इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    पिछले वर्षों में विभिन्न शहरों में आई बाढ़ के संदर्भ में इस कथन की विवेचना करें कि स्मार्ट शहरों में अवसंरचना निर्माण के दौरान उन क्षेत्रों में विभिन्न जोखिमों के प्रति सुभेद्यता को ध्यान में रखा जाना चाहिये।

    27 Nov, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा-

    • भारत में बाढ़ की प्रवृत्ति को संक्षेप में बताएँ।
    • भारतीय शहरों में आने वाली बाढ़ के कारणों का उल्लेख करें।
    • अवसंरचना निर्माण के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों का उल्लेख करें।
    • निष्कर्ष

    भारत के शहर स्मार्ट सिटी मिशन, प्रधानमंत्री आवास योजना, अमृत मिशन (AMRUT) आदि विभिन्न योजनाओं के कारण वृहद् निर्माण गतिवधियों के चलते परिवर्तन के दौर से गुज़र रहे हैं। 

    भारत न्यूनाधिक प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित क्षेत्रों वाला देश है। भारत के ग्रामीण तथा शहरी दोनों ही इलाके इन आपदाओं के प्रति सुभेद्यता रखते हैं। भारतीय शहर जनाधिक्य और ज़्यादा घनत्व के कारण इन आपदाओं के प्रति अधिक सुभेद्यता रखते हैं। भारत की जलवायवीय परिस्थितयाँ और भौगोलिक अवस्थिति बाढ़ जैसी आपदाओं की बारंबारता का कारण है। भारत का राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान भी अन्य आपदाओं की तुलना में बाढ़ की अधिक पुनरावृत्ति की पुष्टि करता है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार बाढ़ भारत में प्रतिवर्ष 7 अरब डॉलर के नुकसान का कारण बनती है। 

    पिछले कुछ वर्षों से भारत में शहरी बाढ़ एक बड़ी आपदा के रूप में सामने आई है। NDMA नदी में आई बाढ़ और शहरी बाढ़ में विभेद करता है, क्योंकि दोनों के कारण और दोनों से निपटने की रणनीतियाँ अलग-अलग होती हैं। शहरी बाढ़ का मुख्य कारण अनुचित टाउन प्लानिंग है। 

    भारत में शहरी बाढ़ के अन्य कारण निम्नलिखित हैं-

    • खराब नगर नियोजन: खराब नगर नियोजन (poor town-planning) के कारण पिछले कुछ सालों से देश के महानगरों को लगातार अर्बन फ्लड से दो-चार होना पड़ रहा है। चेन्नई, बंगलूरु के बाद इस वर्ष मुंबई में जलभराव की वज़ह से जीवन अस्त-व्यस्त है। 
    • अतिक्रमण: जैसे-जैसे लोग शहरों में पलायन कर रहे हैं, ठीक वैसे-वैसे ज़मीन की उपलब्धता कम होती जा रही है। यहाँ तक ​​कि शहरी क्षेत्रों में जमीन के एक छोटे से टुकड़े की कीमत भी आसमान छू रही है। ऐसे में शहरों में स्थित जल निकायों (water bodies) के पारिस्थितिकीय महत्त्व को नज़रअंदाज़ किया जाता रहा है। → दरअसल, शहरों में स्थित झीलों और तालाबों में बारिश का पानी इकट्टा होता रहता था, जिससे भारी बारिश होने पर भी शहर में जलभराव नहीं होता था। → लेकिन अब कहीं इन झीलों के अस्तित्व को ही खत्म कर दिया गया है तो कहीं गहराई कम होने से उनकी जल को धारण करने की क्षमता लगातार कम होती जा रही है।
    • प्रदूषण: शहरी आबादी में विस्फोटक वृद्धि हुई है। इस बढ़ी हुई जनसंख्या के लिये पर्याप्त बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। जनसंख्या वृद्धि के कारण प्रदूषण में वृद्धि हुई है। दरअसल, हम भारत के लोग धार्मिक लोग हैं और सांस्कृतिक या धार्मिक उत्सवों के लिये इन जलीय निकायों को प्रदूषित करते आ रहे हैं। यह भी अर्बन फ्लड का एक प्रमुख कारण है। 
    • अवैध खनन: शहरीकरण की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये शहरों के आस-पास बालू और मिट्टी के लिये अवैध खनन लगातार जारी है। इससे जल निकाय व्यापक तौर पर प्रभावित हो रहे हैं। कहीं जल संग्रहण के पैटर्न में बदलाव देखने को मिल रहा है तो कहीं झीलों की गहराई इतनी कम हो गई है कि वे सपाट मैदान की तरह नज़र आने लगी हैं। 
    • प्रशासनिक उदासीनता: महानगरों का ड्रेनेज सिस्टम इतना प्रभावी नहीं है कि तेज़ी से पानी को शहर से बाहर निकाल सके। इसका कारण है नालों एवं मेनहोल की साफ-सफाई का न होना। प्रशासनिक उदासीनता का आलम यह है कि सरकार के पास इस संबंध में कोई डेटा ही नहीं है कि किन शहरों में कितने जल निकाय अवस्थित हैं।

    विभिन्न कारणों से भारत में शहरीकरण लगातार बढ़ता जा रहा है। ग्रामीण आबादी का शहरों की ओर प्रवसन लगातार जारी है। ऐसे में शहरी अवसंरचना के निर्माण के दौरान ज़िम्मेदार निकायों को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिये-

    • शहरी जोखिम मूल्यांकन ढाँचे का प्रयोग करके आपदा के जोखिम की पहचान करने की व्यवस्था होनी चाहिये। 
    • जोखिम से संबंधित एक कारगर पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित की जानी चाहिये। 
    • शहरों के लिये एक सुपरिभाषित कंस्ट्रक्शन कोड, भू-उपयोग योजना (land use plan) आदि का निर्माण किया जाना चाहिये और जनता को इनके प्रति जागरूक किया जाना चाहिये। 
    • आपदा से संबंधित आँकड़ों के एकत्रण और आदान-प्रदान की उपयुक्त व्यवस्था करनी चाहिये।
    • आपदा के जोखिम के अनुसार शहर विशेष में रहने वाले समुदायों के सामर्थ्य की पहचान करना भी ज़रूरी है। 
    • इमारतों के निर्माण के दौरान बिल्डिंग कोड के पालन को सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी का गंभीरता से निर्वहन किया जाना चाहिये।

    लगभग प्रतिवर्ष मुंबई में आने वाली बाढ़ तथा 2015 में चेन्नई में आई बाढ़ ने खराब शहरी नियोजन और शहरी रखरखाव में कमी को उजागर किया है। भारतीय शहरों में निवास करने वाली आबादी को गुणवत्तापूर्ण सुविधाएँ देने के उद्देश्य से सरकार द्वारा चलाई जा रहीं विभिन्न योजनाएँ तभी सफल होंगी, जब आपदा जोखिम कम करने के उपायों को अवसंरचना निर्माण नीतियों और शहरी नियोजन में शामिल किया जाएगा।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2