इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    क्या हिमालयी राज्यों के लिये विकास की अलग रणनीति की आवश्यकता है ? अपने विचार के समर्थन में तर्क प्रस्तुत करें। इसके लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

    20 Sep, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा-

    • हिमालयी राज्यों में विकास की वर्तमान स्थिति का संक्षिप्त विवरण दें।
    • इन राज्यों से जुड़ी विभिन्न समस्याओं को बिंदुवार तरीके से लिखें।
    • हिमालयी राज्यों हेतु विशेष नीति के लिये ज़रूरी सुझाव दें।
    • निष्कर्ष

    कश्मीर, उत्तराखंड से लेकर अरुणाचल प्रदेश व मेघालय तक फैले हिमालयी राज्य पर्यावरणीय दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील राज्य हैं। इन पर्वतीय राज्यों को विभिन्न केंद्रीय योजनाओं में 90% हिस्सेदारी केंद्र से प्राप्त होती है, इसके बावज़ूद इन राज्यों में विकास की रफ्तार धीमी है। केंद्र और राज्य सरकारों के कई प्रयासों के बावज़ूद कई मामलों में ये क्षेत्र विकास की दौड़ में पीछे रह गए हैं। हिमालयी राज्यों की विभिन्न समस्याओं को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है-

    • इन राज्यों में आजीविका के साधनों और रोज़गार की इतनी कमी है कि यहाँ के गाँवों से बड़ी संख्या में पलायन हो रहा है। 
    • उत्तराखंड, कश्मीर जैसे हिमालयी राज्य विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं, जैसे- भूकंप, भूस्खलन, बाढ़, दावानल और बादल फटना आदि से जूझते रहते हैं। इन घटनाओं की आवृत्ति ने यहाँ के विकास को बाधित किया है। 
    • इन राज्यों में जल विद्युत उत्पादन के लिये बड़े पैमाने पर बांधों का निर्माण जारी है, जिससे न सिर्फ पर्यावरण को खतरा है, बल्कि भूस्खलन जैसी आपदाओं के लिये यह एक खुला निमंत्रण है। इन परियोजनों ने स्थानीय लोगों को विस्थापन के लिये भी विवश किया है।
    • इन प्रदेशों के कई गाँव, जलस्रोतों के सूख जाने के कारण गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं। 
    • इन राज्यों में बुनियादी ढाँचा कमज़ोर है। रेल, सड़क और एयर कनेक्टिविटी के लिये यहाँ अभी बहुत काम किया जाना बाकी है। उदाहरण के लिये उत्तराखंड के सुदूर क्षेत्रों में बागवानी फसलों, जैसे-काफल, माल्टा, संतरे, बुरांश आदि का उत्पादन होता है, लेकिन सड़क व बाज़ार से संपर्क न होने के कारण किसानों को इनका सही मूल्य नहीं मिल पाता है। 

    उपरोक्त समस्याओं को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि देश के सभी राज्यों के विकास के लिये बनने वाली एक जैसी नीतियों का सभी राज्यों पर एक जैसा प्रभाव नहीं होता है। अलग भौगोलिकता तथा विशिष्ट सामाजिक, आर्थिक संस्कृति के कारण हिमालयी राज्यों के लिये विकास की अलग रणनीति का निर्माण समय की मांग है। यदि भविष्य में यह नीति अस्तित्व में आती है तो इसमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाना चाहिये-

    • इन राज्यों में पर्यावरण हितैषी विकास योजनाओं पर काम किया जाना चाहिये। विभिन्न परियोजनाओं से संबंधित पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव आकलन के प्रावधानों का गंभीरता से पालन किया जाना चाहिये।
    • जैसा कि विदित है कि ये राज्य प्राकृतिक आपदाओं की बारंबारता से पीड़ित हैं, अतः त्वरित और कारगर आपदा प्रबंधन हेतु प्रयास किये जाने चाहिये।
    • स्थानीय संसाधनों के आधार पर रोज़गार पैदा करने वाली नीतियों का निर्माण किया जाना चाहिये, ताकि स्थानीय लोगों को आजीविका के साधनों की खोज में पलायन न करना पड़े। 
    • इन राज्यों में पर्यटन की असीम सभावनाएँ हैं तथा वर्तमान में भी इनमें से कुछ राज्य पर्यटन से आर्थिक लाभ कमा रहे हैं। ऐसे में यहाँ के पर्यटन स्थलों पर दबाव बढ़ रहा है, जो यहाँ की पारिस्थितिकी के लिये हानिकारक होगा। अतः पर्यटन विकास के प्रयासों के साथ-साथ इसके विनियमन के माध्यम से धारणीय पर्यटन नीति बनाए जाने की आवश्यकता है।
    • उत्तराखंड में कई धार्मिक स्थल हैं। इन स्थलों तक वर्ष भर पहुँच बनाए रखने के लिये हाल ही में ऑल वेदर रोड परियोजना का प्रस्ताव रखा गया है। हालाँकि यह परियोजना एक सराहनीय प्रयास है, परंतु मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इसके लिये देवदार समेत कई अन्य प्रकार के लगभग 33000 वृक्ष काटे जाने की संभावना है। इसके लिये परियोजना अधिकारियों को वैकल्पिक तरीके अपनाने पर ध्यान देना होगा। 

     हिमालयी राज्य विकास की सीढ़ी चढ़ने की पर्याप्त क्षमता रखते हैं, साथ ही पर्यावरण संरक्षण की भारत की प्रतिबद्धता को पूरा करने में भी इन राज्यों की महती भूमिका है। अतः केंद्र को इन राज्यों के साथ मिलकर इनके धारणीय विकास को सुनिश्चित करने वाली नीतियों के निर्माण की पहल शुरू कर देनी चाहिये। 

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2