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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

मेघ बीजन तकनीक

  • 13 Nov 2019
  • 4 min read

प्रीलिम्स के लिये:

मेघ बीजन तकनीक

मेन्स के लिये:

मेघ बीजन तकनीक अनुप्रयोग और महत्त्व

चर्चा में क्यों?

बीते कई दिनों से दिल्ली-NCR में छाए स्मॉग को हटाने हेतु मेघ बीजन तकनीक (Cloud Seeding) के प्रयोग पर चर्चा की जा रही है।

मेघ बीजन क्या है?

  • मेघ बीजन, कृत्रिम वर्षा हेतु मौसम की दशाओं में परिवर्तन करने की एक तकनीक है।
  • यह तकनीक केवल तभी कार्य करती है जब वायुमंडल में पहले से पर्याप्त बादल एवं नमी मौजूद हो। ज्ञातव्य है कि वातावरण में उपस्थित जलवाष्प के संघनित होने के कारण वर्षा होती है।
  • मेघ बीजन तकनीक में बादलों में कृत्रिम संघनन के केंद्रकों की संख्या को बढ़ाकर वर्षा बूँदों के निर्माण को अभिप्रेरित किया जाता है।
  • इन मेघ बीजों के लिये सिल्वर आयोडाइड (AgI), पोटेशियम आयोडाइड (Potassium Iodide -KI), ठोस कार्बन डाइऑक्साइड और तरल प्रोपेन इत्यादि का छिड़काव वायुयान के माध्यम से किया जाता हैं।
  • वातावरण में उपस्थित निलंबित धूल कण,स्मॉग एवं अन्य प्रदूषणकारी पदार्थ वर्षा की बूँदों के साथ धरातल पर निक्षेपित हो जाते है एवं वातावरण में प्रदूषण कम हो जाता है।

मेघ बीजन के अनुप्रयोग:

  • सूखे की स्थिति में कृत्रिम वर्षा करवाने में।
  • ओलावृष्टि की तीव्रता को कम करने में।
  • कोहरे को समाप्त करने में।

मेघ बीजन का प्रयोग:

  • मेघ बीजन का प्रयोग इससे पूर्व महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश व कर्नाटक में सूखे की स्थिति से निपटने हेतु किया जा चुका है। कर्नाटक राज्य में परियोजना का संचालन हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) और IIT कानपुर द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था।
  • इसी प्रकार अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, स्पेन तथा फ्राँस में भी मेघ बीजन का प्रयोग कृत्रिम वर्षा के लिये किया जा चुका है।
  • रूस व अन्य ठंडे देशों में मेघ बीजन का प्रयोग वायुपत्तन पर हवाई ज़हाजों के सुचारू संचालन के लिये कोहरे व धुंध को हटाने में किया जाता है।

मेघ बीजन की सफलता दर:

  • भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Tropical Meteorology- IITM) द्वारा पिछले कई वर्षों से मेघ बीजन का परीक्षण किया जा रहा है।
  • ये परीक्षण नागपुर, सोलापुर, हैदराबाद, अहमदाबाद, जोधपुर और हाल ही में वाराणसी के आसपास के क्षेत्रों में किये गए हैं।
  • कृत्रिम वर्षा को प्रेरित करने में इन परीक्षणों की सफलता दर 60-70% होती है तथा यह स्थानीय वायुमंडलीय स्थितियों, वायु में नमी की मात्रा और मेघों की विशेषताओं पर बभी निर्भर करती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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