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सामाजिक न्याय

लॉकडाउन और घरेलू हिंसा

  • 04 Apr 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये

घरेलू हिंसा, राष्ट्रीय महिला आयोग

मेन्स के लिये

घरेलू हिंसा से संबंधित मुद्दे और समाज पर इसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय महिला आयोग (National Commission for Women-NCW) के अनुसार, कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिये लागू किये गए देशव्यापी लॉकडाउन के पश्चात् से अब तक लिंग-आधारित हिंसा और घरेलू हिंसा के मामलों में दोगुनी वृद्धि हुई है।

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि कोरोनावायरस (COVID-19) ने वर्तमान में वैश्विक समाज के समक्ष एक संकटपूर्ण स्थिति उत्पन्न कर दी है। तमाम देशों की सरकारें अपनी-अपनी सक्षमता के अनुसार इस वायरस से लड़ने का प्रयास कर रही हैं।
  • इसी कड़ी में भारत सरकार ने भी कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के उद्देश्य से 21-दिवसीय देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी।
  • इस देशव्यापी लॉकडाउन के कारण कई लोग बेरोज़गारी, वेतन में कटौती और ज़बरन अलगाव के कारण तनावपूर्ण स्थिति का सामना कर रहे हैं, जिसके प्रभावस्वरूप महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा में भी वृद्धि हुई है।
  • राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, जहाँ एक ओर मार्च के पहले सप्ताह (2-8 मार्च) में महिलाओं के विरुद्ध होने वाली हिंसा के 116 मामले सामने आए वहीं मार्च के अंतिम सप्ताह (23 मार्च - 1 अप्रैल) में ऐसे मामलों की संख्या बढ़कर 257 हो गई।
  • इस अवधि के दौरान बलात्कार अथवा बलात्कार के प्रयास के मामले में तेज़ी से वृद्धि देखी गई और ये 2 से बढ़कर 13 पर पहुँच गए हैं।
  • इसके अलावा महिलाओं की शिकायतों के प्रति पुलिस की उदासीनता के मामलों में भी लगभग तीन गुना वृद्धि हुई है, आँकड़ों के अनुसार, मार्च के पहले सप्ताह में ऐसी शिकायतों की संख्या 6 थी जो अंतिम सप्ताह में बढ़कर 16 पर पहुँच गईं।
  • NCW के अनुसार, इस प्रकार की शिकायतों में वृद्धि का मुख्य कारण यह है कि लगभग संपूर्ण पुलिस व्यवस्था देशव्यापी लॉकडाउन को लागू करने में व्यस्त है।
  • इसी प्रकार ‘गरिमा के साथ जीने का अधिकार’ (अनुच्छेद-21) से संबंधित शिकायतें भी 35 से बढ़कर 77 अर्थात् लगभग दोगुनी हो गई हैं। ऐसे मामले लिंग, वर्ग अथवा जाति या उनमें से तीनों के आधार पर भेदभाव से संबंधित हो सकते हैं।
  • सामाजिक कार्यकर्त्ताओं का मानना है कि लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा के उक्त मामले मौजूदा स्थिति का सही ढंग से प्रस्तुतिकरण नहीं करते हैं, क्योंकि घरेलू हिंसा से संबंधित अधिकांश मामले घरों की दीवारों के अंदर ही रह जाते हैं।

घरेलू हिंसा और भारत

  • घरेलू हिंसा अर्थात् कोई भी ऐसा कार्य जो किसी महिला एवं बच्चे (18 वर्ष से कम आयु के बालक एवं बालिका) के स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन पर संकट, आर्थिक क्षति और ऐसी क्षति जो असहनीय हो तथा जिससे महिला व बच्चे को दुःख एवं अपमान सहन करना पड़े, इन सभी को घरेलू हिंसा के दायरे में शामिल किया जाता है।
  • घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत प्रताड़‍ित महिला किसी भी वयस्क पुरुष को अभियोजित कर सकती है अर्थात उसके विरुद्ध प्रकरण दर्ज करा सकती है।
  • यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड रिपोर्ट के अनुसार, लगभग दो-तिहाई विवाहित भारतीय महिलाएँ घरेलू हिंसा की शिकार हैं और भारत में 15-49 आयु वर्ग की 70 प्रतिशत विवाहित महिलाएँ पिटाई, बलात्कार या ज़बरन यौन शोषण का शिकार हैं।
  • महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा का मुख्य कारण मूर्खतापूर्ण मानसिकता है कि महिलाएँ पुरुषों की तुलना में शारीरिक और भावनात्मक रूप से कमज़ोर होती हैं।
  • यदि किसी व्यक्ति ने अपने जीवन में घरेलू हिंसा का सामना किया है तो उसके लिये इस डर से बाहर आ पाना अत्यधिक कठिन होता है। अनवरत रूप से घरेलू हिंसा का शिकार होने के बाद व्यक्ति की सोच में नकारात्मकता हावी हो जाती है। उस व्यक्ति को स्थिर जीवनशैली की मुख्यधारा में लौटने में कई वर्ष लग जाते हैं।
  • घरेलू हिंसा का सबसे बुरा पहलू यह है कि इससे पीड़ित महिला मानसिक आघात से वापस नहीं आ पाती है। ऐसे मामलों में अक्सर देखा गया है कि महिला या तो अपना मानसिक संतुलन खो बैठती है या फिर अवसाद का शिकार हो जाती है। 

राष्ट्रीय महिला आयोग

(National Commission for Women-NCW)

  • राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन जनवरी 1992 में राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990 के तहत एक सांविधिक निकाय के रूप में किया गया था। 
  • NCW का उद्देश्य महिलाओं की संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा को सुनिश्चित करना, उनके लिये विधायी सुझावों की सिफारिश करना, उनकी शिकायतों का निवारण करना तथा महिलाओं को प्रभावित करने वाले सभी नीतिगत मामलों में सरकार को सलाह देना है।
  • भारत में महिलाओं की स्थिति पर बनी एक समिति ने इस आयोग के गठन से लगभग दो दशक पूर्व इसके गठन की सिफारिश की थी, ताकि इसके माध्यम से महिलाओं की शिकायतों का निवारण कर उनके सामाजिक व आर्थिक विकास को गति दी जा सके।

स्रोत: द हिंदू

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