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पारिस्थितिक बफर के रूप में मैंग्रोव
करेंट बायोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन में यह बताया गया है कि मैंग्रोव पौधे अत्यधिक खारे पानी की परिस्थितियों में कैसे जीवित रहते हैं। यह शोध ऐसी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है जो जलवायु परिवर्तन और समुद्र के स्तर में वृद्धि के बीच लवण-सहिष्णु फसलों (Salt-Tolerant Crops) के विकास में मदद कर सकती हैं।
सारांश
- करेंट बायोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन में पता चला है कि मैंग्रोव पौधे खारे पानी में जीवित रहते हैं। इसके पीछे विशेष कोशिका-स्तरीय अनुकूलन, जैसे मोटी कोशिका दीवारें और खारेपन प्रबंधन की विशेष प्रक्रियाएँ शामिल हैं।
- ये निष्कर्ष लवण-सहिष्णु फसलों (Salt-Tolerant Crops) के विकास में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं, जिससे जलवायु सहनशीलता, खाद्य सुरक्षा और सतत कृषि को बढ़ावा मिल सकता है, खासकर समुद्र स्तर में वृद्धि के दौर में।
मैंग्रोव पौधे खारे पानी में कैसे जीवित रहते हैं?
- पहचानी गई अनोखी कोशिकीय विशेषताएँ: मैंग्रोव पौधों में छोटी एपिडर्मल पावमेंट कोशिकाएँ (Smaller Epidermal Pavement Cells) और मोटी कोशिका दीवारें पाई जाती हैं, जो खारे पानी के कारण कम ऑस्मोटिक पोटेंशियल (Low Osmotic Potential) वाली परिस्थितियों में जीवित रहने के लिये आवश्यक यांत्रिक मज़बूती प्रदान करती हैं।
- विभिन्न लवण प्रबंधन तंत्र: कुछ मैंग्रोव प्रजातियाँ मॉमी जड़ अवरोध (Waxy Root Barrier) का उपयोग करके नमक को बाहर निकालती हैं और पौधे में ताजे पानी (Freshwater) को खींचती हैं, जिससे खारे पानी में भी जीवित रहना संभव होता है।
- कुछ अन्य प्रजातियाँ नमक को अपने अंदर संचित (Accumulate) करती हैं और इसे पत्तियों पर विशेष ग्रंथियों के माध्यम से सक्रिय रूप से बाहर निकालती हैं।
- विकासात्मक अनुकूलन: मैंग्रोव पौधे पिछले 200 मिलियन वर्षों में 30 से अधिक बार विकसित हुए हैं, जो खारे पर्यावरण में अनुकूलित होने की उनकी मज़बूत विकासात्मक क्षमता को दर्शाता है।
- स्टोमेटल बदलाव पर निर्भर न होना: अपेक्षाओं के विपरीत, मैंग्रोव पौधे स्टोमेटा (Stomatal) की संख्या बढ़ाते या उनके आकार को कम नहीं करते, जो अन्य सूखा-सहिष्णु पौधों में आमतौर पर फोटोसिंथेसिस बढ़ाने या पानी की हानि कम करने के लिये देखा जाता है।
निहितार्थ / प्रभाव
- कृषि में जलवायु सहनशीलता: मैंग्रोव पौधों की कोशिका विशेषताओं को समझकर लवण-सहिष्णु फसल प्रजातियाँ विकसित की जा सकती हैं, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ जलवायु परिवर्तन के कारण मिट्टी में लवणता बढ़ रही है। कोशिका के आकार और दीवार की गुणधर्मों में बदलाव पर केंद्रित शोध कृषि में क्रांतिकारी अनुप्रयोग ला सकता है, विशेषकर चावल, गेहूँ और दालों जैसी फसलों के लिये जो लवण-संवेदनशील क्षेत्रों में उगाई जाती हैं।
- नीति और अनुसंधान का समन्वय: ये निष्कर्ष राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA) और SDG 13 (जलवायु कार्रवाई) के लक्ष्यों के अनुरूप हैं। यह फसल सहनशीलता और खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने के लिये वैज्ञानिक दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
मैंग्रोव के संबंध में मुख्य बातें क्या हैं?
- परिचय: मैंग्रोव तटीय पारिस्थितिकी तंत्र हैं जहाँ लवण सहिष्णु वृक्ष और झाड़ियाँ पाई जाती हैं जिनकी वृद्धि उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के अंतःज्वारीय क्षेत्रों में होता है।
- ये पारिस्थितिकी तंत्र उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों (1,000–3,000 मिमी) में पनपते हैं, जहाँ तापमान 26°C से 35°C के बीच रहता है।
- कुछ सामान्य मैंग्रोव वृक्षों में लाल मैंग्रोव, ग्रे मैंग्रोव और राइज़ोफोरा शामिल हैं।
- पर्यावास: मैंग्रोव का विकास ज्वारीय मैदानों, नदियों के मुहाने और उच्च गाद निक्षेपण वाले डेल्टाओं में होता हैं, यहाँ प्रतिदिन दो बार ज्वारीय जलप्लावन होता है।
- वे खारे, ऑक्सीजन की कमी वाले, धीरे बहने वाले पानी में पनपते हैं, जहाँ बारीक तलछट जमा होती रहती है।
- मुख्य विशेषताएँ:
- कार्यिकीय अनुकूलन: इनमें श्वसन के लिये न्यूमेटोफोर (Avicennia), स्थिरता के लिये अवस्तंभ मूल (Rhizophora) और जल की हानि और नमक स्राव के लिये लेंटिसेलेटेड छाल का विकास होता है।
- उनकी लवण-स्रावी ग्रंथियाँ लवण उत्सर्जन में सहायता करती हैं, जबकि इनकी मूल तलछट को प्रग्रहित करती हैं और तटरेखा को स्थिर करती हैं।
- जननीय अनुकूलन: मैंग्रोव में जरायुजता (Viviparity) पाई जाती है, जहाँ बीज ज़मीन पर गिरने से पहले पेड़ के भीतर अंकुरित होते हैं, जिससे लवणीय परिस्थितियों में भी जीवित रहना सुनिश्चित होता है।
- कार्यिकीय अनुकूलन: इनमें श्वसन के लिये न्यूमेटोफोर (Avicennia), स्थिरता के लिये अवस्तंभ मूल (Rhizophora) और जल की हानि और नमक स्राव के लिये लेंटिसेलेटेड छाल का विकास होता है।
- मैंग्रोव का वितरण: मैंग्रोव की वृद्धि केवल भूमध्य रेखा के समीप उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय अक्षांशों में ही होती है, क्योंकि शून्य से निम्न तापमान इनकी वृद्धि के लिये अनुकूल नहीं होता।
- सबसे बृहद मैंग्रोव क्षेत्र दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में अवस्थित है, इसके बाद दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, उत्तर और मध्य अमेरिका तथा ओशिनिया का स्थान है।
- भारत में मैंग्रोव आवरण: भारतीय वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR) 2023 के अनुसार, भारत का मैंग्रोव आवरण लगभग 4,992 वर्ग किमी. है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 0.15% है।
- भारत के मैंग्रोव कवर में पश्चिम बंगाल का सबसे बड़ा हिस्सा 42.45% है, उसके बाद गुजरात का 23.32% और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का 12.19% है।
- प्रमुख नियामक उपाय: पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत मैंग्रोव को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया है। यदि मैंग्रोव का क्षेत्र 1,000 वर्ग मीटर से अधिक है तो इसके आसपास 50 मीटर के बफर ज़ोन में गतिविधियाँ प्रतिबंधित होती हैं।
- यदि विकास कार्यों के कारण मैंग्रोव प्रभावित होते हैं तो इसके लिये 3:1 के अनुपात में प्रतिपूर्ति पुनःरोपण अनिवार्य है।
- इसके अलावा वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972, भारतीय वन अधिनियम, 1927 और जैव विविधता अधिनियम, 2002 सहित अन्य कानूनों के तहत मैंग्रोव को अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान की गई है।
मैंग्रोव का महत्त्व:
- जलवायु परिवर्तन शमन: मैंग्रोव प्रमुख ब्लू कार्बन सिंक है, जो प्रत्येक एकड़ में उष्णकटिबंधीय वनों की तुलना में 7.5–10 गुना अधिक कार्बन संग्रहीत करते हैं और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में सहायता करते हैं।
- जैव विविधता संरक्षण: ये मछलियों और क्रस्टेशियनों के लिये नर्सरी स्थल का कार्य करते हैं तथा पक्षियों, सरीसृपों एवं संकटग्रस्त प्रजातियों के लिये आवास प्रदान करते हैं।
- जीविका का समर्थन: मत्स्यन, शहद संग्रहण, ईंधन लकड़ी और इको-टूरिज़्म के माध्यम से तटीय एवं ग्रामीण समुदायों की आजीविका को बनाए रखते हैं।
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण: मैंग्रोव तूफानी लहरों, सुनामी और तटीय कटाव के विरुद्ध प्राकृतिक अवरोध के रूप में कार्य करते हैं, जो लहरों की ऊर्जा को 5–35% तक कम करते हैं।
- ये बाढ़ की गहराई को 15–20% और कुछ क्षेत्रों में 70% तक कम कर देते हैं, जिससे आपदा जोखिम न्यूनीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- प्रकृति-आधारित समाधान: मैंग्रोव सतत विकास और जलवायु अनुकूलन के लिये प्रमुख पारिस्थितिकी-आधारित अनुकूलन रणनीति का प्रतिनिधित्व करते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. मैंग्रोव लवणीय जल में जीवित कैसे रह पाते हैं?
इनके पास छोटे एपिडर्मल कोशिकाएँ, मोटी कोशिका भित्तियाँ और विशेष लवण बहिष्कार या लवण स्राव तंत्र होते हैं, जो कम ओस्मोटिक पोटेंशियल में जीवित रहने में सक्षम बनाते हैं।
2. मैंग्रोव में लवण प्रबंधन की दो मुख्य रणनीतियाँ कौन-सी हैं?
जड़ों पर मोमयुक्त बाधाओं का उपयोग कर लवण का बहिष्कार और पत्तियों की ग्रंथियों के माध्यम से लवण का संचयन तथा स्राव।
3. कृषि के लिये मैंग्रोव अध्ययन क्यों महत्त्वपूर्ण है?
यह लवण-प्रतिरोधी फसलों जैसे चावल, गेहूँ और दलहनों को लवणीय क्षेत्रों में उगाने के लिये एक ब्लूप्रिंट प्रदान करता है, विशेषकर जलवायु परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य में।
4. जलवायु कार्रवाई के लिये मैंग्रोव क्यों महत्त्वपूर्ण हैं?
ये शक्तिशाली ब्लू कार्बन सिंक हैं, उष्णकटिबंधीय वनों की तुलना में 7.5–10 गुना अधिक कार्बन संग्रहीत करते हैं और बाढ़ व तूफानी लहरों के प्रभाव को कम करते हैं।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. जलवायु परिवर्तन के तहत संधारणीय कृषि के लिये मैंग्रोव की भूमिका को पारिस्थितिक अवरोध और ज्ञान प्रणाली दोनों के रूप में जाँच कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न. भारत के निम्नलिखित क्षेत्रों में से किस एक में मैंग्रोव वन, सदापर्णी वन और पर्णपाती वनों का संयोजन है? (2015)
(a) उत्तर तटीय आंध्र प्रदेश
(b) दक्षिण-पश्चिम बंगाल
(c) दक्षिणी सौराष्ट्र
(d) अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह
उत्तर: (d)


