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जैव विविधता और पर्यावरण

जलवायु सुभेद्यता मानचित्र

  • 01 Oct 2019
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

डाउन टू अर्थ द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार भारत सरकार द्वारा जल्द ही भारत का जलवायु सुभेद्यता मानचित्र जारी किया जाएगा।

संदर्भ:

  • बढ़ते समुद्र के स्तर, चरम मौसमी घटनाओं की बढ़ती संख्या, शहरी बाढ़, बदलते तापमान और वर्षा के पैटर्न न केवल तटीय या पहाड़ी क्षेत्रों बल्कि देश के कई हिस्सों में जलवायु परिवर्तन के बदलते स्वरूप और प्रभाव को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता हैं।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  • ऐसे परिवर्तनों से उत्पन्न होने वाली चुनौती से निपटने हेतु समुदायों और लोगों को तैयार करने के लिये, किसी राज्य या ज़िले के संदर्भ में विशिष्ट जानकारी की आवश्यकता होती है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के ऐसे प्रभाव एक समान नहीं होते हैं। इस ज़रूरत को पूरा करने के लिये एक अखिल भारतीय जलवायु सुभेद्यता मूल्यांकन मानचित्र विकसित किया जा रहा है।
  • इस मानचित्र का विकास केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत ‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग’ (Department of Science and Technology- DST) और ‘स्विस एजेंसी फॉर डेवलपमेंट एंड कोऑपरेशन’ (Swiss Agency for Development and Cooperation- SDC) की एक संयुक्त परियोजना के तहत किया जा रहा है।
  • भारतीय हिमालयी क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले 12 राज्यों के लिये इस तरह की जलवायु सुभेद्यता मानचित्र को पहले से ही एक सामान्य ढाँचे का उपयोग करते हुए विकसित किया जा चुका है।
  • मार्च 2019 में जारी पहाड़ी राज्यों के सुभेद्यता मानचित्र में दर्शाया गया है कि यद्यपि सभी हिमालयी राज्य सुभेद्य हैं, असम और मिज़ोरम की स्थिति इनमें सर्वाधिक खराब है।
  • अब इस पद्धति को गैर-हिमालयी राज्यों तक विस्तारित किया जाएगा ताकि भारत के लिये एक राष्ट्रीय स्तर की जलवायु सुभेद्यता रुपरेखा तैयार कि जा सकें। वर्ष 2020 के मध्य तक इस मानचित्र के तैयार होने की उम्मीद है।
  • सुभेद्यता का आकलन करने के लिये एक सामान्य पद्धति का उपयोग करना योजना अनुकूलन रणनीतियों के लिये महत्त्वपूर्ण है। यह राज्य या ज़िले को जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील बनाने वाले कारकों की पहचान करने में भी मदद करता है।
  • राज्यों के परामर्श से विकसित हिमालयी क्षेत्र के मानचित्र में ज़िला स्तर तक का विवरण शामिल किया गया है। राष्ट्रीय मानचित्र के संदर्भ में भी इसी रणनीति को अपनाया जाएगा क्योंकि किसी राज्य के भीतर/की सुभेद्यता एक क्षेत्र या ज़िले में दूसरे से भिन्न हो सकती है। इसके लिये पूरे देश के 650 ज़िलों की सुभेद्यता-रूपरेखा और रैंकिंग के लिये संकेतकों के एक सामान्य सेट का उपयोग किया जाएगा।
  • अभी तक DST के जलवायु परिवर्तन अनुसंधान कार्यक्रम के हिस्से के रूप में हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिये राष्ट्रीय मिशन (National Mission for Sustaining the Himalayan Ecosystem- NMSHE) और जलवायु परिवर्तन के लिये रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Strategic Knowledge for Climate Change- NMSKCC) को लागू किया जा रहा था।
  • अनुसंधान के लिये चिह्नित प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में हिमनद विज्ञान (Glaciology), जलवायु मॉडलिंग (Climate Modeling), नगरीय जलवायु, चरम घटनाएँ और हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र का अध्ययन शामिल हैं।
  • जलवायु जोखिम (Climate Risk) खतरा (Hazard), अनावृति (Exposure) और सुभेद्यता (Vulnerability) की परस्पर क्रिया है।
  • पर्यावरणविदों के अनुसार भूस्खलन, सूखे और बाढ़ जैसे प्राकृतिक खतरों की घटनाओं के बढ़ने का अनुमान है, ऐसी घटनाओं का प्रभाव लोगों की उपस्थिति और ऐसे क्षेत्रों में प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो सकने वाले बुनियादी ढाँचे या जलवायु-संवेदनशील आजीविका जैसे अनावृति (Exposure) के स्तर पर निर्भर करता है।
  • सुभेद्यता का संबंध प्रतिकूल रूप से प्रभावित होने की प्रवृत्ति से है और इसे जैव-भौतिक (Biophysical) और सामाजिक-आर्थिक कारकों दोनों के संदर्भ में मापा जा सकता है। सुभेद्यता को संबोधित करने से जलवायु परिवर्तन के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • सामाजिक-आर्थिक और जनसांख्यिकीय कारकों के संदर्भ में सुभेद्यता के प्रमुख निर्धारक:
    • जनसंख्या घनत्व
    • सीमांत किसानों का प्रतिशत
    • मानव अनुपात के लिये पशुधन
    • प्रति व्यक्ति आय
    • प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या
    • समग्र कार्यबल में महिलाओं का प्रतिशत
  • कृषि उत्पादन की संवेदनशीलता के प्रमुख संकेतक:
    • सिंचाई के तहत प्रतिशत क्षेत्र
    • उपज परिवर्तनशीलता
    • बागवानी फसलों के तहत प्रतिशत क्षेत्र
  • कुछ राज्यों ने पहले से ही राज्य की जलवायु संबंधी कार्य योजनाओं को संसोधित करने और अनुकूलन परियोजनाओं को विकसित करने के संदर्भ में सुभेद्यता मूल्यांकन रिपोर्ट का उपयोग करना शुरू कर दिया है। उदाहरण के लिये-
    • मिज़ोरम ने मूल्यांकन रिपोर्ट के आधार पर एक राज्यव्यापी जन जागरूकता अभियान शुरू किया है।
    • पश्चिम बंगाल ने स्प्रिंग्शेड प्रबंधन परियोजना स्थलों (Springshed Management Project Sites) को प्राथमिकता देने के लिये जलवायु सुभेद्यता मानचित्र को इनपुट के रूप में प्रयोग करते हुए एक निर्णय समर्थन प्रणाली विकसित की है।

सुभेद्यता (Vulnerability)

सुभेद्यता प्राकृतिक या मानव निर्मित खतरों के प्रभाव का सामना करने, प्रतिरोध करने और उससे उबरने के लिये किसी व्यक्ति या समूह की कम क्षमता से संबंधित एक सापेक्ष तथा गतिशील अवधारणा है।

एक्सपोज़र (Exposure)

एक्सपोज़र का अभिप्राय एक ऐसी स्थिति से है, जब व्यक्ति या समूह किसी खतरनाक या अप्रिय संभावना से सुरक्षित नहीं होते हैं।

संवेदनशीलता (Sensitivity)

संवेदनशीलता से तात्पर्य उस डिग्री (Degree) से है जिस पर कोई प्रणाली जलवायु संबंधी उत्तेजनाओं द्वारा प्रतिकूल या लाभकारी रूप से प्रभावित होती है।

अनुकूलक क्षमता (Adaptive Capacity)

संभावित नुकसान को समायोजित करने, अवसरों का लाभ उठाने या परिणामों से निपटने के लिये संस्थानों, प्रणालियों और व्यक्तियों की सामान्य क्षमता।

स्रोत- डाउन टू अर्थ

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