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डेली न्यूज़

  • 23 Jun, 2020
  • 49 min read
भारतीय विरासत और संस्कृति

कोडुमानल महापाषाण कालीन स्थल

प्रीलिम्स के लिये:

कोडुमानल महापाषाण कालीन स्थल

मेन्स के लिये:

महापाषाण कालीन संस्कृति 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 'राज्य पुरातत्त्व विभाग'(State Department of Archaeology), चेन्नई ने तमिलनाडु के इरोड ज़िले में कोडुमानल (Kodumanal) खुदाई स्थल से 250 केयर्न-सर्कल (Cairn-Circles) की पहचान की है।

प्रमुख बिंदु:

  • केयर्न-सर्कल प्रागैतिहासिक पत्थरों की समानांतर रैखिक व्यवस्था होती है।
  • मेगालिथ या ‘महापाषाण’ एक बड़ा प्रागैतिहासिक पत्थर है जिसका उपयोग या तो अकेले या अन्य पत्थरों के साथ संरचना या स्मारक बनाने के लिये किया गया है।
  • महापाषाण या मेगालिथ शब्द का प्रयोग उन बड़ी पत्थर की संरचनाओं का उल्लेख करने के लिये किया जाता है जिनका निर्माण शवों को दफन किये जाने वाले स्थलों या स्मारक स्थलों के रूप में किया जाता था।

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कोडुमनाल (Kodumanal):

  • यह तमिलनाडु के इरोड ज़िले में स्थित एक गाँव है। 
  • यह स्थल एक महत्त्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है। 
  • यह कावेरी की सहायक नदी नॉयल नदी (Noyyal River) के उत्तरी तट पर अवस्थित है।

कोडुमनाल से प्राप्त प्रमुख अवशेष:

  • पहली बार किसी कब्र स्थल पर 10 से अधिक बर्तन तथा कटोरे की खोज की गई है। 
  • सामान्य रूप से किसी कब्र स्थल पर तीन या चार बर्तन मिलते हैं। 

खोज का महत्त्व:

  • पत्थरों की अधिक संख्या तथा पत्थरों के बड़े आकार से यह पता चलता है कि यह कब्र एक ग्राम प्रधान या समुदाय के प्रमुख की हो सकती है।
  • इससे मेगालिथिक संस्कृति में दफनाने के बाद अपनाई जाने वाली अनुष्ठान प्रक्रिया तथा मृत्यु के बाद के जीवन संबंधी अवधारणा का पता चलता है।
  • ऐसा हो सकता है कि लोगों का ऐसा विश्वास हो कि व्यक्ति को मृत्यु के बाद एक नया जीवन मिलता है, अत: कक्षों के बाहर अनाज और अनाज से भरे कटोरे रखे गए थे।
  • आयताकार कक्षनुमा ताबूत (एक पत्थर से निर्मित छोटे ताबूत जैसा बॉक्स) पत्थर के फलकों से बना होता है तथा पूरी कब्र को पत्थरों से घेरकर बनाया जाता है।
  • स्थल से प्राप्त अन्य अवशेष:
    •  एक जानवर की खोपड़ी' 
    • मोती; 
    • ताम्र गलाने वाली इकाइयाँ; 
    • एक कार्यशाला की मिट्टी की दीवारें;
    • कुम्हार के बर्तन; 
    • तमिल ब्राह्मी लिपि के लेख।

पूर्व में किये गए उत्खनन कार्य:

  • कोडुमानल के पूर्व में किये गए उत्खनन कार्यों से पता चला है कि इस ग्राम में बहु-जातीय समूह निवास करते थे।
  • यह स्थल 5 वीं शताब्दी पूर्व से प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व तक एक व्यापार-सह-औद्योगिक केंद्र था।

स्रोत: द हिंदू


भूगोल

जापान तथा चीन के बीच विवादित द्वीप

प्रीलिम्स के लिये:

सेनकाकू द्वीप विवाद 

मेन्स के लिये:

सेनकाकू द्वीप विवाद 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जापान की एक स्थानीय परिषद में चीन और ताइवान के साथ विवादित सेनकाकू द्वीपीय क्षेत्र में स्थित कुछ द्वीपों की प्रशासनिक स्थिति बदलने वाले विधेयक को मंज़ूरी दी गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • विधेयक के अनुसार, टोक्यो द्वारा नियंत्रित सेनकाकू द्वीप के पास स्थित एक द्वीप जिसे जापान में 'टोनोशीरो' (Tonoshiro) तथा ताइवान और जापान में दियोयस (Diaoyus) के नाम से जाना जाता है, का नाम बदलकर टोनोशीरो सेनकाकू (Tonoshiro Senkaku) कर दिया गया है ।
  • ओकिनावा द्वीप पर ‘इशिगाकी’ नामक एक नगर स्थित है। इशिगाकी नगर परिषद के एक हिस्से को टोनोशीरो के रूप में भी जाना जाता है, इससे लोगों में क्षेत्र को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रहती है। अत: इस भ्रम की स्थिति से बचने के लिये क्षेत्र के नाम में परिवर्तन किया गया है।

चीन की प्रतिक्रिया:

  • चीन, डियाओयू द्वीप तथा उससे संबद्ध क्षेत्र को अपनी सीमा में स्थित मानता है। चीन के अनुसार जापान द्वारा क्षेत्र की प्रशासनिक स्थिति में किया गया बदलाव चीन की क्षेत्रीय संप्रभुता का उल्लंघन करता है तथा चीन अपनी संप्रभुता की रक्षा करने के लिये दृढ़ है।
  • इसके अतिरिक्त चीन ने द्वीपों के आसपास के क्षेत्र में ‘जहाजों के बेड़े’ को भेज दिया है। 

ताइवान की प्रतिक्रिया:

  • ताइवान का कहना है कि डियाओयू द्वीपीय क्षेत्र उसके क्षेत्र का हिस्सा है तथा इन द्वीपों की प्रशासनिक स्थिति में किया जाने वाला किसी प्रकार का बदलाव ताइवान के लिये अमान्य है।

 सेनकाकू द्वीप विवाद:

  • अवस्थिति:
    • इस विवाद  का कारण पूर्वी चीन सागर में स्थित आठ निर्जन द्वीप हैं, जिनका कुल क्षेत्रफल 7 वर्ग किमी. है.
    • ये ताइवान के उत्तर-पूर्व, चीनी मुख्य भूमि के पूर्व में और जापान के दक्षिण-पूर्व प्रांत, ओकिनावा के दक्षिण-पश्चिम में स्थित हैं।

South-korea

  • पृष्ठभूमि:
    • सेनकाकू/डियाओयू द्वीपों को औपचारिक रूप से वर्ष 1895 से जापान द्वारा नियंत्रित किया जा रहा है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एक लघु अवधि के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा भी इस क्षेत्र को नियंत्रित किया गया था।
    • यहाँ के अनेक द्वीपों पर लोगों का निजी नियंत्रण रहा है। 
    • चीन ने वर्ष 1970 के दशक में इस क्षेत्र पर ऐतिहासिक अधिकारों का हवाला देते हुए सेनकाकू/दियाओयू द्वीपों पर दावे करना शुरू कर दिया। 
    • सितंबर, 2012 में जापान द्वारा एक निजी मालिक से विवादित द्वीपों को खरीदने पर तनाव फिर से शुरू हो गया।

विवादित क्षेत्र का आर्थिक महत्त्व:

  • यहाँ  संभावित तेल एवं प्राकृतिक गैस के भंडार हैं, 
  • प्रमुख शिपिंग मार्गों के पास स्थित है, 
  • समृद्ध मत्स्यन क्षेत्र में स्थित है।

विवाद का कारण:

  • यह क्षेत्र चीन-जापान-ताइवान के अतिव्यापी ‘विशेष आर्थिक क्षेत्र’ (Exclusive Economic Zone- EEZ) में स्थित है क्योंकि चीन और जापान को अलग करने वाले पूर्वी चीन सागर की लंबाई केवल 360 समुद्री मील  है, जबकि EEZ की लंबाई 200 समुद्री मील मानी जाती है।

अमेरिका की भूमिका:

  • वर्ष 2014 में अमेरिका ने यह स्पष्ट किया था जापान की सुरक्षा के लिये की गई 'अमेरिका-जापान सुरक्षा संधि' विवादित द्वीपों को भी कवर करती है। अत: सेनकाकू द्वीप विवाद में अमेरिका भी शामिल हो सकता है। 

निष्कर्ष:

  • बढ़ती राष्ट्रवादी भावना तथा राजनीतिक अविश्वास देशों को बड़े संघर्ष की ओर ले जा सकता है, अत: देशों को चाहिये कि वे विवाद का शांतिपूर्ण तरीके से समाधान निकालने का प्रयास करें।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

राज्यसभा चुनाव प्रक्रिया

प्रीलिम्स के लिये

राज्यसभा चुनाव प्रक्रिया, एकल संक्रमणीय मत प्रणाली, NOTA

मेन्स के लिये

राज्यसभा की शक्तियाँ एवं कार्य, राज्यसभा से संबंधित विभिन्न मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राज्यसभा के चुनाव संपन्न हुए हैं। ध्यातव्य है कि कुछ समय पूर्व कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के प्रकोप के कारण उत्पन्न स्थिति को देखते हुए कुछ सीटों पर मतदान स्थगित कर दिया गया था। 

प्रमुख बिंदु

  • जिन 19 सीटों पर मतदान का आयोजन किया गया, उनमें से लगभग सभी में मतदान का परिणाम काफी स्पष्ट रहा, हालाँकि मणिपुर में इस तथ्य को लेकर विवाद हुआ कि किसे चुनाव में मतदान की अनुमति दी जानी चाहिये तथा किसे नहीं।
  • इस प्रकार के विवाद मुख्य रूप राज्यसभा चुनावों से संबंधित नियमों की अलग-अलग व्याख्या के कारण उत्पन्न होते हैं।
  • ध्यातव्य है कि ऐसी कई विशेषताएँ हैं जो आम चुनावों और राज्यसभा के चुनावों को अलग करती हैं।

राज्यसभा सदस्यों के चयन की प्रक्रिया

  • नियमों के अनुसार, केवल राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य ही राज्यसभा चुनाव में मतदान कर सकते हैं। राज्य के विधायक प्रत्येक दो वर्ष में छह वर्ष के कार्यकाल के लिये राज्यसभा हेतु सदस्यों का चयन करते हैं।
  • उल्लेखनीय है कि राज्यसभा एक निरंतर चलने वाली संस्था है, यानी यह एक स्थायी संस्था है और इसका विघटन नहीं होता है, किंतु इसके एक-तिहाई सदस्य प्रत्येक दूसरे वर्ष सेवानिवृत्त होते हैं।
  • इसके अतिरिक्त इस्तीफे, मृत्यु या अयोग्यता के कारण उत्पन्न होने वाली रिक्तियों को उपचुनावों के माध्यम से भर जाता है, जिसके पश्चात् चुने गए लोग अपने पूर्ववर्तियों के शेष कार्यकाल को पूरा करते हैं।
  • नियमों के अनुसार, राज्यसभा चुनाव के लिये नामांकन दाखिल करने हेतु न्यूनतम 10 सदस्यों की सहमति अनिवार्य है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 80(4) के अनुसार, राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्त्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत के आधार पर होता है। 
    • अन्य शब्दों में कहें तो एक या एक से अधिक दलों से संबंधित सांसदों का एक दल अपनी पसंद के सदस्य का चुनाव कर सकता है, यदि उनके पास अपेक्षित संख्याएँ हों तो।
  • एकल संक्रमणीय मत प्रणाली में मतदाता एक ही वोट देता है, किंतु वह कई उम्मीदवारों को अपनी प्राथमिकता के आधार पर वोट देता है। अर्थात् वह बैलेट पेपर पर यह बताता है कि उसकी पहली वरीयता कौन है और दूसरी तथा तीसरी वरीयता कौन है। 
  • एक उम्मीदवार को जीतने के लिये पहली वरीयता के वोटों की एक निर्दिष्ट संख्या की आवश्यकता होती है। 
  • यदि पहले दौर की मतगणना में एक से अधिक उम्मीदवार निर्दिष्ट संख्या प्राप्त करने में विफल रहते हैं तो दूसरे दौर की मतगणना की जाती है।

राज्यसभा में नहीं होता गुप्त मतदान

  • राज्यसभा चुनावों के लिये खुली मतपत्र प्रणाली (Open Ballot System) होती है, किंतु इसके अंतर्गत खुलापन काफी सीमित रूप में होता है।
  • क्रॉस-वोटिंग की जाँच करने के लिये एक ऐसी व्यवस्था अपनाई गई, जिसमें प्रत्येक दल के विधायक को मतपेटिका में अपना मत डालने से पूर्व दल के अधिकृत एजेंट को दिखाना होता है।
  • नियमों के अनुसार, यदि एक विधायक द्वारा स्वयं के दल के अधिकृत एजेंट के अतिरिक्त किसी अन्य दल के एजेंट को मतपत्र दिखाया जाता है तो वह मत अमान्य हो जाएगा। वहीं अधिकृत एजेंट को मतपत्र न दिखाना भी मत को अमान्य कर देगा।

राज्यसभा और NOTA

  • भारत निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा 24 जनवरी, 2014 और 12 नवंबर, 2015 को दो परिपत्र जारी किये गए थे, जिसमें राज्यसभा चुनावों में नोटा (None of the Above- NOTA) के विकल्प के प्रयोग की बात की थी।
  • हालाँकि 21 अगस्त, 2018 को सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में जस्टिस ए.एम. खानविलकर तथा जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड की पीठ ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा था कि राज्यसभा चुनाव में नोटा का इस्तेमाल नहीं होगा।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि नोटा डीफेक्शन (Defection) को बढ़ावा देगा और इससे भ्रष्टाचार के लिये दरवाज़े खुलेंगे।
  • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, नोटा को सिर्फ प्रत्यक्ष चुनावों में ही लागू किया जाना चाहिये।

राज्यसभा 

  • राज्यसभा अपने नाम के अनुरूप ही राज्यों का एक सदन होता है, जो अप्रत्यक्ष रूप से राज्य के लोगों का प्रतिनिधित्त्व करता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 80 में राज्य सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 निर्धारित की गई है, जिनमें से 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये जाते हैं और 238 सदस्य राज्यों के और संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि होते हैं।
  • राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये जाने वाले सदस्य ऐसे व्यक्ति होते हैं, जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा जैसे विषयों के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव प्राप्त होता है।
  • राज्यसभा के सदस्यों की अर्हता
    • व्यक्ति भारत का नागरिक हो।
    • 30 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।
    • किसी लाभ के पद पर न हो।
    • विकृत मस्तिष्क का न हो।
    • यदि संसद विधि द्वारा कुछ और अर्हताएँ निर्धारित करे तो यह ज़रूरी है कि उम्मीदवार उसे भी धारण करे। 
  • ध्यातव्य है कि राज्यसभा, लोकसभा के निर्णयों की समीक्षा करने और सत्तापक्ष के निरंकुशतापूर्ण निर्णयों पर अंकुश लगाने में सहायता करता है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

मुख्यमंत्री श्रमिक योजना

प्रीलिम्स के लिये

मुख्यमंत्री श्रमिक योजना, मनरेगा, अय्यनकाली शहरी रोज़गार गारंटी योजना

मेन्स के लिये

ग्रामीण विकास में मनरेगा कार्यक्रम की भूमिका, प्रवासी श्रमिकों से संबंधित चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार के सामाजिक विकास कार्यक्रम मनरेगा (MGNREGA) के आधार पर झारखंड सरकार शहरी अकुशल श्रमिकों के लिये रोज़गार गारंटी योजना शुरू करने पर विचार कर रही है।

प्रमुख बिंदु

  • झारखंड सरकार की इस योजना के तहत शहरी श्रमिक कम-से-कम 100 दिन का रोज़गार प्राप्त कर सकेंगे।
  • ध्यातव्य है कि झारखंड सरकार की यह योजना अपने मूल उद्देश्य में भारत सरकार के महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम अर्थात् मनरेगा कार्यक्रम से पूरी तरह विपरीत है।
    • जहाँ एक ओर केंद्र सरकार के मनरेगा कार्यक्रम में मुख्य रूप से अकुशल श्रम करने के इच्छुक ग्रामीण वयस्कों को लक्षित किया गया है, वहीं झारखंड सरकार की इस योजना में राज्य के शहरी श्रमिकों को लक्षित किया गया है।
  • झारखंड के शहरी गरीबों को मौजूद संकट के दौर में आजीविका का एक साधन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शुरू की जा रही इस योजना का नाम मुख्यमंत्री श्रमिक (SHRAMIK- Shahri Rozgar Manjuri For Kamgar) योजना रखा जाएगा।
  • गौरतलब है कि इस योजना के तहत दी जाने वाली मज़दूरी राज्य में मनरेगा (MGNREGA) कार्यक्रम के तहत दी जा रही मज़दूरी से लगभग 40 प्रतिशत अधिक होगी। विदित हो कि झारखंड में मनरेगा कार्यक्रम के तहत प्रतिदिन 194 रुपए के हिसाब से भुगतान किया जाता है।
  • इस संबंध में तैयार किये गए मसौदे के अनुसार, योजना के तहत काम, मांग के आधार पर प्रदान किया जाएगा और इसमें काम को स्वच्छता, जल संचयन, वृक्षारोपण, सार्वजनिक निर्माण या मरम्मत और आश्रय गृहों के प्रबंधन जैसी विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया जाएगा।
  • मनरेगा की तरह झारखंड सरकार की योजना में भी बेरोज़गारी भत्ते का प्रावधान किया गया है, योजना के तहत बेरोज़गारी भत्ता तभी प्रदान किया जाएगा, जब कोई शहरी स्थानीय निकाय रोज़गार की मांग करने वाले व्यक्ति को 15 दिन के भीतर रोज़गार उपलब्ध कराने में विफल रहता है।
  • ध्यातव्य है कि इस कार्य के लिये शहरी स्थानीय निकायों (Urban Local Bodies-ULBs) को अलग से फंड प्रदान किया जाएगा।
  • कार्य पूरा होने के सात दिनों के भीतर राशि श्रमिकों के बैंक खाते में जमा कर दी जाएगी, जिससे योजना के तहत मज़दूरी के भुगतान में पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सकेगी।
  • योजना के मसौदे में स्पष्ट किया गया है कि किसी भी स्थिति में कार्य पूरा होने के पश्चात् 15 दिनों के भीतर मज़दूरी का भुगतान करना अनिवार्य होगा।

इससे पूर्व केरल ने शुरू की थी योजना

  • इस योजना के कार्यान्वयन के साथ ही शहरी गरीबों के लिये रोज़गार गारंटी योजना शुरू करने वाला झारखंड देश का दूसरा राज्य बन जाएगा, जबकि इससे पूर्व केवल केरल सरकार द्वारा इस प्रकार की व्यवस्था की गई थी। 
  • ध्यातव्य है कि केरल में ‘अय्यनकाली शहरी रोज़गार गारंटी योजना’ (Ayyankali Urban Employment Guarantee Scheme) का कार्यान्वयन किया जा रहा है। 
  • केरल सरकार की यह योजना भी मनरेगा (MGNREGA) के ही समान है, किंतु इसमें ग्रामीण श्रमिकों के स्थान पर शहरी गरीबों को लक्षित किया गया है। 
  • केरल सरकार की इस योजना में महिलाओं को खास प्राथमिकता दी गई है, योजना से संबंधित नियमों के अनुसार, योजना के कुल लाभार्थियों में से लगभग 50 प्रतिशत महिलाएँ होंगी।

योजना की आवश्यकता

  • भारत में यह एक बहुप्रचलित धारणा है कि गरीब का मतलब ग्रामीण होता है, जो कि आंशिक रूप से भले ही सही हो सकता है, किंतु पूर्ण रूप से सही नहीं है। 
  • इस धारणा के कारण देश में ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिये तो काफी योजनाएँ बनाई गई हैं, किंतु शहरी क्षेत्रों को केंद्र में रखकर को कोई भी योजना नहीं बनाई है।
  • ऐसे में जब भी कोई संकट आता है, तो इसके कारण देश की शहरी आबादी काफी अधिक प्रभावित होती है।

महत्त्व

  • एक अनुमान के अनुसार, राज्य के लगभग 13-14 लाख परिवार शहरी क्षेत्रों में रहते हैं, जिसमें से तकरीबन 15 प्रतिशत लोग आकस्मिक मज़दूर के रूप में कार्य करते हैं।
  • आँकड़ों के मुताबिक, कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के मद्देनज़र लागू किये गए लॉकडाउन के कारण झारखंड के शहरी क्षेत्रों के तकरीबन 25 प्रतिशत परिवार काफी बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं।
  • वहीं दूसरी ओर कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के 1 मई से अब तक झारखंड में लगभग पाँच लाख से अधिक प्रवासी श्रमिक अन्य क्षेत्रों से वापस लौट कर आए हैं, जिन्हें आजीविका उपलब्ध कराना राज्य सरकार के समक्ष एक बड़ी चुनौती बन गया है।
  • झारखंड समेत देश के विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने राज्य सरकार के इस कदम की सराहना की है। विशेषज्ञों के अनुसार, झारखंड सरकार की इस नई योजना के कार्यान्वयन से कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के प्रकोप के बाद शहरी क्षेत्रों लौटने वाले प्रवासी श्रमिकों को काफी मदद मिलेगी। 
    • उल्लेखनीय है कि झारखंड के राज्य ग्रामीण विकास विभाग द्वारा अब तक 2.5 लाख प्रवासी श्रमिकों का कौशल सर्वेक्षण किया गया है और इस सर्वेक्षण से यह ज्ञात हुआ है कि विभिन्न राज्यों से लौटे 30 प्रतिशत श्रमिक अकुशल श्रमिक हैं।

निष्कर्ष

झारखंड सरकार द्वारा शुरू की जा रही यह योजना मौजूदा परिस्थितियों के संदर्भ में एक सराहनीय कदम है, आवश्यक है कि राज्य सरकार द्वारा तैयार किये गए मसौदे पर सभी हितधारकों के साथ विचार विमर्श किया जाए और सभी उपयुक्त सुझावों के साथ इसमें सुधार कर इसे जल्द-से-जल्द लागू किया जाए, ताकि महामारी से प्रभावित गरीब श्रमिक को तत्काल इस योजना से लाभ प्राप्त हो सके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

वन्यजीव तस्करी

प्रीलिम्स के लिये:

राजस्व खुफिया निदेशालय, CITES के बारे में 

मेन्स के लिये:

विश्व स्तर पर वन्यजीव तस्करी रोकने के लिये किये गए उपाय 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘राजस्व खुफिया निदेशालय’ (Directorate of Revenue Intelligence-DRI) द्वारा एक वन्यजीव तस्करी समूह का खुलासा किया गया है जिसके तहत राजस्व खुफिया निदेशालय’ द्वारा कोलकाता एयरपोर्ट से दो लोगों को 22 विदेशी तोतों (Exotic Macaws) की विभिन्न प्रजातियों के साथ गिरफ्तार किया गया है।

Parrot

प्रमुख बिंदु:

  • ‘राजस्व खुफिया निदेशालय’ के अनुसार, ये पक्षी बांग्लादेश से कोलकाता के रास्ते तस्करी करके लाए जा रहे थे तथा इन्हें  बंगलुरु पहुँचाया जाना था।

राजस्व खुफिया निदेशालय:

  • राजस्व खुफिया निदेशालय एक भारतीय खुफिया एजेंसी है। 
  • यह भारत की एक प्रमुख तस्करी विरोधी खुफिया, जाँच एवं संचालन एजेंसी है।
  • इसके आलावा इस एजेंसी द्वारा ड्रग्स, सोना, हीरे, इलेक्ट्रॉनिक्स, विदेशी मुद्रा, और नकली भारतीय मुद्रा सहित वस्तुओं की तस्करी पर रोक लगाने का कार्य किया जाता है। 
  • राजस्व खुफिया निदेशालय, भारत सरकार के वित्त मंत्रालय, राजस्व विभाग में केंद्रीय अप्रत्यक्ष करों और सीमा शुल्क के तहत कार्य करता है।
  • इस तस्कर गिरोह को पकड़ने के लिये कोलकाता हवाई अड्डे पर  वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (Wildlife Crime Control Bureau- WCCB) तथा सीमा शुल्क विभाग (Customs Department) द्वारा इस सयुक्त अभियान को संचालित किया गया। 
  • विदेशी पक्षियों को कोलकाता के अलीपुर में स्थित प्राणी उद्यान को सौंप दिया गया है। 
  • जब्त किये गए इन पक्षियों में दुर्लभ तोते की कई प्रजातियाँ-हकिंच  मैकॉउ  (Hacinth Macaw), पेस्केट पैरट (Pesquet’s Parrot), सीवियर मैकॉउ (Severe Macaw) और हैनस मैकॉउ (Hahn’s Macaw) भी शामिल हैं।
  • ‘राजस्व खुफिया निदेशालय’ के अनुसार,  मादक पदार्थों की तस्करी, नकली सामान तथा मानव तस्करी के बाद अवैध रूप से वन्यजीवों के व्यापार को वैश्विक स्तर पर चौथे सबसे बड़े संगठित अपराध के रूप में शामिल किया जाता है।
  • भारत के पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर राज्य बांग्लादेश और म्यांमार की सीमाओं तथा थाईलैंड के निकट होने के कारण सीमा पार वन्यजीव तस्करी के लिये सर्वाधिक भेद्य माने जाते हैं।

संरक्षित प्रजातियों के लिये अंतर्राष्ट्रीय कानूनी प्रावधान:

  • तस्करी करके लाए गए इन पक्षियों को अंतर्राष्ट्रीय संधि के तहत संरक्षण प्राप्त है। 
  • अवैध रूप से आयातित इन पक्षियों को सीमा शुल्क अधिनियम की धारा-111 के तहत जब्त कर लिया गया है जो ‘वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन’-साइट्स (The Convention of International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora-CITES) के प्रावधानों तथा ‘विदेश व्यापार नीति’ के तहत संरक्षित हैं।

CITES:

  • वर्ष 1973 के वाशिंगटन सम्मेलन  में CITES पर सहमति बनी। 
  • यह समझौता 1 जुलाई, 1975 से लागू है। 
  • यह विश्व का सबसे बड़ा वन्य जीव संरक्षण समझौता है।
  • यह जीवों एवं उनके अंगों आदि के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रतिबंधित करता है।
  • यह विभिन्न राष्ट्रों को निर्देश भी देता है कि वे अपने राष्ट्र में अवैध जीव व्यापार  को नियंत्रित रखे।
  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 48 और 49 जंगली जानवरों, जानवरों से निर्मित सामान या इनके किसी अंग के व्यापार या वाणिज्य पर प्रतिबंध लगाती है।
  • ऐसे अपराध करने पर सात साल की जेल की सजा का प्रावधान है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

सबसे बड़े आईपीओ लॉन्च की तैयारी

प्रीलिम्स के लिये:

इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग, भारतीय जीवन बीमा निगम

मेन्स के लिये:

भारतीय जीवन बीमा निगम के IPO जारी करने का महत्त्व 

चर्चा में क्यों? 

भारत सरकार द्वारा वर्ष 2020 में ‘भारतीय जीवन बीमा निगम’(Life Insurance Corporation- LIC) के ‘इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग’ (Initial Public Offer-IPO) को जारी करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • देश के सबसे पुराने और सबसे बड़े जीवन बीमाकर्त्ता के आकार और पैमाने को देखते हुए भारतीय पूंजी बाज़ार में भारतीय जीवन बीमा निगम का IPO सबसे बड़ा होने की उम्मीद है क्योंकि LIC का IPO देश का सबसे बड़ा IPO माना जाता है।
  • वित्त मंत्रालय द्वारा हाल ही में LIC के प्रस्तावित IPO की प्रक्रिया में परामर्श देने के लिये फर्मों, निवेश बैंकरों एवं वित्तीय संस्थानों सहित लेन देन और सलाहकारों से आवदेन प्राप्त किये गए हैं ।
  • सरकार द्वारा  ‘निवेश और लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग’ (Department of Investment and Public Asset Management- DIPAM) की मदद से  LIC के IPO को ज़ारी करने से पहले दो सलाहकारों प्री-आईपीओ की नियुक्ति की मांग की गई है। जिन्हें कम से कम 5,000 करोड़ रूपए  के आकार के आईपीओ के लेन-देन का सफल प्रबंधन या कम से कम 15,000 करोड़ रूपए के पूंजी बाज़ार  के लेन-देन का सफलतापूर्वक प्रबंधन करने का अनुभव हो।

बीमा बाज़ार में  LIC का आकार और स्थिति:

  • केंद्र सरकार द्वारा IPO के माध्यम से LIC में अपनी इक्विटी/हिस्सेदारी का 5-10 प्रतिशत बेचने पर LIC के शेयर बिक्री सर्वाधिक  होने की उम्मीद की जा रही है।
  • वर्ष 2018-19 में 9.4 प्रतिशत की वृद्धि के साथ LIC की कुल संपत्ति 31.11 लाख करोड़ रूपए के उच्चतम स्तर पर रही थी।
    • LIC को वर्ष 2018-19 के दौरान अपने इक्विटी निवेश से 23,621 करोड़ रूपए का लाभ प्राप्त हुआ, जो पिछले वर्ष के 25,646 करोड़  रूपए से 7.89 प्रतिशत कम रहा था।
  • कुल प्रथम वर्ष के प्रीमियम (Total First-Year Premium ) में निगम की बाज़ार हिस्सेदारी 66.24 प्रतिशत तथा वर्ष 2018-19 में नई नीतियों में हिस्सेदारी 74.71 प्रतिशत रही।

समग्र विनिवेश रोडमैप में LIC की भूमिका:

  • बजट वर्ष 2020-21 में, सरकार द्वारा LIC के IPO को जारी करने के लिये एक योजना की घोषणा की गई थी । 
  • इस योजना के तहत स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से निजी, खुदरा एवं  संस्थागत निवेशकों को आईडीबीआई बैंक में सरकार की इक्विटी बेचने का प्रस्ताव दिया गया।
  • भारत सरकार को LIC और आईडीबीआई बैंक में अपनी हिस्सेदारी बेचने से 90,000 करोड़ रुपए और अन्य विनिवेश के माध्यम से 1.2 लाख करोड़ रूपए प्राप्त/जुटाने की उम्मीद है।
  • सरकार द्वारा तीन वर्ष पूर्व इससे पहले भी IPO के माध्यम से ‘जनरल इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन’ (General Insurance Corporation)और न्यू इंडिया एश्योरेंस (New India Assurance) के शेयरों को सूचीबद्ध किया गया था।

इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग:

  • IPO एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत कोई कंपनी पूंजी जुटाने के लिये पहली बार सार्वजनिक तौर पर अपने शेयरों की बिक्री करती है।
  • यह नई या पुरानी कंपनी हो सकती है जो किसी एक्सचेंज में सूचीबद्ध होने का फैसला करती है और इसके साथ ही वह पब्लिक लिस्टेड कंपनी बन जाती है। इसके बाद शेयर बाज़ार में उसके शेयरों की खरीद फरोख्त होती है।
  • कंपनियाँ इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO) के द्वारा सार्वजनिक रूप से नए शेयर जारी करके पूँजी जुटा सकती हैं या फिर मौज़ूदा शेयरधारक अपने शेयर जनता को बेच सकते हैं।
  • इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO) के बाद कंपनी के शेयरों का खुले बाज़ार में कारोबार होता है।

भारतीय जीवन बीमा निगम:

  •  यह भारत की सबसे बड़ी जीवन बीमा कंपनी है तथा देश की सबसे बड़ी निवेशक कंपनी भी है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1956 में भारतीय संसद में भारतीय जीवन बीमा अधिनियम पारित करके की गई थी। 
  • इसका मुख्यालय मुंबई में है।
  • भारतीय जीवन बीमा निगम को बाज़ार में लगातार नवीन और लाभदायक नीतियों को लाने के लिये जाना जाता है। 
  • सामान्य तौर पर, LIC पॉलिसी को बीमा बाज़ार में एक बेंचमार्क माना जाता है।

IPO के माध्यम से  प्राप्त अपेक्षित लाभ:

  • IPO निश्चित रूप से LIC के मामलों में पारदर्शिता लाएगा।
  • यह स्टॉक एक्सचेंजों को समय पर वित्तीय संख्या(Financial Numbers) और अन्य बाज़ार से संबंधित घटनाओं को सूचित करने के लिये महत्त्वपूर्ण होगा।
  • IPO के माध्यम से वे निवेशक जो अंडरराइटिंग लाभ (Underwriting Profit) के साथ-साथ अपने निवेशों पर लाभ कमा रहे है। वे निवेशक बीमा क्षेत्र की इक्विटी लेने से भी लाभ अर्जित कर सकते हैं।
  • एक्सचेंजों के सूचीबद्ध होने के बाद विभिन्न इक्विटी एवं बॉन्ड इंस्ट्रूमेंट्स में LIC निवेश (LIC’s Investment) भी कड़ी जाँच के दायरे में आ जाएगा जिससे पारदर्शिता को बढ़ावा मिलेगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

पेपर आधारित माइक्रोस्कोप: फोल्डस्कोप

प्रीलिम्स के लिये:

फोल्डस्कोप माइक्रोस्कोप

मेन्स के लिये:

फोल्डस्कोप माइक्रोस्कोप

चर्चा में क्यों?

‘माइक्रोस्कोपी जर्नल’ (Journal of Microscopy) में प्रकाशित शोध के अनुसार, भारत के डॉक्टरों की एक टीम के रोगों के नैदानिक परीक्षण में फोल्डस्कोप (Foldscope) नामक वहनीय माइक्रोस्कोप का निर्माण तथा सत्यापन किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • एक माइक्रोस्कोप या सूक्ष्मदर्शी एक ऐसा उपकरण है जिसका उपयोग उन वस्तुओं को देखने के लिये किया जाता है जिन्हें नग्न आँखों से देख पाना संभव नहीं होता है।
  • इस शोध का उद्देश्य विकासशील देशों में वैज्ञानिक उपयोग के लिये वहनीय तथा आसान उपकरण उपलब्ध कराना है।

फोल्डस्कोप  माइक्रोस्कोप:

  • यह एक वहनीय माइक्रोस्कोप है जिसे सरल घटकों यथा कागज की शीट, लेंस, मोबाइल फोन, गोंद आदि से बनाया जाता है। 
  • फोल्डस्कोप माइक्रोस्कोप को फिर से इसके घटकों में पृथक किया जा सकता है। अत: इसका नाम फोल्डस्कोप रखा गया है। 
  • फोल्डस्कोप में नमूने की तस्वीरें लेने के लिये मोबाइल फोन का उपयोग किया जाता है जिसे गोंद की बूंदों का उपयोग करके फोल्डस्कोप पर स्थापित किया जा सकता है।
  • इसे बनाने की लागत 100 रुपए से भी कम है।

Foldscope

फोल्डस्कोप की कार्य प्रणाली:

  • नमूने के अवलोकन के लिये फोल्डस्कोप के साथ नमूने की स्लाइड को लगाया जाता है। फोल्डस्कोप के साथ मोबाइल फोन को स्थापित किया जाता है तथा इसकी मदद से नमूने को देखा जा सकता है। 
  • नमूने की तस्वीरों को मोबाइल के ज़ूम फंक्शन का उपयोग करके बड़ा किया जा सकता है, तथा इसे मोबाइल मेमोरी कार्ड पर संग्रहीत किया जा सकता है। 

फोल्डस्कोप माइक्रोस्कोप का महत्त्व:

  • यह ले जाने में आसान (Portable) तथा टिकाऊ है, जो पारंपरिक सूक्ष्मदर्शी के समान प्रदर्शन करता है।
  • फोल्डस्कोप का उपयोग मुँह संबंधी स्वास्थ्य जाँच, मूत्र पथ के संक्रमण, लीशमैनियासिस (सैंडफ्लाई के कारण प्रसारित होने वाला एक रोग), शिस्टोसोमियासिस (एक प्रकार का रक्त संबंधी विकार), गुर्दे की पथरी आदि के निदान में उपयोग किया जा सकता है।
  • इसे प्राथमिक निदान (Primary Diagnosis) के लिये उपयोग किया जा सकता है।
  • इसे व्यक्तिगत स्वास्थ्य निगरानी उपकरणों (Personal Health Monitoring Devices) के रूप में सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में नियोजित किया जा सकता है।
  • चिकित्सा क्षेत्र के अलावा इसका उपयोग कृषि में किया जा सकता है। कृषि क्षेत्र में फसलों तथा जानवरों को प्रभावित करने वाले विभिन्न सूक्ष्मजीवों का पता लगाने में इसका उपयोग किया जा सकता है।

स्रोत: पीआईबी


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 23 जून, 2020

‘डीकार्बोनाइज़िंंग ट्रांसपोर्ट इन इंडिया’ परियोजना 

अंतर्राष्ट्रीय परिवहन मंच (International Transport Forum-ITF) के  सहयोग से नीति आयोग 24 जून 2020 को ‘डीकार्बोनाइज़िंंग ट्रांसपोर्ट इन इंडिया’ (Decarbonising Transport in India) परियोजना की शुरुआत करेगा जिसका उद्देश्य भारत के लिये कम कार्बन उत्सर्जन वाली परिवहन प्रणाली का मार्ग प्रशस्त करना है। देश में जलवायु और जलवायु परिवर्तन से संबंधित लक्ष्यों को पूरा करने के लिये अनिवार्य है कि सरकार ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करे। इस परियोजना के माध्यम से देश में परिवहन उत्सर्जन से संबंधित एक मूल्यांकन ढाँचा तैयार किया जाएगा, जो कि सरकार को वर्तमान और भविष्य की परिवहन चुनौतियों पर विस्तृत इनपुट प्रदान करेगा। इस परियोजना के माध्यम से भारत की विशिष्ट ज़रूरतों और परिस्थितियों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलेगी। ध्यातव्य है कि भारत की ‘डीकार्बोनाइज़िंं  ट्रांसपोर्ट इन इंडिया’ परियोजना अंतर्राष्ट्रीय परिवहन मंच (ITF) की ‘डीकार्बोनाइज़िंंग ट्रांसपोर्ट इन इमर्जिंग इकोनॉमीज़’ (Decarbonising Transport in Emerging Economies) का एक हिस्सा है। अंतर्राष्ट्रीय परिवहन मंच (ITF) की यह परियोजना वैश्विक पटल पर उभरते देशों की सरकारों को उनके परिवहन उत्सर्जन को कम करने और उनके जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के तरीकों की पहचान करने में मदद करती है। अंतर्राष्ट्रीय परिवहन मंच (ITF) कुल 60 सदस्य देशों वाला एक अंतर-सरकारी संगठन है। यह संगठन देशों के लिये एक परिवहन नीति के निर्माण में थिंक टैंक के रूप में कार्य करता है और साथ ही यह विभिन्न देशों के परिवहन मंत्रियों का वार्षिक शिखर सम्मेलन भी आयोजित करता है। उल्लेखनीय है कि भारत वर्ष 2008 से इस संगठन का सदस्य है।

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी

23 जून, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि पर उन्हे श्रद्धांजलि अर्पित की। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 06 जुलाई, 1901 को तत्कालीन कलकत्ता के एक संभ्रांत परिवार में हुआ था। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के पिता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे और कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में भी कार्य कर चुके थे। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने वर्ष 1921 में कलकत्ता से अंग्रेज़ी में स्नातक किया, जिसके पश्चात् उन्होंने वर्ष 1923 में कलकत्ता से ही बंगाली भाषा और साहित्य में परास्नातक की डिग्री प्राप्त की।  भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को एक महान शिक्षाविद एवं चिंतक के रूप में याद किया जाता है। वर्ष 1934 में डॉ. मुखर्जी को मात्र 33 वर्ष की आयु में कलकत्ता विश्वविद्यालय में कुलपति (Vice Chancellor) के रूप में नियुक्त किया गया था। वर्ष 1944 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को ‘हिंदू महासभा’ का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, किंतु 4 वर्ष के भीतर ही उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया, डॉ. मुखर्जी का मत था कि ‘हिंदू महासभा’ को केवल हिंदुओं के दल के रूप में सीमित नहीं रहना चाहिये। पंडित नेहरु ने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को अंतरिम सरकार में उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री के रूप शामिल किया, किंतु  6 अप्रैल, 1950 को उन्होंने आंतरिक मतभेद के कारण इस्तीफा दे दिया। इसके पश्चात् 21 अक्तूबर, 1951 को दिल्ली में उन्होंने 'भारतीय जनसंघ' की स्थापना की और इसके पहले अध्यक्ष बने। मई 1953 में जम्मू-कश्मीर में डॉ. मुखर्जी को हिरासत में ले लिया गया, जिसके पश्चात  23 जून, 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई।

H-1B वीज़ा

हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीज़ा समेत अन्य सभी विदेशी वर्क-वीज़ा (Work Visas) पर इस वर्ष के अंत तक लिये प्रतिबंध लगा दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के अनुसार, यह कदम उन लाखों अमेरिकी नागरिकों की मदद करने के लिये काफी आवश्यक है जो कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण उत्पन्न हुए आर्थिक संकट के चलते बेरोज़गार हो गए हैं। अमेरिकी प्रशासन के इस निर्णय से बड़ी संख्या में भारतीय IT पेशेवरों और कई अमेरिकी तथा भारतीय कंपनियों पर प्रभाव पड़ेगा, जिन्हें वित्तीय वर्ष 2021 के लिये अमेरिकी सरकार द्वारा H-1B वीज़ा जारी किया गया था। ध्यातव्य है कि अमेरिकी प्रशासन के अनुसार, अमेरिका में बेरोज़गारी दर फरवरी 2020 और मई 2020 के बीच लगभग चौगुनी हो गई है। यह नया नियम केवल उन लोगों पर लागू होगा जो वर्तमान में अमेरिका से बाहर हैं और उनके पास वैध गैर-अप्रवासी वीज़ा अथवा देश में प्रवेश करने के लिये वीज़ा के अतिरिक्त एक आधिकारिक यात्रा दस्तावेज़ नहीं है। गौरतलब है कि अमेरिका में रोज़गार के इच्छुक लोगों को H1-B वीज़ा प्राप्त करना होता है। H1-B वीज़ा मुख्य रूप से ऐसे विदेशी पेशेवरों के लिये जारी किया जाता है जो किसी 'खास' कार्य में कुशल होते हैं। 

संयुक्त राष्ट्र लोक सेवा दिवस

प्रत्येक वर्ष 23 जून को लोक सेवा (Public service) में कार्यरत लोगों को सम्मान व्यक्त करने के लिये संयुक्त राष्ट्र लोक सेवा दिवस (United Nations Public Service Day) मनाया जाता है। ध्यातव्य है कि 20 दिसंबर, 2002 को संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) ने 23 जून को लोक सेवा दिवस के रूप में नामित किया था। इस दिवस के आयोजन का मुख्य उद्देश्य विकास प्रक्रिया में लोक सेवा के योगदान को रेखांकित करना है, इसके अतिरिक्त इस दिवस पर लोक सेवकों के कार्य को एक नई पहचान देने और युवाओं को लोक सेवक के रूप में अपना कैरियर बनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है। इस दिवस को एक नई मान्यता देने और लोक सेवा के मूल्य को बढ़ाने के लिये संयुक्त राष्ट्र (UN) ने वर्ष 2003 में संयुक्त राष्ट्र लोक सेवा पुरस्कार (UN Public Service Awards-UNPSA) कार्यक्रम की स्थापना की थी। भारत में प्रत्येक वर्ष 21 अप्रैल को सिविल सेवा दिवस (Civil Service Day) मनाया जाता है, इस दिवस का उद्देश्य भारतीय प्रशासनिक सेवा, राज्य प्रशासनिक सेवा के सदस्यों द्वारा स्वयं को नागरिकों के लिये समर्पित एवं वचनबद्ध करना है।


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