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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    बेरोज़गारी के मापकों का परिचय दें। भारत में पाई जाने वाली बेरोज़गारी की प्रवृत्तियों का वर्णन करें।

    05 Oct, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    कार्य करने के योग्य तथा इच्छुक व्यक्तियों द्वारा प्रचलित मज़दूरी पर काम की मांग के बावजूद भी यदि उसे रोज़गार उपलब्ध न हो, तो इस स्थिति को बेरोज़गारी कहते हैं। भारत में बेरोज़गारी का मापन राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) द्वारा किया जाता है। 

    बेरोज़गारी के मापन की विधियाँ- 

    • सामान्य स्थिति बेरोज़गारी (Usual Status Unemployment)- इस स्थिति में व्यक्ति को बेरोज़गार तब माना जाता है, जब वह वर्ष के व्यस्त भाग अर्थात् 183 दिनों के लिये काम करना चाहता है और उसे 183 दिनों का भी रोज़गार न मिले। 
    • प्रचलित साप्ताहिक स्थिति बेरोज़गारी (Current Weekly Status Unemployment)- इस स्थिति के अंतर्गत उस व्यक्ति को बेरोज़गार कहा जाता है, जो एक सप्ताह में एक घंटे के लिये भी काम पाने में असफल रहा है। अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर संगठन (ILO) जैसे निकाय रोज़गार और बेरोज़गारी के अध्ययन के लिये इसे ही आधार बनाते हैं।
    • प्रचलित दैनिक स्थिति बेरोज़गारी (current daily status unemployment)- इसके अंतर्गत यदि किसी व्यक्ति को एक दिन में चार घंटे का काम उपलब्ध हो तो इसे आधे दिन का रोज़गार माना जाता है। यह बेरोज़गारी मापन की सबसे उपयुक्त विधि है। 

    भारत में बेरोज़गारी की प्रवृत्ति-

    भारत में बेरोज़गारी से संबंधित प्रमुख प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं- 

    • ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहरी क्षेत्रों में बेरोज़गारी का विस्तार अधिक है।  
    • पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में बेरोज़गारी की दर अधिक है।
    • कुल बेरोज़गारी में शैक्षणिक बेरोज़गारी का विस्तार अधिक है।
    • अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा कृषि क्षेत्र में बेरोज़गारी अधिक है।

       ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी निम्नलिखित तीन व्यापक रूपों में दिखार्इ देती है- 

    • खुली और दीर्घकालिक बेरोज़गारी - कृषि क्षेत्रों  में भूमिहीन श्रमिकों का एक बड़ा समूह कृषि कार्य करके जीवन-निर्वाह करता है। आज भी भारत के अविकसित कृषि क्षेत्रों में जनसंख्या के भारी दबाव के कारण बहुत से लोग रोज़गार पाने में असफल रहते हैं और इस प्रकार दीर्घकालिक बेरोज़गारी के शिकार रहते हैं। 
    • मौसमी बेरोज़गारी – भारत में कृषि का मौसमी स्वरूप है। फसलों की बुआर्इ एवं कटार्इ के समय लोगों को काम मिल जाता है और रोज़गार की दर उच्च हो जाती है लेकिन बुआर्इ और कटार्इ के बीच के समय में लोगों के पास कोई काम नहीं होता है और इस तरह वे बेरोज़गार रह जाते हैं। बहुत से ग्रामीण उद्योग जैसे- चीनी मिलें, चावल और कपास उत्पादक इकाइयाँ इत्यादि कृषि उत्पाद के प्रसंस्करण पर निर्भर हैं, अतः ये भी मौसमी रोज़गार ही उपलब्ध करा पाते हैं। 
    • प्रच्छन्न बेरोज़गारी - बेरोज़गारी का यह ऐसा रूप है, जिसमें व्यक्ति स्वयं को बेरोज़गार महसूस नहीं करते हैं, लेकिन तकनीकी रूप से वे बेरोज़गार ही होते हैं। भारत में भूमि पर जनसंख्या का दबाव बढ़ता जा रहा है। अतः प्रति व्यक्ति उत्पादकता घटती जाती है। ऐसी स्थिति जिसमें बड़े पैमाने पर श्रमिकों की उत्पादकता शून्य है अर्थात् उनका कार्य, कोर्इ अतिरिक्त उत्पादन नहीं करता है। यदि उन्हें कृषि कार्य से हटा दिया जाए तो इस प्रकार की बेरोज़गारी, प्रच्छन्न (छिपी) बेरोज़गारी कहलाती है। इस बेरोज़गारी का प्रमुख कारण जनसंख्या के बढ़ते दबाव के साथ वैकल्पिक रोज़गार की अनुपलब्धता है।  

    शहरी क्षेत्रों में भी व्यापक पैमाने पर बेरोज़गारी है, जिसमें निम्न प्रमुख हैं-

    • औद्योगिक श्रमिकों में बेरोज़गारी - औद्योगिक विकास की प्रक्रिया पर्याप्त रूप से इतनी तीव्र नहीं हो पाई है कि ग्रामीण क्षेत्रों से प्रवासित समस्त श्रम इनमें समायोजित हो सके। औद्योगिक विस्तार का तरीका मुख्यतः पूंजी-गहन तकनीक (श्रम-बचत तकनीक) पर आधारित है। इस प्रकार की तकनीक द्वारा औद्योगिक उत्पादन में तो तीव्र वृद्धि हो सकती है लेकिन रोज़गार के अवसरों में नहीं। इस प्रकार ग्रामीण क्षेत्रों से जो लोग रोज़गार की तलाश में अधिकांश शहरी औद्योगिक केंद्रों की तरफ आए हैं, वे रोज़गार पाने में असफल रह जाते हैं और इस प्रकार औद्योगिक श्रमिकों के मध्य बेरोज़गारी में वृद्धि हो जाती है।
    • शहरी शिक्षितों के मध्य बेरोज़गारी - विद्यालय एवं विश्वविद्यालयी स्तरों पर शहरी क्षेत्रों में शैक्षणिक सुविधाओं में विस्तार और सामाजिक प्रतिष्ठा जो कि शिक्षा से आती है तथा शिक्षण संस्थाओ में नामांकन वृद्धि ने बढ़ती हुर्इ चेतना को त्वरित रूप से बढ़ा दिया है। प्रतिवर्ष ऐसे लाखों स्नातक निकल रहे हैं, जो श्रम बाज़ार में प्रवेश तो कर जाते हैं, लेकिन इनकी शिक्षा रोज़गारोन्मुख नहीं होने के कारण योग्यतानुसार रोज़गार प्राप्ति में प्रोत्साहित नहीं कर पाती है। 
    • तकनीकी बेरोज़गारी - तकनीकी परिवर्तन सभी क्षेत्रों में तेजी से परिवर्तन लाता है। जो लोग परंपरागत तकनीकों का प्रयोग कर रहे थे, वे उद्योग, परिवहन एवं अन्य क्षेत्रों में अत्याधुनिक तकनीक के आने से सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाने से बेरोज़गार हो जाते हैं।  
    • शहरी एवं ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में युवाओं के मध्य बेरोज़गारी उच्चतम शिखर पर है। । यदि इनको रोज़गार दिया जाता है, तो राष्ट्रीय आय में इनका योगदान (अंश) उच्च हो सकता है। यदि इस आयु समूह के लोग अधिक समय के लिये बेरोज़गार रह जाते हैं तो ये सामाजिक तनाव का कारण बन सकते हैं, अतः इस समस्या पर ध्यान देने की ज़रूरत है।

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