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प्रिलिम्स फैक्ट्स

प्रारंभिक परीक्षा

प्रिलिम्स फैक्ट्स: 06 अगस्त, 2021

  • 06 Aug 2021
  • 9 min read

प्लास्टिक-मिश्रित हस्तनिर्मित कागज़

Plastic-Mixed Handmade Paper 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) ने प्लास्टिक के प्रयोग से निजात पाने के लिये प्राकृतिक रूप से विकसित अपने प्लास्टिक मिश्रित हस्तनिर्मित कागज़ हेतु पेटेंट पंजीकरण किया है।

प्रमुख बिंदु 

Khadi-India

  • प्लास्टिक-मिश्रित हस्तनिर्मित कागज़ (जो पुन: प्रयोज्य और पर्यावरण के अनुकूल है) को प्रोजेक्ट रिप्लान (प्रकृति से प्लास्टिक को कम करना) के तहत विकसित किया गया था।
    • स्वच्छ भारत अभियान के लिये KVIC की प्रतिबद्धता के हिस्से के रूप में इस परियोजना को सितंबर 2018 में लॉन्च किया गया था।
    • इसका उद्देश्य 20:80 के अनुपात में कपास फाइबर रैग के साथ संसाधित और उपचारित प्लास्टिक कचरे को मिलाकर कैरी बैग बनाना है। 
    • यह भारत में इस तरह की पहली परियोजना है, जहाँ प्लास्टिक कचरे को डि-स्ट्रक्चर्ड, डिग्रेडेड, डाइलूटेड किया जाता है तथा इसे हस्तनिर्मित कागज़ बनाते समय पेपर पल्प के साथ इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रकार प्रकृति से प्लास्टिक कचरे को कम करने में सहायता मिलती है।  
  • यह उपलब्धि सिंगल यूज़ प्लास्टिक के खतरे से लड़ने के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान के अनुरूप है।
  • अपशिष्ट-प्लास्टिक मिश्रित हस्तनिर्मित कागज़ के उत्पादन से दोहरे उद्देश्यों की पूर्ति होने की संभावना है:
    • पर्यावरण की रक्षा 
    • स्थायी रोज़गार के अवसरों का सृजन 
  • खादी और ग्रामोद्योग आयोग द्वारा विकसित तकनीक उच्च एवं निम्न घनत्व वाले अपशिष्ट पॉलीथिन दोनों का उपयोग करती है, जो न केवल कागज़ को अतिरिक्त मज़बूती देती है बल्कि लागत को 34 प्रतिशत तक कम करती है। 
  • KVIC ने प्लास्टिक मिश्रित हस्तनिर्मित कागज़ का उपयोग करके कैरी बैग, लिफाफे, फाइल / फोल्डर आदि जैसे कई उत्पाद विकसित किये हैं।  

पेटेंट

  • पेटेंट, सरकार द्वारा पेटेंट कराने वाले को सीमित समय के लिये आविष्कार हेतु दिया गया एक वैधानिक अधिकार है, पेटेंट के तहत उत्पाद बनाने, उपयोग करने, बेचने, आयात करने तथा दूसरों को सहमति के बिना उन उद्देश्यों हेतु उत्पाद का उत्पादन करने की प्रक्रिया से बाहर कर आविष्कार का पूर्ण स्वामित्व प्राप्त करता है।
  • भारत में प्रत्येक पेटेंट की अवधि पेटेंट  हेतु आवेदन करने की तिथि से 20 वर्ष तक है। 
  • भारत में पेटेंट प्रणाली पेटेंट (संशोधन) अधिनियम, 2005 और पेटेंट नियम, 2003 द्वारा संशोधित पेटेंट अधिनियम, 1970 के माध्यम से शासित है। 
  • बदलते परिवेश के अनुरूप पेटेंट नियमों में नियमित रूप से संशोधन किया जाता है, जैसे - हालिया संशोधन 2016 में।
  • पेटेंट संरक्षण एक क्षेत्रीय अधिकार है, इसलिये यह केवल भारतीय क्षेत्र में ही प्रभावी है। 
    • वैश्विक पेटेंट की कोई अवधारणा नहीं है।
    • पेटेंट प्रत्येक देश में प्राप्त किया जाना चाहिये जहाँ आवेदक को अपने आविष्कार की सुरक्षा की आवश्यकता होती है।

खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC)

  • खादी और ग्रामोद्योग आयोग 'खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग अधिनियम,1956' के तहत एक सांविधिक निकाय (Statutory Body) है।
  • इसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ भी आवश्यक हो, अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर खादी एवं ग्रामोद्योगों की स्थापना तथा विकास के लिये योजनाएँ बनाना, उनका प्रचार-प्रसार करना तथा सुविधाएँ एवं सहायता प्रदान करना है।
  • यह भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (Ministry of MSME) के अंतर्गत कार्य करता है।
  • KVIC से संबद्ध प्रमुख पहलें:

ई-जेल परियोजना

E-Prisons Project

गृह मंत्रालय (MHA) ने ई-जेल परियोजना (E-Prisons Project) के लिये राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (UT) को 99.49 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता प्रदान की है।

प्रमुख बिंदु

संदर्भ:

  • इस परियोजना का उद्देश्य देश की जेलों के कामकाज का कम्प्यूटरीकरण करना है। इसे सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में लागू कर दिया गया है।
  • इंटर-ऑपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम के तहत ई-जेल डेटा को पुलिस और कोर्ट सिस्टम के साथ एकीकृत किया गया है।
  • ई-जेल एप्लीकेशन को राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC), इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय (MeitY) द्वारा विकसित किया गया है।
  • इसके 3 घटक हैं:
    • ई-जेल प्रबंधन सूचना प्रणाली (MIS): इसका उपयोग जेलों में दिन-प्रतिदिन की नियमित गतिविधियों के लिये किया जाता है।
    • राष्ट्रीय कारागार सूचना पोर्टल: यह एक नागरिक केंद्रित पोर्टल है जो देश की विभिन्न जेलों के सांख्यिकीय आंकड़े प्रदर्शित करता है।
    • कारा बाज़ार: देश की विभिन्न जेलों में बंदियों द्वारा निर्मित उत्पादों को प्रदर्शित करने और बेचने के लिये पोर्टल।

इंटर-ऑपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम:

  • यह पुलिस, फोरेंसिक, अभियोजन, अदालतों, जेलों सहित आपराधिक न्याय प्रणाली के सभी स्तंभों की सूचना के आदान-प्रदान और विश्लेषण के लिये एक सामान्य मंच है।
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य स्तंभों के बीच आवश्यक जानकारी साझा करने में होने वाली त्रुटियों और लगने वाले समय (जो प्रायः बड़ी चुनौतियों का कारण बनता है जैसे- परीक्षण की लंबी अवधि, खराब सजा, दस्तावेज़ों का पारगमन नुकसान आदि) को कम करना है।
  • बार-बार और आदतन यौन अपराधियों की पहचान करने तथा उन्हें ट्रैक करने के लिये यौन अपराधियों पर राष्ट्रीय डेटाबेस (National Database on Sexual Offenders- NDSO) जैसी सुविधा ICJS पारितंत्र से प्राप्त होने वाले कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण लाभ हैं। 

कारागार/'उसमें निरुद्ध व्यक्ति'

  • यह भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची II की प्रविष्टि 4 के तहत राज्य का विषय है।
  • जेलों का प्रशासन और प्रबंधन संबंधित राज्य सरकारों का उत्तरदायित्व है।
  • हालाँकि गृह मंत्रालय जेलों और कैदियों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को नियमित मार्गदर्शन और सलाह देता है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2018 में जेलों में भीड़भाड़, दोषियों को कानूनी सलाह की कमी से लेकर छूट और पैरोल के मुद्दों तक विभिन्न समस्याओं की जाँच के लिये जस्टिस रॉय कमेटी की नियुक्ति की थी।
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