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भूगोल

नासा द्वारा भू-जल एवं मृदा-नमी का मानचित्रण

  • 04 Apr 2020
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये:

जड़ क्षेत्र, मृदा की गहराई

मेन्स के लिये:

भू-जल संकट 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी 'राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन' (National Aeronautics and Space Administration- NASA) तथा नेब्रास्का-लिंकन यूनिवर्सिटी (University of Nebraska-Lincoln: UNL) द्वारा मृदा नमी तथा भू-जल नमी स्थिति पर उपग्रह आधारित वैश्विक मानचित्र विकसित किये गए हैं।

मुख्य बिंदु:

  • इन वैश्विक मानचित्रों को जारी करने में नासा तथा जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर जियोसाइंसेज़ ग्रेविटी रिकवरी एंड क्लाइमेट एक्सपेरिमेंट फॉलो ऑन (German Research Center for Geosciences’ Gravity Recovery and Climate Experiment Follow On (GRACE- FO) उपग्रहों के आँकड़ों का उपयोग किया गया है।
  • जल वितरण में परिवर्तन के उपग्रह आधारित अवलोकन को जल तथा ऊर्जा चक्र आँकड़ों के साथ एकीकृत कंप्यूटर आधारित मॉडल तैयार किया गया था। 
  • इस मॉडल का उपयोग करके निम्नलिखित तीन मृदा स्तरों में जल वितरण संबंधी मानचित्र तैयार किये गए हैं: 
    • सतही मृदा (Surface Soil) नमी।  
    • पौधों के जड़ क्षेत्र (Root Zone) में मृदा नमी (लगभग तीन फीट मिट्टी के ऊपर)।  
    • उथले भू-जल (Shallow Groundwater)।

जड़ क्षेत्र (Root Zone):

  • जड़ क्षेत्र एक पौधे की जड़ों के आसपास ऑक्सीजन तथा मृदा का क्षेत्र है। चूंकि जड़ें पौधे की संवहनीय प्रणाली का प्रारंभिक बिंदु होती हैं, अत: जड़ क्षेत्र को समझना और उसका पता लगाना बागवानी का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।

सतही मृदा (Surface Soil):

  • मृदा को उसकी गहराई के आधार पर निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है: 
    1.  छिछली मृदा (Shallow Soil):
    जब मृदा की गहराई 22.5 सेमी से कम हो। केवल उथली जड़ वाली फसलें ऐसी मृदा में उगाई जाती हैं, जैसे- धान की फसल। 
    2. मध्यम गहरी मृदा (Medium Deep Soil): 
    जब मृदा की गहराई 22.5 से 45 सेमी के मध्य हो। मध्यम गहराई की जड़ों वाली फसलें इस प्रकार की मिट्टी में उगाई जाती हैं। जैसे- गन्ना
    3. गहरी मृदा (Deep soil):
    जब मृदा की गहराई 45 सेमी से अधिक हो। लंबी और गहरी जड़ों वाली फसलें इस प्रकार की मिट्टी में उगाई जाती हैं। जैसे- आम, नारियल। 

उथला भू-जल (Shallow groundwater):

  • ऐसी स्थिति जिसमें मौसमी उच्च भू-जल तालिका (Groundwater Table) या संतृप्त मृदा का स्तर भूमि सतह से 3 फीट से भी कम गहराई पर हो।

मानचित्रण का महत्त्व:

  • ये मानचित्र किसी भी भू-परिदृश्य में नमी और भू-जल की स्थिति पर 8.5 मील तक का रिज़ॉल्यूशन उपलब्ध कराने में सक्षम हैं।
  • नवीन मानचित्रों का उद्देश्य विश्व के सभी देशों को एक समान भू-जल-निगरानी बुनियादी ढाँचा उपलब्ध कराना है (विशेष रूप से अविकसित देशों में)।
  • इन संकेतकों पर आधारित आँकड़ों की साप्ताहिक उपलब्धता से कृषि क्षेत्र को बढ़ावा  मिलेगा। इन आँकड़ों के माध्यम से उपयुक्त कृषि फसलों के चयन तथा पैदावार का अनुमान लगाने में मदद मिलेगी।
  • अब तक पश्चिमी एशिया, उत्तरी अफ्रीका, दक्षिण एशिया और भारत में सूखे की निगरानी का कार्य ग्रेविटी रिकवरी और क्लाइमेट एक्सपेरिमेंट फॉलो-ऑन (Gravity Recovery and Climate Experiment Follow-On) आधारित वैश्विक मानचित्रों तथा अन्य उपकरणों का उपयोग करके किया जा रहा था। वैज्ञानिक समुदाय का मानना है कि इस परियोजना के माध्यम से उपलब्ध आँकड़ें नमी तथा शुष्कता की स्थिति को अच्छे से समझने में सहायता करेंगे। 
  • ये वैश्विक मानचित्र अमेरिका के राष्ट्रीय शुष्कता केंद्र के डेटा पोर्टल के माध्यम से सभी उपयोगकर्त्ताओं के लिये स्वतंत्र रूप से उपलब्ध रहेंगे। 
  • ये मानचित्र जनसंख्या वृद्धि, जलवायु परिवर्तन, जल खपत के बेहतर प्रबंधन में सहायक होंगे।

स्रोत: द हिंदू

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