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छत्तीसगढ स्टेट पी.सी.एस.

  • 18 Oct 2021
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छत्तीसगढ़ टी कॉफी बोर्ड

चर्चा में क्यों?

17 अक्तूबर, 2021 को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्य के स्थानीय कृषकों एवं प्रसंस्करणकर्त्ताओं को अधिकतम लाभ सुनिश्चित करने और राज्य में चाय-कॉफी की खेती को बढ़ावा देने के लिये कृषि मंत्री की अध्यक्षता में छत्तीसगढ़ टी कॉफी बोर्ड का गठन किये जाने का निर्णय लिया।

प्रमुख बिंदु

  • इस बोर्ड में उद्योग मंत्री उपाध्यक्ष होंगे। बोर्ड में मुख्यमंत्री सचिवालय के अतिरिक्त मुख्य सचिव, कृषि उत्पादन आयुक्त, सीएसआईडीसी के प्रबंध संचालक, कृषि उद्यानिकी तथा वन विभाग के एक-एक अधिकारी सहित दो विशेष सदस्य भी शामिल किये जाएंगे।
  • मुख्यमंत्री ने कहा कि आगामी 3 वर्षों में कम-से-कम दस-दस हज़ार एकड़ में चाय एवं कॉफी की खेती करने का लक्ष्य अर्जित किया जाएगा। चाय एवं कॉफी की खेती करने वाले किसानों को राजीव गांधी किसान न्याय योजना एवं कृषि विभाग की अन्य सुविधाएँ दी जाएँगी। 
  • उल्लेखनीय है कि राज्य के उत्तरी भाग, विशेषकर जशपुर ज़िले में चाय तथा दक्षिणी भाग, विशेषकर बस्तर ज़िले में कॉफी की खेती एवं उनके प्रसंस्करण की व्यापक संभावनाएँ हैं। 
  • इसमें उद्यानिकी एवं उद्योग विभाग की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये राष्ट्रीय स्तर के प्रतिष्ठित संस्थानों से तकनीकी मार्ग-दर्शन लेने के साथ ही निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों, निवेशकों एवं कंसल्टेंट्स की सहायता भी ली जाएगी।

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कलागुड़ी

चर्चा में क्यों?

17 अक्तूबर, 2021 को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बस्तर ज़िले के मुख्यालय जगदलपुर में दलपत सागर के निकट बनाए गए कलागुड़ी (बस्तर आर्ट गैलरी) का लोकार्पण किया। साथ ही, मुख्यमंत्री की मौजूदगी में बस्तर शिल्पकलाओं के विक्रय हेतु बस्तर ज़िला प्रशासन और फ्लिपकार्ट के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • इस अवसर पर बस्तर कलेक्टर रजत बंसल ने बस्तर की हस्तशिल्प कलाओं के जीवंत प्रदर्शन के लिये निर्मित इस परिसर के संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि ब्रिटिश शासन काल के दौरान यह भवन अत्यंत जर्जर स्थिति में पहुँच चुका था। वर्तमान में इसका उपयोग लोक निर्माण विभाग द्वारा अभियांत्रिकी कार्यशाला के रूप में किया जा रहा था। 
  • बस्तर की पारंपरिक हस्तशिल्प कलाओं से सैलानियों के साथ युवा पीढ़ी को परिचित कराने के लिये इस परिसर में स्थित जर्जर भवनों का पुनर्निर्माण किया गया है। 
  • इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने यहाँ बनाए गए आर्ट गैलरी का भ्रमण कर लोक कलाकारों द्वारा निर्मित लौह शिल्पकारी, मृदा शिल्पकारी, बेलमेटल की शिल्पकारी और सीसल शिल्पकारी का जीवंत प्रदर्शन देखा। इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने यहाँ कैफेटेरिया में बस्तर कॉफी का स्वाद भी लिया।
  • इस आर्ट गैलरी में यहाँ 30 वर्षों से सूखी लकड़ियों के माध्यम से कला का प्रदर्शन कर रहे डाइट के सहायक प्राध्यापक सुभाष श्रीवास्तव के ड्रिफआर्ट और कोलाज पर कागज से निर्मित कलाकृतियों के साथ ही बेलमेटल से निर्मित कलाकृतियों का प्रदर्शन किया गया था। इसके साथ ही यहाँ एक अन्य कक्ष में लक्ष्मी जगार और धनकुल जगार के अवसर पर भित्तियों में बनाई जाने वाली जगार चित्र की कार्यशाला भी लगाई गई थी।

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मुरिया दरबार

चर्चा में क्यों?

17 अक्तूबर, 2021 को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक बस्तर दशहरा के तहत सिरहासार में आयोजित ‘मुरिया दरबार’ में शामिल हुए तथा जनप्रतिनिधियों द्वारा की गई माँगों को पूरा करते हुए विभिन्न घोषणाएँ कीं।

प्रमुख बिंदु

  • मुरिया दरबार में शामिल होने के लिये सिरहासार पहुँचने पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का स्वागत मांझी-चालकियों द्वारा पारंपरिक पगड़ी पहनाकर किया गया।
  • इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने टेंपल कमेटी के लिये एक लिपिक और एक भृत्य की भर्ती की घोषणा करने के साथ ही यहाँ स्थित शासकीय इंजीनियरिंग महाविद्यालय का नामकरण वीर झाड़ा सिरहा के नाम पर करने की घोषणा की। उन्होंने दंतेश्वरी मंदिर में आधुनिक ज्योति कक्ष के निर्माण की घोषणा भी की।
  • बस्तर में मुरिया दरबार की शुरुआत 8 मार्च, 1876 को हुई थी, जिसमें सिरोंचा के डिप्टी कमिश्नर मेक जार्ज ने मांझी- चालकियों को संबोधित किया था। बाद में लोगों की सुविधा के अनुरूप इसे बस्तर दशहरा का अभिन्न अंग बनाया गया, जो परंपरानुसार 145 साल से जारी है।
  • उल्लेखनीय है कि बस्तर रियासत द्वारा अपने राज्य में परगना स्थापित कर यहाँ के मूल आदिवासियों से मांझी (मुखिया) नियुक्त किया गया था, जो अपने क्षेत्र की हर बात राजा तक पहुँचाया करते थे, वहीं राजाज्ञा से ग्रामीणों को अवगत भी कराते थे। मूरिया दरबार में राजा द्वारा निर्धारित 80 परगना के मांझी ही उन्हें अपने क्षेत्र की समस्याओं से अवगत कराते हैं।
  • मुरिया दरबार में पहले राजा और रियासत के अधिकारी कर्मचारी मांझियों की बातें सुना करते थे और तत्कालीन प्रशासन से उन्हें हल कराने की पहल होती थी। आज़ादी के बाद मुरिया दरबार का स्वरूप बदल गया। 1947 के बाद राजा के साथ जनप्रतिनिधि भी इसमें शामिल होने लगे।
  • 1965 के पूर्व बस्तर महाराजा स्व. प्रवीर चंद्र भंजदेव दरबार की अध्यक्षता करते रहे। उनके निधन के बाद राज परिवार के सदस्यों मुरिया दरबार में आना बंद कर दिया था। वर्ष 2015 से राज परिवार के कमलचंद्र भंजदेव इस दरबार में शामिल हो रहे हैं।
  • बस्तर के मुरिया दरबार में अब बस्तर संभाग के निर्वाचित जन-प्रतिनिधि और वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहते हैं। वे ग्रामीणों से आवेदन लेते हैं। मांझी, चालकी और मेंबर-मेंबरीन इनके सामने ही अपनी समस्या रखते हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भी 2009 -10 से लगभग हर मुरिया दरबार में शामिल हो रहे हैं।

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बस्तर एकेडमी ऑफ डांस, आर्ट एंड लेंग्वेज (बादल)

चर्चा में क्यों?

17 अक्तूबर, 2021 को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बस्तर संभाग के मुख्यालय जगदलपुर के समीप आसना ग्राम में बस्तर के लोक नृत्य, स्थानीय बोलियाँ, साहित्य एवं शिल्पकला के संरक्षण और संवर्द्धन के लिये बस्तर एकेडमी ऑफ डांस, आर्ट एंड लेंग्वेज (बादल) का लोकार्पण किया।

प्रमुख बिंदु

  • इस अवसर पर बादल एकेडमी और इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय के मध्य एक एमओयू पर हस्ताक्षर किया गया। इसके तहत इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय द्वारा बादल एकेडमी में लोक नृत्य और लोक संगीत के लिये साझा तौर पर कार्य किया जाएगा। विश्वविद्यालय द्वारा बादल एकेडमी को मान्यता प्रदान करते हुए अपने पाठ्यक्रमों से संबंधित विधाओं का संचालन किया जाएगा। 
  • बादल अकादमी में लाइब्रेरी, रिकॉर्ड़िग रूम, ओपन थिएटर, डांस गैलरी, चेंजिंग रूम, गार्डन एवं रेसिडेंशियल हाउस, पाथवे, एग्जीबिशन हॉल, कैफेटेरिया बनाए गए हैं। 
  • बादल एकेडमी के जरिये बस्तर की विभिन्न जनजातीय संस्कृतियों को एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी तक हस्तांतरण करना, बाकी देश-दुनिया से इनका परिचय कराना, शासकीय कार्यों का सुचारू संपादन के लिये यहाँ के मैदानी कर्मचारी-अधिकारियों को स्थानीय बोली-भाषा का प्रशिक्षण देना आदि कार्य किया जाएगा।
  • इस अकादमी में प्रमुख रूप से लोकगीत एवं लोक नृत्य प्रभाग, लोक साहित्य प्रभाग, भाषा प्रभाग और बस्तर शिल्प कला प्रभाग की स्थापना की गई है। 
  • लोक गीत एवं लोक नृत्य प्रभाग के तहत बस्तर के सभी लोक गीत, लोक नृत्य गीत का संकलन, ध्वन्यांकन, फिल्मांकन एवं प्रदर्शन का नई पीढ़ी को प्रशिक्षण दिया जाएगा, जिसमें गंवर सिंग नाचा, डंडारी नाचा, धुरवा नाचा, परब नाचा, लेजागीत, मारीरसोना, जगार गीत आदि प्रमुख हैं। 
  • लोक साहित्य प्रभाग के तहत बस्तर के सभी समाजों के धार्मिक रीति-रिवाज, सामाजिक ताना-बाना, त्योहार, कविता, मुहावरा आदि का संकलन लिपिबद्ध कर जन-जन तक पहुँचाने का कार्य किया जाएगा। 
  • भाषा प्रभाग के तहत बस्तर की प्रसिद्ध बोली हल्बी, गोंडी, धुरवी और भतरी बोली का स्पीकिंग कोर्स तैयार कर लोगों को इन बोलियों का प्रशिक्षण दिया जाएगा। 
  • इसी तरह बस्तर शिल्प कला प्रभाग के तहत बस्तर की शिल्प कलाओं में काष्ठकला, धातु कला, बाँसकला, जूटकला, तुंबा कला आदि का प्रदर्शन एवं निर्माण करने की कला सिखाई जाएगी।
  • बादल एकेडमी में निर्मित तीन भवनों का नामकरण वीर शहीदों के नाम पर किया गया है। इनमें प्रशासनिक भवन का नाम शहीद झाड़ा सिरहा के नाम पर, आवासीय परिसर का नाम हल्बा जनजाति के शहीद गेंदसिंह के नाम पर और लायब्रेरी व अध्ययन भवन को धुरवा समाज के शहीद वीर गुंडाधुर के नाम पर किया गया है। 
  • इसके साथ ही यहाँ मुख्यमंत्री की मौज़ूदगी में थिंक-बी और आईआईएम रायपुर, आईआईआईटी रायपुर, हिदायतुल्लाह राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साईंसेज के साथ एमओयू किया गया। उद्यमिता और स्वरोज़गार के इच्छुक बस्तर के युवाओं के स्टार्टअप्स को प्रमोट करने के साथ ही उन्हें इंक्यूबेट करने के लिये यह एमओयू किया गया।

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