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डेली न्यूज़

  • 18 May, 2020
  • 65 min read
भूगोल

ओडिशा और पश्चिम बंगाल में चक्रवाती तूफान ‘अम्फान’

प्रीलिम्स के लिये

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग, चक्रवाती तूफान ‘अम्फान’ 

मेन्स के लिये

चक्रवाती तूफानों के कारण और इनसे निपटने में विभिन्न संस्थानों की भूमिका

चर्चा में क्यों?

भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department-IMD) के अनुसार, दक्षिण-पूर्व बंगाल की खाड़ी की ओर बढ़ रहा चक्रवाती तूफान ‘अम्फान’ (Amphan) आगामी कुछ समय में ‘अत्यंत गंभीर चक्रवाती तूफान’ (Extremely Severe Cyclonic Storm) का रूप ले सकता है।

प्रमुख बिंदु

  • इस संबंध में जारी अधिसूचना के अनुसार, तटीय ओडिशा में 18 मई, 2020 शाम से अलग-अलग स्थानों पर हल्की से मध्यम बारिश होने की संभावना है।
  • पश्चिम बंगाल के तटीय ज़िलों में भी 19 मई, 2020 को अलग-अलग स्थानों पर हल्की से मध्यम वर्षा होने की संभावना है।
  • भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने मछुआरों को 18 से 21 मई तक पश्चिम बंगाल तथा ओडिशा के समुद्री तटों से दूर रहने की सलाह दी है और जो लोग अभी समुद्र में हैं, उन्हें 17 मई तक वापस लौटने के लिये कहा गया है।
  • मौसम विभाग की चेतावनी को मुख्यतः तीन श्रेणियों में बाँटा जाता है (1) येलो वाॅर्निंग (Yellow Warning) (2) ऑरेंज अलर्ट (Orange Alert) (3) रेड अलर्ट (Red Alert) 
    • ‘येलो वाॅर्निंग’ (Yellow Warning) अथवा ‘साईक्लोन अलर्ट’ (Cyclone Alert) तटीय क्षेत्रों में प्रतिकूल मौसम की संभावना से कम-से-कम 48 घंटे पूर्व जारी की जाती है।
    • ‘ऑरेंज अलर्ट’ (Orange Alert) अथवा ‘साईक्लोन वाॅर्निग’ (Cyclone Warning) तटीय क्षेत्रों में प्रतिकूल मौसम की संभावना से कम-से-कम 24 घंटे पूर्व जारी किया जाता है।
    • ‘रेड अलर्ट’ (Red Alert) चक्रवात के लैंडफॉल (Landfall) के पश्चात् चक्रवात की गति की संभावित दिशा और भूभागीय क्षेत्र में प्रतिकूल मौसम की संभावना को दर्शाता है।
  • मौसम विभाग द्वारा ओडिशा और बंगाल के लिये ‘येलो वाॅर्निग’ (Yellow Warning) अथवा ‘साईक्लोन अलर्ट’ (Cyclone Alert) जारी किया गया है।
  • ध्यातव्य है कि इस संदर्भ में ओडिशा में राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (National Disaster Response Force-NDRF) की 17 टीमें तैनात की गई हैं। बीते वर्ष चक्रवाती तूफान फानी (Cyclonic storm Fani) द्वारा प्रभावित ओडिशा में लगभग 11 लाख लोगों को संवेदनशील क्षेत्रों से स्थानांतरित करने की व्यवस्था की गई है।
  • इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय संकट प्रबंधन समिति (National Crisis Management Committee- NCMC) ने भी इस चक्रवात की तैयारियों की समीक्षा करते हुए पश्चिम बंगाल तथा ओडिशा को तत्काल सहायता का निर्देश दिया है।
    • ध्यातव्य है कि चक्रवात से संबंधित तैयारियों की समीक्षा के लिये कैबिनेट सचिव राजीव गौबा की अध्यक्षता में NCMC की बैठक हुई।

चक्रवात और भारत

  • चक्रवात कम वायुमंडलीय दाब के चारों ओर गर्म हवाओं की तेज़ आँधी को कहा जाता है। दोनों गोलार्द्धों के चक्रवाती तूफानों में अंतर यह है कि उत्तरी गोलार्द्ध में ये चक्रवात घड़ी की सुइयों की विपरीत दिशा में (Counter-Clockwise) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की दिशा (Clockwise) में चलते हैं। 
    • उत्तरी गोलार्द्ध में इसे हरिकेन, टाइफून आदि नामों से जाना जाता है।
  • ध्यातव्य है कि भारत में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से ही अधिकांश तूफानों की उत्पत्ति होती है, जिन्हें उष्णकटिबंधीय चक्रवात कहा जाता है।
  • उष्ण-कटिबंधीय चक्रवात अपने निम्नदाब के कारण ऊँची सागरीय लहरों का निर्माण करते हैं और इन चक्रवातों का मुख्य प्रभाव तटीय भागों में पाया जाता है।

चक्रवातों के नामकरण का विषय

  • विदित हो कि चक्रवातों के नामकरण का विषय सदैव से ही काफी महत्त्वपूर्ण रहा है। हिंद महासागर क्षेत्र के आठ देश (बांग्लादेश, भारत, मालदीव, म्याँमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका तथा थाइलैंड) एक साथ मिलकर आने वाले चक्रवातों के नाम तय करते हैं।
  • चक्रवातों के नामकरण के कारण चक्रवात को आसानी से पहचाना जा सकता है और इससे बचाव अभियानों में भी मदद मिलती है। किसी नाम का दोहराव नहीं किया जाता है।
  • उल्लेखनीय है कि मौजूदा चक्रवाती तूफान ‘अम्फान’ (Amphan) का नामकरण थाइलैंड द्वारा किया गया था। 
  • वर्ष 1900 के मध्य चक्रवाती तूफान से होने वाले खतरे के बारे में लोगों को समय रहते सतर्क करने के लिये इसके नामकरण की शुरुआत हुई थी। 


स्रोत: पी.आई.बी.


भूगोल

हिंदू-कुश हिमालय क्षेत्र और जलवायु परिवर्तन

प्रीलिम्स के लिये

हिंदू-कुश हिमालय क्षेत्र

मेन्स के लिये

जलवायु परिवर्तन का हिमालय क्षेत्र पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय एकीकृत पर्वतीय विकास केंद्र (International Centre for Integrated Mountain Development-ICIMOD) द्वारा हिंदू-कुश हिमालय (Hindu Kush Himalaya-HKH) क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से संबंधित अध्ययन के अनुसार, इस क्षेत्र में ग्लेशियरों की संख्या में वृद्धि हुई है।

प्रमुख बिंदु

  • हालाँकि यही अध्ययन दर्शाता है कि हिंदू-कुश हिमालय क्षेत्र वर्ष 2060 तक अपने वर्तमान ग्लेशियर क्षेत्र का आधा हिस्सा खो देगा, जिसकी अवधि पहले वर्ष 2070 आंकी गई थी।
  • विश्लेषकों के अनुसार, ग्लेशियरों की संख्या में वृद्धि का मुख्य कारण ग्लेशियरों का विखंडन (Fragmentation) है, सामान्य शब्दों में कहें तो बड़े ग्लेशियर छोटे-छोटे ग्लेशियरों में बँट रहे हैं।
  • अध्ययन में वैश्विक तापमान में लगातार हो रही वृद्धि को ग्लेशियरों के विखंडन (Fragmentation) का मुख्य कारण बताया गया है।
  • आकलन के अनुसार, पूर्वी हिमालय के ग्लेशियर मध्य तथा पश्चिमी हिमालय के ग्लेशियरों की तुलना में तेज़ी से सिकुड़ गए हैं, हालाँकि यह एक स्वाभाविक क्रिया है क्योंकि जब सतह क्षेत्र अथवा सूर्य के संपर्क में आने वाली सतह में वृद्धि होती है, तो खंडित और छोटे ग्लेशियर बड़े ग्लेशियरों की तुलना में तेज़ी से सिकुड़ते हैं।
  • ICIMOD ने इस स्थिति को काफी खतरनाक स्थिति के रूप में परिभाषित किया है।

Hindu-Kush-Himalaya

हिंदू-कुश हिमालय क्षेत्र और इसका महत्त्व

  • हिंदू-कुश हिमालय क्षेत्र को विश्व का तीसरा ध्रुव (Third Pole) माना जाता है तथा यह जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से अत्यंत सुभेद्य है। 
    • पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण यहाँ डेटा एकत्र करना कठिन है।
  • हिंदू-कुश हिमालय क्षेत्र अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, किर्गिज़स्तान, मंगोलिया, म्याँमार, नेपाल, पाकिस्तान, ताज़िकिस्तान और उज़्बेकिस्तान तक फैला है।
  • विभिन्न देशों में लगभग 3,500 वर्ग किलोमीटर में फैले इस क्षेत्र को एशिया का ‘वाटर टॉवर’ (Water Tower) भी कहा जाता है।
  • एक अनुमान के अनुसार, हिंदू-कुश हिमालय (Hindu Kush Himalaya-HKH) क्षेत्र में उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों (North and South Poles) के पश्चात् बर्फ का सबसे अधिक भंडार है।
  • उल्लेखनीय है कि नदियों के लिये जल का एक बड़ा स्रोत होने के नाते ये ग्लेशियर दुनिया भर में एक तिहाई आबादी के लिये जीवन रेखा हैं।
  • इस अध्ययन में हिंदू-कुश हिमालय (HKH) क्षेत्र को एशिया तथा विश्व के लिये एक अत्यधिक महत्त्वपूर्ण संपत्ति की संज्ञा दी गई है। यह जल, ऊर्जा, कार्बन भंडार और साथ ही समृद्ध जैव विविधता का प्रमुख स्रोत है।
    • उदाहरण के लिये विश्व के 200 करोड़ से अधिक लोगों अपनी जल संबंध आवश्यकता के लिये हिंदू-कुश हिमालय (HKH) क्षेत्र से शुरू होने वाली नदियों पर निर्भर हैं और इन नदियों में 500 गीगावाट की जल विद्युत क्षमता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


सामाजिक न्याय

गोल कार्यक्रम

प्रीलिम्स के लिये: 

गोल कार्यक्रम 

मेन्स के लिये: 

कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्य 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय जनजातीय मंत्रालय (Ministry of Tribal Affairs) द्वारा डिजिटल प्रणाली के माध्यम से आदिवासी युवाओं को मेंटरशिप प्रदान करने के लिये फेसबुक के साथ मिलकर ‘गोइंग ऑनलाइन एस लीडर्स’ (Going Online As Leaders-GOAL) कार्यक्रम के द्वितीय चरण की शुरुआत की गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • GOAL कार्यक्रम के द्वारा आदिवासी युवाओं को डिजिटल मोड के माध्यम से मेंटरशिप प्रदान की जाएगी।
  • डिजिटल रूप से सक्षम यह कार्यक्रम आदिवासी युवाओं की छिपी प्रतिभाओं का पता लगाने के लिये एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करने की परिकल्पना पर आधारित है, जो उनके व्यक्तिगत विकास में मदद करने के साथ-साथ उनके समाज के सर्वांगीण उत्थान में भी योगदान देगा।
  • डिजिटल कौशल (Digital Skilling) और प्रौद्योगिकी (Technology), जनजातीय समुदाय को समाज की मुख्यधारा के साथ जोड़ने में मददगार साबित होगी। 
  • जनजातीय उद्यमिता का विकास होगा और डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए आदिवासी युवाओं को घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से जोड़ा जाएगा।
  • इस कार्यक्रम को इस प्रकार से डिज़ाइन किया गया है जिससे आदिवासी युवााओं और महिलाओं को विभिन्न क्षेत्रों में यथा- बागवानी, खाद्य प्रसंस्करण, मधुमक्खी पालन, आदिवासी कला एवं संस्कृति आदि में डिजिटल कौशल और प्रौद्योगिकी के माध्यम से दीर्घकालिक स्तर पर ज्ञान प्राप्त हो सके।
  • यह कार्यक्रम आदिवासी महिलाओं को डिजिटल दुनिया से जोड़कर उनके सशक्तीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। 
  • जनजातीय युवाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने में सक्षम बनाने की दिशा में GOAL कार्यक्रम मददगार साबित होगा। 

गोल कार्यक्रम के मुख्य बिंदु:

  • कार्यक्रम के तहत चयनित 5,000 युवा जनजातीय उद्यमियों, पेशेवरों, कारीगरों और कलाकारों को डिजिटल-कौशल का प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा।
  • प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले युवाओं को ‘मेंटिस’ (Mentees) कहा जाएगा  तथा इन्हें विभिन्न विषयों और क्षेत्रों के विशेषज्ञों द्वारा जिन्हे ‘मेंटर्स’(Mentors) कहा जाएगा।
  • इसमें 2 ‘मेंटिस’ पर 1 ‘मेंटर्स’ को नियुक्त किया जाएगा।
  • कार्यक्रम का उद्देश्य दूरस्थ क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति (एसटी) के युवाओं को अपने गुरुओं/शिक्षकों के साथ अपनी आकांक्षाओं, सपनों और प्रतिभा को साकार करने के लिये डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करने में सक्षम बनाना है।
  • चयनित 5,000 ‘मेंटिस’ नौ महीने या 36 सप्ताह तक कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे, जिसमें 28 सप्ताह के मेंटरशिप कार्यक्रम के बाद आठ सप्ताह की इंटर्नशिप भी शामिल होगी। 
  • इस कार्यक्रम का मुख्य फोकस तीन मुख्य क्षेत्रों पर होगा, जिसमें शामिल है -
    • डिजिटल साक्षरता
    • जीवन कौशल, नेतृत्त्व, उद्यमशीलता, और कृषि
    • कला और संस्कृति, हस्तशिल्प वस्त्र, स्वास्थ्य, पोषण
  • इस कार्यक्रम को अन्य सरकारी योजनाओं जैसे- मुद्रा योजना, कौशल विकास योजना, जन धन योजना, कौशल भारत, स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया, अन्य के साथ एकीकृत करने का प्रयास किया जाएगा।

आवेदन की प्रक्रिया:

  • इच्छुक अभ्यर्थी ऑनलाइन पोर्टल “goal.tribal.gov.in” पर जाकर आवेदन कर सकते है।
  • ‘गोल’ कार्यक्रम के लिये आवेदन प्रक्रिया 4 मई, 2020 से 3 जुलाई, 2020 की मध्यरात्रि तक जारी रहेगी।
  • ‘मेंटर’ के तौर पर पंजीकरण के लिये, उद्योग और शिक्षा-जगत के अग्रणी विषय-विशेषज्ञों को goal.tribal.gov.in पोर्टल पर आमंत्रित किया गया है।

GOAL प्रथम चरण:

गोल का प्रथम चरण फेसबुक द्वारा वर्ष 2019 में फरवरी से अक्तूबर, 2019 तक 5 राज्यों में 100 ‘मेंटिस’ और 25 मेंटर्स के साथ पायलट प्रोजेक्ट के आधार पर संचालित किया गया था।

स्रोत: पीआईबी 


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

73वीं विश्व स्वास्थ्य सभा

प्रीलिम्स के लिये:

विश्व स्वास्थ्य सभा, विश्व स्वास्थ्य संगठन, वर्ल्ड ऑर्गनाइज़ेशन फॉर एनिमल हेल्‍थ

मेन्स के लिये:

COVID-19 पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका 

चर्चा में क्यों?

विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (World Health Organization-WHO) की 73वीं दो दिवसीय (18-19 मई) वार्षिक ‘विश्व स्वास्थ्य सभा’ (World Health Assembly) का जिनेवा में आयोजन किया जा रहा है। 

प्रमुख बिंदु:

  • उल्लेखनीय है कि ‘विश्व स्वास्थ्य सभा’ में COVID-19 से संबंधित मुद्दों पर निष्पक्ष जाँच हेतु मसौदा प्रस्ताव पेश किया गया है। 
  • भारत ने ‘विश्व स्वास्थ्य सभा’ में COVID-19 से संबंधित जाँच हेतु यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया के नेतृत्त्व में 62 देशों के गठबंधन का समर्थन किया है।
  • इन 62 देशों में बांग्लादेश, कनाडा, रूस, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, ब्रिटेन और जापान जैसे देश शामिल हैं। 
  • इस मसौदा प्रस्ताव में ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ और ‘वर्ल्ड ऑर्गनाइज़ेशन फॉर एनिमल हेल्‍थ’ (World Organization for Animal Health-OIE) को संयुक्त रूप से COVID-19 के स्रोतों का चिह्नित करना, मनुष्य COVID-19 के संपर्क में कैसे आया जैसे मुद्दों को वैज्ञानिक तरीके से जाँच करने का उल्लेख किया गया है।
  • मसौदा प्रस्ताव में सभी देशों को COVID-19 से संबंधित सटीक और पर्याप्त रूप से विस्तृत सार्वजनिक स्वास्थ्य जानकारी विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ साझा करने का उल्लेख है। 
  • ध्यातव्य है कि भारत ने मार्च 2020 में ही जी-20 शिखर सम्मेलन (G-20 Summit) में ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ में सुधार, पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकताओं का उल्लेख किया था।
  • ध्यातव्य है कि कुछ दिन पहले ही अमेरिका ने COVID-19 महामारी से निपटने में विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका पर सवाल उठाया था। साथ ही अमेरिका ने WHO को दी जाने वाली फंडिंग (Funding) पर भी रोक लगा दी थी। 

मसौदा प्रस्ताव पेश करने के कारण:

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन अपने दायित्त्वों का निर्वाह करने में विफल रहा है। ध्यातव्य है कि वर्ष 2017 में चीन की सहायता से टेड्रोस एडनॉम घेब्रेयसस (Tedros Adhanom Ghebreyesus) को विश्व स्वास्थ्य संगठन का महानिदेशक चुना गया था। 
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वायरस के बारे में चीन के ‘दुष्प्रचार’ को बढ़ावा दिया है, जिसके कारण संभवतः वायरस ने और अधिक गंभीर रूप धारण कर लिया है।

विश्व स्वास्थ्य सभा (World Health Assembly):

  • ‘विश्व स्वास्थ्य सभा’ सदस्य राष्ट्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतिनिधियों से बना है।
  • प्रत्येक सदस्य का प्रतिनिधित्व अधिकतम तीन प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है जिनमें से किसी एक को मुख्य प्रतिनिधि के रूप में नामित किया जाता है।
  • इन प्रतिनिधियों को स्वास्थ्य के क्षेत्र में उनकी तकनीकी क्षमता के आधार पर सबसे योग्य व्यक्तियों में से चुना जाता है क्योंकि ये सदस्य राष्ट्र के राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रशासन का अधिमान्य प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • विश्व स्वास्थ्य सभा की बैठक नियमित वार्षिक सत्र और कभी-कभी विशेष सत्रों में भी आयोजित की जाती है।

विश्व स्वास्थ्य सभा के कार्य:

  • विश्व स्वास्थ्य सभा WHO की नीतियों का निर्धारण करती है।
  • यह संगठन की वित्तीय नीतियों की निगरानी करती है एवं बजट की समीक्षा तथा अनुमोदन करती है।
  • यह WHO तथा संयुक्त राष्ट्र के मध्य होने वाले किसी भी समझौते के संदर्भ में आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (Economic and Social Council) को रिपोर्ट करता है।
  • संगठन के कर्मियों द्वारा स्वास्थ्य के क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देना और इसे संचालित करना।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

G-20 व्यापार और निवेश वर्चुअल मीटिंग

प्रीलिम्स के लिये:

 G-20 के बारे में

मेन्स के लिये:

COVID -19 बचाव में भारत द्वारा उठाए गए कदम 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में G-20 देशों द्वारा COVID-19 महामारी के संदर्भ में तत्काल ठोस कार्रवाइयों पर ध्यान केंद्रित करने तथा दवाओं तक पहुँच सुनिश्चित के संदर्भ में एक वर्चुअल व्यापार और निवेश मीटिंग का आयोजन किया गया।

प्रमुख बिंदु:

  • भारत ने इस मीटिंग में G-20 राष्ट्रों से आवश्यक दवाओं, उपचार और टीकों की सस्ती कीमतों पर पहुँच सुनिश्चित करने का आह्वान किया है।
  • भारत ने इस बात पर भी बल दिया कि अत्यावश्यक दवाओं, उपचार, टीकों तथा स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों की पहुँच को सीमा पार भी सुनिश्चित किये जाने के प्रयास करने चाहिये, ताकि ऐसे क्षेत्र जहाँ उनकी अत्यधिक आवश्यकता है, वहाँ ये सुविधाएँ आसानी से उपलब्ध कराई जा सकें।

भारत के प्रयास:

  • भारत द्वारा ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ परंपरा का अनुसरण करते हुए बताया गया कि इस बीमारी से निपटने के लिये भारत 120 से अधिक देशों को बिना शर्त चिकित्सा आपूर्ति उपलब्ध करा रहा है।
  • 120 से अधिक देशों में से 43 देशों को इस चिकित्सा आपूर्ति को अनुदान के रूप में उपलब्ध कराया गया है।
  • भारत द्वारा COVID-19 महामारी के चलते 10 मिलियन यूएस डॉलर का COVID-19 इमरजेंसी फंड बनाया गया है। 
  • इस फंड का उपयोग पड़ोसी देशों को तत्काल चिकित्सा आपूर्ति, उपकरण और मानवीय सहायता देने के लिये किया जा रहा है। 
  • भारत द्वारा बताया गया कि डिजिटल तकनीकों का उपयोग करते हुए चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञता क्षमता को साझा किया जा रहा है।
  • भारत द्वारा जानकारी दी गई कि COVID-19 के परीक्षण हेतु हर दिन लगभग 300,000 पीपीई (Personal Protective Equipment- PPE) का उत्पादन देश में ही किया जा रहा हैं।

जी -20 राष्ट्र:

  • यह 20 देशों का एक समूह है।
  • इसकी स्थापना 26 सितंबर, 1999 में एशिया में आए वित्तीय संकट के बाद वित्त मंत्रियों तथा संबंधित देशों के सेंट्रल बैंक के गवर्नरों की बैठक के तौर पर हुई थी। 
  • यह अपने सदस्यों देशों को अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग और कुछ मुद्दों पर निर्णय करने के लिये प्रमुख मंच प्रदान करता है। 
  • इस समूह में शामिल देश हैं-
  • अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, चीन, कनाडा, यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, रूस, मैक्सिको, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम।

स्रोत: पीआईबी


भारतीय अर्थव्यवस्था

आत्मनिर्भर भारत की दिशा में चौथे आर्थिक पैकेज की घोषणा

प्रीलिम्स के लिये:

आर्थिक पैकेज संबंधी प्रमुख तथ्य 

मेन्स के लिये:

प्रमुख आर्थिक क्षेत्रों में सुधार 

चर्चा में क्यों?

वित्त मंत्री ने COVID-19 महामारी आर्थिक पैकेज के रूप में आठ प्रमुख क्षेत्रों में नीतिगत सुधारों से संबंधित अहम उपायों की घोषणा की है।

प्रमुख बिंदु:

  • प्रधानमंत्री द्वारा 12 मई, 2020 को भारत की जीडीपी के 10% के बराबर, 20 लाख करोड़ रुपए के विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की गई थी। इसी दिशा में वित्त मंत्री द्वारा ‘चतुर्थ आर्थिक पैकेज’ की घोषणा की गई।
  • पैकेज के रूप में घोषित नीतिगत उपायों को ‘विकास के नवीन क्षितिज’ (New Horizons of Growth) की प्राप्ति के रूप में प्रारंभ किया जाएगा।
  • आर्थिक पैकेज की चौथी किस्त कोयला, खनिज, रक्षा उत्पादन, नागरिक उड्डयन क्षेत्र, केंद्र शासित प्रदेशों में बिजली वितरण कंपनियों, अंतरिक्ष क्षेत्र और परमाणु ऊर्जा क्षेत्र के संरचनात्मक सुधारों पर केंद्रित है

कोयला क्षेत्र (Coal Sector):

  • कोयले के आयात में कमी करने तथा कोयला उत्पादन में आत्मनिर्भरता बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • निजी क्षेत्र की भूमिका:
    • सरकार कोयला क्षेत्र मे प्रतिस्पर्द्धा, पारदर्शिता एवं निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने की दिशा में निम्नलिखित सुधारों को लागू करेगी।
    • ‘राजस्व साझाकरण मॉडल’ पर आधारित नवीन सुधारों को लागू किया जाए।
    •  निवेशकों के प्रवेश संबंधी मानदंडों को अधिक उदार बनाया जाएगा।
  • कोयला क्षेत्र में वाणिज्यिक खनन संबंधी सुधार:
    • आंशिक रूप से उत्पादन किये जा चुके कोयला-ब्लॉक के लिये अन्वेषण-सह-उत्पादन प्रणाली को लागू किया जाएगा।
    • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि वर्तमान समय में कोयला ब्लॉक की नीलामी कोयले के ‘पूर्ण खनन’ के लिये की जाती है परंतु अब आंशिक रूप से खनन किये जा चुके कोयला ब्लॉक की भी नीलामी की जा सकेगी। इन सुधारों से निजी क्षेत्र की भूमिका में वृद्धि होगी। 
  • कोयला क्षेत्र में विविध अवसर:
    • राजस्व हिस्सेदारी में छूट के माध्यम से कोयला गैसीकरण/द्रवीकरण को प्रोत्साहित किया जाएगा।
    • इससे पर्यावरणीय अवनयन में कमी आएगी तथा भारत को ‘गैस आधारित अर्थव्यवस्था’ बनने में मदद करेगा।
    • कोयला क्षेत्र में बुनियादी ढाँचे के विकास पर 50,000 करोड़ रुपए खर्च किये जाएंगे। 

कोयला क्षेत्र में उदारवादी शासन:

  • कोल इंडिया लिमिटेड के नियंत्रण वाली कोयला खदानों के 'कोल बेड मीथेन' (CBM) निष्कर्षण अधिकारों की नीलामी की जाएगी।

खनिज क्षेत्र में अन्य सुधार:

  • 'व्यवसाय करने में सुगमता' (Ease of Doing Business) की दिशा में 'खनन योजना सरलीकरण' (Mining Plan Simplification) जैसे उपायों को लागू किया जाएगा।
  • एक समग्र अन्वेषण-सह-खनन-सह-उत्पादन प्रणाली को लागू किया जाएगा। 

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता:

  • रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिये 'मेक इन इंडिया' पहल पर बल दिया जाएगा।
  • 'आयुध निर्माणी बोर्ड' (Ordnance Factory Board) का निगमीकरण किया जाएगा ताकि आयुध आपूर्ति में स्वायत्तता, जवाबदेही और दक्षता में सुधार हो सके।
  • स्वचालित मार्ग के तहत रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में FDI निवेश सीमा 49% से बढ़ाकर 74% की जाएगी।
  • समयबद्ध रक्षा खरीद प्रक्रिया और तेज़ी से निर्णय लेने की दिशा में 'परियोजना प्रबंधन इकाई' (Project Management Unit-PMU) तथा सामान्य कर्मचारी गुणात्मक आवश्यकताएँ (General Staff Qualitative Requirements- GSQRs) आदि की शुरुआत की जाएगी।

नागर विमानन (Civil Aviation):

  • 'भारतीय वायु अंतरिक्ष क्षेत्र' (Indian Air Space) के अधिक उपयोग की दिशा में प्रतिबंधों को कम किया जाएगा ताकि नागरिक उड़ान में अधिक कुशलता आ सके।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी’ (Public-Private Partnership-PPP) के माध्यम से अधिक विश्व स्तरीय हवाई अड्डों का निर्माण किया जाएगा। 
  • भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण’ (Airports Authority of India- AAI) द्वारा तीन चरणों में बोली प्रक्रिया के माध्यम से निजी निवेश को आमंत्रित किया जाएगा।
  • भारत विमान रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल (Maintenance, Repair and Overhaul- MRO) के रूप में एक वैश्विक केंद्र के रूप में उभर रहा है।
  • MRO के अनुकूल परिस्थतिकी के निर्माण के लिये कर व्यवस्था को युक्तिसंगत बनाया गया है।
  • रक्षा क्षेत्र तथा सिविल MRO के बीच अभिसरण बढ़ाने पर बल देना चाहिये ताकि ‘व्यापक आर्थिक स्तर’ (Economies of Scale) पर उत्पादन किया जा सके।

विद्युत क्षेत्र की शुल्क नीति में सुधार:

  • निम्नलिखित सुधारों के साथ एक नवीन टैरिफ नीति जारी की जाएगी, जिसमे उपभोक्ताओं के अधिकार, उद्योग को बढ़ावा देने तथा सेक्टर की स्थिरता संबंधी प्रावधान शमिल होंगे।
  • केंद्र शासित प्रदेशों में बिजली विभागों/इकाइयों का निजीकरण किया जाएगा।

सामाजिक अवसंरचना (Social Infrastructure):

  • सामाजिक अवसंरचना क्षेत्र में निजी निवेश को बढ़ाने के लिये ‘व्यवहार्यता अंतराल अनुदान’ (Viability Gap Funding- VGF) योजना को प्रयुक्त किया जाएगा।
  • VGF के रूप में कुल परियोजना लागत की 30% तक की राशि अनुदान के रूप में प्रदान की जा सकेगी।
  • इसमें कुल 8100 करोड़ रुपए का परिव्यय किया जाएगा।

अंतरिक्ष गतिविधि:

  • निजी क्षेत्र की क्षमता में सुधार करने के लिये निजी क्षेत्र को इसरो की सुविधाओं और अन्य प्रासंगिक संपत्तियों का उपयोग करने की अनुमति दी जाएगी।
  • भविष्य की इसरो की योजनाएँ जैसे- ग्रहों की खोज, बाहरी अंतरिक्ष यात्रा आदि में निजी क्षेत्र को प्रवेश की अनुमति होगी।

परमाणु ऊर्जा (Atomic Energy):

  • चिकित्सकीय उपयोग के समस्थानिकों के उत्पादन के लिये PPP मोड में अनुसंधान रिएक्टर स्थापित किया जाएगा। ताकि कैंसर और अन्य बीमारियों की सस्ती उपचार प्रणाली उपलब्ध हो सके।
  • खाद्य संरक्षण को बढ़ाने में विकिरण आधारित प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ाया जाएगा। किसानों की सहायता के लिये PPP मोड में सुविधा केंद्र स्थापित किये जाएंगे।
  • अनुसंधान सुविधाओं और तकनीक-उद्यमियों के बीच तालमेल को बढ़ावा देने के लिये प्रौद्योगिकी विकास सह इंक्यूबेशन केंद्र स्थापित किये जाएंगे।

स्रोत: पीआईबी


भारतीय अर्थव्यवस्था

अमेरिका-चीन व्यापार समझौता

प्रीलिम्स के लिये:

अधिमानी व्यापार व्यवस्था, सामान्यीकृत अधिमानी प्रणाली

मेन्स के लिये:

व्यापार युद्ध का भारत पर प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

अमेरिका तथा चीन के मध्य वर्ष 2020 के शुरूआत में व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किये गए, जिससे दोनों देशों के मध्य चल रहे व्यापार युद्ध पर विराम लगाता है परंतु इस सौदे से अन्य व्यापारिक साझेदारों की चिंता बढ़ा दी है क्योंकि यह समझौता अमेरिका को चीनी बाज़ारों तक पहुँच में वरीयता देता है।

प्रमुख बिंदु:

  • एक अध्ययन के अनुसार, अमेरिका-चीन व्यापार समझौता 'व्यापार युद्ध' की तुलना में बेहतर है, हालाँकि यह समझौता दुनिया के बाकी देशों को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है।
  • एक अध्ययन में अमेरिका-चीन व्यापार समझौते तथा अमेरिका का चीन के अलावा अन्य देशों के साथ किये गए 'अधिमानी व्यापार समझौतों' (Preferential Trade Agreements- PTAs) का कैरोलिन फ्रायंड और उनके सह-लेखक (Caroline Freund and her co-authors) द्वारा तुलनात्मक अध्ययन किया गया।

अधिमानी व्यापार व्यवस्था (Preferential Trade Arrangements):

  • ‘विश्व व्यापार संगठन में' अधिमानी व्यापार व्यवस्था' एकतरफा प्रदान की जाने वाली व्यापार प्राथमिकताएँ हैं। उनमें 'सामान्यीकृत अधिमानी प्रणाली' (Generalized System of Preferences) (जिसके तहत विकसित देश विकासशील देशों से आयात को प्राथमिकता देते  हैं), साथ ही अन्य गैर-पारस्परिक अधिमान्य योजनाओं को ‘विश्व व्यापार संगठन’ की ‘सामान्य परिषद’ द्वारा छूट प्रदान की गई है।

अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष:

  • अध्ययन में अमेरिकी बाज़ार तक पहुँच में मदद करने वाली व्यापारिक संधियों तथा इन संधियों की अनुपस्थिति में बाज़ार तक पहुँच संबंधी विषयों का तुलनात्मक विश्लेषण किया गया।
  • यदि चीन, अमेरिका के ‘अधिमान्य व्यापार व्यवस्था’ के माध्यम से अपने आयात लक्ष्य को पूरा करता है, तो दोनों देशों पर सकारात्मक प्रभाव होगा।
  • परंतु यदि चीन टैरिफ में कमी या आयात सब्सिडी जैसे भेदभावपूर्ण उपायों का समर्थन करता है, तो इससे चीन तथा अमेरिका आयात करने वाले अन्य देशों को नुकसान हो सकता है।

क्या है मामला?

  • अमेरिका और चीन के मध्य लंबे समय से चल रहा व्यापार युद्ध के बाद वर्ष 2020 के प्रारंभिक महीनों में, दोनों देशों द्वारा व्यापार समझौते को अंतिम रूप दिया गया था। 
  • इस क्रम में पहला सुव्यवस्थित प्रयास तब दिखाई दिया जब अमेरिका ने चीन के 160 अरब डॉलर के सामानों पर शुल्क लगाने के विचार को कुछ समय के लिये टाल दिया। 
  • हालाँकि मौजूदा समय में दोनों देशों के मध्य प्रतिद्वंद्विता व्यापार से कहीं आगे बढ़ चुकी है। ऐसे में यह जानना महत्त्वपूर्ण है कि विश्व की दो बड़ी शक्तियों के मध्य संघर्ष का विश्व के विभिन्न देशों पर किस प्रकार का प्रभाव होगा और विशेष तौर पर भारत के लिये इसके क्या मायने हैं? 

व्यापार समझौते के संभावित परिणाम:

  • व्यापार समझौता विश्व स्तर पर फायदेमंद होगा या नहीं यह इस पर निर्भर करता है कि चीन इसे कैसे लागू करता है। वर्ष 2019 के 'ग्लोबल ट्रेड एनालिसिस डेटाबेस' के आँकड़ों के आधार पर किये गए विश्लेषण के अनुसार, तीन संभावित परिणाम देखने को मिल सकते हैं:
  • यदि टैरिफ और आयात सब्सिडी अपरिवर्तित रहे: 
    • ऐसी स्थिति में केवल अमेरिका लाभ की स्थिति में होगा तथा अमेरिका के निर्यात में, वर्ष 2021 में 3% की वृद्धि देखी जा सकती है।
    • ऐसे में चीन तथा दुनिया के बाकी देशों के निर्यात में क्रमश: 0.4% एवं 0.16% की कमी देखी जा सकती है।
  • यदि टैरिफ में वृद्धि की जाती है: 
    • ऐसी स्थिति में अमेरिकी निर्यात में 5% की वृद्धि जबकि चीन के निर्यात में 4% की वृद्धि होती है। जबकि शेष दुनिया के वास्तविक आय में 0.2% कमी देखी जा सकती है।
  • यदि चीन सभी देशों के लिये टैरिफ में कमी करता है:
    • ऐसी स्थिति में वैश्विक आय में 0.6% तथा चीन की आय में .5% की वृद्धि देखी जा सकती है।

निष्कर्ष:

  • संयुक्त राष्ट्र के एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्ध से भारतीय अर्थव्यवस्था को फायदा हो सकता है क्योंकि इससे देश के निर्यात में लगभग 3.5% की तेज़ी आ सकती है। 
  • अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्ध का लाभ कई देशों को मिल रहा है, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, भारत, फिलीपींस, पाकिस्तान और वियतनाम प्रमुख हैं। इस लाभों के होते हुए भी ‘आत्मनिर्भर भारत’ के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ना चाहिये।  

स्रोत: लाइव मिंट


भारतीय अर्थव्यवस्था

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ

प्रीलिम्स के लिये:

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ, भारतीय रिज़र्व बैंक, भारतीय लेखा मानक 

मेन्स के लिये:

NBFCs के समक्ष संकट एवं निवारण 

चर्चा में क्यों? 

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non-banking financial companies- NBFCs) ने 15 मई, 2020 को भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) से अनुरोध किया कि वह COVID-19 महामारी के कारण अपेक्षित नुकसान हेतु अतिरिक्त प्रावधान करने के लिये अपने रिज़र्व से निकासी की अनुमति दें।

प्रमुख बिंदु:

  • संपत्ति एवं ऋण-वित्तपोषण NBFC का एक प्रतिनिधि निकाय ‘वित्त उद्योग विकास परिषद’ (Finance Industry Development Council- FIDC) ने बताया है कि सामान्य तौर पर ‘चूक की संभावना’ (Probability of Default-PD) और ‘चूक से हुए नुकसान’ (Loss Given Default-LGD) के अनुसार गणना किये गए प्रावधान अधिक होने से NBFC को अपने रिज़र्व से निकासी करने और अतिरिक्त ‘अपेक्षित क्रेडिट घाटे’ (Expected Credit Losses- ECL) की आवश्यकता को समायोजित करने की अनुमति देने के लिये निवेदन किया है।

अपेक्षित क्रेडिट घाटा (Expected Credit Losses- ECL): 

  • यह एक वित्तीय साधन के अपेक्षित समय पर क्रेडिट घाटे की संभावना-भारित अनुमान को दर्शाता है।

चूक की संभावना (Probability of Default-PD):

  • ‘चूक की संभावना’ एक वित्तीय शब्द है जो किसी विशेष समय में क्षितिज पर चूक की संभावना का वर्णन करता है। यह संभावना का अनुमान लगता है कि एक उधारकर्त्ता अपने ऋण दायित्त्वों को पूरा करने में असमर्थ होगा।

चूक से हुए नुकसान (Loss Given Default-LGD):

  • LGD वह राशि है जो एक बैंक या अन्य वित्तीय संस्थान खो देता है इसे जब कोई उधारकर्त्ता ऋण पर चूक करता है तो डिफ़ॉल्ट के समय कुल जोखिम के प्रतिशत के रूप में दर्शाया जाता है।
  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC) को ‘भारतीय लेखा मानकों’ (Indian Accounting Standards- IndAS) का अनुपालन करना आवश्यक है। 
  • ‘इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टेड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया’ (ICAI) ने NBFCs को सलाह दी है कि COVID-19 के कारण उधारकर्त्ताओं या देनदारों के व्यवसाय पर प्रतिकूल प्रभाव के साथ PD और LGD के रूप में पोर्टफोलियो गुणवत्ता पर COVID-19 के प्रभाव को मापने के लिये और अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाए रखने के लिये विवेकपूर्ण नियामक कार्रवाई आवश्यक है।
  • ECL माप और वित्तीय विवरणों में प्रकटीकरण के संबंध में लागू IndAs मानदंडों के अनुसार, NBFC को ICAI के सलाहकार के संदर्भ में अतिरिक्त प्रावधान करने की आवश्यकता है जो निश्चित रूप से संबंधित NBFC की लाभप्रदता एवं कुल मूल्य को गंभीर नुकसान पहुँचाएगा।
  • इस क्षेत्र (NBFCs) ने RBI से मानक संपत्ति के संबंध में ECL के अनुसार किए गए किसी भी प्रावधान की अनुमति देने पर विचार करने के लिये कहा है।
  • गौरतलब है कि NBFC बैंकिंग प्रणाली से बाहर उपभोक्ताओं की विविध वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए देश के समावेशी विकास में तथा सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) को उनकी व्यावसायिक आवश्यकताओं के लिये सबसे उपयुक्त नवोन्मेषी वित्तीय सेवाएँ प्रदान करने में प्रायः NBFC अग्रणी भूमिका निभाते हैं।
    • म्यूचुअल फंड और NBFC क्षेत्र दृढ़ता से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं क्योंकि म्यूचुअल फंड ही वाणिज्यिक पत्र (Commercial paper) और ऋण-पत्र (Debentures) के माध्यम से NBFC का सबसे बड़ा वित्त प्रदाता है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

आत्मनिर्भर भारत अभियान की पाँचवीं किश्त

प्रीलिम्स के लिये:

आत्मनिर्भर भारत अभियान, COVID-19

मेन्स के लिये:

COVID-19 के कारण उत्पन्न हुई चुनौतियों से निपटने हेतु सरकार के प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा देश में COVID-19 से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने हेतु ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ के तहत राहत पैकेज की पाँचवीं किश्त की घोषणा की है। सरकार के द्वारा जारी इस पैकेज में निजी क्षेत्र और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • केंद्र सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार की बढ़ती मांग को देखते हुए आत्मनिर्भर भारत अभियान की पाँचवीं और अंतिम किश्त में मनरेगा (‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम’) के बजट परिव्यय में 65% की वृद्धि की गई है।
  • साथ ही राज्यों के सकल घरेलू उत्पाद’ पर राज्यों की ऋण लेने की सीमा को 3% से बढ़ाकर 5% कर दिया गया है।
  • केंद्र सरकार की नई नीति के तहत निजी कंपनियों को सभी क्षेत्रों में अनुमति दी गई है जबकि सार्वजनिक कंपनियों/उद्यमों को रणनीतिक क्षेत्रों के लिये सीमित रखा गया है। 
  • इसके अतिरिक्त कॉर्पोरेट उद्यमों को ‘भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता कोड’ (Insolvency and Bankruptcy Code- IBC) और कंपनी अधिनियम (Company Act) में भी कुछ परिवर्तनों के माध्यम से राहत दी गई है।

 ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार: 

  • COVID-19 और इसके नियंत्रण हेतु लागू लॉकडाउन से औद्योगिक गतिविधियों के बंद होने के कारण पिछले कुछ दिनों में देश में शहरी क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों की तरफ बड़ी संख्या में मज़दूरों का पलायन देखने को मिला है।
  • ऐसे में आने वाले दिनों में ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार की बढती मांग को पूरा करने के लिये केंद्र सरकार ने मनरेगा योजना के तहत 40,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त धनराशि जारी करने की घोषणा की है।
  • वर्ष 2006 में 200 ज़िलों से शुरू किये गए मनरेगा कार्यक्रम के तहत हाल के वर्षों में वर्ष 2010-11 (5.5 करोड़ परिवार) के बाद पुनः रोज़गार की मांग में काफी वृद्धि देखने को मिली है। (2018-19 में 5.27 करोड़ और 2019-20 में 5.47 करोड़) 
  • केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, पिछले वर्ष की तुलना में मई, 2020 में मनरेगा के तहत पंजीकृत श्रमिकों की संख्या में 40-50% की वृद्धि देखी गई है।
  • हाल ही में केंद्र सरकार ने मनरेगा के तहत औसत दैनिक मज़दूरी को 182 बढ़ाकर 202 रुपए कर दिया था।

संशोधित ऋण सीमा: 

  • केंद्र सरकार ने वर्तमान चुनौतियों को देखते हुए राज्यों को उनके राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (Gross State Domestic Product- GSDP)  पर ऋण लेने की सीमा को 3% से बढ़ाकर 5% कर दिया है।
  • सरकार के इस फैसले के परिणामस्वरूप राज्य सरकारों को 4.28 लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त आर्थिक मदद दी जा सकेगी।
  • हालाँकि राज्यों को बढ़ी हुई ऋण सीमा का लाभ लेने के लिये केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित कुछ शर्तों का पालन करना पड़ेगा। 

संशोधित ऋण सीमा की शर्तें:

  • केंद्र सरकार द्वारा संशोधित ऋण सीमा में से मात्र 0.5% ही बिना किसी शर्त के जारी किया जा सकता है, जबकि बाकी 1.5% के लिये राज्यों को कुछ अनिवार्य शर्तों का पालन करना होगा। 
  • इस संशोधित सीमा के तहत GSDP पर मिलने वाले 1% ऋण को कुछ शर्तों के आधार पर 0.25% की चार किश्तों में जारी किया जाएगा। 
  • ये चार किश्तें राज्य सरकारों को राशन वितरण प्रणाली में सुधार (एक देश, एक राशन कार्ड), स्थानीय निकायों में सुधार, विद्युत वितरण प्रणाली और ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस (Ease of Doing Business) की दिशा में आवश्यक सुधारों के लिये दी जाएंगी। 
  • शेष 0.5% ऋण की अनुमति के लिये उपरोक्त चार लक्ष्यों में से तीन लक्ष्यों को प्राप्त करना आवश्यक होगा।

निजी क्षेत्र को बढ़ावा: 

  • केंद्र सरकार की घोषणा के अनुसार, सरकार द्वारा प्रस्तावित नई नीति के तहत रणनीतिक क्षेत्रों के साथ ही सभी औद्योगिक क्षेत्रों को निजी क्षेत्र के लिये खोल दिया जाएगा।  
  • इस नई नीति के तहत ऐसे रणनीतिक क्षेत्रों की सूची जारी की जाएगी जहाँ निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ कम-से-कम एक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी/उपक्रम  (Public Sector Undertakings- PSUs) की उपस्थिति आवश्यक होगी।
  • सरकार की योजना के तहत अन्य सभी क्षेत्रों में व्यवहारिकता के आधार पर सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के निजीकरण को बढ़ावा दिया जाएगा।
  • प्रस्तावित योजना के तहत सामान्यतः रणनीतिक क्षेत्रों में PSUs की अधिकतम संख्या चार ही होगी बाकी अन्य कंपनियों के लिये निजीकरण, विलय आदि के विकल्प खुले होंगे।
  • वित्तीय वर्ष 2019-20 के बजट में भी केंद्रीय वित्तमंत्री ने गैर-वित्तीय सार्वजनिक कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी को 51% से कम करने की बात कही थी।

अन्य आर्थिक सुधार: 

  • सरकार ने निजी क्षेत्र की कंपनियों को विदेशी शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध करने के नियमों में ढील देने का प्रस्ताव किया है। 
  • केंद्र सरकार की घोषणा के अनुसार, COVID-19 से जुड़े ऋण को इनसॉल्वेंसी कार्यवाही शुरू करने का आधार नहीं माना जाएगा और साथ ही केंद्र सरकार द्वारा अगले एक वर्ष के लिये दिवालियापन से जुड़ी कोई कार्रवाई नहीं शुरू की जाएगी। 
  • ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों’ (Micro, Small & Medium Enterprises- MSME) की इनसॉल्वेंसी प्रक्रिया शुरू करने की न्यूनतम सीमा बढ़ा कर 1 करोड़ रुपए कर दी गई है।    

स्वास्थ्य क्षेत्र में प्रस्तावित सुधार: 

  • केंद्रीय वित्तमंत्री ने स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधारों हेतु ‘स्वास्थ्य और देखभाल केंद्रों’ के सरकारी खर्च में वृद्धि और हर ज़िले में संक्रामक रोगों के लिये विशेष अस्पताल तथा ब्लॉक स्तर पर प्रयोगशालाओं की स्थापना की बात कही।
  • हालाँकि स्वास्थ्य क्षेत्र में प्रस्तावित सुधारों के संदर्भ में किसी वित्तीय परिव्यय की जानकारी नहीं दी गई है।

शिक्षा क्षेत्र से जुड़ी योजनाएँ: 

  • COVID-19 और लॉकडाउन के कारण हो रहे अकादमिक नुकसान को देखते हुए केंद्र सरकार द्वारा ‘पीएम ई-विद्या' (PM e-Vidya) योजना की घोषणा की जाएगी।
  • इस योजना के तहत छात्रों को विभिन्न माध्यमों के जरिये शैक्षिक सामग्री उपलब्ध कराई जाएगी, साथ ही कक्षा 1 से 12 के लिये अलग-अलग टीवी चैनलों की शुरुआत भी की जाएगी।
  • इससे पहले केंद्र सरकार ने इस माह के अंत तक देश में शीर्ष के 100 विश्वविद्यालयों के द्वारा ऑनलाइन कक्षाओं को चालू किये जाने की योजना की घोषणा की थी।

लाभ:   

  • केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा के लिये प्रस्तावित राशि में वृद्धि के निर्णय से ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार की चुनौती को कम करने में सहायता प्राप्त होगी।
  • COVID-19 के कारण अगले कुछ महीनों तक रोज़गार के अवसरों में कमी बनी रह सकती है, ऐसे में मनरेगा के तहत श्रमिकों की दैनिक आय में वृद्धि से इस योजना से जुड़े परिवारों को आर्थिक मदद पहुँचाई जा सकेगी।
  • COVID-19 और लॉकडाउन के कारण राज्य सरकारों की आय और जीडीपी में भारी गिरावट का अनुमान है, ऐसे में ऋण सीमा को 3% से बढ़ाकर 5% करने से राज्य सरकारों को वर्तमान आर्थिक चुनौतियों से निपटने में मदद प्रदान की जा सकेगी।
  • लॉकडाउन का प्रभाव अन्य क्षेत्रों के साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी देखने को मिला है, शहरी क्षेत्रों में रहने वाले व आर्थिक रूप से मज़बूत परिवारों के छात्र इंटरनेट के माध्यम से कुछ सीमा तक अपनी शिक्षा जारी रखने में सफल रहे थे परंतु ग्रामीण और कम आय वाले परिवारों के लिये यह एक चुनौती थी, ऐसे में PM e-Vidya योजना के माध्यम से देश के सभी क्षेत्रों में ऑनलाइन शिक्षा की पहुँच सुनिश्चित की जा सकेगी।   

चुनौतियाँ:    

  • विशेषज्ञों के अनुसार, ऋण सीमा में वृद्धि के साथ रखी गई अनिवार्य शर्तों के कारण राज्य सरकारें इसके तहत अधिक धन नहीं निकलना चाहेंगी और राज्य सरकारों को महँगी दरों पर बाज़ार से धन जुटाना पड़ेगा। अतः इन योजनाओं में केंद्र व राज्य सरकारों के बीच और विचार-विमर्श किया जाना चाहिये था।   
  • वर्तमान में वैश्विक मंदी जैसी स्थितियों के बीच PSUs के विलय या निजीकरण से सरकार को अधिक खरीददार नहीं मिलेंगे और प्रतिस्पर्द्धा के अभाव में निजीकरण से अपेक्षित धन नहीं प्राप्त हो सकेगा।

स्रोत:  द हिंदू  


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 18 मई, 2020

‘राजीव गांधी किसान न्याय’ योजना

हाल ही में छत्तीसगढ़ सरकार ने ‘राजीव गांधी किसान न्याय’ योजना शुरू करने का निर्णय लिया है। ध्यातव्य है कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में छत्तीसगढ़ में फसल उत्पादन को प्रोत्साहित करने तथा किसानों को कृषि सहायता प्रदान के उद्देश्य से ‘राजीव गांधी किसान न्याय’ योजना शुरू करने का अनुमोदन किया है। इस योजना का शुभारंभ 21 मई, 2020 को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पुण्यतिथि के अवसर पर किया जाएगा। इस योजना के अंतर्गत धान, मक्का और गन्ना आदि की फसल के लिये 10 हजार रुपए प्रति एकड़ की दर से प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के माध्यम से अनुदान राशि सीधे किसानों के खाते में दी जाएगी। ‘राजीव गांधी किसान न्याय’ योजना के तहत राज्य के 18 लाख 75 हजार किसानों को लाभ मिलेगा। इस संबंध में जारी सूचना के अनुसार, राज्य सरकार ने इसके लिये बजट में 5100 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के अनुसार, ‘राजीव गांधी किसान न्याय योजना' बहुत ही दूरगामी निर्णय है और यह छत्तीसगढ़ के किसानों के लिये इस संकट की घड़ी में संजीवनी के रूप में कार्य करेगा। इसके अतिरिक्त छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य में COVID-19 महामारी को देखते हुए देशी और विदेशी शराब के विक्रय पर ‘विशेष कोरोना शुल्क‘ अधिरोपित करने का निर्णय लिया है। इसके तहत देशी शराब पर 10 रुपए प्रति बोतल और विदेशी शराब पर उसके फुटकर विक्रय कीमत का 10 फीसदी विशेष कोरोना शुल्क लिया जाएगा।

अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस

सामाजिक विकास में संग्रहालयों की महत्त्वपूर्ण भूमिका को लेकर जागरुकता बढ़ाने के उद्देश्य से विश्व भर में 18 मई को ‘अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस’ मनाया जाता है। इस दिवस के आयोजन का मुख्य उद्देश्य आम जनमानस में संग्रहालयों के प्रति जागरुकता पैदा करना और उन्हें संग्रहालयों में जाकर अपने इतिहास को जानने के प्रति जागरुक बनाना है। इस दिवस का आयोजन प्रत्येक वर्ष इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ म्यूज़ियम (International Council of Museums-ICOM) द्वारा किया जाता है। यह दिवस संग्रहालयों के पेशेवरों को आम लोगों से मिलने और उन्हें संग्रहालयों के समक्ष आने वाली चुनौतियों से अवगत कराने का मौका देता है। भारत में इस दिवस पर कई संग्रहालयों में विभिन्न-विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं, जिनमें लोगों को संग्रहालय के बारे में विस्तार से बताया जाता है। वर्ष 2020 के लिये अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस की थीम ‘समानता के लिये संग्रहालयः विविधता और समावेश’ (Museums for Equality: Diversity and Inclusion) रखा गया है। वर्ष 1977 से प्रत्येक वर्ष अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस का आयोजन किया जा रहा है। इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ म्यूज़ियम सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने तथा संरक्षण देने हेतु प्रतिबद्ध विश्व के संग्रहालयों और संग्रहालय पेशेवरों का एकमात्र संगठन है।

राष्‍ट्रीय डेंगू दिवस

16 मई को देश भर में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय डेंगू दिवस मनाया जाता है। इस दिवस के आयोजन का मुख्य उद्देश्य आम लोगों के मध्य डेंगू के विषय में जागरुकता पैदा करना है। ध्यातव्य है कि डेंगू दुनिया के कई हिस्सों में तेजी से उभरती हुई वायरल बीमारी है। डेंगू के वायरस का मुख्य वाहक एडीज़ एजिप्टी मच्छर (Aedes Aegypti Mosquito) होता है। डेंगू शहरी गरीब क्षेत्रों, उपनगरों और ग्रामीण इलाकों में पनपता है लेकिन उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय देशों में अधिक समृद्ध पड़ोसी देशों को भी प्रभावित कर सकता है। 16 मई, 2020 को इस अवसर पर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा डेंगू से बचने के उपायों के बारे में जानकारी प्रदान की गई। इसके अनुसार प्रत्‍येक व्‍यक्ति को अपने आसपास का स्थान साफ-सुथरा रखना चाहिये और कहीं पर भी पानी का जमाव नहीं होने देना चाहिये। कूलरों की सप्‍ताह में कम-से-कम एक बार सफाई की जानी चाहिये। लोगों को मच्‍छरदानी और मच्‍छरों को भगाने वाली दवाओं का प्रयोग करने की सलाह भी दी गई है। 

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना

वर्ष 2016 में शुरू हुई प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना ने अपने सफल कार्यान्वयन के चार वर्ष पूरे कर लिये हैं। ध्यातव्य है कि इस योजना के कारण अब तक 8 करोड़ परिवारों को लाभांवित किया गया है। इस अवसर पर केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री ने कहा कि अब तक प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) के माध्यम से लाभार्थियों के खातों में 8432 रुपए से अधिक राशि हस्‍तांतरित की गई है, ताकि इस सुविधा का लाभ उठाने में कोई कठिनाई न हो। BPL अर्थात् गरीबी रेखा से नीचे (Below Poverty Line) जीवनयापन करने वाले परिवारों की महिलाओं को निःशुल्क LPG कनेक्शन देने के लिये प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने 10 मार्च, 2016 को ‘प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना’ को स्वीकृति दी थी। इस योजना की शुरुआत 1 मई, 2016 को उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले से हुई थी। इस योजना में नया LPG कनेक्शन उपलब्ध कराने के लिये 1600 रुपए की नकद सहायता देना शामिल है और यह सहायता राशि केंद्र सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जाती है।


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