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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

गाज़ा संघर्ष को समाप्त करने के लिये अमेरिका की व्यापक योजना

प्रिलिम्स के लिये: गाज़ा पट्टी, हमास, भूमध्य सागर, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा, चाबहार बंदरगाह, हाइफा बंदरगाह।                                 

मेन्स के लिये: अमेरिकी राष्ट्रपति ने 20 सूत्री गाज़ा शांति योजना का अनावरण किया, जिसका शीर्षक है “गाज़ा संघर्ष को समाप्त करने के लिये व्यापक योजना” जिसका उद्देश्य क्षेत्र को स्थिर करना, हमास को निरस्त्र करना और गाज़ा पट्टी का पुनर्निर्माण करना है।

स्रोत: IE 

चर्चा में क्यों?

अमेरिकी राष्ट्रपति ने “गाज़ा संघर्ष को समाप्त करने के लिये व्यापक योजना” शीर्षक से 20 सूत्रीय गाज़ा शांति पहल की घोषणा की, जिसका उद्देश्य क्षेत्र में स्थिरता स्थापित करना, हमास का निरस्त्रीकरण करना और गाज़ा पट्टी का पुनर्निर्माण सुनिश्चित करना है।

  • हालाँकि हमास ने अब तक इस योजना को स्वीकृति नहीं दी है, लेकिन कई अरब देशों ने इसका स्वागत किया है। यह पहल क्षेत्रीय स्थिरता और भारतीय हितों—दोनों के लिये ही महत्त्वपूर्ण प्रभाव रखती है।

अमेरिका की गाज़ा शांति पहल की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • हमास का निरस्त्रीकरण और आत्मसमर्पण: इस योजना का मुख्य लक्ष्य हमास का निरस्त्रीकरण करना और गाज़ा को आतंक-मुक्त क्षेत्र बनाना है। हमास के सदस्यों को शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व या जॉर्डन, मिस्र, कतर और ईरान जैसे देशों में सुरक्षित मार्ग के लिये माफी मिलेगी तथा गाज़ा निवासियों को ज़बरन बेदखल नहीं किया जाएगा।
  • अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा बल: फिलिस्तीनी पुलिस को प्रशिक्षित करने और गाज़ा को सुरक्षित करने के लिये एक अस्थायी अंतर्राष्ट्रीय स्थिरीकरण बल (ISF) तैनात किया जाएगा।
    • इज़रायली रक्षा बल (ISF) सहमत लक्ष्यों के आधार पर पीछे हटेंगे तथा केवल एक "सुरक्षा परिधि" - एक संभावित बफर जोन को तब तक बनाए रखेंगे जब तक कि खतरा निष्प्रभावी न हो जाए।
  • एक नया शासन ढाँचा: गाज़ा का शासन एक अस्थायी “प्रौद्योगिक, गैर-राजनीतिक फिलिस्तीनी समिति” द्वारा किया जाएगा, जिसकी निगरानी एक अंतरराष्ट्रीय “बोर्ड ऑफ पीस” (Board of Peace) करेगा, जिसकी अध्यक्षता स्वयं डोनाल्ड ट्रम्प करेंगे।
  • मानवीय सहायता और बंधक विनिमय: योजना में मानवीय सहायता में त्वरित वृद्धि का प्रावधान है, ताकि गाज़ा के बुनियादी ढाँचे का पुनर्निर्माण किया जा सके। 
    • इसके साथ ही बंधक-कैदी विनिमय समझौता भी प्रस्तावित है — इज़रायल की स्वीकृति के 72 घंटे के भीतर सभी बंधकों की रिहाई होगी, जिसके बदले फिलिस्तीनी कैदियों को छोड़ा जाएगा।
  • क्षेत्रीय गारंटी: कतर, जॉर्डन, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), सऊदी अरब और पाकिस्तान सहित कई मुस्लिम और अरब देशों ने इस योजना का संयुक्त रूप से स्वागत किया है, जिससे इसके पालन और क्षेत्रीय स्थिरता को सुनिश्चित करने के लिये मज़बूत क्षेत्रीय समर्थन प्राप्त हुआ है।

इज़रायल-गाज़ा संघर्ष

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: 
    • बाल्फोर घोषणा (1917): ब्रिटेन द्वारा जारी इस घोषणा में फ़िलिस्तीन में यहूदी मातृभूमि की स्थापना का समर्थन किया गया था, जिससे वहाँ के यहूदी अल्पसंख्यक और अरब बहुसंख्यक के बीच तनाव बढ़ गया।
    • इज़रायल का गठन(1948): संयुक्त राष्ट्र के 1947 के विभाजन प्रस्ताव के बाद यहूदियों ने इज़रायल की स्वतंत्रता की घोषणा की। अरब देशों ने इस योजना को अस्वीकार कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप कई युद्ध हुए।
    • 1967 मध्य पूर्व युद्ध: इस युद्ध में इज़रायल ने वेस्ट बैंक, गाज़ा पट्टी और पूर्वी येरुशलम पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया, जिससे लगभग दस लाख फिलिस्तीनियों पर प्रभाव पड़ा।
    • योम किप्पुर युद्ध (1973): इस युद्ध के बाद कैम्प डेविड समझौता (1978) हुआ, जिसके तहत मिस्र इज़रायल को मान्यता देने वाला पहला अरब देश बना। इसके बदले इज़रायल ने वर्ष 1979 में सीनाई प्रायद्वीप मिस्र को लौटा दिया, लेकिन वेस्ट बैंक पर अपना नियंत्रण बनाए रखा।
  • स्थान: गाज़ा पट्टी पश्चिम एशिया में एक सघन आबादी वाला तटीय क्षेत्र है, जिसकी लंबाई लगभग 41 किमी और चौड़ाई 10 किमी है, जो भूमध्य सागर के किनारे स्थित है। 
    • इसकी सीमा उत्तर और पूर्व में इज़रायल तथा दक्षिण-पश्चिम में मिस्र से लगती है।
  • इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष में गाज़ा की भूमिका: रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में, गाज़ा पट्टी इज़रायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के केंद्र में बनी हुई है, जो निरंतर मानवीय, राजनीतिक और सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रही है।
    • संयुक्त राष्ट्र ने इज़रायल-हमास संघर्ष में तीव्र वृद्धि, व्यापक विस्थापन और मानवीय तथा वाणिज्यिक खाद्य आपूर्ति पर गंभीर प्रतिबंधों के बाद गाज़ा में आधिकारिक तौर पर अकाल की घोषणा की है।

इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष पर भारत की नीति क्या रही है?

  • फिलिस्तीन के लिये ऐतिहासिक समर्थन: भारत उन पहले गैर-अरब देशों में से एक था जिसने 1974 में फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (PLO) को फिलिस्तीनी जनता का एकमात्र वैध प्रतिनिधि के रूप में मान्यता दी। इसके बाद वर्ष 1988 में भारत ने फिलिस्तीन राज्य को भी आधिकारिक मान्यता प्रदान की।
  • "टू-स्टेट सोल्यूशन": भारत लगातार एक वार्ताकृत "टू-स्टेट सोल्यूशन" का समर्थन करता रहा है, जिसके अंतर्गत मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर एक स्वतंत्र, संप्रभु और व्यवहार्य फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना का पक्ष लिया गया है, जो इज़राइल के साथ समानांतर रूप से अस्तित्व में हो। यह नीति संयुक्त राष्ट्र में भारत के मतदान पैटर्न में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
  • डी-हाइफनेशन नीति: भारत ने जानबूझकर एक ऐसी संतुलित कूटनीतिक नीति अपनाई है, जिसमें इज़रायल और फिलिस्तीन के साथ संबंधों को अलग और स्वतंत्र रूप से विकसित किया जाता है — न कि इसे एक शून्य-योग समीकरण के रूप में देखा जाए, जहाँ एक पक्ष के समर्थन का अर्थ दूसरे का विरोध हो।
  • निरंतर कूटनीतिक समर्थन: भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) दोनों में फिलिस्तीन के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन किया है।
    • भारत ने 2011 में यूनेस्को (UNESCO) में फिलिस्तीन की सदस्यता के पक्ष में मतदान किया था तथा फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिये संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी (UNRWA) को भी आर्थिक सहयोग प्रदान किया है।
  • विकासात्मक सहयोग: भारत ने अब तक 141 मिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता दी है, जिसमें पैलेस्टाइन-इंडिया टेक्नो पार्क और गाज़ा में जवाहरलाल नेहरू सेकेंडरी स्कूल्स जैसी परियोजनाएँ शामिल हैं।
    • भारत ने यासिर अराफात चौक (Yasser Arafat Square) के पुनर्वास और नाबलुस में सौर ग्रिड प्रणाली (Solar Grid System) जैसी त्वरित प्रभाव परियोजनाएँ (Quick Impact Projects – QIPs) भी शुरू की हैं।
  • भारत के लिये सामरिक महत्त्व: इज़रायल और फिलिस्तीन के साथ भारत का जुड़ाव, क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देते हुए, मध्य पूर्व के साथ उसकी ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक संबंधों को मज़बूत करता है।

निष्कर्ष:

अमेरिका की 20-सूत्रीय गाज़ा शांति योजना, यदि सफलतापूर्वक लागू की जाती है, तो क्षेत्र में स्थिरता ला सकती है, प्रवासी भारतीयों की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकती है और भारत के ऊर्जा एवं आर्थिक हितों को मज़बूत कर सकती है। हालाँकि, हमास की स्वीकृति, ईरान का बहिष्कार और पाकिस्तान की भागीदारी जैसी चुनौतियाँ रणनीतिक अनिश्चितताएँ उत्पन्न करती हैं। भारत को अपनी दीर्घकालिक परियोजनाओं और रणनीतिक हितों की रक्षा के लिये क्षेत्रीय गतिशीलता को सावधानीपूर्वक समझना होगा।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत के सामरिक, आर्थिक और प्रवासी हितों के लिये गाज़ा शांति पहल के निहितार्थों का परीक्षण कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. गाज़ा शांति योजना क्या है?
यह ट्रम्प द्वारा गाज़ा को स्थिर करने, हमास का निरस्त्रीकरण करने, बुनियादी ढाँचे का पुनर्निर्माण करने और क्षेत्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये दिया गया 20-सूत्रीय अमेरिकी प्रस्ताव है।

2. गाज़ा में अंतर्राष्ट्रीय सेनाएँ क्या भूमिका निभाएंगी?
एक अस्थायी अंतर्राष्ट्रीय स्थिरीकरण बल (आईएसएफ) फिलिस्तीनी पुलिस को प्रशिक्षित करेगा, गाज़ा को सुरक्षित करेगा तथा आईडीएफ की वापसी की निगरानी करेगा।

3. इस योजना के तहत गाज़ा पर किस प्रकार शासन किया जाएगा?
ट्रम्प की अध्यक्षता वाले शांति बोर्ड की देखरेख में एक तकनीकी, गैर-राजनीतिक फिलिस्तीनी समिति अस्थायी रूप से गाज़ा का संचालन करेगी।

प्रश्न. “भारत के इज़रायल के साथ संबंधों ने हाल ही में एक ऐसी गहराई और विविधता हासिल की है, जिसकी पुनर्वापसी नहीं की जा सकती है।” विवेचना कीजिये। (मुख्य परीक्षा- 2018)


जैव विविधता और पर्यावरण

ई-अपशिष्ट प्रबंधन की सतत् कार्यनीतियाँ

प्रिलिम्स के लिये: ई-अपशिष्ट, भारी धातुएँ, कणिकीय पदार्थ, DNA, विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, ब्लॉकचेन, राइट-टू-रिपेयर                                       

मेन्स के लिये: भारत में ई-अपशिष्ट प्रबंधन: वर्तमान स्थिति, चुनौतियाँ, सामाजिक-आर्थिक प्रभाव, नीतिगत पहल और आगे की राह

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

भारत में वर्ष 2025 में 2.2 मिलियन मीट्रिक टन (MT) ई-अपशिष्ट उत्पन्न हुआ, जिससे यह चीन और अमेरिका के बाद तीसरा सबसे बड़ा ऐसा देश बन गया, जहाँ सर्वाधिक ई-अपशिष्ट उत्पन्न हुआ। हालाँकि, अपशिष्ट के अनौपचारिक पुनर्चक्रण से लाखों लोगों, विशेष रूप से उपांतिकृत समुदायों को गंभीर स्वास्थ्य जोखिम होते हैं, जिससे यह नगरों की बड़ी चुनौती बन गई है।

ई-अपशिष्ट

  • परिचय: ई-अपशिष्ट या इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट, अनुपयोगी या उपयोग की समाप्ति तिथि वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और घटकों को कहते हैं। इसमें कंप्यूटर, टेलीविज़न, मोबाइल फोन, प्रिंटर, रेफ्रिजरेटर और एयर कंडीशनर जैसी वस्तुएँ शामिल हैं।
    • इन उत्पादों में सामान्यतया सीसा, पारा, कैडमियम और क्रोमियम जैसे विषाक्त पदार्थ होते हैं।
  • भारत में ई-अपशिष्ट की वर्तमान स्थिति:
    • उत्पादन में तेज़ बढ़ोतरी: ई-अपशिष्ट के उत्पादन में वर्ष 2017-18 में दर्ज 0.71 मिलियन मीट्रिक टन से 150% की बढ़ोतरी दर्ज की गई। वर्तमान दरों पर भारत में वर्ष 2030 तक यह मात्रा लगभग दोगुनी होने की आशंका है।
    • शहरी हॉटस्पॉट: यह संकट शहरों में केंद्रित है, जहाँ 60% से ज़्यादा ई-अपशिष्ट सिर्फ 65 शहरी केंद्रों से उत्पन्न होता है। प्रमुख हॉटस्पॉट में दिल्ली में सीलमपुर और मुस्तफाबाद, उत्तर प्रदेश में मुरादाबाद और महाराष्ट्र में भिवंडी शामिल हैं।
    • अनौपचारिक पुनर्चक्रण: भारत में 322 पंजीकृत औपचारिक पुनर्चक्रण इकाइयाँ हैं जिनकी वार्षिक क्षमता 2.2 मिलियन मीट्रिक टन है, फिर भी आधे से अधिक ई-अपशिष्ट (2023-24 में आधिकारिक तौर पर संसाधित 43%) अनौपचारिक रूप से संसाधित किया जाता है या पुनर्चक्रित नहीं किया जाता है।
  • भारत में ई-अपशिष्ट प्रबंधन ढाँचे
    • ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2016: इसके तहत उत्पादक उत्तरदायित्व संगठन (PRO) की अवधारणा प्रस्तुत की गई।
    • ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम 2022: विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) के तहत, उत्पादकों को पंजीकृत पुनर्चक्रणकर्त्ताओं के माध्यम से वार्षिक पुनर्चक्रण लक्ष्यों को पूरा करना होगा, जिसमें EPR प्रमाणपत्र पुनर्चक्रित उत्पादों के लिये जवाबदेही सुनिश्चित करेंगे।
      • सार्वजनिक संस्थाओं को ई-अपशिष्ट का निपटान पंजीकृत पुनर्चक्रणकर्त्ताओं/नवीनीकरणकर्त्ताओं के माध्यम से करना चाहिये, जो संग्रहण और प्रसंस्करण का कार्य सॅंभालते हैं।
    • ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) दूसरा संशोधन नियम, 2023: ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम 2022 के नियम 5 के तहत, प्रशीतन और एयर कंडीशनिंग विनिर्माण में रेफ्रिजरेंट के सुरक्षित और टिकाऊ प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिये खंड 4 जोड़ा गया था।
    • ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) संशोधन नियम, 2024: ये नियम केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के दिशा-निर्देशों के अनुसार, उसकी मंज़ूरी से EPR प्रमाणपत्रों के व्यापार के लिये प्लेटफॉर्म बनाने का प्रावधान करते हैं।
    • खतरनाक और अन्य अपशिष्ट (प्रबंधन और सीमापार संचलन) संशोधन नियम, 2025: यह एक व्यापक EPR ढाँचा प्रस्तुत करता है जो गैर-लौह धातु स्क्रैप के लिये है। इसके तहत उत्पादकों को पुनर्चक्रण के लक्ष्यों की ज़िम्मेदारी दी गई है, जो वर्ष 2026-27 में 10% से शुरू होकर वर्ष 2032-33 तक 75% तक बढ़ जाएगी।

भारत में ई-अपशिष्ट के प्रबंधन से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • अनौपचारिक क्षेत्र का प्रभुत्व: 50% से अधिक ई-अपशिष्ट का प्रबंधन अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा किया जाता है, जो खुले में जलाने और एसिड लीचिंग जैसे खतरनाक तरीकों का उपयोग करता है, जिससे स्वास्थ्य और पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
  • कमज़ोर कार्यान्वयन: EPR का गैर-अनुपालन, गलत रिपोर्टिंग (नकली प्रमाण पत्र) और कमज़ोर दंड बड़े निगमों को रोकने में विफल रहे हैं।
  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: अपर्याप्त अधिकृत विघटनकर्त्ता और पुनर्चक्रणकर्त्ता, कीमती धातु पुनर्प्राप्ति के लिये उन्नत प्रौद्योगिकियों की कमी तथा औपचारिक पुनर्चक्रण की उच्च लागत भारत की ई-अपशिष्ट प्रबंधन क्षमता को सीमित करती है।
  • उपभोक्ता जागरूकता का अभाव: अधिकांश नागरिक ई-अपशिष्ट के खतरों से अनभिज्ञ रहते हैं और प्राय: इसे नगर निगम अपशिष्ट के साथ मिला देते हैं, जबकि उत्पादक वापसी (Producer take-back) या ड्रॉप-ऑफ पॉइंट जैसे औपचारिक संग्रहण तंत्र अब भी कम प्रचलित और पहुँच से बाहर हैं।
  • ई-अपशिष्ट की जटिल प्रकृति: ई-अपशिष्ट में मूल्यवान धातुएँ (सोना, ताँबा), विषैली भारी धातु (सीसा, पारा) और खतरनाक रसायन पाए जाते हैं, वहीं आधुनिक कॉम्पैक्ट उपकरणों की डिज़ाइन, जिनमें पुर्ज़े चिपकाए या सोल्डर किये जाते हैं, सुरक्षित विघटन को श्रम-सघन तथा कठिन बना देती है।

ई-अपशिष्ट पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर किस प्रकार प्रभाव डालता है

  • स्वास्थ्य पर प्रभाव: अनौपचारिक ई-अपशिष्ट पुनर्चक्रण से श्रमिकों और आस-पास के लोगों को श्वसन संबंधी बीमारियों, तंत्रिका संबंधी क्षति, त्वचा एवं नेत्र विकारों तथा DNA क्षति व प्रतिरक्षा परिवर्तन जैसे आनुवंशिक प्रभावों का सामना करना पड़ता है।
  • पर्यावरण पर प्रभाव: खुले में जलाने से कणीय पदार्थ, भारी धातुएँ और डाइऑक्सिन उत्सर्जित होते हैं, जिससे खतरनाक वायु प्रदूषण होता है, जबकि विषाक्त अवशेष भूजल को दूषित करते हैं, जिससे पेयजल तथा सिंचाई के स्रोतों को खतरा होता है।   
  • कृषि पर प्रभाव: ई-अपशिष्ट से निक्षालन मृदा को भारी धातुओं (कैडमियम, सीसा, क्रोमियम) के लिये एक सिंक में बदल देता है, जिन्हें फसलों और पशुओं द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है, जबकि रासायनिक संदूषण मृदा के माइक्रोबायोटा को हानि पहुँचाता है, कार्बनिक पदार्थों को कम करता है तथा मृदा के pH को बदल देता है।
  • सामाजिक-आर्थिक प्रभाव: खतरनाक कम लागत वाली अनौपचारिक पुनर्चक्रण औपचारिक हरित उद्योग के विकास में बाधा डालती है, जबकि डेटा भंडारण उपकरणों के अनुचित संचालन से धोखाधड़ी और पहचान की चोरी का खतरा होता है।

भारत ई-अपशिष्ट प्रबंधन को अधिक संधारणीय और कुशल कैसे बना सकता है?

  • अनौपचारिक क्षेत्र का औपचारिक एकीकरण: अनौपचारिक ई-अपशिष्ट श्रमिकों को ग्रीन कॉलर तकनीशियनों के रूप में प्रशिक्षित करना, सुरक्षात्मक उपकरणों के साथ सुरक्षित पुनर्चक्रण क्षेत्र प्रदान करना और औपचारिक पंजीकरण को स्वास्थ्य सेवा, बीमा एवं पेंशन लाभों से जोड़ना।
    • उपभोक्ताओं से पुनर्चक्रणकर्त्ताओं तक ई-अपशिष्ट को ट्रैक करने के लिये ब्लॉकचेन-शैली के डिजिटल लेज़र का उपयोग करना, वार्षिक ऑडिट अनिवार्य करना और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये EPR फ्रेमवर्क को सुव्यवस्थित करना।
  • प्रौद्योगिकी और नवाचार का लाभ उठाना: उन्नत श्रेडिंग, बायोलीचिंग और नॉन-थर्मल रिकवरी विधियों के लिये अनुसंधान एवं विकास को वित्तपोषित करना; विकेंद्रीकृत रीसाइक्लिंग केंद्रों की स्थापना करना तथा ई-अपशिष्ट को एक मूल्यवान संसाधन मानकर ‘शहरी खनन’ को प्रोत्साहित करना।
  • उपभोक्ता उत्तरदायित्व को बढ़ावा देना: अनौपचारिक पुनर्चक्रण के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों और ई-अपशिष्ट के उचित निपटान पर जन-जागरूकता अभियान चलाना; स्कूलों में ई-अपशिष्ट और सर्कुलर इकोनॉमी की शिक्षा देना तथा उत्पादक वापसी (Producer take-back) एवं प्रोत्साहनयुक्त रिवर्स वेंडिंग मशीनों के माध्यम से निपटान की प्रक्रिया को सरल बनाना।
  • सर्कुलर इकोनॉमी: राइट-टू-रिपेयर संबंधी कानूनों को बढ़ावा देना, प्रोत्साहनों के माध्यम से स्थाई व आसानी से अलग किये जाने वाले इलेक्ट्रॉनिक्स को प्रोत्साहित करना तथा मरम्मत योग्य और पुनर्चक्रित सामग्री वाले उत्पादों को प्राथमिकता देकर हरित सार्वजनिक खरीद का समर्थन करना।
  • वैश्विक सहयोग: खतरनाक अपशिष्ट के सीमा पार आवागमन और उनके निपटान के नियंत्रण पर बेसल कन्वेंशन (1989) को सख्ती से लागू करना। यह एक वैश्विक संधि है जिसका उद्देश्य ई-अपशिष्ट सहित खतरनाक अपशिष्ट के अंतर्राष्ट्रीय आवागमन को सीमित करना है। भारत इस कन्वेंशन का एक हस्ताक्षरकर्त्ता है।

निष्कर्ष

भारत में डिजिटल रूपांतरण की तीव्र वृद्धि ने ई-अपशिष्ट संकट को और बढ़ा दिया है, जिसका असमान प्रभाव हाशिये पर रहने वाले समुदायों पर पड़ रहा है। स्थायी समाधान के लिये अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक बनाना, प्रवर्तन को सुदृढ़ करना, प्रौद्योगिकी का उपयोग करना, उपभोक्ता ज़िम्मेदारी को बढ़ावा देना और सर्कुलर इकोनॉमी के सिद्धांतों को अपनाना आवश्यक है। सार्वजनिक स्वास्थ्य, पर्यावरणीय अखंडता और दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता की सुरक्षा के लिये तत्काल बहु-हितधारक कार्रवाई अनिवार्य है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: "भारत की डिजिटल छलॉंग का एक अनपेक्षित परिणाम है: एक मूक ई-अपशिष्ट महामारी।" शहरी भारत में अनौपचारिक ई-अपशिष्ट पुनर्चक्रण द्वारा उत्पन्न सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौतियों का विश्लेषण करते हुए, इस कथन का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. भारत की वर्तमान ई-अपशिष्ट उत्पादन स्थिति क्या है?
भारत में वर्ष 2025 में 2.2 मिलियन मीट्रिक टन ई-अपशिष्ट उत्पन्न हुआ, जो वैश्विक स्तर पर तीसरे स्थान पर है, जिसमें दिल्ली, मुरादाबाद और भिवंडी जैसे शहरी क्षेत्रों का योगदान 60% से अधिक है।

2. ई-अपशिष्ट प्रबंधन के संदर्भ में 'अर्बन माइनिंग' की संकल्पना क्या है?
यह ई-अपशिष्ट को एक मूल्यवान संसाधन के रूप में मानता है, जिसमें फेंके गए इलेक्ट्रॉनिक्स से कीमती और दुर्लभ पृथ्वी धातुओं को पुनः प्राप्त किया जाता है, सर्कुलर इकोनॉमी को बढ़ावा मिलता है और नई कच्ची सामग्री के निष्कर्षण की आवश्यकता कम होती है।

3. अनौपचारिक ई-अपशिष्ट पुनर्चक्रण से जुड़े प्रमुख स्वास्थ्य जोखिम क्या हैं?
अनौपचारिक पुनर्चक्रण श्रमिकों को श्वसन संबंधी रोगों, तंत्रिका संबंधी क्षति, त्वचा विकारों, DNA क्षति और विशेष रूप से बच्चों में विकासात्मक विलंब के जोखिम के संपर्क में लाता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. पुराने और प्रयुक्त कम्प्यूटरों या उनके पुर्जों के असंगत/अव्यवस्थित निपटान के कारण, निम्नलिखित में से कौन-से ई-अपशिष्ट के रूप में पर्यावरण में निर्मुक्त होते हैं? (2013)

  1. बेरिलियम
  2. कैडमियम
  3. क्रोमियम
  4. हेप्टाक्लोर
  5. पारद
  6. सीसा
  7. प्लूटोनियम

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

(a) केवल 1, 3, 4, 6 और 7

(b) केवल 1, 2, 3, 5 और 6

(c) केवल 2, 4, 5 और 7

(d) 1, 2, 3, 4, 5, 6 और 7 

उत्तर: (b) 


मेन्स:

प्रश्न. निरंतर उत्पन्न किये जा रहे फेंके गए ठोस कचरे की विशाल मात्राओं का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे जहरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (2018)


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