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देश का पहला ड्रोन-आधारित क्लाउड सीडिंग प्रयोग
चर्चा में क्यों?
राजस्थान के राज्य कृषि विभाग ने क्षेत्र में जल संकट को दूर करने और रामगढ़ झील को पुनर्जीवित करने के लिये पहली बार ड्रोन-आधारित क्लाउड सीडिंग (कृत्रिम वर्षा) प्रयोग शुरू किया है।
मुख्य बिंदु
क्लाउड सीडिंग प्रयोग के बारे में:
- उद्देश्य:
- इस प्रयोग का लक्ष्य वर्षा-मेघों में विशेष रसायनों का छिड़काव कर वर्षा को प्रेरित करना है, जिससे क्षेत्र की कृषि गतिविधियों को लाभ मिल सके।
- यह 60-दिवसीय पायलट परियोजना बादलों में जल-बूँदों के निर्माण को बढ़ावा देकर क्षेत्र में जल की कमी से निपटने का प्रयास है, जो क्षेत्रीय जल-अभाव को दूर करने हेतु चल रहे व्यापक प्रयास का हिस्सा है।
- इस प्रयोग का लक्ष्य वर्षा-मेघों में विशेष रसायनों का छिड़काव कर वर्षा को प्रेरित करना है, जिससे क्षेत्र की कृषि गतिविधियों को लाभ मिल सके।
- प्रयुक्त प्रौद्योगिकी:
- क्लाउड सीडिंग प्रक्रिया कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित प्लेटफॉर्म ‘हाइड्रो ट्रेस’ द्वारा संचालित है, जो वास्तविक समय के आँकड़े, उपग्रह चित्रण और सेंसर नेटवर्क का उपयोग कर सही समय पर सही बादलों को लक्षित करता है।
- अनुमोदन:
- इस तकनीक को नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA), भारत मौसम विज्ञान विभाग, ज़िला प्रशासन तथा कृषि विभाग सहित कई संस्थाओं से अनुमोदन प्राप्त हुआ है।
क्लाउड सीडिंग
- यह एक मौसम परिवर्तन तकनीक है, जिसके माध्यम से वर्षा की मात्रा बढ़ाने के लिये बादलों में सिल्वर आयोडाइड, पोटैशियम आयोडाइड या शुष्क बर्फ जैसे रसायनों का छिड़काव किया जाता है।
- ये रसायन जल-बूँदों के निर्माण हेतु नाभिक का कार्य करते हैं, जिससे वर्षा होती है।
- यह तकनीक उच्च वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) की स्थिति में वायु प्रदूषण को कम करने में सहायक हो सकती है।
- क्लाउड सीडिंग से जल की उपलब्धता में वृद्धि होने के साथ-साथ आर्थिक, पर्यावरणीय तथा मानव स्वास्थ्य संबंधी लाभ भी प्राप्त हो सकते हैं।


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अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस पर HIV-एड्स जागरूकता अभियान
चर्चा में क्यों?
अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस (12 अगस्त 2025) पर राजस्थान राज्य एड्स नियंत्रण सोसायटी ने जयपुर में एक राज्य स्तरीय कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसमें राज्य के युवाओं में HIV-एड्स जागरूकता को बढ़ावा देने के लिये एक गहन सूचना, शिक्षा और संचार (IEC) अभियान शुरू किया गया।
मुख्य बिंदु
अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस के बारे में:
- स्थापना: संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 1999 में
- प्रारंभिक प्रस्ताव: वर्ष 1991 में विश्व युवा मंच, वियना में युवा प्रतिभागियों द्वारा
- आधिकारिक प्रस्ताव: युवाओं के लिये ज़िम्मेदार मंत्रियों का विश्व सम्मेलन, लिस्बन (1998)
- पहली बार मनाया गया: 12 अगस्त, 2000
- वर्ष 2025 की थीम: “SDG और उससे आगे के लिये स्थानीय युवा कार्य”
- चूँकि 65% से अधिक सतत् विकास लक्ष्य स्थानीय शासन से जुड़े हैं, इसलिये युवाओं की भागीदारी आवश्यक है।
- उद्देश्य:
- विश्व में युवा मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करना
- सतत् विकास में युवाओं की भागीदारी को बढ़ावा देना
- समाज में युवाओं के योगदान का उत्सव मनाना
एड्स
- एड्स एक दीर्घकालिक, जीवन-घातक स्थिति है, जो मानव इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस (HIV) के कारण होती है, जो प्रतिरक्षा प्रणाली पर हमला करता है तथा CD4 कोशिकाओं (श्वेत रक्त कोशिकाएँ, जो प्रतिरक्षा प्रणाली के लिये महत्त्वपूर्ण हैं) को निशाना बनाता है।
- यह असुरक्षित यौन संबंध, संक्रमित रक्त तथा संक्रमित सुई/सीरिंज के उपयोग से फैलता है।
- यद्यपि इसका कोई स्थायी इलाज नहीं है, किंतु एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (ART) वायरस को नियंत्रित कर सकती है और CD4 कोशिकाओं को पुनः स्थापित करने में मदद करती है।
- ग्लोबल एड्स अपडेट 2023 में नए संक्रमणों में आई गिरावट पर प्रकाश डाला गया है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक एड्स को समाप्त करना है।
- भारत में 2.5 मिलियन से अधिक लोग HIV से पीड़ित हैं तथा वर्ष 2010 से नए संक्रमणों में 44% की कमी आई है।
राष्ट्रीय युवा दिवस
- भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस हर वर्ष 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है।
- वर्ष 1984 से यह दिवस इस उद्देश्य से मनाया जा रहा है कि युवा, विवेकानंद द्वारा अपनाये गये मूल्यों, सिद्धांतों और आदर्शों को अपने जीवन में उतारें।
- स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता में हुआ था।
- वे भारत के महान संन्यासियों में से एक माने जाते हैं, जिन्होंने पश्चिमी जगत को हिंदू धर्म से परिचित कराया।
- श्री रामकृष्ण परमहंस के शिष्य के रूप में उन्होंने औपनिवेशिक भारत में राष्ट्रीय एकीकरण के लिये प्रयास किया और उन्हें देश में हिंदू धर्म को पुनर्जीवित करने का श्रेय दिया जाता है।


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लेसर फ्लोरिकन संरक्षण संकट
चर्चा में क्यों?
राजस्थान के नसीराबाद और अजमेर से आवारा कुत्तों को अनियंत्रित रूप से अरवार संरक्षण रिज़र्व के वन क्षेत्र में छोड़ा जाना, लेसर फ्लोरिकन के लिये गंभीर खतरा बन गया है।
मुख्य बिंदु
- जनसंख्या में गिरावट: लेसर फ्लोरिकन (Sypheotides indicus), जो कभी राजस्थान के वर्षा-आधारित घासभूमि क्षेत्रों में सामान्य रूप से पाया जाता था, की संख्या में 97% की विनाशकारी गिरावट आई है।
- वर्ष 2025 में अजमेर, केकड़ी और शाहपुरा के प्रजनन स्थलों पर केवल एक नर पक्षी देखा गया, जबकि वर्ष 2020 में इनकी संख्या 39 थी।
- बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) द्वारा किये गए परिदृश्य सर्वेक्षण में इस प्रजाति की घटती संख्या को रेखांकित किया गया, जिसमें एकमात्र नर बंदनवाड़ा के पास देखा गया।
लेसर फ्लोरिकन (Sypheotides indicus)
- यह भारत में पाई जाने वाली तीन स्थानिक बस्टर्ड प्रजातियों में से एक है, अन्य दो प्रजातियाँ हैं- बंगाल फ्लोरिकन (गंभीर रूप से संकटग्रस्त) और ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (गंभीर रूप से संकटग्रस्त)।
- यह बस्टर्ड परिवार का सबसे छोटा पक्षी है तथा अपने विशेष उछलते हुए प्रजनन प्रदर्शन के लिये प्रसिद्ध है।
- स्थानीय भाषा में इसे ‘तनमोर’ या ‘खामोर’ कहा जाता है, जो ‘मोर’ शब्द से व्युत्पन्न है।
- यह मुख्य रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात में मनाया जाता है।
- संरक्षण की स्थिति:
- IUCN स्थिति: गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically Endangered)
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची I
- CITES: परिशिष्ट II

