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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    "वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भारत में श्रम सुधार के लिये यह सबसे उपयुक्त समय है।" इस कथन की पुष्टि करते हुए भारतीय श्रमिक बाजार में सुधार के रास्ते में आने वाली बाधाओं का विश्लेषण करें?

    13 Jul, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    भारतीय श्रम बाजार में सुधारों की गति काफी धीमी है। 1991 में शुरू हुई उदारीकरण और वैश्वीकरण की प्रक्रिया के पश्चात् भी अब तक श्रम बाजार में अपेक्षित सुधार नहीं हुए हैं। वर्तमान समय भारत में श्रम सुधारों के लिये सबसे उपयुक्त समय माना गया है। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

    (i) चीन तेजी से विनिर्माण केंद्र के रूप में अपना प्रभाव खो रहा है क्योंकि वहाँ पिछले एक दशक में श्रम की लागत में दो से तीन गुना वृद्धि हुई है।

    (ii) भारत सरकार द्वारा प्रारंभ किये गए ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के कारण भारत में निवेश एवं नवीन तकनीकों में काफी वृद्धि की आशा है। इस प्रकार भारत विनिर्माण हब के रूप में स्थापित होने के लिये प्रयासरत है।

    (iii) ‘वस्तु एवं सेवा कर (GST)’ लागू होने के कारण औद्योगिक विकास में तेजी आने की संभावना है।

    श्रम बाजार सुधार के मार्ग में बाधाएँः

    (i) भारत में श्रम-कानून पुराने और अप्रासंगिक हैं एवं औद्योगिक विकास एवं प्रतिस्पर्धा में बाधक हैं। श्रम कानूनों के प्रावधानों में दोहराव एवं अस्पष्टता भी एक समस्या है।

    (ii) भारत में कुशल श्रमिकों की भारी कमी है। ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों’ के साथ-साथ बड़े उद्यमों को भी कुशल श्रमशक्ति की कमी का सामना करना पड़ता है। भारत में केवल 5% श्रमिक ही ऐसे हैं जिनके पास पेशेवर या व्यावसायिक कौशल है, वहीं औद्योगिक देशों में यह आंकड़ा 60 से 80 प्रतिशत के बीच है।

    (iii) भारत में श्रम-नीति का अभाव है जो एक उदार श्रम बाजार को विकसित करने के मार्ग में बाधक है। देश में विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में उपयुक्त वातावरण निर्माण के लिये एक अच्छी श्रम-नीति होनी चाहिए।

    (iv) प्रवर्तन मशीनरी (जैसे- निरीक्षण अधिकारी) के संबंध में भी अनेक समस्याएँ हैं। उद्योगों द्वारा समय-समय पर यह शिकायतें की गई है कि निरीक्षणकर्त्ता अपनी ताकतों का इस्तेमाल नियोक्ता को प्रताड़ित करने में करते हैं। इनके द्वारा रिश्वत की मांग की जाती है जिससे छोटे उद्योगों की लागत बढ़ जाती है। दूसरी तरफ मजदूर संघों ने इस मशीनरी को अधिक मजबूत किए जाने की मांग की है ताकि श्रम कानूनों को बेहतर तरीके से लागू किया जा सके।

    श्रम कानूनों में बदलाव एवं श्रम-कौशल विकास के लिये भारत सरकार ने अनेक प्रगतिशील कदम उठाये हैं जिनका स्वागत किया जाना चाहिए, किंतु अभी ये अपर्याप्त हैं। अतः भारत को वैश्विक विनिर्माण हब बनने के लिये उपयुक्त ‘श्रम नीति’ बनाकर बहुआयामी प्रयास करने होंगे।

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