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डेली न्यूज़

  • 08 Apr, 2020
  • 50 min read
भारतीय राजनीति

न्यायालय की सुनवाई में भाग लेने पर प्रतिबंध

प्रीलिम्स के लिये

अनुच्छेद-142 से संबंधित मुख्य बिंदु 

मेन्स के लिये

आपदा/महामारी प्रबंधन में विभिन्न संस्थानों की भूमिका

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में COVID-19 महामारी के मद्देनज़र लोगों के न्यायालय परिसर में प्रवेश करने और सुनवाई में भाग लेने पर लगाए गए सभी प्रतिबंधों को लेकर भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) शरद अरविंद बोबडे के नेतृत्व वाली न्यायपीठ ने कहा कि ये प्रतिबंध सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) के अनुरूप हैं तथा वायरस के संक्रमण को रोकने के लिये अनिवार्य हैं।

प्रमुख बिंदु

  • न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत अपनी असाधारण संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए ओपन कोर्ट हियरिंग (Open Court Hearings) के प्रावधानों को कुछ समय के लिये निरस्त कर दिया है।
  • साथ ही न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस स्थिति में असाधारण शक्ति का उपयोग विवेक का नहीं बल्कि कर्त्तव्य का मामला है।

कदम की अनिवार्यता

  • यद्यपि ओपन कोर्ट प्रणाली (Open Court System) न्याय के प्रशासन में पारदर्शिता सुनिश्चित करती है, किंतु बड़ी संख्या में लोगों को एकत्रित होने से रोकने के लिये यह कदम अनिवार्य है।
  • CJI शरद अरविंद बोबडे के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति और संस्थान से वायरस के संचरण को रोकने हेतु प्रबंधित किये गए उपायों के कार्यान्वयन में सहयोग करने की अपेक्षा की जाती है। न्यायालय के दायरे के भीतर लोगों की आवाजाही को कम करना इस दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है, इस प्रकार यह न्यायालय के विवेक का नहीं बल्कि कर्त्तव्य का मामला है।

तकनीक का प्रयोग

    • भारतीय संविधान द्वारा परिकल्पित लोकतंत्र में कानून के शासन की रक्षा के लिये न्याय तक सभी की पहुँच को सुनिश्चित करना आवश्यक है। न्याय तक पहुँच के अभाव में आम लोग शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठाने, अपने अधिकारों का प्रयोग करने, भेदभाव को चुनौती देने और निर्णयकर्त्ताओं को उत्तरदायी ठहरने में असमर्थ हो जाते हैं।
    • आवश्यक है कि COVID-19 महामारी के कारण उत्पन्न चुनौतियों को संबोधित करने के साथ-साथ सभी तक न्याय की पहुँच सुनिश्चित करने की संवैधानिक प्रतिबद्धता को भी बनाए रखा जाए।
    • इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने न्याय के प्रभावी वितरण हेतु सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (Information and Communications Technology-ICT) के उपयोग को सुनिश्चित करने के लिये निम्नलिखित दिशा-निर्देश जारी किये हैं-
      • उच्च न्यायालय: उच्च न्यायालय को अपने संबंधित राज्य में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के उपयोग से संबंधित तौर-तरीकों का निर्णय लेना होगा।
      • ज़िला न्यायालय: प्रत्येक राज्य के ज़िला न्यायालय संबंधित उच्च न्यायालयों द्वारा निर्धारित वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के तौर-तरीकों को अपनाएंगे।

      • तकनीकी शिकायतों को प्राप्त करने और उनका निवारण करने के लिये हेल्पलाइन की जाएगी।
    • न्यायालय के अनुसार, किसी भी मामले में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग द्वारा दोनों पक्षों की आपसी सहमति के बिना सबूत दर्ज़ नहीं किये जाएंगे।
    • इसके अलावा यदि किसी मामले में साक्ष्य दर्ज करना अति आवश्यक है, तो पीठासीन अधिकारी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन सुनिश्चित करेगा।

    संविधान का अनुच्छेद- 142 

    • अनुच्छेद-142 के अनुसार, अपने न्यायिक निर्णय देते समय न्यायालय ऐसे निर्णय दे सकता है जो इसके समक्ष लंबित पड़े किसी भी मामले को पूर्ण करने के लिये आवश्यक हों और इसके द्वारा दिये गए आदेश संपूर्ण भारत संघ में तब तक लागू होंगे जब तक इससे संबंधित किसी अन्य प्रावधान को लागू नहीं कर दिया जाता है। 
      • इस प्रकार जब तक किसी अन्य कानून को लागू नहीं किया जाता तब तक सर्वोच्च न्यायालय का आदेश सर्वोपरि होता है।
    • संसद द्वारा बनाए गए कानून के प्रावधानों के तहत सर्वोच्च न्यायालय को संपूर्ण भारत के लिये ऐसे निर्णय लेने की शक्ति है जो किसी भी व्यक्ति की मौज़ूदगी, किसी दस्तावेज़ अथवा स्वयं की अवमानना की जाँच और दंड को सुरक्षित करते हैं। 

    आगे की राह

    • न्यायालय द्वारा प्रवेश पर लगाए गए प्रतिबंध का निर्णय कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिये एक संस्थान की भूमिका के रूप में स्वागतयोग्य है। किंतु इस संदर्भ में न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय का प्रभावी क्रियान्वयन एक चुनौतीपूर्ण विषय है। 
    • देश में अभी एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो तकनीक से पूर्ण रूप से अनभिज्ञ है, यह स्थिति सभी तक न्याय की पहुँच को सुनिश्चित करने में बाधा बन सकती है। आवश्यक है कि न्यायालय द्वारा दिये गए निर्देशों के उचित क्रियान्वयन पर ध्यान दिया जाए और सभी विषय को यथासंभव संबोधित किया जाए।

    स्रोत: द हिंदू


    शासन व्यवस्था

    हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के निर्यात पर प्रतिबंध समाप्त

    प्रीलिम्स के लिये:

    COVID-19, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन

    मेन्स के लिये:

    स्वास्थ्य क्षेत्र पर COVID-19 का प्रभाव, COVID-19 से निपटने हेतु सरकार के प्रयास

    चर्चा में क्यों?

    हाल ही में भारत सरकार ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन (Hydroxychloroquine- HCQ) के निर्यात पर लगाए गए अपने पूर्व के प्रतिबंध को समाप्त कर इसके निर्यात की अनुमति दे दी है।

    मुख्य बिंदु:

    • भारत सरकार ने 7 अप्रैल, 2020 को मलेरिया के उपचार में प्रयोग की जाने वाली दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के साथ कुछ अन्य दवाओं के निर्यात की अनुमति दे दी है।
    • विदेश मंत्रालय के अनुसार, COVID-19 महामारी के मानवीय पहलुओं को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है। इसके तहत भारत पर आश्रित (दवाओं के संदर्भ में) पड़ोसी देशों के लिये पैरासिटामाॅल और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन की उचित मात्रा को निर्यात करने की अनुमति दी गई है।
    • साथ ही इन आवश्यक दवाओं को उन देशों में भी भेजा जाएगा जो इस महामारी से विशेष रूप से प्रभावित हुए हैं।
    • केंद्र सरकार के अनुसार, वर्तमान में निर्यात के लिये स्वीकृत HCQ और अन्य दवाएँ देश में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। सरकार के इस निर्णय के तहत दवाओं के स्टॉक की स्थिति और घरेलू मांग के आधार पर ही इन दवाओं का निर्यात किया जाएगा।
    • ध्यातव्य है कि 25 मार्च, 2020 को विदेश व्यापार महानिदेशालय (Directorate General of Foreign Trade- DGFT) द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, HCQ को प्रतिबंधित वस्तुओं की सूची में डाल दिया था और 4 अप्रैल, 2020 को इस दवा के निर्यात को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया था।

    विदेश व्यापार महानिदेशालय

    (Directorate General of Foreign Trade- DGFT):

    • DGFT केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय (Ministry of Commerce and Industry) का एक संलग्न कार्यालय है।
    • इसकी अध्यक्षता विदेश व्यापार महानिदेशक द्वारा की जाती है।
    • DGFT का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है। साथ ही देश के विभिन्न शहरों में इसके 38 क्षेत्रीय कार्यालय भी हैं। इसके अतिरिक्त DGFT का एक एक्सटेंशन काउंटर (Extension Counter) इंदौर में स्थित है।
    • DGFT भारतीय निर्यात को बढ़ावा देने के उद्देश्य के साथ विदेश व्यापार नीति तैयार करने और उसे लागू करने का कार्य करता है।
    • DGFT निर्यातकों को अनुमति जारी करने तथा अपने क्षेत्रीय कार्यालयों के माध्यम से इस संबंध में उनके दायित्त्वों की निगरानी का कार्य करता है।

    क्या है हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन?

    • हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन एक मलेरियारोधी दवा है। यह क्लोरोक्विन (Chloroquine) का एक यौगिक/डेरिवेटिव (Derivative) है, जिसे क्लोरोक्विन से कम विषाक्त (Toxic) माना जाता है।
    • रूमेटाइड आर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis) और लूपस (Lupus) जैसी कुछ अन्य बीमारियों के मामलों में भी डॉक्टर की सलाह पर इस दवा का उपयोग किया जाता है।

    भारत में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन का उत्पादन:

    • दवा क्षेत्र की एक शोध संस्था के अनुसार, फरवरी 2020 से पूर्व के 12 महीनों में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन का व्यापार मात्र 152.8 करोड़ रुपये का था।
    • भारतीय बाज़ार में उपलब्ध लगभग 82% हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन का उत्पादन मुंबई स्थित इप्का लेबोरेटरीज़ (Ipca Laboratories) द्वारा किया जाता है।
    • इप्का लेबोरेटरीज़ द्वारा उत्पादित 80% हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन को अन्य देशों में निर्यात कर दिया जाता है।
    • हालाँकि कंपनी के प्रबंध-निदेशक के अनुसार, सरकार की आवश्यकता की आपूर्ति के लिये कंपनी की दवा उत्पादन क्षमता में वृद्धि की गई है।
    • साथ ही इस दवा के दुरुपयोग, जमाखोरी आदि को रोकने के लिये वर्तमान में इसे देश के चयनित दवा केंद्रों पर ही उपलब्ध कराया जाएगा।

    COVID-19 और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन:

    • विश्व की किसी भी स्वास्थ्य संस्था द्वारा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन को COVID-19 के उपचार के लिये प्रमाणित नहीं किया गया है।
    • मार्च 2020 में ‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एंटीमाइक्रोबियल एजेंट’ (International Journal of Antimicrobial Agents- IJAA) में प्रकाशित एक फ्राँसीसी वैज्ञानिक के शोध के अनुसार, COVID-19 से संक्रमित 20 मरीज़ों में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के प्रयोग से अन्य मरीज़ो की तुलना में बेहतर परिणाम पाए गए।
    • शोध के अनुसार, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के साथ एजिथ्रोमाइसिन (एक एंटीबायोटिक दवा) के प्रयोग से COVID-19 के उपचार में प्रभावी परिणाम देखे गए।
    • हालाँकि 3 अप्रैल 2020 को IJAA चलाने वाली संस्था ‘इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ एंटीमाइक्रोबियल कीमोथेरेपी’ (International Society of Antimicrobial Chemotherapy) ने कहा कि यह शोध संस्था के मानकों के अनुरूप नहीं था, क्योंकि इस अध्ययन में शामिल मापदंडों, मरीज़ों में बीमारी की गंभीरता का विवरण, उपचार के दौरान मरीज़ सुरक्षा आदि पहलुओं के मामले में विस्तृत व्याख्या का अभाव था।

    भारत में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन का प्रयोग:

    • 30 मार्च 2020 को ‘भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद’ (Indian Council of Medical Research- ICMR) ने COVID-19 से संक्रमित मरीज़ों का उपचार कर रहे स्वास्थ्य कर्मियों और ऐसे मरीज़ों की देखभाल कर रहे परिजनों के लिये सुरक्षात्मक कदम के तहत हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के उपयोग के संदर्भ में दिशा-निर्देश जारी किये थे।
    • ‘भारतीय औषधि महानियंत्रक’ (Drug Controller General of India- DGCI) द्वारा आपातकालकालीन स्थिति में ICMR के सुझावों के तहत इस दवा के सीमित प्रयोग की अनुमति दी गई है।
    • हालाँकि सरकार ने इस बात पर विशेष बल दिया है कि COVID-19 के मामलों में इस दवा का प्रयोग चिकित्सक की देख-रेख के बगैर नहीं किया जा सकता है।
    • विशेषज्ञों के अनुसार, बिना किसी चिकित्सीय परामर्श के इस दवा के प्रयोग के गंभीर नकारात्मक परिणाम भी हो सकते हैं और इससे व्यक्ति की संक्रमण से लड़ने की क्षमता को भी नुकसान हो सकता है।

    निष्कर्ष: वर्तमान में COVID-19 के किसी उपचार के प्रमाणिक उपचार के अभाव में इसके संक्रमण के प्रसार को रोकना ही इस बीमारी के नियंत्रण का सबसे सफल उपाय है। COVID-19 के उपचार हेतु हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के प्रयोग के संबंध में किसी वैज्ञानिक प्रमाण के अभाव में इस दवा के प्रयोग के पहले चिकित्सीय परामर्श लेना अति आवश्यक है। COVID-19 की वर्तमान वैश्विक महामारी में ज़रूरतमंद देशों को महत्त्वपूर्ण दवाओं के माध्यम से सहायता उपलब्ध करा पाना भारतीय दवा क्षेत्र के लिये एक बड़ी उपलब्धि है।

    स्रोत: द हिंदू


    अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    भारत-USA आयात शुल्क विवाद

    प्रीलिम्स के लिये:

    विश्व व्यापार संगठन

    मेन्स के लिये:

    भारत-USA आयात शुल्क विवाद

    चर्चा में क्यों?

    भारत ने स्टील और एल्युमीनियम उत्पादों के डेरिवेटिव (Derivative) पर आयात शुल्क (Import Duties) बढ़ाने पर विश्व व्यापार संगठन (WTO) के सेफगार्ड मैकेनिज़्म (Safeguard Mechanism) के तहत अमेरिका के साथ मंत्रणा की है।

    प्रमुख बिंदु:

    • इस वर्ष (2020) जनवरी में अमेरिका ने घोषणा की थी कि स्टील और एल्युमीनियम के डेरिवेटिव टैरिफ वृद्धि के अधीन होंगे। इसके पश्चात् मार्च 2018 में घोषित टैरिफ वृद्धि को पहले के सेफगार्ड मीज़र्स (Safeguard Measures) के विस्तार के रूप में माना जा रहा है।
    • भारत अमेरिका के इन मीज़र्स को ‘जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ एंड ट्रेड, 1994’ (General Agreement on Tariffs and Trade 1994) और ‘एग्रीमेंट ऑन सेफगार्ड’ (Agreement on Safeguards) के तहत एक सेफगार्ड मीज़र्स मानता है। 
    • एग्रीमेंट ऑन सेफगार्ड के प्रावधान के अनुसार, एक WTO सदस्य देश जो एक सुरक्षा उपाय लागू करने का प्रस्ताव करता है, उसको अन्य प्रभावित सदस्य देशों के साथ परामर्श के लिये पर्याप्त अवसर प्रदान करना चाहिये।
    • हालांकि परामर्श/मंत्रणा विश्व व्यापार संगठन की विवाद निपटान प्रणाली के तहत नहीं आते हैं।
    • इस प्रकार भारत इस प्रकरण में अमेरिका से निर्यात प्रभावित होने की स्थिति में उचित व्यापार मुआवज़े का निर्धारण करने के उपायों की मांग कर रहा है। जिससे भारत अपने भुगतान संतुलन को ठीक कर सके।  
    • भारत अमेरिका से इस संबंध में अमेरिका से त्वरित प्रतिक्रिया की अपेक्षा कर रहा है जिससे वर्तमान वैश्विक मंदी की स्थिति में अर्थव्यवस्था की स्थिति सुधारने के पक्ष में सकारात्मक कार्रवाई कर सके।
    • ध्यातव्य है कि इससे पहले मार्च 2018 में, जब अमेरिका ने स्टील पर 25 प्रतिशत और एल्युमीनियम पर 10 प्रतिशत टैरिफ लगाया था तब भी भारत और अमेरिका के मध्य आयात शुल्क को लेकर विवाद की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। 

    विश्व व्यापार संगठन

    • WTO की स्थापना की भूमिका वर्ष 1944 में आयोजित ब्रेटनवुड्स सम्मेलन (Bretton Woods Conference) से जुड़ी है जिसने द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद वैश्विक वित्तीय प्रणाली की आधारशिला रखी। इसके आधार पर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) और विश्व बैंक (World Bank) की स्थापना की गई।
    • विश्व के सभी देशों को व्यापार के लिये एक मंच उपलब्ध कराने के उद्देश्य से द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद 1948 में बनाए गए गैट (General Agreement on Tarrifs & Trade-GATT) के स्थान पर 1 जनवरी, 1995 को WTO की स्थापना हुई थी।
    • WTO विश्व में व्यापार संबंधी अवरोधों को दूर कर वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देने वाला एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना मराकेश संधि के तहत की गई थी।
    • यह सामान्य परिषद (General Council) का काम भी देखती है, जो कि विभिन्न देशों के राजनयिकों से मिलकर बनती है और संस्था के प्रतिदिन के कामों को देखती है। इसमें होने वाले फैसलों को लागू कराने के लिये सभी सदस्य देशों के हस्ताक्षर ज़रूरी हैं।
    • वर्तमान में विश्व के अधिकतम देश इसके सदस्य हैं। सदस्य देशों का मंत्रिस्तरीय सम्मेलन इसके निर्णयों के लिये सर्वोच्च निकाय है, जिसकी बैठक प्रत्येक दो वर्षों में आयोजित की जाती है
    • 29 जुलाई, 2016 को अफगानिस्तान इसका 164वाँ सदस्य बना।
    • इसका मुख्यालय जेनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।

    स्रोत: बिजनेस स्टैण्डर्ड


    आंतरिक सुरक्षा

    साइबर अपराध के प्रति संवेदनशील स्वास्थ्य संगठन

    प्रीलिम्स के लिये 

    साइबर अपराध, इंटरपोल

    मेन्स के लिये 

    अपराध को रोकने में इंटरपोल की भूमिका

    चर्चा में क्यों?

    अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक पुलिस संगठन (The International Criminal Police Organisation-Interpol) ने सदस्य देशों को चेतावनी दी है कि साइबर अपराधी रैंसमवेयर का उपयोग करके COVID-19 के विरुद्ध लड़ रहे अस्पतालों और अन्य संस्थानों को नुकसान पहुँचा सकते हैं।

    प्रमुख बिंदु

    • भारत समेत 194 देशों को भेजे गए अलर्ट में इंटरपोल ने कहा है कि इससे पूर्व COVID-19 महामारी से लड़ रहे तमाम संगठन भी रैंसमवेयर के हमले का शिकार हो चुके हैं।
    • ध्यातव्य है कि इंटरपोल की साइबर क्राइम थ्रैट रिस्पॉन्स टीम (Cybercrime Threat Response Team) ने वायरस के विरुद्ध जंग लड़ रहे प्रमुख संगठनों और उनके बुनियादी ढाँचे पर रैंसमवेयर हमलों की संख्या में हो रही वृद्धि का पता लगाया था।
    • इंटरपोल के अनुसार, साइबर अपराधी अस्पतालों और चिकित्सा सेवाओं को डिजिटल रूप से बाधित करने के लिये रैंसमवेयर का प्रयोग कर रहे हैं और अस्पतालों को उनकी महत्त्वपूर्ण फाइलों और प्रणालियों तक पहुँचने से रोकते हैं ताकि इसके एवज़ में उन्हें कुछ राशि मिल सके।
    • मौजूदा समय में रैंसमवेयर मुख्य रूप से ई-मेल के माध्यम से फैलाए जा रहे हैं, जिनके अंतर्गत एक सरकारी संस्था का नाम लेकर कोरोनावायरस के बारे में जानकारी या सलाह देने का झूठा दावा किया जाता है, जो प्राप्तकर्त्ता को एक लिंक या अटैचमेंट पर क्लिक करने के लिये प्रोत्साहित करता है।
      • इंटरपोल के अनुसार, इन साइबर हमलों को रोकने के लिये रोकथाम और शमन प्रयास (Prevention and Mitigation Efforts) काफी महत्त्वपूर्ण हैं।

    रैंसमवेयर (Ransomware)

    रैंसमवेयर एक प्रकार का दुर्भावनापूर्ण सॉफ्टवेयर होता है जिसका उद्देश्य अधिक-से-अधिक धन अर्जित करना होता है। इसे इस प्रकार बनाया जाता है कि वह किसी भी कंप्यूटर की सभी फाइलों को इनक्रिप्ट (Encrypt) कर देता है। 

    कारण

    • चूँकि दुनिया भर के अस्पताल और चिकित्सा संगठन कोरोनावायरस से पीड़ित लोगों की देखभाल में लगे हुए हैं, जिसके कारण वे साइबर अपराध के प्रति काफी संवेदनशील हो गए हैं।
    • अपराधियों का मकसद अस्पताल को उनकी महत्त्वपूर्ण फाइलों और प्रणालियों तक पहुँचने से रोकना है, क्योंकि अस्पतालों को उनकी महत्त्वपूर्ण फाइलों और प्रणालियों से दूर करने से इस संकट की स्थिति में आवश्यक चिकित्सा प्रक्रिया में देरी होगी, जिससे अपराधियों को इसके बदले कुछ राशि प्राप्त हो सकेगी।
      • ध्यातव्य है कि इस दौरान प्रक्रिया में देरी होने के कारण किसी व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है।

    अपराध के पैटर्न में बदलाव

    • इसके अलावा इंटरपोल ने चेतावनी दी है कि महामारी के कारण अधिकांश लोग घर से काम कर रहे हैं, जिसके कारण अपराध के पैटर्न में बदलाव आया है।
      • लॉकe लॉकडाउन के कारण घरों में होने वाली चोरी में कमी देखने को मिली है। 
    • सोशल मीडिया और कई अन्य एप्स के माध्यम से ड्रग्स के व्यापार में भी काफी बढ़ोतरी हुई है।
    • राष्ट्रीय महिला आयोग (National Commission for Women-NCW) के आँकड़े दर्शाते हैं कि कोरोनावायरस के कारण लागू किये गए लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा और महिलाओं के विरुद्ध होने वाली हिंसा में काफी वृद्धि हुई है।

    अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक पुलिस संगठन 

    (The International Criminal Police Organisation-Interpol) 

    • अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक पुलिस संगठन (International Criminal Police Organization- Interpol) एक अंतर-सरकारी संगठन है जो 194 सदस्य देशों के पुलिस बलों के बीच समन्वय स्थापित करने में मदद करता है।
    • प्रत्येक सदस्य देश में इंटरपोल का नेशनल सेंट्रल ब्यूरो (NCB) होता है। यह उन देशों के राष्ट्रीय कानून प्रवर्तन को अन्य देशों और सामान्य सचिवालय से जोड़ता है।
      • केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation-CBI) को भारत के नेशनल सेंट्रल ब्यूरो (National Central Bureau) के रूप में नामित किया गया है।
    • सामान्य सचिवालय सदस्य देशों को कई प्रकार की विशेषज्ञता और सेवाएँ प्रदान करता है।
    • इसका मुख्यालय ल्यों, फ्राँस (Lyon, France) में है।

    स्रोत: द हिंदू 


    कृषि

    फसल कटाई का मौसम और COVID-19 लॉकडाउन

    प्रीलिम्स के लिये:

    गैर-काष्ठ वन उत्पाद, COVID-19, 

    मेन्स के लिये:

    COVID-19 का कृषि विपणन पर प्रभाव

    चर्चा में क्यों?

    COVID-19 के कारण भारत में लॉकडाउन से चावल का निर्यात तथा ओडिशा का गैर-काष्ठ वन उत्पाद (Non Timber Forest Products-NTFP) प्रभावित हुआ है।

    गैर-काष्ठ वन उत्पाद

    (Non Timber Forest Products):

    • ओडिशा के आदिवासी मार्च-जून महीने के दौरान NTFP को एकत्र करते हैं।
      • NTFP प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होने वाले ऐसे उत्पाद हैं जो एक विशेष मौसम पर निर्भर होते हैं। आदिवासी मार्च-जून महीने के दौरान कुल वार्षिक आय का 60-80% कमाते हैं।
    • गर्मी के मौसम में एकत्रित प्रमुख गैर-काष्ठ वन उत्पादों  में जंगली शहद, इमली, आम, तेंदू पत्ता, साल के पत्ते, महुआ के बीज, नीम के बीज, करंज के बीज, महुआ के फूल और तेजपत्ता इत्यादि शामिल हैं।
    • ओडिशा के NTFP का कुल बाज़ार 5000 करोड़ रुपए का है।
    • NTFP की बिक्री न होने से प्रभावित व्यक्ति:
      • NTFP से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ओडिशा में लगभग 10 मिलियन तथा पूरे देश में 275 मिलियन लोग जुड़े हैं।
    • सुझाव:
      • ओडिशा सरकार को वन धन विकास केंद्र योजना (Van Dhan Vikash Kendra scheme) के तहत संग्रह केंद्रों को तुरंत स्थापित और सुचारु रूप से संचालन करना चाहिये।
      • वन धन विकास केंद्रों का उद्देश्य, ‘लघु वन उत्पाद’ (Minor Forest Produce-MFP) के संग्रह में शामिल आदिवासियों के आर्थिक विकास को बढ़ावा देना चाहिये।
      • आदिवासी विकास सहकारी निगम ओडिशा (Tribal Development Co-operative Corporation of Odisha), जो आदिवासी उत्पादों के विपणन की सुविधा प्रदान करता है, को आदिवासियों से संबंधित मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिये।

    चावल के निर्यात में बाधा:

    • COVID-19 के मद्देनज़र तथा जहाज़ों के आवागमन न होने के कारण भारतीय व्यापारियों ने चावल का निर्यात रोक दिया है।
      • भारत में लॉकडाउन के कारण परिवहन सुविधा बाधित है।
      • मार्च-अप्रैल के दौरान भारत में लॉकडाउन के कारण बंदरगाहों पर लगभग 5  लाख टन चावल रखे गए हैं।
      • भारत के निर्यात में चार से पाँच गुना की गिरावट दर्ज की गई है।
      • भारतीय चावल निर्यात में बाधा के कारण थाईलैंड जैसे प्रतिद्वंद्वी देशों ने चावल के कीमतों में भारी वृद्धि की है।

    नोट:

    • भारत मुख्य रूप से बांग्लादेश, नेपाल, बेनिन और सेनेगल को गैर-बासमती चावल तथा ईरान, सऊदी अरब और इराक को प्रीमियम बासमती चावल निर्यात करता है।

    श्रम समस्या:

    • COVID-19 से निपटने हेतु भारत में 21 दिनों के लॉकडाउन के कारण मज़दूरों की भारी कमी से फसलों की कटाई प्रभावित हुई है।
    • COVID-19 से भयभीत होकर अधिकांश मज़दूर अपने गाँव लौट गए हैं।
    • किसानों को चिंता है कि मज़दूरों की कमी के कारण यांत्रिक हार्वेस्टर को खेतों तक पहुँचाना मुश्किल है।
    • उपलब्ध ट्रकों की संख्या कम होने के कारण किसान अपने उत्पाद को बाज़ार ले जाने में सक्षम नही है।

    स्रोत: द हिंदू


    विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

    कोरोनावायरस का जीनोम अनुक्रमण

    प्रीलिम्स के लिये:

    ग्लोबल इनिशिएटिव ऑन शेयरिंग ऑल इन्फ्लुएंज़ा डेटा, जीनोम अनुक्रमण, SARS-CoV-2

    मेन्स के लिये:

    SARS-CoV-2 से निपटने हेतु भारत द्वारा किये गए प्रयास और संबंधित मुद्दे

    चर्चा में क्यों?

    हाल ही में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research-CSIR) सहित सभी राष्ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशालाओं को कोरोनावायरस पर परीक्षण करने की अनुमति दे दी है। 

    प्रमुख बिंदु

    • भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research- ICMR) द्वारा अनुमति के पश्चात् ‘वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद’ की प्रयोगशालाओं के पास अब वायरस के नमूनों तक पहुँच होगी जिससे जीनोम अनुक्रमण किया जा सकेगा। 
    • 7 अप्रैल तक भारत कोरोनावायरस (SARS-CoV-2) के नौ जीनोम अनुक्रमों को ‘ग्लोबल इनिशिएटिव ऑन शेयरिंग ऑल इन्फ्लुएंज़ा डेटा’ (Global Initiative on Sharing All Influenza Data-GISAID) के साथ साझा कर चुका है। 

    ग्लोबल इनिशिएटिव ऑन शेयरिंग ऑल इन्फ्लुएंज़ा डेटा 

    Global Initiative on Sharing All Influenza Data (GISAID)

    • GISAID, विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) द्वारा विभिन्न देशों हेतु जीनोम संबंधी डेटा साझा करने के लिये वर्ष 2008 में शुरू किया गया एक सार्वजनिक मंच है। 
    • एकत्रित डेटा में इन्फ्लुएंज़ा वायरस अनुक्रम, उनसे संबंधित नैदानिक और महामारी संबंधी डेटा, भौगोलिक और साथ ही प्रजाति-विशेष डेटा भी शामिल है।
    • इस सार्वजनिक मंच द्वारा एकत्रित डेटा शोधकर्त्ताओं को वायरस के विकास, उसके प्रसार और अंततः महामारी बनने की संभावना को समझने में मदद प्रदान करता है।
    • गौरतलब है कि भारत द्वारा साझा किये गए ये सभी अनुक्रम पुणे स्थित ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी’ (National Institute of Virology) द्वारा तैयार किये गए हैं। 
    • अनुमति प्राप्त होने के पश्चात् वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के दो क्षेत्रीय केंद्रों मसलन- ‘सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी’ (Center for Cellular and Molecular Biology- CCMB) और ‘इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी’ (Institute of Genomics and Integrative Biology- IGIB) द्वारा भी इस वायरस का जीनोम अनुक्रमण किया जा रहा है। 

    अन्य देशों की प्रगति

    • मनुष्यों से पृथक किये गए कोरोनावायरस के 3,086 अनुक्रम अब तक 57 देशों द्वारा साझा किये जा चुके हैं जिसमें अमेरिका ने सबसे अधिक 621 अनुक्रम, इसके बाद यूनाइटेड किंगडम ने 350, बेल्जियम ने 253 और चीन ने 242 साझा किये हैं।

    जीनोम अनुक्रमण से लाभ

    • SARS-CoV-2 के जीनोम अनुक्रमण से यह समझने में सहायता प्राप्त होगी कि वायरस कहाँ से आया है इसके साथ ही भारत में इस वायरस के अलग-अलग उपभेदों और उसके प्रसार के तरीकों को समझने में भी आसानी होगी।
    • ध्यातव्य है कि भारत द्वारा किया जा रहा जीनोम अनुक्रमण वायरस के अध्ययन में मदद प्रदान करने के साथ ही टीकों और दवाओं के परीक्षण में भी उपयोगी साबित होगा।

    स्रोत- द हिंदू


    विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

    COVID-19 से निपटने में IITs का योगदान

    प्रीलिम्स के लिये:

    COVID-19

    मेन्स के लिये:

    COVID-19 से निपटने में IITs का योगदान

    चर्चा में क्यों?

    हाल ही में विभिन्न भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (Indian Institutes Of Technologies-IITs) ने COVID-19 से निपटने हेतु विभिन्न प्रकार की तकनीकें विकसित की हैं।

    प्रमुख बिंदु:

    • विभिन्न भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों ने वेंटिलेटर, परीक्षण किट, स्वास्थ्य कर्मियों के लिये व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (Personal Protective Equipment- PPE) से संबंधित तकनीक विकसित की हैं।
    • इन तकनीकों की लागत कम होने के साथ ही यह COVID-19 के प्रसार को रोकने में मील का पत्थर साबित होंगीं। 

    विभिन्न भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों का योगदान इस प्रकार है:

    • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-दिल्ली:
      • IIT दिल्ली के शोधकर्त्ताओं ने COVID-19 का पता लगाने के लिये परीक्षण किट विकसित की है। इससे COVID-19 की जाँच में आने वाला खर्च बहुत कम हो सकता है।
      • उल्लेखनीय है कि ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी’ (National Institute of Virology) पुणे द्वारा इस किट का परीक्षण किया जा रहा है।
    • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान- गुवाहाटी:
      • IIT गुवाहाटी ने फेस शील्ड (Face Shield) का प्रोटोटाइप विकसित किया है।

    फेस शील्ड (Face Shield):

    •  फेस शील्ड का उपयोग चेहरे को ढकने में किया जाता है। 
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) के दिशा-निर्देशों के अनुसार, डॉक्टर और दूसरे स्टॉफ इसे पहनकर COVID-19 पीड़ितों का इलाज कर सकेंगे। इसे व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (Personal Protective Equipment- PPE) के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

    Doctor

    • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान- कानपुर:
      • IIT कानपुर की इनक्यूबेटर कंपनी ‘नोका रोबोटिक्स’ (Nocca Robotics) ने एक सस्ते वेंटिलेटर का निर्माण किया है। इस कंपनी के इनोवेटर्स की टीम ने वेंटिलेटर का एक प्रोटोटाइप तैयार कर लिया है, जिसका परीक्षण किया जा रहा है। इस वेंटिलेटर की लागत करीब 70 हजार रुपए होगी, जबकि वर्तमान में बाज़ार में मौज़ूद वेंटिलेटर की कीमत लगभग 4 लाख रुपए है। 
    • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान- हैदराबाद:
      • IIT हैदराबाद के शोधकर्त्ताओं ने WHO के दिशा-निर्देशों के आधार पर एक फार्मूला विकसित किया है, जिससे बड़े पैमाने पर सैनिटाइज़र का उत्पादन किया जा सकता है। 
      • IIT हैदराबाद ने वेंटिलेटर का विकल्प भी तैयार किया है। शोधकर्त्ताओं ने एक बैग वाल्व मास्क (Bag Valve Masks)  विकसित किया है, जो आपातकालीन स्थिति में रोगियों हेतु सहायक साबित हो सकता है। 

    इंजीनियरिंग संस्थानों का सुझाव:

    • प्रमुख इंजीनियरिंग संस्थानों ने प्रोटोटाइप (Prototypes) के उत्पादन को बढ़ाने और लॉकडाउन के कारण कच्चे माल की खरीद में आने वाली कठिनाइयों को कम करने हेतु सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के साथ साझेदारी करने में सरकार की सहायता मांगी है। 

    आगे की राह:

    • COVID-19 से बचाव की तैयारी न केवल सरकार का उत्तरदायित्व है बल्कि सभी संस्थानों, संगठनों, निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों, यहाँ तक ​​कि सभी व्यक्तियों को आकस्मिक और अग्रिम तैयारी की योजनाएँ बनाना चाहिये।

    स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


    भारतीय अर्थव्यवस्था

    स्मार्ट सिटीज़ कमांड सेंटर तथा COVID- 19

    प्रीलिम्स के लिये:

    स्मार्ट सिटी मिशन 

    मेन्स के लिये:

    COVID- 19 महामारी के प्रबंधन में एकीकृत कमान और नियंत्रण केंद्र (ICCC) की भूमिका 

    चर्चा में क्यों?

    नगर पालिकाओं द्वारा COVID- 19 महामारी के प्रबंधन की दिशा में ‘स्मार्ट सिटी मिशन’ (Smart Cities Mission) के तहत स्थापित ‘एकीकृत कमान और नियंत्रण केंद्र’ (Integrated Command and Control Centres- ICCC) को 'वॉर रूम' (War Room) के रूप में उपयोग किया जा रहा है। 

    मुख्य बिंदु:

    • स्मार्ट सिटी मिशन के तहत स्थापित ICCC का यातायात प्रबंधन, निगरानी, उपयोगी कार्यों तथा शिकायत निवारण के समन्वय केंद्र के रूप में उपयोग किया जाता है।
    • ICCC का उपयोग COVID- 19 महामारी से निपटने के लिये सरकार की अनुक्रिया (Government’s Response) प्रणाली के एक भाग के रूप में किया जा रहा है।

    ICCC तथा COVID- 19 प्रबंधन:

    • राज्य सरकारों द्वारा ICCC का उपयोग COVID-19 महामारी के प्रबंधन संबंधी विभिन्न कार्यों में किया गया, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
      • COVID-19 के खिलाफ कर्मचारियों को वर्चुअल ट्रेनिंग देने। 
      • सार्वजनिक स्थानों की CCTV निगरानी, COVID- 19 के पॉज़िटिव मामलों की GIS मैपिंग तथा हेल्थकेयर वर्कर्स का GPS ट्रैकिंग करने में उपयोग करना। 
      • नगर के विभिन्न क्षेत्रों में वायरस के संभावित क्षेत्रों का विश्लेषण। 
      • डॉक्टरों एवं स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों को आभासी प्रशिक्षण में उपयोग करना। 
      • वीडियोकॉफ्रेंसिंग, टेली-काउंसलिंग, टेली-मेडिसिन में। 
      • चिकित्सा सेवाओं की वास्तविक समय पर ट्रैकिंग करने में।
      • हीट-मैपिंग तकनीकों का उपयोग करके संक्रमण रोधी योजना विकसित करना।
      • भू-स्थानिक प्रणालियों का उपयोग करके COVID-19 के मामलों की मैपिंग करना।
      • एकीकृत डेटा डैशबोर्ड तैयार करना तथा संक्रमित लोगों के आसपास के क्षेत्रों की निगरानी करके बफर ज़ोन स्थापित करना।

    जनता के लिये सूचना उपलब्धता:

    • ICCC के माध्यम से लोगों को COVID- 19 के मामलों की अपडेट सूचना प्रदान करने के लिये डैशबोर्ड के माध्यम से प्रभावित क्षेत्रों के स्थानिक मानचित्रण सहित COVID- 19 मामलों की जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी।
    • दैनिक रिपोर्ट किये गए मामलों को तिथि, क्षेत्र, अस्पताल, आयु और लिंग के अनुसार वर्गीकृत करके पोर्टल पर अपडेट करने में ICCC का उपयोग किया जाएगा।

    स्रोत: द हिंदू


    विविध

    Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 08 अप्रैल, 2020

    धन शोधन (रोकथाम) मानदंड 

    वित्त मंत्रालय ने सभी बैंकों में निष्क्रिय खातों को क्रियाशील बनाने के उद्देश्य से धन शोधन (रोकथाम) मानदंडों को कुछ समय के लिये निरस्त कर दिया है ताकि सरकार द्वारा घोषित COVID-19 राहत पैकेज के तहत नकद हस्तांतरण लाभार्थियों तक पहुँचा सके। बैंकों को दी गई विज्ञप्ति में वित्तीय सेवा विभाग ने कहा है कि प्रधानमंत्री जन धन योजना के उन खातों, जो विभिन्न कारणों से निष्क्रिय हो गए हैं, के लिये नियमों में संशोधन किया गया है, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (PM-GKY) के लाभार्थियों को लाभ प्राप्त करने में किसी भी प्रकार कि कठिनाई का सामना न करना पड़े। उल्लेखनीय है कि हाल ही में सरकार ने PM-GKY के तहत सरकार ने समाज के गरीब और कमज़ोर वर्ग की महिलाओं हेतु तीन महीने के लिये प्रति माह 500 रुपए उनके खाते में स्थानांतरित करने की घोषणा की थी। सरकार की इस योजना का मुख्य उद्देश्य कोरोनावायरस (COVID-19) के मद्देनज़र लागू किये गए 21-दिवसीय लॉकडाउन के दौरान आजीविका के साधन खो बैठीं गरीब महिलाओं की मदद करना है। विज्ञप्ति के अनुसार, ‘सभी बैंक यह सुनिश्चित करेंगे कि लाभार्थियों को खाते की निष्क्रियता के आधार पर किसी भी कठिनाई का सामना न करना पड़े और अतिरिक्त दस्तावेज़ की आवश्यकता या समस्या के बिना उन्हें सरकार द्वारा हस्तांतरित धन राशि प्राप्त हो सके।’ 

    जापान में आपातकाल घोषित

    हाल ही में विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जापान ने कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी का मुकाबला करने के लिये आपातकाल की घोषणा की है। महामारी के कारण घोषित किया गया आपातकाल 6 मई, 2020 तक लागू रहेगा। आधिकारिक सूचना के अनुसार, आरंभ में आपातकाल 6 प्रांतों में लागू किया जाएगा, जिनमें शामिल हैं- कानागावा, चिबा, साईतामा, ओसाका, फुकुओका और ह्योगो। ध्यातव्य है कि जापान अपनी अधिक आयु वाली आबादी के लिये अधिक जाना जाता है, किंतु जापान में कोरोनावायरस से संक्रमित अधिकांश लोग 20-30 वर्ष आयु वर्ग से हैं। विश्लेषकों के अनुसार, इसका मुख्य कारण यह है कि क्योंकि सरकार महामारी के शुरूआती दौर में प्रमुख शहरों में सामाजिक एकत्रीकरण को रोकने में विफल रही थी। अनुमान के अनुसार, लॉकडाउन होने के कारण दूसरी तिमाही में जापान की अर्थव्यवस्था में 17 प्रतिशत की कमी आ सकती है। जापान में कोरोनावायरस से संक्रमण के 4000 से अधिक मामले सामने आए हैं और 81 लोगों की मृत्यु हुई है। वहीं दूसरी और वैश्विक स्तर पर संक्रमण का आँकड़ा 14 लाख के भी पार पहुँच गया है।

    5T योजना

    हाल ही में दिल्ली सरकार ने प्रदेश में कोरोनावायरस (COVID-19) की महामारी का मुकाबला करने के के लिये 5T योजना की घोषणा की है। 5T योजना में परीक्षण (Testing), ट्रेसिंग (Tracing), टीमवर्क (Team Work), उपचार (Treatment) और ट्रैकिंग (Tracking) शामिल हैं। परीक्षण (Testing) कार्यक्रम के तहत दिल्ली के हॉटस्पॉट क्षेत्रों में 1 लाख परीक्षण किये जाएंगे। दिल्ली के वर्तमान हॉटस्पॉट क्षेत्रों में दिलशाद गार्डन और निज़ामुद्दीन शामिल हैं। ट्रेसिंग (Tracing) कार्यक्रम के तहत सरकार को उन लोगों की पहचान करेगी जो COVID-19 से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए हैं। पहचाने गए व्यक्तियों को अलग कर दिया जाएगा। उपचार (Treatment) कार्यक्रम के तहत लगभग 2,950 बिस्तर विशेष रूप से कोरोनावायरस संक्रमित रोगियों हेतु आरक्षित किये गए हैं। इसके अलावा 12,000 से अधिक होटल के कमरों को भी आरक्षित किया जाएगा। टीमवर्क (Team Work) के तहत दिल्ली सरकार, केंद्र सरकार के साथ मिलकर कार्य करेगी। साथ ही इस कार्यक्रम के मुख्य सदस्य प्रौद्योगिकी पेशेवर, डॉक्टर और नर्स हैं। ट्रैकिंग (Tracking) कार्यक्रम के तहत सरकार 5T कार्यक्रम को लागू करने में उठाए जा रहे कदम की सक्रिय रूप से निगरानी करेगी।

    अनुराग श्रीवास्तव 

    भारतीय विदेश सेवा (IFS) के अधिकारी अनुराग श्रीवास्तव को विदेश मंत्रालय का नया प्रवक्ता नियुक्त किया गया है। अनुराग श्रीवास्तव, रवीश कुमार का स्थान लेंगे, जिन्हें राजदूत संबंधी कार्य सौंपा गया है। ध्यातव्य है कि अनुराग 1999 बैच के IFS अधिकारी हैं और वे इससे पूर्व इथोपिया और अफ्रीकी यूनियन के राजदूत के रूप में कार्य कर चुके हैं। इथोपिया में राजदूत के रूप में नियुक्त किये जाने से पूर्व श्रीलंका में भारतीय हाई कमीशन में राजनीतिक विंग के प्रमुख थे। वे श्रीलंका में भारत के सहयोग से चलाई जा रही विकास परियोजनाओं की निगरानी का कार्य कर रहे थे। अनुराग श्रीवास्तव संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई मिशन में भी अपनी सेवाएँ दे चुके हैं। इसके अलावा अनुराग दिल्ली स्थित विदेश मंत्रालय में भी अलग-अलग पदों पर कार्य कर चुके हैं, जिनमें पाकिस्तान डिवीज़न, अफगानिस्तान डिवीज़न, ईरान डिवीज़न और एक्सटर्नल पब्लिसिटी डिवीज़न शामिल हैं।


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