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यंत्रीकृत स्वच्छता पारिस्थितिकी तंत्र के लिये राष्ट्रीय कार्य योजना (NAMASTE)
चर्चा में क्यों?
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा बरेली में राष्ट्रीय मशीनीकृत स्वच्छता पारिस्थितिकी तंत्र कार्य योजना (NAMASTE) पर केंद्रित एक कार्यक्रम आयोजित किया गया।
- इसका उद्देश्य सफाई कर्मचारियों को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाना तथा सुरक्षित, सम्मानजनक आजीविका को बढ़ावा देना था।
मुख्य बिंदु
- NAMASTE के बारे में:
- यह सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (MoSJE) तथा आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) द्वारा एक सहयोगी पहल है।
- इसे वित्तीय वर्ष 2023-24 से 2025-26 की अवधि के लिये 349.73 करोड़ रुपए के बजट आवंटन के साथ केंद्रीय प्रायोजित योजना के रूप में वित्तीय वर्ष 2023-24 में लॉन्च किया गया था।
- इसका मुख्य उद्देश्य मैनुअल स्कैवेंजिंग को समाप्त करना तथा सफाई कर्मचारियों की सुरक्षा और सम्मान को बढ़ावा देना है।
- मुख्य घटक:
- नगर स्थानीय निकायों (ULBs) द्वारा नियुक्त SSWs का विवरण एकत्र करना ताकि लक्षित हस्तक्षेप किये जा सकें।
- SSWs को आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY) के तहत व्यावसायिक सुरक्षा प्रशिक्षण, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPE) किट और स्वास्थ्य बीमा प्राप्त होता है।
- यह योजना SSWs को “सैनिप्रेन्योर्स” या स्वच्छता उद्यमी बनाने के लिये पूंजी सब्सिडी प्रदान करके स्वरोज़गार और औपचारिक रोज़गार को बढ़ावा देती है।
- ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में लगे कचरा बीनने वालों को वर्ष 2024 में NAMASTE योजना के तहत एक घटक के रूप में शामिल किया गया है।
- कार्यक्रम का महत्त्व
- यह कार्यक्रम सफाई कर्मचारियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, जिन्हें अक्सर खतरनाक कार्य वातावरण और सामाजिक कलंक का सामना करना पड़ता है।
- NAMASTE के अंतर्गत मशीनीकरण पर ज़ोर देने से मैनुअल स्कैवेंजिंग में कमी आती है तथा स्वस्थ एवं सुरक्षित कार्य स्थितियों को बढ़ावा मिलता है।
- (AB-PMJAY) के तहत आयुष्मान कार्डों का वितरण स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करता है, जो व्यावसायिक स्वास्थ्य जोखिमों के संपर्क में आने वाले श्रमिकों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- सिलाई मशीनें उपलब्ध कराने से वैकल्पिक आजीविका के अवसरों को बढ़ावा मिलता है, जिससे कौशल का विविधीकरण होता है और आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित होती है।
- NAMASTE सरकार के सामाजिक न्याय, समावेशन और हाशिये पर पड़े समुदायों के कल्याण के व्यापक उद्देश्यों के अनुरूप है।
- यह कार्यक्रम सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने में मदद करता है, विशेष रूप से स्वच्छ कार्य, स्वास्थ्य और कल्याण (SDG 3 और 8) से संबंधित लक्ष्यों को प्राप्त करने में।
मैनुअल स्कैवेंजिंग
- मैनुअल स्कैवेंजिंग को "सार्वजनिक सड़कों और शुष्क शौचालयों से मानव मल को हटाना, सेप्टिक टैंक, गटर और सीवर की सफाई करना" के रूप में परिभाषित किया गया है।
- भारत ने मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 (PEMSR) के तहत इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया है।
- यह अधिनियम हाथ से मैला ढोने की प्रथा को "अमानवीय प्रथा" के रूप में परिभाषित करता है और मैनुअल स्कैवेंजरों द्वारा सामना किये जाने वाले ऐतिहासिक अन्यायों से मुक्त कराने का प्रयास करता है।
मैनुअल स्कैवेंजिंग से संबंधित योजनाएँ


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भारत की पहली जंगल सफारी विस्टाडोम ट्रेन
चर्चा में क्यों?
भारतीय रेलवे और उत्तर प्रदेश सरकार ने भारत की पहली विस्टाडोम जंगल सफारी ट्रेन शुरू की।
मुख्य बिंदु
- जंगल सफारी विस्टाडोम ट्रेन के बारे में:
- यह ट्रेन कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य को दुधवा टाइगर रिज़र्व से जोड़ेगी, जिससे यात्रियों को राज्य की समृद्ध जैवविविधता का अनुभव करने का मौका मिलेगा।
- वर्तमान में यह सेवा सप्ताहांत पर संचालित है, लेकिन इसे दैनिक परिचालन में विस्तारित करने की योजना बनाई जा रही है, जिससे यह वर्ष भर अधिक आगंतुकों के लिये सुलभ हो सके।
- एक गंतव्य, तीन वन:
- यह योजना उत्तर प्रदेश के इको टूरिज्म बोर्ड की “एक गंतव्य, तीन वन” थीम का हिस्सा है।
-
इसका उद्देश्य दुधवा राष्ट्रीय उद्यान, कतर्नियाघाट और किशनपुर वन्यजीव अभयारण्य को एक संयुक्त पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना है, ताकि वन्यजीवों के बीच बेहतर और अधिक अनुभव प्राप्त हो सके।
- आर्थिक महत्त्व:
- इस ट्रेन से स्थानीय पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, नए रोज़गार सृजित होंगे तथा सतत् विकास को बढ़ावा मिलेगा।
कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य
- यह उत्तर प्रदेश के बहराइच ज़िले में ऊपरी गंगा के मैदान में स्थित है, जो प्राकृतिक रूप से एक समृद्ध और विविध पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखता है।
- यह 400.6 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है।
- संरक्षण:
- वर्ष 1987 में इसे 'प्रोजेक्ट टाइगर' के दायरे में लाया गया और किशनपुर वन्यजीव अभयारण्य और दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के साथ मिलकर यह दुधवा टाइगर रिज़र्व बनाता है। इसकी स्थापना 1975 में हुई थी।
- अभयारण्य में चीतल, हिरण, जंगली सूअर, बाघ, हाथी और तेंदुए आदि प्रजातियाँ भी पाई जाती हैं।
- यह घड़ियाल, बाघ, गैंडे, गंगा डॉल्फिन, दलदली हिरण, हिसपिड खरगोश, बंगाल फ्लोरिकन, सफेद पीठ वाले और लंबी चोंच वाले गिद्धों सहित कई लुप्तप्राय प्रजातियों का घर है।
- पारिस्थितिकी संरचना:
- यह क्षेत्र मिश्रित पर्णपाती वन से घिरा हुआ है, जिसमें साल और सागौन के जंगल, हरे-भरे घास के मैदान, असंख्य दलदल और आर्द्रभूमि शामिल हैं।
- इस क्षेत्र में गिरवा नदी बहती है, जो पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित करती है।
दुधवा टाइगर रिज़र्व
- यह उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में भारत-नेपाल सीमा पर लखीमपुर-खीरी ज़िले में स्थित है।
- अपनी समृद्ध जैवविविधता के लिये जाना जाने वाला यह स्थान बंगाल टाइगर, भारतीय गैंडे, दलदली हिरण, तेंदुए और कई पक्षी प्रजातियों का घर है।
- तराई आर्क लैंडस्केप (TAL) में शामिल हैं:
- दुधवा राष्ट्रीय उद्यान
- किशनपुर वन्यजीव अभयारण्य
- कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य
- ये तीन क्षेत्र प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत दुधवा टाइगर रिज़र्व का निर्माण करते हैं, जो राज्य में रॉयल बंगाल टाइगर्स की अंतिम व्यवहार्य आबादी की रक्षा करते हैं।
- दुधवा राष्ट्रीय उद्यान और किशनपुर अभयारण्य वर्ष 1987 में तथा कतर्नियाघाट वर्ष 2000 में इसमें शामिल किये गए।

