डेली न्यूज़ (16 Dec, 2025)



जेनरेटिव AI हेतु हाइब्रिड मॉडल फ्रेमवर्क

प्रिलिम्स के लिये: प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम, 1957, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs), जनरेटिव एआई, मशीन लर्निंग, उच्च न्यायालय

मेन्स के लिये: प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम, 1957 की प्रमुख प्रावधान और AI से संबंधित कॉपीराइट मुद्दों को संबोधित करने में इसके अंतर। AI से संबंधित कॉपीराइट मुद्दों को हल करने के लिये कॉपीराइट अधिनियम, 1957 में प्रस्तावित परिवर्तन।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

भारतीय सरकार हाइब्रिड मॉडल के तहत प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम, 1957 में बड़े पैमाने पर सुधार शुरू कर रही है, ताकि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) द्वारा कॉपीराइट/प्रतिलिप्यधिकार वाले कार्यों पर उत्पन्न चुनौतियों को संबोधित किया जा सके।

  • हाइब्रिड मॉडल में अनिवार्य ब्लैंकेट लाइसेंस शामिल है, जो AI कंपनियों को प्रशिक्षण हेतु प्रतिलिप्यधिकार वाले कार्यों का उपयोग करने की अनुमति देता है, साथ ही क्रिएटर्स के लिये नियत भुगतान का अधिकार भी प्रदान करता है।

सारांश

  • भारत प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम, 1957 में संशोधन प्रस्तावित कर रहा है, जिसमें AI प्रशिक्षण के लिये ब्लैंकेट लाइसेंस और क्रिएटर्स के लिये भुगतान का प्रावधान शामिल है।
  • यह सुधार नवाचार और रचनाकारों के अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास करते हैं, जिससे भारत EU (पारदर्शिता पर जोर) और UK (कंप्यूटर-जनित कार्य के प्रावधान) से अलग दृष्टिकोण अपनाता है।

AI से संबंधित प्रतिलिप्यधिकार मुद्दों को हल करने हेतु प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम, 1957 में प्रस्तावित परिवर्तन क्या हैं?

  • AI डेवलपर्स के लिये ब्लैंकेट लाइसेंस: एक नियामक प्रावधान का परिचय, जो AI डेवलपर्स को सभी कानूनी रूप से प्राप्त प्रतिलिप्यधिकार-संरक्षित कार्यों का AI सिस्टम प्रशिक्षण के लिये अनिवार्य ब्लैंकेट लाइसेंस प्रदान करता है।
    • अधिकार धारक अब अपने कार्यों को AI प्रशिक्षण में उपयोग होने से रोक नहीं सकेंगे।
    • यह लाइसेंस गैर-समझौते योग्य और सार्वभौमिक होगा, जिससे वर्तमान में अधिनियम के अनुच्छेद 14 (मालिक के विशेष अधिकार के तहत व्यक्तिगत अनुमति) के तहत आवश्यक व्यक्तिगत अनुमति की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी।
  • नियामक (Statutory) भुगतान अधिकार: AI प्रशिक्षण में उनके कार्यों के उपयोग के लिये कॉपीराइट धारकों के लिये एक नया नियामक भुगतान अधिकार स्थापित किया जाएगा।
    • कॉपीराइट धारक को उनकी स्पष्ट अनुमति के बिना भी रॉयल्टी का अधिकार मिलेगा। रॉयल्टी की गणना कॉपीराइट सामग्री पर प्रशिक्षित AI सिस्टम से प्राप्त राजस्व का निश्चित प्रतिशत के रूप में की जाएगी।
    • AI कंपनियाँ रॉयल्टी तभी भुगतान करेंगी जब वे अपने मॉडल का वाणिज्यीकरण करेंगी, न कि इंटरनेट से डेटा एकत्रित या प्रशिक्षण के दौरान।
  • संग्रह और वितरण तंत्र: संशोधन के तहत केंद्रीय सरकार द्वारा नामित एक केंद्रीकृत गैर-लाभकारी संस्था स्थापित की जाएगी, जो AI डेवलपर्स से भुगतान एकत्र करने के लिये ज़िम्मेदार होगी।
    • इस संस्था में सदस्य के रूप में प्रतिलिप्यधिकार सोसाइटीज़ और सामूहिक प्रबंधन संगठन (CMOs) शामिल होंगे।
  • स्टार्टअप और MSMEs हेतु सुरक्षा: स्टार्टअप और MSMEs के लिये संभावित रियायती प्रावधान या भिन्न रॉयल्टी संरचना ताकि प्रतिस्पर्द्धा के संबंध में समान अवसर सुनिश्चित किया जा सके।

AI से जुड़े प्रतिलिप्यधिकार मुद्दों को हल करने के लिये प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम, 1957 में संशोधन करने की आवश्यकता क्यों है?

  • AI-विशिष्ट परिभाषाओं का अभाव: प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम, 1957 में कृत्रिम बुद्धिमत्ता, जनरेटिव AI, मशीन लर्निंग और प्रशिक्षण डेटा जैसे महत्त्वपूर्ण शब्दों की परिभाषाएँ नहीं हैं, जिससे यह आधुनिक तकनीकों के लिये अप्रचलित हो गया है।
    • यह AI सिस्टम और टेक्स्ट एवं डेटा माइनिंग (TDM) पर मौजूदा प्रावधानों के लागू होने को लेकर कानूनी अस्पष्टता उत्पन्न करता है।
  • AI प्रशिक्षण को प्रतिलिप्यधिकार उपयोग मानने को लेकर अस्पष्टता: धारा 14 (विशिष्ट अधिकार) के अंतर्गत यह स्पष्ट करने वाले कोई विशिष्ट प्रावधान मौजूद नहीं हैं कि क्या AI प्रशिक्षण को प्रतिकृति, अनुकूलन या उल्लंघन माना जाएगा।
    • वर्तमान कानून में यह भी अस्पष्ट है कि AI प्रशिक्षण, धारा 52 (कुछ कार्य जो प्रतिलिप्यधिकार उल्लंघन नहीं माने जाते) के अंतर्गत फेयर डीलिंग अपवादों में आता है या नहीं।
  • प्रतिलिप्यधिकारयुक्त सामग्री का अनधिकृत उपयोग: AI के प्रशिक्षण की वर्तमान प्रथाएँ प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम, 1957 की उस अनुमति-आधारित व्यवस्था को दरकिनार कर देती हैं, जो इसकी आधारशिला है।
    • AI प्रशिक्षण के लिये प्रतिलिप्यधिकारयुक्त सामग्री का बड़े पैमाने पर स्क्रैपिंग और उपयोग रचनाकारों को किसी भी प्रकार का पारिश्रमिक दिये  बिना किया जाता है।
  • AI-जनित कृतियों की प्रतिलिप्यधिकार योग्यता: वर्ष 1957 के अधिनियम की धारा 2(d)(vi) में लेखक की परिभाषा केवल मानव के संदर्भ में दी गई है, जिससे AI द्वारा उत्पन्न सामग्री के लेखकत्व या उसकी प्रतिलिप्यधिकार योग्यता पर कोई स्पष्टता नहीं मिलती।
    • हालाँकि धारा 2(ffc) में कंप्यूटर-जनित कृतियों का उल्लेख है, लेकिन इसमें कंप्यूटर को मात्र एक उपकरण के रूप में माना गया है, जिससे AI द्वारा सृजित कृतियों के स्वामित्व को लेकर अनिश्चितता बनी रहती है।
  • सीमा-पार और क्षेत्राधिकार संबंधी मुद्दे: वर्ष 1957 के अधिनियम की धारा 40 पारंपरिक क्षेत्रीय प्रतिलिप्यधिकार सिद्धांत के आधार पर विदेशी कृतियों को संरक्षण प्रदान करती है, लेकिन यह उन AI प्रणालियों को संबोधित नहीं करती जो विदेशों में भारतीय कृतियों पर प्रशिक्षित की जाती हैं, न ही क्लाउड-आधारित AI प्रशिक्षण या सीमा-पार डेटा प्रवाह को शामिल करती है।
    • इससे भारत के बाहर स्थित AI डेवलपर्स के विरुद्ध प्रवर्तन में चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं और AI से जुड़े प्रतिलिप्यधिकार मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय समन्वय में मौजूद अंतर को उजागर करता है।

प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम, 1957

  • परिचय: प्रतिलिप्यधिकार भारत में एक कानूनी अधिकार है, जो साहित्य, कला, संगीत, फिल्में और कंप्यूटर प्रोग्राम जैसे मौलिक कृतियों की सुरक्षा करता है।
    • यह विचारों की अभिव्यक्ति को संरक्षण प्रदान करता है और स्वामी को कृति का अनुकूलन, पुनरुत्पादन, प्रकाशन, अनुवाद तथा उसे सार्वजनिक रूप से संप्रेषित करने के विशिष्ट अधिकार देता है।
  • प्रमुख धाराएँ: धारा 2 प्रतिलिप्यधिकार के अंतर्गत आने वाले कार्यों के प्रकारों को परिभाषित करती है, जैसे साहित्यिक कृतियाँ (धारा 2(o)) और नाट्य कृतियाँ (धारा 2(h))।
    • धारा 13 साहित्यिक, संगीतमय, नाट्य कृतियों, चलचित्र फिल्मों तथा ध्वनि अभिलेखनों को प्रतिलिप्यधिकार संरक्षण प्रदान करती है।
    • धारा 14 स्वामी को कृति के रूपांतरण, पुनरुत्पादन, प्रकाशन, अनुवाद तथा उसे सार्वजनिक रूप से संप्रेषित करने के विशिष्ट अधिकार प्रदान करती है, जिन्हें स्वामी की अनुमति के बिना प्रयोग नहीं किया जा सकता।
  • प्रतिलिप्यधिकार सामग्री पर न्यायिक व्याख्या:
    • श्री दत्तात्रेय बापू दिघे बनाम महाराष्ट्र राज्य (2024): बॉम्बे उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि उल्लंघन कार्रवाई शुरू करने के लिये प्रतिलिप्यधिकार पंजीकरण अनिवार्य नहीं है; सामग्री के सृजन पर स्वतः ही कॉपीराइट अस्तित्व में आ जाता है।
    • स्टार इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम मैजिकविन.गेम्स (2024): दिल्ली उच्च न्यायालय ने डिजिटल पायरेसी के ‘हाइड्रा-हेडेड’ मुद्दे, जहाँ अवरुद्ध साइटें पुनः प्रकट हो जाती हैं, का मुकाबला करने के लिये सक्रिय कानूनी कार्रवाई पर बल दिया। इसने ऐसी असंगठित वेबसाइटों और संस्थाओं को विशेष अधिकार वाली सामग्री के अनधिकृत होस्टिंग या स्ट्रीमिंग से स्थायी रूप से प्रतिबंधित कर दिया।
    • इंडिया टीवी बनाम यशराज फिल्म्स (2012): दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना कि गीतों के छोटे अंशों के उपयोग से प्रतिलिप्यधिकार उल्लंघन नहीं होता।
    • ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी बनाम रमेश्वरी फोटोकॉपी सर्विसेज (2016): दिल्ली उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि शैक्षिक उपयोग के लिये पुस्तकों के अंशों की फोटोकॉपी करना निष्पक्ष व्यवहार (फेयर डीलिंग) है (उल्लंघन नहीं है), जो ज्ञान तक पहुँच और लोकहित को मार्गदर्शक सिद्धांतों के रूप में पुष्ट करता है।

AI-जनित सामग्री पर वैश्विक दृष्टिकोण

  • संयुक्त राज्य अमेरिका: कॉपीराइट के लिये पर्याप्त मानवीय रचनात्मकता आवश्यक है (थेलर बनाम पर्लमटर, 2023)। विशुद्ध रूप से AI-जनित कृतियों को संरक्षण प्राप्त नहीं है।
  • यूरोपीय संघ: AI अधिनियम (2024) प्रशिक्षण डेटा की पारदर्शिता अनिवार्य करता है। AI आउटपुट के लिये एक नए सुई जेनेरिस अधिकार पर बहस चल रही है, क्योंकि वर्तमान वर्ष 2019 कॉपीराइट निर्देश में विशिष्ट नियमों का अभाव है।
  • चीन: बीजिंग इंटरनेट न्यायालय ने AI-जनित छवियों को संरक्षित कला के रूप में मान्यता दी है, जो मानव सृजक की ‘मौलिकता’ और बौद्धिक योगदान पर बल देती है।
  • यूनाइटेड किंगडम: कॉपीराइट, डिज़ाइन और पेटेंट अधिनियम, 1988 की धारा 9(3) किसी मानव लेखक के बिना कंप्यूटर-जनित कृतियों के लिये कॉपीराइट प्रदान करती है, इसे उस व्यक्ति को सौंपती है जो ‘आवश्यक प्रबंधन’ करता है। ऐसी कृतियों में नैतिक अधिकारों का अभाव होता है, और कानूनी अस्पष्टताओं के कारण इस प्रावधान का शायद ही कभी प्रयोग किया जाता है।

निष्कर्ष

प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम, 1957 में प्रस्तावित संशोधनों का उद्देश्य एक अनिवार्य ब्लैंकेट लाइसेंस और वैधानिक रॉयल्टी के माध्यम से AI नवाचार और सृजकों के अधिकारों के संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित करना है। ये सुधार परिभाषाओं, AI प्रशिक्षण और लेखकत्व में अंतराल को संबोधित करते हुए रॉयल्टी संग्रहण के लिये एक केंद्रीकृत तंत्र प्रदान करते हैं, जो निष्पक्ष मुआवज़े और कानूनी स्पष्टता को बढ़ावा देते हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. AI-जनित सामग्री और सीमा-पार प्रवर्तन के संबंध में प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम, 1957 में विद्यमान अंतरालों का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न 

1. AI के संबंध में भारत के प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों का मूल उद्देश्य क्या है?
एक अनिवार्य ब्लैंकेट लाइसेंसिंग और वैधानिक रॉयल्टी रूपरेखा स्थापित करना जो AI नवाचार और उन सृजकों के लिये निष्पक्ष मुआवज़े के बीच संतुलन बनाती है जिनकी रचनाओं का उपयोग AI मॉडलों के प्रशिक्षण के लिये किया जाता है।

2. क्या प्रतिलिप्यधिकार धारक AI प्रशिक्षण के लिये अपनी कृतियाँ रोक सकते हैं?
नहीं, अनिवार्य ब्लैंकेट लाइसेंस के तहत, प्रतिलिप्यधिकार धारक विधिवत् प्राप्त कृतियों को रोक नहीं सकते; इसके बजाय उन्हें विधायी प्रतिपूर्ति प्राप्त होती है।

3. प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम, 1957 की धारा 40 AI के संदर्भ में अपर्याप्त क्यों है?
धारा 40 केवल पारंपरिक क्षेत्रीय प्रतिलिप्यधिकार परस्परता के माध्यम से विदेशी रचनाओं की रक्षा करती है, लेकिन यह भारतीय रचनाओं का उपयोग करके विदेशों में प्रशिक्षित AI प्रणालियों, क्लाउड-आधारित AI प्रशिक्षण या सीमा-पार डेटा प्रवाह को शामिल नहीं करती है, जिससे AI-संचालित डिजिटल अर्थव्यवस्था में नियामक अंतराल उत्पन्न होते हैं।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स 

प्रश्न. 'राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति (नेशनल इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स पॉलिसी)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. यह दोहा विकास एजेंडा और TRIPS समझौते के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दोहराता है।  
  2.  औद्योगिक नीति और संवर्द्धन विभाग भारत में बौद्धिक संपदा अधिकारों के  विनियमन के लिये केन्द्रक अभिकरण (नोडल एजेंसी) हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. भारतीय पेटेंट अधिनियम के अनुसार, किसी बीज को बनाने की जैव प्रक्रिया को भारत में पेटेंट कराया जा सकता है।  
  2.  भारत में कोई बौद्धिक संपदा अपील बोर्ड नहीं है।  
  3.  पादप किस्में भारत में पेटेंट कराए जाने के पात्र नहीं हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स 

प्रश्न: वैश्वीकृत संसार में, बौद्धिक संपदा अधिकारों का महत्त्व हो जाता है और वे मुकद्दमेबाज़ी का एक स्रोत हो जाते हैं। कॉपीराइट, पेटेंट और व्यापार गुप्तियों के बीच मोटे तौर पर विभेदन कीजिये। (2014)


पारिस्थितिक बफर के रूप में मैंग्रोव

स्रोत: द हिंदू

करेंट बायोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन में यह बताया गया है कि मैंग्रोव पौधे अत्यधिक खारे पानी की परिस्थितियों में कैसे जीवित रहते हैं। यह शोध ऐसी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है जो जलवायु परिवर्तन और समुद्र के स्तर में वृद्धि के बीच लवण-सहिष्णु फसलों (Salt-Tolerant Crops) के विकास में मदद कर सकती हैं।

सारांश

  • करेंट बायोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन में पता चला है कि मैंग्रोव पौधे खारे पानी में जीवित रहते हैं। इसके पीछे विशेष कोशिका-स्तरीय अनुकूलन, जैसे मोटी कोशिका दीवारें और खारेपन प्रबंधन की विशेष प्रक्रियाएँ शामिल हैं।
  • ये निष्कर्ष लवण-सहिष्णु फसलों (Salt-Tolerant Crops) के विकास में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं, जिससे जलवायु सहनशीलता, खाद्य सुरक्षा और सतत कृषि को बढ़ावा मिल सकता है, खासकर समुद्र स्तर में वृद्धि के दौर में।

मैंग्रोव पौधे खारे पानी में कैसे जीवित रहते हैं?

  • पहचानी गई अनोखी कोशिकीय विशेषताएँ: मैंग्रोव पौधों में छोटी एपिडर्मल पावमेंट कोशिकाएँ (Smaller Epidermal Pavement Cells) और मोटी कोशिका दीवारें पाई जाती हैं, जो खारे पानी के कारण कम ऑस्मोटिक पोटेंशियल (Low Osmotic Potential) वाली परिस्थितियों में जीवित रहने के लिये आवश्यक यांत्रिक मज़बूती प्रदान करती हैं।
  • विभिन्न लवण प्रबंधन तंत्र: कुछ मैंग्रोव प्रजातियाँ मॉमी जड़ अवरोध (Waxy Root Barrier) का उपयोग करके नमक को बाहर निकालती हैं और पौधे में ताजे पानी (Freshwater) को खींचती हैं, जिससे खारे पानी में भी जीवित रहना संभव होता है।
    • कुछ अन्य प्रजातियाँ नमक को अपने अंदर संचित (Accumulate) करती हैं और इसे पत्तियों पर विशेष ग्रंथियों के माध्यम से सक्रिय रूप से बाहर निकालती हैं
  • विकासात्मक अनुकूलन: मैंग्रोव पौधे पिछले 200 मिलियन वर्षों में 30 से अधिक बार विकसित हुए हैं, जो खारे पर्यावरण में अनुकूलित होने की उनकी मज़बूत विकासात्मक क्षमता को दर्शाता है।
  • स्टोमेटल बदलाव पर निर्भर न होना: अपेक्षाओं के विपरीत, मैंग्रोव पौधे स्टोमेटा (Stomatal) की संख्या बढ़ाते या उनके आकार को कम नहीं करते, जो अन्य सूखा-सहिष्णु पौधों में आमतौर पर फोटोसिंथेसिस बढ़ाने या पानी की हानि कम करने के लिये देखा जाता है।

निहितार्थ / प्रभाव

  • कृषि में जलवायु सहनशीलता: मैंग्रोव पौधों की कोशिका विशेषताओं को समझकर लवण-सहिष्णु फसल प्रजातियाँ विकसित की जा सकती हैं, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ जलवायु परिवर्तन के कारण मिट्टी में लवणता बढ़ रही है। कोशिका के आकार और दीवार की गुणधर्मों में बदलाव पर केंद्रित शोध कृषि में क्रांतिकारी अनुप्रयोग ला सकता है, विशेषकर चावल, गेहूँ और दालों जैसी फसलों के लिये जो लवण-संवेदनशील क्षेत्रों में उगाई जाती हैं।
  • नीति और अनुसंधान का समन्वय: ये निष्कर्ष राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA) और SDG 13 (जलवायु कार्रवाई) के लक्ष्यों के अनुरूप हैं। यह फसल सहनशीलता और खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने के लिये वैज्ञानिक दिशा-निर्देश प्रदान करता है।

मैंग्रोव के संबंध में मुख्य बातें क्या हैं?

  • परिचय: मैंग्रोव तटीय पारिस्थितिकी तंत्र हैं जहाँ लवण सहिष्णु वृक्ष और झाड़ियाँ पाई जाती हैं जिनकी वृद्धि उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के अंतःज्वारीय क्षेत्रों में होता है।
    • ये पारिस्थितिकी तंत्र उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों (1,000–3,000 मिमी) में पनपते हैं, जहाँ तापमान 26°C से 35°C के बीच रहता है।
    • कुछ सामान्य मैंग्रोव वृक्षों में लाल मैंग्रोव, ग्रे मैंग्रोव और राइज़ोफोरा शामिल हैं।
  • पर्यावास: मैंग्रोव का विकास ज्वारीय मैदानों, नदियों के मुहाने और उच्च गाद निक्षेपण वाले डेल्टाओं में होता हैं, यहाँ प्रतिदिन दो बार ज्वारीय जलप्लावन होता है।
    • वे खारे, ऑक्सीजन की कमी वाले, धीरे बहने वाले पानी में पनपते हैं, जहाँ बारीक तलछट जमा होती रहती है।
  • मुख्य विशेषताएँ:
    • कार्यिकीय अनुकूलन: इनमें श्वसन के लिये न्यूमेटोफोर (Avicennia), स्थिरता के लिये अवस्तंभ मूल (Rhizophora) और जल की हानि और नमक स्राव के लिये लेंटिसेलेटेड छाल का विकास होता है।
      • उनकी लवण-स्रावी ग्रंथियाँ लवण उत्सर्जन में सहायता करती हैं, जबकि इनकी मूल तलछट को प्रग्रहित करती हैं और तटरेखा को स्थिर करती हैं।
    • जननीय अनुकूलन: मैंग्रोव में जरायुजता (Viviparity) पाई जाती है, जहाँ बीज ज़मीन पर गिरने से पहले पेड़ के भीतर अंकुरित होते हैं, जिससे लवणीय परिस्थितियों में भी जीवित रहना सुनिश्चित होता है।
  • मैंग्रोव का वितरण: मैंग्रोव की वृद्धि केवल भूमध्य रेखा के समीप उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय अक्षांशों में ही होती है, क्योंकि शून्य से निम्न तापमान इनकी वृद्धि के लिये अनुकूल नहीं होता।
    • सबसे बृहद मैंग्रोव क्षेत्र दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में अवस्थित है, इसके बाद दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, उत्तर और मध्य अमेरिका तथा ओशिनिया का स्थान है।
  • भारत में मैंग्रोव आवरण: भारतीय वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR) 2023 के अनुसार, भारत का मैंग्रोव आवरण लगभग 4,992 वर्ग किमी. है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 0.15% है।
    • भारत के मैंग्रोव कवर में पश्चिम बंगाल का सबसे बड़ा हिस्सा 42.45% है, उसके बाद गुजरात का 23.32% और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का 12.19% है।
  • प्रमुख नियामक उपाय: पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत मैंग्रोव को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया है। यदि मैंग्रोव का क्षेत्र 1,000 वर्ग मीटर से अधिक है तो इसके आसपास 50 मीटर के बफर ज़ोन में गतिविधियाँ प्रतिबंधित होती हैं।

Mangroves

Mangroves

मैंग्रोव का महत्त्व:

  • जलवायु परिवर्तन शमन: मैंग्रोव प्रमुख ब्लू कार्बन सिंक है, जो प्रत्येक एकड़ में उष्णकटिबंधीय वनों की तुलना में 7.5–10 गुना अधिक कार्बन संग्रहीत करते हैं और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में सहायता करते हैं।
  • जैव विविधता संरक्षण: ये मछलियों और क्रस्टेशियनों के लिये नर्सरी स्थल का कार्य करते हैं तथा पक्षियों, सरीसृपों एवं संकटग्रस्त प्रजातियों के लिये आवास प्रदान करते हैं।
  • जीविका का समर्थन: मत्स्यन, शहद संग्रहण, ईंधन लकड़ी और इको-टूरिज़्म के माध्यम से तटीय एवं ग्रामीण समुदायों की आजीविका को बनाए रखते हैं।
  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण: मैंग्रोव तूफानी लहरों, सुनामी और तटीय कटाव के विरुद्ध प्राकृतिक अवरोध के रूप में कार्य करते हैं, जो लहरों की ऊर्जा को 5–35% तक कम करते हैं।
    • ये बाढ़ की गहराई को 15–20% और कुछ क्षेत्रों में 70% तक कम कर देते हैं, जिससे आपदा जोखिम न्यूनीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • प्रकृति-आधारित समाधान: मैंग्रोव सतत विकास और जलवायु अनुकूलन के लिये प्रमुख पारिस्थितिकी-आधारित अनुकूलन रणनीति का प्रतिनिधित्व करते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. मैंग्रोव लवणीय जल में जीवित कैसे रह पाते हैं?
इनके पास छोटे एपिडर्मल कोशिकाएँ, मोटी कोशिका भित्तियाँ और विशेष लवण बहिष्कार या लवण स्राव तंत्र होते हैं, जो कम ओस्मोटिक पोटेंशियल में जीवित रहने में सक्षम बनाते हैं।

2. मैंग्रोव में लवण प्रबंधन की दो मुख्य रणनीतियाँ कौन-सी हैं?
जड़ों पर मोमयुक्त बाधाओं का उपयोग कर लवण का बहिष्कार और पत्तियों की ग्रंथियों के माध्यम से लवण का संचयन तथा स्राव।

3. कृषि के लिये मैंग्रोव अध्ययन क्यों महत्त्वपूर्ण है?
यह लवण-प्रतिरोधी फसलों जैसे चावल, गेहूँ और दलहनों को लवणीय क्षेत्रों में उगाने के लिये एक ब्लूप्रिंट प्रदान करता है, विशेषकर जलवायु परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य में।

4. जलवायु कार्रवाई के लिये मैंग्रोव क्यों महत्त्वपूर्ण हैं?
ये शक्तिशाली ब्लू कार्बन सिंक हैं, उष्णकटिबंधीय वनों की तुलना में 7.5–10 गुना अधिक कार्बन संग्रहीत करते हैं और बाढ़ व तूफानी लहरों के प्रभाव को कम करते हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. जलवायु परिवर्तन के तहत संधारणीय कृषि के लिये मैंग्रोव की भूमिका को पारिस्थितिक अवरोध और ज्ञान प्रणाली दोनों के रूप में जाँच कीजिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत के निम्नलिखित क्षेत्रों में से किस एक में मैंग्रोव वन, सदापर्णी वन और पर्णपाती वनों का संयोजन है? (2015)

(a) उत्तर तटीय आंध्र प्रदेश
(b) दक्षिण-पश्चिम बंगाल
(c) दक्षिणी सौराष्ट्र
(d) अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह 

उत्तर: (d)