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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    “भारत में पेयजल संकट से निपटने के लिये अब समुद्र का खारा पानी प्रयोग में लाया जा रहा है।” इस संबंध में विलवणीकरण की प्रक्रिया तथा इसके गुण व दोषों की विवेचना कीजिये।

    23 Jun, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • प्रभावी भूमिका में भारत में पेयजल संकट की स्थिति तथा इससे निपटने के लिये विलवणीकरण की प्रक्रिया द्वारा समुद्र के खारे पानी के प्रयोग की चर्चा करें।
    • तार्किक तथा संतुलित विषय-वस्तु में विलवणीकरण की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए इसके गुण व दोषों को स्पष्ट करें।
    • प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।

    भारत में शिमला और इस वर्ष की शुरुआत में दक्षिण-अफ्रीका का केप-टाउन शहर पीने के पानी की कमी की वजह से दुनिया भर में चर्चा का विषय बने रहे। इन दोनों ही स्थानों पर स्थिति विस्फोटक हो गई थी और पानी की राशनिंग करनी पड़ी। यूँ तो लगभग पूरे भारत में पीने के पानी की क़िल्लत रहती है, लेकिन चेन्नई में यह समस्या दशकों से बनी हुई है। पेयजल की इस समस्या से निपटने के लिये अब विलवणीकरण (डिसेलिनेशन) की प्रक्रिया द्वारा समुद्र के पानी को इस्तेमाल में लाया जा रहा है।

    लवणीकरण की प्रक्रियाः समुद्री या खारे पानी को लवणों से मुक्त करने की प्रक्रिया विलवणीकरण या डिसेलिनेशन कहलाती है। यह उन प्रक्रियाओं को संदर्भित करती है जो पानी से नमक तथा अन्य खनिजों को अलग करती है और उसे पीने लायक बनाती है। यह एक सामान्य वैज्ञानिक प्रक्रिया है।

    चेन्नई में पानी की दैनिक आवश्यकता को पूरा करने के लिये चेन्नई के समुद्र तट पर दो विलवणीकरण संयंत्र काम कर रहे हैं। विलवणीकरण की प्रक्रिया में दो तरह की तकनीकों का प्रयोग होता है-

    (i) पारंपरिक वैक्यूम डिस्टिलेशन और (ii) रिवर्स ऑस्मोसिस। चेन्नई के दोनों संयंत्र RO तकनीक पर काम कर रहे हैं। इस प्रक्रिया के कुछ लाभ व हानि भी देखे गए हैं जो कि निम्नलिखित हैं-

    विलवणीकरण की प्रक्रिया के गुण-
    इस तकनीक के प्रयोग से उन इलाकों में पानी को पीने योग्य बनाया जाता है जहाँ पानी में टीडीएस (Total Dissolved Solids – TDS) 500 मि.ग्रा. प्रति लीटर से अधिक होता है अर्थात् पानी खारा होता है।

    • बोरवेल के पानी या समुद्र तटीय इलाकों में यह तकनीक उपयोगी है। 
    • RO के पानी में कोई भी अशुद्धि नहीं होती।
    • बैक्टीरिया और वायरस भी दूर हो जाते हैं।
    • क्लोरीन और आर्सेनिक जैसी अशुद्धियाँ भी दूर हो जाती हैं।

    विलवणीकरण की प्रक्रिया के दोष-

    • इस प्रकार के संयंत्रों से समुद्री पानी को स्वच्छ बनाने की प्रक्रिया में ऊर्जा की अधिक खपत होती है। वैक्यूम डिस्टिलेशन तकनीक में जहां एक घनमीटर समुद्री जल को शुद्ध करने के लिये तीन किलोवॉट ऊर्जा की खपत प्रति घंटे होती है, तो RO तकनीक में यह खपत दो किलोवाट होती है।
    • इतनी मात्रा में ऊर्जा के व्यय के बाद भी पानी में से नमक पूरी तरह नहीं निकल पाता, इस अतिरिक्त नमक को हटाने के लिये दोबारा वही प्रक्रिया दोहरानी पड़ती है, इस कारण समय और ऊर्जा दोनों ही अधिक खर्च होती है।
    • इस तकनीक में बाहर निकलने वाले पानी के रूप में औसतन 30-40% पानी बर्बाद होता है।
    • RO पीने के पानी से आवश्यक खनिजों को भी बाहर निकाल देता है।

    इस खर्च को कम करने लिये राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा विकसित कम तापमान वाली थर्मल विलवणीकरण तकनीक इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण क़दम साबित हो सकती है जिससे भारत में पेयजल संकट से निजात पाई जा सकती है।

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