मध्य प्रदेश Switch to English
जलवायु परिवर्तन और वन-संरक्षण के लिये डब्ल्यू.आर.आई. और एप्को में हुआ एमओयू
चर्चा में क्यों?
27 फरवरी, 2023 को जलवायु परिवर्तन पर आयोजित कार्यशाला में पर्यावरण विभाग के एप्को और अंतर्राष्ट्रीय शोध संस्थान डब्ल्यूआरआई इंडिया के बीच प्रदेश में जलवायु परिवर्तन एवं वनों के संरक्षण संबंधी कार्य पर तकनीकी सहयोग के लिये एमओयू किया गया।
प्रमुख बिंदु
- कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य नवंबर 2022 में मिस्र में संपन्न जलवायु परिवर्तन सम्मलेन सीओपी-27 के मुख्य बिंदुओं पर प्रस्तुतीकरण कर विचार-विमर्श किया जाना था।
- कार्यपालन संचालक एप्को मुजीबुर्रहमान खान ने कहा कि एमओयू अगले 5 वर्ष में मध्य प्रदेश में जलवायु परिवर्तन एवं वनों के संरक्षण संबंधी कार्य पर केंद्रित होगा। इन वर्षों में उपयोगी एवं सार्थक प्रयास किये जाएंगे, जिसके परिणामस्वरूप हम सस्टेनेबल और ग्रीन डेवलेपमेंट की ओर परस्पर ठोस कदम बढ़ाएंगे।
- एप्को, राज्य एवं ज़िला स्तर पर डब्ल्यूआरआई इंडिया और संबंधित विभागों को समस्त प्रकार की संस्थागत एवं तकनीकी सहायता देना जारी रखेगा।
- राज्य जलवायु परिवर्तन केंद्र के समन्वयक लोकेंद्र ठक्कर ने कहा कि एप्को म.प्र. शासन की विशिष्ट संस्था है, जो राज्य शासन को पर्यावरण से संबंधित मुद्दों पर परामर्श देने के साथ शोध अध्ययन, योजना कार्य तथा प्रशिक्षण एवं क्षमता विकास के कार्यों के लिये प्रतिबद्ध है।
- कार्यक्रम के मुख्य वक्ता सीएएन इंटरनेशनल के हेड हरजीत सिंह ने जलवायु परिवर्तन से संबंधित Loss & Damage विषय पर प्रकाश डालते हुए बताया कि मध्य प्रदेश जलवायु परिवर्तन के कृषि, जल-संसाधन, पर्यटन और ऊर्जा क्षेत्रों में एक बड़ी चुनौती पेश कर रहे प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील राज्य है। उपयुक्त नीतियों के साथ तकनीकी और वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता स्थानीय स्तर के समाधानों को बढ़ाने, लचीला बनाने और हानियों एवं क्षतियों को दूर कर मानव क्षमता बढ़ाने के लिये आवश्यक है।
- डब्ल्यूआरआई इंडिया के क्लाइमेट प्रोग्राम की निदेशक उल्का केलकर ने कहा कि भारत में क्लाइमेट एक्शन के मामले में मध्य प्रदेश बहुत महत्त्वपूर्ण राज्य है। यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के मामले में भारत के शीर्ष 10 राज्य में से एक है।
- राज्य, आर्द्र-भूमि की रक्षा, पारंपरिक जल-संचयन संरचनाओं को पुनर्जीवित करने और देशी मवेशियों की नस्लों को बढ़ावा देने जैसे उपायों को लागू कर रहा है। प्रदेश के बड़े और छोटे शहरों में कम कार्बन उत्सर्जन का हिस्सा बनने समुदायों के लिये भी काफी संभावनाएँ हैं।
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