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डेली न्यूज़

  • 11 Jul, 2020
  • 49 min read
सामाजिक न्याय

गुजरात का राबरी, भारवाड़ एवं चारण समुदाय

प्रीलिम्स के लिये

राबरी, भारवाड़, एवं चारण जनजाति, भारतीय संविधान की 5वीं एवं 6वीं अनुसूची 

मेन्स के लिये

भारत के गुजरात राज्य में जनजातियों को मिलने वाला सामाजिक न्याय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गुजरात सरकार ने कहा कि राबरी (Rabari), भारवाड़ (Bharvad) एवं चारण (Charan) समुदायों के सदस्यों की पहचान करने के लिये एक पाँच सदस्यीय आयोग का गठन किया जाएगा जो गुजरात के गिर, बरदा एवं एलेच (Alech) इलाकों में रहते हैं। 

प्रमुख बिंदु:

  • गौरतलब है कि ये तीनों समुदाय भारतीय संविधान के दायरे में अनुसूचित जनजाति (Schedule Tribe) के तहत लाभ पाने के पात्र हैं।
  • पाँच सदस्यीय आयोग:
    • इस पाँच सदस्यीय आयोग में उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में दो ज़िला न्यायाधीश, एक सेवानिवृत्त वन अधिकारी और एक सेवानिवृत्त्व राजस्व अधिकारी शामिल होंगे।
  • अनुसूचित जनजाति (Schedule Tribe) का दर्जा:
    • केंद्र सरकार ने 29 अक्तूबर, 1956 की एक अधिसूचना के माध्यम से गुजरात के राबरी (Rabari), भारवाड़ (Bharvad) एवं चारण (Charan) समुदायों के लोगों को अनुसूचित जनजाति (Schedule Tribe) का दर्जा दिया जो गुजरात में गिर, बरदा और एलेच के इलाकों में नेस्सेस (Nesses) में रहते थे।

नेस्सेस (Nesses):

  • नेस्सेस (Nesses) मिट्टी से बने छोटे, अंडाकार आकार के झोपड़े होते हैं।

अन्य जनजाति समुदायों द्वारा विरोध:

  • हालाँकि कई आदिवासी समुदाय काफी समय से यह आरोप लगाते रहे हैं कि इन समुदायों से संबंधित कई लोग जो नेस्सेस में नहीं रहते हैं तथा ST प्रमाण पत्रधारक हैं और मुख्य रूप से सरकारी नौकरियों में अनुचित आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं।
  • इस मुद्दे को हल करने और तीन समुदायों के सदस्यों के बीच अनुसूचित जनजाति (Schedule Tribe) प्राप्त दर्ज़े के तहत वैध लाभार्थियों का निर्णय करने के लिये पाँच सदस्यीय आयोग का गठन किया गया है। 

राबरी (Rabari):

  • राबरी जिन्हें ‘रेवारी’ या ‘देसाई’ भी कहा जाता है, एक घुमंतू चरवाहा जनजाति है।
  • यह जनजाति पूरे उत्तर-पश्चिम भारत (मुख्य रूप से गुजरात, पंजाब और राजस्थान के राज्यों में) में फैली हुई हैं।
  • यह जनजाति अपने पशुओं के साथ मुख्य रूप से राजस्थान एवं गुजरात के क्षेत्रों में चारे की तलाश में घूमने के बाद वर्ष में एक बार अपने गाँव वापस आती है और दूध बेचकर अपना जीवन यापन करती है।
  • ये हिंदू धर्म में विश्वास करते हैं और ‘शिव’ और ‘शक्ति’ (देवी पार्वती) की पूजा करते हैं।

भारवाड़ (Bharvad):

  • ‘भारवाड़’ शब्द को 'बाड़ावाड़' (Badawad) का संशोधित रूप माना जाता है। गुजराती भाषा में 'बाड़ा' शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘भेड़’ तथा 'वाड़ा' का अर्थ ‘अहाता’ (भेड़ पालने की जगह) से है।
  • भारवाड़ समुदाय के लोग मूल रूप से गुजरात राज्य में निवास करते है और पशुपालन में संलग्न हैं।
  • पश्चिमी गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में वे दो अंतर्विवाही समूहों के रूप में मौजूद हैं जिन्हें ‘मोटा भाई’ और ‘नाना भाई’ के नाम से जाना जाता है। 
  • यह जनजाति हिंदू धर्म में विश्वास करती है।

चारण (Charan): 

  • चारण (Charan) गुजरात की कम आबादी वाली जनजाति है। इन्हें गढ़वी (Gadhvi) भी कहा जाता है।
  • वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार, गुजरात के बरदा, गिर एवं एलेच क्षेत्रों में चारण की आबादी को अनुसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित किया गया है।
  • ये गुजराती भाषा बोलते हैं और गुजराती लिपि का उपयोग करते हैं।
  • ये लोग शाकाहारी होते हैं और इनका मुख्य भोजन अरहर, मूंग एवं मोठ और कभी-कभार मौसमी सब्जियों के साथ ज्वार या बाज़रे की रोटी है।
  • ये हिंदू धर्म में विश्वास करते हैं।

अनुसूचित जनजाति से संबंधित भारतीय संविधान में प्रावधान:

  • स्वतंत्रता के उपरांत वर्ष 1950 में संविधान (अनुच्छेद 342) के अंगीकरण के बाद ब्रिटिश शासन के दौरान जनजातियों के रूप में चिह्नित व दर्ज समुदायों को अनुसूचित जनजाति के रूप में पुन: वर्गीकृत किया गया।
    • जिन क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियाँ संख्यात्मक रूप से प्रभावी हैं, उनके लिये संविधान में पाँचवीं और छठी अनुसूचियों के रूप में दो अलग-अलग प्रशासनिक व्यवस्थाओं का प्रावधान किया गया है।
  • संविधान के अंतर्गत ‘पाँचवीं अनुसूची के क्षेत्र’ (Fifth Schedule Areas) ऐसे क्षेत्र हैं, जिन्हें राष्ट्रपति आदेश द्वारा अनुसूचित क्षेत्र घोषित करे। 
    • पाँचवीं अनुसूची के प्रावधानों को ‘पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996’ के रूप में और विधिक व प्रशासनिक सुदृढ़ीकरण प्रदान किया गया।
  • छठी अनुसूची के क्षेत्र (Sixth Schedule areas) कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जो पूर्ववर्ती असम और अन्य जनजातीय बहुल क्षेत्रों में भारत सरकार अधिनियम, 1935 से पहले तक बाहर रखे गए थे तथा बाद में अलग राज्य बने। इन क्षेत्रों (छठी अनुसूची) को भारतीय संविधान के भाग XXI के तहत भी विशेष प्रावधान प्रदान किये गए हैं।
  • अनुच्छेद-17: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 समाज में किसी भी तरह की अस्पृश्यता का निषेध करता है। 
  • अनुच्छेद-46: भारतीय संविधान के ‘राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों’ के अंतर्गत अनुच्छेद 46 के तहत राज्य को यह आदेश दिया गया है कि वह अनुसूचित जाति/जनजाति तथा अन्य दुर्बल वर्गों की शिक्षा एवं उनके अर्थ संबंधी हितों की रक्षा करे।
  • अनुसूचित जनजातियों के हितों की अधिक प्रभावी तरीके से रक्षा हो सके इसके लिये वर्ष 2003 में 89वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम के द्वारा पृथक ‘राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग’ की स्थापना भी की गई।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

भारत में सर्पदंश से हुई मौत

प्रीलिम्स के लिये:

वेनम और एंटी-वेनम्स 

मेन्स के लिये:

सर्पदंश के उपचार हेतु WHO की पहल एवं भारत में सर्पदंश के कारण होने वाली मौतों की स्थिति 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कनाड़ा स्थित ‘टोरंटो विश्वविद्यालय’ (University of Toronto) के ‘सेंटर फॉर ग्लोबल हेल्थ रिसर्च’ (Centre for Global Health Research-CGHR) द्वारा यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom-UK) के सहयोग से भारत में पिछले 2 दशकों (20 वर्षों) में सर्पदंश/सांप के काटने से होने वाली मौतों का अध्ययन किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • इस अध्ययन के अनुसार, भारत में पिछले 20 वर्षों अर्थात वर्ष 2000 से वर्ष 2019 की अवधि में सर्पदंश से मरने वालों की संख्या 1.2 मिलियन (12 लाख) दर्ज की गई है।
  • ‘भारत में वर्ष 2000 से वर्ष 2019 तक सर्पदंश से होने वाली मौतों के बारे में एक राष्ट्रीय प्रतिनिधि मृत्यु दर अध्ययन’ (Trends in Snakebite deaths in India from 2000 to 2019 in a Nationally Representative Mortality Study) शीर्षक में बताया गया है कि भारत में अधिकांश मृत्यु ज़हरीले रसेल वाइपरस (Russell's Viper) क्रिटस (kraits) तथा कोबरा (Cobras) साँपों के काटने से होती हैं।

रसेल वाइपर:

  • रसेल वाइपर वाइपरिडे परिवार में विषैले सांप की एक प्रजाति है।
  • इस परिवार जिसमें विश्व के पुराने विषैले वाइपर शामिल हैं।
  • यह प्रजाति एशिया में पूरे भारतीय उपमहाद्वीप, दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिणी चीन और ताइवान में पाई जाती है।

क्रेट:

  • इसे भारतीय क्रेट या ब्लू क्रेट के रूप में भी जाना जाता है।
  • यह भारतीय में पाई जाने वाली विषैले सांप की एक प्रजाति है।

कोबरा:

इसे नागराज भी कहा जाता है। 

  • यह विश्व का सबसे लंबा विषैला सांप है।
  • सांप की यह प्रजाति दक्षिण पूर्व एशिया एवं भारत में पाई जाती जाती है। 
  • यह एशिया के सर्वाधिक खतरनाक सापों में से एक है।
  • भारत में सर्पदंश का क्षेत्रवार विवरण: 
  • अध्ययन में बताया गया है कि इस अवधि (वर्ष 2000-वर्ष 2019 ) के दौरान सर्पदंश से होने वाली वार्षिक मौतों का औसत 58 हज़ार रहा है। 
  • देश के आठ राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में सर्पदंश के कारण लगभग 70% मौतें देखी गई है, जिनमें शामिल राज्य हैं-
    • बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश (तेलंगाना सहित), राजस्थान तथा गुजरात राज्यों के ग्रामीण क्षेत्र।
  • अध्ययन के अनुसार, सर्पदंश के कारण आधे से अधिक मौतें जून से सितंबर माह में मानसून की अवधि के दौरान हुई हैं।
  • सर्पदंश से सर्वाधिक मौतें ग्रामीण क्षेत्रों में हुई हैं जो 97% हैं।
  • पुरुषों में सर्पदंश के कारण मृत्यु का प्रतिशत 59% है जो महिलाओं की तुलना में 41% अधिक है।
  • सर्पदंश के कारण मरने वालों की सर्वाधिक संख्या 15-29 वर्ष के बीच के लोगों की रही है जो 25% है।
  • सर्पदंश के कारण वार्षिक आधार पर सर्वाधिक मृत्यु वाले राज्य: 
    • उत्तर प्रदेश-8,700 हज़ार 
    • आंध्र प्रदेश-5,200 हज़ार 
    • बिहार-4,500 हज़ार 

Snack

भारत में सर्पदंश के उपचार में समस्या:

  • खराब प्रशिक्षित डॉक्टर तथा एंटी- वेनम की कमी का होना।
  • एंटी- वेनम के निर्माण के लिये वन विभाग की अनुमति की आवश्यकता जो कि कई चरणों की लंबी प्रक्रिया है।
  • एंटी-वेनम के निर्माण/परीक्षण के लिये घोड़ों की आवश्यकता होती है, जिसके लिये एक बड़ी जगह की आवश्यक होती है। निजी कंपनियों के लिये यह एक खर्चीली प्रक्रिया है।

सर्पदंश से सुरक्षा हेतु उपाय:

  • सर्पदंश के सर्वाधिक मामले ग्रामीण क्षेत्रों में आते हैं जिनमें कृषक समुदाय शामिल हैं। विशेषज्ञों का सुझाव है कि ऐसे क्षेत्रों को लक्षित करना एवं सुरक्षा के संदर्भ में सरल तरीकों से लोगों को शिक्षित करना जैसे- रबर के जूते, दस्ताने, मच्छरदानी और रिचार्जेबल मशालों (या मोबाइल फोन फ्लैशलाइट) का उपयोग कर सर्पदंश के जोखिम को कम किया जा सकता है।
  • लोगों को विषैले सर्पों की प्रजातियों के बारे में बताना तथा सांप के काटने के कारण मानव स्वास्थ पर पड़ने वाले हानिकारक एवं जानलेवा प्रभावों के बारे में लोगों को जानकारी देना।
  • Indiansnakes.org वेबसाइट पर सांपों के निवास स्थान का विवरण, भौगोलिक वितरण एवं स्पष्ट तस्वीरें उपलब्ध होती हैं जिसे एंड्रॉइड फोन के माध्यम से डाउनलोड करके ज़हरीले साँपों के बारे में जाना जा सकता है।

इस दिशा में विश्व स्वास्थ्य संघठन का प्रयास:

  • ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (World Health Organization- WHO) सर्पदंश को एक सर्वोच्च प्राथमिकता वाली उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारी (Neglected Tropical Disease- NTD) के रूप में मान्यता प्रदान करता है।
  • ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ द्वारा वर्ष 2030 तक सर्पदंश के कारण होने वाली मौतों की संख्या को आधा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। 
  • एंटीवेनम को सुलभ और सस्ती बनाने के लिये WHO की योजना गुणवत्ता एंटीवेनम्स का उत्पादन बढ़ाने की है।
  • एंटीवेनम के लिये स्थायी बाज़ार उपलब्ध कराने के लिये वर्ष 2030 तक एंटीवेनम निर्माण में 25% वृद्धि की आवश्यकता है।
  • WHO द्वारा वैश्विक एंटीवेनम के उत्पादन/स्टॉक के लिये एक पायलट प्रोजेक्ट की योजना बनाई।

वेनम (Venoms) और एंटी-वेनम्स (Anti-Venoms):

  • वेनम:
    • विष/वेनम एक प्रकार का स्राव है। 
    • इसमें एक जानवर द्वारा उत्पादित एक या एक से अधिक विषाक्त पदार्थ शामिल होते हैं।
    • इसका स्राव कशेरुकी और अकशेरुकी दोनों तरह के जानवरों में अपनी रक्षा के दौरान या फिर शिकार करते समय किया जाता है।
    • सांप का विष एक उच्च संशोधित लार है जिसमें ज़ूटॉक्सिन होता है जो शिकार को मारने एवं उसे पचाने में सहायक होता है।
  • एंटी-वेनम्स:
    • एंटीवेनम, विष या विष घटकों के खिलाफ शुद्ध एंटीबॉडी है। 
    • एंटीवेनम का उत्पादन जानवरों द्वारा बनाए गए एंटीबॉडी से किया जाता है। 
    • इसका उपयोग वेनम के असर को समाप्त करने के लिये किया जाता है।

निष्कर्ष: 

भारत में पर्याप्त मात्रा में एंटी-वेनम बनाने की पर्याप्त क्षमता मौजूद है। अतः ऐसे में भारत में विषैले सांप प्रजातियों के वितरण की बेहतर समझ विकसित कर और अधिक उपयुक्त एंटी-वेनम को विकसित किया जा सकता है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

Cycles4Change चैलेंज

प्रीलिम्स के लिये

Cycles4Change चैलेंज

मेन्स के लिये

सतत् परिवहन प्रणाली की आवश्यकता और उसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

भारतीय शहरों में साइकिल चालन संबंधी पहलों को जल्द लागू करने की दिशा में भारतीय शहरों का समर्थन करने के लिये आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय ने Cycles4Change चैलेंज के लिये पंजीकरण की शुरुआत की है।

प्रमुख बिंदु

  • शहरों के सतत् विकास के उद्देश्य से शुरू किये जा रहे इस चैलेंज में स्मार्ट सिटीज़ मिशन (Smart Cities Mission) के तहत सभी शहर, राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों की राजधानी और 5 लाख से अधिक आबादी वाले देश के सभी शहर हिस्सा ले सकेंगे।
  • गौरतलब है कि इस चैलेंज की शुरुआत आवास एवं शहरी मामलों के मंत्री द्वारा 25 जून, 2020 को की गई थी।

Cycles4Change चैलेंज

  • यह चैलेंज आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के तहत स्मार्ट सिटीज़ मिशन की एक पहल है, जिसका उद्देश्य भारतीय शहरों में साइकिल चालन संबंधी पहलों को जल्द लागू करने के लिये भारतीय शहरों को प्रेरित करना और उनका समर्थन करना है।
  • इस चैलेंज का उद्देश्य शहरों को अपने आम नागरिकों तथा विशेषज्ञों के साथ जुड़ने में मदद करना है, जिससे साइकिल चलाने की प्रथा को बढ़ावा देने हेतु एकीकृत दृष्टिकोण विकसित किया जा सके।
  • इस चैलेंज के तहत शहरों को नागरिक समाज संगठनों (CSOs), विशेषज्ञों और स्वयंसेवकों के साथ सहयोग कर अपनी योजनाओं को कार्यान्वित करने हेतु प्रोत्साहित किया जाएगा।
  • गौरतलब है कि इस पहल के तहत आम नागरिकों का सहयोग शहरों द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव के मूल्यांकन हेतु महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है।
  • इस चैलेंज का कार्यान्वयन मुख्यतः दो चरणों में किया जाएगा।
  • चैलेंज का पहला चरण अक्तूबर, 2020 तक कार्यान्वित होगा, जिसमें सभी शहर साइकिल चलाने की प्रथा को बढ़ावा देने और इस संबंध में आवश्यक रणनीति तैयार करने के लिये त्वरित हस्तक्षेप पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
  • इसके पश्चात् दूसरे चरण में कुल 11 शहरों का चयन किया जाएगा और उनकी संबंधित योजनाओं को आगे बढाने तथा उनमें आवश्यक सुधार करने के लिये 1 करोड़ रुपए की राशि और राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों से दिशा-निर्देश प्रदान किया जाएगा, चैलेंज का दूसरा चरण मई, 2021 तक कार्यान्वित किया जाएगा।

महत्त्व

  • चैलेंज को लॉन्च करते हुए आवास एवं शहरी मामलों के मंत्री ने कहा कि ‘भारत सरकार उच्च गुणवत्ता वाली परिवहन प्रणाली विकसित करने में शहरों की सहायता करने हेतु प्रतिबद्ध है।’
  • विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकार का यह चैलेंज आम नागरिकों, विशेषज्ञों, शहर के साइक्लिंग समूहों, साइकिलों का निर्माण और उनकी बिक्री करने वाले व्यापारियों आदि को एक इकाई में जोड़ने का एक बेहतरीन तरीका है।
  • इसके माध्यम से शहरों में सतत् परिवहन की अवधारणा को बढ़ावा दिया जा सकेगा।
  • यह पहल शहरों में सक्रिय गतिशीलता को प्रोत्साहित करने के साथ ही स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के दोहरे लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करेगी।

आवश्यकता

  • इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांसपोर्टेशन एंड डवलपमेंट पॉलिसी (Institute for Transportation and Development Policy-ITDP) द्वारा किये गए हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, COVID-19 जनित लॉकडाउन के पूरी तरह से समाप्त होने के पश्चात् विश्व भर के बड़े शहरों में साइकिल के प्रयोग में 50-60 प्रतिशत बढ़ोतरी हो सकती है।
  • इस अवसर का उठाने के उद्देश्य से विश्व भर के बड़े शहर अपने साइकिल नेटवर्क के विस्तार पर विचार कर रहे हैं, उदाहरण के लिये पेरिस ने अप्रैल माह में तकरीबन 650 किलोमीटर लंबे साइकिल मार्ग के निर्माण की घोषणा की थी। 
  • गौरतलब है कि भारतीय शहरों के लिये भी यह एक बड़ा अवसर है, वे साइकिल जैसे स्वच्छ और स्वस्थ परिवहन साधन का उपयोग करने के लिये आम लोगों को प्रोत्साहित करें और इस संबंध में एक अनुकूल वातावरण का निर्माण करें।

स्रोत: पी.आई.बी


सामाजिक न्याय

महिला अधिकारियों को ‘स्थायी कमीशन

प्रीलिम्स के लिये:

शॉर्ट सर्विस कमीशन

मेन्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सेना में शामिल ‘शॉर्ट सर्विस कमीशन’ (Short Service Commission-SSC) महिला अधिकारियों को ‘स्थायी कमीशन’ (Permanent commission) देने के मामले में सरकार को आदेश लागू करने के लिये एक महीने की समय-सीमा दी गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • केंद्र सरकार द्वारा COVID-19 महामारी के कारण भारतीय सेना में महिलाओं को ‘स्‍थायी कमीशन’ (Permanent commission) देने तथा कमांड पोस्‍ट में उनकी तैनाती के संबंध में प्रावधान तैयार करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय से 6 महीने के अतिरिक्‍त समय की मांग की गई है। 
  • इसी संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केंद्र सरकार को एक माह का और समय दिया गया है। 

स्थायी कमीशन:

  • अभी तक सेना में महिला अधिकारियों की भर्ती शार्ट सर्विस कमीशन के माध्यम से होती है।
  • शार्ट सर्विस कमीशन से भर्ती होने के बाद वो 14 साल तक सेना में नौकरी करती थीं। 
  • 14 वर्ष के बाद उन्हें रिटायर कर दिया जाता था। 
  • सेना में पेशन पाने के लिये 20 वर्ष तक नौकरी पूरी करने का नियम है। 
  • स्थायी कमिशन के तहत कोई अधिकारी रिटायरमेंट की उम्र तक सेना में कार्य कर सकता है और इसके बाद वह पेंशन का  हकदार भी होगा।
  • स्थायी कमीशन से महिला अधिकारी 20 वर्षों तक कार्य कर सकती है ।

पृष्ठभूमि:

  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने वर्ष 2010 में सरकार को आदेश दिया था कि महिलाओं को लड़ाकू इकाइयों से बाहर रखने के नीतिगत फैसले को बरकरार रखते हुए सभी शॉर्ट-सर्विस कमीशन महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन दिया जाए।
  • 17 फरवरी 2020 में सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में यह कहकर याचिका दायर कि गई थी कि महिलाएँ शारीरिक रूप से पुरुषों की तुलना में शारीरिक रूप से कमज़ोर होती है। 
  • 17 फरवरी, 2020 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्णय दिया गया कि उन सभी महिला अफसरों को तीन महीने के अंदर सेना में स्थायी कमीशन दिया जाए जो इस विकल्प को चुनना चाहती हैं। 
  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) की महिला अधिकारी सेना में स्थायी आयोग और कमांड पदों के लिये योग्य हैं, चाहे उनकी सर्विस की समयावधि कितनी भी हो।

निर्णय का सवैधानिक आधार:

  • न्यायालय के अनुसार, महिलाओं को केवल शाॅर्ट सर्विस कमीशन तक सीमित रखना अर्थात स्थायी कमीशन न देना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा, जो कि देश के सभी नागरिकों को समानता का अधिकार प्रदान करता है।

सीमाएँ:

  • सेना में महिलाओं को स्थाई कमीशन देने के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय कॉम्बैट विंग में लागू नहीं किया जाएगा।
  • सेना में कॉम्बैट विंग वो विंग होता है जो युद्ध के दौरान फ्रंटफुट पर होता है।

निर्णय का महत्त्व:

  • महिलाओं को सेना में स्थायी कमीशन प्रदान करना देश में विद्यमान लैंगिक असमानता को कम करने में एक महत्त्वपूर्ण  कदम साबित हो सकता है।
  • इससे महिलाओं को उनकी उचित स्थिति और अधिकार प्राप्त करने में मदद मिलेगी
  • जो सामाजिक पदानुक्रम में उनकी स्थिति को बढ़ाने में मददगार साबित होगा।
  • यह निर्णय सैन्य क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी/संख्या को बढ़ाने में मददगार साबित हो सकता है ।

स्रोत: द हिंदू


आंतरिक सुरक्षा

स्वाभिमान अंचल में पहली यात्री बस का संचालन

प्रीलिम्स के लिये

स्वाभिमान अंचल की भौगोलिक अवस्थिति

मेन्स के लिये

भारत के विभिन्न राज्यों में वामपंथी अतिवाद और माओवाद की समस्या

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ओडिशा के माओवादी गढ़ के रूप में प्रसिद्ध मलकानगिरी ज़िले में कट-ऑफ क्षेत्र के रूप में पहचाने जाने वाले स्वाभिमान अंचल (Swabhiman Anchal) में स्वतंत्रता के पश्चात् पहली बार यात्री बस का सफल संचालन किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • ओडिशा में चित्रकोंडा (Chitrakonda) के विधायक ने ओडिशा राज्य सड़क परिवहन निगम की एक बस को चित्रकोंडा से मलकानगिरी ज़िले के जोडाम्बो (Jodambo) के लिये रवाना किया, जहाँ हाल ही में एक नए पुलिस स्टेशन ने कार्य करना शुरू किया है।
  • गौरतलब है कि पहले स्वाभिमान अंचल में आवागमन के लिये कोई भी सड़क मार्ग नहीं था।

स्वाभिमान अंचल के बारे में

  • स्वाभिमान अंचल तीन ओर से पानी से तथा चौथी ओर से दुर्गम इलाकों से घिरा हुआ है, जिसके कारण यह क्षेत्र लंबे समय से माओवादियों और वामपंथी अतिवादियों का गढ़ रहा है।
  • वर्ष 2018 में गुरुप्रिया ब्रिज (Gurupriya Bridge) बनने के बाद, यह क्षेत्र एक सड़क से जुड़ गया, जिसका निर्माण कार्य अभी पूरा किया जाना शेष है।
    • गौरतलब है कि गुरुप्रिया ब्रिज के निर्माण से पूर्व इस क्षेत्र में नौकाएँ, परिवहन का एकमात्र साधन हुआ करती थीं। 
    • स्वाभिमान अंचल में कई लोग सुदूर क्षेत्र की यात्रा करने के लिये परिवहन के साधन के तौर पर घोड़ों का भी प्रयोग करते थे।
  • ओडिशा और आंध्रप्रदेश की सीमा के पास स्थित मलकानगिरी ज़िले का स्वाभिमान अंचल क्षेत्र में कुल 151 गांव शामिल हैं, पूर्व में इस क्षेत्र को वामपंथी अतिवादियों (Left Ultras) द्वारा एक मुक्त क्षेत्र माना जाता था।

स्वाभिमान अंचल- माओवाद का गढ़ 

  • स्वाभिमान अंचल में वामपंथी अतिवादियों का काफी ज़्यादा प्रभाव था और यहाँ तक कि राज्य की पुलिस में भी इस क्षेत्र को लेकर काफी भय की स्थिति रहती थी।
  • ओडिशा, आंध्रप्रदेश और छत्तीसगढ़ के अधिकांश माओवादी शरण लेने के उद्देश्य से स्वाभिमान अंचल की ओर ही आते थे और इस कारण इस को काफी खतरनाक माना जाता था।

विकास की ओर अग्रसर 

  • बीते कुछ वर्षों के दौरान सुरक्षा बलों के इस क्षेत्र पर वर्चस्व स्थापित करने के बाद से यहाँ की स्थिति काफी बेहतर हो गई है।
  • इस क्षेत्र में सुरक्षा नेटवर्क मज़बूत होने से विकास से संबंधित कई गतिविधियाँ शुरू हुई हैं। जिनमें मुख्य रूप से सड़कों के निर्माण के कारण ऑटो-रिक्शा एवं सार्वजनिक परिवहन के माध्यम से ओडिशा का यह क्षेत्र विकास की मुख्यधारा में शामिल हो गया है।
  • ज़िला प्रशासन के अनुसार, इस क्षेत्र के अंतिम गाँव तक पहुँचने के लिये अभी भी 35 किलोमीटर लंबी एक अन्य सड़क का निर्माण आवश्यक है।

स्रोत: द हिंदू


कृषि

लघु जोतधारक तथा कृषि विपणन

प्रीलिम्स के लिये:

कृषि जोत के प्रकार 

मेन्स के लिये:

लघु जोतधारक तथा कृषि विपणन 

चर्चा में क्यों?

COVID-19 महामारी के तहत लगाए गए लॉकडाउन ने अर्थव्यवस्था के अधिकांश क्षेत्रों को बुरी तरह प्रभावित किया है, ऐसे में कृषि को पुन: आर्थिक विकास के इंजन और महत्त्वपूर्ण उपशामक के रूप में चर्चा के केंद्र में ला दिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • वित्त मंत्री द्वारा COVID-19 महामारी आर्थिक पैकेज के रूप में कृषि, मत्स्य पालन और खाद्य प्रसंस्करण के लिये कृषि अवसंरचना को मज़बूत करने तथा कृषि शासन संबंधी सुधारों के लिये अहम उपायों की घोषणा की गई थी।
  • इस आर्थिक पैकेज के एक भाग के रूप में कृषि क्षेत्र में शासन एवं प्रशासन से संबंधित भी अनेक सुधारों की घोषणा की गई थी। 

कृषि संबंधी सुधारों की घोषणा: 

कृषि सुधारों का उद्देश्य:

  • कृषि सुधारों के माध्यम ’किसान प्रथम’ (Farmer First) अर्थात किसान को नीतियों के केंद्र में रखकर कार्य किया जाएगा जिनके निम्नलिखित उद्देश्य हैं:
    • कृषि-सेवाओं में रोज़गार उत्पन्न करना; 
    • विपणन चैनलों में विकल्पों को बढ़ावा देना; 
    • एक राष्ट्र एक बाज़ार’ की दिशा में कार्य करना; 
    • अवसंरचना का विकास;
    • मार्केट लिंकेज; 
    • फिनटेक और एगटेक में निवेश आकर्षित करना; 
    • खाद्य फसलों के स्टॉक प्रबंधन में पूर्वानुमान पद्धति को अपनाना।

लघु जोतधारकों की स्थिति:

  • सामान्यत: 2 हेक्टेयर से कम भूमि धारण करने वाले किसानों को लघु जोतधारक के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। 

क्र. सं.

समूह 

भूमि धारण (हेक्टेयर में)

1

सीमांत

< 1.0 हेक्टेयर

2

लघु 

1.0 < 2.0 हेक्टेयर

3

अर्द्ध-मध्यम

2.0 < 4.0 हेक्टेयर

4

मध्यम 

4.0 < 10.0 हेक्टेयर

5

वृहद 

10.0 हेक्टेयर से अधिक 

  • लगभग 85% किसान लघु तथा सीमांत जोतधारक हैं।

लघु जोतधारकों की समस्याएँ:

  • किसानों के लिये अपनाई जाने सार्वजनिक नीति के प्रभाव तथा खेत के आकार में व्युत्क्रमानुपाती संबंध होता है, अर्थात इन नीतियों का छोटे जोतधारक किसानों पर विपरीत प्रभाव होता है। 
  • खाद्य सुरक्षा प्रभावित:
    • कृषि उत्पादन बढ़ाने की दिशा में अपनाई गई नीतियों यथा- कृषि आगतों को आपूर्ति, कृषि विस्तार सेवाएँ आदि लघु जोतधारकों की प्रतिस्पर्द्धा क्षमता तथा खुद को बाज़ार में बनाए रखने की क्षमता को बुरी तरह प्रभावित करती हैं। जिससे देश की खाद्य प्रणाली भी प्रभावित होती है। 
  • कम आय की प्राप्ति:
    • लघु जोतधारकों की आय राष्ट्रीय औसत आय से बहुत कम है। लघु जोतधारकों की प्रति व्यक्ति आय 15,000 रुपए प्रति वर्ष है। यह राष्ट्रीय औसत आय के पाँचवे हिस्से के बराबर है। 
  • औपचारिक बाज़ार तक पहुँच का अभाव:
    • भारत में लगभग लगभग 220 बिलियन डॉलर के वार्षिक कृषि उत्पाद सीमांत खेतों पर उगाया जाता है तथा इसे लगभग 50 किमी. के दायरे में अनौपचारिक बाज़ारों में बेच दिया जाता है।
    • औपचारिक (सार्वजनिक खरीद सहित) और अनौपचारिक बाज़ारों के सह-अस्तित्त्व के कारण कृषि उत्पादों तक पहुँच और मूल्य स्थिरता दोनों प्रभावित होती है। 
    • लघु जोतधारक किसानों को फसलों का अच्छा बाज़ार मूल्य तथा खरीददारों के विकल्प नहीं मिल पाते हैं।
  • अवसंरचना का अभाव:
    • 'बाज़ार तक फसल उत्पादों को लाने के लिये पर्याप्त लॉजिस्टिक संरचना का अभाव है। बड़े बाज़ारों और नगरों से भौतिक दूरी अधिक होने पर लघु जोतधारकों की आय में कमी होती है।

सुधारों की आवश्यकता: 

विपणन प्रणाली तथा अवसंरचना में सुधार:

  • अच्छी तरह से विनियमित बाज़ार की दिशा में निम्नलिखित सुधारों को लागू करने की आवश्यकता है: 
    • सुरक्षित और सस्ती भंडारण सुविधा; 
      • भंडारण सुविधाओं में वृद्धि, बड़े कृषि प्रसंस्करण उद्यमियों, खुदरा विक्रेताओं को आकर्षित करेगी।
    • गुणवत्ता प्रबंधन प्रौद्योगिकी; 
      • कार्यशील पूंजी;
      • कृषि उत्पादन तथा जलवायु परिवर्तन के साथ जुड़े जोखिमों से सुरक्षा की व्यवस्था । 
      • उदाहरण के लिये इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफ़ॉर्म आधारित कृषि प्रबंधन प्रणाली सूचना संबंधी बाधाओं को दूर करते हैं। ये प्लेटफ़ॉर्म ऋण पहुँच , जोखिम प्रबंधन, मौसम जानकारी, फसल प्रबंधन सेवाएँ प्रदान करते हैं।
      • 10,000 'किसान उत्पादक संगठनों' (Farmer Producer Organisations- FPOs) की स्थापना जैसे मिशन लघु जोतधारकों को 'बाज़ार आधारित कृषि’ उत्पादन की दिशा में प्रोत्साहन प्रदान करते हैं।

ई-मार्केटप्लेस जैसी पहलों की आवश्यकता:

  • ज़िला प्रशासन पर वाणिज्यिक विवाद निपटानों का समाधान करने के लिये पर्याप्त संसाधनों का अभाव है। 
  • प्रतिपक्ष जोखिम प्रबंधन के लिये एक उचित समाशोधन और निपटान तंत्र की आवश्यकता है। इस दिशा में ई-मार्केटप्लेस जैसी पहल को लागू किया जाना चाहिये। 

उत्पादों की गुणवत्ता का निर्धारण:

  • ऑनलाइन बिक्री की दिशा में छोटे जोतधारकों को मानक ग्रेड और गुणवत्ता-आधारित संदर्भ मूल्य अपनाने की आवश्यकता है। इसके लिये कृषि विपणन विस्तार सेवाओं का उपयोग किया जाना चाहिये।
  • सभी खाद्य मानक कानूनों और विभिन्न व्यापार मानकों को अच्छे उत्पादों की आपूर्ति की समझ के साथ संरेखित किया जाना चाहिये।

गैर-अनाज फसलों संबंधी पहल:

  • गैर-अनाज फसलों के साथ जुड़े जोखिमों और ऋण का प्रबंधन करने के लिये नवाचारी उपायों को अपनाना चाहिये ताकि इसका लाभ लघु जोत धारकों को मिल सके।

पशुधन को महत्त्व:

  • पशुधन का भारत की कृषि जीडीपी में 30% योगदान है, अत: बाज़ार तथा पशुधन के मध्य भी बेहतर समन्वय बनाने की आवश्यकता है।

अंतर-राज्य समन्वय: 

  • कृषि राज्य सूची का विषय है, अत: कृषि क्षेत्र में बेहतर अंतर-राज्य समन्वय को लागू किया जाना चाहिये। 

निष्कर्ष:

  • कृषि क्षेत्र में नवीन सुधारों को लागू करने से कृषि उत्पादकों, मध्यस्थों तथा उपभोक्ताओं के मध्य बेहतर समन्वय हो पाएगा तथा लघु जोतधारकों को भी अपने उत्पादों पर बेहतर रिटर्न मिल सकेगी तथा इससे भूगोल द्वारा उत्पन्न सीमाएँ महत्त्वहीन हो जायेगी। 

स्रोत: इकनॉमिक टाइम्स


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 11 जुलाई, 2020

विश्व जनसंख्या दिवस

विश्व भर में प्रत्येक वर्ष 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस (World Population Day) के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस के आयोजन का मुख्य उद्देश्य लगातार बढ़ रही जनसंख्या को सीमित करना और आम लोगों को जनसंख्या वृद्धि, लिंग समानता एवं मातृत्त्व स्वास्थ्य के संबंध में जागरूक बनाना है। विश्व जनसंख्या दिवस की स्थापना संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की तत्कालीन गवर्निंग काउंसिल द्वारा 11 जुलाई, 1989 को की गई थी। तब से प्रत्येक वर्ष 11 जुलाई को यह दिवस मनाया जाता है। 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाने का मुख्य कारण यह है कि इसी दिन वर्ष 1987 में विश्व की जनसंख्या ने 5 बिलियन के आँकड़े को पार किया था। वर्ष 2020 में विश्व जनसंख्या दिवस की थीम मुख्यतः महिलाओं और लड़कियों पर केंद्रित है, क्योंकि कई अध्ययनों में सामने आया है कि कोरोना वायरस संकट के दौरान घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। विश्व जनसंख्या दिवस पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जिनमें जनसंख्या वृद्धि की वज़ह से होने वाले खतरों के प्रति लोगों को आगाह किया जाता है। वर्तमान में चीन और भारत दुनिया के सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, COVID-19 महामारी ने प्रत्येक व्यक्ति, समुदाय और अर्थव्यवस्था को काफी हद तक प्रभावित किया है, लेकिन इसके कारण सभी लोग समान रूप से प्रभावित नहीं हुए हैं, कोरोना वायरस (COVID-19) और लॉकडाउन का सबसे अधिक प्रभाव महिलाओं और लड़कियों पर देखने को मिला है। राष्ट्रीय महिला आयोग (National Commission for Women-NCW) के अनुसार, कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिये लागू किये गए देशव्यापी लॉकडाउन के पश्चात् से अब तक लिंग-आधारित हिंसा और घरेलू हिंसा के मामलों में दोगुनी वृद्धि हुई है।

म्यूचुअल फंड पर सलाहकार समिति का पुनर्गठन

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India-SEBI) ने म्यूचुअल फंड उद्योग के विनियमन और विकास से संबंधित मामलों पर सलाह देने वाली समिति का पुनर्गठन किया है। इस संबंध में जारी अधिसूचना के अनुसार, म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) से संबंधित 20 सदस्यीय सलाहकार समिति की प्रमुख उषा थोराट होंगी, जो कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की पूर्व डिप्टी गवर्नर हैं। इससे पूर्व वर्ष 2013 में गठित इस समिति में 15 सदस्य थे और इसके अध्यक्ष SBI के पूर्व चेयरमैन जानकी बल्लभ थे। म्यूचुअल फंड एक प्रकार का सामूहिक निवेश होता है। निवेशकों के समूह मिलकर अल्पावधि के निवेश या अन्य प्रतिभूतियों में निवेश करते हैं। म्यूचुअल फंड में एक फंड प्रबंधक होता है, जो इस पैसे को विभिन्न वित्तीय साधनों में निवेश करने के लिये अपने निवेश प्रबंधन कौशल का उपयोग करता है। वह फंड के निवेशों का निर्धारण करता है और लाभ तथा हानि का हिसाब रखता है। इस प्रकार हुए फायदे-नुकसान को निवेशकों में बाँट दिया जाता है। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की स्थापना भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के अनुसार 12 अप्रैल, 1992 को हुई थी। इसका मुख्य कार्य प्रतिभूतियों (Securities) में निवेश करने वाले निवेशकों के हितों का संरक्षण करना है।

उत्तर प्रदेश स्टार्टअप नीति 2020

हाल ही में उत्तर प्रदेश के राज्य मंत्रिमंडल ने नए व्यापारिक विचारों को वित्तपोषित करने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश की स्टार्टअप नीति 2020 को मंज़ूरी दे दी है। इस संबंध में राज्य सरकार द्वारा जारी आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार, वर्तमान में राज्य में कोई विशिष्ट स्टार्टअप नीति नहीं थी और एक स्टार्टअप संस्कृति को प्रोत्साहित करने तथा मज़बूत स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण के लिये एक स्वतंत्र और व्यापक नीति की आवश्यकता है। उत्तर प्रदेश की इस नीति का उद्देश्य राज्य को स्टार्टअप के विषय में भारत के शीर्ष तीन राज्यों में शामिल करना है, इस नीति के तहत राज्य में कुल 100 इनक्यूबेटर स्थापित किये जाएंगे। साथ ही इस नीति के तहत उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में देश का सबसे बड़ा इनक्यूबेटर स्थापित करने की योजना बनाई गई है। संबंधी अधिसूचना के अनुसार, पूर्वांचल और बुंदेलखंड क्षेत्रों में स्टार्टअप स्थापित करने के लिये विशेष प्रोत्साहन प्रदान किया जाएगा। इस नीति के माध्यम से राज्य में तकरीबन 50,000 लोगों के लिये प्रत्यक्ष और एक लाख लोगों के लिये अप्रत्यक्ष रूप से रोज़गार के अवसर पैदा होंगे। 

फ्लिपकार्ट और कर्नाटक सरकार के बीच समझौता ज्ञापन

ई-वाणिज्य (E-commerce) कंपनी फ्लिपकार्ट (flipkart) ने स्थानीय कला, शिल्प और हथकरघा क्षेत्रों को बढ़ावा देने के लिये कर्नाटक सरकार के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं। इस समझौते ज्ञापन का मुख्य उद्देश्य स्थानीय कला, शिल्प और हथकरघा क्षेत्रों को ई-वाणिज्य मंच पर लाना और  बाज़ार तक पहुँच प्रदान करना है। इस समझौते के माध्यम से से कर्नाटक के स्थानीय कारीगरों, बुनकरों और शिल्पकारों को अपने हॉलमार्क उत्पादों को देश भर के ग्राहकों के समक्ष प्रदर्शित करने की सुविधा मिल सकेगी। गौरतलब है कि कर्नाटक सरकार और फ्लिपकार्ट समूह समाज के इन वंचित वर्गों के लिये व्यापार के अवसरों को बढ़ाने के रास्ते बनाने पर ध्यान केंद्रित करेंगे, जिससे मेड इन इंडिया (Made In India) को लेकर हो रहे प्रयासों में भी तेज़ी आएगी। फ्लिपकार्ट के साथ कर्नाटक सरकार का यह समझौता राज्य के वाणिज्यिक और सामाजिक विकास में सहायक होगा। यह साझेदारी कर्नाटक के स्थानीय हस्तशिल्प और हथकरघा व्यवसायों को एक राष्ट्रीय उपभोक्ता आधार तक ले जाने में मदद करेगी।


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