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डेली न्यूज़

  • 05 Jan, 2019
  • 29 min read
शासन व्यवस्था

केरल से सीख

चर्चा में क्यों?


हाल ही में हुए एक सर्वे के अनुसार केरल ने प्राथमिक चिकित्सा के क्षेत्र में मिश्रित परिणाम के साथ अधिकतम सेवाओं और सुविधाओं को प्रदान करने का प्रयास किया है। ऐसी सेवाओं और सुविधाओं को देश के अन्य राज्यों में भी लागू करने की आवश्यकता है। यदि ऐसे ही प्रयास किये जायें तो अस्ताना घोषणा के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है।

2016 में केरल में स्वास्थ्य देखभाल को सुनिश्चित करने के लिये अद्रम मिशन के हिस्से के रूप में वर्तमान और भविष्य की महामारी की स्थिति को संबोधित करने हेतु प्राथमिक देखभाल को फिर से डिज़ाइन करने का प्रयास किया गया था। केरल का अनुभव यह समझने में मदद कर सकता है कि अस्ताना घोषणा के उद्देश्यों को सुनिश्चित करने के लिये क्या किया जाना चाहिये ।

प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की वास्तविक स्थिति और केरल के प्रयास

  • केरल ने प्राथमिक चिकित्सा सेवाओं एवं सुविधाओं के क्षेत्र में प्रतिबद्धता एवं उत्तरदायित्व के साथ बेहतर प्रदर्शन किया है। ये सेवायें पर्याप्त मानव संसाधन के बिना प्रदान नहीं की जा सकती हैं।
  • भारतीय मानक के तहत 30,000 की आबादी के लिये एक प्राथमिक देखभाल टीम की मौजूदा व्यवस्था के साथ चिकित्सा सुविधा प्रदान करना लगभग असंभव है।
  • केरल ने लक्षित आबादी को 10,000 तक कम करने की कोशिश की। यहाँ तक ​​कि कम किया गया लक्ष्य इसके प्रभावी होने के लिये बहुत अधिक निकला।
  • केरल का अनुभव बताता है कि व्यापक स्तर पर प्राथमिक देखभाल सुनिश्चित करने के लिये 5,000 तक की आबादी के लिये कम से कम एक टीम होनी चाहिये।
  • चूँकि अधिक मानव संसाधनों की आपूर्ति सेवाओं की मांग उत्पन्न करेगी, इसलिये दवाओं, उपभोग्य सामग्रियों, उपकरणों आदि की लागत में समान वृद्धि होगी। अतः व्यापक प्राथमिक देखभाल प्रदान करने की प्रतिबद्धता - यहाँ तक ​​कि सीमित अर्थों में, जिसमें इसे भारत में समझा जाता है - केवल तभी सार्थक होगा जब धन के आवंटन में पर्याप्त वृद्धि करने की प्रतिबद्धता भी हो।
  • अधिकांश अच्छे प्राथमिक देखभाल प्रणालियों में प्रैक्टिशनर अक्सर स्नातकोत्तर प्रशिक्षण प्राप्त होते हैं, ‘फैमिली मेडिसिन’ में पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स बहुत कम संस्थानों तक सीमित है। यदि सेवाओं को मध्य-स्तर के सेवा प्रदाताओं द्वारा प्रदान किया जाना है, जैसा कि कई राज्यों में योजना बनाई गई है, तो उनकी क्षमता का निर्माण चुनौतीपूर्ण होगा।
  • केरल ने विशिष्ट क्षेत्रों यथा – मधुमेह, मेलेटस, उच्च रक्तचाप, पुरानी प्रतिरोधी फुफ्फुसीय बीमारी, और अवसाद के प्रबंधन जैसे छोटे पाठ्यक्रमों के माध्यम से इसे प्राप्त करने की कोशिश की है।
  • अद्रम मिशन – केरल की सरकार ने बेहतर बुनियादी ढांचे और गुणवत्तापूर्ण सेवाओं के साथ प्रभावी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली प्रदान करने के लिये विभिन्न रणनीतियों को डिज़ाइन किया है। स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकार की महत्त्वाकांक्षी परियोजना अद्राम, इस क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन की परिकल्पना करती है। इसका उद्देश्य है - रोगी-हितैषी क्षेत्र में कार्य करना।

भारत के संदर्भ में बात करें तो

  • प्राथमिक देखभाल प्रणाली केवल तभी प्रभावी होगी जब प्रदाता उन्हें सौंपी गई आबादी के स्वास्थ्य की ज़िम्मेदारी ग्रहण करेंगे और जनसंख्या अपनी स्वास्थ्य आवश्यकताओं के लिये उन पर निर्भर होगी।
  • दोनों रेफरल नेटवर्क (Referral network) और प्रणालीगत ढाँचे क्षमता, दृष्टिकोण और समर्थन से जुड़े हैं। यह तब तक संभव नहीं होगा जब तक कि वे निर्धारित संख्या प्रबंधनीय अनुपात के भीतर न हों।
  • भारत में प्राथमिक देखभाल पर चर्चा केवल सार्वजनिक क्षेत्र पर केंद्रित है, जबकि 60% से अधिक सुविधा देखभाल निजी क्षेत्र द्वारा प्रदान की जाती है।
  • ज़्यादातर देशों में निजी क्षेत्र प्राथमिक चिकित्सा देखभाल प्रदान करता है, हालाँकि इसका भुगतान बजट या बीमा से किया जाता है।
  • निजी क्षेत्र अच्छी गुणवत्ता वाले प्राथमिक देखभाल सुविधा प्रदान कर सकते हैं यदि वित्त पोषण की व्यवस्था हो और साथ ही यदि आवश्यक क्षमताओं को विकसित करने के लिये निजी क्षेत्र निवेश करने के लिये तैयार हो।
  • इस तरह की प्रणाली को तैयार करना और संचालित करना (बीमा से अधिक फंड प्रबंधन हालाँकि इसे बीमा से जोड़ा जा सकता है) एक बड़ी चुनौती होगी, लेकिन आवश्यक है कि अच्छी गुणवत्ता वाली प्राथमिक देखभाल सुविधा पूरी आबादी को उपलब्ध हो। केरल में ऐसी प्रणाली स्थापित करने के लिये बातचीत केवल प्रारंभिक चरण में है।
  • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की स्थिति हासिल करना भारत के लिये सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals – SDG) में से एक है और वह प्रतिबद्ध सार्वभौमिक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के बिना संभव नहीं है।
  • प्राथमिक देखभाल सुनिश्चित करने में केरल के अनुभव से पता चलता है कि भारत को अस्ताना घोषणा में किये गए लक्ष्यों तक पहुँचने के लिये अपने पथ पर दृढ़ता से बढ़ना होगा।

अस्ताना घोषणा 2018


पिछले साल अक्तूबर 2018 में कज़ाकिस्तान के अस्ताना शहर में आयोजित प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल पर वैश्विक सम्मेलन ने दुनिया भर में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर ज़ोर देते हुए एक नई घोषणा का समर्थन किया। इस घोषणा में भारत सहित WHO के सभी 194 सदस्य देशों द्वारा हस्ताक्षर किये गए।

उद्देश्य


घोषणा का उद्देश्य प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल पर किये गए प्रयासों को बेहतर तरीके से क्रियान्वित करना है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि हर कोई स्वास्थ्य के उच्चतम संभव प्राप्य मानक का आनंद लेने में सक्षम हो।

लक्ष्य

  • अस्ताना घोषणा "व्यापक निवारक, प्रचारक, उपचारात्मक, पुनर्वास सेवाओं और उपशामक देखभाल के माध्यम से पूरे जीवनकाल में सभी लोगों की स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को पूरा करने का लक्ष्य रखेगी"। प्राथमिक देखभाल सेवाओं की एक प्रतिनिधि सूची प्रदान की जाती है, लेकिन यह केवल टीकाकरण तक सीमित नहीं है।
  • गैर-संचारी और संचारी रोगों की रोकथाम, नियंत्रण और प्रबंधन, देखभाल और सेवाएँ जो मातृ, नवजात, बच्चों और किशोर स्वास्थ्य को बढ़ावा देती हैं तथा उनमे सुधार लाती है।
  • इसमें मानसिक स्वास्थ्य, यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं पर विशेष ध्यान दिया गया है।

अन्य महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • नई घोषणा ने सरकारों, गैर-सरकारी संगठनों, पेशेवर संगठनों, शिक्षाविदों और वैश्विक स्वास्थ्य एवं विकास संगठनों की प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के लिये राजनीतिक प्रतिबद्धता को नवीनीकृत किया है। इसका उपयोग संयुक्त राष्ट्र महासभा की 2019 में यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज (UHC) पर उच्च स्तरीय बैठक को सूचित करने के लिये किया जाएगा।
  • नई घोषणा भी प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल पर 1978 की अल्मा-अता (Alma-Ata) घोषणा (1978 में कज़ाकिस्तान के अल्मा-अता (Alma-Ata) शहर में एक निर्णायक सम्मलेन का आयोजन हुआ था जिसने अस्ताना घोषणा की नींव रखी) को दर्शाती है कि हम कितनी दूर आए हैं और कितना काम किया जाना अभी बाकी है।
  • सम्मेलन के प्रतिभागियों (राष्ट्राध्यक्षों, मंत्रियों, गैर-सरकारी संगठनों, पेशेवर संगठनों, शिक्षाविदों, युवा पेशेवरों और युवा नेताओं, स्वास्थ्य चिकित्सकों और संयुक्त राष्ट्र के साझेदारों सहित) को घोषणा का समर्थन करने के लिये आमंत्रित किया गया था।
  • इस संबंध में एक वेब पोर्टल भी है जो व्यक्तियों, संगठनों और सरकारों को घोषणा के लिये समर्थन व्यक्त करने और नई घोषणा के प्रकाश में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में सुधार के लिये उनकी परिचालन प्रतिबद्धता को व्यक्त करने हेतु उपलब्ध है।

स्रोत – द हिंदू, WHO की आधिकारिक वेबसाइट


सामाजिक न्याय

अभिनव (नई) दवाओं हेतु बहुराष्ट्रीय कंपनियों को बढ़ावा

चर्चा में क्यों?


हाल ही में सरकार ने विदेशी कंपनियों द्वारा विकसित की अभिनव (नई) दवाओं को पाँच साल के लिये मूल्य नियंत्रण से मुक्त कर दिया, जिससे भारतीय मरीजों को उन दवाओं तक पहुँच की सुविधा मिल सकेगी जो कि वर्तमान में केवल विदेशों में उपलब्ध है।


महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • देश में दवाओं के वाणिज्यिक विपणन के लिये ड्रग्स प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (DPCO) के संशोधन के तहत रसायन और उर्वरक मंत्रालय ने नई दवाओं के उत्पादकों को छूट दी है। यह छूट भारतीय पेटेंट अधिनियम, 1970 की धारा 39 के तहत पेटेंट की तारीख से पाँच साल तक की अवधि के लिये होगी।
  • इनमें ऐसी दवाएँ शामिल हैं जिनका उपयोग दुर्लभ चिकित्सा स्थितियों में इलाज के लिये किया जाता है।
  • ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क की सह-संयोजक मालिनी आइसोला ने कहा कि निकट भविष्य में विदेशी कंपनियों को इससे लाभ मिलेगा और सरकार द्वारा नीतिगत रूप से लोगों के जीवन के लिये आवश्यक बेहद महँगी दवाइयों तक पहुँच को कठिन बना देगा।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, यह कदम सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की परवाह किये बिना महँगी दवाओं को मूल्य नियंत्रण के तहत रखने से सरकार को रोकेगा।
  • सरकार का कहना है कि इस कदम से भारतीय मरीजों की विदेशी दवाओं तक पहुँच सुनिश्चित होगी। हालाँकि सरकार द्वारा दी जा रही यह छूट गैर-सरकारी संगठनों (NGO) की आलोचना के दायरे में आ गई है। ये NGO दावा करते हैं कि आपात स्थिति के दौरान मूल्य सीमा तय नहीं की जा सकती है।
  • ऐसी आशंका है कि डीपीसीओ (DPCO) की अनुसूची -1 के रूप में जानी जाने वाली आवश्यक दवाओं की एक राष्ट्रीय सूची के माध्यम से दवाओं की कीमतों को विनियमित करने के चलते गंभीर बीमारियों में उपयोग होने वाली कुछ दवाएँ पहुँच से बाहर हो सकती हैं, जबकि कोई भी दवा जो अनुसूची- I में शामिल है, स्वतः मूल्य नियंत्रण योग्य है। डीपीसीओ (DPCO) ने पहले से पेटेंट की गई दवाओं को छूट दी है जिन्हें "स्वदेशी" रूप से पाँच साल की अवधि के लिये विकसित किया जाना है।
  • अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (USTR) ने अप्रैल में घोषणा की थी कि वह अमेरिकी डेयरी उद्योग और अमेरिकी चिकित्सा उपकरण उद्योग द्वारा भारत के GSP (Generalized System of Preferences) लाभों की समीक्षा का अनुरोध करने के बाद भारत की प्राथमिकताओं की सामान्यीकृत प्रणाली (Generalized System of Preferences - GSP) की समीक्षा कर रहा था।
  • एडवांस मेडिकल टेक्नोलॉजी एसोसिएशन (Advance Medical Technology Association) ने USTR (United State Trade Representative) को भारत में जीएसपी लाभों को निलंबित करने की मांग करते हुए लिखा है कि इसके सदस्यों को कोरोनरी स्टेट और घुटने के प्रत्यारोपण पर ‘ड्रैकोनियन’ से संबंधित भारतीय मूल्य नियंत्रण को लेकर चिंतित थे, क्योंकि इसके कारण कीमतों में क्रमशः 85% और 70% गिरावट आई थी।

USTR क्या है?


यूनाइटेड स्टेट ट्रेड रिप्रेजेन्टेटिव (United State trade Representative)

  • अमेरिकी व्यापार नीति किसानों, निर्माताओं, श्रमिकों, उपभोक्ताओं और व्यवसायियों के लिये नए अवसरों और उच्च जीवन स्तर बनाने के लिए दुनिया भर में बाजार खोलने की दिशा में काम करती है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका अन्य देशों के साथ कई व्यापार समझौतों के लिये एक महत्त्वपूर्ण पार्टी है, जो दुनिया के कई देशों और क्षेत्रों के साथ नए व्यापार समझौतों के लिये वार्ता में भाग लेता है।

NPPA (National Pharmaceutical Pricing Authority) क्या है?

  • नेशनल फ़ार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (NPPA) एक सरकारी नियामक एजेंसी है जो भारत में फार्मास्यूटिकल दवाओं की कीमतों को नियंत्रित करती है। इसका गठन 29 अगस्त 1997 को किया गया था।

GSP (Generalized System of Preferences) क्या है?

  • GSP एक वरीयता प्राप्त टैरिफ प्रणाली है जिसे विकसित देशों में विकासशील देशों द्वारा विस्तारित किया जाता है।

स्रोत - लाइवमिंट,NPPA की आधिकारिक वेबसाइट


सामाजिक न्याय

बाल देखभाल संस्थानों का सर्वे

चर्चा में क्यों?


हाल ही में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के तहत बाल देखभाल संस्थानों की जाँच-पड़ताल शामिल है। इस रिपोर्ट में चाइल्डलाइन इंडिया फाउंडेशन और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) द्वारा किये गए 9,589 आश्रय घरों/बाल देखभाल संस्थानों के सर्वेक्षण के निष्कर्ष शामिल हैं।


प्रमुख बिंदु

  • ‘मैपिंग एक्सरसाइज ऑफ द चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशंस (CCI)/होम्स’ का अध्ययन किशोर न्याय प्रणाली के एक महत्त्वपूर्ण घटक पर प्रकाश डालता है जिसमें किशोर न्याय (बाल देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 के संदर्भ में देश भर में बाल देखभाल संस्थानों/आश्रय घरों की कार्य पद्यति प्रमुख है।
  • इस सर्वेक्षण में 9,589 बाल देखभाल संस्थानों और आश्रय घरों का अध्ययन किया गया। इन संस्थानों में से ज्यादातर गैर-सरकारी संगठनों (NGO) द्वारा चलाए जाते हैं, जो किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम के तहत आते हैं।
  • आश्रय लेने वाले अधिकांश बच्चे अनाथ, परित्यक्त, यौन हिंसा के शिकार, तस्करी या आपदाओं एवं अन्य संघर्ष के शिकार हैं। इनमें कानूनी लड़ाई लड़ने वाले 7,422 बच्चे और 1,70,375 लड़कियों सहित देखभाल एवं सुरक्षा के इच्छुक कुल 3,70,227 बच्चे शामिल हैं।
  • बच्चों को अक्सर उचित शौचालयों की कमी, असुरक्षित वातावरण जैसे माहौल का सामना करते हुए आश्रय घरों में रहना पड़ता है। विधि के तहत प्रदत्त शिकायत निवारण अवसर दर्दनाक वास्तविकता को रेखांकित करते हैं।
  • हाल के अध्ययनों के अनुसार, 2016 तक केवल 32% बाल देखभाल संस्थान या आश्रय घर किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के तहत पंजीकृत किये गए थे और बाकी या तो अपंजीकृत थे या पंजीकरण की प्रतीक्षा में थे।
  • कुछ राज्यों में स्पष्ट रूप से बहुत कम आश्रय घर हैं। कुल आश्रय घरों के 43.5% तमिलनाडु, महाराष्ट्र और केरल में हैं।

आगे की राह

  • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय इस निराशाजनक प्रवृति में वांछित सुधार केवल राज्य सरकारों द्वारा व्यवस्थित जाँच के माध्यम से कर सकता है।
  • यह कार्य कुछ विशेष अधिकारियों को नियुक्त करके किया जा सकता है, जिनका मुख्य कार्य यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी संस्थान किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के तहत पंजीकृत हों, प्रत्येक को प्राप्त धनराशि का लेखा-जोखा हो और गोद लेने के दौरान अनिवार्य बाल संरक्षण नीतियों का पालन किया जा रहा हो।

स्रोत- द हिंदू


विविध

अक्षय उर्जा क्षमता में भारत को पाँचवा स्थान

चर्चा में क्यों?


हाल ही में जारी की गई वैश्विक स्थिति रिपोर्ट 2018 पर REN21 (Renewable Energy Policy Network for 21st centuary) के अनुसार भारत नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता (Renewable Power Capacity) में पाँचवे स्थान पर रहा।


महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • वैश्विक स्थिति रिपोर्ट (Global Status Report) 2018 के अनुसार, 2017 के अंत तक भारत नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में (जलविद्युत सहित) 5वें स्थान पर जबकि जलविद्युत रहित में चौथे स्थान पर रहा।
  • 2018-19 में ऊर्जा उत्पादन लगभग 81.15 बिलियन यूनिट रहा (अक्तूबर 2018 तक) जिसमे सभी ऊर्जा उत्पादित स्रोत शामिल हैं।
  • अक्षय ऊर्जा परियोजनाएँ ज्यादातर निजी क्षेत्रों द्वारा लागू की जा रही हैं।
  • अक्षय ऊर्जा क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये सरकार द्वारा भारी मात्रा में सब्सिडी दी जा रही है।
  • आंकड़ो के अनुसार 2015–18 तक गैर पारंपरिक ऊर्जा क्षेत्र के FDI में लगातार (लगभग 776.51-3217.43 मिलियन डॉलर की) वृद्धि हुई है।
  • इस साल की ‘रिन्यूएबल्स 2018 ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट’ (GSR) ने दो महत्त्वपूर्ण बातों को दर्शाया है:
  • बिजली क्षेत्र में एक क्रांति के रूप में अक्षय ऊर्जा भविष्य की दिशा में तेजी से बदलाव ला रही है।
  • समग्र रूप में यह आवश्कतानुसार साथ आगे नहीं बढ़ रही है
  • 2016 तक नवीकरणीय ऊर्जा कुल वैश्विक अंतिम ऊर्जा खपत की अनुमानित 18.2% थी, जिसमें आधुनिक नवीकरणीय ऊर्जा 10.4% थी।
  • नई और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार, देश में कुल 73.35 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित की गई है। इसमें अक्तूबर 2018 में विंड से लगभग 35 GW, सोलर से 24 GW, स्मॉल हाइड्रो पावर से 4.5 GW और बायो-पावर से 9.5 GW ऊर्जा शामिल है।

स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस, REN की वेबसाइट


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (5 जनवरी)

  • 4 जनवरी को दुनियाभर में हुआ विश्व ब्रेल दिवस का आयोजन; ब्रेल लिपि के जनक फ्रांस के लुई ब्रेल की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है यह दिवस; दृष्टिहीनों के लिखने-पढ़ने के लिये लुई ब्रेल ने विकसित की थी उभरे हुए बिदुओं वाली अलग लिपि; इसे उनके ही नाम पर ब्रेल लिपि कहा गया; 1824 में बनी इस लिपि को दुनिया के लगभग सभी देशों में मिली है मान्यता
  • लोकसभा ने पारित किया आधार और अन्य कानून (संशोधन) विधेयक; नाबालिगों को 18 साल का होने पर अपनी आधार संख्या रद्द करने का विकल्प दिया गया; बैंक खाता खोलने और मोबाइल फोन कनेक्शन जैसी सेवाओं के लिये अनिवार्य नहीं होगा आधार; आधार के उपयोग के लिये तय नियम तोड़ने पर सख्त सज़ा का प्रावधान; आधार धारक की सहमति से ही किया जा सकेगा आधार संख्या का ऑफलाइन सत्यापन; सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कुछ परिवर्तनों के साथ आधार अधिनियम की संवैधानिक वैधता को सही ठहराया था
  • कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय ने दिये राष्ट्रीय उद्यमिता पुरस्कार; इन पुरस्कारों का यह तीसरा संस्करण था; उद्यमशीलता का माहौल बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान करने वालों को प्रोत्साहित करना है इन पुरस्कारों का उद्देश्य; इस वर्ष कुल 43 पुरस्कार प्रदान किए गए; 39 पुरस्कार विभिन्न क्षेत्रों के युवा उद्यमियों को मिले; चार पुरस्कार उद्यमशीलता का माहौल बनाने वालों को दिये गए; इन पुरस्कारों का हकदार होने के लिये नामित व्यक्ति की आयु 40 वर्ष से कम होनी चाहिये; उद्यमी पहली पीढ़ी का होना चाहिये और उसके पास व्यापार का 51 फीसदी स्वामित्व होना चाहिये
  • आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने शुरू किया शहरी भारत वार्षिक स्वच्छता सर्वेक्षण का चौथा संस्करण- ‘स्वच्छ सर्वेक्षण 2019’; 4 से 28 जनवरी, 2019 के दौरान 4237 शहरों और कस्बों में कराया जाएगा यह सर्वेक्षण; इससे पहले 2016, 2017 और 2018 में हो चुके है स्वच्छ सर्वेक्षण; शहरों एवं कस्बों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा की भावना को बढ़ावा देना है स्वच्छ सर्वेक्षण 2019 का उद्देश्य
  • स्वच्छता मंत्रालय ने ‘स्वच्छ सुंदर शौचालय’ नामक अभियान शुरू किया; एक महीने तक चलने वाले इस अभियान के तहत सभी लोगों को अपने शौचालय पेंट करने और सजाने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा; इस अभियान में पूरे देश की 2.5 लाख ग्राम पंचायतों के ग्रामीण समुदाय होंगे शामिल; ग्रामीण भारत में स्वच्छता कवरेज़ 98 फ़ीसदी से अधिक
  • प्रधानमंत्री ने की मोरेह में एकीकृत चेक पोस्ट की शुरुआत; भारत-म्यांमार सीमा पर एकीकृत मोरेह चेक पोस्ट से सीमा शुल्क क्लीयरेंस, विदेशी मुद्रा आदान-प्रदान, आव्रजन क्लीयरेंस इत्यादि में सहायता मिलेगी; दोलाईथाबी बैराज परियोजना की भी हुई शुरुआत
  • नई दिल्ली में 27वें विश्व पुस्तक मेले की शुरुआत; दिव्यांगजनों की पठन आवश्यकताएँ (Readers With Special Needs) रखी गई है मेले की थीम; थीम के अनुरूप विशेष मंडप में ब्रेल पुस्तकें, स्पर्शनीय पुस्तकें, मूक पुस्तकें और ऑडियो पुस्तकें प्रदर्शित की गई हैं; मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडेकर ने किया उदघाटन, संयुक्त अरब अमीरात का सदस्य शारजाह है मेले का भागीदार देश; नेशनल बुक ट्रस्ट हर साल प्रगति मैदान में करता है इस मेले का आयोजन
  • भारत की दिव्यांग पर्वतारोही अरुणिमा सिन्हा एक पैर के सहारे अंटार्कटिका के सबसे ऊँचे शिखर 'विन्सन मैसिफ़' हिल पर चड़ने में हुईं सफल; ऐसा करने वाली वह दुनिया की पहली दिव्यांग महिला हैं; इससे पहले दुनिया की छह प्रमुख पर्वत चोटियों पर फतेह हासिल कर विश्व कीर्तिमान स्थापित कर चुकी हैं अरुणिमा सिन्हा
  • अमेरिका के ‘मदर ऑफ आल बॉम्स’ के जवाब में चीन ने बनाया बेहद विनाशकारी बम; गैर-परमाणु हथियारों में अब तक का सबसे शक्तिशाली हथियार बताया;  चीन के रक्षा उद्योग से जुड़े NORINCO ने इस बम का किया पहली बार प्रदर्शन; H-6K बॉम्बर एयरक्राफ्ट से इसे गिराने के बाद हुआ भयंकर विस्फोट; अमेरिका के GVU-43/B Massive Ordnance Blast को कहा जाता है ‘मदर ऑफ ऑल बॉम्स’
  • इल्हान उमर ने अमेरिकी कांग्रेस में हिजाब पहनकर ली शपथ; ऐसा करने वाली वह पहली अमेरिकी-मुस्लिम महिला बनीं; डेमोक्रेटिक पार्टी से चुनी गईं 37 वर्षीय इल्हान 14 साल की उम्र में सोमालिया से एक शरणार्थी के तौर पर अमेरिका आई थीं; अमेरिका में पिछले वर्ष नवंबर में हुए मध्यावधि चुनावों में दो मुस्लिम महिलाओं ने हासिल की थी जीत
  • दक्षिण अमेरिका की एंडीज़ पर्वत श्रृंखला में जीव वैज्ञानिकों ने पेड़ पर रहने वाले मेढक की नई प्रजाति खोजी है; यूनिवर्सिटी ऑफ इक्वाडोर के शोधकर्त्ताओं ने इस नई प्रजाति की आनुवंशिक संरचना का अध्ययन करके बताया कि यह पहले मौज़ूद मेढक परिवार का सदस्य नहीं हैं; अमेरिका की नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज ने ‘हाइलोसिटर्स हिलिस’ रखा है भूरे रंग वाले मेढक की इस प्रजाति का नाम

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