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State PCS Current Affairs

छत्तीसगढ़

मुरिया दरबार

  • 18 Oct 2021
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

17 अक्तूबर, 2021 को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक बस्तर दशहरा के तहत सिरहासार में आयोजित ‘मुरिया दरबार’ में शामिल हुए तथा जनप्रतिनिधियों द्वारा की गई माँगों को पूरा करते हुए विभिन्न घोषणाएँ कीं।

प्रमुख बिंदु

  • मुरिया दरबार में शामिल होने के लिये सिरहासार पहुँचने पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का स्वागत मांझी-चालकियों द्वारा पारंपरिक पगड़ी पहनाकर किया गया।
  • इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने टेंपल कमेटी के लिये एक लिपिक और एक भृत्य की भर्ती की घोषणा करने के साथ ही यहाँ स्थित शासकीय इंजीनियरिंग महाविद्यालय का नामकरण वीर झाड़ा सिरहा के नाम पर करने की घोषणा की। उन्होंने दंतेश्वरी मंदिर में आधुनिक ज्योति कक्ष के निर्माण की घोषणा भी की।
  • बस्तर में मुरिया दरबार की शुरुआत 8 मार्च, 1876 को हुई थी, जिसमें सिरोंचा के डिप्टी कमिश्नर मेक जार्ज ने मांझी- चालकियों को संबोधित किया था। बाद में लोगों की सुविधा के अनुरूप इसे बस्तर दशहरा का अभिन्न अंग बनाया गया, जो परंपरानुसार 145 साल से जारी है।
  • उल्लेखनीय है कि बस्तर रियासत द्वारा अपने राज्य में परगना स्थापित कर यहाँ के मूल आदिवासियों से मांझी (मुखिया) नियुक्त किया गया था, जो अपने क्षेत्र की हर बात राजा तक पहुँचाया करते थे, वहीं राजाज्ञा से ग्रामीणों को अवगत भी कराते थे। मूरिया दरबार में राजा द्वारा निर्धारित 80 परगना के मांझी ही उन्हें अपने क्षेत्र की समस्याओं से अवगत कराते हैं।
  • मुरिया दरबार में पहले राजा और रियासत के अधिकारी कर्मचारी मांझियों की बातें सुना करते थे और तत्कालीन प्रशासन से उन्हें हल कराने की पहल होती थी। आज़ादी के बाद मुरिया दरबार का स्वरूप बदल गया। 1947 के बाद राजा के साथ जनप्रतिनिधि भी इसमें शामिल होने लगे।
  • 1965 के पूर्व बस्तर महाराजा स्व. प्रवीर चंद्र भंजदेव दरबार की अध्यक्षता करते रहे। उनके निधन के बाद राज परिवार के सदस्यों मुरिया दरबार में आना बंद कर दिया था। वर्ष 2015 से राज परिवार के कमलचंद्र भंजदेव इस दरबार में शामिल हो रहे हैं।
  • बस्तर के मुरिया दरबार में अब बस्तर संभाग के निर्वाचित जन-प्रतिनिधि और वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहते हैं। वे ग्रामीणों से आवेदन लेते हैं। मांझी, चालकी और मेंबर-मेंबरीन इनके सामने ही अपनी समस्या रखते हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भी 2009 -10 से लगभग हर मुरिया दरबार में शामिल हो रहे हैं।
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