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डेली न्यूज़

  • 13 Nov, 2019
  • 45 min read
भूगोल

डेलाइट सेविंग टाइम

प्रीलिम्स के लिये:

DST

मेन्स के लिये:

DST का महत्त्व और अनुप्रयोग

संदर्भ

डेलाइट सेविंग टाइम (Daylight Saving Time- DST) मार्च में प्रारंभ होकर नवंबर के पहले रविवार को समाप्त होता है। इस वर्ष DST 10 मार्च को शुरू हुआ और 3 नवंबर, 2019 को समाप्त हो गया।

  • इस वर्ष यूरोप की घड़ियों में रविवार को समय एक घंटे पीछे हो गया, इस घटना ने DST की समाप्ति के संकेत दिये। इसी प्रकार की घटनाएँ संयुक्त राज्य अमेरिका में भी देखी गईं। दक्षिणी गोलार्द्ध में इसके विपरीत घटना देखी गई और न्यूज़ीलैंड एवं ऑस्ट्रेलिया में घड़ियों में समय एक घंटे आगे बढ़ गया।

डेलाइट सेविंग टाइम क्या है?

  • DST गर्मियों के महीनों के दौरान मानक समय (Standard Time) से घड़ियों को एक घंटे आगे करने की प्रक्रिया है ताकि दिन की अवधि का बेहतर उपयोग किया जा सके। इस DST का प्रयोग यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका में बसंत से शरद ऋतु (दिन की कम अवधि) के दौरान किया जाता है जिससे यहाँ पर शाम को 1 घंटा अतिरिक्त मिलता है।
  • भारत और लंदन के बीच मानक समय में साढ़े पाँच घंटे का अंतर है, वहाँ पर DST के प्रयोग से भारत का मानक समय भी प्रभावित होता है।

डेलाइट सेविंग टाइम: इतिहास

  • ऊर्जा को बचाने और वार्षिक स्तर पर दिन की अवधि के लिये घड़ियों के समय को समायोजित करने का विचार लगभग 200 वर्ष से अधिक पुराना है।
  • पोर्ट आर्थर (ओंटारियो) के लेखों में 1 जुलाई, 1908 में कनाडाई लोगों के एक समूह द्वारा DST का पहली बार प्रयोग किया गया था। बाद के वर्षों में इसका प्रयोग कनाडा के अन्य हिस्सों में किया गया।
  • अप्रैल 1916 में प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान यूरोप में कोयले की भारी कमी हो गई। इस प्रकार की परिस्थितियों में जर्मनी और ऑस्ट्रिया-हंगरी द्वारा दिन की अवधि को समायोजित करने के लिये DST का प्रयोग किया गया था ।

DST के उपयोगकर्त्ता:

  • भूमध्य रेखा के आसपास के देश (अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और दक्षिण पूर्व एशिया में) आमतौर पर DST का पालन नहीं करते हैं क्योंकि इस क्षेत्र में लगभग पूरे वर्ष दिन की अवधि लगभग एक समान रहती है।
  • भारत में DST का प्रयोग नहीं किया जाता है, हालाँकि देश के कई हिस्सों में सर्दियों में दिन काफी छोटे होते हैं।
  • अधिकांश खाड़ी देश DST का उपयोग नहीं करते हैं, इसलिये रमज़ान के महीने में दिन की अवधि बढ़ जाती है। पूर्वी एशिया और अफ्रीका के ज़्यादातर देशों में DST की व्यवस्था नहीं है।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

भारत में असामयिक मृत्यु

प्रीलिम्स के लिये-

DALY, YLL

मेन्स के लिये-

भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र का विश्लेषण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल (The Lancet Global health journal) द्वारा भारत के विभिन्न राज्यों में असामयिक मृत्यु के संबंध में एक रिपोर्ट जारी की गई।

प्रमुख बिंदु:

  • रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 में हुई कुल 9.7 मिलियन लोग असामयिक मौत के शिकार हुए।
  • देश के विभिन्न क्षेत्रों में असामयिक मृत्यु के कारण अलग -अलग थे।
    • कैंसर के कारण इयर्स ऑफ़ लॉस्ट के 44% मामले उत्तरपूर्वी राज्य, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, गुजरात, केरल, कर्नाटक और मध्य प्रदेश से थे।
    • लिवर और शराब संबंधी बीमारियों के कारण कुल राष्ट्रीय YLLs (Years of Life Lost) में से 18% मामले पूर्वोत्तर राज्यों, बिहार, कर्नाटक और महाराष्ट्र में पाए गए।
    • असामयिक मृत्यु के विभिन्न कारणों में से एक आत्महत्या के मामले सबसे अधिक (कुल मामलों का लगभग 15% YLLs) दक्षिणी राज्यों में दर्ज किये गए हैं।
    • सड़क दुर्घटना के कारण होने वाली मौतें उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में सबसे अधिक (लगभग 33% YLLs) पाई गयी है ।
  • रिपोर्ट में वर्ष 2017 में भारत में विकलांगता-समायोजित जीवन वर्षों (Disability-Adjusted Life Years-DALYs) का विश्लेषण किया गया।
    • भारत में कुल 486 मिलियन DALYs के मामले पाए गए।
    • सभी आयु वर्ग में DALYs की संख्या प्रति 100000 जनसंख्या पर 36,300 पाई गई,लेकिन यह दर ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा दुगुनी है।

Premature deaths

नोट- ये मानचित्र जम्मू कश्मीर की पूर्व स्थिति के आधार पर है।

असामयिक मृत्यु- एक निश्चित जनसंख्या में औसत आयु से पहले होने वाली मृत्यु असामयिक मृत्यु कहलाती है।

विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष

(Disability Adjusted Life Year -DALY)-

WHO के अनुसार एक DALY को "स्वस्थ" जीवन का एक खोया वर्ष (Lost Year) माना जाता है। इन DALYs के योग को वर्तमान स्वास्थ्य स्थिति और एक आदर्श स्वास्थ्य स्थिति के बीच अंतर के रूप में माना जाता है।जहां पूरी आबादी बीमारी और विकलांगता से मुक्त एक मानक आयु तक जीवित रहती है।

इयर्स ऑफ़ लाइफ लॉस्ट (Years of life lost-YLL)-

इसकी गणना मृत्यु के समय की आयु को अधिकतम संभावित आयु में से घटाकर की जाती है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

बोलीविया में राजनीतिक संकट

प्रीलिम्स के लिये:

बोलीविया की भौगोलिक स्थिति

मेन्स के लिये:

बोलीविया में उत्पन्न राजनीतिक संकट।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दक्षिण अमेरिकी देश बोलीविया के राष्ट्रपति ईवो मोरालेस ( Evo Morales) के जबरन इस्तीफ़े ने दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप में सबसे बड़े राजनीतिक संकट को उत्पन्न कर दिया है। बोलीविया की मूल निवासी आबादी के पहले राष्ट्रपति मोरालेस ने अभी तक की सबसे स्थिर सरकार की अध्यक्षता की है।

पृष्ठभूमि

  • मोरालेस सर्वप्रथम वर्ष 2006 में निर्वाचित हुए और दक्षिण अमेरिका के सबसे गरीब देश बोलीविया को आर्थिक संवृद्धि की राह पर ले गए।
  • उन्होंने सड़कों को पक्का करने, बोलीविया के पहले उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजने और महंगाई पर लगाम लगाने जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य किये।
  • मोरालेस के ही नेतृत्व में बोलीविया लगभग 33% जनसंख्या को चरम गरीबी की स्थिति से निकालने में सफल रहा।
  • उनकी सरकार ने सार्वजनिक निवेश को आगे बढ़ाया तथा बड़ी संख्या में स्कूल,काॅलेज और स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना की।

प्रमुख बिंदु

  • वामपंथी संघवाद के माध्यम से सत्ता के शिखर पर पहुँचे राष्ट्रपति मोरालेस ने जब इस वर्ष के प्रारंभ में लगातार चौथे कार्यकाल की मांग की तब सोशलिज़्म पार्टी की विचारधारा दो विभाजित हो गई।
  • चौथी बार चुनाव जीतने के उनके दावे ने देश में अशांति पैदा कर दी, विपक्ष ने यह आरोप लगाया कि चुनाव में धोखाधड़ी हुई थी और कुछ विपक्षी दलों ने समर्थकों से सड़कों पर उतरने का आग्रह किया।
  • इससे पूर्व ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ अमेरिकन स्टेट्स (Organ।zat।on of Amer।can States-OAS) ने एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया कि 20 अक्टूबर को हुए चुनाव में ‘भारी अनियमितताऍ’ बरती गईं हैं अतः देश में नया चुनाव होना चाहिये।
  • इस घटनाक्रम के दौरान ईवो मोरालेस ने नए सिरे से चुनाव कराने की पेशकश भी की परंतु संकट तब गहराया जब देश के सेना प्रमुख ने राष्ट्रीय टेलीविज़न चैनल पर उनसे इस्तीफा देने की मांग की।
  • इस बीच विपक्षी दलों और सेना के दबाव के कारण मोरालेस राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देकर पड़ोसी देश मेक्सिको में राजनीतिक शरण लेते हैं।

राजनीतिक संकट के कारण

  • 21 वीं सदी की समाजवादी क्रांति" के प्रतीक (Baton of 21st century soc।al।st revolut।on) मोरालेस आंदोलन के दूसरे पायदान पर खड़े नेताओं को नेतृत्व को देने में विफल रहे।
  • वर्ष 2016 में जनमत संग्रह के माध्यम से राष्ट्रपति पद की समय सीमा समाप्त करने का उनका प्रयास विफल रहा, जिससे उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।
  • विपक्ष ने इसे संविधान को कमज़ोर करने की साज़िश बताया और मोरालेस सरकार पर चुनावी धाँधली का आरोप भी लगाया।

स्रोत : द हिंदू


सामाजिक न्याय

निमोनिया तथा डायरिया प्रोग्रेस रिपोर्ट

प्रीलिम्स के लिये

निमोनिया तथा डायरिया प्रोग्रेस रिपोर्ट क्या है?

मेन्स के लिये

निमोनिया तथा डायरिया उन्मूलन में निहित समस्याएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इंटरनेशनल वैक्सीन एक्सेस सेंटर (International Vaccine Access Center-IVAC) द्वारा 10वीं न्यूमोनिया तथा डायरिया प्रोग्रेस रिपोर्ट (10th Pneumonia and Diarrhoea progress report) प्रकाशित की गई।

न्यूमोनिया तथा डायरिया प्रोग्रेस रिपोर्ट पिछले दस वर्षों से प्रत्येक वर्ष जॉन हॉपकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ (Johns Hopkins Bloomberg School of Public Health) की संस्था इंटरनेशनल वैक्सीन एक्सेस सेंटर (International Vaccine Access Center-IVAC) द्वारा प्रकाशित की जाती है।

Fighting for breath.

मुख्य बिंदु:

  • विश्व के 23 देशों में जहाँ डायरिया तथा न्यूमोनिया से होने 75 प्रतिशत बच्चों (5 वर्ष से कम आयु के) की मौत हो जाती है, इन रोगों के उपचार एवं रोकथाम के लिये आवश्यक बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं।
  • विश्व में होने वाली प्रत्येक 4 शिशुओं की मृत्यु में से 1 की मृत्यु डायरिया तथा निमोनिया से होती है।
  • भारत में पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की बड़ी संख्या निवास करती है तथा डायरिया व निमोनिया से होने वाली मौतों की संख्या भी भारत में अधिक है।
  • भारत में वर्ष 2016 में शुरू की गई रोटावायरस वैक्सीन (Rotavirus Vaccine) तथा वर्ष 2017 में न्यूमोकोकल कॉनजुगेट वैक्सीन (Pneumococcal Conjugate Vaccine) के प्रयोग से इसे काफी हद तक नियंत्रित किया गया है।
  • 23 देशों की सूची में भारत में स्तनपान दर (Exclusive Breastfeeding Rate) सर्वाधिक 55 % है। इसके बावजूद आवश्यक उपचार के मामले में भारत निर्धारित लक्ष्य से पीछे है।
  • इन देशों में डायरिया से ग्रसित केवल 50 प्रतिशत बच्चों को ही ओआरएस (Oral Rehydration Solution-ORS) तथा 20 प्रतिशत को जिंक सप्लीमेंट दिया जाता है। जो डायरिया तथा निमोनिया से सुरक्षा, रोकथाम तथा उपचार के लिये आवश्यक है।
  • डायरिया तथा निमोनिया से बचाव के लिये 10 आवश्यक हस्तक्षेप निर्धारित किये गए हैं, जिसमें स्तनपान, टीकाकरण, एंटीबायोटिक का प्रयोग, ओआरएस तथा जिंक सप्लीमेंट आदि शामिल हैं। इन प्रयासों के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में शिशु मृत्यु दर को वर्ष 2030 तक 25 प्रति एक हज़ार करना है।
  • इसके अलावा वर्ष 2017 में ‘सेव द चिल्ड्रेन’ तथा 'यूनिसेफ’ द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया कि भारत में निमोनिया से बच्चों की मौत के कारणों में, 53 प्रतिशत बच्चों में उनकी आयु की अपेक्षा कम वजन (Wasted) का होना था, 27 प्रतिशत द्वारा प्रदूषित हवा तथा 22 प्रतिशत का ठोस ईंधन के कारण प्रदूषित वायु में साँस लेना था।
  • डायरिया तथा निमोनिया की रोकथाम के लिये बनाई गई वैक्सीन अभी भी इन 23 देशों में पर्याप्त मात्रा में सुलभ नहीं है तथा इसके उपचार के लिये आवश्यक एंटीबायोटिक तथा ओआरएस का प्रयोग भी इन देशों में बहुत कम है।

स्रोत : द हिंदू


शासन व्यवस्था

राष्ट्रीय जल नीति समिति

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय जल नीति

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय जल नीति से संबंधित विभिन्न मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने नई राष्ट्रीय जल नीति का मसौदा तैयार करने के लिये एक समिति का गठन किया है।

मुख्य बिंदु:

  • केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय जल नीति का मसौदा तैयार करने के लिये मिहिर शाह की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया है।
  • मिहिर शाह योजना आयोग के पूर्व सदस्य तथा जल संरक्षण क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं।
  • इस समिति में 10 मुख्य सदस्य होंगे तथा यह समिति अनुमानतः 6 महीनों में अपनी रिपोर्ट तैयार करेगी।
  • नई राष्ट्रीय जल नीति के माध्यम से जल शासन संरचना तथा उसके नियामक ढाँचे में महत्त्वपूर्ण बदलाव होंगे।
  • विशेष रूप से घरेलू और औद्योगिक क्षेत्रों में पानी की उपयोग क्षमता बढ़ाने के लिये ‘राष्ट्रीय जल उपयोग दक्षता ब्यूरो’ का गठन प्रस्तावित है।

राष्ट्रीय जल नीति

(National Water Policy):

  • स्वतंत्रता के बाद देश में तीन राष्ट्रीय जल नीतियों का निर्माण हुआ है।
  • पहली, दूसरी तथा तीसरी राष्ट्रीय जल नीति का निर्माण क्रमशः वर्ष 1987, 2002 और 2012 में हुआ था।
  • राष्ट्रीय जल नीति में जल को एक प्राकृतिक संसाधन मानते हुए जीवन, आजीविका, खाद्य सुरक्षा और निरंतर विकास का आधार माना गया है।

राष्ट्रीय जल नीति-2012 के प्रमुख बिंदु:

  • वर्ष 2012 की राष्ट्रीय जल नीति के प्रमुख नीतिगत नवाचारों में से एक एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन दृष्टिकोण की अवधारणा थी, जिसके अंतर्गत जल संसाधनों के नियोजन, विकास और प्रबंधन की इकाई के रूप में नदी बेसिन/उप-बेसिन को लिया गया था।
  • वर्ष 2012 की राष्ट्रीय जल नीति में नदी के एक भाग को पारिस्थितिकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये संरक्षित किये जाने का प्रावधान है तथा एक और प्रावधान के अनुसार गंगा नदी में वर्ष भर जल-स्तर को बनाए रखने के लिये एक स्थान पर पानी जमा करने से बचना चाहिये, जिससे नागरिकों को स्वच्छता और स्वास्थ्य की देखभाल के लिये पीने योग्य पानी की आपूर्ति हो सके।
  • वर्ष 2012 की राष्ट्रीय जल नीति में जल के अंतर्बेसिन स्थानांतरण का प्रयोग केवल उत्पादन बढ़ाने के लिये ही नहीं बल्कि मानवीय ज़रूरतों को पूरा करने तथा सामाजिक न्याय की प्राप्ति के लिये भी आवश्यक है।

स्रोत-द हिंदू


शासन व्यवस्था

कैंसर देखभाल सुविधाएँ

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय कैंसर ग्रिड

मेन्स के लिये:

संसदीय स्थायी समिति द्वारा जारी कैंसर देखभाल सुविधाओं से संबंधित तथ्य

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण संबंधी संसद की स्थायी समिति ने भारत में कैंसर देखभाल सुविधाओं से संबंधित एक रिपोर्ट जारी की है।

मुख्य बिंदु:

  • इस समिति द्वारा भारत में बढती कैंसर की समस्या से निपटने के लिये टाटा मेमोरियल सेंटर के माध्यम से परमाणु उर्जा विभाग की विस्तृत भूमिका की जाँच की गई है।

रिपोर्ट से संबंधित अन्य तथ्य:

  • इस समिति के अनुसार, भारत में कैंसर देखभाल संबंधी बुनियादी ढाँचे की कमी है और इस कारण अधिकांश रोगियों को उपचार के लिये हज़ारों किलोमीटर दूर जाने के लिये मजबूर होना पड़ता है।
  • भारत में कैंसर उपचार से संबंधित व्यवस्था की विफलता के कारण उच्च मानव विकास सूचकांक वाले देशों की अपेक्षा देश में कैंसर के कारण होने वाली मौतों की संख्या 20% अधिक है।
  • भारत में प्रतिवर्ष कैंसर के लगभग 16 लाख नये मामले सामने आते हैं तथा इसके कारण प्रतिवर्ष लगभग 8 लाख मौतें होती हैं, जिनमें महिलाओं में ब्रैस्ट कैंसर के 1,40,000 मामले, सर्वाइकल कैंसर के 1,00,000 मामले तथा मुख से संबंधित कैंसर के 45,000 मामले सामने आए हैं। वहीं पुरुषों में प्रथम तीन प्रकार के कैंसर के मामलों में मुख संबंधी 1,38,000 मामले, ग्रसनी संबंधी 90,000 मामले और पेट की आँत संबंधी लगभग 2,00,000 कैंसर के मामले सामने आए हैं।
  • ‘द इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर’ (The International Agency for Research on Cancer) के अनुमान के अनुसार, भारत में वर्ष 2018 के कैंसर के 13 लाख मामलों की तुलना में वर्ष 2035 तक यह संख्या बढ़कर लगभग 17 लाख हो जाएगी तथा कैंसर के कारण होने वाली मौतों की संख्या वर्ष 2018 के 8.8 लाख से बढ़कर वर्ष 2035 तक लगभग 13 लाख हो जाएगी।
  • इस समिति के अनुसार, भारत के सभी उत्तर-पूर्वी राज्यों में कैंसर के सबसे अधिक मामले सामने आए हैं, इन राज्यों में कहीं-कहीं कैंसर मामलों का औसत राष्ट्रीय औसत से भी अधिक है।
  • भारत का राष्ट्रीय कैंसर ग्रिड, कैंसर के उपचार के लिये एक प्रमुख प्रणाली है, इस प्रणाली में 183 कैंसर उपचार केंद्रों, अनुसंधान संस्थानों, रोगी परामर्श समूहों तथा चैरिटेबल संस्थाओं के माध्यम से 7 लाख से अधिक कैंसर पीड़ितों का उपचार किया जाता है।

‘हब एंड स्पोक’

(Hub and Spoke):

  • प्रत्येक प्रकार के कैंसर पीड़ित के लिये उपचार की व्यवस्था सुनिश्चित करने हेतु संसद की स्थायी समिति ने ‘हब एंड स्पोक मॉडल’ का विचार दिया।
  • यह मॉडल पंजाब में पहले से ही क्रियान्वित है, इसके अंतर्गत ऐसे केंद्रों का नेटवर्क तैयार किया जाता है, जो कैंसर के जटिल रूपों का इलाज करने में सक्षम हैं। ऐसे केंद्रों को ‘हब’ कहा जाता है तथा इन्हीं केंद्रों से कुछ ऐसे केंद्रों को जोड़ दिया जाता है जो कैंसर के कम जटिल रूपों का उपचार करने में सक्षम होते हैं, ऐसे केंद्रों को ‘स्पोक’ कहा जाता है। इससे पीड़ितों को उपचार केंद्र तक पहुँचने में कम समय लगता है तथा उपचार सुविधाओं तक आसान पहुँच सुनिश्चित होती है।
  • इस मॉडल के अंतर्गत एक हब लगभग 4 करोड़ कैंसर पीड़ितों को तथा एक स्पोक लगभग 50 लाख से 1 करोड़ कैंसर पीड़ितों को वार्षिक रूप से कवर करेगा।
  • भारत में कैंसर के उपचार के बीच के अंतर को समाप्त करने के लिये लगभग 30 हब और 130 स्पोक बनाने की आवश्यकता होगी।
  • भारत के दो-तिहाई कैंसर पीड़ितों का उपचार निजी अस्पतालों में किया जाता है, वहीं गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले पीड़ितों को कैंसर के उपचार में अत्यधिक व्यय का सामना करना पड़ता है।

स्रोत- द हिंदू


शासन व्यवस्था

केरल की फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क परियोजना

प्रीलिम्स के लिये:

परियोजना की मुख्य विशेषताएँ

मेन्स के लिये:

परियोजना का महत्त्व और आवश्यकता, इंटरनेट पहुँच की वर्तमान चुनौतियाँ तथा उनसे निपटने के उपाय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केरल राज्य सरकार द्वारा 1,548 करोड़ रुपए की फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क परियोजना (Fibre Optic Network Project- KFONP) को मंज़ूरी प्रदान की गई है।

Fiber Optic

परियोजना के बारे में:

  • KFONP को दिसंबर 2020 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।
  • इस परियोजना के अंतर्गत राज्य में लगभग 2 मिलियन गरीब (Below Poverty Line- BPL) परिवारों को मुफ्त हाई-स्पीड इंटरनेट कनेक्शन की सुविधा प्रदान की जाएगी।
  • यह परियोजना केरल राज्य बिजली बोर्ड (Kerala State Electricity Board) और केरल राज्य सूचना प्रौद्योगिकी इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (Kerala State Information Technology Infrastructure Limited- KSITIL) की एक सहयोगात्मक पहल है।

परियोजना के लाभ:

  • इस परियोजना के क्रियान्वयन से देश के सूचना एवं प्रौद्योगिकी उद्योग को मदद मिलने के साथ-साथ कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence), ब्लाॅकचेन (Blockchain) तथा स्टार्टअप्स जैसे क्षेत्रों को विकास के नए अवसर प्राप्त होंगे।
  • इंटरनेट सेवा प्रदाता और केबल टेलीविजन ऑपरेटर भी अपनी सेवाएँ प्रदान करने के लिये KFONP में शामिल हो सकते हैं।
  • इसके अलावा लगभग 30,000 से अधिक सरकारी कार्यालयों और स्कूलों को इस परियोजना के तहत हाई-स्पीड नेटवर्क के माध्यम से जोड़ा जाएगा।
  • KFON से परिवहन क्षेत्र के बेहतर प्रबंधन में भी मदद मिलेगी।

अन्य तथ्य:

  • इस परियोजना की मान्यता है कि इंटरनेट का उपयोग एक बुनियादी मानवीय अधिकार है जो कि एक सराहनीय कदम है।
  • किसी अन्य भारतीय राज्य ने अब तक इस प्रकार की परियोजना नहीं प्रारंभ की है।
  • इस परियोजना के पूरे होने पर, केरल राज्य जो पहले से ही मानव विकास संकेतकों में शीर्ष पर है, डिजिटल विकास के क्षेत्र में भी विकास करेगा।
  • इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (Internet and Mobile Association of India) और नील्सन (Nielsen) के एक हालिया अध्ययन के अनुसार, भारत में लगभग 451 मिलियन सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्त्ता हैं।
  • हालाँकि इन आँकड़ो के बावजूद इंटरनेट उपयोग की पहुँच में कई अंतर विद्यमान हैं, जैसे-
    • ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में इंटरनेट पहुँच अधिक है।
    • पुरुषों की तुलना में इंटरनेट तक महिलाओं की पहुँच कम है।
    • अध्ययन के अनुसार, सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला राज्य दिल्ली (69% लोगों की इंटरनेट तक पहुँच) तथा इसके बाद केरल (54% लोगों की इंटरनेट तक पहुँच) है।

आगे की राह

  • इसमें कोई संदेह नहीं है कि सरकार को इस अंतर को कम करने में एक हस्तक्षेपकर्त्ता की भूमिका निभाने की आवश्यकता है, इस प्रकार के प्रयासों में केरल एक उदाहरण स्थापित करता है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

वैकल्पिक निवेश कोष

प्रीलिम्स के लिये:

AIF, SEBI, NPA

मेन्स के लिये:

आवासीय परियोजनाओं और अवसंरचना से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में वित्त मंत्रालय (Finance Ministry) द्वारा 25000 करोड़ रुपए की धनराशि से वैकल्पिक निवेश कोष (Alternative Investment Fund- AIF) स्थापित करने की मंज़ूरी प्रदान की है।

प्रमुख बिंदु:

  • यह कोष देश भर में अटकी हुई सस्ती एवं मध्यम आय वर्ग वाली आवासीय परियोजनाओं को फिर से शुरु करने हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करेगा।
  • इस कोष की 25000 करोड़ रुपए की शुरूआती धनराशि में से 10,000 करोड़ रुपए सरकार तथा शेष धनराशि स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया (State Bank of India- SBI) एवं जीवन बीमा निगम (Life Insurance Corporation- LIC) द्वारा उपलब्ध करवाई जाएगी।
  • इस कोष की सीमा को साॅवरेन/निजी निवेश के माध्यम से 25000 करोड़ रुपए से अधिक बढ़ाया जा सकता है।
  • इस कोष को भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India- SEBI) के तहत पंजीकृत AIF की श्रेणी-2 के तहत वर्गीकृत किया जायेगा।
  • यह SBICAP वेंचर्स लिमिटेड (SBICAP Ventures Limited-SVL) द्वारा प्रबंधित किया जाएगा जो SBI कैपिटल मार्केट्स लिमिटेड (SBI Capital Markets Limited) की पूर्ण स्वामित्व वाली एक सहायक कंपनी है।

Realty test

लाभान्वित होने वाली परियोजनाएँ:

  • निम्नलिखित मानदंड वाली आवासीय परियोजनाएँ को लाभ होगा-
    • परियोजना की नेट वर्थ पॉजिटिव (परिसंपत्ति का मूल्य देयता से अधिक) होनी चाहिये।
    • परियोजना को रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (Real Estate Regulatory Authority- RERA) में पंजीकृत होना चाहिये।
    • परियोजना को दिवालियेपन के योग्य (Liquidation-Worthy) न माना गया हो।
  • वित्त मंत्रालय ने अपनी पूर्व की घोषणा में बदलाव करते हुये गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (Non Performimg Assets- NPA) के रूप में वर्गीकृत एवं नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (National Comapany Law Tribunal) के तहत समाधान (Resolution) हेतु प्रस्तावित परियोजनाएँ भी इसके तहत वित्तीयन हेतु पात्र होंगी।

वित्तीयन की प्रक्रिया:

  • इस कोष से धनराशि को एस्क्रो अकाउंट (Escrow Account) के द्वारा उपलब्ध करवाया जायेगा। इस धनराशि का उपयोग चिह्नित परियोजना को पूर्ण करने हेतु किया जायेगा।

एस्क्रो अकाउंट (Escrow Accounts)

  • एस्क्रो अकाउंट एक वित्तीय साधन है, जिसके तहत किसी संपत्ति या धन को दो अन्य पक्षों के मध्य लेन-देन की प्रक्रिया पूर्ण होने तक इन दोनों पक्षों की ओर से तीसरे पक्ष के पास रखा जाता है।
  • परियोजनाओं के पूर्ण होने पर इनसे प्राप्त धन का उपयोग कोष से ली गई धनराशि को चुकाने के लिये किया जाएगा।

कोष की स्थापना से लाभ:

  • यह कोष 1600 अटकी हुई आवासीय परियोजनाओं को फिर से शुरु करने में सहायक होगा।
  • इस कोष से आवासीय खरीदारों, रियल स्टेट के व्यवसायियों एवं इन परियोजनाओं को ऋण देने वाले बैंक लाभान्वित होंगे।
  • अटकी हुई परियोजनाओं के पुन: शुरु होने से स्टील, सीमेंट एवं अन्य भवन निर्माण सामग्रियों की मांग में वृद्धि होगी जिससे रोज़गार सृजन होगा।
  • इस कोष से अपने वाणिज्यिक निवेशकों को उनके फँसे हुए निवेश की पुनर्प्राप्ति में सहायता मिलेगी जिससे अर्थव्यवस्था में पुनर्निवेश में बढ़ोतरी होगी।

वैकल्पिक निवेश कोष

(Alternative Investment Fund-AIF)

  • यह कोष सेबी (SEBI) द्वारा विनियमित किया जाता है।
  • भारत में स्थापित ये कोष देशी अथवा विदेशी निवेशकों से धन प्राप्त कर इसके द्वारा परिभाषित निवेश नीति के अनुसार निवेश करते हैं।

AIF की 3 श्रेणियाँ होती है:

  • श्रेणी-1 : ये AIF, स्टार्ट-अप या शुरुआती चरण के उद्यमों में निवेश करते हैं जैसे- वेंचर कैपिटल फंड (Venture Capital Fund), इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड (Infrastructure Fund)।
  • श्रेणी-2 : ये AIF, श्रेणी I और III में नहीं आते हैं। ये कोष दिन-प्रतिदिन की अपनी परिचालन आवश्यकताओं को पूरा करने के अलावा लाभ या ऋण लेने का कार्य नहीं करते हैं। इन कोष को सेबी (वैकल्पिक निवेश कोष) विनियम [SEBI (Alternative Investment Funds) Regulations], 2012 के तहत अनुमति दी जाती है जैसे- रियल एस्टेट फंड (Real Estate Fund), निजी इक्विटी फंड (Private Equity Fund)।
  • श्रेणी-3 : ये AIF, विविध एवं जटिल व्यापारिक रणनीतियों का प्रयोग करते हैं तथा सूचीबद्ध या गैर-सूचीबद्ध डेरिवेटिव में निवेश कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं। जैसे- सार्वजनिक इक्विटी कोष में निजी निवेश (Private Investment In Public Equity Fund), हेज कोष (Hedge Fund)।

वैकल्पिक निवेश (Alternative Investment)

  • वैकल्पिक निवेश वह वित्तीय परिसंपत्ति होती है जो पारंपरिक शेयर/आय//नकदी श्रेणियों के तहत नहीं आती है। इसमें निजी उद्यम पूंजी, हेज कोष, कलात्मक और प्राचीन वस्तुओं में निवेश आदि शामिल है।

स्रोत: द हिंदू 


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

मेघ बीजन तकनीक

प्रीलिम्स के लिये:

मेघ बीजन तकनीक

मेन्स के लिये:

मेघ बीजन तकनीक अनुप्रयोग और महत्त्व

चर्चा में क्यों?

बीते कई दिनों से दिल्ली-NCR में छाए स्मॉग को हटाने हेतु मेघ बीजन तकनीक (Cloud Seeding) के प्रयोग पर चर्चा की जा रही है।

मेघ बीजन क्या है?

  • मेघ बीजन, कृत्रिम वर्षा हेतु मौसम की दशाओं में परिवर्तन करने की एक तकनीक है।
  • यह तकनीक केवल तभी कार्य करती है जब वायुमंडल में पहले से पर्याप्त बादल एवं नमी मौजूद हो। ज्ञातव्य है कि वातावरण में उपस्थित जलवाष्प के संघनित होने के कारण वर्षा होती है।
  • मेघ बीजन तकनीक में बादलों में कृत्रिम संघनन के केंद्रकों की संख्या को बढ़ाकर वर्षा बूँदों के निर्माण को अभिप्रेरित किया जाता है।
  • इन मेघ बीजों के लिये सिल्वर आयोडाइड (AgI), पोटेशियम आयोडाइड (Potassium Iodide -KI), ठोस कार्बन डाइऑक्साइड और तरल प्रोपेन इत्यादि का छिड़काव वायुयान के माध्यम से किया जाता हैं।
  • वातावरण में उपस्थित निलंबित धूल कण,स्मॉग एवं अन्य प्रदूषणकारी पदार्थ वर्षा की बूँदों के साथ धरातल पर निक्षेपित हो जाते है एवं वातावरण में प्रदूषण कम हो जाता है।

मेघ बीजन के अनुप्रयोग:

  • सूखे की स्थिति में कृत्रिम वर्षा करवाने में।
  • ओलावृष्टि की तीव्रता को कम करने में।
  • कोहरे को समाप्त करने में।

मेघ बीजन का प्रयोग:

  • मेघ बीजन का प्रयोग इससे पूर्व महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश व कर्नाटक में सूखे की स्थिति से निपटने हेतु किया जा चुका है। कर्नाटक राज्य में परियोजना का संचालन हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) और IIT कानपुर द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था।
  • इसी प्रकार अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, स्पेन तथा फ्राँस में भी मेघ बीजन का प्रयोग कृत्रिम वर्षा के लिये किया जा चुका है।
  • रूस व अन्य ठंडे देशों में मेघ बीजन का प्रयोग वायुपत्तन पर हवाई ज़हाजों के सुचारू संचालन के लिये कोहरे व धुंध को हटाने में किया जाता है।

मेघ बीजन की सफलता दर:

  • भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Tropical Meteorology- IITM) द्वारा पिछले कई वर्षों से मेघ बीजन का परीक्षण किया जा रहा है।
  • ये परीक्षण नागपुर, सोलापुर, हैदराबाद, अहमदाबाद, जोधपुर और हाल ही में वाराणसी के आसपास के क्षेत्रों में किये गए हैं।
  • कृत्रिम वर्षा को प्रेरित करने में इन परीक्षणों की सफलता दर 60-70% होती है तथा यह स्थानीय वायुमंडलीय स्थितियों, वायु में नमी की मात्रा और मेघों की विशेषताओं पर बभी निर्भर करती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

माइटोकॉन्ड्रियल DNA

प्रीलिम्स के लिये:

माइटोकॉन्ड्रियल DNA

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नेचर नामक पत्रिका में प्रकाशित एक शोधपत्र में इस बात का दावा किया गया है कि आधुनिक मानव की उत्त्पति लगभग 200,000 वर्ष पहले उत्तरी बोत्सवाना के आस-पास के क्षेत्र में हुई थी।

अध्ययन के बारे में

  • वैज्ञानिकों ने दक्षिणी अफ्रीका के खोएसान लोगों (KhoeSan peoples) के आनुवंशिक डेटा का अध्ययन किया, जिनके बारे में यह माना जाता है कि उनके पूर्वज हज़ारों वर्षों तक जीवित रहे।
  • शोधकर्त्ताओं ने मानव परिवार (Family) की शृंखलाओं के निर्माण के लिये अपने नए डेटा का उपयोग विश्व भर के लोगों के बारे में मौजूदा जानकारी के साथ मिलाकर प्रयोग किया।

माइटोकॉन्ड्रियल DNA

  • माइटोकॉन्ड्रियल DNA, माइटोकॉन्ड्रिया के अंदर पाया जाने वाला छोटा गोलाकार गुणसूत्र (Chromosome) है।
  • कोशिकाओं में पाए जाने वाले माइटोकॉन्ड्रिया को कोशिका का ऊर्जा घर या पावर हाऊस कहा जाता है।
  • गौरतलब है कि माइटोकॉन्ड्रियल DNA माँ से संतान में स्थानांतरित होता है।
  • यह अध्ययन केवल माइटोकॉन्ड्रियल DNA पर केंद्रित था। इस तात्पर्य यह है कि इसमें पिता के DNA से संबंधित अध्ययन को शामिल नहीं किया गया था ।
  • नया अध्ययन मानव जीनोम की उत्पत्ति के बारे में जानकारी नहीं देता है बल्कि माइटोकॉन्ड्रियल DNA की उत्पत्ति वाले स्थान और समय के बारे जानकारी प्रदान करता है।
  • माइटोकॉन्ड्रियल DNA का अध्ययन क्यों किया गया था?
  • चूँकि माइटोकॉन्ड्रियल DNA केवल माताओं से प्राप्त होता है इसलिये इसकी वंशावली का अध्ययन अन्य जीनों की तुलना में बहुत सरल होता है।
  • इसका तात्पर्य यह है कि हमारी प्रत्येक आनुवंशिक सामग्री का एक अलग मूल (Origin) हो सकता है और साथ ही हमारे द्वारा इनकी प्राप्ति का तरीका भिन्न हो सकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


विविध

RAPID FIRE करेंट अफेयर्स (13 नवंबर)

  • दुनिया का सबसे ऊँचा पुल: कश्मीर को देश के अन्य हिस्सों से जोड़ने के लिये रेल मंत्रालय द्वारा यहाँ दुनिया का सबसे बड़ा पुल तैयार किया जा रहा है। यह पुल कश्मीर के पर्यटन को बढ़ावा देगा और अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाने में भी मददगार साबित होगा। अब तक इस पुल का 82 प्रतिशत कार्य पूरा हो चुका है और रेल मंत्रालय के अनुसार इस पुल का निर्माण कार्य दिसंबर 2020 तक पूरा कर लिया जाएगा। ज्ञातव्य है कि इस पुल के तैयार होने के बाद यह दुनिया का सबसे ऊँचा पुल होगा। कश्मीर में चिनाब नदी पर बन रहे इस पुल को 359 मीटर की ऊँचाई पर तैयार किया जा रहा है।
  • महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन: महाराष्ट्र में करीब तीन हफ्ते की राजनीति के बाद मंगलवार को राष्ट्रपति शासन लागू हो गया और विधानसभा को निलंबित रखा गया है। राष्ट्रपति शासन मंगलवार शाम में लागू हुआ जब राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने केंद्र को एक रिपोर्ट भेजकर कहा कि उनके तमाम प्रयासों के बावजूद वर्तमान स्थिति में एक स्थिर सरकार का गठन असंभव है। ये पहली बार नहीं है जब किसी राज्य में ऐसा हुआ है। इससे पहले 2005 में बिहार में भी कुछ ऐसा ही हुआ था। उस समय कांग्रेस द्वारा बिहार में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था। तब केंद्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी।
  • ब्रिक्स सम्मेलन के लिये रवाना प्रधानमंत्री: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 11वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (BRICS Summit) में हिस्सा लेने के लिये मंगलवार को ब्राज़ील रवाना हो गए। उल्लेखनीय है कि ब्रिक्स शिखर सम्मेलन 13-14 नवंबर को ब्राज़ील में आयोजित हो रहा है जिसकी थीम ‘नवोन्मेषी भविष्य के लिए आर्थिक वृद्धि’ रखी गई है। प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा जारी बयान के अनुसार, प्रधानमंत्री छठी बार ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में शिरकत कर रहे हैं। पहली बार उन्होंने वर्ष 2014 में ब्राजील के फोर्टालेजा में शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया था।
  • कोहली और बुमराह शीर्ष स्थान पर बरकरार: ICC द्वारा जारी रैंकिंग में भारतीय कप्तान विराट कोहली और तेज गेंदबाज़ जसप्रीत बुमराह ने अपना-अपना स्थान बरकरार रखा है। विराट कोहली नई वनडे रैंकिंग में 895 अंकों के साथ पहले स्थान पर बने हुए हैं। वहीं भारतीय टीम के तेज गेंदबाज़ जसप्रीत बुमराह गेंदबाज़ों की रैंकिंग में 797 अंकों के साथ पहले स्थान पर बने हुए हैं। बल्लेबाज़ों की रैंकिंग सूची में दूसरे स्थान पर रोहित शर्मा मौजूद हैं वहीं तीसरे स्थान पर पाकिस्तान के बल्लेबाज बाबर आजम हैं, इसके अलावा फाफ डूप्लेसिस चौथे स्थान पर तथा रॉस टेलर पाँचवें स्थान पर बने हुए हैं। गेंदबाज़ों की सूची में दूसरे स्थान पर कीवी गेंदबाज ट्रेंट बोल्ट 740 अंकों के साथ मौजूद हैं।
  • RTI के दायरे में मुख्य न्यायाधीश: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने फैसले में कहा कि मुख्य न्यायाधीश का दफ्तर (CJI office) एक पब्लिक अथॉरिटी है जो कि पारदर्शिता कानून और सूचना अधिकार कानून (RTI) के दायरे में आता है। गौरतलब है कि CJI जस्टिस रंजन गोगोई की अध्‍यक्षता वाली पाँच जजों की संविधान पीठ ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्‍ली हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि सभी न्‍यायमूर्ति भी RTI के दायरे में आएंगे। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को सूचना अधिकार कानून की मज़बूती के लिहाज से बड़ा कदम माना जा रहा है।

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