प्रयागराज शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 10 जून से शुरू :   संपर्क करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 10 Apr, 2021
  • 26 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

दक्षिण पूर्व एशिया को EU का सहयोग

चर्चा में क्यों?

यूरोपीय संघ (EU) ने दक्षिण पूर्व एशिया में जलवायु अनुकूल विकास का समर्थन करने हेतु लाखों यूरो के वित्तपोषण का निर्णय लिया है।

  • दिसंबर 2020 में यूरोपीय संघ, दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन ‘आसियान’ का ‘रणनीतिक भागीदार’ बना था, जिसके बाद से दोनों क्षेत्रीय समूहों ने जलवायु परिवर्तन नीति को सहयोग का एक महत्त्वपूर्ण घोषित किया था।

प्रमुख बिंदु 

दक्षिण पूर्व एशिया के लिये यूरोपीय संघ की सहायता:

  • बहुपक्षीय सहायता
    • यूरोपीय संघ आसियान क्षेत्र के लिये विकास सहायता का सबसे बड़ा प्रदाता है, और वह विभिन्न पर्यावरण संबंधी कार्यक्रमों के लिये लाखों यूरो प्रदान करता है।
    • इसमें ‘आसियान स्मार्ट ग्रीन सिटिज़’ पहल के लिये 5 मिलियन यूरो और निर्वनीकरण को रोकने के लिये शुरू की गई ‘फाॅरेस्ट लॉ एंफोर्समेंट, गवर्नेंस एंड ट्रेड इन आसियान’ पहल के लिये 5 मिलियन यूरो शामिल है।
  • व्यक्तिगत सहायता
    • बहुपक्षीय सहायता के साथ, यूरोपीय संघ आसियान सदस्य देशों के साथ व्यक्तिगत स्तर पर भी कार्य कर रहा है और उनकी पर्यावरण अनुकूल नीतियों जैसे- थाईलैंड का बायो-सर्कुलर-ग्रीन इकोनॉमिक मॉडल और सिंगापुर का ग्रीन प्लान 2030 आदि में सहायता कर रहा है।

दक्षिण पूर्व एशिया में यूरोपीय संघ के समक्ष मौजूद समस्याएँ

  • दक्षिण पूर्व एशिया में यूरोपीय संघ के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती इस क्षेत्र की पर्यावरण संबंधी नीतियाँ है, क्योंकि यह क्षेत्र जलवायु परिवर्तन से संबंधित विभिन्न पहलुओं में गलत दिशा में जा रहा है।
  • जलवायु जोखिम सूचकांक 2020 के अनुसार वर्ष 1999 से वर्ष 2018 के बीच जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले पंद्रह देशों में से पाँच आसियान देश थे।

दक्षिण पूर्व एशिया में कोयले की खपत

  • वर्ष 2040 तक दक्षिण पूर्व एशिया की ऊर्जा माँग में 60% वृद्धि होने का अनुमान है।
  • अनुमान के मुताबिक, आसियान क्षेत्र में वर्ष 2030 कोयला आधारित ऊर्जा, ऊर्जा के मुख्य स्रोत के रूप में प्राकृतिक गैस से आगे निकल जाएगी और वर्ष 2040 तक यह क्षेत्र के अनुमानित CO2 उत्सर्जन में लगभग 50% का योगदान देगा।
    • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के आँकड़ों की मानें तो वर्ष 2019 में, दक्षिण पूर्व एशिया ने लगभग 332 मिलियन टन कोयले का उपभोग किया था, जो कि एक दशक पहले किये गए उपभोग का लगभग दोगुना था।
  • साउथ-ईस्ट एशिया एनर्जी आउटलुक 2019 के मुताबिक, यह क्षेत्र CO2 उत्सर्जन में लगभग दो-तिहाई यानी लगभग 2.4 गीगाटन वृद्धि में योगदान देगा।

दक्षिण पूर्व एशिया में यूरोपीय संघ के लिये जोखिम

  • निर्यातकों का आक्रोश
    • यदि यूरोपीय संघ इस क्षेत्र में कोयले के प्रयोग को लेकर कोई कड़ा कदम उठाता है, तो उसे कोयले के प्रमुख निर्यातकों जैसे- चीन, भारत और ऑस्ट्रेलिया आदि के आक्रोश का सामना करना पड़ सकता है।
  • नीतिगत प्रतिरोध
    • दक्षिण पूर्व एशिया में यूरोपीय संघ की जलवायु परिवर्तन नीति को पहले से ही प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है।
      • इंडोनेशिया ने पिछले वर्ष यूरोपीय संघ द्वारा पाम ऑयल पर लागू किये गए चरणबद्ध प्रतिबंधों के विरुद्ध विश्व व्यापार संगठन में कार्यवाही की शुरुआत की थी।
        • यूरोपीय संघ ने तर्क दिया है कि ये प्रतिबंध पर्यावरण की रक्षा के लिये आवश्यक हैं, जबकि विश्व के सबसे बड़े पाम ऑयल उत्पादक इंडोनेशिया के मुताबिक, ये प्रतिबंध केवल संरक्षणवादी है।
      • दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा पाम ऑयल उत्पादक, मलेशिया यूरोपीय संघ के विरुद्ध इंडोनेशिया का समर्थन कर रहा है।
  • पाखंड के आरोप
    • यूरोपीय संघ के लिये दूसरी समस्या यह है कि यदि वह दक्षिण-पूर्व एशिया में कोयला आधारित ऊर्जा पर अधिक ज़ोर देता है, तो उस पर पाखंड के आरोप लगाए जा सकते हैं।
      • यूरोपीय संघ में शामिल पोलैंड और चेक गणराज्य अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिये कोयला आधारित ऊर्जा पर निर्भर हैं।
      • वर्ष 2019 में दक्षिण पूर्व एशिया और यूरोप दोनों ने वैश्विक स्तर पर थर्मल कोयले के आयात में 11-11% का योगदान दिया था।

जलवायु परिवर्तन पर आसियान देशों के साथ भारत का समन्वय:

  • वर्ष 2012 में दोनों देशों ने 'अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में आसियान-भारत सहयोग पर नई दिल्ली घोषणा’ को अपनाया था।
  • वर्ष 2007 में जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में अनुकूलन और शमन प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने हेतु पायलट परियोजनाओं को शुरू करने के लिये 5 मिलियन डॉलर के साथ आसियान-भारत ग्रीन फंड की स्थापना की गई थी।
  • आसियान और भारत IISc, बंगलूरु के साथ साझेदारी के माध्यम से जलवायु परिवर्तन और जैवविविधता जैसे कई क्षेत्रों में सहयोग कर रहे हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

अंतर्राष्ट्रीय क्रूड ऑयल की कीमतों में गिरावट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय क्रूड ऑयल की कीमतों में आई गिरावट ने इसमें छः महीने से हो रही बढ़ोतरी को स्थिर कर दिया है, जब पूरे देश में पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी देखी गई।

  • मार्च 2021 की शुरुआत में ब्रेंट क्रूड की कीमत में 63 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल से 70 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल की गिरावट आई।
  • WTI और ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमतों में बदलाव से अन्य प्रकार के क्रूड ऑयलों की कीमतें भी प्रभावित होती हैं।

प्रमुख बिंदु

तेल का मूल्य निर्धारण:

  • सामान्यतः पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन (OPEC) एक तेल उत्पादक संघ के रूप में क्रूड ऑयल का मूल्य निर्धारित करता है।
    • सऊदी अरब के हाथ में OPEC का नेतृत्व है जो विश्व में क्रूड ऑयल का सबसे बड़ा निर्यातक (वैश्विक मांग का 10% निर्यात करता है) है।
    • OPEC के 13 देश (ईरान, इराक, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, अल्जीरिया, लीबिया, नाइजीरिया, गैबॉन, इक्वेटोरियल गिनी, कांगो गणराज्य, अंगोला और वेनेज़ुएला) सदस्य हैं।
  • OPEC तेल उत्पादन में वृद्धि करके कीमतों में कमी और उत्पादन में कटौती करके कीमतों में बढ़ोतरी कर सकता है।
  • तेल का मूल्य निर्धारण मुख्य रूप से स्वतंत्र स्पर्धा की जगह तेल निर्यातक देशों की नीतियों पर निर्भर करता है।
  • तेल उत्पादन में कटौती या तेल के कुएँ पूरी तरह से बंद करना एक कठिन निर्णय है, क्योंकि इसे फिर से शुरू करना बेहद महँगा और जटिल है।
    • यदि कोई देश उत्पादन में कटौती करता है और दूसरा देश इस प्रकार की कटौती नहीं करता है तो उसे बाज़ार में अपनी हिस्सेदारी खोनी पड़ सकती है।
  • OPEC तेल की वैश्विक कीमत और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाए रखने के लिये OPEC+ के रूप में रूस के साथ काम कर रहा है।
    • वर्ष 2016 में OPEC ने अन्य शीर्ष तेल-निर्यातक देशों के साथ मिलकर एक और अधिक शक्तिशाली इकाई बनाई, जिसे OPEC+ या ओपेक प्लस नाम दिया गया है।
    • OPEC और अन्य देश जो शीर्ष तेल-निर्यातक हैं, के गठबंधन को OPEC+ के नाम से जाना जाता है जो वर्ष 2016 में अस्तित्व में आया।

मूल्य में गिरावट का कारण:

  • कोविड संक्रमण के मामलों में पुनः बढ़ोतरी:
    • OPEC+ देशों द्वारा कोविड-19 संक्रमण के दूसरे दौर में एक साथ मिलकर  क्रूड ऑयल के उत्पादन को बढ़ाने के निर्णय से कीमतों में गिरावट आई है।
      • OPEC+ देशों ने क्रूड ऑयल के उत्पादन में चरणबद्ध कटौती करने के निर्णय को वापस लेने की घोषणा की, जिससे जुलाई से प्रतिदिन 1.1 मिलियन बैरल वृद्धि क्रूड ऑयल के उत्पादन में देखने को मिली।
  • आपूर्ति में सुधार:
    • माँग के बिना आपूर्ति बढ़ाने से क्रूड ऑयल की कीमतों में गिरावट आई है क्योंकि वैश्विक व्यापक आर्थिक स्थिति को देखते हुए तेल उत्पादक देशों के लिये आपूर्ति में कटौती करना मुश्किल था।
      • अमेरिकी आँकड़ों के अनुसार, पेट्रोलियम उत्पादों की माँग में कमी हो रही है और गैसोलीन उत्पादों की माँग तेज़ी से बढ़ रही है जो एक चिंतनीय स्थिति है।
      • अमेरिकी क्रूड ऑयल की उत्पादन क्षमता लगभग 11 मिलियन बैरल प्रतिदिन हो गई है जो इससे पहले प्रतिदिन 9.7 मिलियन बैरल हो गया था।

भारत पर प्रभाव:

  • चालू खाता घाटा:
    • तेल की कीमतों में कमी से देश के आयात में कमी आएगी, जिससे चालू खाते के घाटे को कम करने में मदद मिलेगी।
      • एक अनुमान के मुताबिक क्रूड ऑयल की कीमत में एक डॉलर की बढ़ोतरी से तेल के खर्च में प्रतिवर्ष लगभग 1.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि होती है।
      • भारत अपनी क्रूड ऑयल की ज़रूरतों का 80% आयात करता है।
  • मुद्रास्फीति:
    • क्रूड ऑयल की कीमतों में कमी से (जो पिछले कुछ महीनों से बढ़ रही है) महंगाई में कमी आ सकती है।
    • इससे मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee) को नीतिगत दरों का निर्धारण करने में आसानी होगी।
  • राजकोषीय स्थिति:
    •  तेल की कीमतें ऐसे ही बढ़ती रहीं तो सरकार को पेट्रोलियम और डीज़ल पर करों में कटौती करने के लिये मज़बूर होना पड़ेगा, जिससे राजस्व का नुकसान हो सकता है। अतः राजकोषीय संतुलन (Fiscal Balance) बिगड़ सकता है।
    • राजस्व में कमी से केंद्र के विभाजन योग्य कर राजस्व में राज्यों का हिस्सा और राज्य सरकारों को वस्तु एवं सेवा कर (GST) ढाँचे के तहत दिया जाने वाला मुआवज़ा प्रभावित होगा।

ब्रेंट और वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट

उत्पत्ति:

  • ब्रेंट क्रूड ऑयल का उत्पादन उत्तरी सागर में शेटलैंड द्वीप (Shetland Islands) और नॉर्वे के बीच तेल क्षेत्रों में होता है।
  • वेस्ट क्रूड इंटरमीडिएट (WTI) ऑयल क्षेत्र मुख्यत: अमेरिकी क्षेत्र टेक्सास, लुइसियाना और नॉर्थ डकोटा में अवस्थित है।

लाइट एंड स्वीट: 

  • ब्रेंट क्रूड ऑयल और WTI दोनों ही लाइट और स्वीट (Light and Sweet) होते हैं, लेकिन ब्रेंट में अमेरिकी पेट्रोलियम संस्थान (American Petroleum Institute- API) की हिस्सेदारी थोड़ी अधिक होती है।
  • API क्रूड ऑयल या परिष्कृत उत्पादों के घनत्व का एक संकेतक है।
  • ब्रेंट (0.37%) की तुलना में WTI में कम सल्फर सामग्री (0.24%) होने के कारण इसे तुलनात्मक रूप में "स्वीट" कहा जाता है।

बेंचमार्क मूल्य:

  • OPEC द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला ब्रेंट क्रूड ऑयल मूल्य अंतर्राष्ट्रीय बेंचमार्क मूल्य (Benchmark Price) है, जबकि अमेरिकी तेल कीमतों के लिये WTI क्रूड ऑयल मूल्य एक बेंचमार्क है।
  • भारत मुख्य रूप से क्रूड ऑयल OPEC देशों से आयात करता है, अतः भारत में तेल की कीमतों के लिये ब्रेंट बेंचमार्क है।

शिपिंग लागत

  • शिपिंग की लागत आमतौर पर ब्रेंट क्रूड ऑयल के लिये कम होती है, क्योंकि इसका उत्पादन समुद्र के पास होता है, जिससे इसे कार्गो जहाज़ों में तुरंत लादा जा सकता है।
  • WTI के शिपिंग का मूल्य अधिक होता है क्योंकि इसका उत्पादन भूमि वाले क्षेत्रों में होता है, जहाँ भंडारण की सुविधा सीमित है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

मौद्रिक नीति रिपोर्ट: RBI

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने अप्रैल 2021 के लिये मौद्रिक नीति रिपोर्ट जारी की है।

प्रमुख बिंदु:

अपरिवर्तित नीतिगत दरें:

  • रेपो रेट: 4%
  • रिवर्स रेपो रेट: 3.35%
  • सीमांत स्थायी दर: 4.25%
  • बैंक दर: 4.25%

सकल घरेलू उत्पाद अनुमान:

  • वर्ष 2021-22 के लिये वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 10.5% की वृद्धि के पूर्ववर्ती अनुमान अपरिवर्तित रखा गया है।

मुद्रास्फीति:

  • RBI ने उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति संबंधी अनुमानों को संशोधित किया है:
    • 2020-21 की चौथी तिमाही में 5.0%।
    • 2021-22 की पहली तिमाही में 5.2%।
    • 2021-22 की दूसरी तिमाही में 5.2%।
    • 2021-22 की तिमाही में 4.4%।
    • 2021-22 की चौथी तिमाही में 5.1%।

समायोजित दृष्टिकोण:

  • RBI ने सतत् आधार पर विकास को बनाए रखने हेतु आवश्यक रूप से लंबे समय तक समायोजित दृष्टिकोण को जारी रखने का निर्णय लिया है और अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 के प्रभाव को सीमित करते हुए यह सुनिश्चित किया है कि मुद्रास्फीति अग्रगामी लक्ष्य के भीतर बनी रहे।
    • एक समायोजित दृष्टिकोण का अर्थ है कि एक केंद्रीय बैंक को जब भी ज़रूरत हो, वह वित्तीय प्रणाली में पैसा लगाने के लिये दरों में कटौती करेगा।

वित्तीय संस्थानों को सहायता:

  • RBI वित्तीय वर्ष 2021-22 में नए ऋण देने के लिये अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों को प्रदान किये जा रहे आर्थिक समर्थन प्रयासों के क्रम में 50,000 करोड़ रुपए का नया समर्थन प्रदान किया है।
    • राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) को कृषि और संबद्ध गतिविधियों, ग्रामीण गैर-कृषि क्षेत्र और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC), माइक्रो-फाइनेंस इंस्टीट्यूशंस (MFIs) का समर्थन करने के लिये एक वर्ष हेतु 25,000 करोड़ रुपए की विशेष तरलता सुविधा (SLF) प्रदान की जाएगी। 
    • आवासन क्षेत्र का समर्थन करने के लिये एक वर्ष के लिये राष्ट्रीय आवास बैंक में 10,000 करोड़ रुपए का SLF बढ़ाया जाएगा।
    • लघु उद्योग विकास बैंक (SIDBI) को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के वित्तपोषण के लिये इस सुविधा के तहत 15,000 करोड़ रुपये प्रदान किये जाएंगे।
  • यह तीनों सुविधाएँ प्रचलित नीति रेपो दर पर उपलब्ध होंगी।

ARC हेतु समीक्षा समिति:

  • बैड लोन से निपटने हेतु ‘परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों (ARCs) के महत्त्व को इंगित करते हुए RBI वित्तीय क्षेत्र के पारि तंत्र में ARCs के काम की व्यापक समीक्षा हेतु एक समिति का गठन करेगी।
  • समिति वित्तीय क्षेत्र की बढ़ती आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये ऐसी संस्थाओं को सक्षम करने हेतु उपयुक्त उपायों की सिफारिश करेगी।

प्राथमिकता क्षेत्र ऋण का विस्तार:

  • निर्यात और रोज़गार के मामले में अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले क्षेत्रों के लिये तथा ऑन-लेंडिंग प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (PSL) वर्गीकरण की समय-सीमा सितंबर 30,2021 में छह महीने के विस्तार को मंज़ूरी दी गई है।
    • ऑन-लेंडिंग का तात्पर्य किसी थर्ड पार्टी को उधार (उधार दिया हुआ पैसा) देना है।
  • यह निम्न स्तर पर स्थित संस्थाओं को ऋण प्रदान करने वाले NBFCs को प्रोत्साहन प्रदान करेगा।

सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम (G-SAP) 1.0:

  • RBI ने वर्ष 2021-22 के लिये एक द्वितीयक बाज़ार सरकारी प्रतिभूति (G-sec) अधिग्रहण कार्यक्रम या G-SAP 1.0 लागू करने का निर्णय लिया है।
    • यह RBI की ‘खुली बाज़ार प्रक्रियाओं’ का हिस्सा है।
  • इस कार्यक्रम के तहत RBI सरकारी प्रतिभूतियों की खुली बाज़ार खरीद का संचालन करेगी।
  • G-SAP 1.0 के तहत 25,000 करोड़ की कुल राशि के लिये सरकारी प्रतिभूतियों की पहली खरीद 15 अप्रैल, 2021 को की जाएगी। 

उद्देश्य:

  • सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में अवधि संरचना और जारीकर्त्ताओं को ध्यान में रखते हुए अन्य वित्तीय बाज़ार  साधनों के मूल्य निर्धारण में इसकी केंद्रीय भूमिका को देखते हुए सरकारी प्रतिभूति बाज़ार में अस्थिरता से बचना।

महत्त्व:

  • यह बॉण्ड बाज़ार सहभागियों को वित्त वर्ष 2022 में RBI के समर्थन की प्रतिबद्धता के संबंध में निश्चितता प्रदान करेगा।
  • इस संरचित कार्यक्रम की घोषणा से रेपो दर और 10 वर्ष के सरकारी बॉण्ड यील्ड के बीच के अंतर को कम करने में मदद मिलेगी। यह बदले में वित्त वर्ष 2021-22 में केंद्र और राज्यों की उधार लेने की कुल लागत को कम करने में मदद करेगा।
  • यह व्यवस्थित तरलता की स्थिति के बीच ‘यील्ड कर्व’ (Yield Curve) के स्थिर और व्यवस्थित विकास को सक्षमता प्रदान करेगा।
    • ‘यील्ड कर्व’ (Yield Curve) एक ऐसी रेखा है जो समान क्रेडिट गुणवत्ता वाले, लेकिन परिपक्वता तिथियों वाले बॉण्ड की ब्याज दर देती है।
    • ‘यील्ड कर्व’ का ढलान भविष्य की ब्याज दर में बदलाव और आर्थिक गतिविधि को आधार प्रदान करता है।

प्रमुख तथ्य:

रेपो और रिवर्स रेपो दर:

  • रेपो दर वह दर है जिस पर किसी देश का केंद्रीय बैंक (भारत के मामले में भारतीय रिज़र्व बैंक) किसी भी तरह की धनराशि की कमी होने पर वाणिज्यिक बैंकों को धन देता है। इस प्रक्रिया में केंद्रीय बैंक प्रतिभूति खरीदता है।
  • रिवर्स रेपो दर वह दर है जिस पर RBI देश के भीतर वाणिज्यिक बैंकों से धन उधार लेता है।

बैंक दर:

  • यह वाणिज्यिक बैंकों को निधियों को उधार देने के लिये RBI द्वारा प्रभारित दर है।

सीमांत स्थायी दर (MSF):

  • MSF ऐसी स्थिति में अनुसूचित बैंकों के लिये आपातकालीन स्थिति में RBI से ओवरनाइट ऋण लेने की सुविधा है जब अंतर-बैंक तरलता पूरी तरह से कम हो जाती है।
  • अंतर-बैंक ऋण के तहत बैंक एक निर्दिष्ट अवधि के लिये एक दूसरे को धन उधार देते हैं।

खुले बाज़ार की क्रियाएँ:

  • ये RBI द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री/खरीद के माध्यम से बाज़ार से रुपए की तरलता की स्थिति को समायोजित करने के उद्देश्य से किये गए बाजार संचालन हैं।
  • यदि अतिरिक्त तरलता है, तो RBI प्रतिभूतियों की बिक्री का समर्थन करता है और रुपए की तरलता को कम कर देता है।
  • इसी तरह जब तरलता की स्थिति कठोर होती है तो RBI बाज़ार से प्रतिभूतियाँ खरीदता है, जिससे बाज़ार में तरलता बढ़ती है।
  • यह मात्रात्मक (धन की कुल मात्रा को विनियमित या नियंत्रित करने के लिये) मौद्रिक नीति उपकरण है जो देश के केंद्रीय बैंक द्वारा अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति को नियंत्रित करने के लिये नियोजित किया जाता है।

सरकारी प्रतिभूतियाँ:

  • सरकारी प्रतिभूति केंद्र सरकार या राज्य सरकारों द्वारा जारी किया जाने वाला एक पारंपरिक उपकरण है।
  • यह सरकार के ऋण दायित्व को स्वीकार करता है। ऐसी प्रतिभूतियाँ अल्पकालिक (आमतौर पर ट्रेज़री बिल कहा जाता है, एक वर्ष से कम की मूल परिपक्वता के साथ वर्तमान में तीन अवधियों में जारी की जाती है, अर्थात् 91 दिन, 182 दिन और 364 दिन) या दीर्घकालिक (आमतौर पर मूल रूप से सरकारी बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियाँ कहा जाता है, एक वर्ष या उससे अधिक की परिपक्वता) होती हैं।

मुद्रास्फीति:

  • मुद्रास्फीति का तात्पर्य दैनिक या आम उपयोग की अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में वृद्धि से है, जैसे कि भोजन, कपड़े, आवास, मनोरंजन, परिवहन, उपभोक्ता स्टेपल इत्यादि।
  • मुद्रास्फीति समय के साथ वस्तुओं और सेवाओं की बास्केट में औसत मूल्य परिवर्तन को मापती है।
  • मुद्रास्फीति किसी देश की मुद्रा की एक इकाई की क्रय शक्ति में कमी का संकेत है। इससे अंततः आर्थिक विकास में मंदी आ सकती है।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक

  • यह खुदरा खरीदार के दृष्टिकोण से मूल्य परिवर्तन को मापता है। यह राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा जारी किया जाता है।
  • CPI खाद्य, चिकित्सा देखभाल, शिक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि वस्तुओं और सेवाओं की कीमत में अंतर की गणना करता है, जिसे भारतीय उपभोक्ता उपभोग के लिये खरीदते हैं।

स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2