जैव विविधता और पर्यावरण
ई-अपशिष्ट प्रबंधन की सतत् कार्यनीतियाँ
- 04 Oct 2025
- 81 min read
प्रिलिम्स के लिये: ई-अपशिष्ट, भारी धातुएँ, कणिकीय पदार्थ, DNA, विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, ब्लॉकचेन, राइट-टू-रिपेयर
मेन्स के लिये: भारत में ई-अपशिष्ट प्रबंधन: वर्तमान स्थिति, चुनौतियाँ, सामाजिक-आर्थिक प्रभाव, नीतिगत पहल और आगे की राह
चर्चा में क्यों?
भारत में वर्ष 2025 में 2.2 मिलियन मीट्रिक टन (MT) ई-अपशिष्ट उत्पन्न हुआ, जिससे यह चीन और अमेरिका के बाद तीसरा सबसे बड़ा ऐसा देश बन गया, जहाँ सर्वाधिक ई-अपशिष्ट उत्पन्न हुआ। हालाँकि, अपशिष्ट के अनौपचारिक पुनर्चक्रण से लाखों लोगों, विशेष रूप से उपांतिकृत समुदायों को गंभीर स्वास्थ्य जोखिम होते हैं, जिससे यह नगरों की बड़ी चुनौती बन गई है।
ई-अपशिष्ट
- विषय: ई-अपशिष्ट या इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट, अनुपयोगी या उपयोग की समाप्ति तिथि वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और घटकों को कहते हैं। इसमें कंप्यूटर, टेलीविज़न, मोबाइल फोन, प्रिंटर, रेफ्रिजरेटर और एयर कंडीशनर जैसी वस्तुएँ शामिल हैं।
- इन उत्पादों में सामान्यतया सीसा, पारा, कैडमियम और क्रोमियम जैसे विषाक्त पदार्थ होते हैं।
- भारत में ई-अपशिष्ट की वर्तमान स्थिति:
- उत्पादन में तेज़ बढ़ोतरी: ई-अपशिष्ट के उत्पादन में वर्ष 2017-18 में दर्ज 0.71 मिलियन मीट्रिक टन से 150% की बढ़ोतरी दर्ज की गई। वर्तमान दरों पर भारत में वर्ष 2030 तक यह मात्रा लगभग दोगुनी होने की आशंका है।
- शहरी हॉटस्पॉट: यह संकट शहरों में केंद्रित है, जहाँ 60% से ज़्यादा ई-अपशिष्ट सिर्फ 65 शहरी केंद्रों से उत्पन्न होता है। प्रमुख हॉटस्पॉट में दिल्ली में सीलमपुर और मुस्तफाबाद, उत्तर प्रदेश में मुरादाबाद और महाराष्ट्र में भिवंडी शामिल हैं।
- अनौपचारिक पुनर्चक्रण: भारत में 322 पंजीकृत औपचारिक पुनर्चक्रण इकाइयाँ हैं जिनकी वार्षिक क्षमता 2.2 मिलियन मीट्रिक टन है, फिर भी आधे से अधिक ई-अपशिष्ट (2023-24 में आधिकारिक तौर पर संसाधित 43%) अनौपचारिक रूप से संसाधित किया जाता है या पुनर्चक्रित नहीं किया जाता है।
- भारत में ई-अपशिष्ट प्रबंधन ढाँचे
- ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2016: इसके तहत उत्पादक उत्तरदायित्व संगठन (PRO) की अवधारणा प्रस्तुत की गई।
- ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम 2022: विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) के तहत, उत्पादकों को पंजीकृत पुनर्चक्रणकर्त्ताओं के माध्यम से वार्षिक पुनर्चक्रण लक्ष्यों को पूरा करना होगा, जिसमें EPR प्रमाणपत्र पुनर्चक्रित उत्पादों के लिये जवाबदेही सुनिश्चित करेंगे।
- सार्वजनिक संस्थाओं को ई-अपशिष्ट का निपटान पंजीकृत पुनर्चक्रणकर्त्ताओं/नवीनीकरणकर्त्ताओं के माध्यम से करना चाहिये, जो संग्रहण और प्रसंस्करण का कार्य सॅंभालते हैं।
- ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) दूसरा संशोधन नियम, 2023: ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम 2022 के नियम 5 के तहत, प्रशीतन और एयर कंडीशनिंग विनिर्माण में रेफ्रिजरेंट के सुरक्षित और टिकाऊ प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिये खंड 4 जोड़ा गया था।
- ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) संशोधन नियम, 2024: ये नियम केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के दिशा-निर्देशों के अनुसार, उसकी मंज़ूरी से EPR प्रमाणपत्रों के व्यापार के लिये प्लेटफॉर्म बनाने का प्रावधान करते हैं।
- CPCB, EPR प्रमाणपत्र की कीमत गैर-अनुपालन के लिये पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के 30% (न्यूनतम) और 100% (अधिकतम) के बीच निर्धारित करेगा।
- खतरनाक और अन्य अपशिष्ट (प्रबंधन और सीमापार संचलन) संशोधन नियम, 2025: यह एक व्यापक EPR ढाँचा प्रस्तुत करता है जो गैर-लौह धातु स्क्रैप के लिये है। इसके तहत उत्पादकों को पुनर्चक्रण के लक्ष्यों की ज़िम्मेदारी दी गई है, जो वर्ष 2026-27 में 10% से शुरू होकर वर्ष 2032-33 तक 75% तक बढ़ जाएगी।
भारत में ई-अपशिष्ट के प्रबंधन से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- अनौपचारिक क्षेत्र का प्रभुत्व: 50% से अधिक ई-अपशिष्ट का प्रबंधन अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा किया जाता है, जो खुले में जलाने और एसिड लीचिंग जैसे खतरनाक तरीकों का उपयोग करता है, जिससे स्वास्थ्य और पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
- कमज़ोर कार्यान्वयन: EPR का गैर-अनुपालन, गलत रिपोर्टिंग (नकली प्रमाण पत्र) और कमज़ोर दंड बड़े निगमों को रोकने में विफल रहे हैं।
- अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: अपर्याप्त अधिकृत विघटनकर्त्ता और पुनर्चक्रणकर्त्ता, कीमती धातु पुनर्प्राप्ति के लिये उन्नत प्रौद्योगिकियों की कमी तथा औपचारिक पुनर्चक्रण की उच्च लागत भारत की ई-अपशिष्ट प्रबंधन क्षमता को सीमित करती है।
- उपभोक्ता जागरूकता का अभाव: अधिकांश नागरिक ई-अपशिष्ट के खतरों से अनभिज्ञ रहते हैं और प्राय: इसे नगर निगम अपशिष्ट के साथ मिला देते हैं, जबकि उत्पादक वापसी (Producer take-back) या ड्रॉप-ऑफ पॉइंट जैसे औपचारिक संग्रहण तंत्र अब भी कम प्रचलित और पहुँच से बाहर हैं।
- ई-अपशिष्ट की जटिल प्रकृति: ई-अपशिष्ट में मूल्यवान धातुएँ (सोना, ताँबा), विषैली भारी धातु (सीसा, पारा) और खतरनाक रसायन पाए जाते हैं, वहीं आधुनिक कॉम्पैक्ट उपकरणों की डिज़ाइन, जिनमें पुर्ज़े चिपकाए या सोल्डर किये जाते हैं, सुरक्षित विघटन को श्रम-सघन तथा कठिन बना देती है।
ई-अपशिष्ट पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर किस प्रकार प्रभाव डालता है
- स्वास्थ्य पर प्रभाव: अनौपचारिक ई-अपशिष्ट पुनर्चक्रण से श्रमिकों और आस-पास के लोगों को श्वसन संबंधी बीमारियों, तंत्रिका संबंधी क्षति, त्वचा एवं नेत्र विकारों तथा DNA क्षति व प्रतिरक्षा परिवर्तन जैसे आनुवंशिक प्रभावों का सामना करना पड़ता है।
- पर्यावरण पर प्रभाव: खुले में जलाने से कणीय पदार्थ, भारी धातुएँ और डाइऑक्सिन उत्सर्जित होते हैं, जिससे खतरनाक वायु प्रदूषण होता है, जबकि विषाक्त अवशेष भूजल को दूषित करते हैं, जिससे पेयजल तथा सिंचाई के स्रोतों को खतरा होता है।
- कृषि पर प्रभाव: ई-अपशिष्ट से निक्षालन मृदा को भारी धातुओं (कैडमियम, सीसा, क्रोमियम) के लिये एक सिंक में बदल देता है, जिन्हें फसलों और पशुओं द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है, जबकि रासायनिक संदूषण मृदा के माइक्रोबायोटा को हानि पहुँचाता है, कार्बनिक पदार्थों को कम करता है तथा मृदा के pH को बदल देता है।
- सामाजिक-आर्थिक प्रभाव: खतरनाक कम लागत वाली अनौपचारिक पुनर्चक्रण औपचारिक हरित उद्योग के विकास में बाधा डालती है, जबकि डेटा भंडारण उपकरणों के अनुचित संचालन से धोखाधड़ी और पहचान की चोरी का खतरा होता है।
भारत ई-अपशिष्ट प्रबंधन को अधिक संधारणीय और कुशल कैसे बना सकता है?
- अनौपचारिक क्षेत्र का औपचारिक एकीकरण: अनौपचारिक ई-अपशिष्ट श्रमिकों को ग्रीन कॉलर तकनीशियनों के रूप में प्रशिक्षित करना, सुरक्षात्मक उपकरणों के साथ सुरक्षित पुनर्चक्रण क्षेत्र प्रदान करना और औपचारिक पंजीकरण को स्वास्थ्य सेवा, बीमा एवं पेंशन लाभों से जोड़ना।
- उपभोक्ताओं से पुनर्चक्रणकर्त्ताओं तक ई-अपशिष्ट को ट्रैक करने के लिये ब्लॉकचेन-शैली के डिजिटल लेज़र का उपयोग करना, वार्षिक ऑडिट अनिवार्य करना और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये EPR फ्रेमवर्क को सुव्यवस्थित करना।
- प्रौद्योगिकी और नवाचार का लाभ उठाना: उन्नत श्रेडिंग, बायोलीचिंग और नॉन-थर्मल रिकवरी विधियों के लिये अनुसंधान एवं विकास को वित्तपोषित करना; विकेंद्रीकृत रीसाइक्लिंग केंद्रों की स्थापना करना तथा ई-अपशिष्ट को एक मूल्यवान संसाधन मानकर ‘शहरी खनन’ को प्रोत्साहित करना।
- उपभोक्ता उत्तरदायित्व को बढ़ावा देना: अनौपचारिक पुनर्चक्रण के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों और ई-अपशिष्ट के उचित निपटान पर जन-जागरूकता अभियान चलाना; स्कूलों में ई-अपशिष्ट और सर्कुलर इकोनॉमी की शिक्षा देना तथा उत्पादक वापसी (Producer take-back) एवं प्रोत्साहनयुक्त रिवर्स वेंडिंग मशीनों के माध्यम से निपटान की प्रक्रिया को सरल बनाना।
- सर्कुलर इकोनॉमी: राइट-टू-रिपेयर संबंधी कानूनों को बढ़ावा देना, प्रोत्साहनों के माध्यम से स्थाई व आसानी से अलग किये जाने वाले इलेक्ट्रॉनिक्स को प्रोत्साहित करना तथा मरम्मत योग्य और पुनर्चक्रित सामग्री वाले उत्पादों को प्राथमिकता देकर हरित सार्वजनिक खरीद का समर्थन करना।
- वैश्विक सहयोग: खतरनाक अपशिष्ट के सीमा पार आवागमन और उनके निपटान के नियंत्रण पर बेसल कन्वेंशन (1989) को सख्ती से लागू करना। यह एक वैश्विक संधि है जिसका उद्देश्य ई-अपशिष्ट सहित खतरनाक अपशिष्ट के अंतर्राष्ट्रीय आवागमन को सीमित करना है। भारत इस कन्वेंशन का एक हस्ताक्षरकर्त्ता है।
निष्कर्ष
भारत में डिजिटल रूपांतरण की तीव्र वृद्धि ने ई-अपशिष्ट संकट को और बढ़ा दिया है, जिसका असमान प्रभाव हाशिये पर रहने वाले समुदायों पर पड़ रहा है। स्थायी समाधान के लिये अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक बनाना, प्रवर्तन को सुदृढ़ करना, प्रौद्योगिकी का उपयोग करना, उपभोक्ता ज़िम्मेदारी को बढ़ावा देना और सर्कुलर इकोनॉमी के सिद्धांतों को अपनाना आवश्यक है। सार्वजनिक स्वास्थ्य, पर्यावरणीय अखंडता और दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता की सुरक्षा के लिये तत्काल बहु-हितधारक कार्रवाई अनिवार्य है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: "भारत की डिजिटल छलॉंग का एक अनपेक्षित परिणाम है: एक मूक ई-अपशिष्ट महामारी।" शहरी भारत में अनौपचारिक ई-अपशिष्ट पुनर्चक्रण द्वारा उत्पन्न सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौतियों का विश्लेषण करते हुए, इस कथन का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. भारत की वर्तमान ई-अपशिष्ट उत्पादन स्थिति क्या है?
भारत में वर्ष 2025 में 2.2 मिलियन मीट्रिक टन ई-अपशिष्ट उत्पन्न हुआ, जो वैश्विक स्तर पर तीसरे स्थान पर है, जिसमें दिल्ली, मुरादाबाद और भिवंडी जैसे शहरी क्षेत्रों का योगदान 60% से अधिक है।
2. ई-अपशिष्ट प्रबंधन के संदर्भ में 'अर्बन माइनिंग' की संकल्पना क्या है?
यह ई-अपशिष्ट को एक मूल्यवान संसाधन के रूप में मानता है, जिसमें फेंके गए इलेक्ट्रॉनिक्स से कीमती और दुर्लभ पृथ्वी धातुओं को पुनः प्राप्त किया जाता है, सर्कुलर इकोनॉमी को बढ़ावा मिलता है और नई कच्ची सामग्री के निष्कर्षण की आवश्यकता कम होती है।
3. अनौपचारिक ई-अपशिष्ट पुनर्चक्रण से जुड़े प्रमुख स्वास्थ्य जोखिम क्या हैं?
अनौपचारिक पुनर्चक्रण श्रमिकों को श्वसन संबंधी रोगों, तंत्रिका संबंधी क्षति, त्वचा विकारों, DNA क्षति और विशेष रूप से बच्चों में विकासात्मक विलंब के जोखिम के संपर्क में लाता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
प्रिलिम्स:
प्रश्न. पुराने और प्रयुक्त कम्प्यूटरों या उनके पुर्जों के असंगत/अव्यवस्थित निपटान के कारण, निम्नलिखित में से कौन-से ई-अपशिष्ट के रूप में पर्यावरण में निर्मुक्त होते हैं? (2013)
- बेरिलियम
- कैडमियम
- क्रोमियम
- हेप्टाक्लोर
- पारद
- सीसा
- प्लूटोनियम
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।
(a) केवल 1, 3, 4, 6 और 7
(b) केवल 1, 2, 3, 5 और 6
(c) केवल 2, 4, 5 और 7
(d) 1, 2, 3, 4, 5, 6 और 7
उत्तर: (b)
मेन्स:
प्रश्न. निरंतर उत्पन्न किये जा रहे फेंके गए ठोस कचरे की विशाल मात्राओं का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे जहरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (2018)