इन्फोग्राफिक्स
भारतीय राजव्यवस्था
दया याचिका
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रपति, दया याचिका, अनुच्छेद 72, अनुच्छेद 161, न्यायिक समीक्षा, उच्चतम न्यायालय (SC), क्षमादान शक्ति, मृत्युदंड, विधि आयोग, मौलिक अधिकार, अनुच्छेद 21, प्रतिलंबन,विराम/परिहार,दंडादेश का निलंबन,लघुकरण , भारतीय न्यायपालिका मेन्स के लिये: |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के राष्ट्रपति ने एक पाकिस्तानी नागरिक की दया याचिका को अस्वीकार कर दी जिसे वर्ष 2000 में लाल किले पर हुए आतंकी हमले के लिये मृत्युदंड दिया गया था।
दया याचिका क्या है?
- परिचय:
- दया याचिका एक औपचारिक अनुरोध है, यह अनुरोध किसी ऐसे व्यक्ति जिसे मृत्युदंड या कारावास की सज़ा दी गई हो, द्वारा राष्ट्रपति या राज्यपाल से दया की मांग करते हुए किया जाता है, जैसा भी मामला हो।
- संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा और भारत जैसे कई देशों में दया याचिका के विचार का पालन किया जाता है।
- सभी को जीवन का अधिकार प्राप्त है। इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार के रूप में भी वर्णित किया गया है।
- निहित धारणा: भारत में क्षमादान शक्तियों के पीछे धारणा इस मान्यता में निहित है कि कोई भी न्यायिक प्रणाली अचूक नहीं है और संभावित न्यायिक त्रुटियों को सुधार हेतु एक तंत्र की आवश्यकता है।
- न्यायिक त्रुटियों का सुधार: यह सुरक्षा उपाय न्याय की संभावित त्रुटियों के विरुद्ध सुधारात्मक उपाय के रूप में कार्य करता है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2012 में उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के 14 न्यायाधीशों ने भारत के राष्ट्रपति को अलग-अलग पत्रों में वर्ष 1990 के दशक के उन मामलों पर प्रकाश डाला, जिनमें न्यायालयों ने 15 व्यक्तियों को अनुचित तरीके से मृत्युदंड दिया था, हालाँकि उनमें से दो व्यक्तियों को बाद में मृत्युदंड दिया गया था।
- सार्वजनिक विश्वास बनाए रखना: क्षमादान शक्ति का मुख्य उद्देश्य आपराधिक न्याय व्यवस्था में सामान्य जन के विश्वास को बनाए रखना है।
- न्यायिक त्रुटियों का सुधार: यह सुरक्षा उपाय न्याय की संभावित त्रुटियों के विरुद्ध सुधारात्मक उपाय के रूप में कार्य करता है।
- संवैधानिक ढाँचा:
- भारत में संवैधानिक ढाँचे के अनुसार, दया याचिका के लिये राष्ट्रपति से अनुरोध करना अंतिम संवैधानिक उपाय है। जब एक दोषी को विधिक न्यायालय द्वारा सज़ा सुनाई जाती है तो दोषी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत भारत के राष्ट्रपति को दया याचिका प्रस्तुत कर सकता है।
- इसी प्रकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत राज्यों के राज्यपालों को क्षमादान शक्ति प्रदान की गई है।
अनुच्छेद 72 |
अनुच्छेद 161 |
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- दया याचिका दायर करने की प्रक्रिया:
- दया याचिकाओं से निपटने के लिये कोई वैधानिक लिखित प्रक्रिया नहीं है, लेकिन व्यवहार में न्यायालय में सभी राहतों को समाप्त करने के बाद दोषी व्यक्ति या उसकी ओर से उसका संबंधी राष्ट्रपति को लिखित याचिका प्रस्तुत कर सकता है।
- राष्ट्रपति की ओर से राष्ट्रपति सचिवालय द्वारा याचिकाएँ प्राप्त की जाती हैं, जिन्हें बाद में गृह मंत्रालय को उनकी टिप्पणियों और सिफारिशों के लिये भेज दिया जाता है।
- दया याचिका दायर करने का आधार:
- दया या क्षमादान दोषी सिद्ध व्यक्ति के स्वास्थ्य, शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य, उसकी पारिवारिक वित्तीय स्थितियों (क्या वह रोजी रोटी का एकमात्र अर्जक है या नहीं) के आधार पर दी जाती है ।
- शत्रुघ्न चौहान बनाम भारत संघ (2014) जैसे मामलों में उच्चतम न्यायालय ने माना कि संविधान के अनुच्छेद 72 अथवा अनुच्छेद 161 के तहत दया मांगने का अधिकार एक संवैधानिक अधिकार है और यह कार्यपालिका के विवेक या इच्छा पर निर्भर नहीं है।
- दया या क्षमादान दोषी सिद्ध व्यक्ति के स्वास्थ्य, शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य, उसकी पारिवारिक वित्तीय स्थितियों (क्या वह रोजी रोटी का एकमात्र अर्जक है या नहीं) के आधार पर दी जाती है ।
- न्यायिक समीक्षा:
- सर्वोच्च न्यायालय ने कई मामलों जैसे कि मरूराम बनाम भारत संघ, एपुरू सुधाकर बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और केहर सिंह बनाम भारत संघ में कहा है कि क्षमादान शक्ति के प्रयोग की न्यायिक समीक्षा संभव है, लेकिन सीमित आधार पर।
- न्यायालय ने क्षमादान शक्ति की न्यायिक समीक्षा के लिये निम्नलिखित प्रावधान बताए हैं:
- शक्तियों का प्रयोग बिना सोचे-समझे किया गया हो,
- दुर्भावनापूर्ण आशय से किया गया हो, या
- प्रासंगिक सामग्री को विचार से पृथक रखा गया हो।
दया याचिका से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण निर्णय क्या हैं?
- बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य: वर्ष 1980 में, उच्चतम न्यायालय ने मृत्युदंड की संवैधानिकता को बरकरार रखा, लेकिन महत्त्वपूर्ण सुरक्षा उपाय भी स्थापित किये। न्यायालय ने कहा, "न्यायाधीशों को कभी भी खूनी (Bloodthirsty) नहीं होना चाहिये" और मृत्युदंड "दुर्लभतम मामलों को छोड़कर" नहीं दिया जाना चाहिये, जब वैकल्पिक उपाय निर्विवाद रूप से बंद हो गया हो, और सभी संभावित कम करने वाली परिस्थितियों पर विचार किया गया हो।
- तब से लेकर अब तक न्यायालय ने कई फैसलों में "मृत्युदंड की सज़ा मात्र अन्यान्यतम (The Rarest of The Rare)" मानक की पुष्टि की है।
- मारू राम बनाम भारत संघ (1981): सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 72 के तहत क्षमा देने की शक्ति का प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह पर किया जाना चाहिये।
- केहर सिंह बनाम भारत संघ (1989): सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति के दायरे की विस्तार पूर्वक जाँच की थी।
- केहर सिंह मामले में, न्यायालय ने कहा कि दोषी को दया याचिका पर मौखिक सुनवाई का अधिकार नहीं है।
- शत्रुघन चौहान बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2014): इस फैसले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि दया याचिकाओं पर निर्णय लेने में अत्यधिक विलंब के कारण न्यायालय मौत की सज़ा को कम कर सकते हैं।
- विधि आयोग की रिपोर्ट: वर्ष 2015 में प्रकाशित 262वें विधि आयोग की रिपोर्ट में “आतंकवाद से संबंधित अपराधों और युद्ध छेड़ने के अलावा अन्य सभी अपराधों के लिये” मौत की सज़ा को “पूर्ण रूप से समाप्त” करने की सिफारिश की गई थी।
क्षमादान शक्ति के विभिन्न प्रकार क्या हैं?
क्षमादान शक्ति के प्रकार |
विवरण |
उदाहरण |
क्षमा |
यह कानून अपराधी को अपराध से पूरी तरह मुक्त कर देता है, तथा उसकी दोषसिद्धि और उससे संबंधित सभी दण्डों को समाप्त कर देता है। |
राष्ट्रपति देशद्रोह के अनुचित आरोप में दोषी ठहराए गए व्यक्ति को क्षमा प्रदान करता है। |
प्रतिलंबन |
कठोर दण्ड के स्थान पर सामान्य दण्ड दिया जाता है। |
राष्ट्रपति मृत्युदण्ड को आजीवन कारावास में परिवर्तित करता है। |
विराम/परिहार |
सज़ा की प्रकृति में परिवर्तन किये बगैर उसकी अवधि कम कर दी जाती है। |
राज्यपाल दो वर्ष के कठोर कारावास की सज़ा में से एक वर्ष की छूट प्रदान करता है। |
दंडादेश का निलंबन |
किसी सज़ा के निष्पादन को अस्थायी रूप से स्थगित कर देता है, सामान्यतः थोड़े समय के लिये। |
राष्ट्रपति किसी सज़ायाफ्ता कैदी को दया याचिका दायर करने के लिये समय देने हेतु छूट प्रदान करते हैं। |
लघुकरण |
यह वह राहत है, जो अधिक लम्बी अवधि के लिये होती है और प्रायः चिकित्सीय कारणों से होती है। |
राज्यपाल एक असाध्य रूप से बीमार कैदी को राहत प्रदान करता है ताकि वह अपने अंतिम दिन घर पर बिता सके। |
अन्य देशों के कानून क्या प्रावधान करते हैं?
- अमेरिका: अमेरिका का संविधान राष्ट्रपति को महाभियोग के मामलों के अतिरिक्त संघीय कानून के तहत अपराधों के लिये छूट या क्षमा प्रदान करने की समान शक्तियाँ प्रदान करता है। हालाँकि राज्य के कानून के उल्लंघन के मामलों में, यह शक्ति राज्य के संबंधित राज्यपाल को दी गई है।
- UK: UK में, संवैधानिक प्रमुख, मंत्रिस्तरीय सलाह पर अपराधों के लिये क्षमा या राहत दे सकता है।
- कनाडा: आपराधिक रिकॉर्ड अधिनियम के तहत राष्ट्रीय पैरोल बोर्ड को ऐसी राहत देने का अधिकार है।
निष्कर्ष
- आगे बढ़ने का मार्ग संतुलन बनाने में निहित है। पारदर्शिता को बढ़ावा देने वाले उपाय, जैसे याचिकाओं पर विचार करने हेतु स्पष्ट दिशा-निर्देश और निर्णय के लिये एक निश्चित समय-सीमा, जनता का विश्वास बढ़ा सकते हैं। इसके अतिरिक्त दया याचिका आवेदकों के लिये कानूनी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने से प्रक्रिया मज़बूत होगी।
- अंततः दया याचिका प्रणाली भारतीय न्याय प्रणाली में एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य पूरा करती है। इसकी विशेषताओं को स्वीकार करके तथा इसकी कमियों को दूर करके, भारत इस असाधारण शक्ति का अधिक मानवीय और प्रभावी उपयोग सुनिश्चित कर सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. मृत्युदंड के संदर्भ में भारत के राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका के प्रयोग से संबंधित महत्त्व और चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी किसी राज्य के राज्यपाल को दी गई विवेकाधीन शक्तियाँ हैं? (2014)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न. राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग की आवश्यक शर्तों का विवेचन कीजिये। विधायिका के समक्ष रखे बिना राज्यपाल द्वारा अध्यादेशों के पुनः प्रख्यापन की वैधता की विवेचना कीजिये। (2022) |
शासन व्यवस्था
रेलवे दुर्घटनाएँ एवं कवच प्रणाली
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष (RRSK), कवच, समितियाँ मेन्स के लिये: |
स्रोत: इडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, रंगपानी में कंचनजंगा एक्सप्रेस की टक्कर ने सुरक्षा उपायों को बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया है।
- सुरक्षा विकास के बावजूद भारतीय रेलवे में दुर्घटनाओं की दर में उतार-चढ़ाव देखा गया है; कंपनी ने वित्त वर्ष 2022-2023 में छह दुर्घटनाएँ और वित्त वर्ष 2023-2024 में चार दुर्घटनाएँ दर्ज कीं। यह इस प्रकार की दुर्घटनाओं को रोकने की निरंतर आवश्यकता को रेखांकित करता है।
रेलवे दुर्घटनाओं के पीछे क्या कारण हैं?
- पटरी से उतरना: भारत में कई रेल दुर्घटनाएँ पटरी से उतरने के कारण होती हैं, वर्ष 2020 की एक सरकारी सुरक्षा रिपोर्ट में पाया गया कि देश में 70% ट्रेन दुर्घटनाओं के लिये वे ज़िम्मेदार थे।
- वर्ष 2022 की नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2018 से वर्ष 2021 के बीच 10 में से 7 रेलवे दुर्घटनाएँ पटरी से उतरने के कारण हुईं।
- मानवीय त्रुटियाँ: रेलवे कर्मचारी, जो ट्रेनों और पटरियों के कार्यान्वयन, रखरखाव एवं प्रबंधन के लिये ज़िम्मेदार होते हैं, थकान, लापरवाही, भ्रष्टाचार या सुरक्षा नियमों एवं प्रक्रियाओं की अवहेलना मानवीय त्रुटियों के प्रति प्रवण होती हैं।
- सिग्नलिंग संबंधी विफलताएँ: सिग्नलिंग प्रणाली, जो पटरियों पर ट्रेनों की गति और दिशा को नियंत्रित करती है, तकनीकी खराबी, पावर आउटेज या मानवीय त्रुटियों के कारण विफल हो सकती है।
- मानवरहित समपार (Unmanned level crossings- UMLCs): UMLCs वे स्थान होते हैं जहाँ यातायात को नियंत्रित करने के लिये किसी बैरियर या सिग्नल के बिना रेलवे ट्रैक गुज़रते हैं। मानवरहित समपार दुर्घटनाओं का उच्च जोखिम रखते हैं क्योंकि वाहन या पैदल यात्री आ रही ट्रेन से अनभिज्ञ हो सकते हैं अथवा उस समय पटरी पार करने की कोशिश कर सकते हैं जब कोई ट्रेन निकट हो।
- अवसंरचनात्मक दोष: रेलवे अवसंरचना—जिसमें पटरियाँ, पुल, ओवरहेड तार और रोलिंग स्टॉक (कोच, डब्बे, इंजन आदि) शामिल हैं, प्रायः खराब रखरखाव, पुराना होने, हमला, तोड़फोड़ या प्राकृतिक आपदाओं के कारण दोषपूर्ण हो जाती है।
- इसके अलावा, कई रूट 100% से अधिक क्षमता पर संचालित हैं, जिससे भीड़भाड़ और ओवरलोडिंग के कारण दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है।
- सुरक्षा और सूचना प्रवाह चुनौती: भारत में रेलवे की स्थापना के बाद से, स्थापित प्रक्रियाओं और मानकों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न स्तरों पर अधिकारियों द्वारा समय-समय पर क्षेत्र निरीक्षण महत्वपूर्ण रहा है।
- यह "टॉप टू डाउन" दृष्टिकोण स्वाभाविक रूप से उच्च अधिकारियों पर विचलन का पता लगाने की ज़िम्मेदारी डालता है, जिससे "पुलिस और लुटेरे" की स्थिति बनती है, जहाँ उच्च अधिकारी फ्रंटलाइन कर्मचारियों को संदेह की दृष्टि से देखते हैं, और बाद वाला "यदि आप पकड़ सकते हैं तो मुझे
- यह परिदृश्य सतही अनुपालन को प्रोत्साहित करता है और अंतर्निहित मुद्दों को छुपाता है, पारदर्शिता और स्पष्टता को कमजोर करता है।
- ऐसी गतिशीलता प्रतिकूल हो सकती है, विशेष रूप से रेलवे सुरक्षा मामलों में, जहाँ कई दुर्घटनाएँ 'लगभग चूक' स्थितियों, असुरक्षित प्रथाओं, या समय के साथ मानक से विचलन की एक शृंखला के परिणामस्वरूप होती हैं।पकड़ सकते हैं" दृष्टिकोण अपनाते हैं।
- यह "टॉप टू डाउन" दृष्टिकोण स्वाभाविक रूप से उच्च अधिकारियों पर विचलन का पता लगाने की ज़िम्मेदारी डालता है, जिससे "पुलिस और लुटेरे" की स्थिति बनती है, जहाँ उच्च अधिकारी फ्रंटलाइन कर्मचारियों को संदेह की दृष्टि से देखते हैं, और बाद वाला "यदि आप पकड़ सकते हैं तो मुझे
दुर्घटनाओं को कम करने के लिये रेलवे ने क्या कदम उठाए हैं?
- पर्याप्त वित्तपोषण: राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष (RRSK) तथा रेल सुरक्षा कोष के रूप में विशेष निधियों का सृजन, तथा पूंजी अनुदान के माध्यम से भी इन आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उपयोग की अनुमति।
- राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष (RRSK): यह महत्त्वपूर्ण परिसंपत्तियों के लिये एक सुरक्षा कोष है। इसकी स्थापना वर्ष 2017-18 में पाँच वर्ष की अवधि के लिये 1 लाख करोड़ रुपए के साथ ट्रैक नवीनीकरण, सिग्नलिंग परियोजनाओं, पुल पुनर्वास आदि महत्त्वपूर्ण सुरक्षा संबंधी कार्यों के लिये की गई थी।
- वर्ष 2023-24 की अवधि तथा तत्पश्चात वर्ष 2024-25 के लिये 2.5 लाख करोड़ रुपए से अधिक के पूंजीगत व्यय का आवंटन किया गया।
- रेलवे नेटवर्क का विस्तार: जहाँ एक ओर देश के सुदूरवर्ती भागों तक रेल नेटवर्क का विस्तार किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर भीड़भाड़ वाले मार्गों की क्षमता में वृद्धि भी की जा रही है।
- राष्ट्रीय रेल योजना, 2030 का लक्ष्य नए समर्पित माल ढुलाई एवं उच्च गति रेल गलियारों की पहचान करना तथा ट्रेनों की औसत गति में वृद्धि करना है।
- LHB डिज़ाइन कोचः मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों के लिये हल्के और सुरक्षित कोच। ये कोच जर्मन प्रौद्योगिकी पर आधारित हैं और साथ ही पारंपरिक ICF डिज़ाइन कोचों की तुलना में बेहतर एंटी-क्लाइम्बिंग फीचर्स, अग्निरोधी सामग्री, उच्च गति क्षमता के साथ-साथ सुदीर्घ अवधि के लिये होते हैं।
- आधुनिक पटरी संरचना: मज़बूत और अधिक टिकाऊ पटरियाँ एवं पुल। इसमें प्री-स्ट्रेस्ड कंक्रीट स्लीपर (PSC), हायर अल्टीमेट टेन्साइल स्ट्रेंथ (UTS) रेल, PSC स्लीपरों पर पंखे के आकार का लेआउट टर्नआउट, गर्डर ब्रिज पर स्टील चैनल स्लीपर आदि का उपयोग करना शामिल है।
- तकनीकी उन्नयन: कोचों तथा वैगनों के डिज़ाइन एवं विशेषताओं में सुधार किया गया है। इसमें संशोधित सेंटर बफर कपलर, बोगी माउंटेड एयर ब्रेक सिस्टम (BMBS), बेहतर सस्पेंशन डिज़ाइन के साथ-साथ कोचों में स्वचालित आग एवं धुआँ पहचान प्रणाली का प्रावधान करना शामिल है।
- इसमें स्वदेशी रूप से विकसित स्वचालित ट्रेन प्रोटेक्शन (ATP) कवच स्थापित करना भी शामिल है।
- भारतीय रेलवे ने बेहतर रेलवे यातायात नियंत्रण के लिये ब्लॉक प्रोविंग एक्सल काउंटर (BPAC) स्थापित किया है। BPAC ट्रेनों में लगाया जाने वाला एक ट्रेन डिटेक्शन सिस्टम है, जो ट्रैक पर दो बिंदुओं के बीच ट्रेन के क्रॉसिंग का स्वचालित रूप से पता लगाता है।
- यह एक ही समय में दो ट्रेनों को एक ही ब्लॉक सेक्शन में होने की अनुमति नहीं देता है, जिससे ट्रेनों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग (EI)
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कवच प्रणाली क्या है?
- परिचय:
- वर्ष 2020 में लॉन्च किया गया कवच, तीन भारतीय विक्रेताओं के सहयोग से अनुसंधान डिज़ाइन और मानक संगठन (Research Design and Standards Organisation- RDSO) द्वारा विकसित टक्कर-रोधी सुविधाओं वाला एक कैब सिग्नलिंग ट्रेन नियंत्रण प्रणाली है।
- इसे राष्ट्रीय स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (Automatic Train Protection- ATP) प्रणाली के रूप में अपनाया गया है।
- यह सुरक्षा अखंडता स्तर-4 (Safety Integrity Level- SIL-4 मानकों का पालन करता है और मौजूदा सिग्नलिंग प्रणाली पर सतर्क निगरानीकर्त्ता के रूप में कार्य करता है, जो 'रेड सिग्नल' के निकट पहुँचने पर लोको पायलट को सचेत करता है और सिग्नल को पार होने से रोकने के लिये आवश्यक होने पर स्वचालित ब्रेक लगाता है।
- सुरक्षा अखंडता स्तर एक माप है जिसका उपयोग कार्यात्मक सुरक्षा मानकों में सुरक्षा फंक्शन द्वारा प्रदान किये गए जोखिम में कमी के स्तर को मापने के लिये किया जाता है। SIL को SIL 1 (सुरक्षा अखंडता का सबसे कम स्तर) से लेकर SIL 4 (सुरक्षा अखंडता का सबसे ज़्यादा स्तर) तक की सीमा में परिभाषित किया जाता है।
- यह प्रणाली आपातकालीन स्थितियों के दौरान SoS संदेश भी प्रसारित करती है।
- इसमें नेटवर्क मॉनिटर सिस्टम के माध्यम से ट्रेनों की गतिविधियों की केंद्रीकृत लाइव निगरानी की सुविधा है।
- कवच के घटक:
- कवच प्रणाली की तैनाती में तीन महत्त्वपूर्ण घटक शामिल हैं:
- सबसे पहले, रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) तकनीक को ट्रैक में एकीकृत किया गया है। RFID विद्युत चुंबकीय क्षेत्रों का उपयोग करके किसी वायरलेस डिवाइस से सूचना को स्वचालित रूप से पहचानता है, इसके लिये भौतिक संपर्क या दृष्टि की रेखा की आवश्यकता नहीं होती है।
- दूसरा, ड्राइवर का केबिन (लोकोमोटिव) RFID रीडर, एक कंप्यूटर और ब्रेक इंटरफेस उपकरण से सुसज्जित है
- अंततः रेलवे स्टेशनों पर टावर और मॉडेम सहित रेडियो अवसंरचना स्थापित की जाती है।
- कवच प्रणाली की तैनाती में तीन महत्त्वपूर्ण घटक शामिल हैं:
- कवच की स्थिति:
- कवच का लक्ष्य भारत के 68,000 किलोमीटर से अधिक के व्यापक रेलवे नेटवर्क को सुरक्षित करना है, लेकिन इसकी शुरूआत के बाद से वर्तमान में केवल 1,500 किलोमीटर ही इस प्रणाली से सुसज्जित है।
- ट्रैकसाइड स्थापना के लिये प्रति किमी 50 लाख रुपए और प्रति ट्रेन 70 लाख रुपए की लागत आती है।
- इसका लक्ष्य वर्ष 2025 तक 6,000 किलोमीटर की दूरी तय करना है, जिसमें दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा जैसे प्रमुख मार्ग शामिल हैं।
- जबकि वर्तमान क्षमता 1,500 किमी प्रतिवर्ष है, वर्ष 2026 तक इसके 5,000 किमी तक पहुँचने की उम्मीद है।
- सिस्टम को 4G/5G अनुकूल बनाने के लिये अपग्रेडेशन की योजना बनाई गई है।
- स्थापना का कार्य जारी है, तथा ऑप्टिकल फाइबर केबल, टावर और स्टेशन उपकरण जैसे घटकों को लगाया जा रहा है।
- कवच का लक्ष्य भारत के 68,000 किलोमीटर से अधिक के व्यापक रेलवे नेटवर्क को सुरक्षित करना है, लेकिन इसकी शुरूआत के बाद से वर्तमान में केवल 1,500 किलोमीटर ही इस प्रणाली से सुसज्जित है।
समितियों की सिफारिशें:
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भारत में रेलवे सुरक्षा बढ़ाने के लिये क्या कदम उठाने की आवश्यकता है?
- सुरक्षा संबंधी कार्यों में निवेश बढ़ाना: ट्रैक नवीनीकरण, रेल पुलों की मरम्मत, सिग्नलिंग अपग्रेड, कोच नवीनीकरण आदि के लिये अधिक धन का आवंटन किया जाए।
- मानवीय त्रुटियों को कम करने के लिये कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना: रेलवे कर्मचारियों को नवीनतम तकनीकों, उपकरणों, प्रणालियों, सुरक्षा नियमों और प्रक्रियाओं के संबंध में नियमित एवं व्यापक प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिये।
- समपार या लेवल क्रॉसिंग को समाप्त करना: मानवरहित और मानवयुक्त लेवल क्रॉसिंग को रोड ओवरब्रिज (ROBs) या रोड अंडरब्रिज (RUBs) से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिये।
- उन्नत तकनीकों को अपनाना: ‘कवच’ जैसे टक्कर-रोधी उपकरण (anti-collision devices (ACDs)/ट्रेन टक्कर बचाव प्रणाली (Train Collision Avoidance System- TCAS), ट्रेन सुरक्षा चेतावनी प्रणाली (Train Protection Warning System- TPWS), स्वचालित ट्रेन नियंत्रण (Automatic Train Control- ATC) आदि शामिल किये जाएँ।
- प्रदर्शन संबद्ध प्रोत्साहन: रेलवे कर्मचारियों को उनके प्रदर्शन और सुरक्षा नियमों एवं प्रक्रियाओं के अनुपालन के आधार पर पुरस्कृत एवं प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- गैर-प्रमुख कार्यों की आउटसोर्सिंग: अस्पतालों, कॉलेजों आदि के रखरखाव जैसी गैर-प्रमुख गतिविधियों को निजी या सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं को हस्तांतरित किया जा सकता है, जिससे दक्षता में सुधार हो सकता है और लागत कम हो सकती है।
- नियमित सुरक्षा ऑडिट और निरीक्षण: रेलवे कर्मचारियों, अवसंरचनाओं और उपकरणों के सुरक्षा प्रदर्शन की निगरानी, मूल्यांकन और लेखा-परीक्षण करना और चूक के लिये सख्त जवाबदेही एवं दंड लागू करना।
- समन्वय और संचार को संवृद्ध करना: रेलवे संचालन से संलग्न रेलवे बोर्ड, क्षेत्रीय रेलवे, विभिन्न डिवीजनों, उत्पादन इकाइयों, अनुसंधान संगठनों आदि के बीच समन्वय एवं सुधार लाया जाए।
- गोपनीय घटना रिपोर्टिंग और विश्लेषण प्रणाली (Confidential Incident Reporting and Analysis System- CIRAS) की स्थापना करना: इसे एक ब्रिटिश विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किया गया था; एक सदृश तंत्र भारत में लागू किया जाना चाहिये जो निचले स्तर के कर्मचारियों को गोपनीयता बनाए रखते हुए वास्तविक समय में विचलन की रिपोर्ट करने के लिये प्रोत्साहित करे।
- भारतीय रेलवे प्रबंधन सेवा (IRMS): निष्ठा, स्वामित्व और सुरक्षा पर IRMS योजना के प्रभाव का मूल्यांकन करना तथा सुरक्षा के प्रति विशेषज्ञता एवं प्रतिबद्धता बढ़ाने हेतु इसे संशोधित करने के साथ-साथ कार्यान्वित करने पर भी विचार करना।
- सर्वोत्तम वैश्विक प्रथाओं से सीखना:
- हाल में हुई दुर्घटनाओं के बावजूद, भारतीय रेलवे ने अंतर्राष्ट्रीय मानकों की तुलना में एक मज़बूत सुरक्षा रिकॉर्ड बनाए रखा है। वर्ष 2022 में, भारतीय रेलवे ने प्रति मिलियन ट्रेन किलोमीटर पर 0.03 दुर्घटनाएँ दर्ज कीं, जो 35 देशों में प्रति मिलियन ट्रेन किलोमीटर औसत 0.39 से काफी कम है।
- यूनाइटेड किंगडम: यूरोप में ट्रेन दुर्घटनाओं की सबसे कम दर ब्रिटेन में है।
- ट्रेन सुरक्षा एवं चेतावनी प्रणाली (Train Protection and Warning System- TPWS) उन ट्रेनों को स्वचालित रूप से रोक देती है जो खतरे वाले सिग्नल को पार करती हैं या गति सीमा से अधिक गति से चलती हैं।
- यूरोपीय ट्रेन नियंत्रण प्रणाली (European Train Control System- ETCS) ट्रेनों और सिग्नलिंग केंद्रों के बीच निरंतर संचार प्रदान करती है।
- जापान: जापान की उच्च गति वाली शिंकानसेन रेलगाड़ियाँ, जो 320 किमी/घंटा तक की गति से चलती हैं, ने स्वचालित रेल नियंत्रण (Automatic Train Control- ATC) प्रणाली, व्यापक स्वचालित रेल निरीक्षण प्रणाली (Comprehensive Automatic Train Inspection System- CATIS) तथा भूकंप पूर्व चेतावनी प्रणाली (Earthquake Early Warning System- EEWS) जैसे उन्नत सुरक्षा उपायों के कारण वर्ष 1964 से एक उत्तम सुरक्षा रिकॉर्ड बनाए रखा है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: रेल दुर्घटनाओं को रोकने में भारतीय रेलवे के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। सुरक्षा बढ़ाने और ऐसी दुर्घटनाओं के जोखिम को कम करने के लिये क्या उपाय लागू किये जा सकते हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित संचार प्रौद्योगिकियों पर विचार कीजिये: (2022)
उपर्युक्त में कौन-सी लघु-परास युक्तियाँ/प्रौद्योगिकियाँ मानी जाती हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. किरायों का विनियमन करने के लिये रेल प्रशुल्क प्राधिकरण की स्थापना आमदनी-बंधे (कैश स्ट्रैप्ड) भारतीय रेलवे को गैर-लाभकारी मार्गों और सेवाओं को चलाने के दायित्व के लिये सहायिकी (सब्सिडी) मांगने पर मजबूर कर देगी। विद्युत क्षेत्र के अनुभव को सामने रखते हुए, चर्चा कीजिये कि क्या प्रस्तावित सुधार से उपभोक्ताओं, भारतीय रेलवे या कि निजी कंटेनर प्रचालकों को लाभ होने की आशा है? (2014) |
शासन व्यवस्था
अपराधिक न्याय प्रणाली
प्रिलिम्स के लिये:अनुच्छेद 246, राज्य सूची, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973, सत्र न्यायाधीश, जेल प्रणाली, व्यावसायिक प्रशिक्षण, उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय, फास्टट्रैक न्यायालय, मानवाधिकार, जमानत, भारतीय विधि आयोग, कानूनी सहायता। मेन्स के लिये:भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में शामिल खामियाँ और उन्हें दूर करने के उपाय। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बलात्कार के एक मनगढ़ंत आरोप और उसके बाद कारावास की सज़ा ने हमारे कानून प्रवर्तन तंत्र में कई प्रणालीगत कमियों तथा सामाजिक जटिलताओं को उजागर किया है, जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली (CJS) कैसी है?
- परिचय:
- किसी भी राज्य की आपराधिक न्याय प्रणाली, आपराधिक न्याय के प्रशासन के लिये सरकारों द्वारा स्थापित एजेंसियों और प्रक्रियाओं का समूह है, जिसका उद्देश्य अपराध को नियंत्रित करना तथा कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों को दंड देना है।
- भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली 1860 में लागू भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) पर आधारित है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 246 में पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था, न्यायालय, जेल, सुधारगृह और अन्य संबद्ध संस्थाओं को राज्य सूची में रखा गया है।
- हालाँकि, संघीय कानूनों का पालन पुलिस, न्यायपालिका और सुधार संस्थानों द्वारा किया जाता है, जो आपराधिक न्याय प्रणाली के मूल अंग हैं।
- CJS की संरचना: इसमें चार मुख्य स्तंभ शामिल हैं।
- पुलिस द्वारा जाँच: दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 161 जाँच अधिकारी को संबद्ध मामले के बारे में जानने वाले किसी भी व्यक्ति से पूछताछ करने और उनका बयान दर्ज करने की अनुमति देती है।
- अभियोक्ताओं द्वारा मामले का अभियोजन: अभियोक्ता अभियुक्त पर अपराध का आरोप लगाते हैं और न्यायालय में यह सिद्ध करने का प्रयास करते हैं कि वह दोषी है।
- न्यायालय द्वारा दोष का निर्धारण: न्यायालय अपने विवेकाधिकार का उपयोग करते हुए, अपराधी की पृष्ठभूमि, और उसके सुधार की संभावना को ध्यान में रखते हुए दंडादेश देता है।
- कारावास प्रणाली के माध्यम से सुधार: भारत में कारावास का उपयोग शिक्षा, श्रम, व्यावसायिक प्रशिक्षण और योग व साधना के माध्यम से कैदी में सुधार एवं उसके पुनर्वास के लिये किया जाता है।
भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली में क्या चुनौतियाँ शामिल हैं?
- मामलों का लंबित रहना: जुलाई 2023 तक, भारत के सभी न्यायालयों में 5 करोड़ से अधिक मामले लंबित थे।
- इनमें से 87.4% अधीनस्थ न्यायालयों में, 12.4% उच्च न्यायालयों में लंबित हैं, जबकि लगभग 1,82,000 मामले 30 वर्ष से अधिक समय से लंबित हैं। सर्वोच्च न्यायालय में लंबित मामलों की संख्या 78,400 थी।
- न्यायिक रिक्तियाँ: भारत में प्रति दस लाख लोगों पर केवल 21 न्यायाधीश हैं, जो कि प्रति दस लाख लोगों पर 50 न्यायाधीशों के दीर्घकालिक लक्ष्य से कम है जिसके परिणामस्वरूप मामलों के निपटान में विलंब होता है।
- फास्ट-ट्रैक कोर्ट के संबंध में धीमी प्रगति: फास्ट-ट्रैक कोर्ट हमेशा पूर्ण क्षमता से कार्य करने में अक्षम रहा है।
- नए न्यायालय आवश्यक बुनियादी ढाँचे और समर्पित न्यायधीशों के साथ फास्ट-ट्रैक उद्देश्यों के लिये स्थापित नहीं किये जाते हैं।
- इसके बजाय, मौजूदा न्यायालयों को प्रायः फास्ट-ट्रैक कोर्ट के रूप में नामित किया जाता है, जिससे न्यायधीशों को इन त्वरित मामलों के साथ-साथ अपने नियमित केसलोड का प्रबंधन करना होता है।
- पुलिस द्वारा शक्ति का दुरुपयोग: पुलिस पर प्रायः अनुचित गिरफ्तारी, विधिविरुद्ध कारावास, सदोष तलाशी, उत्पीड़न, हिरासत में व्यक्ति के साथ हिंसा और उसकी मृत्यु आदि का आरोप लगाया जाता है।
- इसके अतिरिक्त, निवारक कानूनों के आधार पर पुलिस की शक्ति लगातार बढ़ती जा रही है।
- जटिल तंत्र: वर्तमान समय में न्याय तंत्र बहुत जटिल है और हाशियाई समुदाय के व्यक्तियों की पहुँच से यह बहुत दूर है।
- समाज में सुभेद्य वर्ग हमेशा उस प्रणाली में वंचित रहेंगे जो क्षमता निर्माण की तुलना में संस्थागत व्यवस्था को प्राथमिकता देती है।
- अनुमानित पूर्वाग्रह: भारतीय जेलों में आदिवासी, ईसाई, दलित, मुस्लिम और सिख समुदाय के व्यक्तियों की संख्या, कुल आबादी में उनके प्रतिशत की तुलना में बहुत अधिक है।
- कारावास में मानवाधिकारों का उल्लंघन: अपराध स्वीकार कराने और अपराधों की जाँच करने के नाम पर, अधिकारी कैदियों को शारीरिक रूप से प्रताड़ित करते हैं।
- महिलाओं के संदर्भ में हिरासत में बलात्कार, छेड़छाड़ और अन्य प्रकार के लैंगिक शोषण के रूप में अत्याचार भी किये जाते हैं।
भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली में किस प्रकार सुधार किया जा सकता है?
- ज़मानत में सुधार: "ज़मानत नियम है और जेल एक अपवाद है" एक न्यायिक सिद्धांत है जिसका निर्णय सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1978 में राजस्थान राज्य बनाम बालचंद उर्फ बलिया मामले में किया था।
- फास्ट-ट्रैक न्यायालयों को पुनः क्रियाशील करना: इन न्यायालयों को “वास्तव में फास्ट-ट्रैक” बनाने के लिये लंबे समय से लंबित सत्र मामलों का शीघ्र निपटान किया जाना चाहिये।
- विधिक सहायता में सुधार: CJS की कार्य क्षमता को और अधिक प्रभावी बनाने हेतु सामाजिक-विधिक सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार के लिये युवा पेशेवरों को प्रशिक्षण देने, उनका मार्गदर्शन करने और उनकी क्षमता का निर्माण करने की आवश्यकता है।
- न्यायिक रिक्तियों की पूर्ति: कार्यात्मक और निष्पक्ष न्यायिक प्रणाली को बनाए रखने के लिये न्यायिक रिक्तियों की प्रभावी ढंग से पूर्ति करना महत्त्वपूर्ण है। इसके लिये अतिरिक्त ज़िला न्यायाधीशों और ज़िला न्यायाधीशों के स्तर पर न्यायाधीशों की भर्ती के लिये अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AIJS) का उपयोग किया जा सकता है।
- दांडिक मामलों के प्रबंधन में कृत्रिम मेधा (AI) का अनुप्रयोग: AI का उपयोग न्यायाधीशों द्वारा ज़मानत, सज़ा और पैरोल के संबंध में निर्णय लेने में मदद करने के लिये किया जा सकता है।
- AI का उपयोग अपराधियों द्वारा पुनः अपराध करने (Recidivism) के जोखिम का आकलन करने के लिये किया जा सकता है।
सरकार द्वारा की गई संबंधित पहल:
CJS में सुधार के लिये कौन-से आयोग गठित किये गए हैं?
- राष्ट्रीय पुलिस आयोग (NPC): इसने सिफारिश की कि हिरासत में मृत्यु अथवा बलात्कार के मामलों में न्यायिक जाँच की जानी चाहिये।
- मलिमथ समिति: इसने कानून और व्यवस्था बनाए रखने तथा अपराध जाँच के लिये एक अलग पुलिस बल की आवश्यकता की सिफारिश की।
- अखिल भारतीय जेल सुधार समिति (मुल्ला समिति): इसने जेलों के प्रशासन के लिये उचित और प्रशिक्षित कर्मचारियों की भर्ती पर ज़ोर दिया तथा इस उद्देश्य के लिये एक सुधारात्मक सेवा स्थापित की जानी चाहिये।
- कृष्णन अय्यर समिति: इसने महिला और बाल अपराधियों से निपटने के लिये पुलिस में महिला कर्मियों की नियुक्ति की सिफारिश की।
CJS के सुधार से संबंधित न्यायिक निर्णय क्या हैं?
- प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ मामला, 2006: माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय किया कि पुलिस के कार्य पर नज़र रखने हेतु प्रत्येक राज्य में एक राज्य सुरक्षा आयोग स्थापित किया जाना चाहिये।
- एस.पी. आनंद बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामला, 2007: इसमें निर्णय किया गया कि भले ही कैदियों की स्वतंत्रता और उनके मुक्त आवागमन का अधिकार प्रतिबंधित हो किंतु उन्हें स्वस्थ जीवन निर्वाह करने का मूल अधिकार है।
- गुजरात राज्य बनाम गुजरात उच्च न्यायालय मामला, 1988: यह अभिनिर्धारित किया गया कि जेल में कैदियों को उनके द्वारा किये जाने वाले कार्य अथवा श्रम का उचित वेतन दिया जाना चाहिये।
- हुसैनारा खातून बनाम गृह सचिव, बिहार राज्य मामला, 1979: विचाराधीन कैदियों को उनकी सज़ा से ज़्यादा समय तक जेल में रखना अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत उनके मूल अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है।
- प्रेम शंकर शुक्ला बनाम दिल्ली प्रशासन मामला, 1980: इसमें यह निर्णय किया गया कि हथकड़ी लगाने की प्रथा अमानवीय, अनुचित और कठोर है और इसलिये किसी अभियुक्त व्यक्ति को प्रथमतः हथकड़ी नहीं लगाई जानी चाहिये।
निष्कर्ष:
भारतीय दांडिक न्याय प्रणाली को बड़ी संख्या में लंबित मामलों, अक्षमता, संसाधनों की कमी, अनुपयुक्त बुनियादी ढाँचे और कर्मियों के लिये अपर्याप्त प्रशिक्षण जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। हालाँकि, इस प्रणाली में विशेषकर हाशियाई समुदाय के व्यक्तियों के लिये न्याय कि बेहतर पहुँच सुनिश्चित करते हुए इसे बेहतर बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में दांडिक न्याय प्रणाली की हाल ही में हुई विफलताओं और कमियों के प्रकाश में इसमें सुधार करना आत्यावश्यक हो गया है। क्या आप इस मत से सहमत हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत में उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2017) |