शासन व्यवस्था
मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें एवं कार्यकाल) विधेयक, 2023
प्रिलिम्स के लिये:भारत का चुनाव आयोग, मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC), भारत का सर्वोच्च न्यायालय, संविधान का अनुच्छेद 324 मेन्स के लिये:मुख्य चुनाव आयुक्त के चयन के लिये प्रस्तावित विधेयक, इसका महत्त्व और संबंधित चिंताएँ |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
राज्यसभा ने हाल ही में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें एवं कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023 को मंज़ूरी दे दी, जो मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) तथा चुनाव आयुक्तों (EC) की नियुक्ति की प्रक्रियाओं की रूपरेखा तैयार करता है।
- इस कानून का उद्देश्य अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ मामले, 2023 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्देश के प्रत्युत्तर में नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना है।
CEC और EC की नियुक्ति पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला क्या है?
- मार्च 2023 में, सर्वोच्च न्यायालय ने CEC और EC की नियुक्ति के संबंध में संविधान के अंगीकरण के उपरांत एक लंबे समय से चले आ रहे विधायी अंतर को समाप्त करते हुए, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने में भारत के स्वतंत्र निर्वाचन आयोग (ECI) की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर ज़ोर दिया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने संवैधानिक लोकतंत्र का समर्थन करने वाले अन्य संस्थानों की ओर ध्यान आकर्षित किया जिनके पास अपने प्रमुखों/सदस्यों की नियुक्ति के लिये स्वतंत्र तंत्र हैं।
- राष्ट्रीय और राज्य मानवाधिकार आयोग, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI), सूचना आयोग और लोकपाल जैसे उदाहरणों का उल्लेख किया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव सुधार पर दिनेश गोस्वामी समिति (1990) और चुनाव सुधार पर विधि आयोग की 255वीं रिपोर्ट (2015) की सिफारिशों पर गौर किया।
- दोनों समितियों ने CEC और EC की नियुक्ति के लिये प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) और विपक्ष के नेता की एक समिति का सुझाव दिया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग करते हुए (किसी भी मामले में 'पूर्ण न्याय' हेतु निर्देश जारी करने के लिये) निर्धारित किया कि CEC और EC की नियुक्ति प्रधानमंत्री, CJI और नेता की एक समिति या लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल द्वारा की जाएगी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि यह तंत्र तब तक लागू रहेगा जब तक संसद इस मामले पर कानून नहीं बना देती।
विधेयक के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?
- यह विधेयक चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और व्यवसाय का संचालन) अधिनियम, 1991 का स्थान लेता है।
- यह CEC और ECs की नियुक्ति, वेतन एवं निष्कासन से संबंधित है।
- नियुक्ति प्रक्रिया:
- CEC और EC की नियुक्ति चयन समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी।
- सदस्य के रूप में लोकसभा में विपक्ष का नेता, यदि लोकसभा में विपक्ष के नेता को मान्यता नहीं दी गई है, तो लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता शामिल होगा।
- इस समिति में कोई पद रिक्त होने पर भी चयन समिति की सिफारिशें मान्य होंगी।
- विधेयक में CEC और EC के पदों पर विचार करने के लिये पाँच व्यक्तियों का एक पैनल तैयार करने हेतु एक खोज समिति (Search Committee) की स्थापना का प्रस्ताव है।
- खोज समिति की अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करेंगे और इसमें सचिव के पद से निम्न पद वाले दो सदस्य भी शामिल होंगे जिनके पास चुनाव से संबंधित मामलों का ज्ञान तथा अनुभव होगा।
- CEC और EC की नियुक्ति चयन समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी।
- वेतन एवं शर्तों में परिवर्तन:
- CEC और ECs का वेतन एवं सेवा शर्तें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के सामान होंगी।
- हटाने/निष्कासन की प्रक्रिया:
- यह बिल संवैधानिक प्रावधान (अनुच्छेद 324 (5)) को बरकरार रखता है जो CEC को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की तरह निष्कासन की अनुमति देता है, जबकि EC को केवल CEC की अनुशंसा पर हटाया जा सकता है।
- CEC और EC के लिये संरक्षण:
- बिल, CEC और EC को उनके कार्यकाल के दौरान की गई कार्रवाई से संबंधित कानूनी कार्यवाही से बचाता है, बशर्ते कि इस तरह की कार्रवाई आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन में की गई हो।
- संशोधन का उद्देश्य इन अधिकारियों को उनके आधिकारिक कार्यों से संबंधित सिविल या आपराधिक कार्यवाही से बचाव करना है।
- नियुक्ति प्रक्रिया:
वर्तमान में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त किस प्रकार नियुक्त किये जाते हैं?
- संवैधानिक प्रावधान:
- संविधान के भाग XV (चुनाव) में सिर्फ 5 अनुच्छेद (324-329) हैं।
- संविधान CEC और EC की नियुक्ति के लिये एक विशिष्ट विधायी प्रक्रिया निर्धारित नहीं करता है।
- संविधान का अनुच्छेद 324 मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की ऐसी संख्या, यदि कोई हो, से मिलकर बने चुनाव आयोग में 'चुनावों का अधीक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण' निहित करता है, जिसे राष्ट्रपति समय-समय पर तय करें।
- राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले संघ परिषद् की सलाह पर इनकी नियुक्ति करते हैं।
- विधि मंत्री विचार के लिये प्रधानमंत्री को उपयुक्त उम्मीदवारों के एक निकाय का सुझाव देते हैं। राष्ट्रपति PM की सलाह पर नियुक्ति करते हैं।
- निष्कासन:
- वे कभी भी इस्तीफा दे सकते हैं या अपने कार्यकाल की समाप्ति से पूर्व भी उन्हें हटाया जा सकता है।
- CEC को केवल संसद द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान निष्कासन की प्रक्रिया के माध्यम से पद से हटाया जा सकता है।
- CEC की अनुशंसा को छोड़कर किसी भी अन्य EC को निष्कासित नहीं किया जा सकता है।
विधेयक से संबंधित चिंताएँ क्या हैं?
- पारदर्शिता और स्वतंत्रता:
- रिक्ति होने पर भी चयन/प्रवरण समिति की अनुशंसाओं को मान्य रखने से कुछ परिस्थितियों के दौरान सत्तारूढ़ दल के सदस्यों का एकाधिकार हो सकता है, जिससे समिति की विविधता एवं स्वतंत्रता कमज़ोर हो सकती है।
- न्यायिक बेंचमार्क से कार्यपालिका नियंत्रण में परिवर्तन:
- CEC तथा EC के वेतन को मंत्रिमंडल सचिव के समान करना, जिनका वेतन कार्यपालिका द्वारा निर्धारित किया जाता है, संभावित सरकारी प्रभाव के बारे में सवाल उठाता है।
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के वेतन के विपरीत, जो संसद के एक अधिनियम द्वारा तय किया जाता है, यह उक्त परिवर्तन निर्वाचन आयोग की वित्तीय स्वतंत्रता को संकट में डाल सकता है।
- सिविल सेवकों के लिये पात्रता सीमित करना:
- केवल सरकार के सचिव के समकक्ष पद धारण करने वाले व्यक्तियों के लिये पात्रता को सीमित करने से संभावित रूप से योग्य उम्मीदवार बाहर हो सकते हैं, जिससे ECI में पृष्ठभूमि तथा विशेषज्ञता की विविधता सीमित हो सकती है।
- समतुल्यता की कमी से संबंधित चिंताएँ:
- यह विधेयक उस संविधानिक उपबंध को बनाए रखता है जो CEC को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की तरह ही निष्कासित करने की अनुमति देता है, जबकि EC को केवल CEC की सिफारिश पर ही निष्कासित किया जा सकता है।
- निष्कासन प्रक्रियाओं में समतुल्यता की कमी निष्पक्षता पर सवाल उठा सकती है।
- यह विधेयक उस संविधानिक उपबंध को बनाए रखता है जो CEC को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की तरह ही निष्कासित करने की अनुमति देता है, जबकि EC को केवल CEC की सिफारिश पर ही निष्कासित किया जा सकता है।
चुनावी निकाय के सदस्यों की नियुक्ति में वैश्विक प्रथाएँ
- दक्षिण अफ्रीकी मॉडल:
- दक्षिण अफ्रीका में, चयन प्रक्रिया में संवैधानिक न्यायालय के अध्यक्ष, मानवाधिकार न्यायालय के प्रतिनिधि और लैंगिक समानता के समर्थक जैसे प्रमुख व्यक्ति शामिल होते हैं।
- विविध प्रतिनिधित्व पर जोर चुनावी निकाय में व्यापक परिप्रेक्ष्य सुनिश्चित करता है।
- यूनाइटेड किंगडम दृष्टिकोण:
- यूनाइटेड किंगडम में, चुनावी निकाय के उम्मीदवार हाउस ऑफ कॉमन्स द्वारा अनुमोदन के अधीन हैं।
- चयन प्रक्रिया में विधायिका को शामिल करने से इसे जाँच और जवाबदेही का अतिरिक्त स्तर मिलता है।
- संयुक्त राज्य प्रक्रिया:
- अमेरिका में, राष्ट्रपति चुनावी निकाय में सदस्यों की नियुक्ति करता है, और नियुक्तियों के लिये सीनेट द्वारा पुष्टि की आवश्यकता होती है।
- दोहरी जाँच प्रणाली शक्ति संतुलन सुनिश्चित करती है और एकतरफा निर्णयों को रोकती है।
- अमेरिका में, राष्ट्रपति चुनावी निकाय में सदस्यों की नियुक्ति करता है, और नियुक्तियों के लिये सीनेट द्वारा पुष्टि की आवश्यकता होती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. भारत में लोकतंत्र की गुणता बढ़ाने के लिये भारत के चुनाव आयोग ने 2016 में चुनावी सुधारों का प्रस्ताव दिया है। सुझाए गए सुधार क्या हैं और लोकतंत्र को सफल बनाने में वे किस सीमा तक महत्त्वपूर्ण हैं? (2017) |
सामाजिक न्याय
मानव तस्करी
प्रिलिम्स के लिये:ऑपरेशन स्टॉर्म मेकर्स II, इंटरपोल, मानव तस्करी के रूप, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, अनैतिक तस्करी (रोकथाम) अधिनियम, 1956, अनुच्छेद 23, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012, अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय, तस्करी पर सार्क अभिसमय। मेन्स के लिये:भारत में मानव तस्करी की स्थिति |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में इंटरपोल ने ऑपरेशन स्टॉर्म मेकर्स II का संचालन किया जिसमें मानव तस्करी के शिकार लोगों का उपयोग करते हुए चलाये जा रहे धोखाधड़ी योजनाओं के बढ़ते नेटवर्क को उजागर किया गया है।
- इसने 27 एशियाई और अन्य देशों में मानव तस्करी तथा प्रवासी तस्करी से निपटने के लिये कानून प्रवर्तन को संगठित किया।
ऑपरेशन स्टॉर्म मेकर्स II के प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- गिरफ्तारियाँ और आरोप: ऑपरेशन के फलस्वरूप मानव तस्करी, पासपोर्ट जालसाज़ी, भ्रष्टाचार, दूरसंचार धोखाधड़ी और यौन शोषण जैसे आरोपों में विभिन्न देशों में 281 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया।
- बचाव कार्य और जाँच: इस ऑपरेशन द्वारा मानव तस्करी पीड़ित 149 लोगों को बचाया गया और कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा मानव तस्करी से पीड़ितों हेतु खोज कार्य शुरू किया गया।
- तेलंगाना मामला: इंटरपोल के अनुसार, तेलंगाना पुलिस ने भारत में इस प्रकार का पहला मामला दर्ज किया है मानव तस्करी के शिकार लोगों का उपयोग करते हुए धोखाधड़ी योजनाओं का संचालन किया जा रहा था।
- इसमें दक्षिण पूर्व एशियाई देश में प्रलोभन देकर लाए गए एक अकाउंटेंट को अमानवीय परिस्थितियों में ऑनलाइन धोखाधड़ी योजनाओं में भाग लेने के लिये बाध्य किया गया।
- प्राप्त सूचनाओं के अनुसार, फिरौती भुगतान करके अकाउंटेंट को सुरक्षित बचा लिया गया है।
नोट: इंटरपोल, जिसे अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक पुलिस संगठन (ICPO) के नाम से भी जाना जाता है, विश्व का सबसे बड़ा अंतर्राष्ट्रीय पुलिस संगठन है। इंटरपोल का मिशन विश्व को सुरक्षित बनाने के लिये पूरे विश्व की पुलिस के साथ मिलकर एक शांतिपूर्ण उद्देश्य के लिये कार्य करने में सहायता करना है।
- इसमें 196 सदस्य देश हैं। वर्ष 1949 से शामिल भारत इंटरपोल के सबसे पुराने सदस्यों में से एक है।
- यह एक सुरक्षित नेटवर्क की सहायता से देशों को एक-दूसरे से और एक सामान्य सचिवालय से संपर्क बनाने में सहायता करता है। यह उन्हें वास्तविक समय में इंटरपोल के डेटाबेस एवं सेवाओं तक पहुँच भी प्रदान करता है।
भारत में मानव तस्करी की स्थिति क्या है?
- मानव तस्करी:
- मानव तस्करी से आशय लोगों के अवैध व्यापार व शोषण से है, जिसमें जबरन लोगों को श्रम कार्य, यौन शोषण अथवा अनैच्छिक दासता के लिये बाध्य किया जाता है।
- इसमें व्यक्तियों का शोषण करने के उद्देश्य से धमकी, बलप्रयोग, ज़बरदस्ती, अपहरण, धोखाधड़ी अथवा धोखे के माध्यम से किसी प्रकार की भर्ती, स्थानांतरण, शरण देने के प्रलोभन आदि का उपयोग शामिल है।
- भारत में स्थिति:
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau -NCRB) के अनुसार, भारत में वर्ष 2022 में 6,500 से अधिक मानव तस्करी पीड़ितों की पहचान की गई, जिनमें से 60% महिलाएँ और लड़कियाँ थीं।
- भारत में तस्करी से संबंधित संवैधानिक एवं विधायी प्रावधान:
- संवैधानिक निषेध: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 23 मानव तस्करी और बेगार (बिना भुगतान के जबरन श्रम) पर प्रतिबंध लगाता है।
- अनैतिक तस्करी (रोकथाम) अधिनियम, 1956 [Immoral Traffic (Prevention) Act- ITPA]: यह कानून विशेष रूप से व्यावसायिक यौन शोषण के लिये तस्करी को रोकने के उद्देश्य से प्राथमिक कानून के रूप में कार्य करता है।
- यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012: 14 नवंबर, 2012 को अधिनियमित यह अधिनियम बच्चों को यौन दुर्व्यवहार व शोषण से सुरक्षित करने हेतु समर्पित है।
- इसमें यौन शोषण के विभिन्न रूपों को स्पष्ट तौर पर परिभाषित किया गया है, जिसमें पेनीट्रेटिभ और नॉन-पेनीट्रेटिभ मामलों के साथ-साथ यौन उत्पीड़न भी शामिल है।
- अन्य विशिष्ट कानून: महिलाओं और बच्चों की तस्करी से संबंधित मामलों की रोकथाम के लिये कई अन्य कानून बनाए गए हैं, जिनमें बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006, बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976, बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986, बाल विवाह निषेध अधिनियम, 1986 शामिल हैं। मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 और भारतीय दंड संहिता की प्रासंगिक 372 व 373 जैसी धाराएँ वेश्यावृत्ति के लिये लड़कियों की बिक्री तथा खरीद संबंधी मामलों का निपटान करती हैं।
- राज्य-विशिष्ट विधान: राज्यों में भी मानव तस्करी के निपटान के लिये विशिष्ट कानून बनाए गए हैं। उदाहरण के लिये; पंजाब मानव तस्करी रोकथाम अधिनियम, 2012।
- संबंधित अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय:
- संयुक्त राष्ट्र अभिसमय: भारत ने अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UN Convention on Transnational Organized Crime- UNCTOC) की पुष्टि की है जिसमें विशेष रूप से व्यक्तियों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों की तस्करी की रोकथाम, शोषण एवं सज़ा से संबंधित प्रोटोकॉल शामिल हैं।
- विधायी कार्रवाई: उपर्युक्त प्रोटोकॉल के प्रावधानों के साथ संरेखित करने के लिये आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 2013 को अधिनियमित किया गया था, यह मानव तस्करी को सटीकता से परिभाषित करता है।
- तस्करी पर SAARC अभिसमय: वेश्यावृत्ति के उद्देश्य महिलाओं और बच्चों की तस्करी की रोकथाम तथा निपटान के लिये भारत ने SAARC अभिसमय पर हस्ताक्षर किया है।
- महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर अभिसमय (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women- CEDAW): इसे महिलाओं के अधिकारों के अंतर्राष्ट्रीय विधेयक के रूप में भी जाना जाता है। इसे वर्ष 1979 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा अपनाया गया था।
- भारत द्वारा वर्ष 1993 में CEDAW का अनुमोदन किया गया था।
- संयुक्त राष्ट्र अभिसमय: भारत ने अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UN Convention on Transnational Organized Crime- UNCTOC) की पुष्टि की है जिसमें विशेष रूप से व्यक्तियों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों की तस्करी की रोकथाम, शोषण एवं सज़ा से संबंधित प्रोटोकॉल शामिल हैं।
मानव तस्करी के प्रमुख कारण और प्रभाव क्या हैं?
- कारण:
- निर्धनता और आर्थिक असमानताएँ: मनुष्य की आर्थिक कठिनाइयाँ उसे विभिन्न परिस्थितियों के प्रति सुभेद्य बनाती हैं, जिससे वह बेहतर अवसरों के वादों के प्रति संवेदनशील हो जाता है, ऐसे में तस्करी से जुड़े लोग इसका लाभ उठाते हैं।
- शिक्षा और जागरूकता का अभाव: तस्करी के जोखिमों के बारे में शिक्षा और जागरूकता की सीमितता के कारण व्यक्ति तस्करों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली रणनीति से अनजान होता है तथा आसानी से उनके प्रलोभनों की ओर आकर्षित हो जाता है।
- संघर्ष, अस्थिरता और विस्थापन: देश में अथवा दूसरे देशों के साथ होने वाले संघर्ष, राजनीतिक अस्थिरता अथवा प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित क्षेत्रों के ऐसे लोग जो कहीं और शरण या स्थिरता की तलाश कर रहे होते हैं, इस प्रकार के शोषण का शिकार होते हैं।
- सामाजिक बहिष्कार और भेदभाव: महिलाओं, बच्चों, प्रवासियों और अल्पसंख्यकों सहित सामाजिक तौर पर बहिष्कृत समूह अक्सर सामाजिक भेदभाव तथा संरचनागत समर्थन की कमी के कारण अधिक असुरक्षित होते हैं।
- सस्ते श्रम और सेवाओं की मांग: कम लागत वाले श्रम अथवा सेवाओं की तलाश करने वाले उद्योग कभी-कभी शोषणकारी प्रथाओं को अनदेखा कर देते हैं, जिससे श्रम शोषण की प्रथा बनी रहती है।
- ऑनलाइन शोषण और प्रौद्योगिकी: तकनीकी प्रगति के कारण ऑनलाइन भर्ती की प्रक्रिया सुविधाजनक हो गयी है, साथ ही इसने तस्करों के लिये विभिन्न भ्रामक तरीकों से पीड़ितों को लुभाना आसान बना दिया है।
- प्रभाव:
- मनोवैज्ञानिक प्रभाव: इसके पीड़ितों पर गंभीर मनोवैज्ञानिक प्रभाव देखे जा सकते हैं, जिसमें अवसाद, चिंता व विश्वासघात की भावना शामिल है, ये सभी दीर्घकालिक मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देती हैं।
- शारीरिक स्वास्थ्य जटिलताएँ: पीड़ितों को अक्सर शारीरिक शोषण, उपेक्षा और अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल का सामना करना पड़ता है, जिससे विभिन्न स्वास्थ्य जटिलताएँ उत्पन्न होती हैं।
- स्वतंत्रता और अधिकारों की क्षति: तस्करी से पीड़ित व्यक्ति अपनी स्वायत्तता और मूल मानवाधिकारों से वंचित होता है और निरंतर भय में रहता हैं।
- सामाजिक कलंक की भावना और अलगाव: जीवित बचे लोगों को सामाजिक कलंक की भावना और बहिष्कार का सामना करना पड़ता है, ऐसे में शोषण से बच जाने के बाद भी समाज एक नई चुनौती प्रस्तुत करता है।
- वैश्विक परिणाम: मानव तस्करी आपराधिक नेटवर्क के वैश्विक विस्तार को बढ़ावा देती है, जो देशों के सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित करती है तथा मानवाधिकार के सुदृढ़ीकरण के प्रयासों को कमज़ोर करती है।
आगे की राह
- शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से रोकथाम: समुदायों, विशेष रूप से कमज़ोर समूहों को तस्करों के जोखिमों और रणनीति के बारे में सूचित व जागरूक करने के लिये व्यापक शिक्षा कार्यक्रयों का क्रियान्वयन आवश्यक है।
- तस्करी के प्रति सतर्कता को बढ़ावा देने और व्यक्तियों में इसकी समझ में वृद्धि करने तथा इसके बारे में रिपोर्ट करने के लिये सशक्त बनाने हेतु विभिन्न अभियानों, कार्यशालाओं व मीडिया के माध्यम से जागरूक किया जाना चाहिये।
- कानूनी ढाँचे को मज़बूत करना: पीड़ितों को बेहतर सुरक्षा और तस्करों के लिये कठोर दंड का प्रावधान करने के लिये कानूनी ढाँचे को मज़बूत बनाते हुए मौजूदा कानूनों को अधिक प्रभावी बनाना एवं आवश्यक सुधार किया जाना आवश्यक है।
- तस्करी के निपटान और पीड़ित मामलों के संवेदनपूर्वक प्रबंधन के लिये कानून प्रवर्तन एजेंसियों को पर्याप्त संसाधन व प्रशिक्षण प्रदान किये जाना चाहिये।
- पीड़ितों के लिये सहायता और पुनर्वास: बचे हुए लोगों के लिये आश्रय, स्वास्थ्य देखभाल, परामर्श और व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करने वाली व्यापक पीड़ित-केंद्रित सहायता प्रणाली स्थापित की जानी चाहिये।
- पुन:एकीकरण कार्यक्रम की सहायता से बचे लोगों को अपने जीवन को पुनर्व्यवस्थित करने और बिना किसी कलंक के समाज का हिस्सा बनने मदद करना चाहिये।
- अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सहयोग: सीमा पार सहयोग के लिये सूचना, खुफिया जानकारी और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिये देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है।
- मानव तस्करी के निपटान के उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और प्रोटोकॉल को अनुमोदित एवं कार्यान्वित करना।
- मूल कारणों पर ध्यान केंद्रित करना: समाज के कमज़ोर व सुभेद्य लोगों के लिये आजीविका के स्थायी अवसर के निर्माण और आर्थिक सशक्तीकरण कार्यक्रम तैयार करके गरीबी व आर्थिक असमानताओं को दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिये।
- समावेशिता, समानता एवं सामाजिक समर्थन संरचनाओं को बढ़ावा देकर सामाजिक भेदभाव व बहिष्कार का निपटान किया जाना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. संसार के दो सबसे बड़े अवैध अफ़ीम उगाने वाले राज्यों से भारत की निकटता ने हार्ट की आतंरिक सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया है। नशीली दवाओं के अवैध व्यापार एवं बंदूक बेचने, गुपचुप धन विदेश भेजने और मानव तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों के बीच कड़ियों को स्पष्ट कीजिये। इन गतिविधियों को रोकने के लिये क्या-क्या प्रतिरोधी उपाय किये जाने चाहिये। (2018) |
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
संयुक्त राज्य अमेरिका में अवैध भारतीय प्रवास
प्रिलिम्स के लिये:अमेरिका में अवैध भारतीय प्रवास में वृद्धि, वैश्विक प्रवास, अल्पसंख्यक समुदाय, भेदभाव। मेन्स के लिये:अमेरिका में अवैध भारतीय प्रवास में वृद्धि, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियों और हस्तक्षेपों व उनके डिज़ाइन एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राज्य अमेरिका सीमा शुल्क और सीमा सुरक्षा के आँकड़ों के अनुसार पिछले एक दशक में, अमेरिका में अवैध भारतीय प्रवासियों की आमद में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। एक दशक पूर्व यह आमद मामूली तौर पर 1,500 से बढ़कर वर्ष 2023 में आश्चर्यजनक रूप से 96,917 हो गया।
- भारतीयों द्वारा अवैध सीमा क्रॉसिंग में सबसे महत्त्वपूर्ण उछाल वर्ष 2020 से देखा गया है, जो 10,000 से कम संख्या में ऐतिहासिक रूप से कम संख्या से प्रस्थान को चिह्नित करता है।
- परंपरागत रूप से, अधिकांश अवैध क्रॉसिंग अमेरिकी-मेक्सिको सीमा में हुए। हालाँकि भारतीय प्रवासी उत्तरी सीमा की ओर तेज़ी से प्रवास कर रहे हैं जो वर्ष 2014 में 100 से कम से बढ़कर वर्ष 2023 में 30,000 से अधिक हो गए हैं।
प्रवासी:
- अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन संगठन एक प्रवासी को किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है जो अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार अथवा अपने निवास स्थान से दूर किसी राज्य के भीतर जा रहा है अथवा चला गया है।
- प्रवास का आशय लोगों के एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थायी अथवा अस्थायी रूप से जाने से है।
संयुक्त राज्य अमेरिका में अवैध भारतीय प्रवासियों में वृद्धि के क्या कारण हैं?
- प्रेरित करने वाले कारक/पुश फैक्टर्स:
- भारत में रोज़गार के पर्याप्त अवसरों तथा आर्थिक संभावनाओं की कमी जैसे कई कारक हैं जो व्यक्तियों को विदेश में बेहतर रोज़गार की संभावनाएँ खोजने के लिये प्रेरित करते हैं।
- भारत में सामाजिक संघर्ष अथवा शासन तंत्र में विश्वास की कमी कुछ व्यक्तियों को कहीं और अधिक स्थाई वातावरण की तलाश करने के लिये प्रेरित कर सकती है।
- भारत में रोज़गार के पर्याप्त अवसरों तथा आर्थिक संभावनाओं की कमी जैसे कई कारक हैं जो व्यक्तियों को विदेश में बेहतर रोज़गार की संभावनाएँ खोजने के लिये प्रेरित करते हैं।
- आकर्षण के कारक/पुल फैक्टर्स:
- बेहतर रोज़गार, उच्च वेतन तथा कॅरियर में उन्नति की प्रस्तुति के लिये अमेरिका की प्रतिष्ठा प्रवासियों के लिये एक महत्त्वपूर्ण आकर्षण कारक के रूप में कार्य करती है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों का प्रलोभन छात्रों व परिवारों को शैक्षिक अवसरों की तलाश में आकर्षित करता है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका में पहले से ही बसे परिवार के सदस्यों अथवा रिश्तेदारों के साथ पुनर्मिलन की इच्छा कुछ प्रवासियों को प्रियजनों से निकटता के लिये अवैध प्रवेश की तलाश करने के लिये प्रेरित करती है।
- वैश्विक प्रवासन प्रवृत्तियाँ:
- कोविड महामारी के बाद वैश्विक प्रवासन में हुई समग्र वृद्धि ने इस वृद्धि में योगदान दिया है, क्योंकि व्यक्ति विभिन्न देशों में बेहतर अवसर तथा सुरक्षा की तलाश में हैं।
- वीज़ा बैकलॉग तथा वैकल्पिक मार्ग:
- तस्करों ने अमेरिका में अवैध प्रवेश को सुविधाजनक बनाने के लिये परिष्कृत एवं मांग वाली सेवाओं की पेशकश करते हुए अपने तरीके विकसित किये हैं।
- अत्यधिक वीज़ा बैकलॉग ने व्यक्तियों को लंबे समय तक प्रतीक्षा समय तथा विधिक प्रवेश के सीमित विकल्पों के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रवेश करने के वैकल्पिक, यद्यपि अवैध, रास्ते तलाशने के लिये प्रेरित किया है।
- गलत सूचना:
- सोशल मीडिया के माध्यम से गलत सूचना फैलती है और भ्रामक ट्रैवल एजेंसियाँ अक्सर हताश प्रवासियों को गुमराह करती हैं तथा उन्हें महाद्वीपों में अनेक सुविधाप्रदाताओं द्वारा निर्देशित जोखिम भरी यात्राएँ करने के लिये प्रेरित करती हैं।
- हताश प्रवासी विभिन्न महाद्वीपों और देशों से होकर गुज़रने वाली जटिल, बहु-पैर वाली यात्राएँ कर सकते हैं और रास्ते में कई जोखिमों तथा चुनौतियों का सामना कर सकते हैं।
भारत में अवैध प्रवासियों की संख्या में वृद्धि के सामाजिक-राजनीतिक और भू-राजनीतिक निहितार्थ क्या हैं?
- द्विपक्षीय संबंध:
- यह मुद्दा भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय संबंधों को, संभावित रूप से व्यापार वार्ता, सुरक्षा सहयोग तथा रणनीतिक साझेदारी को प्रभावित कर सकता है।
- आर्थिक कारक:
- अवैध प्रवेश चाहने वाले कुशल व्यक्तियों के परिणामस्वरूप संभावित प्रतिभा पलायन भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ कुशल श्रम की मांग है।
- प्रतिभा पलायन:
- अवैध प्रवास के कारण कुशल और शिक्षित व्यक्तियों की हानि भारत की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है, जिससे देश में प्रतिभा तथा विशेषज्ञता की कमी हो सकती है।
- श्रम बाज़ार की चुनौतियाँ:
- कुशल या अर्ध-कुशल श्रमिकों के जाने से कुछ क्षेत्रों में श्रम की कमी हो सकती है, जिससे भारत के कार्यबल और आर्थिक उत्पादकता पर असर पड़ सकता है।
- नीतिगत परिणाम:
- भारत को अवैध प्रवास को बढ़ावा देने वाले कारकों, संभावित रूप से संसाधनों और अन्य विकासात्मक प्राथमिकताओं से ध्यान हटाने के लिये कठोर नीतियों को लागू करने की आवश्यकता हो सकती है।
आगे की राह
- संकट को कम करने और भारत के भीतर बेहतर अवसर प्रदान करने के लिये आर्थिक स्थिरता, रोज़गार सृजन और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना।
- प्रवासन की ओर ले जाने वाली चिंताओं को समझने तथा उनका समाधान करने के लिये राजनयिक संवाद में संलग्न होना, प्रवासियों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये अन्य देशों के साथ सहयोग करना।
जैव विविधता और पर्यावरण
CCS और CDR की सीमाएँ
प्रिलिम्स के लिये :सीसीएस और सीडीआर, COP28, कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS), कार्बन-डाइऑक्साइड रिमूवल (CDR) तकनीक, बेरोकटोक जीवाश्म ईंधन, कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) की सीमाएँ। मेन्स के लिये:सीसीएस और सीडीआर की सीमाएँ, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण। |
स्रोत:द हिंदू
चर्चा में क्यों?
दुबई, संयुक्त अरब अमीरात में COP28 में लिये गए मसौदा निर्णयों में कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (CCS) तथा कार्बन डाइऑक्साइड रिमूवल (CDR) प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके कार्बन उत्सर्जन को कम करने और हटाने की सिफारिश की गई है।
- निर्बाध जीवाश्म ईंधन का तात्त्पर्य है कि उनके उत्सर्जन को कैप्चर करने के लिये CCS तकनीकों का उपयोग किये बिना इन ईंधनों का दहन।
- मसौदा निर्णय ऐसे बेरोकटोक जीवाश्म ईंधन को "चरणबद्ध तरीके से समाप्त" करने की आवश्यकता की ओर इशारा करते हैं।
CCS और CDR क्या हैं?
- कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (CCS):
- CCS उन प्रौद्योगिकियों को संदर्भित करता है जो वायुमंडल में उत्सर्जित होने से पहले उत्सर्जन के स्रोत पर कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) को कैप्चर कर सकते हैं।
- इन स्रोतों में जीवाश्म ईंधन उद्योग (जहाँ बिजली पैदा करने के लिये कोयला, तेल और गैस का दहन किया जाता है) तथा इसमें स्टील व सीमेंट उत्पादन जैसी औद्योगिक प्रक्रियाएँ शामिल हैं।
- कार्बन-डाइऑक्साइड रिमूवल (CDR):
- CDR कृत्रिम तकनीकों जैसे वनीकरण या पुनर्वनीकरण के साथ-साथ प्रत्यक्ष वायु कैप्चर जैसी तकनीकों का आकार ले सकता है, जिसमें उपकरण वायु से CO₂ लेकर पेड़ों की तरह काम करते हैं और इसका भूमिगत संग्रह करते हैं।
- इसके अतिरिक्त, अधिक परिष्कृत CDR प्रौद्योगिकियाँ हैं जैसे त्वरित रॉक अपक्षय, जिसमें चट्टानों के रासायनिक विघटन से उसके कण उत्पन्न होते हैं जो वायुमंडल से CO₂को अवशोषित करने की क्षमता रखते हैं।
- कार्बन कैप्चर एवं स्टोरेज़ (BECCS) के साथ बायोएनर्जी जैसी अन्य प्रौद्योगिकियाँ लकड़ी जैसे जलते बायोमास से CO₂ को कैप्चर और संग्रहीत करती हैं।
CCS और CDR को कैसे काम करना चाहिये?
- IPCC की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट (AR6) ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के अनुमानों के लिये इन प्रौद्योगिकियों पर काफी हद तक निर्भर करती है।
- वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की 50% से अधिक संभावना के साथ IPCC के मूल्यांकन किये गए परिदृश्य, इस धारणा पर विश्वास करते हैं कि विश्व वर्ष 2040 तक 5 बिलियन टन CO₂ का अनुक्रमण कर सकती है। यह अनुक्रम पैमाना भारत के वर्तमान वार्षिक CO₂ उत्सर्जन को पार करता है।
- CDR प्रौद्योगिकियों के एकीकरण के बिना 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये AR6 में कोई मार्ग नहीं है।
- वर्तमान उत्सर्जन दरों को देखते हुए, सात वर्षों के भीतर इसके 1.5 डिग्री सेल्सियस की दहलीज़ को पार करने का एक महत्त्वपूर्ण ज़ोखिम है। केवल प्रत्यक्ष उपायों (जैसे अक्षय ऊर्जा अपनाने) के माध्यम से उत्सर्जन को कम करना इस स्तर पर लगभग असंभव होगा, जिससे CDR पर पर्याप्त निर्भरता की आवश्यकता होती है।
CCS और CDR की चुनौतियाँ क्या हैं?
- रिबाउंड उत्सर्जन चिंताएँ:
- ये ऐसी चिंताएँ हैं जिनसे CCS और CDR का अस्तित्व अनजाने में निरंतर उत्सर्जन के लिये अधिक जगह बना सकता है।
- इस घटना से अक्षय ऊर्जा स्रोतों में संक्रमण के स्थान पर जीवाश्म ईंधन पर उत्सर्जन या लंबे समय तक निर्भरता बढ़ सकती है।
- जीवाश्म ईंधन निर्भरता:
- कुछ मामलों में तेल क्षेत्रों में कैप्चर किये गए CO₂ को इंजेक्ट करके अधिक तेल निष्कर्षण के लिये CCS का उपयोग किया गया है, संभवतः उनपर निर्भरता कम करने के विपरीतबी जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता अधिक है।
- भूमि इक्विटी संबंधी चिंताएँ:
- CDR तरीके जैसे वनीकरण, पुनर्वितरण, BECCS, और प्रत्यक्ष वायु कैप्चर भूमि की आवश्यकता से विवश हैं।
- ग्लोबल साऊथ में भूमि को प्रायः वृक्षारोपण और अन्य बड़े पैमाने पर CDR तरीकों को तैनात करने के लिये 'व्यवहार्य' और/या 'लागत प्रभावी' माना जाता है।
- नतीजतन, ऐसी CDR परियोजनाएँ स्वदेशी समुदायों और जैवविविधता संबंधी भूमि अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती हैं तथा भूमि-उपयोग के अन्य रूपों के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर सकती हैं, जैसे कि कृषि जो खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- तकनीकी और वित्तीय बाधाएँ:
- CCS एवं CDR प्रौद्योगिकियों के पैमाने में उच्च लागत, सीमित बुनियादी ढाँचे और इन तकनीकों को अधिक प्रभावी व किफायती बनाने के लिये पर्याप्त नवाचार की आवश्यकता सहित महत्त्वपूर्ण तकनीकी चुनौतियाँ उपलब्ध हैं।
आगे की राह
- CCS तथा CDR से संबंधित चिंताओं का समाधान करने के लिये व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें तकनीकी प्रगति, जीवाश्म ईंधन पर निरंतर निर्भरता को हतोत्साहित करने वाला नीतिगत ढाँचे एवं व्यापक जलवायु लक्ष्यों के साथ संरेखित करने के लिये CCS और CDR प्रौद्योगिकियों की ज़िम्मेदारीपूर्ण व सतत् नियोजन सुनिश्चित करने वाली रणनीतियों को अपनाना शामिल है।
- CCS तथा CDR प्रौद्योगिकियों को व्यापक जलवायु रणनीतियों के अंतर्गत एकीकृत करना अहम है किंतु दीर्घकालिक समाधान के स्थान पर संक्रमणकालीन समाधान के रूप में उनकी भूमिका पर ज़ोर देने की आवश्यकता है।
- यह सुनिश्चित करना कि उनका नियोजन नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने, ऊर्जा दक्षता एवं सतत् प्रथाओं के माध्यम से अर्थव्यवस्था को डीकार्बोनाइज़ करने के प्रयासों में बाधा न बने।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कृषि पद्धतियों पर विचार कीजिये: (2012)
वैश्विक जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में उपर्युक्त में से कौन-सा मिट्टी में कार्बन अधिग्रहण/भंडारण में सहायक है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) प्रश्न. कार्बन डाइ-ऑक्साइड के मानवजनित उत्सर्जन के कारण होने वाले ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन कार्बन पृथक्करण के लिये संभावित स्थल हो सकता है? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न. कृषि में शून्य जुताई के क्या-क्या लाभ हैं? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
चीनी से इथेनॉल के उत्पादन पर अंकुश
प्रिलिम्स के लिये:चीनी से इथेनॉल के उत्पादन पर अंकुश, इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP), जैव ईंधन, फीडस्टॉक्स, कच्चे तेल का आयात, खाद्य सुरक्षा मेन्स के लिये:चीनी से इथेनॉल के उत्पादन पर अंकुश, भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना, संसाधनों को जुटाने, वृद्धि, विकास और रोज़गार से संबंधित मुद्दे |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय द्वारा इथेनॉल उत्पादन के लिये गन्ने के रस/सिरप के उपयोग को प्रतिबंधित करने का निर्देश दिया गया जो इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (Ethanol Blended Petrol- EBP) में एक प्रमुख घटक है।
- भारत सरकार ने घरेलू स्तर पर उत्पादित चीनी की पर्याप्त उपलब्धता को बनाए रखने के लिये कड़े उपाय लागू किये हैं। प्रारंभ में इसने चीनी निर्यात पर प्रतिबंध लगाया।
इथेनॉल सम्मिश्रण क्या है?
- इथेनॉल:
- यह प्रमुख जैव ईंधन में से एक है, जो प्राकृतिक रूप से यीस्ट द्वारा शर्करा के किण्वन अथवा एथिलीन हाइड्रेशन जैसी पेट्रोकेमिकल प्रक्रियाओं के माध्यम से उत्पन्न होता है।
- इथेनॉल 99.9% शुद्ध अल्कोहल है जिसे पेट्रोल के साथ मिश्रित किया जा सकता है।
- इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम:
- इसका उद्देश्य कच्चे तेल के आयात पर देश की निर्भरता को कम करना, कार्बन उत्सर्जन में कटौती करना तथा किसानों की आय को बढ़ाना है।
- भारत सरकार ने पेट्रोल में 20% इथेनॉल मिश्रण (जिसे E20 भी कहा जाता है) का लक्ष्य वर्ष 2030 से बढ़ाकर वर्ष 2025 तक कर दिया है।
- पेट्रोल के साथ इथेनॉल का मिश्रण संपूर्ण भारत में वर्ष 2013-14 में 1.6% से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 11.8% हो गया है।
सरकार ने इथेनॉल उत्पादन के लिये चीनी के डायवर्ज़न को प्रतिबंधित क्यों किया है?
- चीनी की कमी संबंधी चिंताएँ:
- चीनी उत्पादन में संभावित कमी को लेकर चिंताएँ हैं।
- इथेनॉल उत्पादन के लिये गन्ने के रस या सिरप के उपयोग को प्रतिबंधित करने के कदम का उद्देश्य इस प्रत्याशित कमी को दूर करना है।
- ईंधन से अधिक भोजन को प्राथमिकता देना:
- यह निर्णय ईंधन उत्पादन (इथेनॉल) पर खाद्य उत्पादन (चीनी) को प्राथमिकता देने को दर्शाता है।
- भारत में एक महत्त्वपूर्ण वस्तु, चीनी के उत्पादन पर ज़ोर देकर, सरकार उपभोक्ताओं के लिये खाद्य सुरक्षा और उपलब्धता सुनिश्चित करने की प्राथमिकता के अनुरूप है।
- आपूर्ति-माँग गतिशीलता का प्रबंधन:
- सरकार चीनी बाज़ार में आपूर्ति और मांग के बीच नाज़ुक संतुलन का प्रबंधन करने का प्रयास कर रही है। इथेनॉल उत्पादन के लिये डायवर्ज़न पर अंकुश लगाकर, यह चीनी की उपलब्धता को स्थिर करने और बाज़ार में किसी भी कीमत की अस्थिरता को संभावित रूप से कम करने का प्रयास करता है।
इस कदम के निहितार्थ क्या हैं?
- इथेनॉल उत्पादन पर प्रभाव:
- यह निर्णय कुल इथेनॉल उत्पादन का लगभग 28% प्रभावित करता है, जिससे इस उच्च-मूल्य वाले फीडस्टॉक से उत्पन्न इथेनॉल की मात्रा कम हो जाती है।
- इथेनॉल उत्पादन के लिये गन्ने के रस या सिरप के उपयोग पर प्रतिबंध से चीनी मिलों की कमाई प्रभावित होने की उम्मीद है, क्योंकि इन स्रोतों से इथेनॉल उत्पादन में उपयोग किये जाने वाले अन्य फीडस्टॉक की तुलना में अधिक कीमतें मिलती हैं।
- इथेनॉल मिश्रण लक्ष्य के लिये चुनौतियाँ:
- सरकार का लक्ष्य वर्ष 2023-24 में इथेनॉल ईंधन-मिश्रण लक्ष्य को 12% से बढ़ाकर 15% करना और वर्ष 2025-26 तक पेट्रोल में 20% इथेनॉल मिश्रण प्राप्त करना है।
- हालाँकि इथेनॉल उत्पादन के लिये गन्ने के रस/सिरप पर प्रतिबंध के साथ इन लक्ष्यों को पूरा करना अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
इथेनॉल उत्पादन के अन्य स्रोत क्या हैं?
- अनाज: मकई (मक्का), जौ, गेहूँ और अन्य अनाज में स्टार्च होता है, जिसे इथेनॉल उत्पादन के लिये किण्वन शर्करा (Fermentable Sugars) में परिवर्तित किया जा सकता है।
- सेल्युलोसिक बायोमास: कृषि अवशेष (मकई स्टोवर, गेहूँ का भूसा), वानिकी अवशेष, समर्पित ऊर्जा फसलें (स्विचग्रास, मिसेंथस) और नगरपालिका ठोस अपशिष्ट में सेलूलोज़ और हेमिसेल्युलोज़ होते हैं जिन्हें इथेनॉल किण्वन के लिये शर्करा में विघटित किया जा सकता है।
- चावल: विघटित या क्षतिग्रस्त अनाज सहित अधिशेष चावल भी इथेनॉल उत्पादन के स्रोत के रूप में काम कर सकता है। चावल में मौजूद स्टार्च सामग्री को किण्वन के लिये शर्करा में परिवर्तित किया जा सकता है।
- फल और सब्ज़ियाँ: उच्च चीनी सामग्री वाले कुछ फल और सब्ज़ियाँ, जैसे– अँगूर तथा आलू का उपयोग इथेनॉल उत्पादन के लिये किया जा सकता है।
आगे की राह
- इथेनॉल उत्पादन के लिये अनाज, चावल, क्षतिग्रस्त/टूटे हुए अनाज और सेल्युलोसिक बायोमास जैसे वैकल्पिक फीडस्टॉक के उपयोग का पता लगाने तथा प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
- विविधीकरण गन्ना आधारित स्रोतों पर निर्भरता कम करता है और एक स्थिर आपूर्ति शृंखला सुनिश्चित करता है।
- ऐसी नीतियाँ लागू करना जो इथेनॉल उत्पादन के लिये विविध फीडस्टॉक के उपयोग को प्रोत्साहित करें। पिछली सरकार की रणनीति के समान विभेदक मूल्य निर्धारण, गैर-गन्ना स्रोतों से इथेनॉल के उत्पादन को प्रोत्साहित कर सकता है। स्पष्ट और स्थिर नीतियाँ विविध फीडस्टॉक उपयोग में दीर्घकालिक निवेश का समर्थन करती हैं।