ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 24 May, 2025
  • 17 min read
शासन व्यवस्था

सर्वोच्च न्यायालय ने स्थायी उपभोक्ता निवारण निकायों की मांग की

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, ई-कॉमर्स, राज्य की नीति के निदेशक सिद्धांत, केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण, डार्क पैटर्न

मेन्स के लिये:

भारत में उपभोक्ता संरक्षण का संवैधानिक और विधिक संरचना, उपभोक्ता अधिकार प्रवर्तन, डिजिटल अर्थव्यवस्था और ई-कॉमर्स का उपभोक्ता अधिकारों पर प्रभाव

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड

चर्चा में क्यों? 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने केंद्र से उपभोक्ता विवादों के लिये स्थायी न्यायिक निकाय स्थापित करने का आग्रह किया, जिसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया कि उपभोक्ता अधिकार संवैधानिक रूप से संरक्षित हैं और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, (CPA) 1986 के कार्यान्वयन में अंतराल के कारण उन्हें एक स्थायी संरचना की आवश्यकता है।

स्थायी उपभोक्ता विवाद समाधान निकाय की क्या आवश्यकता है?

  • स्थायित्व का न्यायिक समर्थन: सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उपभोक्ता आयोगों में अस्थायी नियुक्तियाँ देरी और अक्षमता का कारण बनती हैं।
  • इसने पूर्णकालिक पीठासीन अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ स्थायी निकाय स्थापित करने की अनुशंसा की, संभवतः वर्तमान न्यायाधीशों की अध्यक्षता में। इससे निरंतरता, व्यावसायिकता और बेहतर न्याय प्रदान करना सुनिश्चित होगा।
  • प्रणालीगत लंबितता और विलंब: राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) के अनुसार, वर्ष 2023 तक विभिन्न निकायों में 5.5 लाख से अधिक मामले लंबित थे।

    • उपभोक्ता परिषदों में रिक्त पदों और निम्नस्तरीय डिजिटल बुनियादी ढाँचे की समस्या है, जिसके परिणामस्वरूप मामलों में देरी होती है। समय पर उपभोक्ता निवारण हेतु पर्याप्त स्टाफिंग और बुनियादी ढाँचा आवश्यक है।
      • डिजिटल और सीमा-पार उपभोक्ता विवादों में वृद्धि: भारत का ई-कॉमर्स क्षेत्र वर्ष 2026 तक 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है और त्वरित वाणिज्य वर्ष 2029 तक 9.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने की संभावना है, जिसके साथ ऑनलाइन धोखाधड़ी, डेटा गोपनीयता, सेवा की कमियों और सीमा-पार उपभोक्ता विवादों से संबंधित शिकायतों में भी वृद्धि होगी।
    • वर्तमान में उपलब्ध उपभोक्ता निकायों में अक्सर नई चुनौतियों से निपटने के लिये तकनीकी विशेषज्ञता और अधिकार क्षेत्र संबंधी स्पष्टता का अभाव होता है। बेहतर उपभोक्ता संरक्षण हेतु आधुनिक और डिजिटल कानूनों में न्यायाधीशों और विशेषज्ञों के साथ एक निवारण निकाय आवश्यक है।

भारत में उपभोक्ता संरक्षण के संवैधानिक और कानूनी आधार क्या हैं?

  • उपभोक्ता का अधिकार: यह वस्तुओं या सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, क्षमता, शुद्धता, मूल्य और मानकों के संबंध में सटीक जानकारी प्राप्त करने और अनुचित प्रथाओं से संरक्षित होने का अधिकार है।
  • उपभोक्ता संरक्षण के लिये संवैधानिक समर्थन: भारत में उपभोक्ता संरक्षण संविधान के भाग IV के तहत राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों (DPSP) में निहित है, जो कल्याण-उन्मुख कानून के लिये नैतिक और संवैधानिक आधार प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 37: इसमें कहा गया है कि यद्यपि DPSP कानूनी रूप से लागू करने योग्य नहीं हैं, फिर भी वे शासन के लिये मौलिक हैं और राज्य को कानून निर्माण में इनका पालन करना चाहिये। 

    • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 और इसके पहले के संस्करण इन्हीं सिद्धांतों पर आधारित हैं।

    • अनुच्छेद 47: राज्य को पोषण, जीवन स्तर और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करना चाहिये तथा औषधीय प्रयोजनों को छोड़कर हानिकारक मादक पदार्थों के सेवन पर प्रतिबंध लगाना चाहिये।

  • उपभोक्ता अधिकारों के संरक्षण हेतु कानून:

    • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, (CPA) 1986: इसे भारत में उपभोक्ताओं की सुरक्षा और राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तर पर उपभोक्ता परिषदों के माध्यम से विवादों को सुलझाने के लिये अधिनियमित किया गया था। यह मिलावटी उत्पादों और भ्रामक विज्ञापनों जैसे मुद्दों को संबोधित करता है।
      • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 उपभोक्ताओं को छह प्रमुख अधिकार प्रदान करता है: सुरक्षा का अधिकार, सूचित किये जाने का अधिकार, चयन का अधिकार, सुनवाई का अधिकार, निवारण का अधिकार और उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार।
      • 1986 के अधिनियम में सीमाएँ थीं, इसमें ऑनलाइन लेनदेन, उत्पाद दायित्व, अनुचित अनुबंध और वैकल्पिक विवाद समाधान के प्रावधान नहीं थे।
  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019: इसने आधुनिक उपभोक्ता चुनौतियों का समाधान करने के लिये वर्ष 1986 के अधिनियम की जगह ली। इसने सभी व्यापारिक और उद्यम लेनदेन के लिये कवरेज का विस्तार किया, नए अनुचित व्यापार प्रथाओं को जोड़ा, उत्पाद दायित्व को शामिल किया तथा अनुचित अनुबंधों को विनियमित किया। 
  • इस अधिनियम ने प्रत्यक्ष बिक्री और ई-कॉमर्स के लिये नियम प्रस्तुत किये, सभी स्तरों पर मध्यस्थता प्रकोष्ठों को अनिवार्य बनाया, तथा उपभोक्ता अधिकारों को लागू करने हेतु केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) की स्थापना की।
  • भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) अधिनियम, 2016: भारतीय मानक ब्यूरो (BIS), भारत का राष्ट्रीय मानक निकाय, उत्पाद सुरक्षा और गुणवत्ता सुनिश्चित करता है।..
    • यह अधिनियम महत्त्वपूर्ण उत्पादों के लिये प्रमाणन को अनिवार्य बनाता है तथा अनुपालन न करने पर उत्पाद को वापस लेने तथा दंड लगाने का प्रावधान करता है।
    • विधिक मापविज्ञान अधिनियम, 2009: वाणिज्यिक लेन-देन में उपयोग किये जाने वाले वज़न और माप में सटीकता सुनिश्चित करता है। यह निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं को बढ़ावा देता है, उपभोक्ताओं की सुरक्षा करता है और बाज़ार पारदर्शिता में सुधार करता है।
  • अन्य पहल: 
    • उपभोक्ता मामले विभाग (DOCA) ने ड्रिप मूल्य निर्धारण और झूठी तात्कालिकता जैसी भ्रामक ऑनलाइन रणनीति पर अंकुश लगाने हेतु  डार्क पैटर्न पर दिशानिर्देश 2023 जारी किये।
      • DOCA ने देश भर में “जागो ग्राहक जागो” अभियान चलाया है और उपभोक्ताओं को सशक्त बनाने के लिये शुभंकर “जागृति” को पेश किया है।
      • DOCA द्वारा लॉन्च किया गया ई-जागृति पोर्टल एक एकीकृत AI-संचालित प्लेटफॉर्म है जो सभी उपभोक्ता आयोगों में उपभोक्ता मामले दर्ज़ करने, निगरानी और वर्चुअल सुनवाई को सुव्यवस्थित करता है।
      • ई-दाखिल पोर्टल ऑनलाइन उपभोक्ता शिकायत दर्ज़ करने की सुविधा देता है।
    • राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन (NCH): टोल-फ्री नंबर 1915 के माध्यम से 17 भाषाओं में उपभोक्ता शिकायतों का निपटारा करती है।
    • राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस : भारत 24 दिसंबर को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस मनाता है, जो CPA , 1986 की स्मृति में मनाया जाता है।
    • GRAI: शिकायत निवारण मूल्यांकन सूचकांक (GRAI) , मानकीकृत शिकायत निवारण विश्लेषण के लिये केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण और प्रबंधन प्रणाली (CPGRAAMS) डेटा का उपयोग करके दक्षता, प्रतिक्रिया, डोमेन एवं प्रतिबद्धता के आधार पर केंद्रीय मंत्रालयों का मूल्यांकन करता है।

CPA, 1986 के तहत उपभोक्ता अधिकार

उपभोक्ता अधिकार

                            अर्थ

सुरक्षा का अधिकार

  • यह खतरनाक वस्तुओं और सेवाओं के विरुद्ध सुरक्षा सुनिश्चित करता है।

सूचना पाने का अधिकार

  • अनुचित व्यापार और दबावपूर्ण विक्रय से बचने के लिये उपभोक्ताओं को उत्पाद का सटीक विवरण मिलना चाहिये।

चुनने का अधिकार

  • यह उचित मूल्य पर गुणवत्तापूर्ण वस्तुओं तक पहुँच सुनिश्चित करता है, विशेष रूप से विविध विकल्पों वाले प्रतिस्पर्द्धी बाज़ारों में।

सुनवाई का अधिकार

  • यह सुनिश्चित करता है कि उपभोक्ता हितों पर उचित मंचों पर विचार किया जाए।

निवारण मांगने का अधिकार

  • यह उपभोक्ताओं को निवारण मांगने का अधिकार सुनिश्चित करता है, उन्हें समस्याओं की रिपोर्ट करनी चाहिये और उपभोक्ता निकायों से सहायता मांगनी चाहिये।

उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार

  • यह आजीवन उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार है, जो विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में शोषण को कम करने के लिये अत्यंत आवश्यक है।

भारत में उपभोक्ता संरक्षण के लिये चुनौतियाँ और सुझाए गए उपाय क्या हैं?

                  चुनौती

                उपाय

  • भारत में उपभोक्ता अधिकारों और निवारण तंत्रों के प्रति जागरूकता कम है, जिससे उपभोक्ताओं की न्याय प्राप्त करने तथा अपने अधिकारों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने की क्षमता सीमित हो जाती है।
  • "जागो ग्राहक जागो" जैसे व्यापक उपभोक्ता शिक्षा अभियानों को लागू और स्कूल पाठ्यक्रम में उपभोक्ता अधिकारों को शामिल करना चाहिये। 
  • शिकायत दर्ज कराने की प्रक्रिया को सरल बनाएँ, कागजी कार्यवाही और औपचारिकताओं को कम करके उपभोक्ता सक्रियता को प्रोत्साहित करना चाहिये। 
  • उत्पाद देयता प्रावधानों का असंगत प्रवर्तन दोषपूर्ण उत्पादों के लिये निर्माताओं को उत्तरदायी ठहराने में कठिनाई उत्पन्न करता है।
  • न्यायिक अधिकारियों को प्रशिक्षण दें, प्रवर्तन के लिये स्पष्ट दिशानिर्देश बनाएँ और मिशन कर्मयोगी के अंतर्गत अभियोजन अधिकारियों की क्षमता का निर्माण करना चाहिये।
  • राज्यों में शिकायत निवारण मंचों की बहुलता (जैसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली, उपभोक्ता अधिकार मंच) और शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ता कानूनों के असमान क्रियान्वयन के कारण ग्रामीण उपभोक्ताओं की पहुँच निवारण तंत्रों तक कम हो जाती है तथा उनकी संवेदनशीलता बढ़ जाती है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाओं का विस्तार करें जैसे कि ई-कॉमर्स तथा फिनटेक शिकायतों के लिये ऑनलाइन विवाद समाधान (ODR) को लागू करें और पंचायत कार्यालयों में शिकायत प्रकोष्ठ स्थापित करें ताकि अशिक्षित जनसंख्या  को सहायता मिल सके।
  • उपभोक्ता संरक्षण एजेंसियों के पास सीमित संसाधन हैं, जिससे प्रभावी कानून प्रवर्तन बाधित होता है और संरक्षण में अंतराल उत्पन्न होता है।
  • बजट में वृद्धि करें, स्टाफ की नियुक्ति करें और अवसंरचना को सुधारें। द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिश के अनुसार एक स्थायी, स्वतंत्र उपभोक्ता शिकायत निवारण संस्था की स्थापना करनी चाहिये।
  • प्रभावी उपभोक्ता निवारण तंत्र की कमी, जिसमें वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) के विकल्प भी शामिल हैं, न्यायालयों पर बोझ बढ़ाता है और न्याय में देरी करता है।
  • मुकदमेबाज़ी से पहले ADR को बढ़ावा दें। डॉ. टी.के. विश्वनाथन समिति (2024) ने कम लागत और समयबद्ध प्रणाली के साथ मध्यस्थता को मज़बूत करने तथा न्यायालय हस्तक्षेप को कम करने की सिफारिश की है।

निष्कर्ष

संवैधानिक रूप से समर्थित उपभोक्ता अधिकारों को बनाए रखने के लिये एक मज़बूत और स्थायी उपभोक्ता निवारण तंत्र महत्त्वपूर्ण है। यह प्रणालीगत देरी, डिजिटल युग की चुनौतियों का समाधान करेगा और समय पर विशेषज्ञ के नेतृत्व में न्याय सुनिश्चित करेगा। बुनियादी अवसंरचना, जागरूकता और प्रवर्तन को मज़बूत करना वास्तविक उपभोक्ता सशक्तीकरण की कुंजी है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में उपभोक्ता संरक्षण के संवैधानिक आधारों पर चर्चा कीजिये और स्थायी उपभोक्ता विवाद समाधान निकायों के लिये सर्वोच्च न्यायालय की सिफारिश के महत्त्व का विश्लेषण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न: भारत में कानून के प्रावधानों के तहत 'उपभोक्ताओं' के अधिकारों/विशेषाधिकारों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2012)

  1. उपभोक्ताओं को खाद्य परीक्षण के लिये नमूने लेने का अधिकार है।
  2.   जब कोई उपभोक्ता किसी उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कराता है तो कोई शुल्क नहीं देना होता है।
  3.   उपभोक्ता की मृत्यु के मामले में उसका कानूनी उत्तराधिकारी उसकी ओर से उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज करा सकता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: c


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
PrevNext
June 2025
SuMoTuWeThFrSa
1234567
891011121314
15161718192021
22232425262728
2930