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महुआ वृक्ष

  • 30 Jun 2025
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

मध्य भारत के जनजातीय समुदायों के जीवन से गहराई से जुड़ा महुआ वृक्ष (Madhuca longifolia) अपने सामाजिक-आर्थिक तथा पारिस्थितिकी महत्त्व के कारण पारंपरिक ज्ञान के दस्तावेज़ीकरण और देशी वनस्पतियों के संरक्षण के प्रयासों के बीच ध्यान आकर्षित कर रहा है।

  • यह सामान्यतः पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, उत्तर और मध्य भारत के कुछ हिस्सों तथा महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना, तमिलनाडु और केरल में पाया जाता है।

मुख्य बिंदु

  • महुआ के बारे में:
  • वानस्पतिक पहचान:
    • महुआ एक मध्यम आकार की पर्णपाती प्रजाति है, जो लगभग 16 से 20 मीटर ऊँचाई तक पहुँचती है।
    • यह मुख्यतः मध्य भारत के वन क्षेत्रों में होता है।
    • यह वृक्ष मार्च-अप्रैल के बीच खिलता है और इसमें क्रीमी-सफेद फूल आते हैं, जो सूर्योदय से पहले गिर जाते हैं।
    • इसके फल जून से अगस्त तक पकते हैं तथा मौसमी कटाई के लिये उपयुक्त होते हैं।
  • सांस्कृतिक और धार्मिक महत्त्व:
    • आदिवासी समुदाय द्वारा महुआ को “जीवन का वृक्ष” के रूप में पूजनीय माना जाता है।
    • वे इसके प्रत्येक भाग- फूल, पत्तियाँ, फल, बीज तथा फल के छिलकों का उपयोग दैनिक रीति-रिवाजों और अंतिम संस्कार जैसे प्रमुख अनुष्ठानों में करते हैं।
  • पोषण संबंधी और आर्थिक महत्त्व:
    • आदिवासी लोग महुआ के फूलों को कच्चा या सुखाकर खाते हैं, क्योंकि वे पौष्टिक तत्त्वों से भरपूर होते हैं।.
    • इन फूलों को परंपरागत रूप से किण्वित कर एक स्थानीय मादक पेय तैयार किया जाता है, जो आजीविका का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
  • वन पारिस्थितिकी तंत्र में भूमिका:
    • महुआ के रात में खिलने वाले, सुगंधित फूल चमगादड़ों को आकर्षित करते हैं, जिससे परागण और बीज प्रसार को बढ़ावा मिलता है।
    • स्लॉथ बियर तथा अन्य वन्यजीव इसके फूलों का उपभोग करते हैं, जिससे वन खाद्य शृंखला में इसकी भूमिका स्पष्ट होती है।
  • आदिवासी आजीविका और नवाचार में योगदान:
    • महुआ फूलों का संग्रह, सुखाना तथा प्रसंस्करण एक प्रमुख मौसमी व्यवसाय है, विशेषकर आदिवासी महिलाओं के लिये।
      • यह गतिविधि खाद्य सुरक्षा, आय सृजन तथा स्थानीय रोज़गार सुनिश्चित करती है।
    • भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ (TRIFED) ने फाउंडेशन फॉर इनोवेशन एंड टेक्नोलॉजी ट्रांसफर (FIIT) के सहयोग से महुआ उत्पादों के वाणिज्यिक मूल्य को बढ़ाने हेतु महुआ न्यूट्रा पेय विकसित किया है
      • इस पहल का उद्देश्य नवाचार के माध्यम से जनजातीय समुदायों की आय को बढ़ावा देना है।
    • यह महुआ से संबंधित भारत का पहला वैज्ञानिक नवाचार है, जिसकी शुरुआत झारखंड से हुई है तथा यह प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और नवाचार के माध्यम से लघु वन उपज (MFP) के मूल्य संवर्द्धन पर TRIFED की नीति को दर्शाता है।

भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ (ट्राइफेड)

  • भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास परिसंघ (TRIFED) की स्थापना वर्ष 1987 में हुई। यह राष्ट्रीय स्तर का एक शीर्ष संगठन है, जो जनजातीय कार्य मंत्रालय के प्रशासकीय नियंत्रण के अधीन कार्य करता है।
  • ट्राइफेड का प्रमुख उद्देश्य जनजातीय उत्पादों, जैसे- धातु कला, जनजातीय टेक्सटाइल, कुम्हारी, जनजातीय पेंटिंग, जिन पर जनजातीय लोग अपनी आय के एक बड़े भाग हेतु बहुत अधिक निर्भर हैं, के विपणन विकास द्वारा देश में जनजातीय लोगों का सामाजिक-आर्थिक विकास करना है।
  • ट्राइफेड जनजातियों को अपने उत्पाद बेचने में एक समन्वयक और सेवाप्रदाता के रूप में कार्य करता है।
  • यह जनजातीय लोगों को जानकारी, उपकरण और सूचनाओं के माध्यम से सशक्त करता है, ताकि वे अपने कार्यों को अधिक क्रमबद्ध और वैज्ञानिक तरीके से कर सकें।
  • इसमें जागरूकता, स्वयं सहायता समूहों की रचना और कोई खास कार्यकलाप करने के लिये प्रशिक्षण देकर जनजातीय लोगों का क्षमता निर्माण भी शामिल है।
  • ट्राइफेड का मुख्य कार्यालय नई दिल्ली में स्थित है और देश में विभिन्न स्थानों पर इसके 15 क्षेत्रीय कार्यालय हैं। 

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