शासन व्यवस्था
गुणवत्ता नियंत्रण आदेश
प्रिलिम्स के लिये: भारतीय मानक ब्यूरो, गुणवत्ता नियंत्रण आदेश, विश्व व्यापार संगठन
मेन्स के लिये: भारत में गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (QCO), गुणवत्ता आश्वासन और उद्योग प्रतिस्पर्द्धात्मकता के बीच संतुलन के उपाय।
चर्चा में क्यों?
पिछले तीन वर्षों में भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) द्वारा जारी गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों (QCOs) में तेज़ी से हुई बढ़ोतरी की सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) ने आलोचना की है। इन अनिवार्य QCO नियमों को वे अपनी गतिविधियों के लिये महँगा और प्रतिबंधात्मक मानते हैं।
गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (QCO) क्या हैं?
- परिचय: BIS प्रमाणन सामान्य रूप से स्वैच्छिक होता है, लेकिन कुछ उत्पादों के लिये यह सार्वजनिक हित में अनिवार्य हो जाता है, जैसे स्वास्थ्य, पर्यावरण, राष्ट्रीय सुरक्षा या अनुचित व्यापार प्रथाओं को रोकने के लिये।
- ऐसे उत्पादों के लिये भारतीय मानकों के साथ अनिवार्य अनुपालन गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों (QCOs) के माध्यम से लागू किया जाता है, जो एक वैध BIS लाइसेंस के तहत BIS मानक चिह्न के उपयोग को निर्देशित करते हैं।
- उद्देश्य: विश्व व्यापार संगठन (WTO) के तकनीकी व्यापार बाधाओं पर (TBT) समझौते के अनुरूप, QCOs का लक्ष्य उत्पाद सुरक्षा सुनिश्चित करना, घटिया सामान पर अंकुश लगाना, निवेश आकर्षित करना और उपभोक्ताओं की रक्षा करना है। साथ ही यह निर्माताओं को शुरुआती स्तर पर दोषों का पता लगाने और गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करता है।
- कानूनी प्रावधान: BIS अधिनियम, 2016 के आधार पर QCOs संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों या नियामकों द्वारा विशेष उत्पादों या श्रेणियों के लिये BIS से परामर्श के बाद जारी किये जाते हैं।
- QCOs के अंतर्गत आने वाले उत्पादों का नियमन भारतीय मानक ब्यूरो (अनुरूपता निर्धारण) विनियम, 2018 के अनुसार किया जाता है।
- किसी QCO का उल्लंघन करने पर BIS अधिनियम, 2016 के तहत कारावास, जुर्माना या दोनों दंड दिये जा सकते हैं।
- यदि QCOs को स्वास्थ्य, सुरक्षा, पर्यावरण, भ्रामक व्यापार प्रथाओं या राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर लागू किया गया हो तो उन्हें WTO में चुनौती नहीं दी जा सकती।
- निषेध आदेश: QCO लागू होने के बाद कोई भी व्यक्ति वैध लाइसेंस के तहत BIS मानक चिह्न के बिना, कवर किये गए उत्पादों का निर्माण, आयात, बिक्री या प्रबंधन नहीं कर सकता।
- आयातित वस्तुओं पर प्रयोज्यता: घरेलू नियम आयात पर भी समान रूप से लागू होते हैं। विदेशी निर्माताओं को विदेशी निर्माता प्रमाणन योजना (FMCS) के तहत लाइसेंस/अनुरूपता प्रमाणपत्र (CoC) प्राप्त करना होगा।
गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (QCO) से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- उच्च अनुपालन लागत: QCOs के तहत BIS प्रमाणन अनिवार्य हो जाता है और अनुपालन न करने पर दंड का प्रावधान है।
- मध्यवर्ती वस्तुओं के उत्पादक आमतौर पर इसका समर्थन करते हैं, लेकिन डाउनस्ट्रीम उद्योग चिंतित हैं कि अतिरिक्त प्रमाणन लागत उत्पादन व्यय बढ़ा देगी और अंततः उपभोक्ता कीमतों में वृद्धि होगी, जिससे विवाद की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- बड़ी कंपनियों की तुलना में छोटे उद्यमों को प्राय: अनुपालन करने में कठिनाई होती है, जिससे प्रतिस्पर्द्धा प्रभावित होती है।
- गैर-शुल्क बाधा प्रभाव: QCO कुछ वस्तुओं के आयात को प्रतिबंधित कर सकते हैं, जिससे किफायती कच्चे माल तक पहुँच सीमित हो जाती है।
- QCO भारत की व्यापार वार्ताओं को जटिल बना सकते हैं, क्योंकि अनिवार्य अनुपालन आवश्यकताओं को साझेदार देश गैर-शुल्क बाधाओं के रूप में देख सकते हैं, जिससे अमेरिका, यूरोपीय संघ और अन्य व्यापारिक साझेदारों के साथ समझौतों पर असर पड़ सकता है।
- सीमित कवरेज और उद्योग का विरोध: 23,000 से अधिक BIS मानकों में से केवल 187 पर ही QCO लागू हैं, जो मुख्यतः इस्पात और इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में हैं। यह उनकी सीमित पहुँच और व्यापक प्रवर्तन में आने वाली चुनौतियों को दर्शाता है।
- कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियाँ: BIS प्रमाणन प्राप्त करने में देरी या कठिनाइयाँ उत्पादन और बिक्री को बाधित कर सकती हैं।
QCO से संबंधित वर्तमान चुनौतियों का समाधान करने हेतु BIS द्वारा उठाए गए कदम
- प्रमाणीकरण का डिजिटलीकरण: BIS ने प्रमाणन प्रक्रिया का डिजिटलीकरण किया है और घरेलू उद्योगों, जिनमें MSME भी शामिल हैं, को 30 दिनों के भीतर समयबद्ध प्रमाणन प्रदान करता है, जिसमें 750 से अधिक उत्पाद शामिल हैं।
- खुले संवाद मंच:
- जन सुनवाई: एक पोर्टल जहाँ कोई भी प्रश्न पूछ सकता है।
- मानक मंथन: MSME को सहायता प्रदान करने हेतु क्षेत्र-स्तरीय सहभागिता।
QCO के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने हेतु किन उपायों की आवश्यकता है?
- क्लस्टर-आधारित परीक्षण सुविधाओं की मान्यता: साझा परीक्षण अवसंरचना वाले उद्योग क्लस्टरों को बढ़ावा देना, छोटे उद्यमों को कम लागत पर गुणवत्ता प्रमाणन तक पहुँचने में सहायता करता है और संसाधनों की पुनरावृत्ति को रोकता है।
- तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण: भारतीय मानकों, उत्पाद परीक्षण और प्रलेखन पर व्यावहारिक प्रशिक्षण कार्यक्रम उपलब्ध कराने से प्रमाणन अनुपालन को सुचारु बनाया जा सकता है।
- बाज़ार संपर्क और निर्यात समर्थन: प्रमाणित MSME उत्पादों को सरकारी खरीद योजनाओं, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म और निर्यात प्रोत्साहन कार्यक्रमों से जोड़ना अनुपालन को प्रोत्साहित करता है तथा बाज़ार पहुँच बढ़ाता है।
- प्रमाणीकरण निकायों और व्यापार समझौतों का लाभ उठाना: निम्न और मध्यम जोखिम वाले उत्पादों के लिये मान्यता प्राप्त प्रमाणन निकायों का उपयोग करने से BIS का कार्यभार कम होता है तथा प्रक्रिया समय सुधरता है।
- व्यापार वार्ताओं में पारस्परिक मान्यता समझौतों (MRA) को आगे बढ़ाने से निर्यात के लिये अनुपालन सरल होता है और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार तक पहुँच सुलभ होती है।
- सतत् सुधार हेतु प्रतिपुष्टि तंत्र: वास्तविक-समय शिकायत निवारण और सुझाव प्रणाली बनाना MSME को बाधाओं की रिपोर्ट करने में सक्षम बनाता है तथा नियामकों को QCO प्रक्रियाओं को गतिशील रूप से परिष्कृत करने में सहायता करता है।
निष्कर्ष
प्रभावी QCO क्रियान्वयन के लिये नियामकीय स्पष्टता, डिजिटल सुविधा, वित्तीय राहत और MSME के साथ सक्रिय सहभागिता का समन्वय आवश्यक है। ये उपाय न केवल अनुपालन बोझ को कम करते हैं बल्कि घरेलू गुणवत्ता पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करते हैं, उपभोक्ता विश्वास को बढ़ावा देते हैं और आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्यों को समर्थन प्रदान करते हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत के घरेलू गुणवत्ता पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करने और उपभोक्ता हितों की रक्षा करने में गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों (QCO) के महत्त्व की जाँच कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
- मोटर वाहनों के टायरों और ट्यूबों के लिये भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) का मानक चिह्न अनिवार्य है।
- AGMARK, खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) द्वारा जारी एक गुणता प्रमाणन चिह्न है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (a)


भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत में वैश्विक क्षमता केंद्रों (GCC) को बढ़ावा देना
प्रिलिम्स के लिये: भारतीय उद्योग परिसंघ, वैश्विक क्षमता केंद्र, सकल मूल्य संवर्द्धन, बौद्धिक संपदा, सेमीकंडक्टर।
मेन्स के लिये: भारत के आर्थिक विकास में वैश्विक क्षमता केंद्रों की भूमिका
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) ने भारत में वैश्विक क्षमता केंद्रों (ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर- GCC) को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न उपायों का प्रस्ताव रखा है, जो भारत को नवाचार-संचालित GCC के लिये वैश्विक मुख्यालय के रूप में स्थापित कर सकता है।
- यह नीति ढाँचा तीन मुख्य स्तंभों राष्ट्रीय दिशा, सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र और मापनीय परिणाम पर आधारित है। इन स्तंभों को आगे चार प्रमुख सफल कारकों प्रतिभा, बुनियादी ढाँचा, क्षेत्रीय समावेशन और नवाचार का सहारा प्राप्त है।
वैश्विक क्षमता केंद्र क्या हैं?
- वैश्विक क्षमता केंद्र (GCC) के बारे में: एक वैश्विक क्षमता केंद्र (GCC) एक बहुराष्ट्रीय निगम की पूर्ण स्वामित्व वाली अपतटीय इकाई है।
- यह आईटी, वित्त, इंजीनियरिंग, ग्राहक सेवा और अनुसंधान एवं विकास जैसे प्रमुख कार्यों को लागत-कुशल वैश्विक स्थानों से केंद्रीकृत और कार्यान्वित करता है।
- भारत में GCC: भारत विश्व के लगभग आधे GCC का मेजबान है तथा CII के अनुसार, वर्ष 2030 तक उनकी संख्या 1,800 से बढ़कर 5,000 हो सकती है, जिसमें हर दो सप्ताह में 36 नए जीसीसी शामिल होते हैं।
- आर्थिक योगदान: यह प्रत्यक्ष रूप से सकल मूल्य संवर्द्धन (GVA) में लगभग 68 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान देता है, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 1.8% है। वित्त वर्ष 2030 तक यह भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 470-600 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान कर सकता है।
- रोज़गार सृजन: भारत का GCC पारिस्थितिकी तंत्र वित्त वर्ष 2025 में 10.4 मिलियन नौकरियों को सहयोग प्रदान करता है, साथ ही वर्ष 2030 तक 20–25 मिलियन नौकरियाँ उत्पन्न कर सकता है, जिनमें से 4–5 मिलियन प्रत्यक्ष नौकरियाँ शामिल हैं।
भारत में GCCs के प्रमुख विकास कारक क्या हैं?
- विविध प्रतिभा पूल: भारत का विशाल कुशल कार्यबल, जिसमें 1.9 मिलियन पेशेवर GCCs में कार्यरत हैं और लाखों STEM स्नातक शामिल हैं, जो क्षेत्रों, भाषाओं और दृष्टिकोणों में विविधता प्रदान करता है।
- वैश्विक परियोजनाओं, नवीनतम तकनीक और करियर उन्नति के अवसर AI, डेटा साइंस और साइबर सुरक्षा के क्षेत्रों में कुशल प्रतिभाओं को आकर्षित बनाए रखने में सहायक होते हैं।
- उभरते बाज़ार: भारत की रणनीतिक स्थिति एशियाई बाज़ारों, स्थानीय उपभोक्ता अंतर्दृष्टि और अपने स्वयं के बढ़ते घरेलू बाज़ार तक पहुँच को सक्षम बनाती है।
- जोखिम शमन: भौगोलिक विविधता वाले संचालन और COVID-19 के समय प्रदर्शित अनुकूलन क्षमता ने भारतीय GCCs को एक भरोसेमंद जोखिम प्रबंधन केंद्र के रूप में स्थापित किया है।
- बेहतर विस्तार क्षमता एवं लचीलापन: भारत का परिपक्व GCC पारिस्थितिकी तंत्र और मज़बूत बुनियादी ढाँचा कंपनियों को व्यवसाय की आवश्यकताओं के अनुसार संचालन को तेज़ी से बढ़ाने में सक्षम बनाता है।
- अनुपालन एवं सुशासन: मज़बूत डेटा संरक्षण, गोपनीयता कानून और सुशासन ढाँचे उच्च मानकों और नियामक अनुपालन को सुनिश्चित करते हैं।
CII द्वारा वैश्विक क्षमता केंद्रों (GCCs) के लिये प्रस्तावित राष्ट्रीय नीति:
- प्राथमिक क्षेत्र पर केंद्रित दृष्टिकोण: भारत को निवेश और कौशल के बेहतर उपयोग के लिये हेल्थकेयर, लाइफ साइंसेस और इलेक्ट्रॉनिक्स डिज़ाइन में GCCs को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- कर प्रोत्साहन: उच्च-मूल्य वाले कार्य, बौद्धिक संपदा (IP) निर्माण और डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देने के लिये सुविधाजनक कर नीतियाँ अपनाई जाएँ तथा नए कर्मचारियों की भर्ती पर रोज़गार-आधारित कटौतियाँ प्रदान की जाएँ।
- सेफ हार्बर का पुनः समायोजन: भारत के ग्लोबल सेफ हार्बर मार्कअप को कम करना और सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट बनाम अनुसंधान एवं विकास (R&D) जैसे अंतर स्पष्ट करना, साथ ही अधिक GCC को शामिल करने के लिये पात्रता का विस्तार करना।
- अवसंरचना और नियामक सुधार: समर्पित GCC इकोसिस्टम के लिये डिजिटल इकोनॉमिक ज़ोन (DEZ) विकसित करना, जिसमें रणनीति और अनुपालन हेतु केंद्रीय प्राधिकरण हो।
- GCC विकास को स्मार्ट सिटीज़ और गति शक्ति के साथ संरेखित किया जाना चाहिये, जबकि टियर-II तथा टियर-III शहरों को वैकल्पिक केंद्रों के रूप में बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- नवाचार और स्थिरता पर ध्यान: भारत को ESG-आधारित नवाचार के लिये प्रोत्साहन प्रदान करना चाहिये।
भारत में GCC के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ विद्यमान हैं तथा आगे की राह क्या है?
चुनौतियाँ |
आगे की राह |
भारत में डिजिटल कौशल अंतर वर्ष 2023 में 25% से बढ़कर वर्ष 2028 तक 29% होने का अनुमान है और केवल 43% स्नातक औद्योगिक क्षेत्रों में कार्य करने की क्षमता रखते हैं, जिससे कंपनियों को पुनःकौशल विकास (Reskilling) में भारी निवेश करना पड़ता है। |
मानकीकृत पुनःकौशल प्लेटफॉर्म को AI, क्लाउड और डेटा एनालिटिक्स में प्रमाणपत्र प्रदान करने चाहिये, जबकि कर लाभ या सब्सिडी जैसे प्रोत्साहन बड़े पैमाने पर स्नातक उन्नयन को बढ़ावा देने के लिये दिये जाने चाहिये। |
नीति-निर्माता इस तर्क को लेकर चिंतित हैं कि GCC घरेलू IT कंपनियों के साथ ओवरलैप कर सकते हैं, IT निर्यात को कमज़ोर कर सकते हैं और भारत में सीमित उच्च-स्तरीय परियोजनाओं को उत्पन्न कर सकते हैं। |
एक स्पष्ट विभेदीकरण रणनीति को रणनीतिक नवाचार और अनुसंधान एवं विकास के लिये GCC को तैयार करना चाहिये। |
अधिकांश GCC कार्य नियमित और आउटसोर्स करने के योग्य रहते हैं तथा सीमित बौद्धिक संपदा (IP) सृजन के कारण भारत की वैश्विक मूल्य शृंखला में वृद्धि सीमित रहती है। |
GCC को आकर्षित करने के लिये दृढ़ बौद्धिक संपदा (IP) सुरक्षा वाले विशेष नवाचार क्षेत्र बनाना और उत्पाद विकास में अधिक स्वामित्व के लिये IP नेतृत्व को अनिवार्य करना। |
GCC क्षेत्र में उच्च पलायन, विशेष रूप से AI, एनालिटिक्स और डिजिटल भूमिकाओं में प्रतिभाओं को बनाए रखना तथा विकास को स्थायी बनाना कठिन बना देता है। |
ग्लोबल असाइनमेंट और उच्च प्रभाव वाली परियोजनाओं को बढ़ावा देना एक प्रतिस्पर्द्धी कार्य संस्कृति प्रदान करता है। |
निष्कर्ष
भारत का खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) पारिस्थितिकी तंत्र महत्त्वपूर्ण आर्थिक और रोज़गार क्षमता प्रदान करता है, लेकिन इसके सामने डिजिटल कौशल में बढ़ती कमी, सीमित बौद्धिक संपदा सृजन तथा उच्च पलायन जैसी चुनौतियाँ भी हैं। क्षेत्र प्राथमिकता, कर प्रोत्साहन, नियामक सुधार तथा डिजिटल आर्थिक क्षेत्र (DEZ) जैसी रणनीतिक नीतियाँ इस क्षेत्र को मज़बूत बना सकती हैं, वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ा सकती हैं और सतत् विकास एवं रोज़गार सृजन सुनिश्चित कर सकती हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. वैश्विक क्षमता केंद्र (GCC) भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये विकास के प्रमुख चालक बन रहे हैं। घरेलू IT क्षेत्र के समक्ष इनसे उत्पन्न प्रमुख चुनौतियों का परीक्षण करते हुए इनकी क्षमता पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न. विकास की वर्तमान स्थिति में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence), निम्नलिखित में से किस कार्य को प्रभावी रूप से कर सकती है? (2020)
- औद्योगिक इकाइयों में विद्युत की खपत कम करना
- सार्थक लघु कहानियों और गीतों की रचना
- रोगों का निदान
- टेक्स्ट-से-स्पीच (Text-to-Speech) में परिवर्तन
- विद्युत ऊर्जा का बेतार संचरण
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:
(a) केवल 1, 2, 3 और 5
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5
उत्तर: (b)
मेन्स
प्रश्न. "चौथी औद्योगिक क्रांति (डिजिटल क्रांति) के प्रादुर्भाव ने ई-गवर्नेंस को सरकार का अविभाज्य अंग बनाने में पहल की है"। विवेचन कीजिये। (2020)


मुख्य परीक्षा
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर सर्वोच्च न्यायालय का अंतरिम आदेश
चर्चा में क्यों?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 के कुछ प्रावधानों पर रोक लगा दी है, यह चिंता जताते हुए कि यह अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है, प्रशासनिक शक्तियों और वक्फ बोर्डों पर गैर-मुस्लिम प्रतिनिधित्व के माध्यम से समुदाय की स्वायत्तता को कमज़ोर करता है तथा मौजूदा वक्फ संपत्तियों एवं परोपकार पर प्रभाव डाल सकता है।
वक्फ अधिनियम, 1995 क्या है?
- वक्फ अधिनियम, 1995, भारत में एक केंद्रीय अधिनियम है जो वक्फ संपत्तियों, धार्मिक या चैरिटेबल/परोपकारी उद्देश्यों के लिये मुस्लिम कानून के तहत संपत्ति के दान के बेहतर प्रशासन, प्रबंधन तथा संरक्षण के लिये प्रावधान करता है।
- यह इन संपत्तियों की निगरानी के लिये राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर वक्फ बोर्डों की स्थापना करता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ये संपत्तियाँ अपने निर्धारित उद्देश्यों के लिये उपयोग की जाएँ तथा पारदर्शी एवं कानूनी तरीके से प्रबंधित की जाएँ।
- वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 UMEED (एकीकृत वक्फ प्रबंधन, अधिकारिता, दक्षता और विकास अधिनियम), वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन करता है।
- वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के मुख्य प्रावधान:
- ट्रस्ट का बहिष्कार: यदि मुस्लिम द्वारा बनाए गए ट्रस्ट अन्य धर्मार्थ कानूनों के अंतर्गत शासित हैं तो वे कानूनी रूप से वक्फ से अलग माने जाएंगे।
- उत्तराधिकार अधिकारों का संरक्षण: महिलाओं और बच्चों को उनकी वैध विरासत प्राप्त करनी चाहिये, इससे पहले कि संपत्ति वक्फ बन जाएँ।
- जनजातीय भूमि का संरक्षण: यह संविधान की पाँचवीं और छठी अनुसूचियों के तहत जनजातीय समुदायों की भूमि पर वक्फ की स्थापना पर प्रतिबंध लगाता है।
- अपील तंत्र: उच्च न्यायालय वक्फ न्यायाधिकरण के निर्णयों के खिलाफ अपील सुन सकता है।
- वित्तीय सुधार: वक्फ बोर्डों में अनिवार्य योगदान 7% से घटाकर 5% कर दिया गया है।
- आय लेखा परीक्षा: 1 लाख रुपए से अधिक वार्षिक आय वाली वक्फ संस्थाएँ सरकार द्वारा अनिवार्य लेखा परीक्षा के अधीन हैं।
- वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के मुख्य प्रावधान:
वक्फ बोर्ड
- वक्फ बोर्ड एक विधिक इकाई है जो संपत्ति अर्जित कर सकती है, उसे धारण कर सकती है, हस्तांतरित कर सकती है और उस पर मुकदमा चलाया जा सकता है।
- यह वक्फ संपत्तियों (धार्मिक या परोपकारी उद्देश्यों के लिये समर्पित संपत्ति) का प्रबंधन करता है, खोई हुई संपत्तियों की वसूली करता है और हस्तांतरणों (बिक्री, उपहार, बंधक, विनिमय, पट्टा) को कम से कम दो-तिहाई बोर्ड अनुमोदन के साथ मंज़ूरी देता है।
- केंद्रीय वक्फ परिषद (CWC) अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के तहत एक सांविधिक निकाय है, जो राज्य वक्फ बोर्डों की देख-देख और सलाह देता है।
वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 के प्रमुख विवादास्पद प्रावधान क्या हैं और इस पर सर्वोच्च न्यायालय का रुख क्या है?
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समर्थित प्रावधान:
- परिसीमा अधिनियम की प्रयोज्यता: वक्फ अधिनियम, 1995 ने परिसीमा अधिनियम, 1963 के अनुप्रयोग को विशेष रूप से बाहर रखा था, जो वक्फ को बिना किसी समय सीमा के अपनी संपत्तियों पर अतिक्रमण के विरुद्ध कार्रवाई करने की अनुमति देता था।
- वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 :इस छूट को समाप्त कर देता है और कानूनी दावों को निर्दिष्ट अवधि के भीतर दायर करना अनिवार्य बनाता है।
- न्यायालय ने इस प्रावधान को बरकरार रखा तथा कहा कि यह पहले के भेदभाव को ठीक करता है।
- वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 :इस छूट को समाप्त कर देता है और कानूनी दावों को निर्दिष्ट अवधि के भीतर दायर करना अनिवार्य बनाता है।
- "उपयोग द्वारा वक्फ" का उन्मूलन: पहले, यदि भूमि लंबे समय तक मुस्लिम धार्मिक/धार्मिक उद्देश्यों के लिये उपयोग में लाई जाती थी तो उसे बिना पंजीकरण के भी वक़्फ़ माना जा सकता था। वर्ष 2025 संशोधन अधिनियम ने दुरुपयोग का हवाला देते हुए "उपयोग द्वारा वक्फ" की अवधारणा को समाप्त कर दिया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात को बरकरार रखा कि इसका दुरुपयोग सरकारी भूमि पर अतिक्रमण के लिये किया गया है तथा इस पर रोक लगाने का प्रथम दृष्टया कोई कारण नहीं पाया गया।
- परिसीमा अधिनियम की प्रयोज्यता: वक्फ अधिनियम, 1995 ने परिसीमा अधिनियम, 1963 के अनुप्रयोग को विशेष रूप से बाहर रखा था, जो वक्फ को बिना किसी समय सीमा के अपनी संपत्तियों पर अतिक्रमण के विरुद्ध कार्रवाई करने की अनुमति देता था।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रोके गए प्रावधान:
- पाँच साल का नियम मुस्लिमों के लिये: संशोधित अधिनियम के अनुसार, कोई वक्फ केवल उस व्यक्ति द्वारा स्थापित किया जा सकता है, जिसने कम-से-कम पाँच वर्षों तक इस्लाम का अभ्यास किया हो।
- सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रावधान को स्थगित कर दिया है, क्योंकि सरकार द्वारा स्पष्ट नियम बनाए जाने तक धार्मिक अभ्यास की जाँच का कोई तंत्र नहीं है।
- ज़िला कलेक्टरों के अधिकार (धारा 3C): संशोधित अधिनियम के अनुसार, ज़िला कलेक्टर अपनी जाँच के दौरान किसी वक्फ संपत्ति को सरकारी संपत्ति घोषित कर सकते हैं (जाँच की अवधि के दौरान उस संपत्ति को वक्फ संपत्ति के रूप में नहीं माना जाएगा)।
- सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रावधान को अस्थायी रूप से स्थगित कर दिया है, इसे मनमाना और शक्तियों का पृथक्करण का उल्लंघन बताते हुए, क्योंकि संपत्ति विवादों का निर्णय केवल ट्रिब्यूनल (अधिकरणों) या न्यायालयों द्वारा किया जाना चाहिये।
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, जाँच की अवधि में वक्फ संपत्तियों का दर्जा यथावत रहेगा, उन पर कब्ज़ा नहीं हटाया जा सकेगा और वक्फ ट्रिब्यूनल के अंतिम निर्णय तक किसी नए तृतीय पक्ष को अधिकार नही दिया जाएगा।
- सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रावधान को अस्थायी रूप से स्थगित कर दिया है, इसे मनमाना और शक्तियों का पृथक्करण का उल्लंघन बताते हुए, क्योंकि संपत्ति विवादों का निर्णय केवल ट्रिब्यूनल (अधिकरणों) या न्यायालयों द्वारा किया जाना चाहिये।
- वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम प्रतिनिधित्व: इस अधिनियम ने वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद में बड़ी संख्या में गैर-मुसलमानों को शामिल करने की अनुमति दी है।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गैर-मुस्लिम प्रतिनिधित्व पर रोक:
- केंद्रीय वक्फ परिषद (22 सदस्य) में 4 से अधिक गैर-मुसलमान नहीं होंगे।
- राज्य वक्फ बोर्ड (11 सदस्य) में 3 से अधिक गैर-मुसलमान नहीं होंगे।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गैर-मुस्लिम प्रतिनिधित्व पर रोक:
- पाँच साल का नियम मुस्लिमों के लिये: संशोधित अधिनियम के अनुसार, कोई वक्फ केवल उस व्यक्ति द्वारा स्थापित किया जा सकता है, जिसने कम-से-कम पाँच वर्षों तक इस्लाम का अभ्यास किया हो।
भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के संबंध में प्रमुख न्यायिक निर्णय:
- बिजो इमैनुएल बनाम केरल राज्य, 1987: सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अगर राष्ट्रगान उनकी धार्मिक मान्यताओं का उल्लंघन करता है तो छात्रों को उसे गाने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता।
- इस निर्णय ने स्थापित किया कि व्यक्ति को उन गतिविधियों में भाग लेने से इंकार करने का अधिकार है जो उसकी धार्मिक मान्यताओं के विरुद्ध हों, बशर्ते कि उससे सार्वजनिक व्यवस्था भंग न हो।
- शायरा बानो बनाम भारत संघ, 2017: सर्वोच्च न्यायालय ने एक साथ तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द कर दिया, क्योंकि यह अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और लैंगिक न्याय सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह अनुच्छेद 25 के तहत एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है।
- डॉ. महेश विजय बेडेकर बनाम महाराष्ट्र, 2016: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि लाउडस्पीकर का उपयोग एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है और इसे अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) या अनुच्छेद 19(1)(a) (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) के तहत मौलिक अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता।
निष्कर्ष:
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 सुधारों का लक्ष्य रखता है, लेकिन यह स्वायत्तता और अधिकारों को लेकर गंभीर चिंताएँ भी उत्पन्न करता है। सर्वोच्च न्यायालय का अंतरिम आदेश संवैधानिक सुरक्षा उपायों के साथ सुधार प्रक्रिया को सावधानीपूर्वक संतुलित करने का प्रयास करता है। आगे की राह पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने पर केंद्रित होनी चाहिये, साथ ही समुदायों के बीच धार्मिक स्वतंत्रता और विश्वास की भावना को भी बनाए रखना चाहिये।
और पढ़ें: वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 |
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 का उद्देश्य वक्फ प्रशासन का आधुनिकीकरण किस प्रकार करना है तथा इसके समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं? |
संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)
मेन्स:
प्रश्न: भारतीय धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता मॉडल से किस प्रकार भिन्न है? विवेचना कीजिये। (2018)

