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डेली न्यूज़

  • 05 May, 2020
  • 51 min read
शासन व्यवस्था

COVID-19 के ‘गणितीय और अभिकलनात्मक पहलुओं का अध्ययन

प्रीलिम्स के लिये

विज्ञान और इंजीनियरी अनुसंधान बोर्ड, मैट्रिक्स योजना

मेन्स के लिये

COVID-19 से उत्पन्न चुनौतियों के नियंत्रण में विज्ञान का प्रयोग  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘विज्ञान और इंजीनियरी अनुसंधान बोर्ड’ (Science and Engineering Research Board- SERB) ने COVID-19 महामारी को नियंत्रित करने हेतु इसके ‘गणितीय मॉडल और अभिकलनात्मक पहलुओं’ के अध्ययन के लिये  ‘मैट्रिक्स योजना (MATRICS Scheme) के तहत 11 परियोजनाओं (Projects) की मंज़ूरी दी है।

मुख्य बिंदु: 

  • SERB द्वारा इस योजना के तहत मंज़ूर किये गए अधिकांश अध्ययनों का उद्देश्य COVID-19 से जुड़े विभिन्न पहलुओं के संदर्भ में गणितीय मॉडल तैयार करना है।
  • इसमें जनसंख्या की विविधता, गैर-लक्षणों वाली संक्रमित आबादी की भूमिका, प्रवास और क्वारंटीन (Quarantine), सोशल डिसटैंसिंग और लॉकडाउन का प्रभाव, सामाजिक-आर्थिक कारक आदि शामिल हैं।
  • इन अध्ययनों का प्राथमिक लक्ष्य भारतीय परिस्थितियों का आकलन कर वर्तमान परिस्थितियों में COVID-19 के विषाणु की संक्रामकता की तीव्रता/मात्रा का एक गुणात्मक संकेतक प्रदान करना है।       
  • इस अध्ययन में COVID-19 से जुड़े विभिन्न पहलुओं के अध्ययन के लिये ‘सर’ SIR (Susceptible-Infected-Recovered) मॉडल के सिद्धांतों का प्रयोग किया गया है।
    • ‘SIR’ मॉडल महामारी विज्ञान में एक समूह में संक्रामक रोग के प्रसार के अध्ययन हेतु प्रयोग किया जाने वाला ‘कंपार्टमेंटल मॉडल’ (Compartmental Model) का एक उदाहरण है।     
    • जहाँ S से आशय ‘Susceptible’ अर्थात अतिसंवेदनशील व्यक्तियों की संख्या, ‘I' से आशय ‘Infected’ अर्थात संक्रमित व्यक्तियों की संख्या और ‘R’ (Recovered) ठीक हो चुके लोगों की संख्या को दर्शाता है।
  • SERB को ‘मैट्रिक्स योजना’ के तहत अध्ययन के लिये देश के अनेक संस्थानों से बहुत से प्रस्ताव प्राप्त हुए थे, जिनमें से  SERB द्वारा 11 को मंज़ूरी दे दी गई है।
  • इनमें से 7 देश के विभिन्न IITs से व 4 अन्य अलग-अलग प्रतिष्ठित संस्थानों से संबंधित हैं।    

उद्देश्य: 

  • इन अध्ययनों का उद्देश्य संक्रमित व्यक्ति के संपर्क की जानकारी के आधार पर अधिकतम संभावित संक्रमित लोगों या ‘इंफेक्शन ट्री’ (Infection Tree) की पहचान कर प्रशासन के प्रयासों में सहयोग प्रदान करना है।  

लाभ: 

  • इस अध्ययन के तहत एक प्राचलिक अनुमान प्रक्रिया’ (Parametric Prediction Process) के माध्यम से COVID-19 के प्रसार और इनकी रोकथाम हेतु अपनाए गए प्रयासों के प्रभाव की समीक्षा की जाएगी।
  • साथ ही इस अध्ययन के आधार पर एक सॉफ्टवेयर तैयार किया जाएगा, जिसके माध्यम से कई विषाणुओं के डीएनए (DeoxyriboNucleic Acid- DNA) के पैटर्न का अध्ययन कर COVID-19 के संभावित उपचार की खोज की जा सकेगी।
  •  ‘मैट्रिक्स योजना’ के तहत इन अध्ययनों के माध्यम से COVID-19 के प्रसार और उसके नियंत्रण के लिये आवश्यक दिशा-निर्देशों के निर्धारण में सहायता प्राप्त होगी।

‘विज्ञान और  इंजीनियरी अनुसंधान बोर्ड’

(Science and Engineering Research Board- SERB): 

  • विज्ञान और  इंजीनियरी अनुसंधान बोर्ड (SERB) भारत सरकार के ‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय’ के तहत एक संविधिक निकाय है।
  • SERB की स्थापना ‘विज्ञान और  इंजीनियरी अनुसंधान बोर्ड अधिनियम, 2008 (the Science and Engineering Research Board Act, 2008) के तहत की गई थी।
  • भारत सरकार के ‘विज्ञान और प्रोद्योगिकी विभाग’ के सचिव इसके पदेन अध्यक्ष होते हैं।
  • SERB का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।   
  • SERB विज्ञान के उभरते क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अनुसंधानों को प्रोत्साहन देने, योजना बनाने और वित्तीय सहायता प्रदान करने का कार्य करता है। 

SERB द्वारा संचालित कुछ प्रमुख शोध कार्यक्रम व योजनाएँ:   

  • रामानुजन फेलोशिप (Ramanujan Fellowship)
  • जे.सी. बोस नेशनल फेलोशिप (J.C. Bose National Fellowship) 
  • स्टार्टअप रिसर्च ग्रांट (Start-up Research Grant- SRG) 
  • एसईआरबी महिला उत्कृष्टता पुरस्कार (SERB Women Excellence Award)

स्रोत:  पीआईबी


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

NAM संपर्क समूह शिखर सम्मेलन

प्रीलिम्स के लिये:

गुटनिरपेक्ष आंदोलन

मेन्स के लिये:

गुटनिरपेक्ष आंदोलन की वर्तमान में प्रासंगिकता 

चर्चा में क्यों?

हाल में COVID-19 महामारी के प्रबंधन में सहयोग की दिशा में ‘गुट निरपेक्ष आंदोलन’ (Non-Aligned Movement- NAM) समूह द्वारा 'NAM संपर्क समूह शिखर सम्मेलन' (NAM Contact Group Summit- NAM CGS) का आयोजन किया गया।

मुख्य बिंदु:

  • इस ‘आभासी सम्मेलन’ की मेज़बानी अज़रबैजान द्वारा की गई तथा सम्मेलन में 30 से अधिक राष्ट्राध्यक्षों और अन्य नेताओं ने शिखर सम्मेलन में भाग लिया।
  • भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वर्ष 2014 में सत्ता संभालने के बाद पहली बार ‘गुट निरपेक्ष आंदोलन’ को संबोधित किया गया।
  • वर्ष 2016 और वर्ष 2019 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने NAM के शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लिया था। वे पहले ऐसे प्रधानमंत्री है जिन्होंने NAM के शिखर सम्मेलनों में भाग नहीं लिया था।
  • भारतीय प्रधानमंत्री ने सम्मेलन में 'आतंकवाद' और 'फेक न्यूज' के मुद्दों को उठाया तथा इन दोनों मुद्दों को 'घातक वायरस' कहा।

सम्मेलन में लिये गए महत्त्वपूर्ण निर्णय:

  • शिखर सम्मेलन में COVID-19 महामारी के खिलाफ लड़ाई में अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता के महत्त्व को रेखांकित करते हुए एक घोषणा को अपनाया। सदस्य देशों की आवश्यकताओं की पहचान करने के लिये एक 'टास्क फोर्स' बनाने की घोषणा की गई। 
    • यह टास्क फोर्स COVID-19 महामारी के प्रबंधन की दिशा में एक ‘कॉमन डेटाबेस’ को स्थापित करेगा ताकि सदस्य देशों द्वारा महामारी से निपटने में महसूस की जाने वाली आवश्यकताओं की पहचान की जा सके।

गुटनिरपेक्ष आंदोलन:

पृष्ठभूमि:

  • गुटनिरपेक्ष आंदोलन की शुरुआत यूगोस्लाविया के जोसेफ ब्राॅश टीटो, भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और मिस्र के गमाल अब्दुल नासिर की दोस्ती से मानी जाती है। इन तीनों देशों द्वारा वर्ष 1956 में एक सफल बैठक आयोजित की गई। इंडोनेशिया के राष्ट्रपति  सुकर्णों और घाना के प्रधानमंत्री वामे एनक्रूमा द्वारा इस बैठक को ज़ोरदार समर्थन दिया गया। ये पाँच नेता गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक नेता थे। 
  • पहला गटुनिरपेक्ष सम्मेलन सन् 1961 में बेलग्रेड में आयोजित किया गया था। पहले गुटनिरपेक्ष-सम्मेलन में 25 सदस्य-देश शामिल हुए। समय गुजरने के साथ गुटनिरपेक्ष आंदोलन की सदस्य संख्या बढ़ती गई। जिसमें वर्तमान में 120 सदस्य देश, 17 पर्यवेक्षक देश तथा 10 पर्यवेक्षक संगठन शामिल हैं। 

स्थापना के उद्देश्य:

  • पाँचों संस्थापक देशों के बीच सहयोग स्थापित करना;
  • शीत युद्ध का प्रसार और इसके बढ़ते हुए दायरे से अलग रहना;
  • अंतर्राष्ट्रीय फलक पर बहुत से नव-स्वतंत्र अफ्रीकी देशों का नाटकीय उदय तथा 1960 तक संयुक्त राष्ट्र संघ में 16 नवीन अफ्रीकी देशों का बतौर सदस्य शामिल होना।

 शीतयुद्ध काल में गुटनिरपेक्ष की नीति और भारत के हित:

  • गुटनिरपेक्षता के कारण भारत ऐसे अंतर्राष्ट्रीय फैसले ले सका जिससे उसका हित सधता हो न कि महाशक्तियों और उनके खेमे के देशों का।
  • अगर भारत को महससू हो कि महाशक्तियों का कोई भी खेमा उसकी अनदेखी कर रहा है या अनुचित दबाव डाल रहा है तो वह दूसरी महाशक्ति की तरफ जा सकता था।

NAM नीति की आलोचना:

  • भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति 'सिद्धांतविहीन’ है क्योंकि भारत अपने राष्ट्रीय हितों को साधने के नाम पर प्राय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर कोई सुनिश्चित पक्ष लेने से बचता रहा है।
  • भारत के व्यवहार में स्थिरता नहीं है और कई बार भारत की स्थिति विरोधाभासी रही है। भारत ने स्वयं वर्ष 1971 में सोवियत संघ के साथ आपसी मित्रता की संधि पर हस्ताक्षर किये। जिसे कई देशों ने भारत का सोवियत खेमे में शामिल होना माना।

NAM 2.0:

  • NAM 2.0, 21 वीं सदी में भारत की विदेशी नीति के उन मूल सिद्धांतों की पहचान करती है जो देश को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता और मूल्य प्रणाली को संरक्षित करते हुए विश्व मंच पर अग्रणी खिलाड़ी बनाती है।

NAM की वर्तमान में प्रासंगिकता:

  • गुटनिरपेक्षता का आशय है कि गरीब और विकासशील देशों को किसी महाशक्ति का पिछलग्गू बनने की ज़रूरत नहीं है। ये देश अपनी स्वतंत्र विदेश नीति अपना सकते हैं। अपने आप में ये विचार बुनियादी महत्त्व के हैं और शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद भी प्रासंगिक हैं। 

स्रोत: इंडियन एक्स्प्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

एक-आयामी द्रव सिमुलेशन कोड

प्रीलिम्स के लिये:

भारतीय भू-चुंबकत्त्व संस्थान, पृथ्वी के चुंबकीयमंडल क्षेत्र, पृथ्वी के चुंबकीयमंडल क्षेत्र का निर्माण

मेन्स के लिये:

पृथ्वी के चुंबकीयमंडल क्षेत्र में विद्युत क्षेत्र की संरचना से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय भू-चुंबकत्त्व संस्थान (Indian Institute of Geomagnetism-IIG) के शोधकर्त्ताओं ने ‘एक-आयामी द्रव सिमुलेशन कोड’ (One Dimensional Fluid Simulation Code) विकसित किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • यह शोध कार्य ‘फिज़िक्स ऑफ़ प्लाज़्माज़’ (Physics of Plasmas) पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
  • यह सिमुलेशन कोड पृथ्वी के चुंबकीयमंडल में विद्युत क्षेत्र की संरचना तथा उसकी बनावट का अध्ययन करने में मदद प्रदान करेगा।  
  • दरअसल पृथ्वी का चुंबकीयमंडल एक ऐसा विशाल क्षेत्र है, जिससे सीमित संख्या में उपग्रह गुजरते हैं। परिणामस्वरूप इस क्षेत्र का अवलोकन सीमित तथा अलग-अलग है।
  • गौरतलब है कि शोधकर्त्ताओं द्वारा विकसित इस नए सिमुलेशन कोड की मदद से उपग्रह के चारों ओर प्लाज़्मा के निर्मित होने के पीछे के विज्ञान को अच्छी तरह से समझा जा सकता है। 
  • जब उपग्रह किसी एक पर्यवेक्षण क्षेत्र से दूसरे में प्रवेश करते  हैं, तो इस प्रक्रिया के दौरान एक ऐसा विशाल अज्ञात क्षेत्र निर्मित होता है जिसका पर्यवेक्षण संभव नहीं होता है।
  • इस अज्ञात क्षेत्र में प्लाज़्मा संबंधी प्रक्रियाओं और उनका संरचना विज्ञान तथा स्थान एवं समय के साथ उनमें आने वाले बदलावों को आदर्श रूप से केवल कंप्यूटर सिमुलेशन के माध्यम से समझा जा सकता है।
  • यह अध्ययन भविष्य में अंतरिक्ष अभियानों की योजना के लिये उपयोगी हो सकता है।
  • यह अध्ययन निरंतर बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं के मद्देनज़र ‘सटीक व नियंत्रित फ्यूज़न प्रयोगशालाओं’ में भी मददगार साबित हो सकता है।

पृथ्वी के चुंबकीयमंडल क्षेत्र का निर्माण:

  • पृथ्वी के चारों ओर अंतरिक्ष में मौजूद प्लाज़्मा के जमाव का मुख्य स्रोत सूर्य है। सूर्य से उत्सर्जित होने वाला प्लाज़्मा सौर पवन (Solar Wind) के रूप में पृथ्वी की ओर गति करता है।
  • इस प्लाज़्मा की गति 300-1500 किमी/सेकंड के बीच होती है, जो अपने साथ सौर चुंबकीय क्षेत्र (Solar Magnetic Field) भी लाता है। इस सौर चुंबकीय क्षेत्र को अंतर-ग्रह चुंबकीय क्षेत्र या ‘इंटरप्लेनेटरी मैग्नेटिक फील्ड’ (Interplanetary Magnetic Field-IMF) कहा जाता है।
  • पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र तथा IMF की अंतर्क्रिया की वज़ह से पृथ्वी के चुंबकीयमंडल क्षेत्र का निर्माण होता है।

Solar-&-wind

पृथ्वी के चुंबकीयमंडल की संरचना:

  • बो शॉक (Bow shock):
    • पृथ्वी का चुंबकीयमंडल क्षेत्र सौर पवन से टकराने के कारण ‘बो शॉक’ का निर्माण होता है।
  • मैग्नेटोपॉज़ (Magnetopause): 
    • यह पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र और सौर पवन के बीच की सीमा है।
  • मैग्नेटोसिएथ (Magnetosheath):
    • यह पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र और मैग्नेटोपॉज के बीच की सीमा है।
  • नार्थर्न टेल लोब (Northern tail lobe):
    • नार्थर्न टेल लोब में चुंबकीय क्षेत्र की रेखाएँ पृथ्वी की ओर होती है।
  • साउथर्न टेल लोब (Southern tail lobe):
    • साउथर्न टेल लोब में चुंबकीय क्षेत्र की रेखाएँ पृथ्वी से दूर होती हैं।
  • प्लाज़्मास्फेयर (Plasmasphere):
    • चुंबकीयमंडल के अंदर का वह क्षेत्र जो आयनमंडल से प्रवाहित होने वाली  प्लाज़्मा को अवशोषित करता है।

भारतीय भू-चुंबकत्त्व संस्थान

(Indian Institute of Geomagnetism-IIG):

  • भारतीय भू-चुंबकत्त्व संस्थान भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा स्थापित एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1971 में की गई थी और इसका मुख्यालय मुंबई (महाराष्ट्र) में स्थित है।
  • IIG का उद्देश्य भू-चुंबकत्व के क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण अनुसंधान करना और वैश्विक स्तर पर भारत को एक मानक ज्ञान संसाधन केंद्र के रूप में स्थापित करना है।
  • IIG जियोमैग्नेटिज़्म और संबद्ध क्षेत्रों जैसे- सॉलिड अर्थ जियोमैग्नेटिज़्म/जियोफिज़िक्स, मैग्नेटोस्फीयर, स्पेस तथा एटमॉस्फेरिक साइंसेज़ आदि में बुनियादी अनुसंधानों का आयोजन करता है।

स्रोत: पीआईबी


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

COVID-19 महामारी और स्वाइन फ्लू

प्रीलिम्स के लिये:

स्वाइन फ्लू, एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम, इन्फ्लुएंज़ा और COVID-19 में समानता

मेन्स के लिये:

एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम

चर्चा में क्यों?

'राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र' (National Centre for Disease Control- NCDC) के आँकडों के अनुसार, COVID-19 महामारी के अधिकांश मामले उन राज्यों में देखने को मिले हैं जिनमें स्वाइन फ्लू (Swine Flu) या ‘इन्फ्लुएंज़ा’ (Influenza) के मामलों की दर भी पिछले कुछ वर्षों में उच्च रही है।

मुख्य बिंदु:  

  • ये आँकड़ें ‘एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम' (Integrated Disease Surveillance Programe- IDSP) के भाग के रूप में एकत्रित किये गए हैं। 
  • COVID-19 महामारी के लगभग 70% मामले पाँच राज्यों - महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, और तमिलनाडु से संबंधित हैं।

अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य:

  • वर्ष 2015 के बाद से स्वाइन फ्लू या मौसमी इन्फ्लूएंज़ा (Seasonal Influenza- H1N1) के अधिकतर मामले भी इन राज्यों में ही देखने को मिले हैं। 
  • वर्ष 2020 में स्वाइन फ्लू के 1,1132 मामले दर्ज किये गए हैं। हालाँकि 23 फरवरी के बाद के कोई सार्वजनिक रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं हैं। 

Viral-Connection

H1N1 और COVID-19 में समानता:

Disease

  • H1N1 और COVID-19 दोनों रोगों के वायरस गैर-मानव अर्थात जानवरों या पक्षियों को एक ‘मेज़बान’ (Host) के रूप में रूप में उपयोग करते हैं ।
  • दोनों फेफड़ों को प्रभावित करते हैं तथा फुफ्फुसीय संक्रमण का कारण बनते हैं, यद्यपि इनके फेफड़ों को प्रभावित करने की दर भिन्न-भिन्न होती है।
  • दोनों का प्रसार संपर्क या संदूषित फोमाइट (Fomite) के माध्यम से होता है।
  • संदूषित फोमाइट ऐसी वस्तुएँ या सामग्री होती हैं जिनसे संक्रमण की संभावना है, जैसे कपड़े, बर्तन और फर्नीचर आदि।

COVID- 19 और इन्फ्लुएंज़ा वायरस में अंतर:

  • COVID- 19 के वायरस की तुलना में इन्फ्लुएंज़ा वायरस की 'माध्य ऊष्मायन अवधि' (संक्रमण से लक्षणों के प्रकट होने तक का समय) और 'शृंखला अंतराल' (क्रमिक मामलों के बीच का समय) छोटा होता है। अर्थात इन्फ्लूएंज़ा का प्रसार, COVID-19 महामारी की तुलना में तेज़ी से होता है।
  • स्वाइन फ्लू संक्रमण के मामले में मृत्यु दर, COVID-19 महामारी की तुलना में उच्च होती है। स्वाइन फ्लू या इन्फ्लुएंज़ा न केवल बच्चों अपितु युवा लोगों को बहुत अधिक प्रभावित करता है जबकि COVID-19 महामारी से मुख्यत: 60 वर्ष से अधिक उम्र के बुजुर्ग प्रभावित होते हैं। जबकि बच्चों पर COVID-19 का नगण्य प्रभाव देखा गया है।

अध्ययन के निहितार्थ:

  • यह संभव है कि इन राज्यों में भविष्य में Sars-CoV2 वायरस, H1N1का स्थान ले सकता है।
    • SARS-CoV-2 उस वायरस का नाम है जिसके कारण कोई व्यक्ति COVID-19 से प्रभावित होता है।
  • इन्फ्लूएंज़ा का चरम प्रकोप उत्तर भारत में गर्मियों के महीनों में जबकि दक्षिणी और पश्चिमी भारत में सर्दियों में देखने को मिलता है। अत: Sars-CoV2 वायरस अभी भी संक्रमण के चरण में है तथा भविष्य में इसकी चरम स्थिति देखने को मिल सकती है।
  • उत्तर प्रदेश और बिहार भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्यों में से हैं तथा इन राज्यों की एक बड़ी जनसंख्या प्रवासियों के रूप में महाराष्ट्र, गुजरात जैसे राज्यों में रहती है, अत: ऐसी संभावना है कि COVID- 19 महामारी का प्रसार उच्च जनसंख्या वाले राज्यों में हो सकता है। 

एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (IDSP):

  • एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम विश्व बैंक के सहयोग से भारत सरकार द्वारा वर्ष 2004 में प्रारंभ किया गया है। 
  • यह स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Affairs) की एक पहल है। 
  • निगरानी प्रक्रिया में रोग कर आँकडों को तीन निर्दिष्ट किये गए रिपोर्टिंग प्रारूप के अनुसार एकत्रित किया जाता है। अर्थात् 'S' (संदिग्ध), 'P' (अनुमानित) और 'L' (प्रयोगशाला में पुष्टि किये गए)।

IDSP के उद्देश्य:

  • रोगों की प्रवृत्ति पर नजर रखने हेतु महामारी प्रवण रोगों के लिये विकेंद्रीकृत, सूचना प्रौद्योगिकी आधारित रोग निगरानी प्रणाली को मज़बूत करना तथा 'प्रशिक्षित रैपिड रिस्पांस टीम' के माध्यम से शुरुआती चरण में प्रकोपों ​​का पता लगाना एवं प्रतिक्रिया करना।

कार्यक्रम के घटक: 

  • केंद्र, राज्य एवं ज़िला स्तर पर निगरानी इकाइयों की स्थापना के माध्यम से रोग निगरानी गतिविधियों का एकीकरण एवं विकेंद्रीकरण करना। 
  • मानव संसाधन विकास हेतु रोग निगरानी के सिद्धांतों पर राज्य एवं ज़िला निगरानी अधिकारियों, रैपिड रिस्पांस टीम एवं अन्य मेडिकल तथा पैरामेडिकल स्टाफ का प्रशिक्षण करवाना। 
  • आँकड़ों के संग्रह, एकत्रीकरण, संकलन, विश्लेषण और प्रसार के लिये सूचना व संचार तकनीक का उपयोग करना। 
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं को मज़बूत बनाना। 
  • ज़ूनोटिक (Zoonotic) रोगों के लिये अंतर क्षेत्रीय समन्वय स्थापित करना।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

राज्य की अर्थव्यवस्था में शराब की भूमिका

प्रीलिम्स के लिये

राज्य के राजस्व स्रोत

मेन्स के लिये

कर राजस्व एकत्रीकरण की चुनौतियाँ और समाधान

चर्चा में क्यों?

दिल्ली सरकार ने शराब बिक्री पर 70 प्रतिशत ‘विशेष कोरोना शुल्क’ (Special Corona Fee) लगाने की घोषणा की है, जिससे राजधानी में शराब की कीमतों में काफी वृद्धि हो जाएगी। ध्यातव्य है कि संपूर्ण राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के तीसरे चरण में प्रतिबंधों में कुछ ढील दी गई है, जिसके कारण शराब की दुकानों के बाहर काफी लंबी लाइनें दिखाई दे रही हैं, जो कि सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) जैसी अवधारणाओं को पूर्णतः विफल बना रहा है।

राज्य की अर्थव्यवस्था में शराब की भूमिका

  • विदित हो कि शराब पर लगाया गया दिल्ली सरकार का ‘विशेष कोरोना शुल्क’ (Special Corona Fee), राज्यों की अर्थव्यवस्था में शराब के महत्त्व को रेखांकित करता है।
  • शराब का निर्माण और बिक्री राज्य सरकार के राजस्व के प्रमुख स्रोतों में से एक है और शराब की दुकानों को खोलने का कार्य ऐसे समय में किया जा रहा है जब सभी राज्य लॉकडाउन के कारण होने वाले व्यवधान के मद्देनज़र राजस्व प्राप्त करने के लिये संघर्ष कर रहे हैं।
  • गुजरात और बिहार, जहाँ शराब निषेध है, के अतिरिक्त सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के सरकारी राजस्व में शराब का काफी योगदान है।
  • सामान्यतः राज्य शराब के निर्माण और बिक्री पर उत्पाद शुल्क (Excise Duty) लगाया जाता है। कुछ राज्य जैसे- तमिलनाडु शराब पर मूल्य वर्द्धित कर (Value Added Tax-VAT) भी लगाते हैं।
  • राज्य आयात की जाने वाली विदेशी शराब पर विशेष शुल्क भी लेते हैं, जिसमें परिवहन शुल्क; लेबल एवं ब्रांड पंजीकरण शुल्क आदि शामिल हैं।
  • उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों ने आवारा पशुओं के रखरखाव जैसे विशेष उद्देश्यों के लिये धन एकत्र करने हेतु भी ‘शराब पर विशेष शुल्क’ (Special Duty on Liquor) लगाया है।
  • बीते वर्ष सितंबर में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में सामने आया था कि अधिकांश राज्यों के कुल कर राजस्व का तकरीबन 10-15 प्रतिशत हिस्सा शराब पर लगने वाले राज्य उत्पाद शुल्क से आता है।
    • यही कारण है कि राज्यों ने सदैव शराब को वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax-GST) के दायरे से बाहर रखा है।

शराब से राज्य सरकारों की कमाई?

  • RBI की रिपोर्ट दर्शाती है कि वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान, 29 राज्यों और दिल्ली तथा पुदुचेरी केंद्र शासित प्रदेशों ने शराब पर राज्य द्वारा लगाए गए उत्पाद शुल्क से संयुक्त रूप से 1,75,501.42 करोड़ रुपए का अनुमानित बजट रखा था, जो कि अपने आप में काफी बड़ी संख्या है।
    • यह संख्या वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान एकत्र किये गए 1,50,657.95 करोड़ रुपए से 16 प्रतिशत अधिक है।
  • RBI के अनुसार, राज्यों ने वर्ष 2018-19 में शराब पर उत्पाद शुल्क से प्रति माह औसतन लगभग 12,500 करोड़ रुपए एकत्र किये और वर्ष 2019-20 में प्रति माह औसतन लगभग 15,000 करोड़ रुपए एकत्र किये, जो मौजूदा वित्तीय वर्ष में प्रति माह औसतन 15,000 करोड़ रुपए के पार जा सकता है।
    • हालाँकि यह अनुमान COVID-19 महामारी से पूर्व का है।

उत्तर प्रदेश को मिला सर्वाधिक राजस्व

  • वित्तीय वर्ष 2018-19 के आँकड़ों के अनुसार, शराब पर उत्पाद शुल्क से सर्वाधिक राजस्व प्राप्त करने वाले पाँच राज्यों में उत्तर प्रदेश (25,100 करोड़ रुपए), कर्नाटक (19,750 करोड़ रुपए), महाराष्ट्र (15,343.08 करोड़ रुपए), पश्चिम बंगाल (10,554.36 करोड़ रुपए) और तेलंगाना (10,313.68 करोड़ रुपए) शामिल थे।
    • उत्तर प्रदेश को शराब पर उत्पाद शुल्क से सर्वाधिक राजस्व प्राप्त होने का सबसे प्रमुख कारण यह है कि राज्य शराब के निर्माण एवं बिक्री पर केवल उत्पाद शुल्क वसूलता है।
    • उत्तर प्रदेश में तमिलनाडु जैसे राज्यों के विपरीत, शराब की बिक्री पर अलग से VAT एकत्र नहीं किया जाता है, इसलिये इन राज्यों (जैसे तमिलनाडु) में शराब से प्राप्त राजस्व का आँकड़ा काफी कम है, क्योंकि VAT तथा अन्य विशेष कर से संबंधित आँकड़े अभी उपलब्ध नहीं हैं।
  • विदित हो कि बिहार और गुजरात में शराब के कारण प्राप्त होने वाला राजस्व शून्य है, क्योंकि इन राज्यों पर शराब पर प्रतिबंध लगा हुआ है।

राज्य के राजस्व के अन्य स्रोत

  • राज्य के राजस्व को आमतौर पर दो श्रेणियों में बाँटा जाता है- कर राजस्व और गैर-कर राजस्व। कर राजस्व को आगे दो और श्रेणियों में बाँटा गया है- राज्य का अपना कर राजस्व और केंद्रीय करों में राज्यों का हिस्सा। 
  • राज्यों के अपने कर राजस्व के तीन प्रमुख स्रोत होते हैं-
    • आय पर लगने वाला कर: कृषि आय पर कर, व्यवसायों की आय पर कर और रोज़गार की आय पर कर।
    • संपत्ति और पूंजी लेनदेन पर कर: भू-राजस्व, टिकट और पंजीकरण शुल्क और संपत्ति कर।
    • वस्तुओं और सेवाओं पर कर: बिक्री कर, केंद्रीय बिक्री कर, बिक्री कर पर अधिभार, राज्य उत्पाद शुल्क, वाहनों पर कर और राज्य GST।
  • RBI की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019-20 में राज्यों के स्वयं के कर राजस्व में राज्य GST की हिस्सेदारी सबसे अधिक (43.5 प्रतिशत) थी, उसके पश्चात् बिक्री कर (23.5 प्रतिशत), राज्य उत्पाद शुल्क (12.5 प्रतिशत) और संपत्ति तथा पूंजी लेनदेन पर कर (11.3 प्रतिशत) आदि शामिल हैं।

    स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


    विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

    DRDO ने विकसित किया ‘यूवी ब्लास्टर’

    प्रीलिम्स के लिये

    यूवी ब्लास्टर

    मेन्स के लिये

    महामारी से निपटने में विभिन्न संगठनों की भूमिका

    चर्चा में क्यों?

    रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation- DRDO) ने अधिक संक्रमण वाले क्षेत्रों के त्वरित एवं रसायन मुक्त कीटाणुशोधन (Disinfection) के लिये एक अल्ट्रा वॉयलेट डिसइंफेक्सन टॉवर (Ultra Violet Disinfection Tower) विकसित किया है।

    प्रमुख बिंदु

    • ‘यूवी ब्लास्टर’ (UV blaster) नाम का यह उपकरण एक अल्ट्रा वॉयलेट (UV) आधारित क्षेत्र सैनिटाइज़र (Sanitizer) है, जिसे DRDO की दिल्ली स्थित प्रतिष्ठित प्रयोगशाला ‘लेज़र साइंस एंड टेक्नोलॉजी सेंटर’ (Laser Science & Technology Centre-LASTEC) द्वारा विकसित किया गया है।
    • इस उपकरण में 360 डिग्री प्रकाश के लिये 254 LM वेवलेंथ पर 6 लैम्प हैं, जिसमें से प्रत्येक लैम्प की क्षमता 43 वाट यूवीसी (UVC) पावर है।
    • इस उपकरण के माध्यम से 12x12 फुट आकार के एक कमरे को लगभग 10 मिनट और 400 वर्ग फुट के कमरे को 30 मिनट में कीटाणुमुक्त किया जा सकता है।
    • अचानक कमरा खुलने या मानवीय दखल पर यह सैनिटाइजर बंद हो जाता है।

    प्रयोग

    • ‘यूवी ब्लास्टर’ को प्रयोगशालाओं और कार्यालयों में ऐसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, कंप्यूटरों और अन्य गैजेटों की सतह को कीटाणुमुक्त करने में प्रयोग किया जा सकता है, जिन्हें रासायनिक विधियों से कीटाणु मुक्त नहीं किया जा सकता है।
    • यह उत्पाद हवाई अड्डों, शॉपिंग माल, मेट्रो, होटलों, कारखानों, कार्यालयों आदि क्षेत्रों के लिये भी प्रभावी है, जहाँ लोगों की आवाजाही काफी ज़्यादा होती है।
    • UV आधारित इस क्षेत्र सैनिटाइज़र (Area Sanitiser) को वाईफाई (WiFi) का प्रयोग करते हुए लैपटॉप अथवा मोबाइल के माध्यम से दूरस्थ परिचालन (Remote Operation) के द्वारा प्रयोग किया जा सकता है।

    COVID-19 से लड़ने में DRDO की भूमिका

    • डीआरडीओ की स्थापना वर्ष 1958 में रक्षा विज्ञान संगठन (Defence Science Organisation-DSO) के साथ भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (Technical Development Establishment-TDEs) और तकनीकी विकास एवं उत्पादन निदेशालय (Directorate of Technical Development & Production-DTDP) के संयोजन के माध्यम से किया गया था।
    • DRDO रक्षा मंत्रालय के रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग के तहत काम करता है।
    • DRDO रक्षा प्रणालियों के डिज़ाइन एवं विकास के साथ-साथ तीनों रक्षा सेवाओं की आवश्यकताओं के अनुरूप विश्व स्तर की हथियार प्रणाली एवं उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है।
    • सशस्त्र बल और DRDO समेत रक्षा मंत्रालय के विभिन्न विंग्स देश में महामारी के प्रसार को रोकने का काफी प्रयास कर रहे हैं और अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार, विभिन्न प्रकार के उत्पादों को डिज़ाइन और विकसित कर रहे हैं।
    • DRDO ने महामारी से निपटने के लिये कई उत्पाद विकसित किये हैं, जिनमें वेंटिलेटर, पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (Personal Protective Equipment-PPE) किट, बड़े क्षेत्रों को सैनिटाइज़ करने हेतु उपाय और COVID-19 परीक्षण के नमूने एकत्रित करने हेतु कियोस्क आदि शामिल हैं।
    • DRDO ने एक ‘मोबाइल वायरोलॉजी रिसर्च एंड डायग्नोस्टिक्स लैबोरेटरी’ (Mobile Virology Research and Diagnostics Laboratory- MVRLL) भी विकसित की है जो कोरोनोवायरस की जाँच और अन्य COVID-19 अनुसंधान तथा विकास गतिविधियों को गति प्रदान करेगी।
      • यह मोबाइल वायरोलॉजी रिसर्च लैब COVID-19 के निदान और वायरस संवर्द्धन में ड्रग स्क्रीनिंग हेतु प्लाज़्मा थेरेपी, टीके के प्रति रोगियों की व्यापक प्रतिरक्षा प्रोफाइलिंग आदि में सहायक होगी।

    स्रोत: पी.आई.बी.


    भारतीय अर्थव्यवस्था

    द सरस कलेक्शन

    प्रीलिम्स के लिये:

    द सरस कलेक्शन, दीनदयाल अंत्योदय योजना- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस

    मेन्स के लिये:

    ग्रामीण स्व-सहायता समूहों के उत्पाद को बढ़ावा देने हेतु सरकार द्वारा किये गए प्रयास 

    चर्चा में क्यों?

    हाल ही में ग्रामीण विकास मंत्रालय (Ministry of Rural Development) ने ‘गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस’ (Government e Marketplace- GeM) पोर्टल पर ‘द सरस कलेक्शन’ (The Saras Collection) डैशबोर्ड की शुरुआत की है। 

    प्रमुख बिंदु:

    • गौरतलब है कि ‘द सरस कलेक्शन’ डैशबोर्ड पर ग्रामीण स्व-सहायता समूहों द्वारा निर्मित दैनिक उपयोग की वस्तुओं को प्रदर्शित किया जाएगा। 
    • ‘द सरस कलेक्शन’ का उद्देश्य ग्रामीण स्व-सहायता समूहों (Self-help Groups SHGs) के लिये बाज़ार उपलब्ध कराना है।
    • पहले चरण में 11 राज्यों के 913 SHG विक्रेताओं को पंजीकृत कर उनके 442 उत्पादों को पोर्टल पर अपलोड किया गया है।  
    • उल्लेखनीय है कि GeM ने दीनदयाल अंत्योदय योजना- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन [Deendayal Antyodaya Yojana- National Rural Livelihoods Mission (DAY-NRLM)] के साथ मिलकर एपीआई (Application Program Interface-API) आधारित एक एकीकरण तंत्र विकसित किया है।
    • इस एकीकरण तंत्र की मदद से अल्पवधि में ही अत्यधिक SHG को पंजीकृत किया जा सकेगा।
    • ‘द सरस कलेक्शन’ को सबसे पहले बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, कर्नाटक, केरल, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल राज्यों में शुरू किया गया है।
    • SHG को अपने उत्पाद सरकारी खरीदारों को बेचने में सक्षम बनाने हेतु सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में व्यापक तौर पर इस पहल को बढ़ावा दिया जाएगा।

    ‘द सरस कलेक्शन’ की विशेषताएँ:

    • ‘द सरस कलेक्शन’ के तहत SHG विक्रेता अपने उत्पादों को निम्नलिखित पाँच श्रेणियों में सूचीबद्ध करने में सक्षम होंगे:
      • हस्तशिल्प 
      • हथकरघा और वस्त्र 
      • कार्यालयों में उपयोग हेतु वस्तुएँ 
      • किराने का सामान और पैंट्री 
      • व्यक्तिगत देखभाल और साफ-सफाई हेतु उत्पाद 
    • ‘द सरस कलेक्शन’ हेतु राष्ट्रीय, राज्य, ज़िला और ब्लॉक स्तर पर पदाधिकारियों के लिये GeM द्वारा डैशबोर्ड प्रदान किया जाएगा।
    • इस डैशबोर्ड की मदद से पदाधिकारी वास्तविक समय में SHG द्वारा अपलोड किये गए उत्पाद और बेचे गए उत्पाद से संबंधित संख्या के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।

    उत्पादों को अपलोड करने हेतु SHGs की सहायता:

    • GeM स्व-सहायता समूहों और SRLM के कर्मचारियों के लिये मातृभाषा में ऑनलाइन शिक्षण संसाधनों का विकास करेगा।
    • GeM स्व-सहायता समूहों और अधिकारियों के लिये ऑनलाइन वेबिनार आयोजित करेगा साथ ही वीडियो, ई-पुस्तक, मैनुअल और प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्नों के भंडार का विकास करेगा।

    ‘गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस’

    (Government e Marketplace-GeM):

    • गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस एक ऑनलाइन मार्केट प्लेटफॉर्म है जिसकी शुरुआत वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय (Ministry of Commerce and Industry) के तहत वर्ष 2016 में की गई थी। इस प्लेटफॉर्म पर सामान्य वस्तुओं और सेवाओं की खरीद की जा सकती है।
    • इसे नेशनल ई-गवर्नेंस डिवीज़न (इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय) के तकनीकी समर्थन के साथ आपूर्ति एवं निपटान निदेशालय (वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय) द्वारा विकसित किया गया है।
    • GeM पूरी तरह से पेपरलेस, कैशलेस और ई-मार्केट प्लेस है जो न्यूनतम मानव इंटरफेस के साथ सामान्य उपयोग की वस्तुओं और सेवाओं की खरीद को सक्षम बनाता है।

    स्रोत: पीआईबी


    विविध

    Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 05 मई, 2020

    विश्व प्रेस स्वतंत्रता सम्मेलन

    नीदरलैंड (Netherlands) और यूनेस्को (UNESCO) वर्ष 2020 में विश्व प्रेस स्वतंत्रता सम्मेलन (World Press Freedom Conference) की मेज़बानी करेंगे। यह सम्मेलन 18-20 अक्तूबर, 2020 को नीदरलैंड के हेग (Hague) शहर में आयोजित किया जाएगा। ‘भय अथवा पक्षपात के बिना पत्रकारिता’ (Journalism Without Fear or Favour) को वर्ष 2020 में विश्व प्रेस स्वतंत्रता सम्मेलन के विषय के रूप में चुना गया है। ध्यातव्य है कि कई देशों में मीडिया की स्वतंत्रता पर हमला हो रहा है। इस सम्मेलन का उद्देश्य पत्रकारों को किसी विशेष व्यक्ति, राय, विचारधारा अथवा अन्य कारकों से भय या पक्षपात के बिना अपना काम करने में सक्षम बनाना है। विदित हो कि हाल ही में 03 मई, 2020 को ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ (World Press Freedom Day) मनाया गया। वर्ष 2020 के लिये ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ की थीम भी ‘भय अथवा पक्षपात के बिना पत्रकारिता’ (Journalism Without Fear or Favour) थी। विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस का उद्देश्य प्रेस की आज़ादी के महत्त्व के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करना है। वर्ष 2020 में जारी ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक’ (World Press Freedom Index-2020) में भारत 180 देशों की सूची में 142वें स्थान पर पहुँच गया है, जबकि बीते वर्ष भारत इस सूचकांक में 140वें स्थान पर था।

    संदीप कुमारी

    डिस्कस थ्रोअर (discus thrower) एथलीट संदीप कुमारी पर विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी (World Anti-Doping Agency- WADA) की एथलेटिक्स इंटीग्रिटी यूनिट (Athletics Integrity Unit) ने डोपिंग परीक्षण में विफल होने पर 4 वर्ष का प्रतिबंध लगाया है। ध्यातव्य है कि लगभग दो वर्ष पहले राष्ट्रीय डोप परीक्षण प्रयोगशाला (National Dope Testing Laboratory-NDTL) संदीप कुमारी के नमूनों में  प्रतिबंधित पदार्थ का पता लगाने में विफल रही थी। विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी (WADA) को वर्ष 1999 में एक अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी के रूप में स्थापित किया गया था, यह खेल आंदोलन और विश्व की सरकारों द्वारा समान रूप से वित्त पोषित है। इसका मुख्यालय मॉन्ट्रियल, कनाडा में है। इस संगठन की प्रमुख गतिविधियों में वैज्ञानिक अनुसंधान, शिक्षा, एंटी-डोपिंग क्षमताओं का विकास करना और विश्व एंटी-डोपिंग संहिता (कोड) की निगरानी करना शामिल है। विश्व एंटी-डोपिंग संहिता (कोड) सभी खेलों एवं देशों में डोपिंग विरोधी नीतियों का सामंजस्य स्थापित करने वाला दस्तावेज़ है।

    ‘एनजीएमए के संग्रह से’ कार्यक्रम

    COVID-19 की वजह से राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय (National Gallery of Modern Art-NMGA) को अस्थायी रूप से बंद किया गया है, इस दौरान राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय (NMGA) अपने संग्रह की दुर्लभ कलाकृतियों को प्रस्तुत करने के लिये ‘एनजीएमए के संग्रह से’ नामक एक वर्चुअल कार्यक्रम प्रस्तुत करेगा। ये कार्यक्रम NMGA के प्रतिष्ठित संग्रहों से तैयार किये जाएंगे और विभिन्न साप्ताहिक/दैनिक विषयों पर आधारित होंगे। इस सप्ताह की थीम ‘कलाकार, कलाकारों के द्वारा’ (ARTIST BY ARTISTS) है और यह रवींद्रनाथ टैगोर को समर्पित है। ध्यातव्य है कि इस सप्ताह 7 मई, 2020 को रवींद्रनाथ टैगोर की 159वीं जयंती भी है। इन वर्चुअल कार्यक्रमों और प्रदर्शनियों के माध्यम से कला प्रेमियों, कलाकारों, छात्रों, शिक्षकों आदि को अपने घरों से दुर्लभ कलाकृतियों को देखने का अवसर मिलेगा। राष्ट्रीय कला संग्रहालय बनाने का विचार सर्वप्रथम वर्ष 1949 में अंकुरित और प्रस्फुटित हुआ था, जिसके पश्चात् 29 मार्च, 1954 को प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और गणमान्य कलाकारों एवं कला प्रेमियों की उपस्थिति में देश के उपराष्ट्रपति डॉ. एस. राधाकष्ण ने औपचारिक रूप से NMGA की स्थापना की। राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय के मुख्य लक्ष्य एवं उद्देश्यों में वर्ष 1850 से अब तक की आधुनिक कलाकृतियों (आधुनिक कलात्मक वस्तुओं) को प्राप्त करना एवं उनका संरक्षण करना, देश और विदेशों में विशिष्ट प्रदर्शनियों का आयोजन, कला से संबंधित विभिन्न क्षेत्रों में उच्च शिक्षा को प्रोत्साहन देना शामिल है।

    राष्ट्रमंडल युवा खेल वर्ष 2023 तक स्थगित

    वर्ष 2021 में आयोजित होने वाले राष्ट्रमंडल युवा खेलों (Commonwealth Youth Games) को वर्ष 2023 तक स्थगित कर दिया गया है, क्योंकि टोक्यो ओलंपिक के साथ इसकी तारीखों का टकराव हो रहा था। ध्यातव्य है कि 23 जुलाई से 8 अगस्त 2020 तक आयोजित होने वाले टोक्यो ओलंपिक को बीते दिनों COVID-19 महामारी के मद्देनज़र एक वर्ष के लिये स्थगित किया गया था। राष्ट्रमंडल युवा खेल (Commonwealth Youth Games) एक अंतर्राष्ट्रीय खेल कार्यक्रम है जिसका आयोजन राष्ट्रमंडल खेल महासंघ (Commonwealth Games Federation) द्वारा किया जाता है। ध्यातव्य है कि सर्वप्रथम राष्ट्रमंडल युवा खेलों का आयोजन स्कॉटलैंड (Scotland) में वर्ष 2000 में किया गया था। राष्ट्रमंडल युवा खेलों में भाग लेने वाले एथलीटों के लिये आयु सीमा 14 से 18 वर्ष है।


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