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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    “सामुदायिक पुलिस व्यवस्था, पुलिस और स्थानीय समुदायों के बीच विश्वास बहाली में मदद कर सकती है और यह पुलिस की प्रभावोत्पादकता में भी वृद्धि करेगी।” इस कथन पर चर्चा करें। भारत में पुलिस द्वारा सोशल मीडिया पर अपनी सामुदायिक पहुँच बढ़ाने के प्रयासों पर टिप्पणी करें।

    11 Oct, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा-

    • परिचय में सामुदायिक पुलिस को परिभाषित करें।
    • सामुदायिक पुलिस के लाभों के बारे में बताएँ और कुछ उदाहरण दें।
    • सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग पर चर्चा करें और कुछ उदाहरण दें।
    • इस प्रकार की पहलों को बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता बतलाते हुए निष्कर्ष लिखें।

    सामुदायिक पुलिस व्यवस्था पुलिस के कार्यों में नागरिकों की भागीदारी बढ़ाने का एक तरीका है। यह एक ऐसा वातावरण निर्मित करती है, जिसमें नागरिक समुदाय की सुरक्षा में वृद्धि सुनिश्चित की जाती है। वर्तमान में सोशल मीडिया भी पुलिस और जनता के बीच समन्वय स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

    सक्रिय पुलिस व्यवस्था की स्थापना में योगदान-

    आमतौर पर पुलिस पेट्रोलिंग, घटना के बाद की जाँच और आपराधिक न्याय प्रणाली के अन्य प्रतिक्रियात्मक तरीकों पर निर्भर करती है। पुलिस कार्रवाही का यह प्रतिक्रियाशील दृष्टिकोण आम जनता और पुलिस के बीच विश्वास की कमी का महत्त्वपूर्ण कारण है। 

    प्रो-एक्टिव या सक्रिय पुलिस के लिये आवश्यक है कि समुदायों को उनके क्षेत्रों में नीति निर्धारण और मार्गदर्शन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने का अवसर दिया जाए।

    सामुदायिक पुलिस के अन्य लाभ-

    सामुदायिक पुलिसिंग से अपराधों की सुभेद्यता का मानचित्रण किया जाना संभव हो जाता है। नशीली दवाओं के दुरुपयोग, मानव तस्करी, संदिग्ध गतिविधियों आदि की पहचान कर अपराध-प्रवण क्षेत्र का निर्धारण कर आवश्यक कार्रवाही की जा सकती है। सांप्रदायिक संघर्ष को टालने में यह बेहद महत्त्वपूर्ण उपकरण साबित हो सकता है।

    सामुदायिक पुलिस के उदाहरण-

    भारत में कई राज्यों ने सामुदायिक पुलिस-व्यवस्था स्थापित करने का प्रयास किया है, जैसे- तमिलनाडु में ‘पुलिस मित्र’, असम में ‘प्रहरी’, बंगलुरु सिटी पुलिस द्वारा ‘स्पंदन’ नामक पहल आदि।

    सामुदायिक नियंत्रण में सोशल मीडिया का उपयोग-

    सोशल मीडिया जैसे -फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप, प्रामाणिक जानकारी के प्रसार हेतु पुलिस के लिये एक महत्त्वपूर्ण माध्यम प्रदान करते हैं। आम लोगों और पुलिस के बीच द्विपक्षीय संचार और पुलिस व समुदाय के संबंधों को बढ़ावा देने का यह एक सुविधाजनक तरीका है। शिकायत, रिपोर्टिंग और निवारण में यह फायदेमंद है। इसके कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं-

    1. बंगलुरु पुलिस द्वारा कावेरी नदी से संबंधित हिंसा और बेंगलुरू में कर्फ्यू के दौरान प्रामाणिक जानकारी का प्रसार करने के लिये ट्विटर का प्रयोग किया गया।

    2. हैदराबाद शहर पुलिस ने सामुदायिक पुलिसिंग के लिये मोबाइल एप्लिकेशन ‘हॉक आई’ के लिये 2016-17 में ई-गवर्नेंस का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता।

    नगरसुरक्षा समितियाँ, महिला हेल्पलाइन हो या बालमित्र थानें, ट्रेफिक वार्डन हो या विशेष पुलिस अधिकारी, पुलिस के इन सब सद्प्रयासों को समाज की सराहना, सहयोग एवं सद्भावना मिली है। इन सब उपक्रमों के माध्यम से पुलिस और जनता के बीच सीधा संवाद प्रारंभ होने से यह उम्मीद की जानी चाहिये कि यह संवाद एवं सहयोग एक सेतु के रूप में विकसित होगा।

    सामुदायिक पुलिसिंग एक सकारात्मक अवधारणा है जो पुलिस और जनता के बीच की खाई को पाटने का काम करती है।  सामुदायिक पुलिस व्यवस्था को संस्थागत बनाने के लिये प्रयास किये जाने चाहिये और ग्रामीण क्षेत्रों तक भी इसका विस्तार किया जाना चाहिए। गृह मंत्रालय सामुदायिक पुलिसिंग के लिये एक राष्ट्रव्यापी कार्ययोजना शुरू कर रहा है और इसे सक्षम बनाने के लिये तकनीकी संरचना का निर्माण भी किया जा सकेगा।

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