भारत का सबसे बड़ा रामसर स्थल है।
    • भारत की रामसर आर्द्रभूमि, 18 राज्यों में देश के कुल आर्द्रभूमि क्षेत्र के 11,000 वर्ग किमी. में फैली हुई है।
    • किसी अन्य दक्षिण एशियाई देश में उतने स्थल नहीं हैं, हालाँकि इसका भारत की भौगोलिक विस्तार और उष्णकटिबंधीय विविधता से बहुत कुछ लेना-देना है।
  • मानदंड: रामसर साइट होने के लिये नौ मानदंडों में से एक को पूरा किया जाना चाहिये।
    • मानदंड 1: यदि इसमें उपयुक्त जैव-भौगोलिक क्षेत्र के भीतर पाए जाने वाले प्राकृतिक या निकट-प्राकृतिक आर्द्रभूमि प्रकार का प्रतिनिधि, दुर्लभ या अद्वितीय उदाहरण है।
    • मानदंड 2: यदि यह कमज़ोर, लुप्तप्राय या गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों या संकटग्रस्त पारिस्थितिक समुदायों का समर्थन करता है।
    • मानदंड 3: यदि यह किसी विशेष जैव-भौगोलिक क्षेत्र की जैविक विविधता को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण पौधों और/या पशु प्रजातियों की आबादी का समर्थन करता है।
    • मानदंड 4: यदि यह पौधों और/या पशु प्रजातियों को उनके जीवन चक्र में एक महत्त्वपूर्ण चरण में समर्थन देता है या प्रतिकूल परिस्थितियों के दौरान आश्रय प्रदान करता है।
    • मानदंड 5: यदि यह नियमित रूप से 20,000 या अधिक जलपक्षियों का समर्थन करता है।
    • मानदंड 6: यदि यह नियमित रूप से एक प्रजाति या वाटरबर्ड की उप-प्रजाति की आबादी में 1% व्यक्तियों का समर्थन करता है।
    • मानदंड 7: यदि यह स्वदेशी मछली उप-प्रजातियों, प्रजातियों या परिवारों, जीवन-इतिहास चरणों, प्रजातियों की अंतः क्रिया और/या आबादी के एक महत्त्वपूर्ण अनुपात का समर्थन करता है जो आर्द्रभूमि के लाभ और/या मूल्यों के प्रतिनिधि हैं और इस प्रकार वैश्विक जैविक विविधता में योगदान करते हैं।
    • मानदंड 8: यदि यह मछलियों, स्पॉन ग्राउंड, नर्सरी और/या प्रवास पथ के लिये भोजन का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है, जिस पर या तो आर्द्रभूमि के भीतर या अन्य जगहों पर मछली का स्टॉक निर्भर करता है।
    • मानदंड 9: यदि यह नियमित रूप से प्रजाति या आर्द्रभूमि-निर्भर गैर एवियन पशु प्रजातियों की उप-प्रजातियों की आबादी के 1% का समर्थन करता है।
  • महत्त्व:
    • रामसर टैग आर्द्रभूमि के एक अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क को विकसित करने और बनाए रखने में मदद करता है जो वैश्विक जैविक विविधता के संरक्षण तथा उनके पारिस्थितिकी तंत्र घटकों, प्रक्रियाओं एवं लाभों के रखरखाव के माध्यम से मानव जीवन को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • स्थलों को अभिसमय के सख्त दिशा-निर्देशों के तहत संरक्षित किया जाता है।

आर्द्रभूमि:

  • परिचय:
    • आर्द्रभूमि वे पारिस्थितिक तंत्र हैं जो मौसमी या स्थायी रूप से जल से संतृप्त या भरे हुए होते हैं।
    • इनमें मैंग्रोव, दलदल, नदियाँ, झीलें, डेल्टा, बाढ़ के मैदान और बाढ़ के जंगल, चावल के खेत, प्रवाल भित्तियाँ, समुद्री क्षेत्र जहाँ निम्न ज्वार 6 मीटर से अधिक गहरे नहीं होते तथा इसके अलावा मानव निर्मित आर्द्रभूमि जैसे- अपशिष्ट जल उपचारित जलाशय शामिल हैं।
    • यद्यपि ये भू-सतह के केवल 6% हिस्से हो ही कवर करते हैं। सभी पौधों और जानवरों की प्रजातियों का 40% आर्द्रभूमियों में ही पाया जाता है या वे यहाँ प्रजनन करते हैं।
  • महत्त्व:
    • जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में सहायक:
      • आर्द्रभूमियाँ जलवायु और भूमि-उपयोग-मध्यस्थ GHG उत्सर्जन को कम करके और वातावरण से CO2 को सक्रिय रूप से एकत्र करने की क्षमता को बढ़ाकर CO2 (कार्बन डाइऑक्साइड), CH4 (मीथेन), N2O (नाइट्रस ऑक्साइड) तथा ग्रीनहाउस गैस (GHG) सांद्रता को स्थिर करने में सहायता करती हैं।
      • आर्द्रभूमियाँ समुद्र तटों की रक्षा करके बाढ़ जैसी आपदाओं के जोखिम को कम करने में भी मदद करती हैं।
    • कार्बन संग्रहण:
      • आर्द्रभूमि के रोगाणु, पौधे और वन्यजीव, जल, नाइट्रोजन और सल्फर के वैश्विक चक्रों का हिस्सा हैं।
      • आर्द्रभूमि कार्बन को कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में वातावरण में छोड़ने के बजाय अपने वृक्ष समुदायों और मृदा के भीतर संग्रहीत करती है।
    • पीटलैंड का महत्त्व:
      • 'पीटलैंड' शब्द पीट मृदा और सतह पर आर्द्रभूमि को संदर्भित करता है।
      • वे दुनिया की भूमि की सतह का सिर्फ 3% हिस्सा हैं, लेकिन वनों की तुलना में दोगुना कार्बन जमा करते हैं, इस प्रकार जलवायु संकट, सतत् विकास और जैवविविधता पर वैश्विक प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
      • पीटलैंड दुनिया के सबसे बड़े कार्बन भंडारों में से एक है, जो भारत में विरल है और इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
    • प्रवासी पक्षियों हेतु स्वर्ग:
      • लाखों प्रवासी पक्षी भारत में आते हैं और आर्द्रभूमि इस वार्षिक घटना के लिये महत्त्वपूर्ण है।
      • पारिस्थितिक रूप से आर्द्रभूमि पर निर्भर प्रवासी जलपक्षी अपने मौसमी प्रवास के माध्यम से महाद्वीपों, गोलार्द्धों संस्कृतियों और समाजों को जोड़ते हैं।
      • आर्द्रभूमि समुदायों की विविधता पक्षियों के लिये आवश्यक ठहराव की सुविधा प्रदान करती है।
    • सांस्कृतिक और पर्यटन महत्त्व:
      • आर्द्रभूमि का भारतीय संस्कृति और परंपराओं से भी गहरा संबंध है।
      • मणिपुर में लोकटक झील स्थानीय लोगों द्वारा "इमा" (माँ) के रूप में पूजनीय है, जबकि सिक्किम की खेचोपलरी झील "इच्छा पूरी करने वाली झील" के रूप में लोकप्रिय है।
      • छठ पूजा का उत्तर भारतीय त्योहार लोगों, संस्कृति, जल और आर्द्रभूमि के जुड़ाव की सबसे अनोखी अभिव्यक्तियों में से एक है।
      • कश्मीर में डल झील, हिमाचल प्रदेश में खज्जियार झील, उत्तराखंड में नैनीताल झील और तमिलनाडु में कोडाइकनाल लोकप्रिय पर्यटन स्थल हैं।
  • खतरा:
    • मानव गतिविधियाँ:
    • नगरीकरण:
      • शहरी केंद्रों के पास स्थित आर्द्रभूमि को आवासीय, औद्योगिक और वाणिज्यिक सुविधाओं में वृद्धि के कारण विकासात्मक दबाव का सामना करना पड़ रहा है।
      • नगरीय आर्द्रभूमियों से घिरे क्षेत्रों में समुद्र के स्तर में वृद्धि की स्थिति में तटीय दबाव के बढ़ने से अंततः आर्द्रभूमि का नुकसान हो सकता है।
    • जलवायु परिवर्तन:
      • जलवायु परिवर्तन और इससे जुड़े कारकों तथा दबावों से आर्द्रभूमि की भेद्यता बढ़ने की अत्यधिक संभावना है।
      • तापमान में वृद्धि, वर्षा में बदलाव, तूफान, सूखा और बाढ़ की आवृत्ति में वृद्धि, वायुमंडलीय CO2 सांद्रता में वृद्धि और समुद्र के स्तर में वृद्धि भी आर्द्रभूमि को प्रभावित कर सकती है।
    • अनुकूलन क्षमता पर विपरीत प्रभाव:
      • पारिस्थितिक तंत्रों पर प्रतिकूल प्रभावों की आशंका के कारण आर्द्रभूमि की अनोकूलन की क्षमता में भी कमी आने की संभावना है।
      • उदाहरण के लिये नदी के ऊपरी हिस्सों में मीठे या स्वच्छ जल के भंडारण को बढ़ाने के लिये जलीय संरचनाओं का निर्माण, तटीय आर्द्रभूमि में लवणीकरण के जोखिम को और बढ़ा सकता है।

आगे की राह

  • विकास नीतियों, शहरी नियोजन और जलवायु परिवर्तन शमन में आर्द्रभूमि की पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है।
    • इस संदर्भ में स्मार्ट सिटी मिशन और कायाकल्प एवं शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन जैसी महानगरीय योजनाओं को आर्द्रभूमि के स्थायी प्रबंधन के पहलुओं से जोड़ने की आवश्यकता है।
    • आगामी विकास और गरीबी उन्मूलन को समायोजित करते हुए सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये अनुकूलित शहरों के निर्माण के महत्त्वाकांक्षी उद्देश्य को प्राप्त करने में आर्द्रभूमि द्वारा प्रदत्त लाभ और सेवाएँ महत्त्वपूर्ण हैं।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

भारतीय ध्वज संहिता

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय ध्वज संहिता, मौलिक कर्तव्य, राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय प्रतीकों का महत्त्व, राष्ट्रीय ध्वज का विकास, राष्ट्रीय ध्वज के लिये नियम और विनियम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने घोषणा की है कि राष्ट्रीय ध्वज ‘‘जहाँ ध्वज खुले में प्रदर्शित किया जाता है या किसी नागरिक के घर पर प्रदर्शित किया जाता है, इसे दिन-रात फहराया जा सकता है।’’

  • सरकार ने इससे पहले मशीन से बने और पॉलिएस्टर के झंडे के उपयोग की अनुमति देने के लिये ध्वज संहिता में संशोधन किया था।
  • सरकार ने हर घर तिरंगा अभियान शुरू करने के साथ ही गृह मंत्रालय ने भारतीय ध्वज संहिता, 2002 में संशोधन किया है ताकि रात में भी राष्ट्रीय ध्वज को फहराया जा सके।

भारतीय ध्वज संहिता, 2002:

  • इसने ध्वज के सम्मान और उसकी गरिमा को बनाए रखते हुए तिरंगे के अप्रतिबंधित प्रदर्शन की अनुमति दी।
  • ध्वज संहिता, ध्वज के सही प्रदर्शन को नियंत्रित करने वाले पूर्व मौजूदा नियमों को प्रतिस्थापित नहीं करती है।
    • हालाँकि यह पिछले सभी कानूनों, परंपराओं और प्रथाओं को एक साथ लाने का प्रयास था।
  • भारतीय ध्वज संहिता, 2002 को तीन भागों में बाँटा गया है:
    • पहले भाग में राष्ट्रीय ध्वज का सामान्य विवरण है।
    • दूसरे भाग में जनता, निजी संगठनों, शैक्षिक संस्थानों आदि के सदस्यों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन के विषय में बताया गया है।
    • संहिता का तीसरा भाग केंद्र और राज्य सरकारों तथा उनके संगठनों और अभिकरणों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराने के विषय में जानकारी देता है।
  • इसमें उल्लेख है कि तिरंगे का उपयोग व्यावसायिक उद्देश्यों के लिये नहीं किया जा सकता है।
  • इसके अलावा ध्वज का उपयोग उत्सव के रूप में या किसी भी प्रकार की सजावट के प्रयोजनों के लिये नहीं किया जाना चाहिये।
  • आधिकारिक प्रदर्शन के लिये केवल भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा निर्धारित विनिर्देशों के अनुरूप चिह्न वाले झंडे का उपयोग किया जा सकता है।

हर घर तिरंगा अभियान:

  • 'हर घर तिरंगा' आज़ादी का अमृत महोत्सव के तत्त्वावधान में लोगों को तिरंगा घर लाने और भारत की आज़ादी के 75वें वर्ष पर इसे फहराने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु एक अभियान है।
  • ध्वज के साथ हमारा संबंध हमेशा व्यक्तिगत से अधिक औपचारिक और संस्थागत रहा है।
  • स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में एक राष्ट्र के रूप में ध्वज को सामूहिक रूप से घर पर फहराना न केवल तिरंगे से व्यक्तिगत संबंध स्थापित करना है, बल्कि यह राष्ट्र-निर्माण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का प्रतीक भी बन जाता है।
  • इस पहल का उद्देश्य लोगों के दिलों में देशभक्ति की भावना जगाना और भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना है।

भारत का राष्ट्रीय ध्वज:

  • परिचय:
    • 1906:
      • ऐसा माना जाता है कि पहला राष्ट्रीय ध्वज, जिसमें लाल, पीले और हरे रंग की तीन क्षैतिज पट्टियाँ शामिल थीं, 7 अगस्त 1906 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में लोअर सर्कुलर रोड के पास पारसी बागान स्क्वायर पर फहराया गया था।
    • 1921:
      • बाद में वर्ष 1921 में स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वेंकय्या ने महात्मा गांधी से मुलाकात की और ध्वज के एक मूल डिज़ाइन का प्रस्ताव रखा, जिसमें दो लाल और हरे रंग की पट्टियाँ शामिल थीं।
    • 1931:
      • कई बदलावों से गुज़रने के बाद वर्ष 1931 में कराची में कॉन्ग्रेस कमेटी की बैठक में तिरंगे को हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया था।
    • 1947:
      • 22 जुलाई, 1947 को हुई संविधान सभा की बैठक के दौरान भारतीय ध्वज को उसके वर्तमान स्वरूप में अपनाया गया था।
  • भारतीय तिरंगे से संबंधित नियम:
    • प्रतीक और नाम (अनुचित उपयोग रोकथाम) अधिनियम, 1950:
      • यह राष्ट्रीय ध्वज, सरकारी विभाग द्वारा उपयोग किये जाने वाले चिह्न, राष्ट्रपति या राज्यपाल की आधिकारिक मुहर, महात्मा गांधी और प्रधानमंत्री के चित्रमय निरूपण तथा अशोक चक्र के उपयोग को प्रतिबंधित करता है।
  • राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम, 1971:
    • यह राष्ट्रीय ध्वज, संविधान, राष्ट्रगान और भारतीय मानचित्र सहित देश के सभी राष्ट्रीय प्रतीकों के अपमान को प्रतिबंधित करता है।
    • यदि कोई व्यक्ति अधिनियम के तहत निम्नलिखित अपराधों में दोषी ठहराया जाता है, तो वह 6 वर्ष की अवधि के लिये संसद एवं राज्य विधानमंडल के चुनाव लड़ने हेतु अयोग्य हो जाता है।
      • राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करना।
      • भारत के संविधान का अपमान करना।
      • राष्ट्रगान के गायन को रोकना।
    • संविधान का भाग IV-A:
      • संविधान का भाग IV-A (जिसमें केवल एक अनुच्छेद 51-A शामिल है) ग्यारह मौलिक कर्तव्यों को निर्दिष्ट करता है।
      • अनुच्छेद 51 A (a) के अनुसार, भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों एवं संस्थानों, राष्ट्रीय ध्वज तथा राष्ट्रगान का सम्मान करे।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. आंध्र प्रदेश के मदनपल्ले के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही है?

(a) यहांँ पिंगली वेंकैया ने तिरंगे (भारतीय राष्ट्रीय ध्वज) को डिज़ाइन किया था।
(b) यहाँ पट्टाभि सीतारमैया ने आंध्र प्रदेश में भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व किया।
(C) यहांँ रबींद्रनाथ टैगोर ने राष्ट्रगान का अनुवाद बांग्ला से अंग्रेज़ी में किया।
(D) यहांँ मैडम ब्लावात्स्की और कर्नल ओल्कॉट ने सबसे पहले थियोसोफिकल सोसायटी का मुख्यालय स्थापित किया।

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • मूल गीत 'जन गण मन' (राष्ट्रगान) बांग्ला में लिखा गया था।
  • गीत का बांग्ला से अंग्रेज़ी में अनुवाद करने का विचार रबींद्रनाथ टैगोर को तब आया जब वे आयरिश कवि जेम्स एच. कजिन्स के निमंत्रण पर बेसेंट थियोसोफिकल कॉलेज का दौरा कर रहे थे। उन्होंने आंध्र प्रदेश के चित्तूर ज़िले के एक छोटे से शहर मदनपल्ले में अपने प्रवास के दौरान इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद किया।
  • भारत की संविधान सभा द्वारा जन गण मन को 24 जनवरी, 1950 को आधिकारिक तौर पर भारत के राष्ट्रगान के रूप में उद्घोषित किया गया था।

अतः कथन (C) सही उत्तर है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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