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आदर्श कारागार अधिनियम, 2023

  • 17 May 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

जेल अधिनियम, 1894, जेल, राज्य का विषय, NCRB, NALSA, ई-जेल

मेन्स के लिये:

आदर्श कारागार अधिनियम, 2023, भारत में कारागार से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों? 

गृह मंत्रालय (MHA) ने 'मॉडल जेल अधिनियम, 2023' तैयार किया है, जो ब्रिटिश युग के कानून (1894 का जेल अधिनियम) की जगह लेगा, ताकि जेल प्रशासन में सुधार किया जा सके, यह कैदियों के सुधार और पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित करेगा।

आदर्श कारागार अधिनियम, 2023:

  • आवश्यकता: 
    • पुराने स्वतंत्रता-पूर्व अधिनियम, 1894 के कारागार अधिनियम में "कई खामियाँ" हैं और मौजूदा अधिनियम में सुधारात्मक फोकस की "स्पष्ट चूक" था।
    • जेल अधिनियम 1894 मुख्य रूप से अपराधियों को हिरासत में रखने और जेलों में अनुशासन एवं व्यवस्था को लागू करने पर केंद्रित है। इस अधिनियम में कैदियों के सुधार तथा पुनर्वास का कोई प्रावधान नहीं है।
  • नए अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ:
    • कारागारों में मोबाइल फोन जैसी प्रतिबंधित वस्तुओं के इस्तेमाल पर कैदियों और कारागार कर्मचारियों के लिये दंड का प्रावधान।
    • उच्च सुरक्षा वाले कारागारों, खुले कारागारों (खुले एवं अर्द्ध खुले ) की स्थापना एवं प्रबंधन।
    • कुख्यात और आदतन अपराधियों की आपराधिक गतिविधियों से समाज को सुरक्षित रखने के प्रावधान।
    • अच्छे आचरण को प्रोत्साहित करने के लिये कैदियों को कानूनी सहायता, पैरोल, फर्लो और समय से पहले रिहाई प्रदान करना।
    • कैदियों का सुरक्षा मूल्यांकन और अलगाव, किसी व्यक्ति की सज़ा का निर्धारण; शिकायत निवारण, कारागार विकास बोर्ड, कैदियों के प्रति व्यवहार में बदलाव एवं महिला कैदियों, ट्रांसजेंडर आदि के लिये अलग आवास का प्रावधान।
    • कारागार प्रशासन में पारदर्शिता लाने की दृष्टि से इसमें प्रौद्योगिकी के उपयोग का प्रावधान, न्यायालयों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का प्रावधान, कारागारों में वैज्ञानिक तथा तकनीकी हस्तक्षेप आदि का प्रावधान किया गया है। 
  • महत्त्व: 
    • भारत में कारागार और 'उसमें हिरासत में रखे गए व्यक्ति' राज्य का विषय है। आदर्श कारागार अधिनियम, 2023 का उपयोग राज्यों द्वारा प्रत्येक राज्य की सीमाओं के भीतर अपनाए जाने वाले आदर्श कानून के रूप में किया जा सकता है।
    • कैदी अधिनियम, 1900 और कैदियों का स्थानांतरण अधिनियम, 1950 दशकों पुराना है तथा इन अधिनियमों के प्रासंगिक प्रावधानों को आदर्श कारागार अधिनियम, 2023 में शामिल किया गया है जिससे भारतीय कारागार प्रणाली को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के साथ संरेखित करने और आवश्यक सुधार होने की उम्मीद है।

भारत में कारागार से संबंधित मुद्दे: 

  • कारागार में क्षमता से अधिक भीड़: 
    • यह भारत में कारागार प्रणाली का गंभीर मुद्दा रहा है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की एक रिपोर्ट के अनुसार, कारगारों की अधिभोग दर (Occupancy Rate) जेल क्षमता का 118.5% है।
    • यह पाया गया कि 4,03,700 की क्षमता वाले कारगारों में कैदियों की संख्या लगभग 4,78,600 थी।
    • भीड़भाड़ के कारण रहने की स्थिति खराब होती है। इससे कई संचारी रोगों के संचरण का जोखिम बना रहता है।
  • स्वास्थ्य और स्वच्छता:
    • बहुत से कारागारों में उचित चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। इससे कई कैदियों की अनदेखी भी की जाती  है और उनमें से अधिकांश अनुपचारित ही रहते हैं। कैदियों के लिये साफ-सफाई व स्वच्छता की भी व्यवस्था ठीक नहीं है।
  • ट्रायल में विलंब:
    • ऐसा देखा जाता है कि कई मामले कई वर्षों से लंबित हैं। इससे जेल प्रशासन प्रणाली में व्यवधान उत्पन्न होता है। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने हुसैनारा खातून बनाम गृह सचिव मामला 1979 में कैदियों के त्वरित परीक्षण/ट्रायल के अधिकार को मान्यता दी।
  • हिरासत में यातना: 
    • कैदियों को हिरासत में यातनाएँ काफी प्रचलित है। हालाँकि वर्ष 1986 में डी.के. बसु के मामले में लिये गए ऐतिहासिक फैसले के बाद पुलिस को थर्ड-डिग्री यातना देने की अनुमति नहीं है, फिर भी जेलों के अंदर क्रूर हिंसा का प्रचलन है।
    • गृह मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2017-2018 के दौरान पुलिस हिरासत में मौत के कुल 146 मामले दर्ज किये गए, पिछले पाँच वर्षों में हिरासत में मौत की सबसे अधिक संख्या (80) गुजरात में, इसके बाद महाराष्ट्र ( 76), उत्तर प्रदेश (41) में दर्ज की गई।
  • महिलाएँ और बच्चे: 
    • महिला अपराधियों की संख्या अपेक्षाकृत कम है। हालाँकि उन्हें स्वच्छता सुविधाओं की कमी, गर्भावस्था के दौरान देखभाल की कमी, शैक्षिक प्रशिक्षण की कमी सहित शारीरिक और मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
    • बच्चों को ज़्यादातर जेलों के बजाय सुधार गृहों में रखा जाता है ताकि वे खुद को सुधार सकें और अपने सामान्य जीवन में वापस जा सकें। हालाँकि उन्हें बहुत अधिक दुर्व्यवहार का भी सामना करना पड़ता है एवं मनोवैज्ञानिक आघात से गुज़रना पड़ता है।

इन समस्याओं पर नियंत्रण: 

  • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2018 में जेल सुधारों पर अपने सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति अमिताभ रॉय की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया।
  • भीड़भाड़ यानी स्पीडी ट्रायल, वकीलों से कैदियों के अनुपात में वृद्धि, विशेष न्यायालयों की शुरुआत, स्थगन से बचने की समस्या को दूर करने हेतु सिफारिशें की गईं।
  • उन्होंने जेल के पहले सप्ताह में प्रत्येक नए कैदी हेतु निःशुल्क फोन कॉल की भी सिफारिश की। समिति ने आधुनिक रसोई सुविधाओं की भी सिफारिश की।
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 304 हिरासत में मौत हेतु सज़ा का प्रावधान करती है। मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम की धारा 30 में जेलों के अंदर CCTV लगाने के बारे में सिफारिश की है।

भारत में कारागार सुधारों से संबंधित पहलें: 

कारागार योजना का आधुनिकीकरण: कारागारों, कैदियों और कर्मियों की स्थिति में सुधार के उद्देश्य से कारागारों के आधुनिकीकरण की योजना वर्ष  2002-03 में शुरू की गई थी।

  • कारागार योजना का आधुनिकीकरण (2021-26): सरकार ने निम्नलिखित के लिये कारागार में आधुनिक सुरक्षा उपकरणों का उपयोग करने हेतु योजना के माध्यम से राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता प्रदान करने का निर्णय लिया है: 
    • कारागारों की सुरक्षा बढ़ाई जाए।
    • प्रशासनिक सुधार कार्यक्रमों के माध्यम से कैदियों के सुधार और पुनर्वास के कार्य को सुगम बनाना।
  • ई-कारागार योजना: ई-कारागार योजना का उद्देश्य डिजिटलीकरण के माध्यम से जेल प्रबंधन में दक्षता लाना है।
  • मॉडल प्रिज़न मैनुअल 2016: मैनुअल कारागार के कैदियों को उपलब्ध कानूनी सेवाओं (मुफ्त सेवाओं सहित) के संदर्भ में विस्तृत जानकारी प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA): इसका गठन विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत किया गया था, जो 9 नवंबर, 1995 को समाज के कमज़ोर वर्गों को मुफ्त और सक्षम विधिक सेवाएँ प्रदान करने के लिये एक राष्ट्रव्यापी समान नेटवर्क स्थापित करने के लिये लागू हुआ था।

निष्कर्ष: 

  • भारत की कारागार प्रणाली में प्राचीन काल से महत्त्वपूर्ण सुधार हुए हैं लेकिन आधुनिक समय में अभी भी इसमें और सुधार की आवश्यकता है।
  • भारत में लागू किये गए विभिन्न कारागार सुधारों के बावजूद स्थिति में उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है। यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि यद्यपि कैदियों ने अपराध किये हैं, फिर भी उनके पास कुछ ऐसे अधिकार हैं जो उनसे छीने नहीं जा सकते।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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