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डेली न्यूज़

  • 01 Oct, 2019
  • 59 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

वर्षावनों का पुनर्जीवन

चर्चा में क्यों ?

प्रकृति संरक्षण फाउंडेशन (Nature Conservation Foundation) और कोलंबिया विश्वविद्यालय (University of Columbia) के पारिस्थितिकीविदों द्वारा दो दशक तक किये गए लंबे अध्ययन से पता चला कि सात से पंद्रह वर्षों तक किये गए सक्रिय प्रयासों से उष्णकटिबंधीय वर्षावनों (Tropical rainforest) को पुनर्जीवित किया जा सका था।

प्रमुख बिंदु :

  • वर्ष 2002 में यह अध्ययन शुरू हुआ जो पश्चिमी घाट के अन्नामलाई हिल्स में वर्षावनों के अवशेषों पर केंद्रित था।पारिस्थितिक सुधार के अंतर्गत आक्रामक खरपतवारों के चुने हुए क्षेत्रों को साफ करना तथा देशी प्रजातियों के विविध प्रकारों को शामिल किया गया था।
  • अध्ययन से पता चलता है कि उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में इस तरह के पुनर्जीवन का प्रयास अधिक प्रभावी होगा।
  • पुनर्जीवन की प्रक्रिया में वन संरचना के साथ-साथ कार्बन भंडारण में सुधार भी शामिल था।
  • पारिस्थितिकीविदों ने पाया कि सक्रिय रूप से पुनर्जीवित किये गए क्षेत्रों में निष्क्रिय रूप से पुनर्जीवित क्षेत्रों की तुलना में सुधार हुआ है जो मानक के रूप में स्थापित प्रतिशत से मेल खाते हैं।

Rainforest

  • सात से पंद्रह वर्षों तक किये गए जीर्णोद्धार के बाद इन अवक्रमित जंगलों में पेड़ों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज की गई।
  • पेड़ों की प्रजातियों की संख्या में 49% और किसी निश्चित क्षेत्र के लिये संगृहीत कार्बन की मात्रा में 47% की वृद्धि हुई।
  • पारिस्थितिकी पुनर्बहाली का सबसे अच्छा तरीका उन महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान करना होगा जो पुनर्बहाली के प्रयासों से लाभान्वित होंगे- इसमें वे स्थान शामिल होंगे जो जंगलों के सन्निहित पथों से दूर होंगे या जो जानवरों या पौधों की आवाजाही के लिये महत्वपूर्ण होंगे।
  • अपेक्षाकृत घने जंगलों के बड़े पथों के आस-पास पेड़ों की संख्या में कमी होती हैं तो बेहतर होगा कि उनकी रक्षा करें और उन्हें प्राकृतिक रूप से पुनर्जीवित होने के लिये छोड़ दें, क्योंकि यह प्रक्रिया लागत प्रभावी सिद्ध होगी।

स्रोत : द हिंदू


शासन व्यवस्था

स्कूली शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक रिपोर्ट

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में नीति आयोग ने स्कूली शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक (School Education Quality Index) रैंकिंग जारी की। रैंकिंग के अनुसार, देश भर में स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में भारी अंतर पाया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • रैंकिंग के अनुसार, 20 बड़े राज्यों में केरल 76.6% के स्कोर के साथ सबसे अच्छा प्रदर्शन कर प्रथम स्थान पर रहा जबकि उत्तर प्रदेश 36.4% के स्कोर के साथ अंतिम स्थान पर रहा।
  • हरियाणा, असम और उत्तर प्रदेश ने वर्ष 2015-16 की तुलना में वर्ष 2016-17 में अपने प्रदर्शन में सबसे अधिक सुधार किया है।
  • स्कूली शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक- सीखने की प्रक्रिया, पहुँच, समता, बुनियादी ढाँचे की सुविधाओं, राज्य द्वारा किये गए सर्वेक्षण के आँकड़े और तीसरे पक्ष के सत्यापन के आधार पर तैयार रिपोर्ट में प्रयोग किये गए आँकड़ो के आधार पर राज्यों का आकलन करता है।

स्कूली शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक

(School Education Quality Index- SEQI)

  • स्कूली शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक एक समग्र सूचकांक है जो नीति आयोग और मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा संकल्पित तथा डिज़ाइन किये गए शिक्षा गुणवत्ता के प्रमुख डोमेन के आधार पर राज्यों के वार्षिक सुधारों का आकलन करता है।
  • सूचकांक का उद्देश्य राज्यों के फोकस को निवेश (Input) से परिणाम (Output) की ओर स्थानांतरित करने के साथ ही निरंतर वार्षिक सुधारों के लिये मानक प्रदान करना, गुणवत्ता में सुधार, सर्वोत्तम साधनों को साझा करना तथा राज्य के नेतृत्व वाले नवाचारों को प्रोत्साहित करना है।
  • भारत में प्रदान की जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता के सटीक आकलन के लिये स्कूली शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक को दो श्रेणियों- परिणाम तथा शासन एवं प्रबंधन में विभाजित किया गया है।
  • सूचकांक में 34 संकेतक और 1000 अंक हैं, जिसमें सीखने की प्रक्रिया को सबसे अधिक (1000 में से 600 अंक) भारांक दिया गया है।
  • तमिलनाडु पहुँच, समता और परिणाम (Outcome), जबकि कर्नाटक सीखने की प्रक्रिया तथा हरियाणा बुनियादी सुविधा संकेतक के आधार पर शीर्ष प्रदर्शनकर्त्ता रहे।
  • छोटे राज्यों में मणिपुर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शनकर्त्ता के रूप में उभरा, जबकि केंद्रशासित प्रदेशों की सूची में चंडीगढ़ शीर्ष स्थान पर है।
  • पश्चिम बंगाल ने मूल्यांकन प्रक्रिया में भाग लेने से इनकार कर दिया और उसे रैंकिंग में शामिल नहीं किया गया है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

इकोनॉमिक आउटलुक अपडेट

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में एशियाई विकास बैंक द्वारा वैश्विक शहरीकरण संभावना पर इकोनॉमिक आउटलुक अपडेट (Economic Outlook Update) जारी किया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • इसके अनुसार ‘विकासशील एशिया’ (Developing Asia) में शहरी निवासियों की संख्या वर्ष 1970 के बाद से लगभग पांँच गुना बढ़ गई है ।
  • ‘विकासशील एशिया’ 45 देशों के समूह को संदर्भित करता है जो एशियाई विकास बैंक (Asian Development Bank- ADB) के सदस्य हैं।
  • आर्थिक दृष्टिकोण अपडेट के अनुसार, वर्ष 1970 से वर्ष 2017 के बीच इस समूह के देशों में शहरी आबादी 375 मिलियन से बढ़कर 1.84 बिलियन हो गई है । इस अवधि में इस समूह ने शहरी आबादी की वैश्विक वृद्धि का नेतृत्व किया जो कुल वैश्विक वृद्धि का लगभग 53% था l
  • ‘विकासशील एशिया’ की शहरी आबादी का दो-तिहाई भाग (लगभग 1.5 बिलियन) चीन और भारत के शहरों में निवास करता है।

Economic Outlook Update

  • इस समूह की शहरी आबादी वर्ष 1970 से वर्ष 2017 के बीच औसतन 3.4% प्रति वर्ष की दर से बढ़ी है l शेष विकासशील देशों (मुख्य रूप से अफ्रीका और लैटिन अमेरिका) में शहरी आबादी 2.6% तथा विकसित देशों में 1.0% की दर से बढ़ी है ।
  • विकासशील एशियाई क्षेत्र के अंतर्गत पूर्वी एशिया 3.7% की उच्चतम वार्षिक वृद्धि दर के साथ शीर्ष पर है। इसके बाद दक्षिण-पूर्व एशिया में 3.6% और दक्षिण एशिया में 3.3% की वृद्धि हुई है। प्रशांत क्षेत्र (Pacific Region) की शहरी आबादी में 2.9% की वार्षिक वृद्धि तथा मध्य एशिया में 1.6% की दर से वार्षिक वृद्धि हुई है l

एशियाई विकास बैंक

(Asian Development Bank- ADB)

  • ADB एक क्षेत्रीय विकास बैंक है, जिसकी स्थापना 19 दिसंबर 1966 को की गई थी l
  • 1 जनवरी, 1967 को इस बैंक ने पूरी तरह से काम करना शुरू किया थाl
  • इस बैंक की स्थापना का उद्देश्य एशिया-प्रशांत क्षेत्र में आर्थिक और सामाजिक विकास को गति प्रदान करना थाl
  • इसकी अध्यक्षता जापान द्वारा की जाती हैl
  • इसका मुख्यालय मनीला, फिलीपींस में स्थित हैl
  • इसके सदस्य देशों की संख्या 68 है l जिसमें भारत सहित 48 सदस्य एशियाई देशों से हैl

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

सुंदरबन के निम्नीकृत भागों का जैव-पुनर्स्थापन

चर्चा में क्यों?

पश्चिम बंगाल राज्य विश्वविद्यालय के शोधकर्त्ताओं के एक दल द्वारा सुंदरबन के मैंग्रोव क्षेत्रों में लगातार हो रहे निम्नीकरण के प्रमुख कारणों की पहचान कर उनके लिये पुनर्स्थापन रणनीतियों को तैयार किया जा रहा है।

शोध से प्राप्त निष्कर्ष:

  • प्राकृतिक तनावों (जलवायु परिवर्तन, जैविक प्रकोप इत्यादि ) के साथ मानवीय गतिविधियों में हो रही वृद्धि के कारण भारत के विश्व विरासत स्थलों में से एक सुंदरबन को वृहद् स्तर पर निम्नीकरण का सामना करना पड़ा है।
  • ‘हाइड्रोबायोलॉजिया’ (Hydrobiologia) नामक एक जर्नल में प्रकाशित परिणामों से पता चलता है कि सुंदरबन की मुख्य समस्या आवश्यक पोषक तत्त्वों की कमी और लवणता में हो रही वृद्धि हैं।
    • वनावरण में पोषक तत्त्वों की कमी का मुख्य कारण फॉस्फोरस और नाइट्रोजन की मात्रा में होने वाली गिरावट से जुड़ा हुआ है।
  • इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में प्रजातियों के वितरण में भी परिवर्तन पाया गया है- लवणता के प्रति संवेदनशील हेरितेरा फोम्स (Heriteira Fomes), जाइलोकार्पस प्रजाति (Xylocarpus Species) और फीनिक्स पलूडोसा (Phoenix Paludosa) आदि लवणता में वृद्धि को सामना करने में सक्षम न हो पाने के कारण निम्नीकरण की समस्या से ग्रस्त हैं जबकि लवणता के लिये सहिष्णु किस्मों में वृद्धि देखी गई है।

जैव-पुनर्स्थापन के लिये किये गए उपाय:

    • शुरूआत में शोधकर्त्ताओं ने घास के चार देशी लवण-सहिष्णु (Salt-Tolerant) किस्मों को लगाकर पुनर्स्थापन के स्थल को स्थायित्व प्रदान किया। वर्ष 2014 से 2019 तक की अवधि में इस प्रकार की घासों को उगाये जाने से निम्नीकृत हो चुके लगभग एक हेक्टेयर क्षेत्र में सुधार देखने को मिला।
    • शोधकर्त्ताओं ने निम्नीकृत भूमि को समृद्ध बनाने के लिये देशज पौधों के विकास को बढ़ावा देने वाले बैक्टीरिया का उपयोग किया।
  • घास का राइजोस्फीयर [राइजोस्फीयर (Rhizosphere) मिट्टी का संकीर्ण क्षेत्र होता है जो जड़ स्रावों से सीधे प्रभावित होता है] मैंग्रोव को एक पोषक वातावरण प्रदान करता है क्योंकि यह मूल-क्षेत्र के (Root Zone) रोगाणुओं को विघटित कर कीचड़नुमा मिट्टी में अधिक पोषक तत्त्वों के उत्सर्जन में मदद करता है।इसके अलावा यह उच्च ऊर्जा वाली समुद्री तरंगों/लहरों से मृदा के क्षरण को भी रोकती है।
  • शोधकर्त्ताओं द्वारा स्थानीय किस्मों के एक ऑन-साईट (On-Site) मैन्ग्रोव नर्सरी की स्थापना कर निम्नीकृत क्षेत्रों में मैंग्रोव प्रत्यारोपण को बढ़ावा दिया जा रहा है।

आगे की राह:

  • भारतीय क्षेत्र में स्थित सुंदरबन यूनेस्को (UNECSO) के अंतर्गत शामिल एक विश्व विरासत स्थल है। ऐसे में इस क्षेत्र की समस्याओं को दूर करने के लिये यूनेस्को की तकनीकी एवं वित्तीय सुविधाओं के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • सुंदरबन को रामसर कन्वेंशन के अंतर्गत शामिल किया जाना एक सकारात्मक कदम है। यह कन्वेंशन वेटलैंड्स और उनके संसाधनों के संरक्षण और बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग के लिये राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का ढाँचा उपलब्ध कराता है।
  • सुभेद्यता के अनुसार सुंदरवन को विभिन्न उपक्षेत्रों में विभाजित कर प्रत्येक के लिये एक निर्देशित समाधान कार्यक्रम अपनाया जाना चाहिये।
  • इस क्षेत्र में नदियों के अलवणीय जल की मात्रा में वृद्धि के उपाय किये जाने चाहिये।
  • मानवीय कारणों से होने वाले निम्नीकरण को रोकने के लिये-
    • स्थानीय समुदायों को जागरूक करना एवं उनकी समस्याओं के लिये वैकल्पिक समाधानों को लागू करना।
    • सामान्य पर्यटन की जगह जैव-पर्यटन (Eco-Tourism) को बढ़ावा देना।
    • वनोन्मूलन (Deforestration) पर रोक एवं वनीकरण को बढ़ावा देना।
    • संकटग्रस्त जीवों एवं वनस्पतिओं की सुरक्षा को बढ़ावा देना।
    • जैव-तकनीक के माध्यम से मैंग्रोव का संरक्षण एवं पुनर्स्थापन।

स्रोत: द हिंदू


भूगोल

उत्तर प्रदेश में 'प्राचीन नदी' की खुदाई

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने प्रयागराज (इलाहाबाद) में एक पुरानी, ​​सूख चुकी नदी की खुदाई शुरू की है। सूख चुकी यह नदी गंगा और यमुना नदियों को जोड़ती थी।

  • सूख चुकी यह नदी लगभग 4 किमी चौड़ी, 45 किमी लंबी है और इसमें मिट्टी के नीचे दबी 15- मीटर मोटी परत शामिल है।

River unearthed

  • केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के तहत आने वाले निकाय नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (NMCG) के अधिकारियों के अनुसार, इस नदी को संभावित भूजल पुनर्भरण स्रोत के रूप में विकसित करना है।
  • इस नदी का भूभौतिकीय सर्वेक्षण कार्य राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (National Geophysical Research Institute- NGRI) और केंद्रीय भू-जल बोर्ड (Central Groundwater Board) के वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा किया गया था।

केंद्रीय भू-जल बोर्ड (Central Groundwater Board)

मंत्रालय: जल शक्ति मंत्रालय

अधिदेश:

  • भारत के भूजल संसाधनों के आर्थिक एवं पारिस्थितिकी कुशलता विकसित करना।
  • साम्यता के सिद्धांतों के आधार पर वैज्ञानिक और सतत विकास प्रबंधन।
  • भूजल संसाधनों के प्रबंधन हेतु अन्वेषण, आकलन, संरक्षण, संवर्धन, प्रदूषण से सुरक्षा तथा वितरण सहित प्रौद्योगिकी का विकास एवं प्रचार-पसार करना।
  • राष्ट्रीय नीतियों की मॉनीटरिंग एवं कार्यान्वयन करना।

भविष्यि दृष्टि: देश के भूजल संसाधनों का स्थायी विकास और प्रबंधन।

स्थापना: वर्ष 1970 में कृषि मंत्रालय के तहत समन्‍वेषी नलकूप संगठन को पुन:नामित कर केंद्रीय भूमि जल बोर्ड की स्‍थापना की गई थी। वर्ष 1972 के दौरान इसका समामेलन भूविज्ञान सर्वेक्षण के भूजल विभाग के साथ कर दिया गया था। वर्तमान में यह जल शक्ति मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत है।

मुख्‍यालय: फरीदाबाद (हरियाणा)

राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान

(National Geophysical Research Institute- NGRI)

  • राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (CSIR) की एक संघटक अनुसंधान प्रयोगशाला है।
  • इसकी स्थापना पृथ्वी तंत्र की अत्यधिक जटिल संरचना एवं प्रक्रियाओं के बहुविषयी क्षेत्रों और उसके व्यापक रूप से आपस में जुड़े उपतंत्रों में अनुसंधान करने के उद्देश्य से वर्ष 1961 में की गई थी।
  • अनुसंधान गतिविधियाँ मुख्य रूप से तीन विषयों भूगतिकी, भूकंप जोखिम और प्राकृतिक संसाधन के अंतर्गत होती हैं।
  • NGRI उन प्राथमिक भू-संसाधनों की पहचान करने के लिये तकनीकों के कार्यान्वयन को समाविष्ट करता है, जो मानवीय सभ्यता के स्तम्भ हैं और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों एवं खनिजों के साथ-साथ भूजल, हाइड्रोकार्बन जैसे आर्थिक वृद्धि के स्रोत हैं।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन में गिरावट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में न्यूयॉर्क में आयोजित हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मलेन में भारतीय प्रधानमंत्री ने वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy-RE) के लक्ष्य को प्राप्त करने और बाद में इसे बढ़ाकर 450 गीगावॉट करने की महत्वाकांक्षा जाहिर की। लेकिन स्थापित क्षमता में उल्लेखनीय विस्तार के बावजूद अगस्त माह में नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन में 20% की गिरावट दर्ज की गई जिस पर चर्चा की आवश्यकता है।

प्रमुख बिंदु

  • देश के ऊर्जा मिश्रण में गैर-जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी बढ़ाना पेरिस जलवायु समझौते के तहत भारत की प्रतिबद्धताओं का आधार है।
  • भारत ने 2022 तक 175 गीगावॉट की क्षमता स्थापित करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है जो कि सात वर्षों में हुई क्षमता वृद्धि से पाँच गुना अधिक है।
  • पिछले चार वर्षों में भारत ने अपनी RE क्षमता को दोगुना कर लिया है।
  • पेरिस संधि की प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिये भारत को एक वर्ष में 20 गीगावॉट से अधिक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता जोड़ने की आवश्यकता होगी जो कि पिछले चार वर्षों में प्राप्त की गई दर के दोगुने से भी अधिक है।
  • एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले वर्ष 8.3 गीगावॉट की सौर क्षमता को जोड़ा गया जो कि वर्ष 2017 की तुलना में 13% कम है। सौर क्षमता जोड़ने की गति में गिरावट इस वर्ष भी जारी है।

नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन में गिरावट के कारण

Weak Currents

  • प्राय: जून की शुरुआत से प्रतिकूल मौसम और हवा की गति में बदलाव के कारण कुछ महीनों के लिये नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन मौसमी मंदी (Seasonal Slowdown) के दौर से गुजरता है।
  • भुगतान में देरी और टैरिफ दरों की समीक्षा की आशंकाओं के चलते क्रेडिट रेटिंग में गिरावट हुई है। इससे नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र की कंपनियों की वित्तीय लागतों में वृद्धि हो रही है जिससे क्षेत्र में रिटर्न और प्रतिस्पर्द्धा को नुकसान पहुँच रहा है।
  • वृहद् सौर परियोजनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण एक बड़ी चिंता है।
  • अगस्त में नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन में हुई कुछ गिरावट के लिये दक्षिणी राज्यों द्वारा बिजली की आपूर्ति में कटौती को भी ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु ऐसे राज्य है जिनका देश के बाकी हिस्सों की तुलना में स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में हिस्सा अधिक है।

निष्कर्ष

  • पिछले पाँच वर्षों में नवीकरणीय ऊर्जा में उल्लेखनीय प्रगति के बावजूद भारत को अपनी गति बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • प्रधानमंत्री की न्यूयॉर्क घोषणा वर्ष 2030 तक 40% बिजली का उत्पादन नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से करने के भारत के लक्ष्य के अनुरूप है।
  • पेरिस प्रतिबद्धताओं के तहत नवीकरणीय ऊर्जा मिश्रण में लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा सौर ऊर्जा का है इसलिये नीति नियंताओं को इस समस्या की उपेक्षा नहीं करनी चाहिये।

स्रोत : द इंडियन एक्सप्रेस और लाइवमिंट


शासन व्यवस्था

राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और संबंधित विवाद

चर्चा में क्यों?

असम में 19 लाख लोगों को राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) से बाहर रखने के विवाद की पृष्ठभूमि में भारत सरकार द्वारा देशभर में नागरिकों की जनसंख्या का लेखा-जोखा रखने के लिये राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (National Population Register- NPR) को तैयार करने का निर्णय लिया गया है। इसने देश में नागरिकता के मुद्दे पर बहस को तीव्र कर दिया है।

क्या है राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर

(National Population Register- NPR)

  • NPR ‘देश के सामान्य निवासियों’ की एक सूची है।
  • गृह मंत्रालय के अनुसार, ‘देश का सामान्य निवासी’ वह है जो कम-से-कम पिछले छह महीनों से स्थानीय क्षेत्र में रहता है या अगले छह महीनों के लिये किसी विशेष स्थान पर रहने का इरादा रखता है।
  • NPR के पूरा होने और प्रकाशित होने के बाद नेशनल रजिस्ट्रेशन आइडेंटिटी कार्ड (National Registration Identity Card- NRIC) तैयार करने के लिये इसका एक आधार बनने की आशा है।
  • NRIC असम के NRC का अखिल भारतीय प्रारूप होगा।
  • NPR का संचालन स्थानीय, उप-ज़िला, ज़िला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर किया जा रहा है।
  • भारत के रजिस्ट्रार जनरल (RGI) ने पहले ही 5,218 गणना ब्लॉकों के माध्यम से जानकारी इकट्ठा करने के लिये 1,200 से अधिक गाँवों और 40 कस्बों और शहरों में एक पायलट परियोजना शुरू कर दी है।
  • अंतिम गणना अप्रैल 2020 में शुरू होगी और सितंबर 2020 में समाप्त होगी।

NPR और NRC में अंतर

  • NRC असम में रहने वाले भारतीय नागरिकों की सूची है जिसे असम समझौते को लागू करने के लिये तैयार किया जा रहा है।
  • इसमें केवल उन भारतीयों के नाम को शामिल किया जा रहा है जो कि 25 मार्च, 1971 के पहले से असम में रह रहे हैं।
  • उसके बाद राज्य में पहुँचने वालों को बांग्लादेश वापस भेज दिया जाएगा।
  • NRC के विपरीत, NPR एक नागरिकता गणना अभियान नहीं है, क्योंकि इसमें छह महीने से अधिक समय तक भारत में रहने वाले किसी विदेशी को भी इस रजिस्टर में दर्ज किया जायेगा।
  • NPR के तहत असम को छोड़कर देश के अन्य सभी क्षेत्रों के लोगों से संबंधित सूचनाओं का संग्रह किया जाएगा।
  • एक राष्ट्रव्यापी NRC के संचालन का विचार केवल आगामी NPR के आधार पर होगा।
  • निवासियों की एक सूची तैयार होने के बाद उस सूची से नागरिकों के सत्यापन के लिये एक राष्ट्रव्यापी NRC को शुरू किया जा सकता है।

NPR का वैधानिक आधार?

  • NPR नागरिकता अधिनियम 1955 और नागरिकता (नागरिकों का पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र निर्गमन) नियम, 2003 के प्रावधानों के तहत तैयार किया जा रहा है।
  • भारत के प्रत्येक "सामान्य निवासी" के लिये NPR में पंजीकरण कराना अनिवार्य है।
  • गृह मंत्रालय के तहत भारत के रजिस्ट्रार जनरल (RGI) के कार्यालय द्वारा, जनगणना-2021 के पहले चरण के साथ इसका संचालन किया जाएगा।

क्या NPR एक नया विचार है?

  • NPR का विचार UPA शासन के समय का है जब वर्ष 2009 में तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम द्वारा इसका प्रस्ताव रखा गया था।
  • लेकिन उस समय नागरिकों को सरकारी लाभों के हस्तांतरण के लिये सबसे उपयुक्त आधार प्रोजेक्ट (UIDAI) का NPR से टकराव हो रहा था।
  • गृह मंत्रालय ने तब आधार की बजाय NPR के विचार को आगे बढ़ाया क्योंकि यह NPR में पंजीकृत प्रत्येक निवासी को जनगणना के माध्यम से एक परिवार से जोड़ता था।
  • NPR के लिये डेटा को पहली बार वर्ष 2010 में जनगणना-2011 के पहले चरण, जिसे हाउसलिस्टिंग चरण कहा जाता है, के साथ एकत्र किया गया था।
  • वर्ष 2015 में इस डेटा को एक डोर-टू-डोर सर्वेक्षण आयोजित करके अपडेट किया गया था।
  • हालाँकि वर्तमान सरकार ने वर्ष 2016 में आधार को सरकारी लाभों के हस्तांतरण के लिये महत्त्वपूर्ण माना और NPR की बजाय आधार कार्ड की संकल्पना को आगे बढ़ाया।
  • 3 अगस्त को जारी एक अधिसूचना के माध्यम से RGI द्वारा NPR के विचार को पुनर्जीवित किया गया है।
  • अतिरिक्त डेटा के साथ NPR-2015 को अपडेट करने की कवायद शुरू कर दी गई है जो वर्ष 2020 में पूरी हो जाएगी। अद्यतन जानकारी का डिजिटलीकरण भी पूरा हो चुका है।

NPR किस तरह की जानकारी एकत्र करेगा?

  • NPR जनसांख्यिकीय (Demographic) और बायोमेट्रिक (Biometric) दोनों प्रकार के डेटा एकत्र करेगा।
  • जनसांख्यिकीय डेटा की 15 अलग-अलग श्रेणियाँ हैं जिनमें नाम और जन्म स्थान से लेकर शिक्षा और व्यवसाय जैसी जानकारी शामिल है।
  • बायोमेट्रिक डेटा के लिये यह आधार पर निर्भर करेगा, जिसके लिये यह निवासियों के आधार पहचान की भी जानकारी एकत्र करेगा।
  • इसके अलावा RGI देश भर में परीक्षण के लिये मोबाइल नंबर, आधार, पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर आईडी कार्ड तथा पासपोर्ट संबंधी जानकारी भी इकट्ठा कर रहा है और जन्म एवं मृत्यु प्रमाण पत्र के नागरिक पंजीकरण प्रणाली को अपडेट करने के लिये भी काम कर रहा है।
  • वर्ष 2010 में RGI ने केवल जनसांख्यिकीय आँकड़े एकत्र किये थे।
  • वर्ष 2015 में इसने मोबाइल, आधार और निवासियों के राशनकार्ड नंबरों के साथ आँकड़ों को अपडेट किया।
  • वर्ष 2020 के अभ्यास के लिये इसने राशन कार्ड संख्या को इसमें से हटा दिया लेकिन अन्य श्रेणियों को जोड़ दिया।
  • गृह मंत्रालय के अनुसार NPR के साथ पंजीकरण करना अनिवार्य है लेकिन पैन नंबर, आधार, ड्राइविंग लाइसेंस और मतदाता पहचान पत्र जैसी अतिरिक्त जानकारी प्रस्तुत करना स्वैच्छिक है।
  • मंत्रालय ने निवासियों के विवरण को NPR में ऑनलाइन अपडेट करने का विकल्प भी प्रस्तुत किया है।

NPR और आधार नंबर(UID Number) के बीच संबंध

  • NPR सामान्य निवासियों का एक रजिस्टर है। इसमें एकत्र किये गए डेटा को आधार कार्ड जारी करने और इनके दूहराव को रोकने के लिये भारतीय विशिष्‍ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) को भेजा जाएगा।
  • इस प्रकार NPR में जानकारी के तीन भाग होंगे- (i) जनसांख्यिकीय डेटा (ii) बायोमेट्रिक डेटा (iii) आधार नंबर (UID Number)।

NPR पर विवाद क्या है?

  • NPR का विचार ऐसे समय में चर्चा में आया है जब असम में लागू किये जा रहे NRC से 19 लाख लोगों को बाहर कर दिया गया है।
  • आधार तथा निजता के मुद्दे पर बहस जारी है और NPR भारत के निवासियों की निजी जानकारी का एक बड़ा हिस्सा इकट्ठा करने पर आधारित है।
  • NPR पहले से मौजूद आधार, वोटर कार्ड, पासपोर्ट जैसे एक और पहचान पत्र की संख्या में वृद्धि करेगा।

सरकार को नागरिकों के बारे में इतना डेटा क्यों चाहिये?

  • प्रत्येक देश में प्रासंगिक जनसांख्यिकीय विवरण के साथ अपने निवासियों का व्यापक पहचान डेटाबेस होना चाहिये। यह सरकार को बेहतर नीतियाँ बनाने और राष्ट्रीय सुरक्षा में भी मदद करेगा।
  • इससे न केवल लाभार्थियों को बेहतर तरीके से लक्षित करने में मदद मिलेगी बल्कि कागज़ी कार्रवाई और लालफीताशाही में भी कमी होगी।
  • इसके अलावा यह विभिन्न प्लेटफॉर्मों पर निवासियों के डेटा को सुव्यवस्थित करेगा। जैसे- विभिन्न सरकारी दस्तावेज़ो में किसी व्यक्ति के जन्म की अलग-अलग तारीख होना आम समस्या है। NPR से इस समस्या का समाधान होने की संभावना है।
  • NPR डेटा के कारण निवासियों को दिन-प्रतिदिन के कार्यों हेतु उम्र, पता और अन्य विवरण के लिये विभिन्न प्रमाण प्रस्तुत नहीं करने होंगे।
  • यह मतदाता सूचियों में दूहराव को भी समाप्त करेगा।

NPR और निजता का मुद्दा

  • वर्तमान में निजता के मुद्दे पर भी वाद-विवाद बना हुआ है लेकिन पायलट प्रोजेक्ट से पता चला है कि अधिकाँश लोगों को ऐसी जानकारी को साझा करने में कोई समस्या नहीं है लेकिन दिल्ली जैसे कुछ शहरी क्षेत्रों में कुछ प्रतिरोध का सामना करना पड़ा है।
  • हालाँकि सरकार का पक्ष है कि NPR की जानकारी निजी और गोपनीय है, अर्थात् इसे तीसरे पक्ष के साथ साझा नहीं किया जाएगा। लेकिन डेटा की इस विशाल मात्रा के संरक्षण के लिये किसी व्यवस्था पर अभी तक कोई स्पष्टता नहीं है।

स्रोत : द इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

ज्वारीय विघटन (Tidal Disruption)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नासा की TESS (Transiting Exoplanet Survey Satellite) ने विशालकाय ब्लैक होल (Supermassive Black Hole) द्वारा एक तारे की खिंचाव की परिघटना को दर्ज किया गया, इस परिघटना को खगोलविदों ने ज्वारीय विघटन (Tidal Disruption) नाम दिया है।

  • इस दुर्लभ ब्रह्मांडीय घटना में ब्लैक होल ने पृथ्वी से 375 मिलियन प्रकाश-वर्ष दूर स्थित तथा लगभग सूर्य के समान आकार वाले तारे को अपनी ओर खींचकर समाप्त कर दिया।
  • खगोलविदों ने इस परिघटना को दर्ज करने के लिये TESS के साथ ही दूरबीनों के एक अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क का भी उपयोग किया है।
  • इस प्रकार की घटनाएंँ तब होती हैं जब एक तारा एक विशालकाय ब्लैक होल के बहुत करीब पहुंँच जाता है।
  • ब्लैक होल का गुरुत्वाकर्षण बल तारे को अपनी ओर खींचता है। ब्लैक होल द्वारा तारे के खिंचाव के दौरान, तारा विघटित हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप कुछ पदार्थ अंतरिक्ष में फैल जाता है तथा कुछ पदार्थ ब्लैक होल में गिर जाता है। इस परिघटना के दौरान गैस की एक गर्म चमकीली डिस्क बन जाती है।
  • सामान्यतः इस प्रकार की घटनाओं के दौरान तापमान के बढ़ने की प्रवृत्ति पायी जाती है लेकिन इस बार तापमान में गिरावट दर्ज की गई है।

उल्लेखनीय है कि इस प्रकार की घटनाओं के अध्ययन से ब्लैक होल और उसकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति को समझने में मदद मिलेगी।

Supermassive Black Hole

ब्लैक होल (Black Hole)

  • ब्लैक होल शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले अमेरिकी भौतिकविद् जॉन व्हीलर ने 1960 के दशक के मध्य में किया था।
  • ब्लैक होल अंतरिक्ष में उपस्थित ऐसे छिद्र हैं जहाँ गुरुत्व बल इतना अधिक होता है कि यहाँ से प्रकाश का पारगमन नहीं होता।
  • चूँकि इनसे प्रकाश बाहर नहीं निकल सकता, अतः हमें ब्लैक होल दिखाई नहीं देते, वे अदृश्य होते हैं।
  • हालाँकि विशेष उपकरणों से युक्त अंतरिक्ष टेलिस्कोप की मदद से ब्लैक होल की पहचान की जा सकती है।
  • ये उपकरण यह बताने में भी सक्षम हैं कि ब्लैक होल के निकट स्थित तारे अन्य प्रकार के तारों से किस प्रकार भिन्न व्यवहार करते हैं।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

जलवायु सुभेद्यता मानचित्र

चर्चा में क्यों?

डाउन टू अर्थ द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार भारत सरकार द्वारा जल्द ही भारत का जलवायु सुभेद्यता मानचित्र जारी किया जाएगा।

संदर्भ:

  • बढ़ते समुद्र के स्तर, चरम मौसमी घटनाओं की बढ़ती संख्या, शहरी बाढ़, बदलते तापमान और वर्षा के पैटर्न न केवल तटीय या पहाड़ी क्षेत्रों बल्कि देश के कई हिस्सों में जलवायु परिवर्तन के बदलते स्वरूप और प्रभाव को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता हैं।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  • ऐसे परिवर्तनों से उत्पन्न होने वाली चुनौती से निपटने हेतु समुदायों और लोगों को तैयार करने के लिये, किसी राज्य या ज़िले के संदर्भ में विशिष्ट जानकारी की आवश्यकता होती है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के ऐसे प्रभाव एक समान नहीं होते हैं। इस ज़रूरत को पूरा करने के लिये एक अखिल भारतीय जलवायु सुभेद्यता मूल्यांकन मानचित्र विकसित किया जा रहा है।
  • इस मानचित्र का विकास केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत ‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग’ (Department of Science and Technology- DST) और ‘स्विस एजेंसी फॉर डेवलपमेंट एंड कोऑपरेशन’ (Swiss Agency for Development and Cooperation- SDC) की एक संयुक्त परियोजना के तहत किया जा रहा है।
  • भारतीय हिमालयी क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले 12 राज्यों के लिये इस तरह की जलवायु सुभेद्यता मानचित्र को पहले से ही एक सामान्य ढाँचे का उपयोग करते हुए विकसित किया जा चुका है।
  • मार्च 2019 में जारी पहाड़ी राज्यों के सुभेद्यता मानचित्र में दर्शाया गया है कि यद्यपि सभी हिमालयी राज्य सुभेद्य हैं, असम और मिज़ोरम की स्थिति इनमें सर्वाधिक खराब है।
  • अब इस पद्धति को गैर-हिमालयी राज्यों तक विस्तारित किया जाएगा ताकि भारत के लिये एक राष्ट्रीय स्तर की जलवायु सुभेद्यता रुपरेखा तैयार कि जा सकें। वर्ष 2020 के मध्य तक इस मानचित्र के तैयार होने की उम्मीद है।
  • सुभेद्यता का आकलन करने के लिये एक सामान्य पद्धति का उपयोग करना योजना अनुकूलन रणनीतियों के लिये महत्त्वपूर्ण है। यह राज्य या ज़िले को जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील बनाने वाले कारकों की पहचान करने में भी मदद करता है।
  • राज्यों के परामर्श से विकसित हिमालयी क्षेत्र के मानचित्र में ज़िला स्तर तक का विवरण शामिल किया गया है। राष्ट्रीय मानचित्र के संदर्भ में भी इसी रणनीति को अपनाया जाएगा क्योंकि किसी राज्य के भीतर/की सुभेद्यता एक क्षेत्र या ज़िले में दूसरे से भिन्न हो सकती है। इसके लिये पूरे देश के 650 ज़िलों की सुभेद्यता-रूपरेखा और रैंकिंग के लिये संकेतकों के एक सामान्य सेट का उपयोग किया जाएगा।
  • अभी तक DST के जलवायु परिवर्तन अनुसंधान कार्यक्रम के हिस्से के रूप में हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिये राष्ट्रीय मिशन (National Mission for Sustaining the Himalayan Ecosystem- NMSHE) और जलवायु परिवर्तन के लिये रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Strategic Knowledge for Climate Change- NMSKCC) को लागू किया जा रहा था।
  • अनुसंधान के लिये चिह्नित प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में हिमनद विज्ञान (Glaciology), जलवायु मॉडलिंग (Climate Modeling), नगरीय जलवायु, चरम घटनाएँ और हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र का अध्ययन शामिल हैं।
  • जलवायु जोखिम (Climate Risk) खतरा (Hazard), अनावृति (Exposure) और सुभेद्यता (Vulnerability) की परस्पर क्रिया है।
  • पर्यावरणविदों के अनुसार भूस्खलन, सूखे और बाढ़ जैसे प्राकृतिक खतरों की घटनाओं के बढ़ने का अनुमान है, ऐसी घटनाओं का प्रभाव लोगों की उपस्थिति और ऐसे क्षेत्रों में प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो सकने वाले बुनियादी ढाँचे या जलवायु-संवेदनशील आजीविका जैसे अनावृति (Exposure) के स्तर पर निर्भर करता है।
  • सुभेद्यता का संबंध प्रतिकूल रूप से प्रभावित होने की प्रवृत्ति से है और इसे जैव-भौतिक (Biophysical) और सामाजिक-आर्थिक कारकों दोनों के संदर्भ में मापा जा सकता है। सुभेद्यता को संबोधित करने से जलवायु परिवर्तन के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • सामाजिक-आर्थिक और जनसांख्यिकीय कारकों के संदर्भ में सुभेद्यता के प्रमुख निर्धारक:
    • जनसंख्या घनत्व
    • सीमांत किसानों का प्रतिशत
    • मानव अनुपात के लिये पशुधन
    • प्रति व्यक्ति आय
    • प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या
    • समग्र कार्यबल में महिलाओं का प्रतिशत
  • कृषि उत्पादन की संवेदनशीलता के प्रमुख संकेतक:
    • सिंचाई के तहत प्रतिशत क्षेत्र
    • उपज परिवर्तनशीलता
    • बागवानी फसलों के तहत प्रतिशत क्षेत्र
  • कुछ राज्यों ने पहले से ही राज्य की जलवायु संबंधी कार्य योजनाओं को संसोधित करने और अनुकूलन परियोजनाओं को विकसित करने के संदर्भ में सुभेद्यता मूल्यांकन रिपोर्ट का उपयोग करना शुरू कर दिया है। उदाहरण के लिये-
    • मिज़ोरम ने मूल्यांकन रिपोर्ट के आधार पर एक राज्यव्यापी जन जागरूकता अभियान शुरू किया है।
    • पश्चिम बंगाल ने स्प्रिंग्शेड प्रबंधन परियोजना स्थलों (Springshed Management Project Sites) को प्राथमिकता देने के लिये जलवायु सुभेद्यता मानचित्र को इनपुट के रूप में प्रयोग करते हुए एक निर्णय समर्थन प्रणाली विकसित की है।

सुभेद्यता (Vulnerability)

सुभेद्यता प्राकृतिक या मानव निर्मित खतरों के प्रभाव का सामना करने, प्रतिरोध करने और उससे उबरने के लिये किसी व्यक्ति या समूह की कम क्षमता से संबंधित एक सापेक्ष तथा गतिशील अवधारणा है।

एक्सपोज़र (Exposure)

एक्सपोज़र का अभिप्राय एक ऐसी स्थिति से है, जब व्यक्ति या समूह किसी खतरनाक या अप्रिय संभावना से सुरक्षित नहीं होते हैं।

संवेदनशीलता (Sensitivity)

संवेदनशीलता से तात्पर्य उस डिग्री (Degree) से है जिस पर कोई प्रणाली जलवायु संबंधी उत्तेजनाओं द्वारा प्रतिकूल या लाभकारी रूप से प्रभावित होती है।

अनुकूलक क्षमता (Adaptive Capacity)

संभावित नुकसान को समायोजित करने, अवसरों का लाभ उठाने या परिणामों से निपटने के लिये संस्थानों, प्रणालियों और व्यक्तियों की सामान्य क्षमता।

स्रोत- डाउन टू अर्थ


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (01 October)

1. रोहिंग्या संकट समाधान के लिये बांग्लादेश का चार-सूत्रीय प्रस्‍ताव

  • न्‍यूयॉर्क में संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा के 74वें सत्र को संबोधित करते हुए बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने रोहिंग्या संकट के समाधान के लिये संयुक्‍त राष्‍ट्र के समक्ष चार सूत्रीय प्रस्‍ताव रखा।
  • बांग्लादेश का कहना है कि रोहिंग्या संकट क्षेत्रीय खतरा बनता जा रहा है जिसके स्‍थायी समाधान के लिये अंतर्राष्‍ट्रीय समुदाय का त्वरित हस्‍तक्षेप ज़रूरी है।

क्या हैं चार प्रस्ताव

1.बांग्लादेश के अनुसार म्‍याँमार को, रोहिंग्या लोगों की म्‍याँमार में सुरक्षित वापसी और उन्‍हें फिर मुख्‍यधारा में शामिल करने की स्‍पष्‍ट राजनीतिक इच्‍छा दिखानी चाहिये।

2.म्‍याँमार को भेदभावपूर्ण कानून और रीति-रिवाज़ छोड़ देने चाहिये तथा रोहिंग्या प्रतिनिधियों को उत्‍तरी रखाइन प्रांत जाकर वास्तविक हालात देखने की अनुमति देनी चाहिये।

3. म्‍याँमार को अंतर्राष्‍ट्रीय पर्यवेक्षकों की देखरेख में रखाइन प्रांत में रोहिंग्या लोगों की सुरक्षा की गारंटी देनी चाहिये।

4. बांग्लादेश ने चौथे प्रस्‍ताव में अंतर्राष्‍ट्रीय समुदाय से आग्रह किया कि रोहिंग्या लोगों के मानवाधिकारों के उल्‍लंघन और उन पर किये जा रहे अत्‍याचारों की जवाबदेही तय की जाए।

  • बांग्लादेश मानता है कि इस संकट का एकमात्र हल यही है कि रोहिंग्या लोगों की रखाइन प्रांत में सुरक्षित और सम्‍मान के साथ वापसी हो। बांग्लादेश इसके लिये म्‍याँमार से लगातार संपर्क में बना रहेगा।

गौरतलब है कि महासभा के 74वें सत्र में शेख हसीना ने प्रस्‍ताव रखा था कि कोफी अन्नान आयोग (पूर्व महासचिव, संयुक्त राष्ट्र) आयोग की सिफारिशें पूरी तरह लागू की जाए और म्‍याँमार के रखाइन प्रांत को सुरक्षित क्षेत्र बनाया जाए।

कोफी अन्नान आयोग ने क्या कहा

  • सुरक्षा परिषद म्‍याँमार सरकार पर दबाव बनाए, जिससे बांग्‍लादेश में रह रहे रोहिंग्‍या शरणार्थियों की रखाइन प्रांत में पूरे सम्‍मान और सुरक्षा के साथ वापसी हो सके।
  • बांग्‍लादेश में इस समय लगभग 3 लाख 50 हजार रोहिंग्‍या शरणार्थी अपना घर छोड़कर रहने को मज़बूर हैं।
  • म्‍याँमार लौटने वाले शरणार्थियों को शिविरों में नहीं भेजा जाना चाहिये, बल्कि उन्‍हें उनके घरों तक पहुंँचाया जाए।
  • इस आयोग द्वारा म्‍याँमार में रोहिंग्या मुसलमानों का अलगाव खत्म करने, उनकी नागरिकताविहीन स्थिति समाप्त करने, मानवाधिकार उल्लंघन पर जवाबदेही तय करने और देश के भीतर उनकी आवाजाही पर पाबंदी हटाने जैसी कई सिफारिशें की थीं।
  • म्‍याँमार सरकार से कहा गया कि रोहिंग्‍या शरणार्थियों के लिये ऐसा माहौल तैयार करें, जिससे वे सम्‍मान के साथ घर लौट सकें।
  • फ्रांँस और ब्रिटेन म्‍याँमार सरकार के खिलाफ मज़बूत कार्रवाई के लिये संयुक्त राष्ट्र में प्रस्‍ताव लाने के समर्थक हैं, लेकिन चीन और रूस जैसे विपक्षी संगठनों के पास वीटो पावर है।


2. क्षुद्रग्रह को मिला पं. जसराज का नाम

  • अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (IAU) ने हाल ही में मंगल और बृहस्पति ग्रह के बीच एक क्षुद्रग्रह (Asteroid) को भारतीय शास्त्रीय संगीतज्ञ पंडित जसराज का नाम दिया है।
  • पंडित जसराज यह सम्मान पाने वाले पहले भारतीय संगीतज्ञ हैं।
  • इस ग्रह की खोज 11 नवंबर, 2006 को हुई थी।
  • इन लघुग्रहों को IAU द्वारा स्थानीय अंक दिये जाते हैं और पंडित जसराज ग्रह को 300128 संख्या दी गई है, जो उनकी जन्मतिथि 28-01-30 का उल्टा है।
  • इस सम्मान के साथ पंडित जसराज; मोज़ार्ट, बीथोवेन और टेनोर लुसियानो पवारोटी जैसे संगीतज्ञों की श्रेणी में शामिल होने वाले पहले भारतीय संगीतकार बन गए हैं।

ऐसे दिया जाता है क्षुद्रग्रहों को नाम

  • जब किसी क्षुद्रग्रह को पहली बार खोजा जाता है, तो उसे एक अनंतिम नाम दिया जाता है जो आठ-वर्ण लंबा होता है।
  • इसमें से, पहले चार अंक उस वर्ष को संदर्भित करते हैं, जिसमें क्षुद्रग्रह की खोज की गई थी, जबकि अंतिम चार वर्ण यह बताते हैं कि उस वर्ष में कब इसकी खोज की गई थी।
  • सभी क्षुद्रग्रहों को ये अनंतिम नाम दिये गए हैं, लेकिन सभी क्षुद्रग्रहों को मिले नाम उचित नहीं हैं। ऐसा इसलिये है क्योंकि एक क्षुद्रग्रह का नाम रखने का विशेषाधिकार सर्वप्रथम खोजकर्त्ताओं को दिया जाता है, जिनके पास इसके लिये नाम प्रस्तावित करने हेतु 10 साल का समय होता है।

इसके अलावा...

  • प्रस्तावित नाम 16-वर्णों से अधिक लंबा नहीं होना चाहिये।
  • यह अधिमानतः एक शब्द होना चाहिये।
  • यह किसी भाषा में उच्चारण योग्य होना चाहिये।
  • लैटिन अक्षरों का उपयोग करके लिखा जाना चाहिये।
  • यह गैर-आक्रामक होना चाहिये।
  • किसी नाबालिग ग्रह या क्षुद्रग्रह के मौज़ूदा नाम के समान नहीं होना चाहिये।

पंडित जसराज

पंडित जसराज का संबंध संगीत के मेवाती घराने से है। उन्हें वर्ष 1987 और 2010 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, वर्ष 1990 में पद्म श्री, वर्ष 2000 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।

अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ

यह पेशेवर खगोलविदों का एक संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1919 में की गई थी। इसका केंद्रीय सचिवालय पेरिस में है। इस वर्ष यह संघ अपनी 100वीं वर्षगाँठ मना रहा है। इस संघ का उद्देश्य खगोलशास्त्र के क्षेत्र में अनुसंधान और अध्ययन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देना है। जब भी ब्रह्मांड में कोई नई वस्तु पाई जाती है तो खगोलीय संघ द्वारा दिये गए नाम ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य होते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (IAU) का उद्देश्य खगोलीय विज्ञान को बढ़ावा देना है। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ की महासभा की बैठक तीन वर्ष में एक बार की जाती है। पिछली बार इसकी बैठक का आयोजन ऑस्ट्रिया के विएना में वर्ष 2018 में किया गया था। अगली बार IAU की बैठक का आयोजन वर्ष 2021 में दक्षिण कोरिया के बुसान में किया जाएगा।


3. सौभाग्य योजना के तहत जम्मू-कश्मीर में सभी घरों में बिजली

  • जम्‍मू-कश्‍मीर में सौभाग्‍य योजना के तहत सभी घरों में बिजली पहुँचाकर महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की गई है।
  • राज्‍य में यह लक्ष्‍य निर्धारित समय से पहले पूरा किया गया है।
  • यह उपलब्धि कठिन भौगोलिक भूभाग, बर्फीले इलाकों, दूर दूर बने मकानों, अंतर्राष्ट्रीय सीमा से निकटता और सीमित कार्य मौसम के बावजूद हासिल की गई है।
  • जम्मू-कश्मीर बिजली विकास विभाग की टीमों ने अन्य विभागों, ग्रामसेवकों, राजस्व अधिकारियों, सार्वजनिक प्रतिनिधियों के साथ मिलकर इस लक्ष्‍य को हासिल करने के लिये काम किया।
  • इसके अलावा विभाग ने ग्राम ज्योति दूत और ऊर्जा विस्तार जैसे मोबाइल ऐप भी तैयार किये।

क्या है सौभाग्य योजना?

  • प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना ‘सौभाग्य’ की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 सितंबर, 2017 को की थी। इसका उद्देश्य देश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सभी घरों का विद्युतीकरण सुनिश्चित करना है।
  • यह योजना मार्च, 2019 तक ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में अंतिम छोर तक कनेक्टिविटी प्रदान करके सार्वभौमिक आवासीय बिजलीकरण का लक्ष्य प्राप्त करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी।
  • आज़ादी के 70 वर्ष बाद भी भी 18000 गांँवों का विद्युतीकरण नहीं हो पाया था, जिन्‍हें इस योजना के तहत विद्युतीकृत किया गया।
  • पूर्वोत्‍तर क्षेत्र में मणिपुर के लीसांग गांँव का 28 अप्रैल, 2018 को अंतिम गांँव के तौर पर विद्युतीकरण किया गया।
  • इन 18000 गांँवों का विद्युतीकरण करना थोड़ा मुश्किल था, क्‍योंकि इनमें से अधिकांश गांँव दूर-दराज के इलाकों, पहाड़ी क्षेत्रों और खराब संपर्क वाले क्षेत्रों में थे।
  • अब पूर्वी भारत में स्थिति बदल गई है, इस क्षेत्र में 18,000 गांँवों में से 14,582 गांँव गैर-विद्युतीकृत थे जबकि पूर्वोत्‍तर क्षेत्र में 4,590 गांँवों में बिजली नहीं थीं। विद्युतीकृत होने के बाद अब भारत का पूर्वी क्षेत्र भारत की विकास यात्रा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
  • अब तक इस योजना के माध्यम से 86 लाख से अधिक परिवारों को विद्युतीकृत किया जा चुका है। योजना मिशन मोड पर है और यह चार करोड़ परिवारों के लिये बिजली कनेक्शन सुनिश्चित करेगी।

4. अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस

1 अक्तूबर को सम्पूर्ण विश्व में अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस (International Day of Elderly Persons) मनाया जाता है। वरिष्ठ नागरिकों के योगदान को समाज द्वारा सम्मान देने हेतु इस आयोजन का फैसला संयुक्त राष्ट्र ने 14 दिसंबर, 1990 में लिया था। इस दिन वरिष्ठ नागरिकों और बुजुर्गों का सम्मान तथा उनके हितों पर चिंतन किया जाता है।

  • भारत में वर्ष 2011 की जनगणना में बताया गया कि देश में वृद्धों की संख्‍या जल्‍द ही 10 करोड़ को पार कर जाएगी।
  • भारत सरकार ने वर्ष 1999 में बुजुर्गों से संबंधित राष्‍ट्रीय नीति बनाई थी, जिसमें वृद्धों की सभी प्रमुख समस्याओं को मद्देनज़र रखा गया।
  • इसके अलावा अदालतों, रेल तथा विमान यात्रा, देखभाल, आयकर, बैंकों में जमा धन पर ब्याज आदि में वृद्धों को को कई प्रकार की छूट दी जाती है।
  • इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस की थीम The Journey to Age Equality रखी गई है।

5. विश्व ह्रदय दिवस

  • इस वर्ष 29 सितंबर को दुनियाभर में विश्व हृदय दिवस (World Heart Day) का आयोजन लोगों में हृदय के स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता फैलाने के किया गया।
  • इस पहल की शुरुआत वर्ष 2000 में लोगों को अपने हृदय की देखभाल करने के बारे में जागरूक करने के लिये की गई थी।
  • पहले प्रतिवर्ष सितंबर महीने के आखिरी रविवार को इस दिवस का आयोजन किया जाता था।
  • इस वर्ष इस दिवस की थीम My Heart, Your Heart रखी गई है।


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