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सामाजिक न्याय

जेल सुधार

  • 07 Feb 2020
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, जस्टिस अमिताव रॉय समिति

मेन्स के लिये:

जेल सुधार से संबंधित मुद्दे, विचाराधीन कैदी एवं भारतीय न्याय व्यवस्था

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित समिति ने जेल सुधारों से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण सुझाव दिये हैं।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • सर्वोच्च न्यायालय ने सितंबर 2018 में जस्टिस अमिताव रॉय की अध्यक्षता में दोषियों के जेल से छूटने और पैरोल के मुद्दों पर उनके लिये कानूनी सलाह की उपलब्धता में कमी एवं जेलों की विभिन्न समस्याओं की जाँच करने के लिये एक समिति का गठन किया था।
  • इस समिति में जस्टिस अमिताव रॉय के अतिरिक्त ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट के IG और तिहाड़ जेल के DG शामिल थे।

समिति द्वारा उल्लिखित जेल की समस्याएँ

  • समिति के अनुसार, अंडर-स्टाफ जेलों में भीड़-भाड़ आम बात है तथा जेल में कैदी और जेल के गार्ड दोनों के मानवाधिकारों का उल्लंघन समान रूप से होता है। अंडरट्रायल कैदी अदालत में बिना सुनवाई के वर्षों तक जेल में बंद रहते हैं। जेलों में विचाराधीन कैदियों का अनुपात दोषियों के अनुपात से अधिक है।
  • जेल विभाग में पिछले कुछ वर्षों से 30% से 40% रिक्तियाँ लगातार बनी हैं।
  • समिति की रिपोर्ट में रसोई में भोजन तैयार करने की प्रक्रिया को अत्यंत प्राचीन बताया गया है। किचन कंजस्टेड और अनहेल्दी (Congested and Unhygienic) हैं तथा यह स्थिति जेलों में वर्षों से बनी हुई है।

समिति द्वारा जेल सुधार के लिये सुझाए गए मुख्य बिंदु

  • समिति के अनुसार, प्रत्येक नए कैदी को जेल में उसके पहले सप्ताह के दौरान दिन में एक बार अपने परिवार के सदस्यों से फोन पर बात करने की अनुमति दी जानी चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त समिति द्वारा सुझाए गए अन्य सुझावों में निम्नलिखित बिंदु शामिल हैं:
    • जेल में खाना पकाने की आधुनिक सुविधाएँ होनी चाहिये।
    • आवश्यक वस्तुओं को खरीदने हेतु कैंटीन की व्यवस्था होनी चाहिये।
    • वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से ट्रायल (Trial) की व्यवस्था होनी चाहिये।
  • चूँकि जेलों में विचाराधीन कैदियों का अनुपात दोषियों के अनुपात से अधिक है इसलिये समिति ने इस संदर्भ में सुझाव दिया है कि प्रत्येक 30 कैदियों के लिये कम-से-कम एक वकील होना चाहिये।
  • साथ ही त्वरित मुकदमा (Speedy Trial) जेलों में अप्रत्याशित भीड़ को कम करने का एक महत्त्वपूर्ण उपाय है।
  • जेल विभाग में पिछले कुछ वर्षों से 30% से 40% रिक्तियाँ लगातार बनी हुई हैं इस दिशा में भी आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिये।

आगे की राह

  • न्यायिक व्यवस्था को दुरुस्त करने की आवश्यकता है जिससे कि विचाराधीन कैदियों के मानवाधिकारों की रक्षा की जा सके।
  • चूँकि कैदी मतदान के अधिकार का प्रयोग नहीं कर सकते हैं इसलिये अक्सर वे राजनीतिक दलों के मुद्दों से बाहर रहते हैं, अतः समाज एवं राजनीतिक दलों को विचाराधीन कैदियों की सुरक्षा एवं मानवाधिकारों से संबंधित मुद्दों पर संवेदनशीलता से विचार करना चाहिये।
  • जेल में मिलने वाली सुविधाओं को आधुनिक रूप दिये जाने की आवश्यकता है क्योंकि वर्तमान में उन्हें उपलब्ध सुविधाएँ अत्यंत निम्न स्तर की हैं।
    इसके अतिरिक्त उन्हें आवश्यक कौशल परीक्षण दिया जाना चाहिये ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें, साथ ही उनके लिये आवश्यक शिक्षा की प्राप्ति हेतु विशेष कक्षाएँ भी आयोजित की जा सकती है।

स्रोत: द हिंदू

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