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डेली न्यूज़

  • 21 Apr, 2021
  • 40 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

नासा का ‘इंजेनुइटी मार्स हेलीकॉप्टर'

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नासा के एक लघु रोबोट हेलीकॉप्टर ‘इंजेनुइटी’ (Ingenuity) ने मंगल ग्रह पर सफल टेकऑफ और लैंडिंग की। यह किसी अन्य ग्रह पर पहली संचालित एवं नियंत्रित उड़ान थी।

  • पृथ्वी पर ऐसी पहली उड़ान संचालन वर्ष 1903 में राइट ब्रदर्स ने उत्तरी कैरोलिना के किटी हॉक में प्रदर्शित की थी।

Mars-Helicopter

प्रमुख बिंदु:

इंजेनुइटी:

  • इंजेनुइटी मंगल ग्रह पर उड़ान भरने वाला पहला हेलीकाप्टर है।
  • इसे नासा के ‘पर्सिवरेंस’ रोवर द्वारा ले जाया गया, जिसे जुलाई 2020 में लॉन्च किया गया था।
  • ‘इंजेनुइटी’ काउंटर रोटेटिंग ब्लेड का उपयोग करके उड़ने में सक्षम है जो लगभग 2,400 RPM (रोटेशन प्रति मिनट) की गति से स्पिन करता है।
  • इसमें एक वायरलेस संचार प्रणाली है और यह कंप्यूटर, नेविगेशन सेंसर और दो कैमरों से सुसज्जित है।
  • यह सौर ऊर्जा संचालित है तथा अपने आप चार्ज होने में सक्षम है।

इस मिशन का उद्देश्य:

  • यह हेलीकॉप्टर प्रकृति में प्रयोगात्मक है और रोवर के विज्ञान मिशन से पूरी तरह से स्वतंत्र है।
  • यह उन स्थानों की सतह से नमूने एकत्र करने में मदद करेगा, जहाँ रोवर नहीं पहुँच सकता है।

इस उड़ान का महत्त्व:

  • इन प्रायोगिक परीक्षण उड़ानों से भविष्य के मंगल मिशनों के लिये छोटे हेलीकॉप्टरों की भूमिका के बारे में निर्णय लेने में मदद मिलेगी, जहाँ वे रोबोट स्काउट्स के रूप में सहायक की भूमिका निभा सकते हैं, ऊपर से इलाके का सर्वेक्षण कर सकते हैं या पेलोड ले जाने वाले वैज्ञानिक उपकरण की भूमिका निभा सकते हैं।

नासा का ‘पर्सिवरेंस’ रोवर

  • यह लाल ग्रह (मंगल) पर लगभग दो वर्ष तक रहेगा और प्राचीन जीवन के संकेतों को ढूंढेगा।
  • रोवर को प्राचीन जीवन के संकेतों का अध्ययन करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, इसके माध्यम से नमूने एकत्र किये जाएंगे जो भविष्य के मिशनों के दौरान पृथ्वी पर वापस भेजे जा सकते हैं तथा ऐसी नई तकनीक का परीक्षण किया जा सकता है जो इस ग्रह से संबंधित भविष्य के रोबोट और मानव मिशनों को लाभ पहुँचा सके।

मंगल:

आकार एवं दूरी:

  • यह सूर्य से चौथे स्थान पर स्थित ग्रह है और सौरमंडल का दूसरा सबसे छोटा ग्रह है। इसे 'लाल ग्रह' भी कहा जाता है।
  • मंगल ग्रह का आकार पृथ्वी का लगभग आधा है।

पृथ्वी से समानताएँ:

  • मंगल सूर्य की परिक्रमा करता है, यह 24.6 घंटे में एक चक्कर पूरा करता है, जो कि पृथ्वी पर एक दिन (23.9 घंटे) के समान है।
  • मंगल का अक्षीय झुकाव 25 डिग्री है। यह पृथ्वी के लगभग समान है, जो कि 23.4 डिग्री के अक्षीय झुकाव पर स्थित है।
  • पृथ्वी की तरह मंगल ग्रह पर भी अलग-अलग मौसम पाए जाते हैं, लेकिन वे पृथ्वी के मौसम की तुलना में लंबी अवधि के होते हैं क्योंकि मंगल सूर्य की परिक्रमा करने में अधिक समय लेता है (क्योंकि यह दूर है)।
  • मंगल के दिनों को 'सोलर डे' का संक्षिप्त रूप ‘सोल्स’ कहा जाता है।
  • मंगल के दो छोटे उपग्रह हैं- फोबोस और डीमोस।

भारत का मार्स ऑर्बिटर मिशन (MOM) या मंगलयान:

  • इसे नवंबर 2013 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा आंध्र प्रदेश के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया था।
  • यह पीएसएलवी सी-25 रॉकेट द्वारा मंगल ग्रह की सतह और खनिज संरचना के अध्ययन के साथ-साथ मीथेन (मंगल पर जीवन का एक संकेतक) की खोज करने के उद्देश्य से लॉन्च किया गया था।

स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

राष्ट्रीय जलवायु भेद्यता आकलन रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने एक संयुक्त फ्रेमवर्क का उपयोग करते हुए भारत में अनुकूल नियोजन के लिये राष्ट्रीय जलवायु भेद्यता आकलन रिपोर्ट जारी की है।

प्रमुख बिंदु: 

रिपोर्ट के बारे में :

  • इस रिपोर्ट में वर्तमान जलवायु संबंधी जोखिमों और भेद्यता के प्रमुख चालकों (Key Drivers of Vulnerability) के लिहाज से भारत के सबसे संवेदनशील राज्यों और ज़िलों की पहचान की गई है।
  • यह अनुकूलन संबंधी निवेश तथा अनुकूलन कार्यक्रमों के विकास एवं कार्यान्वयन को प्राथमिकता देने में सहायता प्रदान करेगी।
  • यह आकलन अद्वितीय है क्योंकि यह राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में एक संयुक्त रूपरेखा का उपयोग करता है ताकि उन्हें तुलनीय बनाया जा सके जिससे नीति और प्रशासनिक स्तरों पर निर्णय लेने की क्षमताओं को सशक्त किया जा सके।
  • आकलन के  कुछ प्रमुख संकेतकों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली आबादी का प्रतिशत; प्राकृतिक संसाधनों से आय का हिस्सा; सीमांत और छोटे जमींदारों का अनुपात, कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी; स्वास्थ्यकर्मियों का घनत्व आदि शामिल हैं
  • यह नेशनल एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज (कुल 8 मिशन) के दो मिशनों के तहत क्षमता निर्माण कार्यक्रम का हिस्सा है
    • सुस्थिर हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशन (NMSHE)
    • जलवायु परिवर्तन हेतु रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन (NMSKCC)

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • अत्यधिक संवदेनशील राज्य: राष्ट्रीय जलवायु भेद्यता आकलन रिपोर्ट ने झारखंड, मिज़ोरम, ओडिशा, छत्तीसगढ़, असम, बिहार, अरुणाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल की पहचान ऐसे राज्यों के रूप में की है, जो जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से अत्यधिक संवेदनशील हैं।
  • निम्न-मध्य संवदेनशील राज्य: हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, सिक्किम और पंजाब।
  • निम्न संवदेनशील राज्य: उत्तराखंड, हरियाणा, तमिलनाडु, केरल, नगालैंड, गोवा और महाराष्ट्र।
  • अत्यधिक संवदेनशील ज़िले: रिपोर्ट के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से संवेदनशील माने जाने वाले राज्यों में से असम, बिहार और झारखंड के 60% से अधिक जिले अति संवेदनशील ज़िलों की श्रेणी में हैं।
    • भारत के सभी ज़िलों में भेद्यता स्कोर बहुत कम सीमा में है। यह दर्शाता है कि भारत में वर्तमान जलवायु जोखिम के संबंध में सभी ज़िले और राज्य कुछ हद तक संवेदनशील हैं।

परिणामों का महत्त्व:

  • इन आकलनों का उपयोग पेरिस समझौते के तहत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों (NDC) से जुड़ी भारत की रिपोर्टिंग के लिये किया जा सकता है।
    • NDC पेरिस समझौते का मुख्य केंद्रबिंदु है। राष्ट्रीय स्तर पर उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों में कमी लाने हेतु प्रत्येक देश द्वारा प्रयास किया जा रहा है। NDC में प्रत्येक देश द्वारा घरेलू परिस्थितियों और क्षमताओं को ध्यान में रखते हुए अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को प्रदर्शित किया जाता है।
  • ये आकलन जलवायु परिवर्तन पर भारत की राष्ट्रीय कार्ययोजना का समर्थन करने में मदद करेंगे। 
  • ये आकलन अपेक्षाकृत अधिक लक्षित जलवायु परिवर्तन की परियोजनाओं के विकास में योगदान देंगे और साथ ही जलवायु परिवर्तन से संबंधित राज्य की कार्ययोजनाओं के कार्यान्वयन और उसके संभावित संशोधनों में सहयोग करेंगे।
  • यह ग्रीन क्लाइमेट फंड, अनुकूल फंड और बहुपक्षीय एवं द्विपक्षीय एजेंसियों से प्राप्त धन द्वारा अनुकूलन परियोजनाओं को विकसित करने में मदद करेगा ।
  • यह बेहतर तरीके से डिज़ाइन किये गए जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन से संबंधित परियोजनाओं के विकास के ज़रिये पूरे भारत में जलवायु परिवर्तन के लिहाज से कमज़ोर समुदायों को लाभान्वित करेगा।

जलवायु जोखिम:

  • जलवायु संबंधी चरम सीमाओं के प्रभाव जैसे कि गर्मी की लहरें, सूखा, बाढ़, चक्रवात और जंगल की आग आदि  कुछ पारिस्थितिकी प्रणालियों और वर्तमान जलवायु परिवर्तनशीलता के लिये कई मानव प्रणालियों के महत्वपूर्ण भेद्यता और जोखिम को उजागर करते हैं
  • गैर-जलवायु कारकों और असमान विकास प्रक्रियाओं द्वारा उत्पन्न बहुआयामी असमानताओं से भेद्यता और जोखिम में अंतर उत्पन्न होता है। ये अंतर जलवायु परिवर्तन में जोखिम को आकार देते हैं।
  • द जर्मनवॉच ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स -2019 के अनुसार , 181 देशों में भारत का स्थान पाँचवाॅ था, जो अत्यधिक जोखिम और संवेदनशील था।

स्रोत: पीआईबी


भूगोल

कैरेबियन ज्वालामुखी से सल्फर डाइऑक्साइड का उत्सर्जन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कैरेबियाई स्थित ला सॉफरियर ज्वालामुखी (La Soufriere Volcano) में हुए विस्फोट से उत्सर्जित सल्फर डाइऑक्साइड (Sulphur Dioxide- SO2) भारत में पहुंँच गया है, जिससे देश के उत्तरी हिस्सों में प्रदूषण (Pollution) के स्तर में वृद्धि तथा अम्लीय वर्षा (Acid Rain) होने का डर बना हुआ है।

  • कैरेबियन द्वीप समूह कैरेबियाई सागर में स्थित है यह अमेरिका के दक्षिण में, मैक्सिको के पूर्व और मध्य में तथा दक्षिण अमेरिका के उत्तर में स्थित क्षेत्र है।

प्रमुख बिंदु: 

ला सॉफरियर ज्वालामुखी के बारे में:

  • यह कैरेबियाई द्वीप के सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस (Saint Vincent and the Grenadines)  में स्थित एक सक्रिय स्ट्रैटोवोलकानो (Active Stratovolcano) है।
    • स्ट्रैटोवोलकानो एक लंबा, शंक्वाकार ज्वालामुखी होता है, जिसका निर्माण जमे हुए ठोस लावा, टेफ्रा (Tephra) और ज्वालामुखीय राख (Volcanic Ash) की कई परतों (स्तर) द्वारा होता है। खड़ी प्रोफाइल (Steep Profile) और एक निश्चित आवधिक पर विस्फोटक उद्गार (Periodic, Explosive Eruptions) का होना इन ज्वालामुखियों की मुख्य विशेषताओं में शामिल है।
    • दक्षिणी कैरेबियन में स्थित सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस में 30 से अधिक द्वीप और प्रवाल भित्तियाँ स्थित हैं, जिनमें से नौ द्वीपों पर आबादी पाई जाती है।
  • यह सेंट विंसेंट की सबसे ऊंँची चोटी है जिसमे वर्ष 1718 के बाद से पांँच बार विस्फोटक उद्गार हुए हैं,  हाल ही में अंतिम विस्फोट अप्रैल 2021 में हुआ था।
    • वर्ष 1979 में इस ज्वालामुखी में अंतिम बार विस्फोट हुआ था।  

St-Vincent

वैश्विक तापमान पर विस्फोट का प्रभाव:

  • समतापमंडल तक पहुंँचने वाले ज्वालामुखीय उत्सर्जन का वैश्विक तापमान पर एक शीतल प्रभाव (Cooling Effect) पड़ता है। 
  • ज्वालामुखीय विस्फोट से उत्सर्जित पदार्थों के समतापमंडल (Stratosphere) में प्रवेश करने से सबसे महत्त्वपूर्ण जलवायु प्रभाव सल्फर डाइऑक्साइड के सल्फ्यूरिक एसिड में रूपांतरण के रूप में होता है, जो समतापमंडल में तीव्रता  से संघनित होकर सल्फेट एरोसोल (Sulphate Aerosols) का निर्माण करता है।
    • एरोसोल, सूर्य से आने वाले प्रकाश विकिरण की मात्रा के परावर्तन को बढ़ाकर अंतरिक्ष में वापस भेजने का कार्य करते हैं , जिससे पृथ्वी का निचला वायुमंडल या क्षोभमंडल गर्म नहीं होता है।
    • पिछली शताब्दी के दौरान विगत तीन वर्षों में  हुए बड़े विस्फोटों के कारण पृथ्वी की सतह के तापमान में 0.27 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक की कमी दर्ज की गई है।

सल्फर डाइऑक्साइड और प्रदूषण:

  • SOका उत्सर्जन जो हवा में SO2 की उच्च सांद्रता का कारण है, सामान्यत: सल्फर के ऑक्साइड (SOx ) का निर्माण करता है। छोटे कणों के निर्माण हेतु SOx वातावरण में अन्य यौगिकों के साथ प्रतिक्रिया कर सकता है। ये कण पार्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter- PM) प्रदूषण को बढ़ाते हैं।
  • पार्टिकुलेट मैटर के कण फेफड़ों में प्रवेश कर स्वास्थ्य समस्याओं को उत्पन्न कर सकते हैं।

सल्फर डाइऑक्साइड और अम्लीय वर्षा:

  •  हवा और वायु प्रवाह के कारण  सल्फर डाइऑक्साइड  (SO2) और नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOX) के कणों के वायुमंडल में पहुंँचने के परिणामस्वरूप अम्लीय वर्षा होती है।
  •  SO2 और NOX सल्फर और नाइट्रिक एसिड का निर्माण करने  हेतु जल, ऑक्सीजन और अन्य रसायनों के साथ क्रिया करते हैं तथा पृथ्वी पर वर्षा की बूंँदों के रूप में  गिरने से पहले जल और अन्य पदार्थों के साथ मिश्रित होते हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-क्यूबा संबंध

चर्चा में क्यों?

क्यूबा की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव के रूप में राउल कास्त्रो की सेवानिवृत्ति के साथ ही एक ऐसी पीढ़ी का छह दशक लंबा ऐतिहासिक शासन समाप्त हो गया है, जिसने फिदेल कास्त्रो के नेतृत्व में वर्ष 1959 में सशस्त्र क्रांति के माध्यम से सत्ता प्राप्त की थी।

  • इससे पूर्व जनवरी 2021 में अमेरिका (USA) के विदेश विभाग ने आतंकवादियों को सुरक्षित आश्रयस्थल उपलब्ध कराकर अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद का समर्थन करने को लेकर क्यूबा को एक आतंकवाद प्रायोजक राज्य के रूप में नामित किया था।

Cuba

प्रमुख बिंदु 

क्यूबा का इतिहास

  • 15वीं शताब्दी से लेकर वर्ष 1898 में स्पेनिश-अमेरिकी युद्ध तक क्यूबा, स्पेन का एक उपनिवेश था, इस युद्ध के बाद क्यूबा पर संयुक्त राज्य अमेरिका का कब्ज़ा हुआ और 1902 में इसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा संरक्षित राष्ट्र के रूप में नाममात्र स्वतंत्रता प्राप्त हुई।
  • वर्ष 1940 में क्यूबा ने अपनी लोकतांत्रिक प्रणाली को मज़बूत करने का प्रयास किया, किंतु बढ़ती राजनीतिक कट्टरता और सामाजिक संघर्ष के कारण वर्ष 1952 में फुलगेनियो बतिस्ता के नेतृत्त्व में तख्तापलट हुआ और वहाँ तानाशाही शासन स्थापित हो गया।
  • फुलगेनियो बतिस्ता के शासन के दौरान बढ़ते भ्रष्टाचार और उत्पीड़न के कारण जनवरी 1959 में आंदोलन की शुरुआत हुई और बतिस्ता को सत्ता से हटा दिया गया, जिसके बाद फिदेल कास्त्रो के नेतृत्त्व में कम्युनिस्ट शासन की स्थापना हुई।
  • वर्ष 1965 से क्यूबा को कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा शासित किया जा रहा है।
  • क्यूबा, शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच विवाद का एक प्रमुख विषय था और वर्ष 1962 के क्यूबा मिसाइल संकट के दौरान दोनों महाशक्तियाँ परमाणु युद्ध की कगार पर मौजूद थीं।
  • वर्ष 2019 में क्यूबा में एक नए संविधान को मंज़ूरी दी गई, जो निजी संपत्ति के अधिकार को आधिकारिक मान्यता देता है, जबकि उत्पादन और भूमि के विनियमन पर केंद्र सरकार का अधिकार सुनिश्चित करता है।

भारत-क्यूबा संबंध

  • राजनीतिक संबंध
    • वर्ष 1959 की क्रांति के बाद भारत, क्यूबा को मान्यता देने वाले प्रारंभिक देशों में से एक था। दोनों देशों ने विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों जैसे- संयुक्त राष्ट्र (UN), गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM), विश्व व्यापार संगठन (WTO) आदि में एक-दूसरे के साथ निकट संपर्क बनाए रखा।
    • भारत संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) में अमेरिका समर्थित प्रस्तावों के विरुद्ध क्यूबा का समर्थन करता रहा है और साथ ही उसने क्यूबा के विरुद्ध अमेरिकी प्रतिबंधों को हटाने के लिये संयुक्त राष्ट्र महासभा में क्यूबा प्रायोजित प्रस्तावों के पक्ष में लगातार मतदान किया है।
    • क्यूबा, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य के रूप में भारत को शामिल किये जाने का प्रत्यक्ष समर्थन करता रहा है।
      • क्यूबा ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में गैर-स्थायी सदस्य के तौर पर भारत की उम्मीदवारी के पक्ष में भी मतदान किया था।
    • क्यूबा, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन और भारत-फ्रांँस इनिशिएटिव आदि में भी शामिल है।
  • आर्थिक संबंध
    • वर्ष 2017 के आँकड़ों की माने तो भारत और क्यूबा के बीच कुल 38.81 मिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ है।
    • वर्ष 2019 में भारतीय राष्ट्रपति की क्यूबा यात्रा के दौरान दोनों देशों ने जैव प्रौद्योगिकी, होम्योपैथी और चिकित्सा की पारंपरिक प्रणाली में सहयोग करने को लेकर सहमति व्यक्त की है।
    • भारत विभिन्न क्षेत्रों में क्यूबा के विकास में सहायता प्रदान करता रहा है और जनवरी 2019 में भारत ने क्यूबा को आवश्यक वस्तु, दवा एवं चिकित्सा उपकरण आदि प्रदान किये थे।
  • सांस्कृतिक संबंध
    • क्यूबा में योग और विपश्यना ध्यान का अभ्यास प्रमुख रूप से किया जाता है। साथ ही वहाँ आयुर्वेद और भारतीय प्राकृतिक चिकित्सा के प्रति भी रुचि बढ़ रही है।
    • क्यूबा में प्रतिवर्ष रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती का आयोजन किया जाता है।
      • मई 2007 में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) द्वारा क्यूबा को रवींद्रनाथ टैगोर की एक प्रतिमा प्रदान की गई थी, जिसका अनावरण ‘ओल्ड हवाना’ में किया गया था।
      • हवाना में महात्मा गांधी और मदर टेरेसा की भी प्रतिमा मौजूद है।
    • क्यूबा में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस, महात्मा गांधी की 150वीं जयंती और गुरु नानक देव की 550वीं वर्षगाँठ भी मनाई गई थी।

आगे की राह

  • क्यूबा और भारत दोनों कई वर्षों से एकजुट होकर बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था स्थापित करने की दिशा में समान रूप से संघर्ष कर रहे हैं। दोनों देशों के सौहार्दपूर्ण संबंध बने हुए हैं, हालाँकि दोनों देश द्विपक्षीय संबंधों को आर्थिक और वाणिज्यिक क्षेत्र में और अधिक विकसित कर सकते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

मिज़ोरम के ब्रू शरणार्थी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में त्रिपुरा में मिज़ोरम के ब्रू शरणार्थियों (Bru Refugee) को बसाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि:

  • ब्रू या रियांग (Reang) पूर्वोत्तर भारत का एक समुदाय है, जो ज़्यादातर त्रिपुरा, मिज़ोरम और असम में रहता है। यह समुदाय त्रिपुरा में विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (Particularly Vulnerable Tribal Group) के रूप में पहचान जाता है।
  • इस समुदाय के लोगों को मिज़ोरम में उन समूहों द्वारा लक्षित किया गया है जो इन्हें विदेशी मानते हैं।
    • वर्ष 1997 की जातीय झड़पों के बाद लगभग 37,000 ब्रू शरणार्थी मिज़ोरम के मामित, कोलासिब और लुंगलेई ज़िलों से भाग गए, बाद में इन्हें त्रिपुरा में राहत कैंपों में रखा गया।
  • तब से लगभग 5,000 हज़ार ब्रू लोगों को आठ चरणों में वापस मिज़ोरम भेज दिया गया है, लेकिन अब भी लगभग 32,000 हज़ार ब्रू शरणार्थी उत्तरी त्रिपुरा के छः राहत कैंपों में रह रहे हैं।
    • ब्रू कैंप के नेताओं ने जून 2018 में मिज़ोरम में प्रत्यावर्तन के लिये केंद्र और दो राज्य सरकारों के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, लेकिन कैंप के अधिकांश निवासियों ने इस समझौते की शर्तों को अस्वीकार कर दिया।
    • कैंप में रहने वालों ने कहा कि इस समझौते ने मिज़ोरम में उनकी सुरक्षा की गारंटी नहीं दी है।

चतुर्पक्षीय समझौता:

  • इस चतुर्पक्षीय समझौते पर  जनवरी 2020 में केंद्र सरकार, मिज़ोरम और त्रिपुरा की सरकारों तथा ब्रू संगठनों के नेताओं ने हस्ताक्षर किये थे।
  • इस समझौते के अंतर्गत गृह मंत्रालय ने इन्हें त्रिपुरा में बसाने की प्रक्रिया का पूरा खर्च उठाने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
  • इस समझौते के तहत विस्थापित ब्रू परिवारों के लिये निम्नलिखित व्यवस्था की गई है-
    • विस्थापित परिवारों को 1200 वर्ग फीट (40X30 फीट) का आवासीय प्लाॅट दिया जाएगा।
    • पुनर्वास सहायता के रूप में परिवारों को दो वर्षों तक प्रतिमाह 5 हज़ार रुपए और निःशुल्क राशन प्रदान किया जाएगा।
    • प्रत्येक विस्थापित परिवार को घर बनाने के लिये 1.5 लाख रुपए की नकद सहायता प्रदान की जाएगी।

Refugee-camps

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

यूरोपीय संघ और हिंद-प्रशांत क्षेत्र

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूरोपीय संघ (European Union) ने हिंद-प्रशांत (Indo-Pacific) क्षेत्र में सहयोग के लिये अपने रणनीतिक निष्कर्ष को मंजूरी प्रदान कर दी है।

  • यूरोपीय संघ की यह प्रतिबद्धता दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है, जो लोकतंत्र, मानवाधिकार, कानून के शासन और अंतर्राष्ट्रीय कानून के सम्मान को बनाए रखने पर आधारित होगी।
  • हिंद-प्रशांत अफ्रीका के पूर्वी तट से लेकर प्रशांत के द्वीपीय राज्यों तक का क्षेत्र है।

Indo-Pacific-Region

प्रमुख बिंदु

आवश्यकता:

  • इस क्षेत्र में उत्पन्न भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा के कारण व्यापार और आपूर्ति शृंखलाओं के साथ-साथ तकनीकी, राजनीतिक तथा सुरक्षा क्षेत्रों में भी तनाव बढ़ा है।
  • इस क्षेत्र में मानवाधिकारों को भी चुनौती दी जा रही है। इन घटनाओं से इस क्षेत्र की स्थिरता और सुरक्षा के लिये खतरा बढ़ता जा रहा है, जिसका यूरोपीय संघ के हितों पर सीधे प्रभाव पड़ता है।

उद्देश्य:

  • इस क्षेत्र में बढ़ती चुनौतियों और तनाव के समय क्षेत्रीय स्थिरता, सुरक्षा, समृद्धि तथा स्थायी विकास में योगदान देना।
  • आसियान (ASEAN) को केंद्र में रखकर नियम-आधारित बहुपक्षवाद को बढ़ावा देना, जिस पर भारत द्वारा भी बल दिया गया।

रणनीति की मुख्य विशेषताएँ:

  • कोविड-19:
    • यूरोपीय संघ कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न आर्थिक और मानव प्रभावों को कम करने के लिये तथा समावेशी एवं स्थायी सामाजिक-आर्थिक सुधार सुनिश्चित करने हेतु मिलकर काम करेगा।
  • स्वतंत्र और निष्पक्ष व्यापार:
    • यूरोपीय संघ का इस क्षेत्र के प्रति दृष्टिकोण और संलग्नता "नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय आदेश के साथ-साथ व्यापार और निवेश, पारस्परिकता, जलवायु परिवर्तन से निपटने तथा कनेक्टिविटी का समर्थन करने के लिये एक खुला एवं निष्पक्ष वातावरण को बढ़ावा देना है।
    • यूरोपीय संघ की व्यापार साझेदारी का उद्देश्य ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और न्यूज़ीलैंड के साथ मुक्त व्यापार समझौतों का समाधान करना तथा चीन के साथ निवेश पर व्यापक समझौते की दिशा में कदम उठाना होगा।
    • यह भारत के साथ आर्थिक संबंधों को अधिक से अधिक मज़बूत करने के अपने प्रयास को भी जारी रखेगा।
  • सुरक्षा और रक्षा:
    • यह समुद्री सुरक्षा, साइबर सुरक्षा, उभरती हुई प्रौद्योगिकियों, आतंकवाद जैसे संगठित अपराधों से निपटने के लिये सुरक्षा और रक्षा क्षेत्रों में साझेदारी विकसित करना जारी रखेगा।
    • इसने यूरोपीय संघ के साथ संचार के सुरक्षित समुद्री गलियारों में योगदान करने के लिये दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में अपने क्रिमारियो (CRIMARIO- असुरक्षित समुद्री मार्ग) के भौगोलिक दायरे का विस्तार करने का निर्णय लिया है।
    • CRIMARIO:
      • यूरोपीय संघ ने वर्ष 2015 में क्रिमारियो (Critical Maritime Route Wider Indian Ocean- CRIMARIO) परियोजना हिंद महासागर में समुद्री सुरक्षा और सुरक्षा में सुधार के लिये लॉन्च की थी, जिसके अंतर्गत पूर्वी अफ्रीका के कुछ चयनित देशों और द्वीप समूहों पर विशेष ध्यान दिया गया था। इस परियोजना का उद्देश्य इस क्षेत्र के देशों का उनके समुद्री परिस्थितिजन्य जागरूकता (Maritime Situational Awareness) में वृद्धि करने हेतु समर्थन करना है।

भारत की भूमिका:

  • भारत और यूरोप द्वारा बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा, शक्ति प्रतिद्वंद्विता, बहुपक्षीय आदेश और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों को चुनौती देने वाली एकतरफा क्रियाकलाप, साझा की गई कुछ सामान्य चिंताएँ हैं।
  • भारत और यूरोपीय संघ अपने सामरिक संबंधों और अन्य परस्पर जुड़े लाभ के क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करके हिंद-प्रशांत में एक खुले, मुक्त, समावेशी और नियम आधारित आदेश को लागू कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
  •  हिंद-प्रशांत क्षेत्र में यूरोपीय शक्तियों के साथ भारत की हाल की कुछ पहलें:
    • हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (Indian Ocean Rim Association - IORA) में फ्राँस की सदस्यता के लिये भारत का समर्थन।
    •  भारत ने हिंद-प्रशांत में एक बड़ी भूमिका निभाने के लिये यूरोपीय देशों का समर्थन किया है। भारत ने हिंद-प्रशांत में एक नई भू-राजनैतिक तंत्र के निर्माण में जर्मनी और नीदरलैंड के हितों का समर्थन किया है।
  • भारत और यूरोपीय संघ कुछ महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे- समुद्री डकैती, आतंकवाद, नीली अर्थव्यवस्था, समुद्री प्रौद्योगिकी आदि में एक साथ मिलकर काम और सहयोग कर सकते हैं।

आगे की राह

  • यह अवधारण तेज़ी से बढ़ रही है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में यूरोपीय देशों को एक बड़ी भूमिका निभाने की आवश्यकता है, क्योंकि इन देशों का सामरिक और आर्थिक हितों को हिंद-प्रशांत क्षेत्र से जोड़कर देखा जाता है।
  • इस क्षेत्र में हितों और साझा मूल्यों के बढ़ते अभिसरण से भारत-यूरोपीय संघ के सहयोग को मजबूत बनाने, स्थिरता बनाए रखने और सहकारी तरीके से आर्थिक संवृद्धि को समर्थन देने की ज़रूरत है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

ब्रिटेन आधारित नई डिजिटल करेंसी 'ब्रिटकॉइन'

चर्चा में क्यों?

ब्रिटिश प्राधिकारियों ने एक सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) टास्कफोर्स बनाने की घोषणा की है। इस नई डिजिटल मुद्रा को ‘ब्रिटकॉइन’ (Britcoin) नाम दिया गया है।

  • यह क्रिप्टोकरेंसी के खिलाफ फ्यूचर प्रूफिंग पाउंड स्टर्लिंग (यूनाइटेड किंगडम की मुद्रा) की दिशा में एक सार्थक कदम है जो भुगतान प्रणाली में सुधार करता है।

प्रमुख बिंदु:

ब्रिटकॉइन के बारे में :

  • कोरोना महामारी में आंशिक रूप से देश में नकद भुगतान में गिरावट के कारण बैंक ऑफ इंग्लैंड और ट्रेज़री ने डिजिटल करेंसी बनाने की घोषणा की है।
  •  डिजिटल करेंसी यदि पारित हो जाती है, तो यह नया CBDC घरों और व्यवसायों द्वारा उपयोग के लिये  बैंक ऑफ इंग्लैंड द्वारा जारी डिजिटल मनी का एक नया रूप होगा जो नकदी और बैंक जमा के साथ मौजूद होगा और उन्हें प्रतिस्थापित नहीं करेगा।
  •  CBDC को  सभी प्रौद्योगिकी पहलुओं पर विशेषज्ञता और विविध दृष्टिकोणों से इनपुट इकट्ठा करने के लिये बनाया जाएगा जो नकदी और निजी भुगतान प्रणालियों के बीच इंटरफेस सुविधा प्रदान करेगी जिसके लिये वितरित खाता बही प्रौद्योगिकी की आवश्यकता नहीं होगी
  • लाभ के उद्देश्य से इसे परिसंपत्ति के रूप में रखने के लिये 'ब्रिटकॉइन' को पाउंड के मूल्य से जोड़ा जाएगा।
  • यह कदम ब्रिटेन के तकनीकी क्षेत्र में व्यापक निवेश और अंतर्राष्ट्रीय व्यवसायों के लिये न्यूनतम लेन-देन लागत के रूप में आर्थिक प्रभाव डाल सकता है।
  • ब्रिटेन की डिजिटल करेंसी पारित होने पर यह अन्य करेंसी से भिन्न होगी क्योंकि यह राज्य अधिकारियों द्वारा जारी की जाएगी
    • वर्तमान में केवल बहामास के पास ऐसी मुद्रा है, हालाँकि चीन कई शहरों में इसका परीक्षण कर रहा है।

डिजिटल मुद्रा:

  • डिजिटल मुद्रा भुगतान की वह विधि है जो केवल इलेक्ट्रॉनिक रूप में मौजूद है और अमूर्त है अथवा डिजिटल मुद्रा, मुद्रा का वह रूप है जो केवल डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक रूप में उपलब्ध है, न कि भौतिक रूप में।
  • डिजिटल मुद्रा अमूर्त होती हैं और इसका लेन-देन या स्वामित्व केवल इंटरनेट या निर्दिष्ट नेटवर्क से जुड़े कंप्यूटर, स्मार्टफोन या इलेक्ट्रॉनिक वॉलेट का उपयोग करके ही किया जा सकता है।
  • डिजिटल मुद्रा के विपरीत भौतिक मुद्रा जैसे- बैंक नोट और सिक्के आदि मूर्त होते हैं और इनका लेन-देन केवल उनके धारकों द्वारा ही संभव है, जिनके पास उनका भौतिक स्वामित्व है।
  • डिजिटल मुद्रा को डिजिटल मनी और साइबर कैश के रूप में भी जाना जाता है। जैसे क्रिप्टोकरेंसी।

सेंट्रल बैंक डिजिटल मुद्रा:

  • ‘सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) एक इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड या डिजिटल टोकन का उपयोग किसी विशेष राष्ट्र (या क्षेत्र) में प्रचलित या फिएट मुद्रा  के आभासी रूप का प्रतिनिधित्व करने के लिये  करता है ।
    • फिएट या प्रचलित मुद्रा: ऐसी मुद्रा जो भौतिक वस्तु, जैसे: सोना या चाँदी, द्वारा समर्थित नहीं है, बल्कि सरकार द्वारा जारी की गई है।
  • ‘CBDC’ एक केंद्रीकृत मुद्रा है; यह देश के सक्षम मौद्रिक प्राधिकरण द्वारा जारी और विनियमित की  जाती है।
  • इसकी प्रत्येक इकाई एक पेपर बिल के समान होती है।यह सुरक्षित डिजिटल उपकरण के रूप में कार्य करती है और इसका उपयोग भुगतान के एक विकल्प के रुप में, मूल्य के भंडार और खाते की एक आधिकारिक इकाई के रूप में किया जा सकता है।

लाभ:

  • CBDC का उद्देश्य क्रिप्टोकरेंसी जैसी डिजिटल फॉर्म की सुविधा और सुरक्षा तथा  पारंपरिक बैंकिंग प्रणाली के विनियमित आरक्षित-समर्थित धन संचलन दोनों  को विश्व में सर्वश्रेष्ठ बनाना है। 
  • डिजिटल मनी का नया रूप उन महत्त्वपूर्ण जीवन रेखाओं को  समानांतर बढ़ावा दे सकता हैं जो गरीबों को और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को प्रेषण प्रदान करती हैं।
  • यह निजी भुगतान प्रणालियों की विफलता के कारण वित्तीय अस्थिरता से लोगों का  बचाव सुनिश्चित करेगा।
  • यह सुनिश्चित करता है कि केंद्रीय बैंक मौद्रिक नीति पर उन दूरगामी परिणामों के खिलाफ नियंत्रण बनाए रखे जो भुगतान उन क्रिप्टोकरेंसी में विस्थापित हो सकते हैं जिन पर उनको  कोई लाभ प्राप्त नहीं होता है।

जोखिम संबद्ध: 

  • आतंकी वित्तपोषण या मनी लांड्रिंग जैसे मामलों में संलिप्त मुद्रा के उपयोग को रोकने के लिये नो योर कस्टमर (KYC) मानदंडों को  सख्त अनुपालन के साथ लागू करने की आवश्यकता है ।
  • डिजिटल मनी का विस्तार वाणिज्यिक बैंकों की स्थिति को कमज़ोर कर सकता है क्योंकि यह उस जमा पूंजी को हटा देता है जिस पर वे मुख्य रूप से आय के लिये आश्रित होते है।

डिजिटल मुद्रा पर भारत का रुख:

  • रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने क्रिप्टोकरेंसी को बैंक खातों की एक अकुशल इकाई माना था क्योंकि उनके मूल्य में निरंतर उच्च उतार-चढ़ाव की स्थिति प्रदर्शित होती है।
  • आरबीआई के अनुसार, यह कई को जोखिमों उत्पन्न करता है जिसमें  बिना किसी सरकारी निगरानी और सीमा पार भुगतान में आसानी के कारण इस प्रकार की डिजिटल मुद्रा का उपयोग प्रायः चोरी, आतंकी फंडिंग, मनी लॉन्ड्रिंग आदि के लिये काफी आसानी से किया जा सकता है।
  • हालाँकि समय उपयुक्त होने पर भारत एक संप्रभु डिजिटल मुद्रा विकसित करने पर विचार करेगा।

स्रोत: द हिंदू


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