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डेली न्यूज़

  • 04 Apr, 2020
  • 58 min read
भूगोल

नासा द्वारा भू-जल एवं मृदा-नमी का मानचित्रण

प्रीलिम्स के लिये:

जड़ क्षेत्र, मृदा की गहराई

मेन्स के लिये:

भू-जल संकट 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी 'राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन' (National Aeronautics and Space Administration- NASA) तथा नेब्रास्का-लिंकन यूनिवर्सिटी (University of Nebraska-Lincoln: UNL) द्वारा मृदा नमी तथा भू-जल नमी स्थिति पर उपग्रह आधारित वैश्विक मानचित्र विकसित किये गए हैं।

मुख्य बिंदु:

  • इन वैश्विक मानचित्रों को जारी करने में नासा तथा जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर जियोसाइंसेज़ ग्रेविटी रिकवरी एंड क्लाइमेट एक्सपेरिमेंट फॉलो ऑन (German Research Center for Geosciences’ Gravity Recovery and Climate Experiment Follow On (GRACE- FO) उपग्रहों के आँकड़ों का उपयोग किया गया है।
  • जल वितरण में परिवर्तन के उपग्रह आधारित अवलोकन को जल तथा ऊर्जा चक्र आँकड़ों के साथ एकीकृत कंप्यूटर आधारित मॉडल तैयार किया गया था। 
  • इस मॉडल का उपयोग करके निम्नलिखित तीन मृदा स्तरों में जल वितरण संबंधी मानचित्र तैयार किये गए हैं: 
    • सतही मृदा (Surface Soil) नमी।  
    • पौधों के जड़ क्षेत्र (Root Zone) में मृदा नमी (लगभग तीन फीट मिट्टी के ऊपर)।  
    • उथले भू-जल (Shallow Groundwater)।

जड़ क्षेत्र (Root Zone):

  • जड़ क्षेत्र एक पौधे की जड़ों के आसपास ऑक्सीजन तथा मृदा का क्षेत्र है। चूंकि जड़ें पौधे की संवहनीय प्रणाली का प्रारंभिक बिंदु होती हैं, अत: जड़ क्षेत्र को समझना और उसका पता लगाना बागवानी का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।

सतही मृदा (Surface Soil):

  • मृदा को उसकी गहराई के आधार पर निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है: 
    1.  छिछली मृदा (Shallow Soil):
    जब मृदा की गहराई 22.5 सेमी से कम हो। केवल उथली जड़ वाली फसलें ऐसी मृदा में उगाई जाती हैं, जैसे- धान की फसल। 
    2. मध्यम गहरी मृदा (Medium Deep Soil): 
    जब मृदा की गहराई 22.5 से 45 सेमी के मध्य हो। मध्यम गहराई की जड़ों वाली फसलें इस प्रकार की मिट्टी में उगाई जाती हैं। जैसे- गन्ना
    3. गहरी मृदा (Deep soil):
    जब मृदा की गहराई 45 सेमी से अधिक हो। लंबी और गहरी जड़ों वाली फसलें इस प्रकार की मिट्टी में उगाई जाती हैं। जैसे- आम, नारियल। 

उथला भू-जल (Shallow groundwater):

  • ऐसी स्थिति जिसमें मौसमी उच्च भू-जल तालिका (Groundwater Table) या संतृप्त मृदा का स्तर भूमि सतह से 3 फीट से भी कम गहराई पर हो।

मानचित्रण का महत्त्व:

  • ये मानचित्र किसी भी भू-परिदृश्य में नमी और भू-जल की स्थिति पर 8.5 मील तक का रिज़ॉल्यूशन उपलब्ध कराने में सक्षम हैं।
  • नवीन मानचित्रों का उद्देश्य विश्व के सभी देशों को एक समान भू-जल-निगरानी बुनियादी ढाँचा उपलब्ध कराना है (विशेष रूप से अविकसित देशों में)।
  • इन संकेतकों पर आधारित आँकड़ों की साप्ताहिक उपलब्धता से कृषि क्षेत्र को बढ़ावा  मिलेगा। इन आँकड़ों के माध्यम से उपयुक्त कृषि फसलों के चयन तथा पैदावार का अनुमान लगाने में मदद मिलेगी।
  • अब तक पश्चिमी एशिया, उत्तरी अफ्रीका, दक्षिण एशिया और भारत में सूखे की निगरानी का कार्य ग्रेविटी रिकवरी और क्लाइमेट एक्सपेरिमेंट फॉलो-ऑन (Gravity Recovery and Climate Experiment Follow-On) आधारित वैश्विक मानचित्रों तथा अन्य उपकरणों का उपयोग करके किया जा रहा था। वैज्ञानिक समुदाय का मानना है कि इस परियोजना के माध्यम से उपलब्ध आँकड़ें नमी तथा शुष्कता की स्थिति को अच्छे से समझने में सहायता करेंगे। 
  • ये वैश्विक मानचित्र अमेरिका के राष्ट्रीय शुष्कता केंद्र के डेटा पोर्टल के माध्यम से सभी उपयोगकर्त्ताओं के लिये स्वतंत्र रूप से उपलब्ध रहेंगे। 
  • ये मानचित्र जनसंख्या वृद्धि, जलवायु परिवर्तन, जल खपत के बेहतर प्रबंधन में सहायक होंगे।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम

प्रीलिम्स के लिये:

COVID-19, NIOS, दीक्षा पोर्टल

मेंस के लिये:

COVID-19 से निपटने हेतु भारत सरकार द्वारा किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार आगामी शैक्षणिक वर्ष को आभासी (Virtually) रूप में शुरू करने की योजना बना रही है।

प्रमुख बिंदु:

  • गौरतलब है कि देश भर में मार्च की शुरुआत से ही (लॉकडाउन से पहले ही) COVID-19 महामारी के कारण कई स्कूल  बंद हैं।
  • केंद्र सरकार ने अंग्रेजी और हिंदी में समर्पित टीवी तथा रेडियो चैनलों के माध्यम से दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम फिर से शुरू करने की योजना बनाई है।
    • दरअसल स्वयंप्रभा 32 डीटीएच चैनलों का एक समूह के साथ एक पहले से मौजूद कार्यक्रम है जो जीसैट -15 उपग्रह का उपयोग करते हुए 24X7 के आधार पर उच्च गुणवत्ता वाले शैक्षिक कार्यक्रमों का प्रसारण करने के लिये समर्पित है।
  • राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (National Institute of Open Schooling- NIOS) को स्कूल कक्षाओं के लिये एक संरचित कार्यक्रम बनाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है। 
    • यह प्रयास राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (National Council of Educational Research and Training-NCERT) के साथ उसके पाठ्यक्रम का उपयोग करके किया जा रहा है।  

राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान

(National Institute of Open Schooling- NIOS):

  • NIOS एक 'मुक्त विद्यालय' है जो पूर्व-स्नातक स्तर तक के विभिन्न प्रकार के शिक्षार्थियों को शिक्षा प्रदान करता है।
  • मानव संसाधन विकास मंत्रालय (Ministry of Human Resource Development- MHRD), द्वारा नवंबर 1989 में राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय की स्थापना की गई थी।
  • मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा जुलाई, 2002 में राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय का नाम बदलकर राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान कर दिया गया । 
  • इसका उद्देश्य औपचारिक प्रणाली के विकल्प के रूप में मुक्त शिक्षा प्रणाली द्वारा
  • प्राथमिकता प्राप्त शिक्षार्थी समूहों को पूर्व-स्नातक स्तर की शिक्षा प्रदान करना है। 

राज्य बोर्डों के लिये:

  • राज्यों के लिये दीक्षा (Digital Infrastructure for Knowledge Sharing- DIKSHA) पोर्टल को स्थानीय भाषाओं में सामग्री प्रदान करने के लिये एक मंच के रूप में प्रदान किया गया है।
  • यदि राज्य स्थानीय भाषाओं में शैक्षिक सामग्री (Content) प्रस्तुत करने के इच्छुक हैं, तो केंद्र सरकार उन्हें चैनल पर 2-3 घंटे उपलब्ध करा सकती है।

दीक्षा पोर्टल (DIKSHA Portal):

  • मानव संसाधन विकास मंत्रालय (Ministry of Human Resource Development- MHRD) द्वारा शिक्षकों के लिये राष्ट्रीय डिजिटल माध्यम दीक्षा पोर्टल की शुरुआत की गई।
  • दीक्षा पोर्टल की शुरुआत शिक्षक समुदाय को समाचार, किसी प्रकार की घोषणा, आकलन तथा शिक्षक प्रशिक्षण सामग्री उपलब्ध कराने के लिये की गई थी।
  • इस पोर्टल पर शिक्षकों को ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों माध्यमों से प्रशिक्षण प्राप्त होगा।
  • यह पोर्टल शिक्षकों को टीचर एजुकेशन इंस्टीट्यूट (Teacher Education Institutes- TEIs) में शामिल होने के उद्देश्य से शिक्षकों को स्वयं निर्देशित करने में मदद करेगा।
  • यह नियमित स्कूल पाठ्यक्रम के बाद, NCERT पाठ्यपुस्तकों और पाठों (lessons) तक पहुँच प्रदान करता है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

लॉकडाउन का उल्लंघन करने वालों पर राज्यों द्वारा दंडात्मक कार्रवाई

प्रीलिम्स के लिये:

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 

मेन्स के लिये:

अर्थव्यवस्था पर COVID-19 के प्रभाव, COVID-19 पर नियंत्रण हेतु सरकार के प्रयास  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने देश सभी राज्यों को लॉकडाउन का उल्लंघन करने वाले लोगों पर भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) और आपदा प्रबंधन अधिनियम (Disaster Management Act), 2005 के तहत कार्रवाई करने को कहा है। 

मुख्य बिंदु:

  • केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा यह फैसला देश के कई राज्यों में कोरोनावायरस की जाँच कर रहे स्वास्थ्य कर्मियों के साथ मार-पीट के मामलों को देखने के बाद लिया गया है।
  • केंद्रीय गृह सचिव द्वारा राज्य सचिवों को लिखे पत्र में कहा कि 24 मार्च, 2020 को जारी लॉकडाउन निर्देशों में यह स्पष्ट किया गया है कि इन निर्देशों का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति पर आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 51 और 60 तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत कार्रवाई की जा सकती है।
  • साथ ही नागरिकों तथा सरकारी अधिकारियों को इस संदर्भ में जानकारी देने के लिये इन कानूनों के तहत दंडात्मक प्रावधानों का व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिये। 
  • साथ ही केंद्रीय गृह सचिव ने ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना’ (Pradhan Mantri Garib Kalyan Yojana or PM-GKY) के तहत सहायता राशि के वितरण, भीड़ न लगने और सोशल डिसटेंसिंग(Social Distancing) बनाए रखने, बैंकों और व्यापारिक केंद्रों पर सुरक्षा कर्मियों की तैनाती आदि के संबंध में वित्त मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के बारे में राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में ज़िला एवं ज़मीनी स्तर पर कार्यरत संस्थाओं को विस्तृत जानकारी उपलब्ध करने को कहा। 
  • केंद्रीय गृह सचिव ने PM-GKY के तहत लाभार्तियों को निर्बाध रूप से सहायता राशि के वितरण के लिये ज़िला स्तरीय और अन्य अधिकारियों को आवश्यक कदम उठाने तथा इसके लिये की गई कार्रवाई की एक रिपोर्ट गृह-मंत्रालय को भेजने का निर्देश दिया।    
  • ध्यातव्य है कि 24 मार्च, 2020 को भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा देश में कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिये देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की गई थी। 

कानूनी प्रावधान:

  • भारतीय दंड संहिता की धारा 188:  भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत में दो प्रकार के अपराधों और इस संबंध में दंडात्मक कार्रवाई की व्याख्या की गई है:
    1. किसी अधिकारी द्वारा लागू विधि पूर्वक आदेशों के उल्लंघन करना और यदि आदेश के उल्लंघन से सरकार द्वारा नियोजित अधिकारी को चोट पहुँचती है या उसके काम में बाधा आती है, तो ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ इस कानूनी प्रावधान के तहत कार्रवाई की जा सकती है।
      सजा: ऐसे मामलों में अपराध सिद्ध होने पर अपराधी को 1 महीने का कारावास या 200 रुपए का ज़ुर्माना या दोनों हो सकता है।
    2. यदि आदेश के उल्लंघन से किसी व्यक्ति के जीवन, स्वास्थ्य आदि को खतरा हो।
      सजा:  ऐसे मामलों में अपराध सिद्ध होने पर अपराधी को 6 महीने का कारावास या 1000 रुपए का ज़ुर्माना या दोनों हो सकता है।    

हालाँकि विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसे मामलों में तभी सजा दी जा सकती है जब यह प्रमाणित किया जा सके कि आरोपी ने जानबूझ कर आदेशों का उल्लंघन किया है।    

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 51 के तहत दो प्रकार के अपराधों और इस संबंध में दंडात्मक कार्रवाई की व्याख्या की गई है:

  1. इस अधिनियम के तहत कार्य कर रहे केंद्र सरकार या राज्य सरकार के किसी अधिकारी या कर्मचारी अथवा राष्ट्रीय प्राधिकरण या राज्य प्राधिकरण अथवा ज़िला प्राधिकरण द्वारा प्राधिकृत किसी व्यक्ति के कार्य में बाधा डालना।  
  2. इस अधिनियम के अधीन केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार या राष्ट्रीय कार्यकारी समिति या ज़िला प्राधिकरण द्वारा या उसकी और से दिये गए किसी निर्देश का पालन करने से इनकार करना। 
    सजा: 
    • ऐसे मामलों में अपराध सिद्ध होने पर अपराधी को एक वर्ष का कारावास या जुर्माना अथवा दोनों हो सकता है।    
    • यदि किसी आरोपी द्वारा निर्देशों के उल्लंघन या कार्य में बाधा डालने की कार्रवाई से किसी व्यक्ति के जीवन को खतरा हो या उसकी मृत्यु हो जाती है तो ऐसे मामलों में अपराधी को दो वर्ष कारावास की सजा हो सकती है। 

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 52 के तहत:  यदि कोई व्यक्ति आपदा की स्थिति में सरकार की योजनाओं के तहत राहत, सहायता, मरम्मत या अन्य लाभ प्राप्त करने के लिये गलत सूचना देता है (जिसके गलत होने के बारे में उसे पता हो या उसके पास विश्वास करने के कारण हों कि सूचना गलत है)।  ऐसे मामलों में अपराध सिद्ध होने पर दो वर्ष तक का कारावास और जुर्माना हो सकता है।  

निष्कर्ष: 

वर्तमान में COVID-19 के किसी प्रमाणिक उपचार के अभाव में इस बीमारी के प्रसार को रोकना ही इससे निपटने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है, ऐसे में नागरिकों को सरकार के निर्देशों का पालन कर इस बीमारी से लड़ने में अपना योगदान देना चाहिये। COVID-19 के कारण विश्व भर में अर्तव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़े हैं और बेरोज़गारी में भी बड़ी मात्रा वृद्धि हुई है, सरकार द्वारा आर्थिक चुनौती का सामना कर रहे लोगों को PM-GKY के माध्यम से आवश्यक सहायता उपलब्ध कराना एक सराहनीय कदम है।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

लॉकडाउन और घरेलू हिंसा

प्रीलिम्स के लिये

घरेलू हिंसा, राष्ट्रीय महिला आयोग

मेन्स के लिये

घरेलू हिंसा से संबंधित मुद्दे और समाज पर इसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय महिला आयोग (National Commission for Women-NCW) के अनुसार, कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिये लागू किये गए देशव्यापी लॉकडाउन के पश्चात् से अब तक लिंग-आधारित हिंसा और घरेलू हिंसा के मामलों में दोगुनी वृद्धि हुई है।

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि कोरोनावायरस (COVID-19) ने वर्तमान में वैश्विक समाज के समक्ष एक संकटपूर्ण स्थिति उत्पन्न कर दी है। तमाम देशों की सरकारें अपनी-अपनी सक्षमता के अनुसार इस वायरस से लड़ने का प्रयास कर रही हैं।
  • इसी कड़ी में भारत सरकार ने भी कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के उद्देश्य से 21-दिवसीय देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी।
  • इस देशव्यापी लॉकडाउन के कारण कई लोग बेरोज़गारी, वेतन में कटौती और ज़बरन अलगाव के कारण तनावपूर्ण स्थिति का सामना कर रहे हैं, जिसके प्रभावस्वरूप महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा में भी वृद्धि हुई है।
  • राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, जहाँ एक ओर मार्च के पहले सप्ताह (2-8 मार्च) में महिलाओं के विरुद्ध होने वाली हिंसा के 116 मामले सामने आए वहीं मार्च के अंतिम सप्ताह (23 मार्च - 1 अप्रैल) में ऐसे मामलों की संख्या बढ़कर 257 हो गई।
  • इस अवधि के दौरान बलात्कार अथवा बलात्कार के प्रयास के मामले में तेज़ी से वृद्धि देखी गई और ये 2 से बढ़कर 13 पर पहुँच गए हैं।
  • इसके अलावा महिलाओं की शिकायतों के प्रति पुलिस की उदासीनता के मामलों में भी लगभग तीन गुना वृद्धि हुई है, आँकड़ों के अनुसार, मार्च के पहले सप्ताह में ऐसी शिकायतों की संख्या 6 थी जो अंतिम सप्ताह में बढ़कर 16 पर पहुँच गईं।
  • NCW के अनुसार, इस प्रकार की शिकायतों में वृद्धि का मुख्य कारण यह है कि लगभग संपूर्ण पुलिस व्यवस्था देशव्यापी लॉकडाउन को लागू करने में व्यस्त है।
  • इसी प्रकार ‘गरिमा के साथ जीने का अधिकार’ (अनुच्छेद-21) से संबंधित शिकायतें भी 35 से बढ़कर 77 अर्थात् लगभग दोगुनी हो गई हैं। ऐसे मामले लिंग, वर्ग अथवा जाति या उनमें से तीनों के आधार पर भेदभाव से संबंधित हो सकते हैं।
  • सामाजिक कार्यकर्त्ताओं का मानना है कि लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा के उक्त मामले मौजूदा स्थिति का सही ढंग से प्रस्तुतिकरण नहीं करते हैं, क्योंकि घरेलू हिंसा से संबंधित अधिकांश मामले घरों की दीवारों के अंदर ही रह जाते हैं।

घरेलू हिंसा और भारत

  • घरेलू हिंसा अर्थात् कोई भी ऐसा कार्य जो किसी महिला एवं बच्चे (18 वर्ष से कम आयु के बालक एवं बालिका) के स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन पर संकट, आर्थिक क्षति और ऐसी क्षति जो असहनीय हो तथा जिससे महिला व बच्चे को दुःख एवं अपमान सहन करना पड़े, इन सभी को घरेलू हिंसा के दायरे में शामिल किया जाता है।
  • घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत प्रताड़‍ित महिला किसी भी वयस्क पुरुष को अभियोजित कर सकती है अर्थात उसके विरुद्ध प्रकरण दर्ज करा सकती है।
  • यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड रिपोर्ट के अनुसार, लगभग दो-तिहाई विवाहित भारतीय महिलाएँ घरेलू हिंसा की शिकार हैं और भारत में 15-49 आयु वर्ग की 70 प्रतिशत विवाहित महिलाएँ पिटाई, बलात्कार या ज़बरन यौन शोषण का शिकार हैं।
  • महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा का मुख्य कारण मूर्खतापूर्ण मानसिकता है कि महिलाएँ पुरुषों की तुलना में शारीरिक और भावनात्मक रूप से कमज़ोर होती हैं।
  • यदि किसी व्यक्ति ने अपने जीवन में घरेलू हिंसा का सामना किया है तो उसके लिये इस डर से बाहर आ पाना अत्यधिक कठिन होता है। अनवरत रूप से घरेलू हिंसा का शिकार होने के बाद व्यक्ति की सोच में नकारात्मकता हावी हो जाती है। उस व्यक्ति को स्थिर जीवनशैली की मुख्यधारा में लौटने में कई वर्ष लग जाते हैं।
  • घरेलू हिंसा का सबसे बुरा पहलू यह है कि इससे पीड़ित महिला मानसिक आघात से वापस नहीं आ पाती है। ऐसे मामलों में अक्सर देखा गया है कि महिला या तो अपना मानसिक संतुलन खो बैठती है या फिर अवसाद का शिकार हो जाती है। 

राष्ट्रीय महिला आयोग

(National Commission for Women-NCW)

  • राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन जनवरी 1992 में राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990 के तहत एक सांविधिक निकाय के रूप में किया गया था। 
  • NCW का उद्देश्य महिलाओं की संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा को सुनिश्चित करना, उनके लिये विधायी सुझावों की सिफारिश करना, उनकी शिकायतों का निवारण करना तथा महिलाओं को प्रभावित करने वाले सभी नीतिगत मामलों में सरकार को सलाह देना है।
  • भारत में महिलाओं की स्थिति पर बनी एक समिति ने इस आयोग के गठन से लगभग दो दशक पूर्व इसके गठन की सिफारिश की थी, ताकि इसके माध्यम से महिलाओं की शिकायतों का निवारण कर उनके सामाजिक व आर्थिक विकास को गति दी जा सके।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

आरोग्य सेतु एप

प्रीलिम्स के लिये:

आरोग्य सेतु एप

मेन्स के लिये:

COVID-19 से निपटने हेतु भारत सरकार द्वारा किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने COVID-19 के मामलों को ट्रैक करने हेतु ‘आरोग्य सेतु’ (Aarogya Setu) नामक एक एप लॉन्च किया है।

आरोग्य सेतु एप के बारे में:

  • आरोग्य सेतु एप को सार्वजनिक-निजी साझेदारी (Public-Private Partnership) के जरिये तैयार एवं गूगल प्ले स्टोर पर लॉन्च किया गया है।
  • इस एप का मुख्य उद्देश्य COVID-19 से संक्रमित व्यक्तियों एवं उपायों से संबंधित जानकारी उपलब्ध कराना होगा।
  • यह एप 11 भाषाओं में उपलब्ध है और साथ ही इसमें देश के सभी राज्यों के हेल्पलाइन नंबरों की सूची भी दी गई है। 
  • विशेषताएँ:
    • किसी व्यक्ति में कोरोनावायरस के जोखिम का अंदाज़ा उनकी बातचीत के आधार पर करने हेतु आरोग्य सेतु ऐप द्वारा ब्लूटूथ तकनीक, एल्गोरिदम (Algorithm), आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का प्रयोग किया जाएगा।
    • एक बार स्मार्टफोन में इन्स्टॉल होने के बाद यह एप नज़दीक के किसी फोन में आरोग्य सेतु के इन्स्टॉल होने की पहचान कर सकता है।  
    • यह एप कुछ मापदंडों के आधार पर संक्रमण के जोखिम का आकलन कर सकता है।
  • एप की कार्यप्रणाली:
    • अगर कोई व्यक्ति COVID-19 सकारात्मक व्यक्ति के संपर्क में आता है, तो एप निर्देश भेजने के साथ ही ख्याल रखने के बारे में भी जानकारी प्रदान करेगा।
    • इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसार, एप अपने उपयोगकर्त्ताओं के ‘अन्य लोगों के साथ संपर्क’ को ट्रैक करेगा और किसी उपयोगकर्त्ता को किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में होने के संदेह की स्थिति में अधिकारियों को सतर्क करेगा। इनमें से किसी भी संपर्क का परीक्षण सकारात्मक होने की स्थिति में यह एप्लिकेशन परिष्कृत मापदंडों के आधार पर संक्रमण के जोखिम की गणना कर सकता है। 
  • लाभ:
    • यह एप सरकार को COVID-19 के संक्रमण के प्रसार के जोखिम का आकलन करने और आवश्यकता पड़ने पर लोगों को अलग रखने में मदद करेगा। 

निजता संबंधी चिंताएँ:

  • इस एप को लेकर कई विशेषज्ञों ने निजता संबंधी चिंता जाहिर की है। हालाँकि केंद्र सरकार के अनुसार, किसी व्यक्ति की गोपनीयता सुनिश्चित करने हेतु लोगों का डेटा उनके फोन में लोकल स्टोरेज में ही सुरक्षित रखा जाएगा तथा इसका प्रयोग तभी होगा जब उपयोगकर्त्ता किसी ऐसे व्यक्ति के संपर्क में आएगा जिसकी COVID-19 की जाँच पॉजिटिव/सकारात्मक रही हो। 
  • विशेषज्ञों के अनुसार:
    • क्या डेटा एकत्र किया जाएगा, इसे कब तक संग्रहीत किया जाएगा और इसका उपयोग किन कार्यों में किया जाएगा, इस पर केंद्र सरकार की तरफ से पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं है। 
    • सरकार ऐसी कोई गारंटी नहीं दे रही कि हालात सुधरने के बाद इस डेटा को नष्ट कर दिया जाएगा।
    • इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस के जरिये एकत्रित किये जा रहे डेटा के प्रयोग में लाए जाने से निजता के अधिकार का हनन होने के साथ ही सर्वोच्च न्यायलय के आदेश का भी उल्लंघन होगा जिसमें निजता के अधिकार को संवैधानिक अधिकार बताया गया है।
    • जिस तरह आधार नंबर एक सर्विलांस सिस्टम बन गया है और उसे हर चीज़ से जोड़ा जा रहा है वैसे ही कोरोना वायरस से जुड़े एप्लिकेशन में लोगों का डेटा लिया जा रहा है जिसमें उनका स्वास्थ्य संबंधी डेटा और निजी जानकारियाँ भी शामिल हैं। अभी यह सुनिश्चित नहीं है कि सरकार किस प्रकार और कब तक इस डेटा का उपयोग करेगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कोरोनावायरस का प्रभाव

प्रीलिम्स के लिये

कोरोनावायरस से संबंधित तथ्य

मेन्स के लिये

कोरोनावायरस महामारी का आर्थिक प्रभाव

चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) के अनुसार, कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी के कारण वर्ष 2020 में वैश्विक अर्थव्यवस्था तकरीबन 1 प्रतिशत तक कम हो सकती है। साथ ही यह चेतावनी भी दी है कि यदि बिना पर्याप्त राजकोषीय उपायों के आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिबंध और अधिक बढ़ाया जाता है तो वैश्विक अर्थव्यवस्था और अधिक प्रभावित हो सकती है।

प्रमुख बिंदु

  • संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग (United Nations Department of Economic and Social Affairs- UN DESA) द्वारा किये गए विश्लेषण के अनुसार, कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बाधित कर रही है।
  • ध्यातव्य है कि बीते महीने के दौरान लगभग 100 देशों ने अपनी राष्ट्रीय सीमाओं को बंद कर दिया है, जिसके कारण लोगों का आवागमन और पर्यटन की गति पूरी तरह से रुक गई है, जो कि वैश्विक वृद्धि में बाधा बन गया है।
  • DESA के अनुसार, ‘विश्व के लगभग सभी देशों में लाखों श्रमिकों को नौकरी के संकट का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा विभिन्न सरकारें कोरोनावायरस के प्रकोप से निपटने के लिये बड़े प्रोत्साहन पैकेजों पर भी विचार कर रही हैं, जिनके कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था और अधिक प्रभावित हो सकती है।’
    • उल्लेखनीय है कि वर्ष 2009 में वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान वैश्विक अर्थव्यवस्था में 1.7 प्रतिशत की कमी आई थी। 
  • विदित हो कि DESA द्वारा किये गए विश्लेषण के अनुसार, कोरोनावायरस (COVID-19) के प्रकोप से पूर्व विश्व उत्पादन में वर्ष 2020 में 2.5 प्रतिशत की गति से वृद्धि होने की उम्मीद थी।

चुनौतियाँ

  • अनुमान के अनुसार, यदि सरकारें आय सहायता प्रदान करने और उपभोक्ता को खर्च करने हेतु प्रेरित करने में विफल रहती हैं तो वैश्विक अर्थव्यवस्था में और अधिक कमी आ सकती है।
  • DESA के अनुसार वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कोरोनावायरस (COVID-19) की गंभीरता का प्रभाव मुख्य रूप से दो कारकों पर निर्भर करेगा- लोगों की आवाजाही और प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिबंध की अवधि; और संकट के लिये राजकोषीय उपायों का वास्तविक आकार और प्रभावकारिता।
  • DESA के पूर्वानुमान के अनुसार, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में लॉकडाउन ने सेवा क्षेत्र को काफी बुरी तरह से प्रभावित किया गया है, विशेष रूप से ऐसे उद्योग जिनमें प्रत्यक्ष वार्ता शामिल है जैसे- खुदरा व्यापार, हॉस्पिटैलिटी, मनोरंजन और परिवहन आदि।
  • विश्लेषण के अनुसार, दुनिया भर के सभी व्यवसाय अपना राजस्व खो रहे हैं, जिसके कारण बेरोज़गारी में तेज़ी से वृद्धि होने की संभावना है।
  • विश्लेषण में यह भी चेतावनी दी गई है कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में लंबे समय तक आर्थिक प्रतिबंधों का नकारात्मक प्रभाव जल्द ही व्यापार और निवेश के माध्यम से विकासशील देशों को प्रभावित करेगा।
    • यूरोपीय संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका में उपभोक्ता खर्च में तेज़ी से हो रही गिरावट विकासशील देशों से उपभोक्ता वस्तुओं के आयात को प्रभावित करेगा।
  • पर्यटन और कमोडिटी निर्यात पर निर्भर विकासशील देश विशेष रूप से आर्थिक जोखिम का सामना कर रहे हैं।
  • इस महामारी के प्रभावस्वरूप वैश्विक विनिर्माण उत्पादन में उल्लेखनीय कमी कर सकता है और यात्रियों की संख्या में हुई तीव्र गिरावट ऐसे देशों की अर्थव्यवस्था को काफी प्रभैत करेगा जो मुख्य रूप से पर्यटन पर निर्भर हैं।

उपाय

  • विश्लेषकों के अनुसार, वैश्विक अर्थव्यवस्था पर वायरस के प्रभाव को कम करने के लिये सही ढंग से तैयार किया गया राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज की आवश्यकता है, जिसमें वायरस के प्रसार को रोकने के लिये स्वास्थ्य व्यय को प्राथमिकता और महामारी से प्रभावित परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान करना शामिल हो।
  • आर्थिक और सामाजिक मामलों के महासचिव के अनुसार, सभी राष्ट्रों को कुछ तात्कालिक नीतिगत उपायों की आवश्यकता है, जो न केवल महामारी को रोकने और जीवन को बचाने की दिशा में कार्य करें बल्कि समाज में सबसे कमज़ोर व्यक्ति को आर्थिक संकट से बचाने और आर्थिक विकास तथा वित्तीय स्थिरता बनाए रखने में भी सहायक हों।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


आंतरिक सुरक्षा

राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम की आवश्यकता 

चर्चा में क्यों?

उत्तर प्रदेश सरकार ने तब्‍लीगी जमात (Tablighi Jamaat) से जुड़े छह लोगों पर अस्पताल में महिला स्टाफ के साथ दुर्व्यवहार करने पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (National Security Act- NSA) के तहत कार्यवाही करने का फैसला लिया है।

मुख्य बिंदु:

  • नर्सों ने उनके साथ अनुचित व्यवहार का आरोप लगाया तथा इसकी शिकायत जिला चिकित्सा अधीक्षक से की है। इसके बाद अधीक्षक द्वारा उत्तर प्रदेश पुलिस को इस घटना के बारे में जानकारी दी गई ।
  • पुलिस ने उन छह लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है, जो दिल्ली में तब्‍लीगी जमात की मंडली में शामिल हुए थे तथा बाद में उन्हें गाज़ियाबाद जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA):

  • राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) का उपयोग केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा निवारक निरोध उपायों के रूप में किया जाता है। 
  • NSA किसी व्यक्ति को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न करने से रोकने हेतु केंद्र या राज्य सरकार को व्यक्ति को हिरासत में लेने का अधिकार देता है। 
  • सरकार किसी व्यक्ति को आवश्यक आपूर्ति एवं सेवाओं के रखरखाव तथा सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करने से रोकने के लिये NSA के अंतर्गत कार्यवाही कर सकती है। 
  • किसी व्यक्ति को अधिकतम 12 महीने हिरासत में रखा जा सकता है। लेकिन सरकार को मामले से संबंधित नवीन सबूत मिलने पर इस समय सीमा को बढ़ाया जा सकता है।

निवारक निरोध (Preventive Detention)

  • भविष्य के अपराध करने या अभियोजन से बचने के लिये किसी व्यक्ति की हिरासत में लिया जाना निवारक में शामिल है। यह 'गिरफ्तारी’ (Arrest) से अलग होता है। गिरफ्तारी तब की जाती है जब किसी व्यक्ति पर अपराध का आरोप लगाया जाता है।

NSA की पृष्टभूमि:

  • भारत में निवारक निरोध कानून की शुरुआत औपनिवेशिक युग के बंगाल विनियमन- III, 1818 (Bengal Regulation- III, 1818) से मानी जाती है। इस कानून के माध्यम से सरकार, किसी भी व्यक्ति को न्यायिक प्रक्रियाओं से गुज़रे बिना सीधे ही गिरफ्तार कर सकती थी। 
  • एक सदी बाद ब्रिटिश सरकार ने रोलेट एक्ट, 1919 (Rowlatt Acts-1919) को लागू किया, जिसके तहत बिना किसी परीक्षण (Trial) के संदिग्ध व्यक्ति को गिरफ्तार करने की अनुमति दी गई।
  • स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1950 में निवारक निरोधक अधिनियम (Preventive Detention Act- PDA) बनाया गया, जो 31 दिसंबर, 1969 तक लागू रहा। 
  • वर्ष 1971 में आंतरिक सुरक्षा अधिनियम (Maintenance of Internal Security Act-  MISA) लाया गया जिसे वर्ष 1977 में जनता पार्टी सरकार द्वारा निरस्त कर दिया गया। बाद में कॉंग्रेस सरकार द्वारा पुन: NSA लाया गया। 

NSA के साथ विवाद:

  • मूल अधिकारों से टकराव:
    • सामान्यत: जब किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है, तो उसे कुछ मूल अधिकारों की गारंटी दी जाती है। इनमें गिरफ्तारी के कारण को जानने का अधिकार शामिल है। संविधान के अनुच्छेद 22 (1) में कहा गया है कि एक गिरफ्तार व्यक्ति को परामर्श देने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। 
  • आपराधिक प्रक्रिया संहिता से टकराव:
    • आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code- Cr.PC) की धारा 50 के अनुसार गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार तथा जमानत के अधिकार के बारे में सूचित किया जाना चाहिये। इसके अलावा Cr.PC की धारा 56 तथा  76 के अनुसार गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर एक व्यक्ति को अदालत में पेश किया जाना चाहिये। इनमें से कोई भी अधिकार NSA के तहत हिरासत में लिये गए व्यक्ति को उपलब्ध नहीं है।
  • आँकड़ों की अनुपलब्धता:
    • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो’ (National Crime Records Bureau- NCRB); जो देश में अपराध संबंधी आँकड़े एकत्रित तथा उनका विश्लेषण करता है, NSA के तहत आने वाले मामलों को अपने आँकड़ों में शामिल नहीं करता है क्योंकि इन मामलों में कोई FIR दर्ज नहीं की जाती है। अत: NSA के तहत किये गए निवारक निरोधों की सटीक संख्या के आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं।

आगे की राह:

  • वर्तमान समय कानून पर पुनर्विचार करने का है, क्योंकि अपने अस्तित्व के चार दशकों में NSA हमेशा राजनीतिक दुरुपयोग के कारण चर्चा में रहता है।
  • मूल अधिकारों तथा राष्ट्रीय सुरक्षा के मध्य संतुलित तथा पारदर्शी प्रक्रिया को अपनाए जाने; जिसमें NCRB को NSA के तहत आने वाले मामलों को अपने आँकड़ों में शामिल करना भी शामिल हो, की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू


कृषि

ई-नाम पोर्टल में संशोधन

प्रीलिम्स के लिये:

ई-नाम पोर्टल

मेन्स के लिये:

किसानों की सहायता हेतु ई-नाम पोर्टल में संशोधन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय (Ministry of Agriculture & Farmers Welfare) ने COVID-19 की वजह से उत्पन्न परिस्थितियों के मद्देनज़र ‘ई-नाम (eNAM)’ पोर्टल में संशोधन किया है।

प्रमुख बिंदु

  • ई-नाम व्यापारियों को किसी दूरस्थ स्थान से बोली लगाने तथा किसानों को मोबाइल-आधारित भुगतान प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करता है, जिससे व्यापारियों को मंडियों या बैंकों में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। यह कृषि उपज बाज़ार समिति (Agricultural Produce Market Committee - APMC) में COVID-19 से सुरक्षा और सामाजिक दूरी (Social Distancing) को बनाए रखने में मदद प्रदान करेगा। 
  • संशोधन के पश्चात् पोर्टल में जोड़ी गईं विशेषताएँ COVID-19 से निपटने की दिशा में महत्त्वपूर्ण साबित होंगी जो इस संकट की घड़ी में किसानों को अपने खेत के पास से बेहतर कीमतों पर अपनी उपज बेचने में मदद प्रदान करेगी।
  • मंडी अनाज, फल और सब्जियों की आपूर्ति श्रृंखला को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। COVID-19 के मद्देनज़र ई-नाम पोर्टल मंडियों में लोगों के आवागमन को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।  

ई-नाम पोर्टल में संशोधन:

  • ई-नाम में गोदामों से व्यापार की सुविधा हेतु वेयरहाउस आधारित ट्रेडिंग मॉड्यूल: 
    • वेयरहाउसिंग विकास और विनियामक प्राधिकरण (Warehousing Development and Regulatory Authority- WDRA) से पंजीकृत वेयरहाउस में भुगतान की सुविधा शुरू की गई है। इस सुविधा से छोटे और सीमांत किसान अपने उत्पादों का व्यापार सीधे WDRA से पंजीकृत वेयरहाउस से कर सकेंगे। 
    • WDRA से पंजीकृत गोदामों में किसान अपने उत्पाद को रख सकेंगे।
    • लाभ:
      • जमाकर्ता लॉजिस्टिक खर्चों (Logistics Expenses) को बचा सकते हैं जिससे उनकी आय में वृद्धि होगी।
      • किसान बेहतर मूल्य पाने हेतु देशभर में उत्पाद बेच सकते हैं तथा मंडी में जाने से बच सकते हैं।
      • यदि आवश्यक हो तो किसान अपने उत्पाद को WDRA से पंजीकृत गोदामों में रखकर ऋण (Loan) प्राप्त कर सकते हैं।
      • आपूर्ति और मांग के अनुसार, उत्पाद का मूल्य निर्धारित करने में आसानी होगी।
  • किसान उत्पादक संगठन ट्रेडिंग मॉड्यूल:
  • Farmer Producer Organisations Trading Module:
    • ‘किसान उत्पादक संगठन ट्रेडिंग मॉड्यूल’ लॉन्च किया गया है ताकि FPO अपने संग्रह केंद्रों से उत्पाद और गुणवत्ता मानकों की तस्वीर अपलोड कर खरीददारों को बोली लगाने में मदद कर सकें। 
    • लाभ:
      • यह न केवल मंडियों में लोगों के आवागमन को कम करेगा बल्कि मंडियों में परेशानी मुक्त  व्‍यापार करने में लोगों की मदद करेगा।
      • यह FPO को लॉजिस्टिक खर्च कम करने एवं मोल-भाव करने में सहायता करेगा।
      • FPO को व्यापार करने में आसानी हेतु ऑनलाइन भुगतान की सुविधा प्रदान की गई है।
  • लॉजिस्टिक मॉड्यूल:
    • वर्तमान में ई-नाम पोर्टल व्यापारियों को व्यक्तिगत ट्रांसपोर्टरों की जानकारी प्रदान करता है। लेकिन व्यापारियों द्वारा लॉजिस्टिक की ज़रूरत के मद्देनज़र एक बड़ा लॉजिस्टिक एग्रीगेटर प्लेटफार्म बनाया गया है, जो उपयोगकर्त्ताओं को विकल्प प्रदान करेगा।
    • लॉजिस्टिक एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म के माध्यम से उपयोगकर्त्ताओं तक कृषि उत्पाद को शीघ्रता से पहुँचाया जा सकेगा।
    • लाभ:
      • यह दूर के खरीदारों के लिये ऑनलाइन परिवहन सुविधा प्रदान करके ई-नाम के तहत अंतर-राज्य व्यापार को बढ़ावा देगा।

स्रोत: पीआईबी


जैव विविधता और पर्यावरण

राजधानी में मार्च माह में रिकॉर्ड नमी

प्रीलिम्स के लिये:

मिक्सिंग हाइट  

मेन्स के लिये:

वायु गुणवत्ता 

चर्चा में क्यों?

मौसम विभाग द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, दिल्ली- NCR (National Capital Region) मार्च 2020, रिकॉर्ड इतिहास में सबसे नमी युक्त रहा। 

मुख्य बिंदु:

  • सामान्यत: दिल्ली- NCR में मार्च माह में 15.8 मिमी. वर्षा होती है जबकि इस वर्ष 109.6 मिमी. वर्षा हुई, जो सामान्य से 589% अधिक थी। इससे पूर्व मार्च 2015 में सर्वाधिक, 97.4 मिमी वर्षा हुई थी।
  • मार्च माह इस बार ठंड से युक्त भी रहा, जिसका अधिकतम तापमान 28.2°C रहा, जो सामान्य से 1.4°C कम था। 
  • औसत न्यूनतम तापमान 15°C रहा, जो औसत से 0.6°C कम है।

NCR की वायु गुणवत्ता में सुधार:

वायु गुणवत्ता सुधार के संभावित कारण:

  • तेज हवाओं, वर्षा तथा COVID- 19 महामारी के चलते बंद रही गैर-आवश्यक सेवाओं के कारण इस बार राजधानी में वायु गुणवत्ता में सुधार देखा गया।
  • पार्टीकुलेट मैटर (Particulate Matter- PM) तथा NOx के उत्सर्जन (जो दिल्ली- NCR में प्रमुख प्रदूषक कारक हैं) में प्रमुख योगदान देने वाले स्रोत लॉकडाउन के दौरान बंद रहे। 
  • रिपोर्ट के अनुसार, 23 मार्च को दिल्ली-NCR में ‘वायु गुणवत्ता सूचकांक’ (Air Quality Index- AQI) ‘मध्यम’ (Moderate) स्तर पर था, जिसमें लॉकडाउन के वाद व्यापक सुधार देखने को मिला तथा लॉकडाउन के कुछ दिनों बाद वायु गुणवत्ता ‘संतोषजनक’ (Satisfactory) स्तर पहुँच गई।
  • 28 से 29 मार्च के बीच तेज हवा तथा मिश्रण ऊँचाई में वृद्धि के कारण दिल्ली, गाज़ियाबाद तथा नोएडा में AQI 'अच्छा' (Good) स्तर पर पाया गया।

सामान्य ह्रास दर:

  • सामान्य परिस्थितियों में ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान घटता जाता है। जिस दर से यह तापमान कम होता है, इसे सामान्य ह्रास दर कहते हैं।

मिक्सिंग हाइट (Mixing Height):

  • यह वायु तथा निलंबित कणों की सतह के ऊपर लंबवत मिश्रण की ऊँचाई को बताता है। यह ऊँचाई वायुमंडलीय तापमान प्रोफाइल के अवलोकन से निर्धारित होती है। 
  • पृथ्वी की सतह से उठने वाली वायु प्रकोष्ठ में एक निश्चित दर (शुष्क-एडियाबेटिक लैप्स दर) से तापमान में परिवर्तन होता है। जब तक वायु प्रकोष्ठ का तापमान आसपास के परिवेश के तापमान से अधिक गर्म होता है, तब तक ताप मे ह्रास जारी रहता है परंतु जब वायु प्रकोष्ठ पर्यावरण के तापमान से अधिक ठंडा हो जाता है तो आगे ताप पतन देखने को नहीं मिलता है तथा यह ऊँचाई  मिक्सिंग हाइट को निर्धारित करती है।
  • उच्च मिक्सिंग हाइट होने पर प्रदूषण में कमी आती है। 

Temperature-profile

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 04 अप्रैल, 2020

चिकित्सा पेशेवरों के लिये बायो सूट

रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation-DRDO) ने कोरोनावायरस (COVID-19) से लड़ने में मदद कर रहे चिकित्सा पेशेवरों को सुरक्षित रखने के लिये एक बायो सूट विकसित किया है। DRDO ने इस बायो सूट में नैनो प्रौद्योगिकी और कोटिंग में अपनी विशेषज्ञता का उपयोग किया है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह बायो सूट स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा निर्धारित मानदंडों से भी बेहतर है। ध्यातव्य है कि यह सूट सिंथेटिक रक्त से भी सुरक्षा प्रदान करता है, सिंथेटिक रक्त कृत्रिम रूप से बनाया गया रक्त है जो एक मरीज़ को 48 घंटे तक आघात से बचाए रखता है। चिकित्सा पेशेवरों के लिये इस सूट का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाएगा। वर्तमान में इसकी उत्पादन क्षमता 7,000 प्रतिदिन है। DRDO की स्थापना वर्ष 1958 में रक्षा विज्ञान संगठन (Defence Science Organisation- DSO) के साथ भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (Technical Development Establishment-TDEs) और तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय (Directorate of Technical Development & Production- DTDP) के संयोजन के पश्चात् किया गया था। यह रक्षा प्रणालियों के डिज़ाइन एवं विकास के साथ-साथ भारत को तीनों सेनाओं की आवश्यकताओं के अनुसार विश्व स्तर की हथियार प्रणाली एवं उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कार्य कर रहा है।

COVID-19 से मुकाबले के लिये 1 बिलियन डॉलर का फंड

विश्व बैंक ने कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी से निपटने के लिये भारत को 1 बिलीयन डॉलर का फंड उपलब्ध कराया है। उल्लेखनीय है कि यह विश्व बैंक द्वारा भारत को दिया गया अब तक का सबसे बड़ा अनुदान है। विश्व बैंक का यह अनुदान भारत के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को कवर करेगा। आधिकारिक सूचना के अनुसार, विश्व बैंक द्वारा दिये गए इस फंड का प्रबंधन राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, नेशनल सेंटर फॉर डिज़ीज कंट्रोल और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) द्वारा किया जाएगा। इस फंड के माध्यम से कोरोनावायरस से लड़ने हेतु विभिन्न आवश्यक कदम जैसे- परीक्षण किटों की खरीद, आइसोलेशन वार्डों की स्थापना और सुरक्षा उपकरणों की खरीद आदि उठाए जाएंगे। विश्व बैंक संयुक्त राष्ट्र की ऋण प्रदान करने वाली एक विशिष्ट संस्था है, जिसका उद्देश्य है सदस्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं को एक वृहद वैश्विक अर्थव्यवस्था में शामिल करना तथा विकासशील देशों में गरीबी उन्मूलन के प्रयास करना। यह नीति सुधार कार्यक्रमों एवं संबंधित परियोजनाओं के लिये ऋण प्रदान करता है। विश्व बैंक की सबसे प्रमुख बात यह है कि यह केवल विकासशील देशों को ही ऋण प्रदान करता है। इसकी स्थापना वर्ष 1944 में हुई थी और इसका मुख्यालय वाशिंगटन डी सी (अमेरिका) में अवस्थित है।

COVID-19 से संबंधित शिकायतों के लिये डैशबोर्ड

कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री ने हाल ही में COVID-19 से संबंधित शिकायतों के लिये राष्ट्रीय निगरानी डैशबोर्ड शुरू किया है। इस डैशबोर्ड का संचालन प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग (DARPG) द्वारा किया जाएगा। इस डैशबोर्ड की स्थापना का उद्देश्य COVID-19 से संबद्ध गतिविधियों का त्वरित और समयबद्ध कार्यान्वयन सुनिश्चित करना है। डैशबोर्ड की शुरुआत के पहले ही दिन स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय से 43 शिकायतें, वित्त मंत्रालय से 26 शिकायतें और विदेश मंत्रालय से 31 शिकायतें प्राप्त हुईं। सूचना के अनुसार, सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा दैनिक आधार पर इस शिकायत पोर्टल की निगरानी की जाएगी। 

मुंबई नेवल डॉकयार्ड की टेंपरेचर सेंसर गन 

नौसेना के मुंबई स्थित डॉकयार्ड ने एक सस्ती टेंपरेचर सेंसर गन (तापमान मापक) विकसित की है, जिसका डिज़ाइन, निर्माण और उत्पादन मुंबई नेवल डॉकयार्ड द्वारा स्वयं किया गया है। इस तापमान मापक के निर्माण के लिये आवश्यक संसाधन भी मुंबई नेवल डॉकयार्ड द्वारा ही जुटाए गए हैं। इसका प्रयोग डॉकयार्ड के द्वार पर प्रवेश करने वाले कर्मियों की जाँच के लिये किया जाएगा। इस टेंपरेचर सेंसर गन की निर्माण लागत 1000 रुपए से भी कम है, जो कि बाज़ार में मौजूद अन्य टेंपरेचर सेंसर गनों की अपेक्षा काफी सस्ताी है। इस टेंपरेचर सेंसर गन की सटीकता 0.2 डिग्री सेल्सियस है और इसमें एक एलईडी डिस्प्ले (LED Display) तथा एक इन्फ्रारेड सेंसर है। उल्लेखनीय है कि नौसेना के मुंबई स्थित डॉकयार्ड में तकरीबन 20,000 से अधिक कर्मी प्रवेश करते हैं। कोरोनावायरस के प्रकोप के बाद से देश में टेम्परेचर गन और नॉन-टच थर्मामीटर की कमी हो गई है। इस नई टेम्परेचर गन से डॉकयार्ड को अपनी स्क्रीनिंग प्रक्रिया को तेज़ करने में मदद मिलेगी।


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