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भारतीय राजनीति

दया याचिका

  • 05 May 2023
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

दया याचिका, सर्वोच्च न्यायालय, अनुच्छेद 21, अनुच्छेद 72, अनुच्छेद 161, क्षमा करने की शक्तियाँ

मेन्स के लिये:

दया याचिका

चर्चा में क्यों?

हाल के एक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने बलवंत सिंह राजोआना की मौत की सज़ा को कम करने के लिये सरकार को निर्देश देने से इनकार कर दिया है, इसके बजाय इसने सरकार को आवश्यकता पड़ने पर दया याचिका पर निर्णय लेने की अनुमति दी है।

  • बलवंत सिंह राजोआना को वर्ष 1995 में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या का दोषी ठहराया गया था।
  • याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि चूँकि राज्य और भारत संघ 10 वर्ष से अधिक समय से लंबित दया याचिका पर निर्णय नहीं ले पाए हैं, इसलिये मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया जाना चाहिये।

न्यायालय का अवलोकन:

  • न्यायालय ने गृह मंत्रालय के इस निष्कर्ष का हवाला दिया कि अब दया याचिका पर फैसला राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता होगा।
  • न्यायालय ने कहा है कि दया याचिका पर फैसला टालने के मंत्रालय के फैसले की "जाँच" करना न्यायालय के ऊपर नहीं है।
  • न्यायालय ने कहा कि दया याचिका पर फैसला टालने का मंत्रालय का आह्वान वास्तव में याचिका को फिलहाल के लिये खारिज करने जैसा है।

दया याचिका:

  • परिचय:
    • दया याचिका एक औपचारिक अनुरोध है, यह अनुरोध किसी ऐसे व्यक्ति, जिसे मृत्युदंड या कारावास की सज़ा दी गई हो, द्वारा राष्ट्रपति या राज्यपाल से दया की मांग करते हुए किया जाता है।
      • संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा और भारत जैसे कई देशों में दया याचिका के विचार का पालन किया जाता है।
      • सभी को जीने का मूल अधिकार प्राप्त है। इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार के रूप में भी वर्णित किया गया है।
  • संवैधानिक ढाँचा:
    • भारत में संवैधानिक ढाँचे के अनुसार, दया याचिका के लिये राष्ट्रपति से अनुरोध करना अंतिम संवैधानिक सहारा है। जब एक दोषी को कानून की अदालत द्वारा सज़ा सुनाई जाती है तो दोषी भारत के संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत भारत के राष्ट्रपति को दया याचिका पेश कर सकता है।
    • इसी प्रकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत राज्यों के राज्यपालों को क्षमा प्रदान करने की शक्ति दी गई है।
      • अनुच्छेद 72:
        • राष्ट्रपति के पास किसी भी अपराध के लिये दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति की सज़ा को क्षमा करने, उसे रोकने, विराम देने या कम करने या सज़ा को निलंबित करने, परिहार करने की शक्ति होगी।
          • उन सभी मामलों में जहाँ सज़ा या सज़ा कोर्ट मार्शल द्वारा दी गई हो;
          • उन सभी मामलों में जहाँ सज़ा या किसी ऐसे मामले से संबंधित किसी कानून के खिलाफ अपराध के लिये है, जिस पर संघ की कार्यकारी शक्ति का विस्तार होता है;
          • सभी मामलों में जहाँ मौत की सज़ा दी गई है।
      • अनुच्छेद 161:
        • इसके तहत किसी राज्य के राज्यपाल के पास किसी मामले से संबंधित किसी भी कानून के खिलाफ किसी भी अपराध के लिये दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति की सज़ा को क्षमा, राहत देने, विराम या छूट देने या निलंबित करने, परिहार करने या कम करने की शक्ति होगी जिससे राज्य की शक्ति का विस्तार होता है।
  • दया याचिका दायर करने की प्रक्रिया:
    • दया याचिकाओं से निपटने के लिये कोई वैधानिक लिखित प्रक्रिया नहीं है, लेकिन व्यवहार में कानून की अदालत में सभी राहतों को समाप्त करने के बाद दोषी व्यक्ति या उसकी ओर से उसका रिश्तेदार राष्ट्रपति को लिखित याचिका प्रस्तुत कर सकता है। राष्ट्रपति की ओर से राष्ट्रपति सचिवालय द्वारा याचिकाएँ प्राप्त की जाती हैं, जिन्हें बाद में गृह मंत्रालय को उनकी टिप्पणियों और सिफारिशों के लिये भेज दिया जाता है।
  • दया याचिका दायर करने का आधार:
    • दया का कार्य कैदी का अधिकार नहीं है। वह इसका दावा नहीं कर सकता।
    • दया या क्षमादान उसके स्वास्थ्य, शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य, उसकी पारिवारिक वित्तीय स्थितियों के आधार पर दी जाती है क्योंकि वह रोजी रोटी का एकमात्र अर्जक है या नहीं।
  • न्यायिक समीक्षा:
    • एपुरु सुधाकर और आंध्र प्रदेश सरकार (2006) एवं अन्य के मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 72 और अनुच्छेद 161 के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान शक्ति न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
    • न्यायालय ने कुछ आधार निर्धारित किये जिन पर याचिकाकर्त्ता द्वाराbहै:
      • यदि आदेश बेबुनियादी तरीके से पारित किया जाता है।
      • यदि पारित आदेश दुर्भावनापूर्ण है।
      • यदि आदेश पूरी तरह से अप्रासंगिक विचारों के प्रभाव में पारित किया गया है।
      • अगर आदेश में मनमानी की भावना व्याप्त है।

दया याचिका से जुड़े कुछ अहम फैसले:

  • मारू राम बनाम भारत संघ (1981): सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 72 के तहत क्षमा देने की शक्ति का प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह पर किया जाना चाहिये।
  • धनंजय चटर्जी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1994): सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि "संविधान के अनुच्छेद 72 और 161 के तहत शक्ति का प्रयोग केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा किया जा सकता है, न कि राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा।
  • केहर सिंह बनाम भारत संघ (1989): सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति के दायरे की विस्तार पूर्वक जाँच की थी।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 की न्यायिक शक्ति के तहत अपराध के लिये दोषी करार दिये गए व्यक्ति को राष्ट्रपति क्षमा अर्थात् दंडादेश का निलंबन, प्राणदंड स्थगन, राहत और माफी प्रदान कर सकता है।

क्षमादान की शक्ति से संबंधित कुछ कीवर्ड:

  • क्षमा (Pardon): इसमें दंड और बंदीकरण दोनों को हटा दिया जाता है तथा दोषी की सज़ा को दंड, दंडादेशों एवं निरर्हताओं से पूर्णतः मुक्त कर दिया जाता है।
  • लघुकरण (Commutation): इसमें दंड के स्वरूप में परिवर्तन करना शामिल है, उदाहरण के लिये मृत्युदंड को आजीवन कारावास और कठोर कारावास को साधारण कारावास में बदलना।
  • परिहार (Remission): इसमें दंड कीअवधि को कम करना शामिल है, उदाहरण के लिये दो वर्ष के कारावास को एक वर्ष के कारावास में परिवर्तित करना।
  • विराम (Respite): इसके अंतर्गत किसी दोषी को प्राप्त मूल सज़ा के प्रावधान को किन्हीं विशेष परिस्थितियों में बदलना शामिल है। उदाहरण के लिये महिला की गर्भावस्था की अवधि के कारण सज़ा को परिवर्तित करना।
  • प्रविलंबन (Reprieve): इसका अर्थ है अस्थायी समय के लिये किसी सज़ा (विशेषकर मृत्युदंड) के निष्पादन पर रोक लगाना। इसका उद्देश्य दोषी को राष्ट्रपति से क्षमा या लघुकरण प्राप्त करने के लिये समय देना है।

अन्य देशों के प्रावधान:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका:
    • अमेरिका का संविधान महाभियोग के मामलों को छोड़कर राष्ट्रपति को संघीय कानून के तहत अपराधों के लिये प्रविलंबन अथवा क्षमादान करने की समान शक्तियाँ प्रदान करता है। हालाँकि राज्य कानून के उल्लंघन के मामलों में यह शक्ति राज्य के संबंधित राज्यपाल को दी गई है।
  • यूनाइटेड किंगडम:
    • यूनाइटेड किंगडम में संवैधानिक राजा मंत्रिस्तरीय की सलाह द्वारा अपराधों हेतु क्षमा या दंडविराम कर सकता है।
  • कनाडा:
    • आपराधिक रिकॉर्ड अधिनियम के तहत राष्ट्रीय पैरोल बोर्ड ऐसी राहत देने हेतु अधिकृत है।

निष्कर्ष:

  • दया याचिका एक दोधारी तलवार के रूप में कार्य करती है जो स्थिति और परिस्थितियों के आधार पर वरदान या अभिशाप दोनों हो सकती है। दया याचिका को मंज़ूरी देने में अनावश्यक बाधाएँ एवं देरी से दोषियों तथा पीड़ितों दोनों को गंभीर असुविधा हो सकती है।
  • यह अनजाने/अनायास न्याय में देरी कर सकता है जिससे पीड़ितों को कभी भी उचित एवं निष्पक्ष न्याय नहीं मिल पाता है।
  • यह पीड़ित के दर्द और पीड़ा को और बढ़ाएगा। भारतीय न्यायपालिका की उचित सुविधा एवं सुचारु कामकाज़ हेतु दया याचिका दायर करने तथा क्षमा देने में अनावश्यक देरी को रोकने के लिये उचित सीमा अवधि व उचित नीतियों की आवश्यकता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी किसी राज्य के राज्यपाल को दी गई विवेकाधीन शक्तियाँ हैं? (2014)

  1. भारत के राष्ट्रपति को राष्ट्रपति शासन अधिरोपित करने के लिये रिपोर्ट भेजना
  2. मंत्रियों की नियुक्ति करना
  3. राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कतिपय विधेयकों को भारत के राष्ट्रपति के विचार के लिये आरक्षित करना
  4. राज्य सरकार के कार्य संचालन के लिये नियम बनाना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


प्रश्न. राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग की आवश्यक शर्तों का विवेचन कीजिये। विधायिका के समक्ष रखे बिना राज्यपाल द्वारा अध्यादेशों के पुनः प्रख्यापन की वैधता की विवेचना कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2022)

स्रोत: द हिंदू

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