उत्तराखंड
गढ़वाल राइफल्स के नए कर्नल ऑफ द रेजिमेंट
- 01 Jul 2025
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चर्चा में क्यों?
अंडमान और निकोबार कमान के कमांडर-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल दिनेश सिंह राणा ने उत्तराखंड के लैंसडाउन स्थित गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंटल सेंटर में आयोजित एक समारोह में गढ़वाल राइफल्स के 23वें 'कर्नल ऑफ द रेजिमेंट' के रूप में आधिकारिक रूप से पदभार ग्रहण किया है। वे लेफ्टिनेंट जनरल एन.एस. राजा सुब्रमणि का स्थान लेंगे।
मुख्य बिंदु
- गढ़वाल राइफल्स:
- गढ़वाल राइफल्स भारतीय सेना की एक प्रतिष्ठित पैदल सेना रेजिमेंट है, जिसकी स्थापना वर्ष 1887 में बंगाल सेना की 39वीं (गढ़वाल) रेजिमेंट के रूप में की गई थी।
- यह रेजिमेंट आगे चलकर ब्रिटिश भारतीय सेना का हिस्सा बनी तथा भारत की स्वतंत्रता के पश्चात इसे भारतीय सेना में समाहित कर लिया गया।
- इस रेजिमेंट के सैनिक मुख्यतः उत्तराखंड के सात गढ़वाली ज़िलों— उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी गढ़वाल, देहरादून, पौड़ी गढ़वाल तथा हरिद्वार से आते हैं। गढ़वाल स्काउट्स, जो जोशीमठ में तैनात हैं, को "हिम तेंदुआ" उपनाम दिया गया है।
- इस रेजिमेंट की पहचान वीरता, साहस तथा राष्ट्र सेवा की सशक्त विरासत से है, जो गढ़वाली योद्धाओं की गौरवशाली परंपरा को दर्शाती है। इसने दोनों विश्व युद्धों तथा स्वतंत्रता के पश्चात हुए अनेक सैन्य संघर्षों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है।
- इसने वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध तथा वर्ष 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- यह रेजिमेंट श्रीलंका में ऑपरेशन पवन जैसे शांति अभियानों में अपनी प्रभावी भूमिका के लिये भी जानी जाती है।
- रेजिमेंट का आदर्श वाक्य है– "युद्धाय कृत निश्चय" अर्थात् "दृढ़ संकल्प के साथ लड़ो"।
- इसका प्रतीक चिह्न माल्टीज़ क्रॉस है, जो अब समाप्त हो चुकी राइफल ब्रिगेड (प्रिंस कंसोर्ट्स ओन) से प्रेरित है।
- गढ़वाल राइफल्स ने अब तक कई प्रतिष्ठित सैन्य सम्मान प्राप्त किये हैं, जिनमें तीन विक्टोरिया क्रॉस तथा एक अशोक चक्र शामिल हैं।