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शासन व्यवस्था

संगठित अपराध और जॉर्जिया RICO अधिनियम

  • 18 Aug 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

RICO अधिनियम, महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 1999, संगठित अपराध

मेन्स के लिये:

भारत में संगठित अपराध से निपटने में चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर उनके 18 सहयोगियों के साथ जॉर्जिया रीको (रैकेटियर से प्रभावित और भ्रष्ट संगठन-Racketeer Influenced and Corrupt Organizations) अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए हैं।

  • इन आरोपों में कथित तौर पर कई आपराधिक गतिविधियाँ जिनमें मुख्य रूप से जालसाज़ी, झूठे बयान देना, छद्म रूप से सरकारी अधिकारी के तौर पर स्वयं को प्रस्तुत करना, गवाहों को प्रभावित करना और साज़िश रचना आदि शामिल हैं।
  • रीको (RICO) अधिनियम और महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (Maharashtra Control of Organised Crime Act- MCOCA), 1999 में कुछ समानताएँ हैं।

नोट: जॉर्जिया संयुक्त राज्य अमेरिका के 50 अमेरिकी राज्यों में से एक है और यह दक्षिण-पूर्वी मुख्य भूमि में स्थित है।

जॉर्जिया रीको/RICO अधिनियम:

  • वर्ष 1970 में रीको अधिनियम अमेरिकी संघीय कानून का हिस्सा बना
  • यह मूलतः संगठित अपराध, विशेष रूप से माफिया-संबंधित गतिविधियों से निपटने के लिये अभिकल्पित है।
  • संघीय कानून के प्रभावी होने के कुछ वर्षों के भीतर राज्यों ने अपना रीको कानून पारित करना शुरू किया।
  • वर्ष 1980 में पारित जॉर्जिया का रीको अधिनियम, "रैकेटियरिंग गतिविधि के पैटर्न" के माध्यम से अपराध संबंधी किसी "गतिविधि" में भाग लेना, उस पर नियंत्रण अथवा ऐसा करने की साज़िश करने को गैरकानूनी घोषित करता है।
  • जॉर्जिया में रीको अधिनियम के तहत धोखाधड़ी के आरोप में दोषी पाए जाने पर 20 वर्ष तक की जेल हो सकती है।
  • कठोर दंड का प्रावधान इस अधिनियम के अनुप्रयोग की गंभीरता को रेखांकित करता है।

महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 1999

  • इसे महाराष्ट्र में संगठित आपराधिक गतिविधियों से निपटने के लिये पेश किया गया था।
  • यह अधिनियम केवल महाराष्ट्र राज्य तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य पर भी लागू होता है।
  • इस अधिनियम के तहत प्रत्येक अपराध एक संज्ञेय अपराध है।
  • इस अधिनियम के तहत दंडनीय प्रत्येक अपराध की सुनवाई केवल इस अधिनियम के तहत गठित विशेष न्यायालय द्वारा की जाएगी।
  • यह अधिनियम शक्ति के दुरुपयोग, कानून सम्मत कार्य करने में विफल होने की स्थिति के लिये सख्त प्रावधान करता है, दोषी पाए गए व्यक्ति को तीन वर्ष तक का कारावास हो सकता है या उस पर ज़ुर्माना लगाया जा सकता है।

संगठित अपराध:

  • आर्थिक अथवा अन्य लाभ के इरादे से किसी गिरोह या सिंडिकेट के सदस्यों द्वारा संयुक्त रूप से या अलग-अलग किये गए कृत्य को संगठित आपराधिक गतिविधियों के रूप में जाना जाता है।
  • संगठित अपराध के प्रकार: संगठित गिरोह अपराध, रैकेटियरिंग, सिंडिकेट अपराध, तस्करी आदि।
  • वे ऐसा कानून प्रवर्तन और विनियमों में व्याप्त कमियों का लाभ उठाकर करते हैं।

संगठित अपराध और भारत की विधिक व्यवस्था:

  • भारत में हमेशा ही किसी-न-किसी रूप में संगठित अपराध का अस्तित्व रहा है। हालाँकि कई सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक कारकों तथा विज्ञान व प्रौद्योगिकी में हुई प्रगति के कारण आधुनिक समय में इसका उग्र रूप देखा गया है।
    • हालाँकि ग्रामीण भारत भी संगठित अपराध से अछूता नहीं है, किंतु यह मूलतः एक शहरी परिघटना है।
  • भारत में राष्ट्रीय स्तर पर संगठित अपराध से निपटने के लिये कोई विशिष्ट कानून नहीं है। राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 तथा स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 जैसे मौजूदा कानून इस संदर्भ में अपर्याप्त हैं क्योंकि ये व्यक्तियों पर लागू होते हैं, न कि आपराधिक समूहों अथवा उद्यमों पर।
  • कुछ राज्यों, जैसे कि गुजरात (गुजरात संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 2015), कर्नाटक (कर्नाटक संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 2000) और उत्तर प्रदेश (उत्तर प्रदेश संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 2017) ने संगठित अपराध का मुकाबला करने के लिये अपने कानून बनाए हैं।
  • भारत कई अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और संधियों (जिनका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर संगठित अपराध का उन्मूलन करना है) का भी भागीदार है। 

संगठित अपराध से निपटने में चुनौतियाँ:

  • अपर्याप्त विधिक संरचना: संगठित अपराध समूहों और उद्यमों पर लागू किये जा सकने योग्य समर्पित कानून का अभाव।
  • अपराध का प्रमाण प्राप्त करने में कठिनाई: पदानुक्रम उच्च नेतृत्व को प्रेरित करता है; गवाहों को अपनी जान का भय रहता है।
  • संसाधन और प्रशिक्षण की कमी: संगठित अपराध की जाँच के लिये संसाधन, प्रशिक्षण और सुविधाओं की कमी।
  • समन्वय की कमी: समन्वय और सूचना के आदान-प्रदान के लिये राष्ट्रीय एजेंसी का अभाव
  • आपराधिक, राजनीतिक और नौकरशाही गठजोड़: आपराधिक सिंडिकेट/समूह का राजनेताओं, नौकरशाहों तथा मीडिया के साथ संबंध होना बड़ी चुनौती उत्पन्न करता है।

आगे की राह

  • रीको अधिनियम जैसे सफल अंतर्राष्ट्रीय मॉडल से प्रेरित एक व्यापक राष्ट्रीय कानून विकसित किया जाना चाहिये।
  • कानून प्रवर्तन के लिये विशेष प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करना, संगठित अपराध से लड़ने हेतु आवश्यक तकनीकों का उपयोग।
  • खुफिया जानकारी, साक्ष्य एकत्र करने और अंतर-एजेंसी सहयोग को बढ़ावा देने के लिये प्रौद्योगिकी व बुनियादी ढाँचे हेतु वित्त में वृद्धि की जानी चाहिये।
  • संगठित अपराध से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये राज्यों और केंद्रीय प्रवर्तन निकायों के बीच समन्वय स्थापित करने हेतु एक केंद्रीय एजेंसी की स्थापना की जानी चाहिये। अपराध पैटर्न और इसके प्रमुख क्षेत्रों की पहचान के लिये उन्नत डेटा एनालिटिक्स तथा कृत्रिम बुद्धिमता का लाभ उठाते हुए निर्बाध सूचना के आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया जा सकता है।
  • आपराधिक-राजनीतिक गठजोड़ पर अंकुश लगाने के लिये सख्त निगरानी तंत्र का क्रियान्वयन अत्यंत आवश्यक है। जवाबदेही सुनिश्चित करने व सत्ता के दुरुपयोग पर प्रतिबंध लगाने के लिये नागरिक समाज समूहों और मानवाधिकार संगठनों की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाना महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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