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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ई-नाम पोर्टल की धीमी प्रगति

  • 19 Jul 2017
  • 7 min read

संदर्भ
केंद्र सरकार द्वारा अप्रैल 2016 में ई-नाम (eNAM) नामक पोर्टल की शुरुआत की गई थी। इसका उद्देश्य एकीकृत राष्ट्रीय कृषि इलेक्ट्रॉनिक बाज़ार का निर्माण करना था। इस पोर्टल के अंतर्गत अब तक पूरे देश से 45.4 लाख किसान और 417 मंडियाँ पंजीकृत हो चुकी हैं। परन्तु यह एक निराशाजनक आँकड़ा है क्योंकि भारत में 13 करोड़ से अधिक किसान हैं। अतः वर्तमान में यह अनेक प्रकार की बाधाओं का सामना कर रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • इसका क्रियान्वयन करने के लिये प्रत्येक राज्य को पहले अपने एपीएमसी अधिनियम(APMC act) में संशोधन करना होगा तथा इसमें ऑनलाइन बोली लगाने वाले प्रावधान को शामिल करना होगा जिसके माध्यम से पूरे राज्य में एक ही लाइसेंस प्राप्त किया जा सकेगा तथा इससे बाज़ार शुल्क केवल एक ही स्थान पर चुकाया जाएगा और किसान को अपने उत्पाद के लिये बार-बार शुल्क देने से मुक्ति मिलेगी।
  • वर्तमान में, केवल 13 राज्यों ने ही आवश्यक संशोधनों को अधिनियमित किया है। सरकारी आँकड़ों के अनुसार, ई-नाम के अंतर्गत सबसे अधिक मंडियों वाले छह राज्य क्रमशः उत्तर प्रदेश (66), मध्य प्रदेश (58), हरियाणा (54), महाराष्ट्र (54), तेलंगाना (44) और गुजरात (40) शामिल हैं।

ई-नाम क्या है ?

  • ई- राष्ट्रीय कृषि बाज़ार एक पैन इंडिया ई- व्यापार प्लेटफॉर्म है। कृषि उत्पादों के लिये एक एकीकृत राष्ट्रीय बाज़ार का सृजन करने के उद्देश्य से इसका निर्माण किया गया है।
  • इसके तहत किसान अपने नज़दीकी बाज़ार से अपने उत्पाद की ऑनलाइन बिक्री कर सकते हैं तथा व्यापारी कहीं से भी उनके उत्पाद के लिये मूल्य चुका सकते हैं। 
  • इसके परिणामस्वरूप व्यापारियों की संख्या में वृद्धि होगी जिससे प्रतिस्पर्द्धा में भी बढ़ोतरी होगी। 
  • इसके माध्यम से मूल्यों का निर्धारण भलीभाँति किया जा सकता है तथा किसानों को अपने उत्पाद का उचित मूल्य प्राप्त होगा।

क्या है इससे जुड़ी बाधाएँ ?

  • यह पोर्टल किसी भी राज्य में भलीभाँति कार्य नहीं कर रहा है। राज्यों में किसी भी प्रकार की वैज्ञानिक ग्रेडिंग सुविधा अथवा कुशल परीक्षण करने वाली मशीनें नहीं हैं। इसकी धीमी प्रगति में इन्टरनेट कनेक्टिविटी का अभाव भी एक महत्त्वपूर्ण कारक है। 
  • महाराष्ट्र में अवसंरचनात्मक विकास किया जा रहा है तथा धीरे-धीरे ही सही लेकिन इन्टरनेट कनेक्टिविटी और कंप्यूटर उपलब्ध कराए जा रहे हैं। गुजरात और महाराष्ट्र में परीक्षण प्रयोगशालाओं का निर्माण होना अभी शेष है। 
  • एक सर्वेक्षण में यह पाया गया कि महा फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी (महाराष्ट्र में खाद्य उत्पादक कंपनियों का संघ) लातूर में ई-नाम प्लेटफार्म पर व्यापार करने में सक्षम नहीं थी जबकि कंपनी ने ई-नाम आवेदनों के डिज़ाईन, विकास और मरम्मत के लिये कॉन्ट्रैक्ट प्राप्त कर लिया था। लातूर देश में दालों के लिये सबसे बड़ा बाज़ार है।
  • लगभग यही स्थिति तेलंगाना की भी है जहाँ लगभग 44 बाज़ार ई-नाम के अंतर्गत पंजीकृत हो चुके हैं। अधिकांश मंडियों में किसी भी प्रकार की ग्रेडिंग/परखने के लिये उपकरण मौजूद नहीं हैं, परन्तु वहाँ कंप्यूटर प्रणाली और प्रिंटर्स लगाए गए हैं।
  • निज़ामाबाद (तेलंगाना में हल्दीवाला क्षेत्र ) ने हाल ही में सरकार से सबसे अच्छी ई-नाम मंडी का पुरस्कार प्राप्त किया है। परन्तु इसके बावजूद भी यहाँ बाज़ार स्थिर पड़े हैं, क्योंकि एपीएमसी के बाहर के व्यापारी किसानों के उत्पाद को मंडी से खरीदने में सक्षम नहीं हैं। 
  • उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में भी कोई भी पूर्ण रूप से कार्य करने वाली ऑनलाइन मंडियाँ नहीं हैं। हरियाणा में उपकरणों की जाँच प्रक्रिया की शुरुआत हो चुकी है जबकि राजस्थान में यह केवल सरसों के लिये ही की गई थी। 

निष्कर्ष

  • राज्य कृषि विभाग को इस ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के संचालन हेतु सभी हितधारकों (किसान, व्यापारी और आयोग एजेंट) को मनाना कठिन प्रतीत हो रहा है, जबकि व्यापारियों को कर वसूलने वालों, किसानों को अपने उत्पाद के मूल्यांकन के पश्चात् प्राप्त होने वाली कम कीमतों का भय है।
  • राज्य कृषि विभागों में तकनीकी विशेषज्ञों के अभाव के कारण भी मंडियों में ग्रेडिंग सुविधा को लागू करने में विलम्ब हो रहा है । 
  • उत्तर प्रदेश में पुराने उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है जो ई-नाम के अंतर्गत सभी पैरामीटर पर उत्पाद की ग्रेडिंग नहीं कर सकते हैं। 
  • महाराष्ट्र में ई-नाम के लिये ऑनलाइन बोली केवल पाँच बाज़ारों (अहमदनगर, औरंगाबाद, सांगली, अकोला और दौंड) में ही लगाई जा रही है।
  • मंडी में फसलों के लिये प्रयोग किये जाने वाले आवश्यक उपकरणों की जाँच करने के लिये तकनीकी विशेषज्ञों की आवश्यकता होगी, परन्तु वर्तमान में इस प्रकार की कोई व्यवस्था नहीं है।
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