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भारतीय लोकतंत्र के जीवंत दस्तावेज़ की कहानी

26 नवम्बर को भारत ने अपना संविधान दिवस मनाया। एक सामान्य सी जिज्ञासा हमारे मन में आती है कि आखिर संविधान है क्या और इसकी महत्ता क्या है? इस दस्तावेज में आखिर क्या खास है कि इसके प्रवर्तन के दिन को दिवस के रूप में मनाया जा रहा है?

रॉबर्ट एन गिलक्राइस्ट ने इसे सरल शब्दों में परिभाषित करते हुए कहा कि, “संविधान लिखित या अलिखित नियमों या कानूनों का संग्रह है।”

जॉर्ज जेलीनेक ने संविधान को राज्य की आवश्यकता बताते हुए कहा कि, “संविधानविहीन राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती है।”

वर्तमान विश्व में लोकतंत्र के विस्तार के साथ संविधान की महत्वता बढ़ती जा रही है। संविधान विशेषज्ञ विभिन्न आधारों पर दुनिया भर के संविधानों का वर्गीकरण करते हैं। यदि हम एक आदर्श संविधान में निहित विशेषताओं की बात करें तो इसमें निम्नलिखित लक्षण पाए जाते हैं- संक्षिप्तता, व्यापकता, स्पष्टता, अधिकार, संस्थाओं की स्वतंत्रता, परिवर्तनशीलता इत्यादि। यदि हम निष्पक्ष मूल्यांकन करें तो भारतीय संविधान उपरोक्त कसौटियों पर खरा उतरता है।

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संविधान दिवस-

वर्तमान में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारतीय गणराज्य का संविधान 26 नवम्बर 1949 को बनकर तैयार हुआ। संविधान सभा ने भारत के संविधान को 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में 26 नवम्बर 1949 को पूरा कर राष्ट्र को समर्पित किया। संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ॰ भीमराव आंबेडकर के 125वें जयंती वर्ष के रूप में 26 नवम्बर 2015 को पहली बार भारत सरकार द्वारा संविधान दिवस सम्पूर्ण भारत में मनाया गया तथा 26 नवम्बर 2015 से प्रत्येक वर्ष सम्पूर्ण भारत में संविधान दिवस मनाया जा रहा है। 19 नवंबर, 2015 को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 26 नवंबर को 'संविधान दिवस' के रूप में मनाने के भारत सरकार के निर्णय को अधिसूचित किया। इससे पहले 26 नवम्बर को ‛कानून दिवस’ के रूप में मनाया जाता था।

संविधान दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य भारत के नागरिकों में संविधान के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना और संवैधानिक मूल्यों को याद करने के साथ-साथ जीवन में उतारने के लिए प्रेरित करना है। संविधान दिवस के अवसर पर विद्यालयों में संविधान संबंधी गतिविधियाँ, रन फॉर इक्वलिटी, विशेष संसदीय सत्र तथा विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान और परिचर्चाएं आयोजित की जाती हैं।

संविधान दिवस मनाने के अवसर पर यह आवश्यक हो जाता है कि आज़ादी के बाद भारत में सामाजिक क्रांति के प्रतीक भारतीय संविधान के निर्मित होने की कहानी के साथ-साथ उसकी संरचना और प्रभाव को भी जाना जाए-

भारतीय संविधान

प्रथम विश्व युद्ध के बात भारत में दो तरह की क्रांतियां समानांतर रूप से चल रही थी- राष्ट्रीय और सामाजिक क्रांति। स्वाधीनता प्राप्ति के साथ राष्ट्रीय क्रांति का उद्देश्य तो पूरा हुआ लेकिन सामाजिक क्रांति एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। भारत में सामाजिक क्रांति को गति देने वाला दस्तावेज भारतीय संविधान है। भारतीय संविधान से जुड़े हुए विविध पहलुओं को समझकर इस महान ग्रंथ की उपयोगिता को समझा जा सकता है।

संवैधानिक विकास-

भारतीय संविधान का निर्माण सिर्फ कुछ दिनों की कहानी नहीं है। यह एक लंबे संवैधानिक विकास के परिणामस्वरूप निर्मित हुआ। औपनिवेशिक काल में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन और 1857 की क्रांति के पश्चात ब्रिटिश सम्राट के अधीन निर्मित राजाज्ञाओं और कानूनों ने विधि के शासन का मार्ग प्रशस्त किया। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के नायकों के विचारों और संघर्षों ने भारतीय संविधान के विचार को मूर्त रूप दिया।

संविधान निर्माण-

कैबिनेट मिशन की संस्तुति पर संविधान सभा का गठन किया गया और इस संविधान सभा ने भारतीय संविधान को आकार दिया। संविधान सभा की विभिन्न समितियों ने संवैधानिक प्रावधानों को विभिन्न बैठकों के माध्यम से तराशने का कार्य किया।

संविधान सभा को संबोधित करते हुए जवाहरलाल नेहरू ने कहा, “इस सभा का पहला दायित्व भारत को संविधान प्रदान करके स्वतंत्र घोषित करना, भूखी जनता के लिए भोजन तथा वस्त्रहीन लोगों के लिए कपड़ों का प्रबंध करना और भारत के प्रत्येक व्यक्ति को अधिकतम अवसर मुहैया कराना है ताकि वह अपनी क्षमता के अनुसार भरसक विकास कर सकें।”

संविधान सभा विविधता को समेटे हुई थी। बहुत सारे प्रावधानों पर सदस्यों में असहमतियां थी लेकिन इतने गतिरोधों के बावजूद एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुंच कर भारतीय संविधान में आम जनमानस के लिए विशेष प्रावधान किए गए।

संविधान की संरचना-

भारतीय संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। भारतीय संविधान में 22 भाग 395 अनुच्छेद और वर्तमान में 12 अनुसूचियां हैं। भारतीय संविधान न सिर्फ शासन व्यवस्था की संरचनाओं को निर्मित करता है बल्कि मौलिक अधिकारों के साथ-साथ राज्य को संचालित करने वाली मशीनरी की भी विस्तृत व्याख्या करता है।

विशेषताएं-

दुनिया के सबसे विस्तृत संविधान ने अपने अंदर ढेर सारी विशेषताओं को समेटा हुआ है। कुछ विशेषताएं सामान्य सी दिखती है लेकिन कुछ अनूठी हैं। जैसे-जैसे भारतीय समाज में जन जागरूकता और चेतना का निर्माण हो रहा है यह संविधान अपनी विशेषताओं के साथ युगान्तकारी परिवर्तन करने वाला दस्तावेज साबित हो रहा है।

हमने शासन व्यवस्था के रूप में संसदीय व्यवस्था को अपनाया है जो कि ब्रिटेन की संसदीय व्यवस्था से प्रभावित था। इसलिए एक असमंजस की स्थिति भी थी कि क्या हम ब्रिटेन के संसदीय मॉडल से भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुदृढ़ कर पाएंगे। स्वतंत्रता के बाद नियमित अंतराल पर आम चुनाव संपन्न हुए और हमारी लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था और सुदृढ़ होती चली गई। प्रथम आम चुनाव से आज तक यदि हम भारतीय राजनीतिक व्यवस्था का अवलोकन करें तो लगातार संसदीय मूल्यों में बढ़ोतरी हुई है।

मौलिक अधिकारों ने आम भारतीयों में निहित संभावनाओं को तलाशने में मदद की। मौलिक अधिकारों के कारण सामान्य व्यक्ति की नागरिक स्वतंत्रताओं में वृद्धि हुई। डॉ. अम्बेडकर के अनुसार भारतीय संविधान की आत्मा “संवैधानिक उपचारों का अधिकार” ने सदैव मौलिक अधिकारों की रक्षा का कार्य किया।

नीति निर्देशक सिद्धांतों में व्यक्त सामाजिक-आर्थिक समता के क्रांतिकारी विचार ने प्रत्येक सरकारों का मार्गदर्शन किया और भारत का लोक कल्याणकारी राज्य के रुप में तेजी से उभार हुआ।

वयस्क मताधिकार के प्रावधान ने भारतीय राजनीति की दशा और दिशा को सतत रूप से बदलने का कार्य किया है। नागरिकों की सहभागिता ने भारतीय लोकतंत्र को ज्यादा जीवंत बनाया।

स्वतंत्रता न्यायपालिका ने सदैव संवैधानिक मूल्यों के संरक्षण का कार्य किया। न्यायिक सक्रियता ने जहां कार्यपालिका के प्रयोजनहीन कार्यों पर रोक लगाई वहीं न्यायिक समीक्षा ने विधायिका को संविधान की परिधि में ही कार्य करने की स्वायत्तता दी।

यदि हम भारतीय संविधान की विशेषताओं का अवलोकन करें तो यह स्पष्ट दिखाई देता है कि भारतीय संविधान के दर्शन ‛प्रस्तावना’ में उल्लिखित ‛हम भारत के लोग’ की भावना सहित सभी मूल्यों को भारतीय संविधान का प्रत्येक शब्द न सिर्फ अभिव्यक्त करता है बल्कि लगातार उनके प्रसार का माध्यम भी बना हुआ है।

प्रभाव-

भारतीय इतिहास का यदि हम अवलोकन करें तो सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज जो प्राप्त होता है वह भारतीय संविधान है। भारतीय संविधान ने भारतीय समाज में व्याप्त रूढ़ियों, अंधविश्वासों जड़ परंपराओं को तोड़ने का कार्य किया और भारतीय समाज को तार्किकता, न्याय और समानता की आधारशिला प्रदान की। भारतीय संविधान आधुनिकता का वाहक बना तथा संविधान ने राष्ट्रीय एकता तथा स्थायित्व को बढ़ावा दिया।

निष्कर्ष-

किसी भी मूल दस्तावेज में हर परिस्थिति का समाधान नहीं दिया जा सकता है। बदलती हुई परिस्थितियों के साथ भारतीय संविधान ने सदैव भारतीय समाज का मार्गदर्शन किया है। संविधान अपने बल पर कभी सफल नहीं होते हैं। उन्हें सफल बनाने के लिए नागरिकों तथा निर्वाचित नेताओं को सजगता से कार्य करना होता है। कोई भी संविधान चाहे कितना भी सुविचारित क्यों न हो, अंततः कागजों पर ही संस्थाओं की रचना करता है। इन संस्थाओं में प्राण भरने का काम भविष्य की पीढ़ियों को करना पड़ता है।

हम कह सकते हैं कि आजादी के 75 वर्षों बाद आज संविधान का सपना भले ही पूरी तरह सच ना हुआ हो लेकिन उसके दिशा निर्देश पर चलकर भारत एक महान राष्ट्र बनने में सफल रहा है। जैसा कि जवाहरलाल नेहरू ने कहा,

“भारत की सेवा करने का अर्थ है लाखों पीड़ितों की सेवा करना। इसका अर्थ है गरीबी, अज्ञानता, बीमारी तथा अवसरों की असमानता का उन्मूलन करना। हमारी पीढ़ी के महानतम व्यक्ति की इच्छा हर आंख से आंसू पोंछने की रही है। संभव है कि ऐसा कर पाना हमारी सामर्थ्य से बाहर हो परंतु जब तक लोगों की आंखों में आंसू और जीवन में पीड़ा रहेगी तब तक हमारा दायित्व पूरा नहीं होगा।”

आजादी के दौर में कहे गए नेहरू जी के उपरोक्त कथन को पूर्ण करने में सबसे ज्यादा प्रभावी भूमिका भारतीय संविधान की रही है और आगे रहेगी भी।

  विमल कुमार  

विमल कुमार, राजनीति विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। अध्ययन-अध्यापन के साथ विमल विभिन्न अखबारों और पत्रिकाओं में समसामयिक सामाजिक और राजनीतिक विषयों पर स्वतंत्र लेखन और व्याख्यान के लिए चर्चित हैं। इनकी अभिरुचियाँ पढ़ना, लिखना और यात्राएं करना है।

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