झारखंड Switch to English
करमा उत्सव
चर्चा में क्यों?
झारखंड के मुख्यमंत्री ने राँची में आयोजित करमा उत्सव समारोह में भाग लिया।
मुख्य बिंदु
करमा (करम) उत्सव के बारे में:
- भौगोलिक और सामुदायिक पहुँच:
- यह एक फसल उत्सव है, जो झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम और ओडिशा राज्यों में जनजातीय समुदायों द्वारा मनाया जाता है।
- यह मुंडा, हो, ओरांव, बैगा, खड़िया और संथाल जनजातियों के बीच विशेष रूप से लोकप्रिय है।
- समय और तिथि:
- पारंपरिक रूप से यह उत्सव भाद्रपद/भादो (अगस्त–सितंबर) मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि (ग्यारहवें दिन) को मनाया जाता है।
- मुख्य प्रतीक और देवता:
- इस उत्सव का नाम करम वृक्ष के नाम पर रखा गया है। इस वृक्ष को पारंपरिक रूप से करम देवता या करमसनी, जो शक्ति, यौवन और जीवनशक्ति के देवता माने जाते हैं, के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
- अनुष्ठान और औपचारिक प्रथाएँ:
- तैयारी: उत्सव से लगभग एक सप्ताह पूर्व युवतियाँ नदी से स्वच्छ रेत लाकर उसमें सात प्रकार के अनाज बोती हैं।
- मुख्य समारोह: उत्सव के दिन करम वृक्ष की एक शाखा आँगन या ‘अखरा’ में लगाई जाती है।
- पूजा: श्रद्धालु जवा (गुड़हल) के फूल अर्पित करते हैं और ‘पाहन’ (जनजातीय पुजारी) करम राजा या करम देवता की पूजा करते हैं।
- उत्सव: पूजा के बाद पारंपरिक करम गीतों के साथ सामूहिक नृत्य और गायन होता है।
- समापन: करम शाखा को नदी या तालाब में विसर्जित करने के साथ इस उत्सव का समापन होता है तथा जवा को श्रद्धालुओं के बीच वितरित किया जाता है।
- कृषि संबंधी महत्त्व:
- इस उत्सव की उत्पत्ति जनजातीय समुदायों द्वारा कृषि की शुरुआत से जुड़ी हुई है।
- उरांव/कुरुख समुदाय ने कृषि चक्र के अनुरूप सांस्कृतिक परंपराओं को संयोजित करते हुए करमा उत्सव को धान/अनाज का उत्सव रूप में मनाना आरंभ किया।
- उत्सव के बाद प्रायः खेतों में साल या भेलुआ के पेड़ों की शाखाएँ लगाई जाती हैं, इस विश्वास के साथ कि करम देवता उनकी फसलों की रक्षा करेंगे।.
- चिरचिट्टी (भूसा फूल) और सिंदवार (पवित्र वृक्ष) के तने धान के खेतों में लगाए जाते हैं, जो प्राकृतिक कीटनाशक के रूप में कार्य करते हैं।
- अनुष्ठान के दौरान पाहन (पुजारी) अच्छी फसल के लिये प्रार्थना करता है।
राजस्थान Switch to English
अवैध रेत खनन
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और राजस्थान सरकार को नोटिस जारी कर राज्य में व्यापक स्तर पर अवैध नदी रेत खनन और परिवहन संबंधी आरोपों पर स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
मुख्य बिंदु
- रेत खनन के बारे में:
- रेत खनन का अर्थ प्राकृतिक बालू और उसके स्रोतों (खनिज युक्त बालू तथा एग्रीगेट्स सहित) को प्राकृतिक पर्यावरण (स्थलीय, नदीय, तटीय या समुद्री) से निकालने की प्रक्रिया से है, जिसका उपयोग खनिज, धातु, क्रश्ड स्टोन, रेत और बजरी प्राप्त करने में किया जाता है।
- अवैध नदी रेत खनन से तात्पर्य नदी तल, तटों और बाढ़क्षेत्रों से अनधिकृत एवं अनियमित निष्कर्षण से है।
- रेत का स्रोत:
- भारत में रेत के प्राथमिक स्रोतों में नदी बाढ़ के मैदान, तटीय रेत, पैलियो-चैनल रेत तथा कृषि क्षेत्रों से प्राप्त रेत शामिल हैं।
- अवैध रेत खनन में योगदान देने वाले कारक:
- विनियमन का अभाव और कमज़ोर प्रवर्तन अनियंत्रित अवैध रेत खनन को बढ़ावा देता है।
- शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि के कारण निर्माण उद्योग की उच्च माँग से नदी-तल तथा तटीय क्षेत्रों पर दबाव बढ़ रहा है।
- भ्रष्टाचार और रेत माफिया का प्रभाव, अधिकारियों की मिलीभगत के साथ, अवैध खनन गतिविधियों को बनाए रखता है
- स्थायी विकल्पों का अभाव: निर्मित रेत (एम-रेत) का सीमित उपयोग तथा पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों के अपर्याप्त प्रचार से नदी-तल की रेत पर निर्भरता बढ़ जाती है।
- रेत खनन के प्रभाव:
- कटाव और आवास विघटन: अनियमित रेत खनन से नदी तल बदल जाता है, जिससे कटाव बढ़ जाता है, चैनल आकारिकी में बदलाव होता है और जलीय आवासों में व्यवधान होता है।
- बाढ़ और अवसादन: रेत की कमी से बाढ़ का जोखिम बढ़ता है, अवसाद का भार बढ़ता है तथा प्रवाह-पैटर्न में परिवर्तन होता है, जिससे जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को हानि पहुँचती है।
- भूजल ह्रास: गहरे गड्ढों के निर्माण से भूजल स्तर नीचे चला जाता है, जिससे पेयजल कुओं पर प्रभाव पड़ता है और जल-संकट की स्थिति उत्पन्न होती है।
- जैवविविधता की हानि: इससे जलीय और तटीय प्रजातियों की क्षति होती है तथा इसका प्रभाव मैंग्रोव वनों तक व्याप्त हो जाता है।
- रेत खनन से संबंधित विनियम:
- खनिज एवं खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 (MMDR Act, 1957): इस अधिनियम के अंतर्गत रेत को लघु खनिज (Minor Mineral) के रूप में वर्गीकृत किया गया है तथा इसकी प्रशासनिक ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों को सौंपी गई है।
- सस्टेनेबल सैंड माइनिंग मैनेजमेंट (SSMG) दिशा-निर्देश, 2016: पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने वर्ष 2016 में इन दिशा-निर्देशों को जारी किया, जिनका उद्देश्य वैज्ञानिक एवं पर्यावरण-अनुकूल रेत खनन पद्धतियों को बढ़ावा देना है।
- पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA): भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया है कि सभी रेत खनन गतिविधियों के लिये, यहाँ तक कि 5 हेक्टेयर से छोटे क्षेत्रों में भी, पूर्व अनुमोदन आवश्यक है।
उत्तर प्रदेश Switch to English
दुधवा टाइगर रिज़र्व
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में स्थित दुधवा टाइगर रिज़र्व में 6–7 महीने के एक तेंदुए के शावक की अज्ञात न्यूरोलॉजिकल विकार के कारण उपचार के दौरान मृत्यु हो गई।
मुख्य बिंदु
- दुधवा टाइगर रिज़र्व के बारे में:
- यह उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में स्थित है। इसे प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत वर्ष 1988 में एक टाइगर रिज़र्व के रूप में स्थापित किया गया था।
- संरचनात्मक क्षेत्र:
- इस रिज़र्व में दुधवा राष्ट्रीय उद्यान, किशनपुर वन्यजीव अभयारण्य और कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य शामिल हैं।
- इसमें साल वनभूमि, दलदली घासभूमि, शुष्क नदी घासभूमि और ऑक्सबो झीलों का मिश्रण पाया जाता है।
- भौगोलिक विशेषताएँ:
- यह रिज़र्व उत्तर में मोहना नदी और दक्षिण में शारदा नदी से घिरा है, जबकि कतर्नियाघाट से गेरवा नदी बहती है।
- जैवविविधता:
- यह एक जैवविविधता हॉटस्पॉट है, जहाँ परस्पर जुड़ी खाद्य शृंखलाएँ और जाल विद्यमान हैं।
- जीव-जंतु:
- इस रिज़र्व में बंगाल टाइगर, भारतीय गैंडा, दलदली हिरण, तेंदुआ तथा अनेक पक्षी-प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
- अखिल भारतीय बाघ गणना 2022 में दुधवा टाइगर रिज़र्व देश में चौथे स्थान पर रहा, जहाँ लगभग 135 बाघ और 180 तितली प्रजातियाँ पाई गईं।
- इस रिज़र्व में बंगाल टाइगर, भारतीय गैंडा, दलदली हिरण, तेंदुआ तथा अनेक पक्षी-प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
- वनस्पति:
- यहाँ साल (Shorea robusta) वनों का प्रभुत्व है, इसके अतिरिक्त आर्द्रभूमि, घासभूमि और नदी तटीय वनस्पतियाँ पाई जाती हैं।]
राष्ट्रीय करेंट अफेयर्स Switch to English
भूटान के प्रधानमंत्री का बोधगया का दौरा
चर्चा में क्यों?
भूटान के प्रधानमंत्री ने बोधगया में स्थित महाबोधि मंदिर का भ्रमण किया और भगवान बुद्ध की प्रतिमा के समक्ष प्रार्थना अर्पित की तथा पवित्र बोधि वृक्ष के नीचे ध्यान लगाया।
महाबोधि मंदिर
महाबोधि महाविहार के बारे में
- परिचय:
- महाबोधि महाविहार वह स्थल है जहाँ गौतम बुद्ध को बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था।
- मंदिर का निर्माण मूलतः सम्राट अशोक द्वारा ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में कराया गया था, जबकि वर्तमान संरचना 5वीं–6वीं शताब्दी ईस्वी की है।
- वास्तुकला संबंधी विशेषताएँ:
- संपूर्ण परिसर में 50 मीटर ऊँचा मुख्य मंदिर (वज्रासन), पवित्र बोधि वृक्ष तथा बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति से संबंधित छह अन्य पवित्र स्थल शामिल हैं, जो प्राचीन स्तूपों से घिरे हुए हैं।
- यह गुप्तकाल के सर्वप्रथम सुरक्षित ईंट-निर्मित मंदिरों में से एक है। सम्राट अशोक ने यहाँ बुद्ध के ध्यान स्थल को चिह्नित करने के लिये वज्रासन (हीरकासन) की स्थापना कराई थी।
- पवित्र स्थल:
- प्रमुख स्थलों में बोधि वृक्ष (मूल वृक्ष का प्रत्यक्ष वंशज), अनिमेष लोचन चैत्य (जहाँ बुद्ध ने ज्ञान-प्राप्ति के बाद ध्यान किया था) तथा अन्य संबंधित स्थल शामिल हैं।
- मान्यता:
- महाबोधि मंदिर को वर्ष 2002 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में सम्मिलित किया गया था