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Sambhav-2023

  • 26 Dec 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस- 41

    प्रश्न.1 गुप्त काल को प्राचीन भारतीय इतिहास के स्वर्ण काल के रूप में संदर्भित किया जाता है। चर्चा कीजिये। इसके साथ ही गुप्त साम्राज्य के पतन हेतु उत्तरदायी कारणों पर प्रकाश डालिये। (250 शब्द)

    प्रश्न.2 बौद्ध धर्म में हर्ष के योगदान को रेखांकित कीजिये। हर्ष के शासनकाल की सामाजिक एवं आर्थिक दशाओं का वर्णन कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    उत्तर 1:

    दृष्टिकोण:

    • गुप्त काल का परिचय दीजिये।
    • बताइए कि गुप्त काल को प्राचीन भारतीय इतिहास के स्वर्ण काल के रूप में संदर्भित क्यों किया जाता है। गुप्त साम्राज्य के पतन हेतु उत्तरदायी कारकों का भी उल्लेख कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • कुषाण और सातवाहन साम्राज्यों के पतन के साथ ही गुप्त साम्राज्य का उदय हुआ था। इसके अंतर्गत उत्तर भारत 335 ई. से 455 ई. तक राजनीतिक रूप से केंद्रीकृत रहा था।
    • इनकी सत्ता का प्रमुख केंद्र प्रयाग था। उत्तर प्रदेश में गुप्त, कुषाणों के सामंत थे।

    मुख्य भाग:

    गुप्त काल, स्वर्ण काल था क्योंकि:

    • गुप्त शासकों ने साम्राज्य में छोटे शासकों पर अपने प्रभुत्व को दर्शाने के लिये उपाधियाँ धारण करने के साथ बड़ी और स्थायी सेना रखी थी।
    • गुप्त काल में न्याय व्यवस्था पहले के समय की अपेक्षा कहीं अधिक विकसित थी। इस काल में अनेक विधि पुस्तकों का संकलन किया गया था। इस दौरान पहली बार नागरिक और आपराधिक कानूनों को स्पष्ट रूप से विभाजित किया गया था। चोरी और व्यभिचार को आपराधिक कानून के अंतर्गत शामिल किया गया था।
    • कारीगरों, व्यापारियों और अन्य लोगों के संघ स्वयं के कानूनों द्वारा शासित होते थे। गुप्तकाल में ये संघ अत्यधिक समृद्ध हुए थे।
    • गुप्तों ने प्रांतीय और स्थानीय प्रशासनिक प्रणाली को क्रमबद्ध किया था जैसे- प्रांत (भुक्तियों) को जिलों (विषयों) में विभाजित किया गया था। प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी।

    व्यापार और कृषि अर्थव्यवस्था की प्रवृत्ति:

    • गुप्तों ने सबसे अधिक सोने के सिक्के जारी किये थे जिन्हें उनके शिलालेखों में दीनार कहा गया है।
    • पूर्व की अवधि की तुलना में इस काल के दौरान लंबी दूरी के व्यापार में गिरावट के साक्ष्य मिलते हैं। 550 ई. तक भारत का पूर्वी रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार होता था और इसे रेशम का निर्यात किया जाता था।

    सामाजिक विकास:

    • बड़े पैमाने पर ब्राह्मणों को किये जाने वाले भूमि अनुदान से पता चलता है कि गुप्त काल में ब्राह्मण वर्चस्व जारी रहा था।
    • इस काल में शूद्रों की स्थिति में सुधार हुआ था। इन्हें रामायण, महाभारत और पुराणों को सुनने की अनुमति प्रदान की गई थी। ये कृष्ण नामक देवता की भी पूजा कर सकते थे।
    • इसके साथ ही निम्न वर्णों की महिलाएँ अपनी आजीविका कमाने के लिये स्वतंत्र थीं।

    धर्म:

    • गुप्त काल में बौद्ध धर्म को दीर्घकालिक शाही संरक्षण नहीं मिला था।
    • मौर्योत्तर काल में विष्णु या भागवत की पूजा पर केंद्रित भागवत धर्म का उदय हुआ था।
    • गुप्त शासकों ने विभिन्न धार्मिक संप्रदायों के प्रति सहिष्णुता की नीति का पालन किया था।

    कला:

    • गुप्त काल को प्राचीन भारत का स्वर्ण काल कहा जाता है।
    • समुद्रगुप्त और चंद्रगुप्त द्वितीय दोनों ही कला और साहित्य के संरक्षक थे। समुद्रगुप्त को उनके सिक्कों पर वीणा बजाते हुए दर्शाया गया है। चंद्रगुप्त द्वितीय के दरबार में नवरत्न या महान विद्वानों का समूह शामिल था।
    • भागलपुर के निकट सुल्तानगंज में इस काल से संबंधित, बुद्ध की दो मीटर ऊँची कांस्य प्रतिमा प्राप्त हुई है।
    • गुप्त काल में सारनाथ और मथुरा में बुद्ध की सुंदर प्रतिमाएँ बनाई गई थीं।

    साहित्य:

    • धर्मनिरपेक्ष साहित्य के विकास में गुप्त काल का प्रमुख स्थान है।
    • इस अवधि से संबंधित भास द्वारा लिखित तेरह नाटक हैं। शूद्रक द्वारा लिखित मृच्छकटिकम् नामक रचना एक गरीब ब्राह्मण के प्रेम प्रसंग से संबंधित है।
    • कालिदास ने राजा दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कहानी से संबंधित अभिज्ञानशाकुंतलम की रचना की थी।
    • गुप्त काल में पाणिनि और पतंजलि पर आधारित संस्कृत व्याकरण का विकास हुआ था।
    • कुल मिलाकर गुप्त काल, साहित्य के इतिहास में समृद्ध चरण था।

    विज्ञान और तकनीक:

    • इस दौरान आर्यभट्ट द्वारा रचित आर्यभटीयम नामक कृति गणित से संबंधित थी।
    • इससे संबंधित लोहे की वस्तुओं के मामले में सबसे अच्छा उदाहरण दिल्ली का महरौली लौह स्तंभ है। चौथी शताब्दी ईस्वी में निर्मित इस स्तंभ पर अभी तक जंग नहीं लगी है।

    यह काल, स्वर्ण काल नहीं था क्योंकि:

    • इस समय शासन प्रणाली वंशानुगत थी और साथ ही उत्तराधिकार के नियमों के अभाव के कारण अनिश्चितताएँ होने से उत्तराधिकार के लिये युद्ध होने और ग्रामीणों से बलात श्रम (जिसे विष्टि कहा जाता था) कराने के साक्ष्य मिलते हैं।
    • दो कारकों के परिणामस्वरूप जातियाँ, कई उप-जातियों में विभाजित हो गईं थीं। इस दौरान बड़ी संख्या में विदेशियों को भारतीय समाज में आत्मसात किया गया था और विदेशियों के प्रत्येक समूह को एक प्रकार की जाति माना जाता था।
    • चीनी तीर्थयात्री फाहियान के विवरण से पता चलता है कि चांडाल गाँव के बाहर रहते थे और मांस का सेवन करते थे।
    • पूर्व-गुप्त और गुप्त काल में उच्च वर्ग की महिलाओं की आजीविका के स्वतंत्र स्रोतों तक पहुँच नहीं थी। पितृसत्तात्मक व्यवस्था के क्रम में महिलाओं को वस्तु के रूप में माना जाने लगा। सती प्रथा का पहला उदाहरण गुप्तकाल में 510 ई. में मिलता है।
    • इस अवधि के दौरान उत्तर भारत के कई शहरों का पतन हुआ था। गुप्त काल की वास्तुकला भी निम्न थी।
    • प्राचीन भारत में कला अधिकांशतः धर्म से प्रेरित थी। प्राचीन भारत में गैर-धार्मिक कला के साक्ष्य काफी कम मिलते हैं।
    • इस अवधि के दौरान धार्मिक साहित्य के विकास को प्रोत्साहन मिला था। इस अवधि की अधिकांश कृतियों में मजबूत धार्मिक पूर्वाग्रह देखने को मिलता है।

    इस साम्राज्य के पतन के कारण:

    • स्कंदगुप्त के उत्तराधिकारी कमजोर साबित हुए थे और हूण आक्रमणकारियों का मुकाबला नहीं कर सके थे।
    • मालवा के शासकों ने गुप्तों की सत्ता को चुनौती दी थी और लगभग पूरे उत्तर भारत पर अपनी विजय के उपलक्ष्य में विजय स्तंभ स्थापित किये थे।
    • सामंतों के उदय से गुप्त साम्राज्य और भी कमजोर हो गया था। उत्तरी बंगाल क्षेत्र में गुप्तों के सूबेदार और उनके सामंत स्वतंत्र होने लगे थे।
    • वल्लभी के शासकों ने गुजरात और पश्चिमी मालवा में अपना अधिकार स्थापित किया था।
      • पश्चिम भारत के क्षेत्र में गुप्तों का प्रभाव समाप्त हो जाने से यह व्यापार और वाणिज्य से प्राप्त होने वाले राजस्व से वंचित हो गए जिससे यह आर्थिक रूप से कमजोर हुए।
    • उत्तर भारत में थानेसर के शासक, हर्षवर्धन ने हरियाणा में अपनी सत्ता स्थापित की और फिर धीरे-धीरे कन्नौज तक इसका विस्तार किया था।
    • विदेशी व्यापार में गिरावट से इनकी आय और अधिक प्रभावित हुई थी। रेशम-बुनकरों की एक श्रेणी का प्रवासन और इनके द्वारा अनुत्पादक पेशों को अपनाने से पता चलता है कि उनके द्वारा उत्पादित कपड़े की मांग अधिक नहीं थी।

    निष्कर्ष:

    गुप्तों का पतन और सामंतों का उदय, उत्तर भारत में तुर्कों और अफगानों के आक्रमण और दिल्ली सल्तनत की स्थापना तक जारी रहा था। इन आक्रमणकारियों के अधीन इस क्षेत्र में कुछ स्थिरता आई जिसे मुगलों द्वारा और भी मजबूत बनाया गया था।


    उत्तर 2:

    दृष्टिकोण:

    • हर्षवर्धन के शासन के बारे में बताइए।
    • बौद्ध धर्म में हर्ष के योगदान की विवेचना कीजिये तथा हर्ष के शासनकाल की सामाजिक और आर्थिक दशाओं का वर्णन कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • गुप्त साम्राज्य के पतन के साथ ही उत्तरी और पश्चिमी भारत हरियाणा के थानेसर के राजवंशों के नियंत्रण में आ गया था और अन्य सभी सामंतों पर इसके प्रभाव का विस्तार हुआ था।
    • हर्षवर्धन (606-647 ई.) के शासनकाल में थानेसर के प्रभाव में वृद्धि हुई थी। हर्ष ने कन्नौज को अपनी सत्ता का केन्द्र बनाया जहाँ से उसने अपनी सत्ता का विस्तार किया।

    मुख्य भाग:

    हर्ष के शासनकाल के दौरान सामाजिक और आर्थिक स्थिति:

    प्रशासन:

    • हर्ष का प्रशासन काफी हद तक गुप्तों से प्रेरित था सिवाय इसके कि उसका प्रशासन अधिक सामंती और विकेंद्रीकृत हो गया था।
    • युद्ध के समय अपने सभी सामंतों का समर्थन जुटा पाने पर ही हर्ष की सेना काफी बड़ी हो सकती थी क्योंकि हर सामंत के पास पैदल और घुड़सवार सैनिक होते थे।
    • राज्य को प्रदान की जाने वाली विशेष सेवाओं के लिये पुजारियों को भूमि अनुदान दिया जाता था।
    • चीनी तीर्थयात्री ह्वेन- त्सांग के विवरण से पता चलता है कि हर्ष के राजस्व खर्च को चार भागों में विभाजित किया गया था- राजा का व्यय, विद्वानों पर व्यय, अधिकारियों और लोक सेवकों पर व्यय और धार्मिक उद्देश्यों के लिये किया जाने वाला व्यय।
      • इसके विवरण से हमें यह भी पता चलता है कि राज्य के मंत्री और उच्च अधिकारी, भूमि से संपन्न थे। अधिकारियों को भूमिदान करने की सामंती प्रथा हर्ष के शासन में शुरू हुई थी क्योंकि उसके पास बहुत अधिक सिक्के नहीं थे।
    • इसके साम्राज्य की कानून और व्यवस्था अच्छी नहीं थी। डकैती के लिये दोषी का दाहिना हाथ काट दिया गया था।
    • हर्ष को न केवल साहित्य के संरक्षण और शिक्षा के लिये बल्कि प्रियदर्शिका, रत्नावली और नागानंद नामक तीन नाटकों के लेखन के लिये भी याद किया जाता है।
    • बाणभट्ट ने इन्हें महान काव्य कौशल का श्रेय दिया है और कुछ बाद के लेखक उन्हें एक साहित्यिक सम्राट के रुप में संदर्भित करते हैं।
    • इस समय व्यापार में गिरावट और पैसे की कमी हो जाने से अधिकारियों और सैनिकों को भूमि अनुदान के माध्यम से भुगतान किया जाने लगा। इसके साथ ही शहरों के महत्त्व में भी कमी आई थी।
    • ह्वेन- त्सांग के विवरण:
      • इसके विवरण से पता चलता है कि इस समय पाटलिपुत्र पतन की स्थिति में था। दूसरी ओर दोआब क्षेत्र में प्रयाग और कन्नौज महत्त्वपूर्ण हो गए थे।
      • ऐसा माना जाता है कि इस समय ब्राह्मणों और क्षत्रियों ने साधारण जीवन व्यतीत किया था लेकिन संभ्रांत वर्ग और पुजारियों ने शाही जीवन व्यतीत किया था। यह दो उच्च वर्णों के बीच भिन्नता को इंगित करता है।
        • संभवतः उनमें से अधिकांश ने कृषि को अपना लिया था। ह्वेनसांग ने शूद्रों को कृषक के रुप में वर्णित किया था। उसने अछूतों (जैसे मैला ढोने वाले) का भी उल्लेख किया है। ये गाँवों के बाहर रहते थे और लहसुन एवं प्याज का सेवन करते थे।

    बौद्ध धर्म में हर्ष का योगदान: बौद्ध धर्म और नालंदा

    • चीनी तीर्थयात्री ह्वेन- त्सांग के प्रभाव में आकर हर्ष बौद्ध धर्म का बड़ा समर्थक बन गया था और उसने इसके लिये दान भी दिया था।
    • हर्षवर्धन के समय में नालंदा एक विशाल मठ था।
    • हर्ष ने सहिष्णु धार्मिक नीति का पालन किया था। अपने प्रारंभिक वर्षों में शैव होने के साथ ही वह धीरे-धीरे बौद्ध धर्म का एक महान संरक्षक बन गया था।
    • धर्मनिष्ठ बौद्ध होने के रूप में इसके व्यापक प्रचार के लिये उसने कन्नौज में एक भव्य सभा बुलाई थी उस सभा में महायान शाखा के बौद्धों ने भाग लिया था।
      • उसने एक विशाल मीनार का निर्माण कराया था। इसके मध्य में बुद्ध की एक स्वर्ण प्रतिमा रखी गई थी और यह प्रतिमा स्वयं राजा जितनी ऊँची थी।
    • कन्नौज के बाद, प्रयाग में उसने एक बड़ी सभा आयोजित की थी जिसमें राजकुमारों, मंत्रियों और संभ्रांत लोगों ने भाग लिया था।
      • अंततः हर्ष ने बहुत बड़े पैमाने पर दान किया था और उसने अपने कपड़ों को छोड़कर सब कुछ त्याग दिया था।

    निष्कर्ष:

    हर्ष के शासनकाल में सामंती व्यवस्था को गति मिली थी, जिसकी शुरुआत गुप्तों के अंतिम चरण में हुई थी। हर्ष के शासन के बाद इसी तरह की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था का विकास पाल, प्रतिहार और राष्ट्रकूट के तहत हुआ था। इसके कारण मजबूत केंद्रीय शक्ति के पतन के साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास में गिरावट आई। इन आंतरिक कमजोरियों के कारण आगे चलकर तुर्कों और अफगानों ने भारत पर आक्रमण किया था।

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